24-04-2020, 02:59 AM
मैंने ऑफिस का काम इतनी काबिलियत से संभाल लिया था कि अब ताहिर अज़ीज़ खान जी ने काम की काफी जिम्मेदारियाँ मुझे सौंप दी थी। मेरे बिना वो बहुत बेबस फ़ील करते थे। इसलिये मैं कभी छुट्टी नहीं लेती थी।
धीरे-धीरे हम काफी ओपन हो गये। फ्री टाईम में मैं उनके केबिन में जाकर उनसे बातें करती रहती। उनकी नज़र बातें करते हुए कभी मेरे चेहरे से फ़िसल कर नीचे जाती तो मेरे निप्पल बुलेट की तरह तन कर खड़े हो जाते। मैं अपने उभारों को थोड़ा और तान लेती थी।
उनमें गुरूर बिल्कुल भी नहीं था। मैं रोज घर से उनके लिये कुछ ना कुछ नाश्ते में बनाकर लाती थी और हम दोनों साथ बैठ कर नाश्ता करते थे। मैं यहाँ भी कुछ महीने बाद स्कर्ट ब्लाऊज़ में आने लगी और हाई-हील के सैंडल तो पहले से ही पहनने लगी थी। जिस दिन पहली बार स्कर्ट ब्लाऊज़ में आयी, मैंने उनकी आँखों में मेरे लिये एक तारीफ भरी चमक देखी।
मैंने बात को आगे बढ़ाने की सोच ली। कईं बार काम का बोझ ज्यादा होता तो मैं उन्हें बातों बातों में कहती, “सर अगर आप कहें तो फाईलें आपके घर ले आती हूँ, छुट्टी के दिन या ऑफिस टाईम के बाद रुक जाती हूँ।” मगर उनका जवाब दूसरों से बिल्कुल उलटा रहता।
वो कहते, “शहनाज़! मैं अपनी टेंशन घर ले जाना पसंद नहीं करता और चाहता हूँ कि तुम भी छुट्टी के बाद अपनी लाईफ इंजॉय करो। अपने घर वालों के साथ या अपने बॉयफ्रेंड्स के साथ शाम इंजॉय करो। क्यों कोई है क्या?” उन्होंने मुझे छेड़ा।
“आप जैसा हेंडसम और शरीफ़ लड़का जिस दिन मुझे मिल जायेगा, उसे अपना बॉय फ्रेंड बना लुँगी। आप तो कभी मेरे साथ घूमने जाते नहीं हैं।” उन्होंने तुरंत बात का टॉपिक बदल दिया।
अब मैं अक्सर उन्हें छूने लगी। एक बार उन्होंने सिर दर्द की शिकायत की और मुझे कोई टेबलेट ले कर आने को कहा।
“सर, मैं सिर दबा देती हूँ। दवाई मत लीजिये,” कहकर मैं उनकी चेयर के पीछे आयी और उनके सिर को अपने हाथों में लेकर दबाने लगी। मेरी अँगुलियाँ उनके बालों में घूम रही थीं। मैं अपनी अँगुलियों से उनके सिर को दबाने लगी। कुछ ही देर में आराम मिला तो उनकी आँखें अपने आप मूँदने लगीं। मैंने उनके सिर को अपने जिस्म से सटा दिया। अपने दोनों उरोजों के बीच उनके सिर को दाब कर मैं उनके सिर को दबाने लगी। मेरे दोनों उरोज उनके सिर के भार से दब रहे थे। उन्होंने भी शायद इसे महसूस किया होगा मगर कुछ कहा नहीं। मेरे दोनों उरोज सख्त हो गये और निप्पल तन गये। मेरे गाल शरम से लाल हो गये थे।
“बस अब काफी आराम है,” कह कर जब उन्होंने अपना सिर मेरी छातियों से उठाया तो मुझे इतना बुरा लगा कि कुछ बयान नहीं कर सकती। मैं अपनी नज़रें जमीन पर गड़ाये उनके सामने कुर्सी पर आ बैठ गयी।
धीरे धीरे हम बेतकल्लुफ़ होने लगे। अभी छः महीने ही हुए थे कि एक दिन मुझे अपने केबिन में बुला कर उन्होंने एक लिफाफा दिया। उसमें से लेटर निकाल कर मैंने पढ़ा तो खुशी से भर उठी। मुझे पर्मानेंट कर दिया गया था और मेरी तनख्वाह डबल कर दी गयी थी।
