18-12-2021, 01:15 AM
“ऊऊऊऽऽऽहहहऽऽऽऽ! ताआऽऽऽहिर! जाआऽऽऽन ये क्या कर रहे हो? छीऽऽऽ नहीईं वहाँ जीऽऽभ सेऽऽऽ मत चाटो! नऽऽऽहींऽऽऽ हाँऽऽऽऽ और अंदर.... और अंदर।” मैं उत्तेजना में जोर-जोर से चींखने लगी। ससुर जी ने मेरी गाँड के छेद को अपनी अँगुलियों से फैला कर उसके अंदर भी एक बार जीभ डाल दी। मेरी चूत में आग लगी हुई थी। मैं उत्तेजना और नशे में अपने ही हाथों से अपने मम्मों को बुरी तरह मसल रही थी।
“बस-बस! और नहीं.. अब मेरी प्यास बुझा दो। मेरी चूत जल रही है.... इसे अपने लंड से ठंडा कर दो। अब मुझे अपने लंड से चोद दो। अब और बर्दाश्त नहीं कर सकती। ये आपने क्या कर डाला..... मेरे पूरे जिस्म में आग जल रही है। प्लीऽऽऽऽज़ और नहीं.... ” मैं तड़प रही थी। उन्होंने वापस टब से बाहर निकल कर मुझे अपनी बाँहों में उठाया और गीले जिस्म में ही कमरे में वापस आये।
उन्होंने मुझे उसी हालत में बिस्तर पेर लिटा दिया। वो मुझे लिटा कर उठने को हुए तो मैंने झट से उनकी गर्दन में अपनी बांहें डाल दीं, जिससे वो मुझसे दूर नहीं जा सकें। अब इंच भर की दूरी भी बर्दाश्त से बाहर हो रही थी। उन्होंने मुस्कुराते हुए मेरी बाँहों को अपनी गर्दन से अलग किया और अपने लंड पर बोतल में बची हुई वाईन से कुछ बूँद रेड वाईन डाल कर मुझसे कहा, “अब इसे चूसो!” मैंने वैस ही किया। मुझे वाईन से भीगा उनका लंड बहुत ही टेस्टी लगा। मैं वापस उनके लंड को मुँह में लेकर चूसने लगी। उन्होंने अब उस बोतल से बची हुई वाईन धीरे-धीरे अपने लंड पर उढ़ेलनी शुरू की। मैं उनके लंड और उनके टट्टों पर गिरती हुई वाईन को पी रही थी। कुछ देर बाद जब मैं पुरी वाईन पी चुकी तो उन्होंने मुझे लिटा दिया और मेरी टांगें अपने कंधों पर रख दीं। फिर उन्होंने मेरी कमर के नीचे एक तकिया लगा कर मेरी चूत की फाँकों को अलग किया। मैं उनके लंड के दाखिल होने का इंतज़ार करने लगी। उनके लंड को मैं अपनी चूत के ऊपर सटे हुए महसूस कर रही थी। अब तो मैं इतने नशे में थी कि मैंने आँखें बंद करके अपने आप को इस दुनिया से काट लिया था। नशे और वासना में चूर मैं दुनिया के सारे रिश्तों को और सारी मर्यादाओं को भूल कर बस अपने ससुर जी का, अपने बॉस का, अपने ताहिर जानू के लंड को अपनी चूत में घुसते हुए महसूस करना चाहती थी। अब वो सिर्फ, और सिर्फ मेरे आशिक थे। उनसे बस एक ही रिश्ता था; जो रिश्ता किसी मर्द और औरत के बीच जिस्मों के मिलन से बनता है। मैं उनके लंड से अपनी चूत की दीवारों को रगड़ना चाहती थी। सब कुछ एक जन्नती एहसास दे रहा था। उन्होंने मेरी चूत की फाँकों को अलग करके अपने लंड को मेरी चूत के छेद पर रखा। “अब बता मेरी जान..... कितनी प्यास है तेरे अंदर? मेरे लंड को कितना चाहती है?” ताहिर अज़ीज़ खान जी ने अपने लंड को चूत के ऊपर रगड़ते हुए पूछा।
