05-07-2020, 09:07 PM
जावेद ने पहले उन दोनों से मेरा इंट्रोडक्शन कराया, “मॉय वाईफ शहनाज़ !” उन्होंने मेरी ओर इशारा करके उन दोनों को कहा, फिर मेरी ओर देख कर कहा, “ये हैं मिस्टर रस्तोगी और ये हैं…”
“चिन्नास्वामी.. चिन्नास्वामी येरगंटूर मैडम। यू कैन काल मी चिन्ना इन शॉर्ट।” चिन्नास्वामी ने जावेद की बात पूरी की। मैंने सामने देखा दोनों लंबे चौड़े शरीर के मालिक थे। चिन्नास्वामी साढ़े छः फ़ीट का मोटा आदमी था। रंग एकदम कार्बन की तरह काला और खिचड़ी दाढ़ी में एकदम साऊथ इंडियन फ़िल्म का कोई टिपिकल विलेन लग रहा था। उसकी उम्र ४५ से पचास साल के करीब थी और वजन लगभग १०० किलो के आस्पास होगा। जब वो मुझे देख कर हाथ जोड़ कर हंसा तो ऐसा लगा मानो बादलों के बीच में चाँद निकल आया हो।
और रस्तोगी? वो भी बहुत बुरा था देखने में। वो भी ४० साल के आसपास का ५’८" हाईट वाला आदमी था जिसकी फूली हुई तोंद बाहर निकली हुई थी। सिर बिल्कुल साफ़ था। उसमें एक भी बाल नहीं था। मुझे उन दोनों को देख कर बहुत बुरा लगा। मैं उन दोनों के सामने लगभग नंगी खड़ी थी। कोई और वक्त होता तो ऐसे गंदे आदमियों को तो मैं अपने पास ही नहीं फ़टकने देती। लेकिन वो दोनों तो इस वक्त मेरे फूल से जिस्म को नोचने को बेकरार हो रहे थे। दोनों की आँखें मुझे देख कर चमक उठीं। दोनों की आँखों से लग रहा था कि मैंने वो साड़ी भी क्यों पहन रखी थी। दोनों ने मुझे सिर से पैर तक भूखी नजरों से घूरा। मैं ग्लास टेबल पर रखने के लिये झुकी तो मेरे मम्मों के वजन से मेरी साड़ी का आंचल नीचे झुक गया और रसीले फलों की तरह लटकते मेरे मम्मों को देख कर उनके सीनों पर साँप लौटने लगे। मैं ग्लास और आईस क्यूब टेबल पर रख कर वापस किचन में जाना चाहती थी कि चिन्नास्वामी ने मेरी बाजू को पकड़ कर मुझे वहाँ से जाने से रोका।
“तुम क्यों जाता है.... तुम बैठो हमारे पास!” उसने थ्री सीटर सोफ़े पर बैठते हुए मुझे बीच में खींच लिया। दूसरी तरफ़ रस्तोगी बैठा हुआ था। मैं उन दोनों के बीच सैंडविच बनी हुई थी।
“जावेद भाई ये किचन का काम तुम करो। अब हमारी प्यारी भाभी जान यहाँ से नहीं जायेगी”, रस्तोगी ने कहा। जावेद उठ कर ट्रे किचन में रख कर आ गया। उसके हाथ में सोडे की बोतलें थीं। जब वो वापस आया तो मुझे दोनों के बीच कसमसाते हुए पाया। दोनों मेरे जिस्म से सटे हुए थे और कभी एक तो कभी दूसरा मेरे होंठों को या मेरी साड़ी के बाहर झाँकती नंगी बांहों को और मेरी गर्दन को चूम रहे थे। रस्तोगी के मुँह से अजीब तरह की बदबू आ रही थी। मैं किसी तरह साँसों को बंद करके उनकी हरकतों को चुपचाप झेल रही थी।
“चिन्नास्वामी.. चिन्नास्वामी येरगंटूर मैडम। यू कैन काल मी चिन्ना इन शॉर्ट।” चिन्नास्वामी ने जावेद की बात पूरी की। मैंने सामने देखा दोनों लंबे चौड़े शरीर के मालिक थे। चिन्नास्वामी साढ़े छः फ़ीट का मोटा आदमी था। रंग एकदम कार्बन की तरह काला और खिचड़ी दाढ़ी में एकदम साऊथ इंडियन फ़िल्म का कोई टिपिकल विलेन लग रहा था। उसकी उम्र ४५ से पचास साल के करीब थी और वजन लगभग १०० किलो के आस्पास होगा। जब वो मुझे देख कर हाथ जोड़ कर हंसा तो ऐसा लगा मानो बादलों के बीच में चाँद निकल आया हो।
और रस्तोगी? वो भी बहुत बुरा था देखने में। वो भी ४० साल के आसपास का ५’८" हाईट वाला आदमी था जिसकी फूली हुई तोंद बाहर निकली हुई थी। सिर बिल्कुल साफ़ था। उसमें एक भी बाल नहीं था। मुझे उन दोनों को देख कर बहुत बुरा लगा। मैं उन दोनों के सामने लगभग नंगी खड़ी थी। कोई और वक्त होता तो ऐसे गंदे आदमियों को तो मैं अपने पास ही नहीं फ़टकने देती। लेकिन वो दोनों तो इस वक्त मेरे फूल से जिस्म को नोचने को बेकरार हो रहे थे। दोनों की आँखें मुझे देख कर चमक उठीं। दोनों की आँखों से लग रहा था कि मैंने वो साड़ी भी क्यों पहन रखी थी। दोनों ने मुझे सिर से पैर तक भूखी नजरों से घूरा। मैं ग्लास टेबल पर रखने के लिये झुकी तो मेरे मम्मों के वजन से मेरी साड़ी का आंचल नीचे झुक गया और रसीले फलों की तरह लटकते मेरे मम्मों को देख कर उनके सीनों पर साँप लौटने लगे। मैं ग्लास और आईस क्यूब टेबल पर रख कर वापस किचन में जाना चाहती थी कि चिन्नास्वामी ने मेरी बाजू को पकड़ कर मुझे वहाँ से जाने से रोका।
“तुम क्यों जाता है.... तुम बैठो हमारे पास!” उसने थ्री सीटर सोफ़े पर बैठते हुए मुझे बीच में खींच लिया। दूसरी तरफ़ रस्तोगी बैठा हुआ था। मैं उन दोनों के बीच सैंडविच बनी हुई थी।
“जावेद भाई ये किचन का काम तुम करो। अब हमारी प्यारी भाभी जान यहाँ से नहीं जायेगी”, रस्तोगी ने कहा। जावेद उठ कर ट्रे किचन में रख कर आ गया। उसके हाथ में सोडे की बोतलें थीं। जब वो वापस आया तो मुझे दोनों के बीच कसमसाते हुए पाया। दोनों मेरे जिस्म से सटे हुए थे और कभी एक तो कभी दूसरा मेरे होंठों को या मेरी साड़ी के बाहर झाँकती नंगी बांहों को और मेरी गर्दन को चूम रहे थे। रस्तोगी के मुँह से अजीब तरह की बदबू आ रही थी। मैं किसी तरह साँसों को बंद करके उनकी हरकतों को चुपचाप झेल रही थी।