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Misc. Erotica हिंदी की सुनी-अनसुनी कामुक कहानियों का संग्रह
(13-02-2024, 12:20 AM)K MD THABREZ Wrote: Very hot

thanks
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Do not mention / post any under age /rape content. If found Please use REPORT button.
(15-02-2024, 04:55 AM)ShakirAli Wrote: Waiting for the next story

Coming soon!
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Koi nayi kahani share karo bhai… where are you,
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Hey Rohit, you've been seriously missed! The stories shared by you, used to set our hearts racing and our imagination soaring. It's been a desert without your steamy tales. What gives? We're all eagerly waiting for the next sizzling story. Please don't keep us in suspense any longer, share some of that sweet, juicy content we all crave! We're begging you, don't leave us high and dry!
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Please come back… waiting for more stories.
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(21-08-2024, 12:47 AM)ShaziaMirza Wrote: Please come back… waiting for more stories.

I will try again but यहाँ कुछ विशेष response नहीं मिला… सम्भवतः लोगों को कहानियाँ पसंद नहीं आ रही थीं! फिर भी आप दो-तीन पाठकों के लिए जो response देते हैं... जल्दी ही कोई कहानी share करूँगा!
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सहेली की खातिर
लेखक: अंजान
 
मैं अनिता हूँ। तैंतीस साल की बहुत ही खूबसूरत महिला। मेरे पति राज शेखर बिज़नेस-मैन हैं। मैं आपको उस घटना के बारे में बताना चाहती हूँ जो आज से कोई दस साल पहले घटी थी। इस घटना ने मेरी ज़िंदगी ही बदल दी। मेरे जिसमानी सम्बंध मेरी सहेली के पति से हैं और इसके लिये वो ही दोषी है। मेरे दो बच्चों में एक का पिता मेरे पति नहीं बल्कि मेरी सहेली का पति है। उस समय मैं पढ़ाई कर रही थी। मेरी एक प्यारी सी फ्रैंड थी, नाम था रिटा। वैसे आजकल वो मेरी ननद है। राज रिटा का ही भाई है। रिटा के भाई से शादी करने के लिये मुझे एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ी।
 
हम दोनों कॉलेज में साथ-साथ पढ़ते थे। हमारी जोड़ी बहुत मशहूर थी। दोनों ही बहुत खूबसूरत और छरहरे बदन की थी। बदन के कटाव बड़े ही सैक्सी थे। मेरे चूचियाँ रिटा से भी बड़ी-बड़ी थी। लेकिन एक दम टाईट थी। हम अक्सर एक दूसरे के घर जाती थीं। मेरा रिटा के घर जाने का मक्सद एक और भी था... उसका भाई राज। वो मुझे बहुत अच्छा लगता था। उस समय वो बी-टेक कर रहा था। बहुत ही हेंडसम और खूबसूरत शख्सियत का मालिक था। मैं उससे मन ही मन प्यार करने लगी थी। राज भी शायद मुझे पसंद करता था। लेकिन मुँह से कभी कहा नहीं। मैंने अपना दिल रिटा के सामने खोल दिया था। हम आपस में लड़कों की बातें भी करती थी। मुसीबत तब आयी जब रिटा केशव के प्यार में पड़ गयी। केशव कॉलेज युनियन का लीडर था। उसमें हर तरह की बुरी आदतें थी। वो एक अमीर बाप की बिगड़ी हुई औलाद था। उसके पिताजी एक जाने माने उद्योगपति थे। अनाप शनाप कमाई थी। और बेटा उस कमाई को अपनी अय्याशियों में खर्च कर रहा था। दो साल से फेल हो रहा था। मैं उससे बुरी तरह नफ़रत करती थी। केशव मुझ पर भी गंदी नज़र रखता था। मगर मैं उससे दूर ही रहती थी। रिटा पता नहीं कैसे उसके प्यार में पड़ गयी। मुझे पता चला तो मैंने काफी मना किया लेकिन उसने मेरी बात की बिल्कुल भी परवाह नहीं की। वो तो केशव की लछेदार बातों के भुलावे में ही खोयी हुई थी। एक दिन उसने मुझे बताया कि उसके साथ केशव के शारीरिक सम्बंध भी हो चुके हैं। मैंने उसे बहुत बुरा भला कहा मगर वो थी मानो चिकना घड़ा। उस पर कोई भी बात असर नहीं कर रही थी।
 
एक दिन मैं अकेली स्टूडेंट रूम में बैठी कुछ तैयारी कर रही थी। अचानक केशव वहाँ आ गया। उसने मुझ से बात करने की कोशिश की मगर मैंने अपना सिर घुमा लिया। उसने मुझे बाँहों से पकड़ कर उठा दिया।
 
"क्या बात है क्यों परेशान कर रहे हो।"
 
"तू मुझे बहुत अच्छी लगती है।"
 
