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Misc. Erotica हिंदी की सुनी-अनसुनी कामुक कहानियों का संग्रह
नज़ीला भाभी बीच में ही बोली,देख, ज़हरा! सैक्स के मामले में मैं और तेरे भाईजान बिल्कुल खुले ख्यालात के हैं। चोदने-चुदवाने में हम शरम-हया नहीं रखते हैं। हम दोनों के बीच अंडरस्टैंडिंग भी है कि तेरे भाईजान किसी और को चोद सकते हैं और मैं भी किसी भी मनचाहे मर्द से चुदवा सकती हूँ! लेकिन हम किसी एरे-गैरे के साथ चुदाई नहीं करते!


ज़हरा बोली, दीनू कैसा है? आप दोनों क्या रोज़-रोज़...!
 
नज़ीला भाभी ने तपाक से कहा, हाँ! रोज़ रोज़! दीनू मुझे रोज़ चोदता है और वो भी कईं कईं दफा। तू बता कि तू चुदवाती है कि नहीं या सूखी ज़िंदगी गुज़ार रही है?”
 
ज़हरा बोली, नहीं भाभी जान! नसीर को गुज़रे हुए छः साल हो गये... तब से बस ऐसे ही... दिल तो बहुत करता है... पर हिम्मत नहीं हुई कभी... जब कभी दिल ज्यादा ही मचलता है तो... यू नो.. केला या बैंगन वगैराह डाल कर अपनी प्यास बुझा लेती हूँ!
 
नज़ीला भाभी बोली, छोड़ ये बेकार की बातें! कब तक सोसायटी की बेकार की पाबंदियों से डर-डर  के जवानी बर्बाद करती रहेगी... जस्ट टेल मी क्लियरली... चुदवाना है दीनू से?”
 
दिल तो करता है मगर...” ज़हरा ने हिचकिचाते हुए कहा तो नज़ीला भाभी फिर बोली, ये अगर मगर कुछ नहीं... जस्ट से येस ओर नो...! ज़हरा ने सिर हिला कर हाँ कह दिया।
 
उस दिन मैं दफ्तर से काफी लेट आया था। रात को सोते वक्त अपनी और जहरा की बातें नज़ीला भाभी ने मुझे बाद में बतायीं। मैं तो खुद ज़हरा को चोदने के लिये बेकरार था। अगले दिन शाम को दफ्तर से आने के बाद मैं नज़ीला भाभी के साथ बैठ कर शराब पी रहा था तो उन्होंने ज़हरा को भी कंपनी देने के लिये बुला लिया। ज़हरा आयी तो मैं उसके हुस्न को देखता ही रह गया।
 
जब से ज़हरा चंडीगढ़ आयी थी मैंने तो उसे हमेशा जींस और कुर्ता-टॉप में ही देखा था। आज शायद नज़ीला भाभी की सलाह से उसने हल्के गुलाबी रंग की पतली सी स्लीवलेस नाइटी पहनी हुई थी जिसमें से उसका बेपनाह हुस्न छलक रहा था। होंठों पे लाल लिपस्टिक और गालों पे गुलाबी रूज़ और पैरों में सफेद रंग के ऊँची पेंसिल हील के कातिलाना सैंडल पहने हुए थे। ज़हरा भी हमारे साथ बैठ कर ड्रिंक करने लगी लेकिन ज़हरा मुझसे नज़र नहीं मिला रही थी। मैं और नज़ीला भाभी ही बातें कर रहे थे और ज़हरा चुपचाप अपना पैग पी रही थी। हमने दो-दो पैग खतम किये तो ज़हरा के हावभाव से साफ था कि उसे अच्छा खासा नशा होने लगा। नज़ीला भाभी ने जानबूझ कर ज़हरा के लिये तगड़े पैग बनाये थे। अब ज़हरा हमारी बातों पे खुल कर खिलखिलाते हुए हंस रही थी। मुझे भी हल्का सुरूर था और खुद नज़ीला भाभी भी नशे में झूम रही थीं। कातिलाना मुस्कुराहट के साथ उन्होंने मुझे आँख मार कर इशारा किया तो मैंने बेशरम होकर ज़हरा से पूछा, क्या खयाल है ज़हरा जी? पसंद आया आपको मेरा लंड? कल तो आप शरमा कर अंदर ही भग गयी थीं!
 
