24-05-2020, 07:15 PM
“इसे झेल नहीं पाती है.... तभी शायद इधर-उधर मुँह मारती फिरती है”, उन्होंने कहा।
“फिर तो उन्हें वो मज़ा मिल नहीं पाता होगा जो इस वक्त मुझे आ रहा है।” मैंने उनके सीने पर उगे बालों को अपनी मुठ्ठी में भर कर खींचा तो वो भी उफ़्फ़ कर उठे।
“क्या कर रही हो दर्द हो रहा है!”
मैंने हँसते हुए कहा, “कुछ दर्द तो तुम्हें भी होना चाहिये ना।”
मैं अब जोर-जोर से उनके लंड पर अपनी कमर को ऊपर नीचे करने लगी। वो मेरे दोनों मम्मों को अपने हाथ में लेकर बुरी तरह मसल रहे थे। मैं अपने दोनों घुटनों को मोड़ कर उनके लंड पर बैठी हुई थी। इस तरह पता नहीं कब तक हम दोनों की चुदाई चलती रही। हम दोनों ने आँखें बंद कर रखी थी और बस एक दूसरे के साथ चुदाई का मज़ा ले रहे थे। मैं उनके ऊपर झुक कर अपने लंबे बालों को उनके सीने पर फ़िरा रही थी। मैंने अपनी चूत के मसल्स से उनके लंड को बुरी तरह जकड़ रखा था। कुछ देर बाद मेरे जिस्म में वापस सिहरन होने लगी तो मैं समझ गयी कि मेरा निकलने वाला है। मैंने फिरोज़ भाई जान के ऊपर लेट कर अपने दाँत उनके सीने में गड़ा दिये। मेरे नाखून उनके कंधों में धंसे हुए थे और मुँह खुल गया था। मुँह से एक इत्मीनान की “आआऽऽऽहहऽऽऽऽ” निकली और मैं एक बार फिर खल्लास होकर उनके ऊपर पसर गयी। उनका अभी तक रस निकला नहीं था इसलिये अभी वो मुझे छोड़ना नहीं चाहते थे लेकिन मैं थक कर चूर हो गयी थी। इस एक रात में ना जाने कितनी बार मैंने रस की बोंछार उनके लंड पर की थी। जिस्म इतना थक चुका था कि अब हाथ पैर हिलाने में भी जोर आ रहा था लेकिन मन था कि मान ही नहीं रहा था।
“फिर तो उन्हें वो मज़ा मिल नहीं पाता होगा जो इस वक्त मुझे आ रहा है।” मैंने उनके सीने पर उगे बालों को अपनी मुठ्ठी में भर कर खींचा तो वो भी उफ़्फ़ कर उठे।
“क्या कर रही हो दर्द हो रहा है!”
मैंने हँसते हुए कहा, “कुछ दर्द तो तुम्हें भी होना चाहिये ना।”
मैं अब जोर-जोर से उनके लंड पर अपनी कमर को ऊपर नीचे करने लगी। वो मेरे दोनों मम्मों को अपने हाथ में लेकर बुरी तरह मसल रहे थे। मैं अपने दोनों घुटनों को मोड़ कर उनके लंड पर बैठी हुई थी। इस तरह पता नहीं कब तक हम दोनों की चुदाई चलती रही। हम दोनों ने आँखें बंद कर रखी थी और बस एक दूसरे के साथ चुदाई का मज़ा ले रहे थे। मैं उनके ऊपर झुक कर अपने लंबे बालों को उनके सीने पर फ़िरा रही थी। मैंने अपनी चूत के मसल्स से उनके लंड को बुरी तरह जकड़ रखा था। कुछ देर बाद मेरे जिस्म में वापस सिहरन होने लगी तो मैं समझ गयी कि मेरा निकलने वाला है। मैंने फिरोज़ भाई जान के ऊपर लेट कर अपने दाँत उनके सीने में गड़ा दिये। मेरे नाखून उनके कंधों में धंसे हुए थे और मुँह खुल गया था। मुँह से एक इत्मीनान की “आआऽऽऽहहऽऽऽऽ” निकली और मैं एक बार फिर खल्लास होकर उनके ऊपर पसर गयी। उनका अभी तक रस निकला नहीं था इसलिये अभी वो मुझे छोड़ना नहीं चाहते थे लेकिन मैं थक कर चूर हो गयी थी। इस एक रात में ना जाने कितनी बार मैंने रस की बोंछार उनके लंड पर की थी। जिस्म इतना थक चुका था कि अब हाथ पैर हिलाने में भी जोर आ रहा था लेकिन मन था कि मान ही नहीं रहा था।