"मैं तेरे जैसे आदमी के मुँह पर थूकना भी पसंद नहीं करती।" मैंने कहा तो वो गुस्से से तिलमिला गया। उसने मुझे खींच कर अपनी बाँहों में ले लिया और तपाक से एक चुंबन मेरे होंठों पर दे दिया। मैं एक दम हकबका गयी। मुझे विश्वास नहीं था की वो किसी कॉमन जगह पर ऐसा भी कर सकता है। इससे पहले कि मैं कुछ संभलती, उसने मेरे दोनों बूब्स पकड़ कर मसल दिये। मैं फोरन होश में आयी। मैंने एक जबरदस्त चाँटा उसके गाल पर रसीद कर दिया। पाँचों अँगुलियाँ छप गयी थीं गाल पर। वो तिलमिला गया। "कुत्ते मुझे कोई बाजारू लड़की मत समझना जो तेरी बाँहों में आ जाऊँगी" उसे भी मुझसे ऐसी हरकत की शायद उम्मीद नहीं थी। वो अभी अपने गाल सहलाता हुआ कुछ कहता कि तभी किसी के कदमों की आवाज सुनकर वो वहाँ से भाग गया।
 
मेरा उस पूरे दिन मूड खराब रहा। ऐसा लग रहा था जैसे वो अभी भी मेरे बूब्स को मसल रहा हो। बहुत गुस्सा आ रहा था। दोनों बूब्स छूने से ही दर्द कर रहे थे। घर पहुँच कर अपने कमरे में जब कपड़े उतार कर अपनी गोरी छातियों को देखा तो रोना आ गया। छातियों पर मसले जाने के नीले-नीले निशान दिख रहे थे।
 
शाम को रिटा अयी। "आज सुना है तू केशू से लड़ पड़ी?" उसने मुझसे पूछा।
 
"लड़ पड़ी? मैंने उसे एक जम कर चाँटा मारा। और अगर वो अब भी नहीं सुधरा तो मैं उसका सैंडलों से स्वागत करूँगी... साला लोफर"
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"अरे क्यों गुस्सा करती है? थोड़ा सा अगर छेड़ ही दिया तो इस तरह क्यों बिगड़ रही है। वो तेरा होने वाला नंदोई है। रिश्ता ही कुछ ऐसा है कि थोड़ी बहुत छेड़छाड़ तो चलती ही रहती है," उसने कहा।
 
"थोड़ी छेड़ छाड़... मॉय फ़ुट। देखेगी क्या किया उस तेरे आवारा आशिक ने?" मैंने कहकर अपनी कमीज़ ऊपर करके उसे अपनी छातियाँ दिखायीं। "चचचच कितनी बुरी तरह मसला है केशू ने" वो हँस रही थी। मुझे गुस्सा आ गया मगर उसकी मिन्नतों से मैं आखिर हँस दी। लेकिन मैंने उसे चेता दिया "अपने उस आवारा आशिक को कह देना मेरे चक्कर में नहीं रहे। मेरे आगे उसकी नहीं चलनी"
 
बात आयी गयी हो गयी। कुछ दिन बाद मैंने महसूस किया कि रिटा कुछ उदास रहने लगी है। मैंने कारण जानने की कोशिश की मगर उसने मुझे नहीं बताया। मुझ से उसकी उदासी देखी नहीं जाती थी। एक दिन उसने मुझ से कहा "नीतू तेरे प्रेमी के लिये लड़की ढूँढी जा रही है।"
 
मैं तो मानो आकाश से जमीन पर गिर पड़ी "क्या?"
 
"हाँ। भैया के लिये रिश्ते आने शुरू हो गये। जल्दी कुछ कर नहीं तो उसे कोई और ले जायेगी और तू हाथ मलती रह जायेगी।"
 
"लेकिन मैं क्या करूँ?"
 
"तू भैया से बात कर"
 
मैंने राज से बात की। लेकिन वो अपने मम्मी पापा को समझाने में अस्मर्थ था। मुझे तो हर तरफ अँधेरा ही दिख रहा था। तभी रिटा एक रोशनी की किरण की तरह आयी। "बड़ी जल्दी घबड़ा गयी? अरे हिम्मत से काम ले।"
 
"मगर मैं क्या करूँ? राज भी कुछ नहीं कर पा रहा है।"
 
"मैं तेरी शादी राज से करवा सकती हूँ।" रिटा ने कहा तो मैं उसका चेहरा ताकने लगी। "लेकिन... क्यों?"
 
"क्यों? मैं तेरी सहेली हूँ... हम दोनों ज़िंदगी भर साथ रहने की कसम खाती थीं। भूल गयी?"
 
"मुझे याद है सब लेकिन तुझे भी याद है या नहीं मैं देख रही थी।" उसने कहा, "मैं मम्मी पापा को मना लुँगी तुम्हारी शादी के लिये मगर इसके बदले तुझे मेरा एक काम करना होगा"
 
"हाँ बोल ना क्या चाहती है मुझसे" मुझे लगा जैसे जान में जान आयी हो।
 
"देख तुझे तो मालूम ही है कि मैं और केशव सारी हदें पार कर चुके हैं। मैं उसके बिना नहीं जी सकती" उसने मेरी और गहरी नज़र से देखा, "तू मेरी शादी करवा दे मैं तेरी शादी करवा दुँगी।"
 
"मैं तेरे मम्मी पापा से बात चला कर देखुँगी" मैंने घबड़ाते हुए कहा।
 
"अरे मेरे मम्मी पापा को समझाने की जरूरत नहीं है। ये काम तो मैं खुद ही कर लुँगी," उसने कहा।
 
"फिर क्या परेशानी है तेरी?"
 