ज़हरा ने शरमा कर मुस्कुराते हुए अपनी भाभी की तरफ देखा तो नज़ीला भाभी हंसते हुए बोली, हाय अल्लाह... देखो कैसे शर्मा रही है...! अरे शरम हया छोड़... नहीं तो बस केले-बैंगन से काम चलाती रहेगी तमाम ज़िंदगी... सच में दीनू! ज़हरा तो बेकरार है तुम्हारा लंड लेने के लिये!
 
हाँ दीनू! छः साल से अपनी तमन्नाओं को दबा रखा था... अब और बर्दाश्त नहीं होता... भाभी जान की तरह प्लीज़ मेरी प्यास भी बुझा दो! ज़हरा ज़रा खुलते हुए बोली।
 
मैं बोला, क्यों शर्मिंदा कर रही हैं मुझे, बेकरार तो मैं हूँ इतने दिनों से आप जैसी ख़ूबसूरत हसीना को चोदने के लिये!
 
ये सुनते ही ज़हरा के गालों पर लाली आ गयी। हमने एक-एक पैग और पिया तो नज़ीला भाभी ने उनके बेडरूम में चलने का इशारा किया। मैं बाथरूम में पेशाब करके नज़ीला भाभी के बेडरूम में पहुँचा और दो मिनट के बाद वो दोनों भी सैंडल खटखटती हुई नशे में झुमती कमरे में आयीं। नशे में होने की वजह से ज़हरा की चाल में लड़खड़ाहट साफ नज़र आ रही थी।
 
दोनों बेड पर बैठ गयीं। मैं उठ कर ज़हरा के पास आया और उसके गालों को चूमने लगा। नशे की मस्ती के बावजूद उसे बहुत शरमा आ रही थी। मैं अपने पैर लंबे करके पलंग पर बैठ गया और ज़हरा को अपनी गोद में खींच लिया और उसका चेहरा घुमा कर उसके होंठों को चूमा। फिर मैंने जीभ से उसके होंठ चाटे और जीभ मुँह में डालने का प्रयास किया लेकिन उसने मुँह नहीं खोला। क्या हुआ ज़हरा जी? आपको अच्छा नहीं लग रहा क्या?” मैंने पूछा।
 
ज़हरा हंसते हुए धीरे से बोली, नहीं-नहीं दीनू! बस थोड़ा ऑउट ऑफ प्रैक्टिस हो गयी हूँ ना!
 
मैंने फिर उसके होंठों पे अपने होंठ रख दिये और उसका नीचे वाला होंठ अपने होंठों के बीच ले कर चूसा तो जहरा के जिस्म में झुरझुरी फ़ैल गयी और उसके दोनों निप्पल खड़े होने लगे। जहरा भी अब मेरा साथ देने लगी और मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी और हम दोनों एक दूसरे की जीभें चूसने लगे। फिर मैं अपना हाथ उसके पेट से उसके मम्मों पर ले गया और नाइटी के ऊपर से सहलाने लगा। उसके मम्मों को सहलाते हुए मैं बोला, ज़हरा जी, मम्मे तो बहुत बड़े-बड़े हैं और कठोर भी हैं!
 
वो कुछ नहीं बोली। कुछ देर तक मम्मे सहलाने के बाद मैंने उसकी नाइटी के हुक खोल दिये और फ़िर से उसके होंठों को चूमने लगा और फिर उसके बोब्बों को दबाने और सहलाने लगा। मेरी उंगलियाँ छूते ही उसके निप्पल खड़े हो गये। इतने में मैंने महसूस किया कि नज़ीला भाभी मेरा बरमूडा मेरी टाँगों से नीचे खिसका रही है। फिर उन्होंने मेरा अंडरवीयर और टी-शर्ट भी उतार दी। मैंने भी ज़हरा की नाइटी और ब्रा और पैंटी उसके जिस्म से अलग कर दी। नज़ीला भाभी तो पहले ही कब नंगी हो गयी थीं मुझे पता ही नहीं चला।
 