मैंने उनको थैंक्स कहा तो वो बोल उठे, “सूखे सूखे थैंक्स से काम नहीं चलेगा बेबी, इसके लिये तो मुझे तुमसे कोई ट्रीट मिलनी चाहिये।”
"जरूर सर! अभी देती हूँ!" मैंने कहा।
“क्या?” वो चौंक गये। मैं मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहती थी। मैं झट से उनकी गोद में बैठ गयी और उन्हें अपनी बाँहों में भरते हुए उनके लिप्स चूम लिये। वो इस अचानक हुए हमले से घबरा गये।
“शहनाज़ क्या कर रही हो? कंट्रोल योर सेल्फ। इस तरह जज़्बातों में मत बहो,” उन्होंने मुझे उठाते हुए कहा, “ये ठीक नहीं है। मैं एक शादीशुदा बाल बच्चेदार बूढ़ा आदमी हूँ।”
“क्या करूँ सर आप हो ही इतने हेंडसम कि कंट्रोल नहीं हो पाया,” और वहाँ से शरमा कर भाग गयी।
जब इतना होने के बाद भी उन्होंने कुछ नहीं कहा तो मैं उनसे और खुलने लगी।
“ताहिर जी! एक दिन मुझे घर ले चलो ना अपने,” एक दिन मैंने उन्हें बातों बातों में कहा। अब हमारा रिश्ता बॉस और पी-ए का कम और दोस्तों जैसा ज्यादा हो गया था।
“क्यों घर में आग लगाना चाहती हो?” उन्होंने मुस्कुराते हुए पूछा।
“कैसे?”
“अब तुम जैसी हसीन पी-ए को देख कर कौन भला मुझ पर शक नहीं करेगा।”
“चलो एक बात तो आपने मान ही ली आखिर।”
“क्या?” उन्होंने पूछा।
“यही कि मैं हसीन हूँ और आप मेरे हुस्न से डरते हैं।”
“वो तो है ही।“
“मैं आपकी वाईफ से और आपके बच्चों से एक बार मिलना चाहती हूँ।”
“क्यों? क्या इरादा है?”
“हम्म्म कुछ खतरनाक भी हो सकता है।” मैं अपने निचले होंठ को दाँत से काटते हुए उठ कर उनकी गोद में बैठ गयी। मैं जब भी बोल्ड हो जाती थी तो वो घबरा उठाते थे। मुझे उन्हें इस तरह सताने में बड़ा मज़ा आता था।
धीरे-धीरे हम काफी ओपन हो गये। फ्री टाईम में मैं उनके केबिन में जाकर उनसे बातें करती रहती। उनकी नज़र बातें करते हुए कभी मेरे चेहरे से फ़िसल कर नीचे जाती तो मेरे निप्पल बुलेट की तरह तन कर खड़े हो जाते। मैं अपने उभारों को थोड़ा और तान लेती थी।
उनमें गुरूर बिल्कुल भी नहीं था। मैं रोज घर से उनके लिये कुछ ना कुछ नाश्ते में बनाकर लाती थी और हम दोनों साथ बैठ कर नाश्ता करते थे। मैं यहाँ भी कुछ महीने बाद स्कर्ट ब्लाऊज़ में आने लगी और हाई-हील के सैंडल तो पहले से ही पहनने लगी थी। जिस दिन पहली बार स्कर्ट ब्लाऊज़ में आयी, मैंने उनकी आँखों में मेरे लिये एक तारीफ भरी चमक देखी।
मैंने बात को आगे बढ़ाने की सोच ली। कईं बार काम का बोझ ज्यादा होता तो मैं उन्हें बातों बातों में कहती, “सर अगर आप कहें तो फाईलें आपके घर ले आती हूँ, छुट्टी के दिन या ऑफिस टाईम के बाद रुक जाती हूँ।” मगर उनका जवाब दूसरों से बिल्कुल उलटा रहता।
वो कहते, “शहनाज़! मैं अपनी टेंशन घर ले जाना पसंद नहीं करता और चाहता हूँ कि तुम भी छुट्टी के बाद अपनी लाईफ इंजॉय करो। अपने घर वालों के साथ या अपने बॉयफ्रेंड्स के साथ शाम इंजॉय करो। क्यों कोई है क्या?” उन्होंने मुझे छेड़ा।
“आप जैसा हेंडसम और शरीफ़ लड़का जिस दिन मुझे मिल जायेगा, उसे अपना बॉय फ्रेंड बना लुँगी। आप तो कभी मेरे साथ घूमने जाते नहीं हैं।” उन्होंने तुरंत बात का टॉपिक बदल दिया।
