24-04-2020, 02:29 AM
(This post was last modified: 24-04-2020, 02:34 AM by rohitkapoor. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
तरक्की का सफ़र
लेखक: राज अग्रवाल
लेखक: राज अग्रवाल
(भाग-१)
मैंने बिस्तर पर करवट बदल कर खिड़की के बाहर झाँका तो देखा सूरज देवता उग चुके थे। मैं उठ कर बैठा और एक सिगरेट जला ली। रात भर की चुदाई से सिर एक दम भारी हो रहा था। एक कप स्ट्राँग कॉफी पीने की जबरदस्त इच्छा हो रही थी पर खुद बनाने की हिम्मत नहीं थी। ‘राज ऑफिस चल, कोई लड़की बना के पिला देगी’ मैंने खुद से कहा। घड़ी में देखा सुबह के सात बजे थे। काफी जल्दी थी, पर शायद कोई मेरी तरह जल्दी आ गया होगा।
मैं तैयार होकर ऑफिस पहुँचा। कंप्यूटर चालू करके मैं रिपोट्र्स पढ़ रहा था। मैं सोचने लगा कि इन सात सालों में क्या से क्या हो गया। जब मैं पहली बार यहाँ इंटरव्यू के लिये आया था........
मेरा घर यहाँ से हज़ारों मील दूर नॉर्थ इंडिया में था। मेरे पिताजी श्री राजवीर चौधरी एक सादे से किसान थे। मेरी माताजी एक घरेलू औरत थी। मेरे पिताजी बहुत सख्त थे। मेरे दो बड़े भाई अजय २७, शशी २६, और मेरी दो छोटी बहनें अंजू २३, और मंजू २१, और मैं राज २४ इन चारों में तीसरे नंबर पर था। हम सब साथ-साथ ही रहते थे।
मैं पढ़ाई में कुछ ज्यादा अच्छा नहीं था पर हाँ मैं कंप्यूटर्स में एक्सपर्ट था। साथ ही मेरी मेमरी बहुत शार्प थी। इसलिये मैंने कंप्यूटर्स और फायनेन्स की परीक्षा दी और अच्छे मार्क्स से पास हो गया।
मैंने अपनी नौकरी की एपलीकेशन मुंबई की एक इंटरनेशनल कंपनी में की थी और मुझे ईंटरव्यू के लिये बुलाया था।
दो दिन का सफ़र तय करके मैं मुंबई के मुंबई सेंट्रल स्टेशन पर उतरा। एक नये शहर में आकर अजीब सी खुशी लग रही थी। स्टेशन के पास ही एक सस्ते होटल में मुझे एक कमरा किराये पर मिल गया।
२७ की सुबह मैं अपने इकलौते सूट में मिस्टर महेश, जनरल मैनेजर (अकाऊँट्स और फायनेन्स) के सामने पेश हुआ। मिस्टर महेश, ४८ साल के इन्सान है, ५ फीट ११ की हाइट और बदन भी मजबूत था। उन्होंने मुझे ऊपर से नीचे तक परखने के बाद कहा, “अच्छा हुआ राज तुम टाईम पर आ गये। तुम्हें यहाँ काम करके मज़ा आयेगा। और मन लगा कर करोगे तो तरक्की के चाँस भी ज्यादा है। देखता हूँ एम-डी फ़्री हो तो तुम्हें उनसे मिलवा देता हूँ, नहीं तो दूसरे काम में मसरूफ हो जायेंगे।”
मिस्टर महेश ने फोन नंबर मिलाया, “सर! मैं महेश, अपने नये एकाऊँटेंट मिस्टर राज आ गये हैं, हाँ वही, क्या आप मिलना पसंद करेंगे?” मिस्टर महेश ने आगे कहा, “हाँ सर! हम आ रहे हैं।... चलो राज एम-डी से मिल लेते हैं।“
मिस्टर महेश के केबिन से निकल कर हम एम-डी के केबिन में आ गये। एम-डी का केबिन मेरे होटल के रूम से चार गुना बड़ा था। मिस्टर रजनीश जो कंपनी के एम-डी थे और कंपनी में एम-डी के नाम से पुकारे जाते थे, अपनी कुर्सी पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे।
मैं तैयार होकर ऑफिस पहुँचा। कंप्यूटर चालू करके मैं रिपोट्र्स पढ़ रहा था। मैं सोचने लगा कि इन सात सालों में क्या से क्या हो गया। जब मैं पहली बार यहाँ इंटरव्यू के लिये आया था........
मेरा घर यहाँ से हज़ारों मील दूर नॉर्थ इंडिया में था। मेरे पिताजी श्री राजवीर चौधरी एक सादे से किसान थे। मेरी माताजी एक घरेलू औरत थी। मेरे पिताजी बहुत सख्त थे। मेरे दो बड़े भाई अजय २७, शशी २६, और मेरी दो छोटी बहनें अंजू २३, और मंजू २१, और मैं राज २४ इन चारों में तीसरे नंबर पर था। हम सब साथ-साथ ही रहते थे।
मैं पढ़ाई में कुछ ज्यादा अच्छा नहीं था पर हाँ मैं कंप्यूटर्स में एक्सपर्ट था। साथ ही मेरी मेमरी बहुत शार्प थी। इसलिये मैंने कंप्यूटर्स और फायनेन्स की परीक्षा दी और अच्छे मार्क्स से पास हो गया।
मैंने अपनी नौकरी की एपलीकेशन मुंबई की एक इंटरनेशनल कंपनी में की थी और मुझे ईंटरव्यू के लिये बुलाया था।
दो दिन का सफ़र तय करके मैं मुंबई के मुंबई सेंट्रल स्टेशन पर उतरा। एक नये शहर में आकर अजीब सी खुशी लग रही थी। स्टेशन के पास ही एक सस्ते होटल में मुझे एक कमरा किराये पर मिल गया।
२७ की सुबह मैं अपने इकलौते सूट में मिस्टर महेश, जनरल मैनेजर (अकाऊँट्स और फायनेन्स) के सामने पेश हुआ। मिस्टर महेश, ४८ साल के इन्सान है, ५ फीट ११ की हाइट और बदन भी मजबूत था। उन्होंने मुझे ऊपर से नीचे तक परखने के बाद कहा, “अच्छा हुआ राज तुम टाईम पर आ गये। तुम्हें यहाँ काम करके मज़ा आयेगा। और मन लगा कर करोगे तो तरक्की के चाँस भी ज्यादा है। देखता हूँ एम-डी फ़्री हो तो तुम्हें उनसे मिलवा देता हूँ, नहीं तो दूसरे काम में मसरूफ हो जायेंगे।”
मिस्टर महेश ने फोन नंबर मिलाया, “सर! मैं महेश, अपने नये एकाऊँटेंट मिस्टर राज आ गये हैं, हाँ वही, क्या आप मिलना पसंद करेंगे?” मिस्टर महेश ने आगे कहा, “हाँ सर! हम आ रहे हैं।... चलो राज एम-डी से मिल लेते हैं।“
मिस्टर महेश के केबिन से निकल कर हम एम-डी के केबिन में आ गये। एम-डी का केबिन मेरे होटल के रूम से चार गुना बड़ा था। मिस्टर रजनीश जो कंपनी के एम-डी थे और कंपनी में एम-डी के नाम से पुकारे जाते थे, अपनी कुर्सी पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे।