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Misc. Erotica मैं हसीना गज़ब की
#2
"यहाँ तुम्हें स्कर्ट और ब्लाऊज़ पहनना होगा। ये यहाँ के पी-ए का ड्रेस कोड है।" उसने मुझे दूसरे दिन ही कहा। मैंने उसे कोई जवाब नहीं दिया। उसने शाम तक एक टेलर को वहीं ऑफिस में बुला कर मेरे ड्रेस का ऑर्डर दे दिया। ब्लाऊज़ का गला काफी गहरा रखवाया और स्कर्ट बस इतनी लंबी कि मेरी आधी जाँघ ही ढक पाये। उसने शाम को मुझे चार हज़ार रुपये दिये और कुछ जोड़ी ऊँची हील के सैंडल खरीदने को कहा।

दो दिन में तीन-चार जोड़ी ड्रेस तैयार हो कर आ गये। मुझे शुरू में कुछ दिन तक तो उस ड्रेस को पहन कर लोगों के सामने आने में बहुत शरम आती थी। मगर धीरे-धीरे मुझे लोगों की नजरों को सहने की हिम्मत जुटानी पड़ी। ड्रेस तो इतनी छोटी थी कि अगर मैं किसी कारण झुकती तो सामने वाले को मेरे ब्रा में कैद बूब्स और पीछे वाले को अपनी पैंटी के जलवे करवाती।

मैं घर से सलवार कमीज़ में आती और ऑफिस आकर अपना ड्रेस चेंज करके ऑफिशल स्कर्ट ब्लाऊज़ और ऊँची हील के सैंडल पहन लेती। घर के लोग या मोहल्ले वाले अगर मुझे उस ड्रेस में देख लेते तो मेरा उसी पल घर से निकलना ही बंद कर दिया जाता। लेकिन मेरे पेरेंट्स पुराने खयालों के भी नहीं थे। उन्होंने कभी मुझसे मेरी पर्सनल लाईफ के बारे में कुछ भी पूछताछ नहीं की थी।

एक दिन खुशी राम ने अपने केबिन में मुझे बुला कर इधर उधर की काफी बातें की और धीरे से मुझे अपनी ओर खींचा। मैं हाई हील सैंडल के कारण कुछ डिसबैलेंस हुई तो उसने मुझे अपने सीने से लगा लिया। उसने मेरे होंठों को अपने होंठों से छू लिया। उसके मुँह से अजीब तरह की बदबू आ रही थी। मैं एक दम घबरा गयी। समझ में ही नहीं आया कि ऐसे हालात का सामना किस तरह से करूँ। उसके हाथ मेरी दोनों चूचियों को ब्लाऊज़ के ऊपर से मसलने के बाद स्कर्ट के नीचे पैंटी के ऊपर फिरने लगे। मैं उससे अलग होने के लिये कसमसा रही थी। मगर उसने मुझे अपनी बाँहों में बुरी तरह से जकड़ रखा था। उसका एक हाथ एक झटके से मेरी पैंटी के अंदर घुस कर मेरी टाँगों के जोड़ तक पहुँच गया। मैंने अपनी दोनों टाँगों को सख्ती से एक दूसरे के साथ भींच दिया लेकिन तब तक तो उसकी अँगुलियाँ मेरी चूत के द्वार तक पहुँच चुकी थी। दोनों अँगुलियाँ मेरी चूत में घुसने के लिये कसमसा रही थी।

मैंने पूरी ताकत लगा कर एक धक्का देकर उससे अपने को अलग किया और वहाँ से भागते हुए निकल गयी। जाते जाते उसके शब्द मेरे कानों पर पड़े, "तुम्हें इस कंपनी में काम करने के लिये मेरी हर इच्छा का ध्यान रखना पड़ेगा।"

मैं अपनी डेस्क पर लगभग दौड़ते हुए पहुँची। मेरी सांसें तेज़-तेज़ चल रही थी। मैंने एक ग्लास ठंडा पानी पीया। बेबसी से मेरी आँखों में आँसू आ गये। नम आँखों से मैंने अपना रेसिजनेशन लेटर टाईप किया और उसे वहीं पटक कर ऑफिस से बाहर निकल गयी। फिर दोबारा कभी उस रास्ते कि ओर मैंने पाँव नहीं रखे।