"केशव!" उसने मेरी आँखों में आँखें डाल कर कहा, "केशव ने मुझसे शादी करने की एक शर्त रखी है।"
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"क्या?" मैंने पूछा।
 
"तुम!" उसने कहा तो मैं उछल पड़ी। "क्या? क्या कहा?" मेरा मुँह खुला का खुला रह गया।
 
"हाँ उसने कहा है कि वो मुझ से तभी शादी कर सकता है जब मैं तुझे उसके पास ले जाऊँ"
 
"और तूने... तूने मान लिया?" मैं चिल्लाई।
 
"धीरे बोल मम्मी को पता चल जायेगा। वो तुझे एक बार प्यार करना चाहता है। मैंने उसे बहुत समझाया मगर उसे मनाना मेरे बस में नहीं है।"
 
"तुझे मालूम है तू क्या कह रही है?" मैंने गुर्रा कर उस से पूछा।
 
"हाँ... मेरी प्यारी सहेली से मैं अपने प्यार की भीख माँग रही हूँ। तू केशव  के पास चली जा... मैं तुझे अपनी भाभी बना लुँगी।"
 
मेरे मुँह से कोई बात नहीं निकली। कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है।
 
"अगर तूने मुझे बर्बाद किया तो मैं भी तुझे कोई मदद नहीं करूँगी।"
 
मैं चुपचाप वहाँ से उठकर घर चली आयी। मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था कि क्या करूँ। एक तरफ कुआँ तो दूसरी तरफ खायी। राज के बिन मैं नहीं रह सकती और उसके साथ रहने के लिये मुझे अपनी सबसे बड़ी दौलत गँवानी पड़ रही थी। रात को काफी देर तक नींद नहीं आयी। सुबह मैंने एक फैसला कर लिया। मैं रिटा से मिली और कहा, "ठीक है तू जैसा चाहती है वैसा ही होगा। केशव को कहना मैं तैयार हूँ।" वो सुनते ही खुशी से उछल पड़ी। "लेकिन सिर्फ एक बात और... किसी को पता नहीं चलना चाहिये... एक बात और...।"
 
"हाँ बोल जान तेरे लिये तो जान भी हाजिर है।"
 
"उसके बाद तू मेरी शादी अपने भाई से करवा देगी और तेरी शादी होती है या नहीं मैं इसके लिये जिम्मेदार नहीं होऊँगी" मैंने उससे कहा। वो तो उसे पाने के लिये कुछ भी करने को तैयार थी।
 
रिटा ने अगले दिन मुझे बताया कि केशव मुझसे होटल ललित में मिलेगा। वहाँ उसका सुइट बुक है। शनिवार शाम आठ बजे वहाँ पहुँचना था। रिटा ने मेरे घर पर चल कर मेरी मम्मी को शनिवार की रात को उसके घर रुकने के लिये मना लिया। मैं चुप रही। शनिवार के बारे में सोच-सोच कर मेरा बुरा हाल हो रहा था। समझ में नहीं आ रहा था की मैं ठीक कर रही हूँ या नहीं।
 
शनिवार सुबह से ही मैं कमरे से बाहर नहीं निकली। शाम को रिटा आयी। उसने मम्मी को मनाया अपने साथ ले जाने के लिये। उसने मम्मी से कहा कि दोनों सहेलियाँ रात भर पढ़ाई करेंगी और मैं उसके घर रात भर रुक जाऊँगी। उसने बता दिया कि वो मुझे रविवार को छोड़ जायेगी। मुझे पता था कि मुझे शनिवार रात उसके साथ नहीं बल्कि उस आवारा केशव के साथ गुजारनी थी।
 
हम दोनों तैयार होकर निकलीं। मैंने हल्का सा मेक-अप किया। एक सिम्पल सा कुर्ता पहन कर निकलना चाहती थी मगर रिटा मुझसे उलझ पड़ी। उसने मेरा सब से अच्छा सलवार-कुर्ता निकाल कर मुझे पहनने को दिया और मुझे खूब सजाया और ऊँची हील के सैंडल अपने हाथों से मुझे पहनाये। फिर हम निकले। वहाँ से निकलते-निकलते शाम के साढ़े सात बज गये थे। "रिटा मुझे बहुत घबड़ाहट हो रही है। वो मुझे बहुत जलील करेगा। पता नहीं मेरी क्या दुर्गती बनाये।" मैंने रिटा का हाथ दबाते हुए कहा।
 
"अरे नहीं मेरा केशू ऐसा नहीं है!"
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"ऐसा नहीं है... साला लोफर... मैं जानती हूँ कितनी लड़कियों से उसके संबंध हैं। तू वहाँ मेरे साथ रहेगी। रात को तू भी वहीं रुकेगी। नहीं तो मैं नहीं जाऊँगी।"
 
"अरे नहीं मैं तेरे साथ ही रहूँगी। घबड़ा मत... मैं उसे समझा दुँगी। वो तेरे साथ बहुत अच्छे से पेश आयेगा।"
 
