14-06-2020, 07:06 PM
“अपनी टाँगें थोड़ी फ़ैलाओ?” प्रशाँत ने ज़ूबी से कहा।
ज़ूबी की समझ में आ गया कि विरोध करना बेकार था, ये मर्द कुछ सुनने या मानने वाला नहीं था। उसने अपनी टाँगें थोड़ी सी फैला दी।
ज़ूबी का सिर शरम से झुक गया था कि सीमा के सामने वो मर्द उसे नंगा निहार रहा रहा है। अचानक प्रशाँत की अंगुलियाँ उसकी चूत के मुहाने पर चलने लगी तो ज़ूबी सिसक पड़ी। उसकी मोटी अँगुली उसकी चूत में घुस रही थी, और उसके शरीर में कामुक्ता की एक लहर सी दौड़ रही थी। ज़ूबी ने बहुत कोशिश की कि वो स्थिर खड़ी रहे पर उसने उत्तेजना में खुद-ब-खुद टाँगें इस कदर फैला दी कि उस मर्द की अँगुली आसानी से उसकी चूत के अंदर बाहर होने लगी।
तभी ज़ूबी ने महसूस किया कि वो मर्द अब दो अँगुलियाँ उसकी चूत के अंदर डाल कर चोद रहा है। प्रशाँत ने अपनी अँगुलियाँ अच्छी तरह से उसकी चूत के पानी से गीली कर ली और अब उसकी गाँड के छेद पे फ़िराने लगा।
ज़ूबी ने इस बर कोई विरोध नहीं किया और उसकी अँगुली उसकी कसी हुई गाँड मे घुस गयी।
“ओहहहहह आआआहहहह” ज़ूबी सिसक पड़ी।
थोड़ी देर उसकी गाँड मे अँगुली करने के बाद उसने अपनी अँगुली बाहर निकाल ली। उसने सीमा को ज़ूबी की दोनों बांहें कस के पकड़ने का इशारा किया और खुद ज़ूबी के पीछे आकर खड़ा हो गया। उसका लंड मूसल खूँटे कि तरह तन कर खड़ा था।
ज़ूबी कुर्सी पर इस तरह थी कि उसके घुटने तो कुर्सी पर थे और दोनों बांहें हथे पर। सीमा ने उसकी दोनों बांहें कस कर पकड़ रखी थी। ज़ूबी ने महसूस किया कि वो मर्द अब उसके पीछे खड़ा होकर अपना खूँटे जैसा लंड उसकी गाँड के छेद पर घिस रहा है।
प्रशाँत ज़ूबी को कुर्सी पर झुका हुआ देख रहा था। उसकी गुलाबी चूत पीछे से उभर कर बाहर को निकल आयी थी। उसने अपना लंड उसकी चूत पर रखा और अंदर घुसाने लगा। उसे कोई जल्दी नहीं थी, वो आराम से अपने लंड को थोड़ा-थोड़ा अंदर पेल रहा था। जब उसका पूरा लंड ज़ूबी की चूत में घुस गया तो वो बड़े आराम से अपनी सहकर्मी को चोदने लगा।
थोड़ी देर उसकी चूत चोदने के बाद उसने अपना लंड बाहर निकाला और उसकी चूत के ऊपर गाँड के छोटे छेद पर घिसने लगा। उसने ज़ूबी के चूतड़ पकड़ कर थोड़ा फ़ैलाये और अपना लंड अंदर घुसाने लगा।
“नहीं वहाँआँआँ नहींईंईंईं,” ज़ूबी चींख पड़ी, “प्लीज़ वहाँ नहींईंईं।”
पर जैसे ज़ूबी की चींख का उस पर कोई असर नहीं पड़ा। सीमा ने ज़ूबी की बांहें कस कर पकड़ रखी थी जिससे वो कोई विरोध ना करे। वैसे तो सीमा मन से इस क्रिया का हिस्सा नहीं बनना चाहती थी पर उसने देखा कि ज़ूबी सिर्फ़ मुँह से ही विरोध कर रही थी शरीर से नहीं।