“आआऽऽऽहहऽऽऽ क्या करते हो.... ऊँममऽऽऽ अंदर घुसा दो इसे!” मैंने अपने सूखे होंठों पर जीभ फ़ेरी।
“बस-बस! और नहीं.. अब मेरी प्यास बुझा दो। मेरी चूत जल रही है.... इसे अपने लंड से ठंडा कर दो। अब मुझे अपने लंड से चोद दो। अब और बर्दाश्त नहीं कर सकती। ये आपने क्या कर डाला..... मेरे पूरे जिस्म में आग जल रही है। प्लीऽऽऽऽज़ और नहीं.... ” मैं तड़प रही थी। उन्होंने वापस टब से बाहर निकल कर मुझे अपनी बाँहों में उठाया और गीले जिस्म में ही कमरे में वापस आये।
उन्होंने मुझे उसी हालत में बिस्तर पेर लिटा दिया। वो मुझे लिटा कर उठने को हुए तो मैंने झट से उनकी गर्दन में अपनी बांहें डाल दीं, जिससे वो मुझसे दूर नहीं जा सकें। अब इंच भर की दूरी भी बर्दाश्त से बाहर हो रही थी। उन्होंने मुस्कुराते हुए मेरी बाँहों को अपनी गर्दन से अलग किया और अपने लंड पर बोतल में बची हुई वाईन से कुछ बूँद रेड वाईन डाल कर मुझसे कहा, “अब इसे चूसो!” मैंने वैस ही किया। मुझे वाईन से भीगा उनका लंड बहुत ही टेस्टी लगा। मैं वापस उनके लंड को मुँह में लेकर चूसने लगी। उन्होंने अब उस बोतल से बची हुई वाईन धीरे-धीरे अपने लंड पर उढ़ेलनी शुरू की। मैं उनके लंड और उनके टट्टों पर गिरती हुई वाईन को पी रही थी। कुछ देर बाद जब मैं पुरी वाईन पी चुकी तो उन्होंने मुझे लिटा दिया और मेरी टांगें अपने कंधों पर रख दीं। फिर उन्होंने मेरी कमर के नीचे एक तकिया लगा कर मेरी चूत की फाँकों को अलग किया। मैं उनके लंड के दाखिल होने का इंतज़ार करने लगी। उनके लंड को मैं अपनी चूत के ऊपर सटे हुए महसूस कर रही थी। अब तो मैं इतने नशे में थी कि मैंने आँखें बंद करके अपने आप को इस दुनिया से काट लिया था। नशे और वासना में चूर मैं दुनिया के सारे रिश्तों को और सारी मर्यादाओं को भूल कर बस अपने ससुर जी का, अपने बॉस का, अपने ताहिर जानू के लंड को अपनी चूत में घुसते हुए महसूस करना चाहती थी। अब वो सिर्फ, और सिर्फ मेरे आशिक थे। उनसे बस एक ही रिश्ता था; जो रिश्ता किसी मर्द और औरत के बीच जिस्मों के मिलन से बनता है। मैं उनके लंड से अपनी चूत की दीवारों को रगड़ना चाहती थी। सब कुछ एक जन्नती एहसास दे रहा था। उन्होंने मेरी चूत की फाँकों को अलग करके अपने लंड को मेरी चूत के छेद पर रखा। “अब बता मेरी जान..... कितनी प्यास है तेरे अंदर? मेरे लंड को कितना चाहती है?” ताहिर अज़ीज़ खान जी ने अपने लंड को चूत के ऊपर रगड़ते हुए पूछा।
“आआऽऽऽहहऽऽऽ क्या करते हो.... ऊँममऽऽऽ अंदर घुसा दो इसे!” मैंने अपने सूखे होंठों पर जीभ फ़ेरी।