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अब सर ने नाज़ के मैक्सी के अंदर से अपना हाथ निकल लिया और नाज़ की चूत पर अपना हाथ मैक्सी के ऊपर से रगड़ रहे थे और झुक-झुक कर उसकी चूचियों पर चुम्माँ दे रहे थे। थोड़ी देर के बाद वो नाज़ की मैक्सी फिर से अपने हाथों से टाँगों के ऊपर करने लगे और अबकी बार नाज़ अपनी मम्मी को मुस्कुराते हुए देखती रही और कुछ नहीं बोली। नाज़ का चुप रहना सर को और भड़का दिया और वो एक ही झटके के साथ नाज़ की मैक्सी पूरी तरह से खींच कर उसकी कमर पर ले आये। इससे नाज़ की चूत बिल्कुल खुल गयी। नाज़ की चूत दिखने में बहुत ही सुंदर थी। उसकी चूत पर भी एक भी बाल नहीं था और फ़रीदा की तरह ही चिकनी थी। बेटी की चूत देख कर फ़रीदा बोली, “वाह! बेटी वाह! तूने बहुत ही अच्छी तरह से अपनी चूत साफ की है। तेरी चिकनी और गुलाबी चूत को देख कर मुझे इसे चूमने और चाटने का दिल कर रहा है। पता नहीं सर को कैसा लग रहा है!”
तब सर ने भी उसकी सुंदर सी चूत पर हाथ फेर कर कहा, “हाँ फ़रीदा तुम्हारी बेटी की चूत बहुत ही सुंदर है और इसने बड़े करीने से अपनी चूत साफ की है। मुझे नाज़ की चूत पसंद आयी और मैं भी तुम्हारी तरह इसकी चूत को चूमना और चाटना चाहता हूँ!”
उन्होंने एक बार मेरी तरफ देखा और नाज़ की कमर पकड़ कर उसकी मैक्सी अब उसके शरीर से अलग कर दी। अब नाज़ सीट के ऊपर बिल्कुल नंगी बैठी थी। सर अब फिर नाज़ के पास पहुँच कर उसकी चूँची से खेलने लगे। वो कभी उसकी चूँची को दोनों हाथों से पकड़ कर दबाते और मसलते तो कभी उसकी चूँची को अपने मुँह में भर कर उसकी घुंडी चूसते और जीभ से चुभलाते। धीरे-धीरे नाज़ के शरीर में भी अब काम-ज्वाला उठने लगी और वो अपने हाथों को उठा-उठा कर अँगड़ायी ले रही थी। उसकी साँसें अब फूल रही थी और साँसों के साथ-साथ उसकी चूँची भी अब उठ-बैठ रही थी। अब नाज़ से रहा नहीं गया और वो सीट पर लेट गयी। नाज़ के सीट पर लेटते ही सर अपना मुँह उसकी चूत के पास ले गये और नाज़ की चूत को ऊपर से चाटने लगे। थोड़ी देर के बाद सर ने नाज़ की टाँगों को अपने हाथों से पकड़ कर सीट पर फैला दिया और एक अँगुली उसकी चूत में डालने लगे। चूत पर अँगुली छूते ही नाज़ अपनी कमर नीचे से ऊपर करने लगी और मुँह से “आह! आह! ओह! ओह! नहीं! ऊँह! ऊँह!” की आवाज निकालने लगी।
फ़रीदा अपनी बेटी की कराहें सुन कर हँसती हुई बोली, “देख नाज़! मज़ा आ रहा है ना! तेरे ऊपर जवानी का बुखार चड़ गया है और चूत की खुजली सर के शानदार लौड़े से ही जायेगी। अब तू सर का अज़ीम लौड़ा अपने हाथ में ले कर के देख... वो तुझे चोद कर बेइंतेहा मज़ा देने के लिये कितना बेकरार है!” यह कह कर फ़रीदा सर की तरफ देखने लगी। सर अब तक माँ-बेटी की बातें सुन रहे थे और अब उन्होंने फ़रीदा को अपनी बाहों में भर कर एक जोरदार चुम्मा दिया