हम ऑटो लेकर होटल ललित पहुँचे। वहाँ हमें सुइट नम्बर दौ-सौ-आठ के सामने पहुँचा दिया गया। रिटा ने डोर-बेल पर अँगुली रखी। बेल की आवाज हुई और कुछ देर बाद दरवाजा थोड़ा सा खुला। उसमें से केशव का चेहरा दिखा। "गुड गर्ल!" उसने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा और अपने होंठों  पर जीभ फ़िरायी। मुझे लगा मानो मैं उसके सामने नंगी ही खड़ी हूँ। "आओ अंदर आ जाओ" उसने दरवाजे को थोड़ा सा खोला। मैं अंदर आ गयी। मेरे अंदर आते ही दरवाजे को बँद करने लगा।
 
रिटा ने आवाज लगायी "केशू मुझे भी तो आने दो।"
 
"तेरा क्या काम है यहाँ। चल भाग जा यहाँ से... कल सुबह आकर अपनी सहेली को ले जाना" कह कर भड़ाक से उसने दरवाजा बँद कर दिया। मैंने चारों और देखा। अंदर अँधेरा हो रहा था। एक डेकोरेटिव स्पॉट लाईट कमरे के बीचों बीच गोल रोशनी का दायरा बना रही थी। कमरा पूरा नज़र नहीं आ रहा था। उसने मेरी बाँह पकड़ी और खींचता हुआ उस रोशनी के दायरे में ले गया।
 
"बड़ी शेरनी बनती है। आज तेरे दाँत ऐसे तोड़ुँगा कि तेरी कीमत दो टके की भी नहीं रह जायेगी।" मैं अपने आप को समेटे हुए खड़ी हुई थी। उसने मुझे खींच कर अपने सीने से लगा लिया और मेरे होंठों पर अपने मोटे होंठ रख दिये। उसकी जीभ मेरे होंठों को एक दूसरे से अलग कर मेरे मुँह में प्रवेश कर गयी। शराब की तेज बू आ रही थी उसके मुँह से। शायद मेरे आने से पहले पी रहा होगा। वो मेरे मुँह का कोई कोना अपनी जीभ फिराये बिना नहीं छोड़ना चाहता था। एक हाथ से मेरे बदन को अपने सीने पर भींचे हुए था और दूसरे हाथ को मेरी पीठ पर फेर रहा था। अचानक मेरे चूत्तड़ों को पकड़ कर उसने जोर से दबा दिया और अपने से सटा लिया। मैं उसके लंड को अपनी चूत के ऊपर सटा हुआ महसूस कर रही थी। मैं उस के चेहरे को दूर करने की कोशिश कर रही थी मगर इसमे सफल नहीं हो पा रही थी। उसने मुझे पल भर के लिये छोड़ा और मेरे कुर्ते को पकड़ कर ऊपर कर दिया। मैं सहमी सी हाथ ऊपर कर खड़ी हो गयी। उसने कुर्ते को बदन से अलग कर दिया। फिर मेरी ब्रा में ढके दोनों बूब्स को पकड़ कर जोर से मसल दिया। इतनी जोर से मसला कि मेरे मुँह से "आआआआहहहह" निकल गयी। उसने मेरी दोनों चूचियों के बीच से ब्रा को पकड़ कर जोर से झटक दिया। ब्रा दो हिस्सों में अलग हो गयी। मेरे बूब्स उसकी आँखों के सामने नग्न हो गये। उसने मेरे बदन से ब्रा को उतार कर फेंक दिया और दोबारा मेरे निप्पलों को पकड़ कर जोर-जोर से मसलने लगा। "ऊओफफफफ प्लीज़ज़ज़.... प्लीज़ धीरे करो मैंने दर्द से तड़पते हुए कहा।
 
"क्यों भूल गयी अपने झापड़ को। आज भी मैं भूला नहीं हूँ वो बे-इज्जती। आज तेरे परों को ऐसे कुतर दुँगा कि तू कभी अपना सिर उठा कर बात नहीं कर पायेगी। सारी ज़िंदगी मेरी राँड बन कर रहेगी" कह कर वो मेरी एक छाती को अपने मुँह में लेकर चूसने लगा।
 
उसने मेरी सलवार के नाड़े को एक झटके में तोड़ दिया। सलवार सरसराती हुई मेरे कदमों पर ढेर हो गयी। "मैं ऐसा ही हूँ। जो भी मेरे सामने खुलने में देर लगाती है उसे मैं तोड़ देता हूँ।" उसने मेरी एक बाँह पकड़ कर उमेठ दी। मैं दर्द के मारे पीछे घूम गयी। उसने जमीन से मेरी चुन्नी उठा कर मेरे दोनों हाथ पीछे की और करके सख्ती से बाँध दिये। अब मैं उसे रोकने की स्तिथि में भी नहीं रही। उसने लाईट का स्विच ऑन कर दिया। पूरा कमरा रोशनी से जगमगा उठा। सामने सोफे पर एक और आदमी बैठा हुआ था। "इसे तो तुम पहचानती होगी। मेरा दोस्त सुरेश। आज तेरा गुरूर हम दोनों अपने कदमों से कुचलेंगे।"
 