अब मैं बिल्कुल नंगा दो नंगी हसिनाओं के साथ एक ही बिस्तार पर मौजूद था। नज़ीला भाभी ने चॉकलेट रंग के पेंसिल हील के सैंडल पहने हुए थे और उनकी ननद ज़हरा ने सफेद रंग के ऊँची हील के सैंडल। दोनों का नंगा हुस्न देखकर मैं तो पागल हो गया।
 
ज़हरा को लिटा कर मैं उसकी चूत को सहलाने लगा और चूत में दो उंगलियाँ भी डाल दी। इतने में नज़ीला भाभी मेरे लंड को मुँह में लेकर चूसने लगी। मैंने भी झुक कर ज़हरा की चूत पर अपने होंठ लगा दिये और उसकी चूत में जीभ डाल कर चूसने लगा। ज़हरा के होंठों से मस्ती में खुल कर सिसकरियाँ निकल रही थी और और वो टाँगें फैलाये हुए बिस्तर की चादर अपनी मुठियों में भींच रही थी।
 
नज़ीला भाभी के चूसने से मेरा लंड पत्थर की तरह सख्त हो गया था और ज़हरा भी काफी गरम हो चुकी थी। वो अब बिल्कुल बेशरम होकर मस्ती में बोली, दीनूऽऽ अब बर्दाश्ट नहीं हो रहा... प्लीज़ चोदो मुझे...!
 
नज़ीला भाभी ने मेरा लंड अपने मुँह में से निकाला और बोली, हाँ दीनू... अब चोद दो मेरी ननद को... देखो कैसे सब शर्म-ओ-हया छोड़ कर चोदने के लिये गुज़ारिश कर रही है!
 
मैं ज़हरा के ऊपर आ गया और नज़ीला भाभी ने मेरा लंड को अपनी उंगलियों में पकड़ कर अपनी ननद की चूत के मुहाने रख दिया। मेरे लंड के गरम सुपाड़े को अपनी चूत पर महसूस करके जहरा और भी तड़प कर सिसक उठी। मेरे लंड को जहरा की चूत पर दबाते हुए नजीला भाभी बोली, फक इट अप दीनू... पूरा लौड़ा अंदर तक...!
 
मैंने एक जोर का धक्का मारा तो आधा लंड ज़हरा की चूत में घुस गया। दर्द की वजह से ज़हरा ज़ोर से चिल्लायी, ऊऊऊईईईईई आआआहहह मेरे अल्लाह.... मरऽऽऽ गयीऽऽऽ! अपनी ननद को दर्द से बेहाल होकर तड़पते देख नज़ीला भाभी ज़हरा के पास जाकर उसके होंठों को चूमने लगी और उसके मम्मों को दबाने लगी। जहरा की चींखें कुछ कम हुई तो मैंने फिर कस कर एक धक्का मारा तो पूरा लंड उसकी चूत में समा गया। ज़हरा की चूत की कसी-कसी और गरम-गरम दीवारें मेरे लंड को जकड़े हुए थी। 
 
ज़हरा की तो फिर से चींख निकाल पड़ी और वो अपने सिर को इधर-उधर पटकते हुए चिल्लायी, याऽऽ अल्लाहऽऽऽ... मेरे मालिक... इस जालिम लंड ने तो मेरी जान ही निकाल डाली... आआआईईईऽऽऽ!
 
मैं कुछ देर उसकी चूत में पूरा लंड घुसाये पड़ा रहा और कुछ भी हर्कत नहीं की। नज़ीला भाभी अब भी अपनी ननद के मुँह में जीभ डालकर उसके होंठ चूम रही थी। जब जहरा नॉर्मल हुई तो मैं अपने चूतड़ हिला कर धीरे-धीरे चोदने लगा। नज़ीला भाभी अब उसे चूमना छोड़ कर ज़हरा के बगल में लेटी हुई अपने हाथ से उसकी चूचियाँ और पेट पर सहला रही थी। ज़हरा मस्ती में ज़ोर-ज़ोर से सिसकते हुए आहह ऊँहह आँआँहह कर रही थी। अपनी टाँगें उठा कर ज़हरा ने मेरे पीछे कमर पर कैंची की तरह कस दीं और अपनी बाँहें मेरी बगलों में से मेरे कंधों पर कस दीं। हाँ...ओहह मेरा खुदा... सो गुड... ओह डू इट... चोदो...! बड़बड़ाते हुए ज़हरा भी मेरे धक्कों के साथ-साथ अपने चूतड़ ऊपर उछालने की पूरी कोशिश कर रही थी।
 