और उसकी चूँची मसलने लगे। फ़रीदा की चूँची मसलते-मसलते उन्होंने फ़रीदा का हाऊज़ कोट उतार दिया। अब माँ और बेटी के तन पर कोई कपड़ा नहीं था... दोनों सिर्फ पैरों में ऊँची-ऊँची हील की सैंडल पहने हुई थी। बस फ़र्क यह था कि बेटी सीट पर अपनी टाँगें फैलाये लेटी हुई थी और माँ सर के बाहों में खड़ी-खड़ी अपनी चूँची मसलवा रही थी। दोनों माँ और बेटी ने एक दूसरे की आँखों में झाँका और मुस्कुरा दीं। अब नाज़ अपने सीट पर बैठ गयी और अपने हाथ बढ़ा कर सर के साथ-साथ वो भी अपनी माँ की चूँची को मसलने लगी। थोड़ी देर के बाद नाज़ अपनी माँ की चूँची मसलते हुए उसकी टाँगों के बीच में नीचे बैठ गयी और अपनी माँ की चूत पर अपना मुँह रगड़ने लगी। फ़रीदा भी अपने हाथों से नाज़ का चेहरा अपनी चूत पर कस-कस कर दबाने लगी।
थोड़ी देर के बाद माँ और बेटी एक दूसरे से लिपट कर खड़ी रहीं और फिर उन्होंने आगे जा कर सर को पकड़ लिया। नाज़ ने सर के होठों का चुम्मा लेना शुरू किया और फ़रीदा सर की शॉर्ट्स हटा कर उनके लंड को पकड़ कर मरोड़ने लगी। सर का लंड देख कर मैं हैरान हो गया। उनके लंड की लंबाई लगभग दस इंच और मोटाई करीब तीन-चार इंच थी और सूपाड़ा फूल करके बिल्कुल एक छोटा सा टमाटर सा दिख रहा था।
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अब मैंने अपना मुँह कंबल से निकाल लिया और उनकी तरफ करवट ले कर उनके कारनामे देखने लगा। सर अब फ़रीदा को छोड़ कर फिर से नाज़ के पास पहुँच गये और उसे अपनी बांहों में लेकर उसकी चूत मसलने लगे। नाज़ ने चूत मसलने के साथ ही अपनी टाँगें फैला दीं और फिर एक पैर सीट पर रख दिया। अब सर झुक कर नाज़ की चूत में अपनी जीभ घुसेड़ कर उसको अपनी जीभ से चोदने लगे। यह सब देख कर फ़रीदा जो अब तक खुद ही अपनी चूत में अँगुली अंदर बाहर कर रही थे, आगे बढ़ी और सर का फुला हुआ सूपाड़ा अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगी। तब सर ने नाज़ को सीट के किनारे टाँगें फैला कर बिठा दिया और उसके पैर सीट पर रख दिये। ऐसा करने से नाज़ की चूत अब बिल्कुल खुल कर सीट के किनारे आ गयी तो सर वहीं बैठ कर नाज़ की चूत को चाटने और चूसने लगे। फ़रीदा को भी अब ताव चढ़ चुका था और उसने सर के आगे बैठ कर सर का लंड अपने मुँह में भर लिया और चूसना शुरू कर दिया। मैं यह सब देख कर अपने आप को रोक ना सका और अपनी सीट पर बैठ गया। मुझको उठते देख कर तीनों घबड़ा गये और अपने-अपने कपड़े ढूँढने लगे। मैं हँस कर बोला, “सॉरी, मैं आप लोगों को डिस्टर्ब नहीं करना चाहता था, लेकिन मैं अपने आप को रोक नहीं पाया। कोई बात नहीं आप लोग अपना काम जारी रखिये... मैं यहाँ बैठा हूँ।“
अब तक फ़रीदा और नाज़ दोनों ने अपनी अपने जिस्म को अपने हाथों से ढक लिया था। फ़रीदा अपनी नज़र मेरी तरफ घुमा कर बोली, “तुम कब से जागे हुए हो?”