मैं अपना बचाव करने की स्तिथि में नहीं थी। सुरेश उठा कर पास आ गया। उसने मेरे बदन की तरफ हाथ बढ़ाये। मैंने झुक कर अपना बचाव करने की कोशिश की। सुरेश ने मेरे बालों को पकड़ कर मेरे चेहरे को अपनी तरफ खींचा। मेरे चेहरे को अपने पास लेकर मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये। केशव मेरे शरीर के नीचे के हिस्सों पर हाथ फिरा रहा था। मेरे चूत्तड़ों पर कभी चिकोटी काटता तो कभी चूत के ऊपर हाथ फेरता। मेरी पैंटी को शरीर  से अलग कर दिया। फिर उसने एक झटके से अपनी दो मोटी-मोटी अँगुलियाँ मेरी चूत में डाल दीं। ज़िंदगी में पहली बार चूत पर किसी बाहरी वस्तु के प्रवेश ने मुझे चिहुँक उठने को मजबूर कर दिया।
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"अभी से क्यों घबड़ा रही है जानेमन अभी तो सारी रात दो मूसल तेरी चूत को कूटेंगे तब क्या होगा," केशव मेरी मजबूरी पर हँसने लगा, "पता है सुरेश इस दो टके की छोकरी ने मुझे केशव को... खुले आम झापड़ मारा था। उस दिन मैंने तय किया था कि इसकी हालत कुत्तिया की तरह बना कर रहुँगा। तू तो अब देखती जा कैसे मैं तुझे अपने इशारे पर नचाता हूँ।" उसने हँसते हुए अपनी अँगुलियों को चूत में डाल कर ऊपर की और उठाया। मैं हाई हील सैंडल के बावजूद भी अपने पँजों पर उठने को मजबूर हो गयी। पहली बार मेरे बदन से कोई खेल रहा था इस लिये ना चाहते हुए भी शरीर गरम होने लगा। मेरा दिमाग का कहना अब मेरा शरीर नहीं मान रहा था। "अब तुझे दिखाते हैं कि लंड किसे कहते हैं।" कहकर दोनों अपने-अपने शरीर पर से कपड़े खोलने लगे। दोनों बिल्कुल नंगे हो गये। दोनों के लंड देख कर मेरा मुँह खुला का खुला रह गया। मेरी चूत का छेद तो बहुत ही छोटा था। एक अँगुली डालने में दर्द होता था मगर दोनों के लंडों का घेर तो मेरी मुठ्ठी से भी ज्यादा था। घबड़ाहट से मेरे माथे पर पसीना आ गया।
 
"प्लीज़ मुझे छोड़ दो" मैंने सुबकते हुए कहा।
 
"हम ने तो तुझे नहीं पकड़ा। तू खुद चलकर इस दरवाजे से अंदर आयी है... हम से चुदने के लिये। आयी है कि नहीं... ? बोल!" मैंने सिर हिलाया। "फिर क्यों कह रही है कि मुझे छोड़ दो। तू जा मैं भी रिटा से अपने संबंध तोड़ देता हूँ। तुझे पता है... रिटा प्रेगनेंट है? मेरा बच्चा है उसके पेट में। तेरी मर्जी तू चली जा।" उसकी बात सुनकर ऐसा लगा मानो किसी ने मेरे अंदर की हवा निकाल दी हो। मैंने एक दम विरोध छोड़ दिया। केशव ने मुझे घुटनों पर बैठने को मजबूर कर दिया। दोनों अपने-अपने लंड मेरे होंठों पर  फिराने लगे। "ले इन्हें चाट," केशव ने कहा, "खोल अपना मुँह।"
 
मैंने अपने मुँह को थोड़ा सा खोला। केशव ने अपने लंड को मेरे मुँह में डाल दिया। मेरे सिर को पकड़ कर अपने लंड को अंदर तक पेल दिया। बहुत ही तीखी गंदी सी गंध आयी। मुझे घिन्न सी आने लगी। सुरेश मूवी कैमरा लकर मेरी तस्वीरें लेने लगा। मेरी आँखें उबल कर बाहर को आ रही थी। मुझे साफ दिख रहा था कि आज मेरी बहुत बुरी गत बनने वाली है। पता नहीं सुबह तक क्या हालत हो जायेगी। केशव मेरे मुँह में धकाधक अपना लंड अंदर बाहर कर रहा था। कुछ देर इस तरह मेरे मुँह को चोदने के बाद उसने अपना लंड बाहर निकाल। उसकी जगह सुरेश ने अपना लंड मुँह में डाल दिया। फिर वोही होने लगा जो पहले हो रहा था। मेरे जबड़े दर्द करने लगे। जीभ भी खुरदरी हो गयी थी।
 
"चल अपना मुँह और खोल... हम दोनों अपना लंड एक साथ डालेंगे" केशव ने कहा।
 
"नहीं...." मैंने अपना मुँह हटाना चाहा मगर दोनों ने मेरे सिर को अपने हाथों में जकड़ रखा था। मगर मेरे मुँह में एक साथ दो मूसल जा सकते हैं क्या। दोनों अपने अपने लंड ठेल रहे थे अंदर करने के लिये। मैं दर्द से चीख रही थी। ऐसा लग रहा था कि शायद मुँह फट जायेगा। केशव ने अपना लंड तो वापस मुँह में डाल दिया मगर सुरेश बाहर गालों पर ही फेरता रह गया। मेरे होंठों के कोने शायद फट गये थे। उसका लंड मुँह के अंदर आधा ही जा कर रह जाता था। वो उसे पूरा अंदर डालने में सफल नहीं हो पा रहा था। मुझे खींच कर वहाँ बिस्तर पर पटक दिया और मेरे सिर को खींच कर बेड के कोने तक इस तरह लाया कि मेरा सिर बिस्तर से नीचे झूल रहा था। अब उसने वापस मेरा सिर अपने हाथों में उठाकर अपना लंड अंदर डालना शुरू किया और लंड को गले के अंदर तक डाल दिया। लंड पूरा समा गया था। उसकी झाँटें मेरे नथुनों में घुस रही थी। मैं साँस लेने के लिये छटपटा रही थी।
 
