24-04-2020, 08:25 PM
भाग २
आखिर मैं ताहिर अज़ीज़ खान जी के परिवार का एक हिस्सा बनने जा रही थी। जावेद मुझे बहुत चाहता था। निकाह से पहले हम हर शाम साथ-साथ घूमते फिरते और काफी बातें करते थे। जावेद ने मुझसे मेरे बॉय फ्रेंड्स के बारे में पूछा। और उनसे मिलने से पहले की मेरी सेक्ज़ुअल लाईफ के बारे में पूछा। जब मैंने कहा कि अभी तक कुँवारी हूँ तो हंसने लगे और कहा, “क्या यार, तुम्हारी ज़िंदगी तो बहुत बोरिंग है। यहाँ ये सब नहीं चलेगा। एक दो भंवरों को तो रखना ही चाहिये। तभी तो तुम्हारी मार्केट वेल्यू का पता चलता है।” मैं उनकी बातों से हँस पड़ी।
निकाह से पहले ही मैं जावेद के साथ हमबिस्तर हो गयी। हम दोनों ने निकाह से पहले खूब सैक्स किया। जावेद के साथ मैं शराब भी पीने लगी और लगभग रोज ही किसी होटल में जाकर सैक्स इंजॉय करते थे। एक बार मेरे पेरेंट्स ने निकाह से पहले रात-रात भर बाहर रहने पर ऐतराज़ जताया था। लेकिन जताया भी तो किससे; मेरे होने वाले ससुर जी से जो खुद इतने रंगीन मिजाज़ थे। उन्होंने उनकी चिंताओं को भाप बना कर उड़ा दिया। ताहिर अज़ीज़ खान जी ने मुझे फ्री छोड़ रखा था लेकिन मैंने कभी अपने काम से मन नहीं चुराया। अब मैं वापस सलवार कमीज़ में ऑफिस जाने लगी।
जावेद और उनकी फैमिली काफी खुले विचारों की थी। जावेद मुझे एक्सपोज़र के लिये जोर देते थे। वो मेरे जिस्म पर रिवीलिंग कपड़े पसंद करते थे। मेरा पूरा वार्डरोब उन्होंने चेंज करवा दिया था। उन्हें मिनी स्कर्ट और लूज़ टॉप मुझ पर पसंद थे। सिर्फ मेरे कपड़े ही नहीं बल्कि मेरे अंडरगार्मेंट्स और जूते-सैंडल तक उन्होंने अपनी पसंद के खरीदवाये। अधिकतर आदमियों की तरह उन्हें भी हाई-हील सैंडलों के लिये कामाकर्षण था।
वो मुझे माइक्रो स्कर्ट और लूज़ स्लीवलेस टॉप पहना कर डिस्को में ले जाते, जहाँ हम खूब फ्री होकर नाचते, शराब पीते और मस्ती करते थे। अक्सर लोफर लड़के मेरे जिस्म से अपना जिस्म रगड़ने लगते। कईं बार मेरे बूब्स मसल देते। वो तो बस मौके की तलाश में रहते थे कि कोई मुझ जैसी सैक्सी हसीना मिल जाये तो हाथ सेंक लें। मैं कईं बार नाराज़ हो जाती लेकिन जावेद मुझे चुप करा देते। कईं बार कुछ मनचले मेरे साथ डाँस करना चाहते तो जावेद खुशी-खुशी मुझे आगे कर देते। मुझ संग तो डाँस का बहाना होता। लड़के मेरे जिस्म से जोंक की तरह चिपक जाते। मेरे पूरे जिस्म को मसलने लगते। बूब्स का तो सबसे बुरा हाल कर देते। मैं अगर नाराज़गी ज़ाहिर करती तो जावेद अपनी टेबल से आँख मार कर मुझे शांत कर देते। शुरू-शुरू में तो इस तरह के खुलेपन में मैं घबरा जाती थी। मुझे बहुत बुरा लगता था लेकिन धीरे-धीरे मुझे इन सब में मज़ा आने लगा और मैं हल्के-फुल्के नशे में खुल कर इस सब में भाग लेने लगी। मैं जावेद को उत्तेजित करने के लिये कभी-कभी दूसरे किसी मर्द को सिड्यूस करने लगती। उस शाम तो जावेद में कुछ ज्यादा ही जोश आ जाता।