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Misc. Erotica मैं हसीना गज़ब की
#43
“जानु अब आ जाओ!” मैंने उनको अपने ऊपर खींचा, “मेरा जिस्म तप रहा है। नशे की खुमारी कम होने की बजाय बढ़ती जा रही है.... इससे पहले कि मैं पागल हो जाऊँ मेरे अंदर अपना बीज डाल दो।” 

फिरोज़ भाई जान ने अपने लंड को मेरे मुँह से लगाया। 
 
“एक बार मुँह में तो लो..... उसके बाद तुम्हारी चूत में डालुँगा। पहले एक बार प्यार तो करो इसे!” मैंने उनके लंड को अपनी मुठ्ठी में पकड़ा और अपनी जीभ निकाल कर उसे चूसना और चाटना शुरू कर दिया। मैं अपनी जीभ से उनके लंड को एकदम नीचे से ऊपर तक चाट रही थी और अपनी जीभ से उनके लंड के नीचे लटकते हुए अंडकोशों को भी चाट रही थी। उनका लंड मुझे बड़ा प्यारा लग रहा था। मैं उनके लंड को चाटते हुए उनके चेहरे को देख रही थी। उनका उत्तेजित चेहरा बड़ा प्यारा लग रहा था। दिल को सकून मिल रहा था कि मैं उन्हें कुछ तो आराम दे पाने में कामयाब रही थी। उन्होंने मुझे इतना प्यार दिया था कि उसका एक टुकड़ा भी मैं वापस अगर दे सकी तो मुझे अपने ऊपर फ़ख्र होगा।
 
उनके लंड से चिपचिपा सा बेरंग का प्री-कम निकल रहा था जिसे मैं बड़ी बेकरारी से चाट कर साफ़ कर देती थी। मैं काफी देर तक उनके लंड को तरह-तरह से चाटती रही। उनका लंड काफ़ी मोटा था इसलिये मुँह के अंदर ज्यादा नहीं ले पा रही थी और इसलिये जीभ से चाट-चाट कर ही उसे गीला कर दिया था। कुछ देर बाद उनका लंड झटके खाने लगा। उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रख कर मुझे रुकने का इशारा किया।
 
“बस..... बस..... और नहीं! नहीं तो अंदर जाने से पहले ही निकल जायेगा,” कहते हुए उन्होंने मेरे हाथों से अपने लंड को छुड़ा लिया और मेरी टाँगों को फैला कर उनके बीच घुटने मोड़ कर झुक गये। उन्होंने अपने लंड को मेरी चूत से सटाया।
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RE: मैं हसीना गज़ब की - by rohitkapoor - 02-05-2020, 07:52 PM



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