08-11-2020, 01:12 AM
भाग ९
हम स्केड्यूल के हिसाब से फ्राँस के लिये निकल पड़े। पैरिस में हमारी तरह तकरीबन सौ कंपनी के रेप्रिसेंटेटिव आये थे। हमें एक शानदार रिज़ोर्ट-होटल में ठहराया गया। उस दिन शाम को कोई प्रोग्राम नहीं था तो हमें साईट-सींग के लिये ले जाया गया। वहाँ आईफल टॉवर के नीचे खड़े होकर हम दोनों कईं फोटो खिंचवाये। फोटोग्राफर्स ने हम दोनों को हसबैंड-वाईफ समझा। वो हम दोनों को कुछ इंटीमेट फोटो के लिये उकसाने लगे। ससुर जी ने मुझे देखा और मेरी राय माँगी। मैंने कुछ कहे बिना उनके सीने से लिपट कर अपनी रज़ामंदी जाता दी। हम दोनों ने एक दूसरे को चूमते हुए और लिपटे हुए कईं फोटो खिंचवाये। मैंने उनकी गोद में बैठ कर भी कईं फोटो खिंचवाये। ये सब फोटो उन्होंने छिपा कर रखने की मुझे तसल्ली दी। ये रिश्ता किसी भी तरह से इंडियन कलचर में एक्सेप्टेबल नहीं था।
अगले दिन सुबह से बहुत बिज़ी प्रोग्राम था। सुबह से ही मैं सैमिनार में बिज़ी रही। ताहिर अज़ीज़ खान जी, यानी मेरे ससुर जी, एक ब्लैक सूट जिस पर गोल्डन लाईनिंग थी, उसमें बहुत जच रहे थे। उन्हें देख कर किसी को अंदाज़ लगाना मुश्किल हो जाये कि उनके बेटों की निकाह भी हो चुके होंगे। वो खुद ४० साल से ज्यादा के नहीं लगते थे। जैसा कि मैंने पहले लिखा था कि निकाह से पहले से ही मैं उन पर मर मिटी थी। अगर मेरा जावेद से निकाह नहीं हुआ होता तो मैं तो उनकी मिस्ट्रैस बनकर रहने को भी तैयार थी। जावेद से मुलाकत कुछ और दिनों के बाद भी होती तो मैं अपनी वर्जिनिटी ताहिर अज़ीज़ खान जी पर निसार कर चुकी होती।
खैर वापस घटनाओं पर लौटा जाये। सुबह, ड्रेस कोड के अनुसार मैंने स्कर्ट-ब्लाऊज़ और साढ़े चार इंच ऊँची हील के सैंडल पहन रखे थे। १२ बजे के आस पास दो घांटे का ब्रेक मिलता था, जिसमें स्विमिंग और लंच करते थे। सब कुछ स्ट्रिक्ट टाईम टेबल के अनुसार किया जा रहा था। सुबह उठने से लेकर कब-कब क्या-क्या करना है, सब कुछ पहले से ही डिसायडिड था।