ज़ूबी की समझ में आ गया कि विरोध करना बेकार था, ये मर्द कुछ सुनने या मानने वाला नहीं था। उसने अपनी टाँगें थोड़ी सी फैला दी।
ज़ूबी का सिर शरम से झुक गया था कि सीमा के सामने वो मर्द उसे नंगा निहार रहा रहा है। अचानक प्रशाँत की अंगुलियाँ उसकी चूत के मुहाने पर चलने लगी तो ज़ूबी सिसक पड़ी। उसकी मोटी अँगुली उसकी चूत में घुस रही थी, और उसके शरीर में कामुक्ता की एक लहर सी दौड़ रही थी। ज़ूबी ने बहुत कोशिश की कि वो स्थिर खड़ी रहे पर उसने उत्तेजना में खुद-ब-खुद टाँगें इस कदर फैला दी कि उस मर्द की अँगुली आसानी से उसकी चूत के अंदर बाहर होने लगी।
तभी ज़ूबी ने महसूस किया कि वो मर्द अब दो अँगुलियाँ उसकी चूत के अंदर डाल कर चोद रहा है। प्रशाँत ने अपनी अँगुलियाँ अच्छी तरह से उसकी चूत के पानी से गीली कर ली और अब उसकी गाँड के छेद पे फ़िराने लगा।
ज़ूबी ने इस बर कोई विरोध नहीं किया और उसकी अँगुली उसकी कसी हुई गाँड मे घुस गयी।
“ओहहहहह आआआहहहह” ज़ूबी सिसक पड़ी।
थोड़ी देर उसकी गाँड मे अँगुली करने के बाद उसने अपनी अँगुली बाहर निकाल ली। उसने सीमा को ज़ूबी की दोनों बांहें कस के पकड़ने का इशारा किया और खुद ज़ूबी के पीछे आकर खड़ा हो गया। उसका लंड मूसल खूँटे कि तरह तन कर खड़ा था।
ज़ूबी कुर्सी पर इस तरह थी कि उसके घुटने तो कुर्सी पर थे और दोनों बांहें हथे पर। सीमा ने उसकी दोनों बांहें कस कर पकड़ रखी थी। ज़ूबी ने महसूस किया कि वो मर्द अब उसके पीछे खड़ा होकर अपना खूँटे जैसा लंड उसकी गाँड के छेद पर घिस रहा है।
प्रशाँत ज़ूबी को कुर्सी पर झुका हुआ देख रहा था। उसकी गुलाबी चूत पीछे से उभर कर बाहर को निकल आयी थी। उसने अपना लंड उसकी चूत पर रखा और अंदर घुसाने लगा। उसे कोई जल्दी नहीं थी, वो आराम से अपने लंड को थोड़ा-थोड़ा अंदर पेल रहा था। जब उसका पूरा लंड ज़ूबी की चूत में घुस गया तो वो बड़े आराम से अपनी सहकर्मी को चोदने लगा।
थोड़ी देर उसकी चूत चोदने के बाद उसने अपना लंड बाहर निकाला और उसकी चूत के ऊपर गाँड के छोटे छेद पर घिसने लगा। उसने ज़ूबी के चूतड़ पकड़ कर थोड़ा फ़ैलाये और अपना लंड अंदर घुसाने लगा।
“नहीं वहाँआँआँ नहींईंईंईं,” ज़ूबी चींख पड़ी, “प्लीज़ वहाँ नहींईंईं।”
पर जैसे ज़ूबी की चींख का उस पर कोई असर नहीं पड़ा। सीमा ने ज़ूबी की बांहें कस कर पकड़ रखी थी जिससे वो कोई विरोध ना करे। वैसे तो सीमा मन से इस क्रिया का हिस्सा नहीं बनना चाहती थी पर उसने देखा कि ज़ूबी सिर्फ़ मुँह से ही विरोध कर रही थी शरीर से नहीं।