थोड़ी ही देर में मैंने महसूस किया की नज़ीला भाभी अब मेरे पीछे थीं और मेरे चूतड़ों पर हाठ फिरा रही थीं। मैं भी सधे हुए लंबे-लंबे धक्के मारता हुआ अपना लंड ज़हरा की चूत में अंदर-बाहर चोद रहा था। ओहह दीनू... आँहहा... अल्लाह... मैं... मैं... गयी... आआहहह! ज़हरा ज़ोर से चींखी और अपनी टाँगें बहुत ज़ोर से मेरी कमर पर कस दीं और अपनी उंगलियों के नाखुन मेरे कंधों में गड़ा दिये। उसका बदन अकड़ गया और ज़हरा की चूत ने मेरे लंड पर पानी छोड़ दिया।
 
मैंने चोदना नहीं रोका और अब मैं और भी लंबे-लंबे धक्के मारते हुए चोदने लगा। पूरा लंड बाहर खींच कर एक झटके में ज़हरा की चूत में घुसेड़ने लगा। ज़हरा भी फिर से मस्ती में आ गयी और नीचे से अपने चूतड़ उछालने लगी। थोड़ी ही देर में धक्कों की रफ़्तार और बढ़ने लगी। कमरे में ज़हरा की ऊँहहह आँहह गूँज रही थी और उधर नज़ीला भाभी भी हमें जोश दिला रही थीं, फक हर दीनू... और ज़ोर से चोद कुत्तिया को...!
 
करीब पंद्रह-बीस मिनटों की चुदाई के बाद मैं ज़ोर से ज़हरा से लिपट गया और उसने भी मुझे ज़ोर से जकड़ लिया। हम दोनों ही झड़ने के कगार पर थे। पहले ज़हरा झड़ते हुए ज़ोरे से चींखी और मैंने भी पूरी ताकत से अपना लंड ज़हरा की चूत में अंदर तक ठाँस दिया। मेरी गोटियाँ भी ज़हरा के चूतड़ों के बीच की दरार में धंसी गयीं। अगले ही पल मेरा लंड उसकी चूत की गहरायी में पाँच-सात पिचकारियाँ मार कर झड़ गया। कुछ देर तक हम दोनों ऐसे ही लिपटे रहे। फिर जब मैंने आधा मुर्झाया हुआ लंड बाहर निकाला तो देखा उसकी चूत से वीर्य की धार बह रही थी। नज़ीला भाभी ने लपक कर अपनी जीभ ज़हरा की चूत पर लगा दी और उसमें से बहता हुआ मेरा वीर्य चाटने लगी। मेरा लंड भी नज़ीला भाभी ने चूस कर साफ किया और फिर उन्होंने ज़हरा से पूछा, आया ना मज़ा?”
 
ज़हरा सिसकते हुए बोली, या अल्लाह! इतने सालों से क्यों मैंने खुद को इतने मज़े से महरूम रखा?”
 
फिर मैंने नज़ीला भाभी को भी चोदा। ज़हरा भी नज़ीला भाभी की तरह ही चुदासी निकली। ज़हरा जितने दिन चंडिगढ़ रही हम तीनों रात को एक ही बिस्तर में सोते और रोज-रोज मैं उन दोनों ननद-भाभी को चोदता। दोनों चुदक्कड़ ननद-भाभी ने मुझे चुदाई की मशीन बना कर रख दिया और दोनों मिलकर मेरा लंड निचोड़ कर रख देतीं थीं। कईं दफा तो दोनों नशे धुत्त होकर में मेरे लौड़े के लिये आपस में बिल्लियों की तरह लड़ने और गाली-गलौच तक करने लगती थीं।
 
ज़हरा के जाने के बाद मैं करीब चार महीने चंडीगढ़ में नज़ीला भाभी के साथ रहा और उन्हें चोदता रहा।
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RE: हिंदी की कामुक कहानियों का संग्रह - by rohitkapoor - 02-01-2022, 11:36 PM



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