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Misc. Erotica मैं हसीना गज़ब की
#85
“मुझे सहारा देकर बाथरूम तक ले चलो प्लीज़”, मैंने लड़खड़ाती ज़ुबान में उनसे कहा। उन्होंने उठ कर मुझे सहारा दिया तो हाई-हील सैंडलों में मैं लड़खड़ाते कदमों से उनके कंधे पर सारा बोझ डालते हुए बाथरूम में गयी। वो मुझे अंदर छोड़ कर वहीं खड़े हो गये। 

“आप बाहर इंतज़ार कीजिये.... मैं बुला लुँगी”, मैंने कहा। 
 
“अरे कोई बात नहीं.... मैं यहीं खड़ा रहता हूँ.... अगर तुम गिर गयीं तो?”
 
“छी! इस तरह आपके सामने इस हालत में मैं कैसे पेशाब कर सकती हूँ?”
 
“तो इसमें शरमाने की क्या बात है? हम दोनों में तो सब कुछ हो गया है.... अब शरम किस बात की?” उन्होंने बाथरूम का दरवाजा भीतर से बंद करते हुए कहा।
 
मैंने शरम के मारे अपनी आँखें बंद कर लीं। मेरा चेहरा शरम से लाल हो रहा था। लेकिन मैं इस हालत में अपने पेशाब को रोकने में नाकाम थी और नशे में मुझसे खड़ा भी नहीं रहा जा रहा था। इसलिये मैं कमोड की सीट पर इसी हालत में बैठ गयी।
 
जब मैं फ्री हुई तो वो वापस मुझे सहारा देकर बिस्तर तक लाये। मैं वापस उनकी बाँहों में दुबक कर गहरी नींद में सो गयी।
 
अगले दिन सुबह मुझे नसरीन भाभी ने उठाया तो सुबह के दस बज रहे थे। मैं उस पर भी उठने के मूड में नहीं थी और “ऊँ-ऊँ” कर रही थी। अचानक मुझे रात की सारी घटना याद आयी। मैंने चौंक कर आँखें खोलीं तो मैंने देखा कि मेरा नंगा जिस्म गले तक चादर से ढका हुआ है और मेरे पैरों में अभी भी सैंडल बंधे थे। मुझ पर किसने चादर ढक दी थी, पता नहीं चल पाया। वैसे ये तो लग गया था कि ये फिरोज़ के अलावा कोई नहीं हो सकता है।
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RE: मैं हसीना गज़ब की - by rohitkapoor - 24-05-2020, 07:17 PM



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