फिर से मैंने कईं जगह एपलायी किया। आखिर एक जगह से इंटरव्यू काल आया। सेलेक्ट होने के बाद मुझे सी-ई-ओ से मिलने के लिये ले जाया गया। मुझे उन्ही के पी-ए की पोस्ट पर अपायंटमेंट मिली थी। मैं एक बार चोट खा चुकी थी इसलिये दिल बड़ी तेजी से धड़क रहा था। मैंने सोच रखा था कि अगर मैं कहीं जॉब करुँगी तो अपनी इच्छा से, किसी मजबूरी या किसी की रखैल बन कर नहीं। मैंने सकुचाते हुए उनके कमरे में नॉक किया और अंदर गयी।

"यू आर वेलकम टू दिस फैमिली" सामने से आवाज आयी। मैंने देखा सामने एक ५७ साल का बहुत ही खूबसूरत आदमी खड़ा था। मैं सी-ई-ओ मिस्टर ताहिर अज़ीज़ खान को देखती ही रह गयी। वो उठे और मेरे पास आकर हाथ बढ़ाया लेकिन मैं बुत की तरह खड़ी रही। ये तहज़ीब के खिलाफ था। मैं अपने बॉस का इस तरह से अपमान कर रही थी। लेकिन उन्होंने बिना कुछ कहे मुस्कुराते हुए मेरी हथेली को थाम लिया। मैं होश में आयी। मैंने तपाक से उनसे हाथ मिलाया। वो मेरे हाथ को पकड़े हुए मुझे अपने सामने की चेयर तक ले गये और चेयर को खींच कर मुझे बैठने के लिये कहा। जब तक वो घूम कर अपनी सीट पर पहुँचे, मैं तो उनकी शराफत पर मर मिटी। इतना बड़ा आदमी और इतनी नेक शख्सियत। मैं तो किसी ऐसे ही एंपलायर के पास काम करने का सपना इतने दिनों से संजोय थी।

खैर अगले दिन से मैं अपने काम में जुट गयी। धीरे धीरे उनकी अच्छाइयों से रूबरू होती गयी। सारे ऑफिस के स्टाफ मेंबर उन्हें दिल से चाहते थे। मैं भला उनसे अलग कैसे रहती। मैंने इस कंपनी में अपने बॉस के बारे में उनसे मिलने के पहले जो राय बनायी थी उसका उलटा ही हुआ। यहाँ पर तो मैं खुद अपने बॉस पर मार मिटी, उनके एक-एक काम को पूरे मन से पूरा करना अपना इमान मान लिया। मगर बॉस था कि घास ही नहीं डालता था। यहाँ मैं सलवार कमीज़ पहन कर ही आने लगी। मैंने अपने कमीज़ के गले बड़े करवा लिये जिससे उन्हें मेरे दूधिया रंग के बूब्स दिखें। अब मैं काफी ऊँची हील के सैंडल पहनने लगी ताकि मेरी चाल में और नज़ाकत आ जाये और मेरा फिगर और भी उभर सके। बाकी सारे ऑफिस वालों के सामने तो अपने जिस्म को चुनरी से ढके रखती थी। मगर उनके सामने जाने से पहले अपनी छातियों पर से चुनरी हटा कर उसे जान बूझ कर टेबल पर छोड़ जाती थी। मैं जान बूझ कर उनके सामने झुक कर काम करती थी जिससे मेरी ब्रा में कसे हुए बूब्स उनकी आँखों के सामने झूलते रहें। धीरे-धीरे मैंने महसूस किया कि उनकी नजरों में भी बदलाव आने लगा है। आखिर वो कोई साधू महात्मा तो थे नहीं और मैं थी भी इतनी सुंदर कि मुझसे दूर रहना एक नामुमकिन काम था। मैं अक्सर उन्हें सताने की कोशिश करने लगी। कभी-कभी मौका देख कर अपने बूब्स उनके जिस्म से छुआ देती। 
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RE: मैं हसीना गज़ब की - by rohitkapoor - 24-04-2020, 02:54 AM



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