"अरे ये मर जायेगी केशू। ऐसे मत ठोक उसे" सुरेश जो मेरी तस्वीरें ले रहा था, उसने कहा। ये सुन कर केशव ने अपना लंड थोड़ा बाहर खींचा। वो तो अब पूरा वहशी लग रहा था। आँखों में खून उतर आया था। सुरेश की बातों से थोड़ा सा नॉर्मल हुआ। फिर कुछ देर तक मेरे मुँह को मेरी चूत की तरह चोदने के बाद मुझे बिस्तर पर चित लिटा दिया। अब वोह भी बिस्तर पर चढ़ गया और मेरी टाँगें फैला दीं और जितना हो सकता था उतना फैला कर हाथों से पकड़े रखा।
 
"अबे अब पास आ कर क्लोज़-अप ले। एक-एक हर्कत को रिकॉर्ड कर। अभी इसकी चूत से खून भी टपकेगा। सब कैमरे में आना चाहिये," उसने सुरेश को कहा। सुरेश मेरी चूत के होंठों के बीच सटे केशव के लंड पे फोकस करने लगा। उसने अब धीरे -धीरे मेरी चूत पर दबाव डाला। मगर उसका लंड इतना मोटा था कि अंदर ही नहीं घुस पा रहा था। उसके लंड से निकले प्री-कम से और कुछ मेरे रस से वो जगह चिकनी हो रही थी। दबाव बढ़ता गया मगर बार-बार उसका लंड फ़िसल जाता था।
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"तेल लाऊँ" सुरेश ने पूछा। "अबे तेल लगाने से तो आराम से अंदर चला जायेगा। फिर क्या मजा आयेगा। मैं तो इसे चींखते हुए देखना चाहता हूँ।" वो बिस्तर की चादर से मेरी चूत को साफ करने लगा। एक अँगुली में चादर का कोना पकड़ कर चूत के अंदर भी साफ़ कर दिया। अब मेरी चूत सूखी हो गयी। इस बार अपनी अँगुलियों से मेरी चूत के मुँह को फैला कर अपने लंड के टोपे को वहाँ लगाया और अपने शरीर का पूरा वजन मेरे ऊपर डाल दिया। उसका लंड मेरी चूत के दीवारों को छीलता हुआ अंदर जाने लगा। मैं जोर-जोर से चींखने लगी "ओह्हहहह उहहहहऊऊऊऊऊ..... माँआआआआआ... मर गयीईईईईईई मुझे कोईईईईईई बचाओओ ऊऊऊऊऊऊऊहहहहह नहींईंईंईंईं!"
 
अगले झटके में मेरी वर्जिनिटी तोड़ते हुए अपने लंड को पूरा अंदर डाल दिया। अगर चूत गीली होती या उसमे कोई तेल लगाया होता तो इतना दर्द नहीं होता लेकिन वो तो मेरी जान लेना चाहता था। मुझे दर्द से चींखते और तड़पते देख कर उसे बहुत मजा आ रहा था। दूसरे झटके में इतना दर्द हुआ कि मैं कुछ ही देर के लिये बेहोश हो गयी। जब होश आया तो मैंने उसके लंड को उसी स्थिति में पाया। उसका लंड इतना मोटा था कि चूत की चमड़ी उसके लंड पर चिपक सी गयी थी। कुछ देर तक इसी तरह रहने के बाद जैसे ही वो अपने लंड को बाहर खींचने लगा तो ऐसा लगा कि मेरा गर्भाशय भी लंड के साथ बाहर आ जायेगा। मैं वापस छटपटाने लगी। उसने अपने लंड को पूरा बाहर निकाला और मेरे सामने ले कर आया। उसके लंड पर मेरे खून के कतरे लगे हुए थे। मेरी चूत से खून रिस कर बिस्तर पर टपक रहा था।
 
"देखा मुझसे पँगा लेने का अँजाम। तेरी चूत को आज फड़ ही दिया। ले इसे चाट कर साफ कर।" मैंने नफ़रत से आँखें बँद कर ली। मगर वो मानने वाला तो था नहीं। मैंने आँखें बँद किये हुए अपना मुँह खोल दिया। उसने अपना लंड वापस मेरे मुँह में डाल दिया जिसे जीभ से चाट कर साफ करना पड़ा। फिर उसने वापस उसे मेरी चूत में घुसेड़ दिया और तेज-तेज धक्के मारने लगा। उसके हर धक्के से मेरी जान निकल रही थी। लेकिन कुछ ही देर में दर्द खतम हो गया और मुझे भी मजा आने लगा। मैं भी नीचे से अपनी कमर उछालने लगी। आधे घंटे तक इस तरह से चोदता रहा। इस बीच मेरा एक बार रस झड़ गया था। उसके बाद उसने मुझे उठा कर अपने ऊपर बिठा लिया। मैं उसके लंड को अपनी चूत पर सैट कर के उस पर बैठ गयी।
 