अब मैं अक्सर उन्हें छूने लगी। एक बार उन्होंने सिर दर्द की शिकायत की और मुझे कोई टेबलेट ले कर आने को कहा।
“सर, मैं सिर दबा देती हूँ। दवाई मत लीजिये,” कहकर मैं उनकी चेयर के पीछे आयी और उनके सिर को अपने हाथों में लेकर दबाने लगी। मेरी अँगुलियाँ उनके बालों में घूम रही थीं। मैं अपनी अँगुलियों से उनके सिर को दबाने लगी। कुछ ही देर में आराम मिला तो उनकी आँखें अपने आप मूँदने लगीं। मैंने उनके सिर को अपने जिस्म से सटा दिया। अपने दोनों उरोजों के बीच उनके सिर को दाब कर मैं उनके सिर को दबाने लगी। मेरे दोनों उरोज उनके सिर के भार से दब रहे थे। उन्होंने भी शायद इसे महसूस किया होगा मगर कुछ कहा नहीं। मेरे दोनों उरोज सख्त हो गये और निप्पल तन गये। मेरे गाल शरम से लाल हो गये थे।
“बस अब काफी आराम है,” कह कर जब उन्होंने अपना सिर मेरी छातियों से उठाया तो मुझे इतना बुरा लगा कि कुछ बयान नहीं कर सकती। मैं अपनी नज़रें जमीन पर गड़ाये उनके सामने कुर्सी पर आ बैठ गयी।
धीरे धीरे हम बेतकल्लुफ़ होने लगे। अभी छः महीने ही हुए थे कि एक दिन मुझे अपने केबिन में बुला कर उन्होंने एक लिफाफा दिया। उसमें से लेटर निकाल कर मैंने पढ़ा तो खुशी से भर उठी। मुझे पर्मानेंट कर दिया गया था और मेरी तनख्वाह डबल कर दी गयी थी।
मैंने उनको थैंक्स कहा तो वो बोल उठे, “सूखे सूखे थैंक्स से काम नहीं चलेगा बेबी, इसके लिये तो मुझे तुमसे कोई ट्रीट मिलनी चाहिये।”
"जरूर सर! अभी देती हूँ!" मैंने कहा।
“क्या?” वो चौंक गये। मैं मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहती थी। मैं झट से उनकी गोद में बैठ गयी और उन्हें अपनी बाँहों में भरते हुए उनके लिप्स चूम लिये। वो इस अचानक हुए हमले से घबरा गये।
“शहनाज़ क्या कर रही हो? कंट्रोल योर सेल्फ। इस तरह जज़्बातों में मत बहो,” उन्होंने मुझे उठाते हुए कहा, “ये ठीक नहीं है। मैं एक शादीशुदा बाल बच्चेदार बूढ़ा आदमी हूँ।”
“क्या करूँ सर आप हो ही इतने हेंडसम कि कंट्रोल नहीं हो पाया,” और वहाँ से शरमा कर भाग गयी।
जब इतना होने के बाद भी उन्होंने कुछ नहीं कहा तो मैं उनसे और खुलने लगी।
“ताहिर जी! एक दिन मुझे घर ले चलो ना अपने,” एक दिन मैंने उन्हें बातों बातों में कहा। अब हमारा रिश्ता बॉस और पी-ए का कम और दोस्तों जैसा ज्यादा हो गया था।
“क्यों घर में आग लगाना चाहती हो?” उन्होंने मुस्कुराते हुए पूछा।
“कैसे?”
“अब तुम जैसी हसीन पी-ए को देख कर कौन भला मुझ पर शक नहीं करेगा।”
“चलो एक बात तो आपने मान ही ली आखिर।”
“क्या?” उन्होंने पूछा।
“यही कि मैं हसीन हूँ और आप मेरे हुस्न से डरते हैं।”
“वो तो है ही।“
“मैं आपकी वाईफ से और आपके बच्चों से एक बार मिलना चाहती हूँ।”
“क्यों? क्या इरादा है?”
“हम्म्म कुछ खतरनाक भी हो सकता है।” मैं अपने निचले होंठ को दाँत से काटते हुए उठ कर उनकी गोद में बैठ गयी। मैं जब भी बोल्ड हो जाती थी तो वो घबरा उठाते थे। मुझे उन्हें इस तरह सताने में बड़ा मज़ा आता था।