07-06-2020, 02:27 AM
ज़ूबी की चूत अभी गीली नहीं हुई थी, इसलिए राकेश की अँगुलियों से उसे दर्द हो रहा था। राकेश अब अपने दूसरे हाथ से उसकी चूचियों को भींचने लगा। वो एक हाथ से उसकी चूत में अँगुली कर रहा था और दूसरे हाथ से उसके निप्पल भींच रहा था। इस दोहरी हरकत ने तुरंत ही अपना असर दिखाया और ज़ूबी की चूत गीली हो गयी। अब राकेश की अँगुलियाँ आराम से उसकी चूत के अंदर बाहर हो रही थी।
शरीर की उत्तेजना ने एक बर फिर ज़ूबी की अंतरात्मा को धोखा दे दिया। उसके कुल्हे उत्तेजना मे अब आगे पीछे हो रहे थे। ज़ूबी पूरी तरह से राकेश की अँगुलियों की ताल से ताल मिला रही थी। उसके मुँह से हल्की हल्की सिस्करी निकल रही थी, “ओहहहह आआआआहहह।”
राकेश अब और तेजी से अपनी अँगुली ज़ूबी की चूत में अंदर बाहर कर रहा था, “ओहहहह हाँआँआँ ऐसे ही करो ओहहह आआआआआह” ज़ूबी सिसक रही थी।
राकेश ने ज़ूबी का हाथ पकड़ कर अपने खड़े लंड पर रख दिया। ज़ूबी उसके लंड को अपनी हथेली की गिरफ़्त मे लेकर मसलने लगी। राकेश का लंड अब तनने लगा था। ज़ूबी ने महसूस किया कि अब उसका लंड उसकी हथेली में नहीं समा रहा है तो उत्सुक्ता में वो अपनी नज़रें घुमा कर उस मोटे और विशाल लंड को देखने लगी। लंड के सुपाड़े को देखकर तो वो हैरान रह गयी। उसने इतना मोटा और मूसल लंड पहले कभी नहीं देखा था।
समय बीतता जा रहा था। राकेश ने बिस्तर के पास पड़े कॉंन्डम के पैकेट को उठाया और अपने दाँतों से फाड़ कर ज़ूबी को पकड़ा दिया।
ज़ूबी ने कॉंन्डम को पैकेट से निकाला और राकेश के लंड को पहनाने लगी।
राकेश ने ज़ूबी की चूत से अपनी अँगुली निकाली और उसे घूमा दिया। अब वो पीछे से उसकी चूत में अपना लंड घुसाने लगा। जैसे-जैसे वो अपने लंड का दबाव बढ़ाता, ज़ूबी बिस्तर को पकड़ कर और झुक जाती, साथ ही अपनी टाँगें भी और फैला देती जिससे उसका मूसल लंड आसानी से अंदर घुस सके।
राकेश ने ज़ूबी के भरे हुए चूतड़ पकड़े और उसकी चूत में लंड घुसाने लगा। थोड़ी ही देर में उसका पूरा लंड ज़ूबी की चूत में घुस चुका था। वो उसके कुल्हों को पकड़ कर धक्के मार रहा था।
“हाँ ले लो मरा लंड... ओओहहह हाँ... और थोड़ी टाँगें फैलाओ,” राकेश अब जोरों से धक्के लगा रहा था।
ज़ूबी की टाँगें और फ़ैल गयी। उसे लगा कि उसकी चूत फटी जा रही है। उसे राकेश के लंड की लंबाई से उतनी परेशानी नहीं हो रही थी जितनी उसके लंड की मोटाई से। उसकी चूत पूरी तरह गीली होने के बावजूद वो हर धक्के पर कराह रही थी।
“ओहहह थोड़ा धीरे करो ओहहह मर गयी आआआआआआहह,”
“मेरा लंड ले लो जान, ओहहहह हाँ ऐसे ही... पूरा ले लो,” बड़बड़ाते हुए राकेश धक्के पे धक्का लगा रहा था।
शरीर की उत्तेजना ने एक बर फिर ज़ूबी की अंतरात्मा को धोखा दे दिया। उसके कुल्हे उत्तेजना मे अब आगे पीछे हो रहे थे। ज़ूबी पूरी तरह से राकेश की अँगुलियों की ताल से ताल मिला रही थी। उसके मुँह से हल्की हल्की सिस्करी निकल रही थी, “ओहहहह आआआआहहह।”
राकेश अब और तेजी से अपनी अँगुली ज़ूबी की चूत में अंदर बाहर कर रहा था, “ओहहहह हाँआँआँ ऐसे ही करो ओहहह आआआआआह” ज़ूबी सिसक रही थी।
राकेश ने ज़ूबी का हाथ पकड़ कर अपने खड़े लंड पर रख दिया। ज़ूबी उसके लंड को अपनी हथेली की गिरफ़्त मे लेकर मसलने लगी। राकेश का लंड अब तनने लगा था। ज़ूबी ने महसूस किया कि अब उसका लंड उसकी हथेली में नहीं समा रहा है तो उत्सुक्ता में वो अपनी नज़रें घुमा कर उस मोटे और विशाल लंड को देखने लगी। लंड के सुपाड़े को देखकर तो वो हैरान रह गयी। उसने इतना मोटा और मूसल लंड पहले कभी नहीं देखा था।
समय बीतता जा रहा था। राकेश ने बिस्तर के पास पड़े कॉंन्डम के पैकेट को उठाया और अपने दाँतों से फाड़ कर ज़ूबी को पकड़ा दिया।
ज़ूबी ने कॉंन्डम को पैकेट से निकाला और राकेश के लंड को पहनाने लगी।
राकेश ने ज़ूबी की चूत से अपनी अँगुली निकाली और उसे घूमा दिया। अब वो पीछे से उसकी चूत में अपना लंड घुसाने लगा। जैसे-जैसे वो अपने लंड का दबाव बढ़ाता, ज़ूबी बिस्तर को पकड़ कर और झुक जाती, साथ ही अपनी टाँगें भी और फैला देती जिससे उसका मूसल लंड आसानी से अंदर घुस सके।
राकेश ने ज़ूबी के भरे हुए चूतड़ पकड़े और उसकी चूत में लंड घुसाने लगा। थोड़ी ही देर में उसका पूरा लंड ज़ूबी की चूत में घुस चुका था। वो उसके कुल्हों को पकड़ कर धक्के मार रहा था।
“हाँ ले लो मरा लंड... ओओहहह हाँ... और थोड़ी टाँगें फैलाओ,” राकेश अब जोरों से धक्के लगा रहा था।
ज़ूबी की टाँगें और फ़ैल गयी। उसे लगा कि उसकी चूत फटी जा रही है। उसे राकेश के लंड की लंबाई से उतनी परेशानी नहीं हो रही थी जितनी उसके लंड की मोटाई से। उसकी चूत पूरी तरह गीली होने के बावजूद वो हर धक्के पर कराह रही थी।
“ओहहह थोड़ा धीरे करो ओहहह मर गयी आआआआआआहह,”
“मेरा लंड ले लो जान, ओहहहह हाँ ऐसे ही... पूरा ले लो,” बड़बड़ाते हुए राकेश धक्के पे धक्का लगा रहा था।