उसका लंड पूरा अंदर चला गया। उसके सीने पर घने बाल थे जिसे अपने हाथों से सहलाते हुए मैं अपनी कमर ऊपर नीचे कर रही थी। मेरी दोनों चूंचियाँ ऊपर नीचे उछल रही थी। सुरेश से नहीं रहा गया। और बिस्तर पर खड़ा होकर मेरे मुँह में अपना लंड डाल दिया। मैं उसके लंड को मुँह में लेकर चूसने लगी। इस तरह दोनों से चुदते हुए मैं वापस झड़ गयी। केशव मेरे छातियों से खेल रहा था। सुरेश इतना उत्तेजित था कि उसका लंड थोड़ी ही देर में झड़ गया और ढेर सारे वीर्य से उसने मेरा मुँह भर दिया। मुझे घिन्न सी आ गयी। मैंने सारा वीर्य बिस्तर पर ही उलट दिया। वो लेटा-लेटा अब गहरी साँसें ले रहा था। मगर केशव की स्पीड में कोई कमी नहीं आयी थी। इस आसन में भी वो मुझे पँद्रह मिनट तक चोदता रहा।
 
"प्लीज़ अब बस भी करो। मैं थक गयी हूँ। अब मुझसे ऊपर नीचे नहीं हुआ जा रहा।" मैंने उससे विनती की। मगर वो कुछ भी नहीं बोला। लेकिन अगले पाँच मिनट में उसका बदन सख्त हो गया। उसके हाथ मेरी चूँचियों पर गड़ गये। मैं समझ गयी की अब वोह ज्यादा देर का मेहमान नहीं है। उसने मेरे निप्पलों को पकड़ कर अपनी और खींचा। मैं उसके सीने पर लेट गयी। उसने मेरे होंठ पर अपने होंठ रख दिये और ऐसा लगा मानो एक गरम धार मेरे अंदर गिर रही हो। अब हम तीनों एक दूसरे से लिपटे लेटे हुए थे। मेरा पूरा बदन पसीने से भीगा हुआ था। ए-सी चल रहा था मगर उसके बाद भी मैं पसीने से नहा गयी थी। पहली बार में ही इतनी जोरदार चुदाई ने मेरे सारे अँग ढीले कर दिये थे। एक-एक अँग मेरा दुख रहा था। मैंने किसी तरह उठा कर बिस्तर के पास रखा पानी का ग्लास आधा पिया और आधा अपने चेहरे पर डाल लिया।
 
थोड़ी देर बाद सुरेश उठा और मुझे हाथों पैरों के बल बिस्तर पर झुकाया और खुद बिस्तर के नीचे खड़े होकर मेरी चूत में अपना लंड डाल दिया। वो जोर-जोर से मुझे पीछे की और से ठोकने लगा। मेरे चेहरे को पकड़ कर केशव ने अपने ढीले पड़े लंड पर दबा दिया। मैं उसका मतलब समझ कर उसके ढीले लंड को अपनी जीभ निकाल कर चाटने लगी। मैं पूरे लंड को अपनी जीभ से चाट रही थी। सुरेश जोर-जोर से मुझे पीछे से ठोक रहा था। कुछ ही देर में केशव का लंड धीरे-धीरे वापस खड़ा होने लगा। अब वो  मेरे बालों से मुझे पकड़ कर अपने लंड पर मेरा मुँह ऊपर नीचे चलाने लगा।
 
काफी देर तक मुझे पीछे से चोदने के बाद सुरेश ने अपना वीर्य उसमें छोड़ दिया। केशव ने मुझे उठा कर जमीन पर पैर चौड़े कर के खड़ा किया और बिस्तर के किनारे बैठ कर मुझे अपनी गोद में दोनों तरफ पैर करके बिठा लिया। उसका लंड वापस मेरी चूत में घुस गया। मैं उसके घुटनों पर हाथ रख कर अपने शरीर को उसके लंड पर ऊपर नीचे चलाने लगी। कुछ देर तक इसी तरह चोदने के बाद वो वापस मेरे अंदर खलास हो गया। इस बार मैंने भी उसका साथ दिया। हम दोनों एक साथ झड़ गये।
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सुरेश ने खाना मँगा लिया था। हम उसी तरह नंगी हालत में डीनर करके वापस बिस्तर पर आ गये। मुझ से तो कुछ खाया ही नहीं गया। सारा बदन लिजलिजा हो रहा था। दोनों ने मुझे अब तक अपना बदन साफ भी नहीं करने दिया था और ना ही मुझे सैंडल उतारने की इजाज़त दी थी। खाना खाने के बाद मैं उनका सहारा लेकर उठी तो मैंने पाया कि पूरे बिस्तर पर खून के कुछ-कुछ धब्बे लगे थे। मैं सुरेश के कँधे का सहारा लेकर बाथरूम में गयी। लेकिन वहाँ भी उन्होंने दरवाजा बँद नहीं करने दिया। उन दोनों की मौजूदगी में मैं शरम से पानी-पानी हो गयी।
 
