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Misc. Erotica मैं हसीना गज़ब की
आजा मेरे ऊपर”, स्वामी ने मुझे उसके लंड को अपने अंदर लेने का इशारा किया। मैंने अपनी कमर उठा कर उसके खड़े हुए लंड को अपनी चूत पर सैट किया। उसने अपने हाथों को आगे बढ़ा कर मेरे दोनों मम्मे थाम लिये। मैंने अपने चेहरे के सामने आये बालों को एक झटके से पीछे किया और अपनी कमर को उसके लंड पर धीरे-धीरे नीचे करने लगी। उसका मोटा लंड एक झटके से मेरी चूत का दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल हो गया।आआऽऽऽहहहऽऽऽ उफफऽऽओहहऽऽऽमैं कराह उठी। एक बार उसके लंड से चुदाई हो जाने के बाद भी उसका लंड मेरी चूत में दाखिल होते वक्त मैं दर्द से छटपटा उठी। ऐसा लगता था शायद पिछली ठुकाई में मेरी चूत अंदर से छिल गयी थी। इसलिये उसका लंड वापस जैसे ही अंदर रगड़ता हुआ आगे बढ़ा, दर्द की एक तेज़ लहर पूरे जिस्म में समा गयी। मैंने अपने हाथ उसके सीने पर रख कर अपनी कमर को धीरे-धीरे नीचे किया। मेरा सिर नशे में बुरी तरह झूम रहा था और दिमाग पर नशे की जैसे एक धुँध सी छायी हुई थी। 

रस्तोगी के वीर्य ने अब चेहरे पर और मम्मों पर सूख कर पपड़ी का रूप ले लिये था। मैं कुछ देर तक यूँ ही स्वामी के लंड पर बैठी अपनी उखड़ी हुई साँसों और अपने नशे को काबू में करने की कोशिश करने लगी तो पीछे से मेरी दोनों बगलों के नीचे से रस्तोगी ने अपने हाथ डाल कर मेरे जिस्म को जकड़ लिया और उसे ऊपर नीचे करना शुरू किया। धीरे-धीरे मैं खुद ही अपनी कमर को उसके लंड पर हिलाने लगी। अब दर्द कुछ कम हो गया था। अब मैं तेजी से स्वामी के लंड पर ऊपर नीचे हो रही थी।
 
अचानक स्वामी ने मेरे दोनों निप्पलों को अपनी मुठ्ठियों में भर कर अपनी ओर खींचा। मैं उसके खींचने के कारण उसके ऊपर झुकते-झुकते लेट ही गयी। उसने अब मुझे अपनी बाँहों में जकड़ कर अपने सीने पर दाब लिया। मेरे मम्मे उसके सीने में पिसे जा रहे थे। तभी पीछे से किसी की अँगुलियों की छुअन मेरे नितंबों के ऊपर हुई। मैं उसे देखने के लिये अपने सिर को पीछे की ओर मोड़ना चाहती थी लेकिन मेरी हरकत को भाँप कर स्वामी ने मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये और मेरे निचले होंठ को अपने मुँह में लेकर चूसने लगा। मैंने महसूस किया कि वो हाथ रस्तोगी का था। रस्तोगी मेरे माँसल चूतड़ों को अपने हाथ से सहला रहा था। कुछ ही देर में उसकी अँगुलियाँ सरकती हुई मेरी चूत पर धोंकनी की तरह चल रहे स्वामी के लंड के पास पहुँच गयीं। वो अपनी अँगुलियों को मेरी चूत से उफ़नते हुए रस से गीला कर मेरी गाँड के छेद पर फ़ेरने लगा। मैं उसकी नियत समझ कर छूटने के लिये छटपटाने लगी मगर स्वामी ने मुझे जोंक की तरह जकड़ रखा था। उन साँडों से मुझ जैसी नशे में धुत्त नाज़ुक कली कितनी देर लड़ सकती थी। मैंने कुछ ही देर में थक कर अपने जिस्म को ढीला छोड़ दिया।
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RE: मैं हसीना गज़ब की - by rohitkapoor - 05-10-2020, 11:50 PM



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