24-04-2020, 02:53 AM
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मैं हसीना गज़ब की
शहनाज़ खान
भाग १
मैं शहनाज़ हूँ। २६ साल की एक शादीशुदा औरत। गोरा रंग और खूबसूरत नाक नक्श। कोई भी एक बार मुझे देख लेता तो बस मुझे पाने के लिये तड़प उठता था। मेरा फिगर, ३६-२८-३८, बहुत सैक्सी है। मेरा निकाह जावेद से ६ साल पहले हुआ था। जावेद एक बिज़नेसमैन है और जावेद निहायत ही हेंडसम और काफी अच्छी फितरत वाला आदमी है। वो मुझे बहुत ही मोहब्बत करता है। मगर मेरी किसमत में सिर्फ एक आदमी का मोहब्बत नहीं लिखी हुई थी। मैं आज एक बच्चे की माँ बनने वाली हूँ मगर जावेद उसका बाप है कि नहीं, मुझे नहीं मालूम। खून तो शायद उन्ही की फैमिली का है मगर उनके वीर्य से पैदा हुआ या नहीं, इसमें शक है। आपको ज्यादा बोर नहीं करते हुए मैं आपको पूरी कहानी सुनाती हूँ। कैसे एक सीधी साधी लड़की जो अपनी पढ़ाई खत्म करके किसी कंपनी में सेक्रेटरी के पद पर काम करने लगी थी, एक सैक्स मशीन में तबदील हो गयी। निकाह से पहले मैंने किसी से जिस्मानी ताल्लुकात नहीं रखे थे। मैंने अपने सैक्सी जिस्म को बड़ी मुश्किल से मर्दों की भूखी निगाहों से बचाकर रखा था। एक अकेली लड़की का और वो भी इस पद पर अपना कौमार्य सुरक्षित रख पाना अपने आप में बड़ी ही मुश्किल का काम था। लेकिन मैंने इसे मुमकीन कर दिखाया था। मैंने अपना कौमार्य अपने शौहर को ही सौंपा था। लेकिन एक बार मेरी चूत का बंद दरवाज़ा शौहर के लंड से खुल जाने के बाद तो पता नहीं कितने ही लंड धड़ाधड़ घुसते चले गये। मैं कईं मर्दों के साथ चुदाई का मज़ा ले चुकी हूँ। कईं लोगों ने तरह-तरह से मुझसे चोदा।
मैं एक खूबसूरत लड़की थी जो एक मीडियम क्लास फैमिली को बिलाँग करती थी। पढ़ाई खत्म होने के बाद मैंने शॉर्ट हैंड और ऑफिस सेक्रेटरी का कोर्स किया। कोर्स खत्म होने पर मैंने कईं जगह एपलायी किया। एक कंपनी सुदर्शन इंडस्ट्रीज़ से पी-ए के लिये काल आया। इंटरव्यू में सेलेक्शन हो गया। मुझे उस कंपनी के मालिक मिस्टर खुशी राम के पी-ए की पोस्ट के लिये सेलेक्ट किया गया। मैं बहुत खुश हुई। घर की हालत थोड़ी नाज़ुक थी। मेरी तनख्वाह गृहस्थी में काफी मदद करने लगी।
मैं काम मन लगा कर करने लगी मगर खुशी राम जी कि नियत अच्छी नहीं थी। खुशीराम जी देखने में किसी भैंसे की तरह मोटे और काले थे। उनके पूरे चेहरे पर चेचक के निशान उनकी शख्सियत को और बुरा बनाते थे। जब वो बोलते तो उनके होंठों के दोनों किनारों से लार निकलती थी। मुझे उसकी शक्ल से ही नफरत थी। मगर क्या करती, मजबूरी में उसे झेलना पड़ रहा था।
मैं ऑफिस में सलवार कमीज़ पहन कर जाने लगी जो उसे नागवार गुजरने लगा। लंबी आस्तीनों वाली ढीली ढाली कमीज़ से उसे मेरे जिस्म की झलक नहीं मिलती थी ना ही मेरे जिस्म के तीखे कटाव ढंग से उभरते।