वापस बिस्तर पर आकर कुछ देर तक दोनों मेरे एक-एक अँग से खेलते रहे और मेरी उसी नंगी हालत में अलग-अलग पोज़ में कईं फोटो खींचे। फिर मेरी चुदाई का दूसरा दौर चालू हुआ। यह दौर काफी देर तक चलता रहा। इस बार सुरेश ने मुझे अपने ऊपर बिठाया और अपना लंड अंदर डाल दिया। इस हालत में उसने मुझे खींच कर अपने सीने से सटा लिया। मेरे दोनों पैर घुटनों से मुड़े हुए थे और इसलिये मेरे चूत्तड़ ऊपर की और उठ गये। केशव ने मेरी चुदती हुई चूत में एक अँगुली डाल कर हमारे रस को बाहर निकाला और एक अँगुली से मेरी गाँड में अंदर तक इस रस को लगाने लगा।
 
मैं उसका मतलब समझ कर उठना चाहती थी मगर दोनों ने मुझे हिलने भी नहीं दिया। केशव ने अपनी अँगुली निकाल कर गाँड पर अपना लंड सटा दिया। मैं छटपटा रही थी। उसने जोर से अपना लंड अंदर ढकेला। ऐसा लगा मानो कोई मेरी गाँड को डंडे से फाड़ रहा हो। मैं "आआआआआआईईईईईईईईई ऊऊऊऊऊऊउउउउम्म्म आआआआहहहहह मुझे छोड़ दो...." जैसा कह कर रोने लगी। मगर उसके लंड के आगे का मोटा हिस्सा अब अंदर जा चुका था। मैंने दर्द से अपने होंठ काट लिये मगर वो आगे बढ़ता ही जा रहा था। पूरा अंदर डालने के बाद ही वो रुका। फिर दोनों मेरे चिल्लाने की परवाह किये बिना ही धक्के मारने लगे। ऊपर से केशव धक्का मारता तो सुरेश का लंड मेरी चूत में घुस जाता। जब केशव अपना लंड बाहर खींचता तो मैं उसके लंड के साथ थोड़ा ऊपर उठती और सुरेश का लंड बाहर की और आ जाता। इसी तरह मुझे काफी देर तक दोनों ने चोदा फिर एक साथ दोनों ने मेरे दोनों छेदों में अपने अपने वीर्य डाल दिये। मैं भी उनके साथ ही झड़ गयी।
 
रात भर कई दौर अलग-अलग पोज़ में हुए, मैं तो गिनती ही भूल गयी। लगभग चार बजे के करीब हम एक ही बिस्तर पर आपस में लिपट कर सो गये। सुबह सढ़े नौ बजे दरवाजे की घंटी बजने पर नींद खुली। मैंने पाया कि पूरा बदन दर्द कर रहा था। मैंने अपने शरीर का जायजा लिया। मैं बिस्तर पर आखिरी चुदाई के वक्त जैसे लेटी थी अभी तक उसी तरह ही लेटी हुई थी।
 
सुरेश शायद सुबह उठकर जा चुका था। केशव ने उठ कर दरवाजा खोला तो तेजी से रिटा अंदर आयी। बिस्तर पे मुझ पर नज़र पड़ते ही चीख उठी, "नीतू की क्या हालत बनायी है तुमने? तुम पूरे राक्षस हो। बेचारी के फूल से बदन को कैसी बुरी तरह कुचल डाला है।" वो बिस्तर पर बैठ कर मेरे चेहरे पर और बालों पर हाथ फेरने लगी।
 
"टेस्टी माल है" केशव ने होंठों पर जीभ फिराते हुए बेहुदगी से कहा। रिटा मुझे सहारा देकर बाथरूम में ले गयी। बाथरूम में मैं उससे लिपट कर रो पड़ी। उसने मेरे सैंडल उतार कर मुझे नहलाया। मैं नहा कर काफी ताज़ा महसूस कर रही थी। कपड़े बाहर बिस्तर पर ही पड़े थे। ब्रा और पैंटी के तो चीथड़े हो चुके थे। सलवार का भी उन्होंने नाड़ा तोड़ दिया था। मैंने बाथरूम में अपने सैंडल पहने और उसी हालत में मैं रिटा के साथ कमरे में आयी। अब इतना सब होने के बाद पूरी नग्न हालत में केशव के सामने आने में कोई शर्म महसूस नहीं हो रही थी। वो बिस्तर के सिरहाने पर बैठ कर मेरे बदन को बड़ी ही कामुक नज़रों से देख रहा था। जैसे ही मैंने अपने कपड़ों की तरफ हाथ बढ़ाया, उसने मेरे कपड़ों को खींच लिया। हम दोनों की नज़र उसकी तरफ उठा गयी।
 
"नहीं... अभी नहीं," उसने मुस्कुराते हुए कहा, "अभी जाने से पहले एक बार और!"
 
"नहींईंईंईं" मेरे मुँह से उसकी बात सुनते ही निकल गया।
 
"अब क्या जान लोगे इसकी? रात भर तो तुमने इसे मसला है। अब तो छोड़ दो इसे।" रिटा ने भी उसे समझाने की कोशिश की। मगर उसके मुँह में तो मेरे खून का स्वाद चढ़ चुका था।
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Sexy and awesome, totally hooked on this story!
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Mast kahani hai bhai…
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