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Misc. Erotica मैं हसीना गज़ब की
#47
“फिरोज़.....ऊऊऊऽऽऽहहऽऽऽ..... फिरोज़....मेरा वापस झड़ने वाला है.... तुम भी मेरा साथ दो प्लीईऽऽऽज़,” मैंने फिरोज़ भाई जान से मेरे साथ झड़ने की गुज़ारिश किया। फिरोज़ भाई जान ने मेरी पीठ पर झुक कर मेरे झूलते हुए दोनों मम्मों को अपनी मुठ्ठी में पकड़ लिया और पीछे से अपनी कमर को आगे पीछे ठेलते हुए जोर-जोर के धक्के मारने लगे। मैंने अपने सिर को झटका देकर अपने चेहरे पर बिखरी अपनी ज़ुल्फों को पीछे किया तो मेरे दोनों मम्मों को मसलते हुए जेठ जी के हाथों को देखा। उनके हाथ मेरे निप्पलों को अपनी चुटकियों में भर कर मसल रहे थे। 

“मममम... फिरोज़… फिरोज़” अब हमारे बीच कोई रिश्तों का तकल्लुफ नहीं बचा था। मैं अपने जेठ को उनके नाम से ही बुला रही थी, “फिरोज़..... मैं झड़ रही हूँ..... फिरोज़ तुम भी आ जाओ.... तुम भी अपनी धार छोड़ कर मेल कर दो।” 
 
मैंने महसूस किया कि उनका लंड भी झटके लेने लगा है। उन्होंने मेरी गर्दन के पास अपना चेहरा रख दिया। उनकी गरम-गरम साँस मेरी गर्दन पर महसूस हो रही थी। उन्होंने लगभग मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा, “शहनाज़ ..... मेरा निकल रहा है.... आज तुम्हारी कोख तुम्हारे जेठ के रस से भर जायेगी।”
 
“भर जाने दो मेरे जानम डाआऽऽऽल दो मेरे पेट में अपना बच्चा डाल दो.... मैं आपको अपनी कोख से बच्चा दूँगी।” मैंने कहा और एक साथ दोनों के जिस्म से अमृत की धारा बह निकली। उनकी अँगुलियाँ ने मेरी चूचियों को बुरी तरह निचोड़ दिया। मेरे दाँत मेरे नेकलेस पर गड़ गये और हम दोनों बिस्तर पर गिर पड़े। वो मेरे ऊपर ही पड़े हुए थे। हमारे जिस्म पसीने से लठपथ हो रहे थे।
 
"आआआऽऽऽऽहहहऽऽऽऽ फिरोज़ऽऽऽऽ. आज आपने मुझे वाकय ठंडा कर दिया आआऽऽपने मुझे वो… मज़ा…. दिया जिसके.. .लिये मैं... काफी.. दिनों से तड़प रही थी.. मममऽऽऽ।” मेरा चेहरा तकिये में धंसा हुआ था और मैं बड़बड़ाये जा रही थी। वो बहुत खुश हो गये और मेरी नंगी पीठ को चूमने लगे और बीच बीच में मेरी पीठ पर काट भी लेते। मैं बुरी तरह थक चुकी थी। वापस नशे और हेंगओवर ने मुझे घेर लिया। पता ही नहीं चला कब मैं नींद के आगोश में चली गयी।
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RE: मैं हसीना गज़ब की - by rohitkapoor - 02-05-2020, 07:56 PM



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