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Misc. Erotica मैं हसीना गज़ब की
#89
मैं किचन में जाकर रोने लगी। अभी तो एक प्यारे से रिश्ते की शुरुआत ही हुई थी और वो पत्थर दिल बस अभी छोड़ कर जा रहा है। मैं अपने होंठों पर अपने हाथ को रख कर सुबकने लगी। तभी पीछे से कोई मेरे जिस्म से लिपट गया। मैं उनको पहचानते ही घूम कर उनके सीने से लग कर फ़फ़क कर रो पड़ी। मेरे आँसुओं का बाँध टूट गया था। 

“प्लीईऽऽज़ कुछ दिन और रुक जाओ!” मैंने सुबकते हुए कहा। 
 
“नहीं! मेरा ऑफिस में पहुँचना बहुत जरूरी है वरना एक जरूरी मीटिंग कैंसल करनी पड़ेगी।”
 
“कितने ज़ालिम हो.... आपको मीटिंग की पड़ी है और मेरा क्या होगा?”
 
“क्यों जावेद है ना और हम हमेशा के लिये थोड़ी जा रहे हैं..... कुछ दिन बाद मिलते रहेंगे। ज्यादा साथ रहने से रिश्तों में बासीपन आ जाता है।” वो मुझे साँतवना देते हुए मेरे बालों को सहला रहे थे। मेरे आँसू रुक चुके थे लेकिन अभी भी उनके सीने से लग कर सुबक रही थी। मैंने आँसुओं से भरा चेहरा ऊपर किया। फिरोज़ भाई जान ने अपनी अँगुलियों से मेरी पलकों पर टिके आँसुओं को साफ़ किया और फिर मेरे गीले गालों पर अपने होंठ फ़िराते हुए मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये। मैं तड़प कर उनसे किसी बेल की तरह लिपट गयी। हमारा वजूद एक हो गया था। मैंने अपने जिस्म का सारा बोझ उनपर डाल दिया और उनके मुँह में अपनी जीभ डाल कर उनके रस को चूसने लगी। मैंने अपने हाथों से उनके लंड को टटोला।
 
“तेरी बहुत याद आयेगी!” मैंने ऐसे कहा मानो मैं उनके लंड से बातें कर रही हूँ, “तुझे नहीं आयेगी मेरी याद?”
 
“इसे भी हमेशा तेरी याद आती रहेगी”, उन्होंने मुझसे कहा।
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RE: मैं हसीना गज़ब की - by rohitkapoor - 31-05-2020, 07:25 PM



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