31-05-2020, 07:22 PM
“क्यों मोहतर्मा? रात भर कुटायी हुई क्या?” नसरीन भाभी ने मुझे छेड़ते हुए पूछा।
“भाभी जान! आप भी ना बस…” मैंने उठते हुए कहा।
“कितनी बार डाला तेरे अंदर अपना रस। रात भर में तूने तो उसकी गेंदों का सारा माल खाली कर दिया होगा।”
मैं अपने सैंडल उतार कर बाथरूम की ओर भागने लगी तो उन्होंने मेरी बाँह पकड़ कर रोक लिया, “बताया नहीं तूने?”
मैं अपना हाथ छुड़ा कर बाथरूम में भाग गयी। नसरीन भाभी दरवाजा खटखटाती रह गयीं लेकिन मैंने दरवाजा नहीं खोला। काफी देर तक मैं शॉवर के नीचे नहाती रही और अपने जिस्म पर बने अनगिनत दाँतों के दागों को सहलाती हुई रात के मिलन की एक-एक बात को याद करने लगी। फिरोज़ भाई जान की हरकतें याद करके मैं बांवरियों की तरह खुद ही मुस्कुरा रही थी। उनका मोहब्बत करना, उनकी हरकतें, उनका गठा हुआ जिस्म, उनकी बाजुओं से उठती पसीने की खुश्बू, उनकी हर चीज़ मुझे एक ऐसे नशे में दुबोती जा रही थी जो शराब के नशे से कहीं ज्यादा मादक था। मेरे जिस्म का रोयाँ-रोयाँ किसी बिन ब्याही लड़की कि तरह अपने आशिक को पुकार रहा था। शॉवर से गिरती ठंडे पानी की फ़ुहार भी मेरे जिस्म की गर्मी को ठंडा नहीं कर पा रही थी बल्कि खुद गरम भाप बन कर उड़ जा रही थी।
काफी देर तक नहाने के बाद मैं बाहर निकली। कपड़े पहन कर मैं बेड रूम से निकली तो मैंने पाया कि जेठ जेठानी दोनों निकलने की तैयारी में लगे हुए हैं। ये देख कर मेरा वजूद जो रात के मिलन के बाद से बादलों में उड़ रहा था एक दम से कठोर जमीन पर आ गिरा। मेरा चहकता हुआ चेहरा एकदम से कुम्हला गया।
मुझे देखते ही जावेद ने कहा, “शहनाज़ खाना तैयार कर लो। भाभी जान ने काफी कुछ तैयारी कर ली है.... अब फिनिशिंग टच तुम दे दो। भाई जान और भाभी जल्दी ही निकल जायेंगे।” मैं कुछ देर तक चुपचाप खड़ी रही और तीनों को सामान पैक करते देखती रही। फिरोज़ भाई जान कनखियों से मुझे देख रहे थे। मेरी आँखें भारी हो गयी थीं और मैं तुरंत वापस मुड़ कर किचन में चली गयी।
“भाभी जान! आप भी ना बस…” मैंने उठते हुए कहा।
“कितनी बार डाला तेरे अंदर अपना रस। रात भर में तूने तो उसकी गेंदों का सारा माल खाली कर दिया होगा।”
मैं अपने सैंडल उतार कर बाथरूम की ओर भागने लगी तो उन्होंने मेरी बाँह पकड़ कर रोक लिया, “बताया नहीं तूने?”
मैं अपना हाथ छुड़ा कर बाथरूम में भाग गयी। नसरीन भाभी दरवाजा खटखटाती रह गयीं लेकिन मैंने दरवाजा नहीं खोला। काफी देर तक मैं शॉवर के नीचे नहाती रही और अपने जिस्म पर बने अनगिनत दाँतों के दागों को सहलाती हुई रात के मिलन की एक-एक बात को याद करने लगी। फिरोज़ भाई जान की हरकतें याद करके मैं बांवरियों की तरह खुद ही मुस्कुरा रही थी। उनका मोहब्बत करना, उनकी हरकतें, उनका गठा हुआ जिस्म, उनकी बाजुओं से उठती पसीने की खुश्बू, उनकी हर चीज़ मुझे एक ऐसे नशे में दुबोती जा रही थी जो शराब के नशे से कहीं ज्यादा मादक था। मेरे जिस्म का रोयाँ-रोयाँ किसी बिन ब्याही लड़की कि तरह अपने आशिक को पुकार रहा था। शॉवर से गिरती ठंडे पानी की फ़ुहार भी मेरे जिस्म की गर्मी को ठंडा नहीं कर पा रही थी बल्कि खुद गरम भाप बन कर उड़ जा रही थी।
काफी देर तक नहाने के बाद मैं बाहर निकली। कपड़े पहन कर मैं बेड रूम से निकली तो मैंने पाया कि जेठ जेठानी दोनों निकलने की तैयारी में लगे हुए हैं। ये देख कर मेरा वजूद जो रात के मिलन के बाद से बादलों में उड़ रहा था एक दम से कठोर जमीन पर आ गिरा। मेरा चहकता हुआ चेहरा एकदम से कुम्हला गया।
मुझे देखते ही जावेद ने कहा, “शहनाज़ खाना तैयार कर लो। भाभी जान ने काफी कुछ तैयारी कर ली है.... अब फिनिशिंग टच तुम दे दो। भाई जान और भाभी जल्दी ही निकल जायेंगे।” मैं कुछ देर तक चुपचाप खड़ी रही और तीनों को सामान पैक करते देखती रही। फिरोज़ भाई जान कनखियों से मुझे देख रहे थे। मेरी आँखें भारी हो गयी थीं और मैं तुरंत वापस मुड़ कर किचन में चली गयी।