“अरे मैं सोया ही कब था कि जागुँगा!” मैंने शरारत से मुस्कुराते हुए कहा तो फ़रीदा और नाज़ मेरी तरफ घूर-घूर कर देखने लगीं और सर ने अपने नंगपने को ध्यान ना देते हुए मेरी तरफ मुड़ कर अपना हाथ मुझसे मिलाया और कहा, “मेरा नाम मनोज शर्मा है और मैं आई-ओ-सी में काम करता हूँ। अब तुम जब हमारा कार्यक्रम देख चुके हो तो मैं तुम्हें हमारे साथ शामिल होने का निमंत्रण देता हूँ। अगर तुम्हें कोई आपत्ति ना हो तो?”
मैंने कहा, “आपका निमंत्रण स्वीकार है और मुझे खुशी होगी आपके साथ जवानी का खेल खेलने में... वैसे इस खेल में मुझे कोई एक्सपीरियंस नहीं है!”
यह सुनकर माँ और बेटी दोनों ने मुस्कुरा दीं। फ़रीदा ने उठ कर कूपे की लाईट जला दी और मेरे पास आ कर मुझे पकड़ कर मेरे होठों को चूमते हुए बोली, “एक्सपीरियंस नहीं है तो क्या हुआ... मुझे खूब एक्सपीरियंस है... मैं बनाऊँगी तुम्हें मर्द!”
तब मैं फ़रीदा को अपनी बांहों में लेकर एक हाथ से उसकी चूँची मसलने लगा और दूसरा हाथ उसकी चूत पर ले जा कर चूत में अँगुली करने लगा। उधर मनोज ने अब नाज़ को सीट पर लिटा दिया था और उसकी चूत में अपनी अँगुली पेल रहा था और नाज़ मज़े से सिसकते हुए छटपता रही थी। नाज़ अपनी माँ को देख कर बोली, “अम्मी सर का लौड़ा तो बेहद बड़ा है... मैंने इतना बड़ा लंड नहीं लिया कभी... इनका ये लौड़ा मैं कैसे झेलुँगी मैं अपनी चूत में?”
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(23-07-2023, 07:05 PM)rohitkapoor Wrote: आज अपडेट दूंगा। यहाँ कुछ response नहीं मिलता तो मैंने इस forum पे आना और पोस्ट करना छोड़ दिया। मज़ा नहीं आता यहाँ। आपके कहने पर अपडेट डालूंगा।
Thank you for the update
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मेरी बाँहों से निकलकर फ़रीदा नाज़ के पास गयी और उसका सिर सहलाते हुए और नाज़ की चूँची दबाते हुए बोली, “बेटी, पहले तो थोड़ा सा दर्द बर्दाश्त करना होगा... फिर बाद में खूब मज़ा आयेगा। तू फ़िक्र ना कर... सर बेहद आराम-आराम से तेरी लेंगे और तुझे मज़ा देंगे। अब देख मैं भी अमित के पास जा रही हूँ और उसे अपनी चूत दूँगी और मज़े लूँगी!” इतना कह कर फ़रीदा मेरे पास आ गयी और मेरी लौड़े को चूमने और चूसने लगी। यह देख कर नाज़ भी उठ कर मनोज का लंड अपने मुँह में ले कर चूसने लगी। मनोज का लंड इतना मोटा था कि नाज़ के मुँह में पूरा नहीं समा पा रहा था। नाज़ मनोज का लंड अपनी मुठी में लेकर चाटने लगी।
इधर मैं भी फ़रीदा से अपना लंड बड़े आराम से चूसवा रहा था और फ़रीदा मारे गर्मी के कभी-कभी मेरे सुपाड़े को अपने दाँत से हल्के-हल्के काट रही थी। अब फ़रीदा सीट के पास झुक कर खड़ी हो गयी! ऊँची पेन्सिल हील की सैंडल पहने बिल्कुल नंगी इस तरह झुकी हुई वो बेहद सैक्सी लग रही थी और मैं उसके पीछे से आ कर उसके चुत्तड़ों में अपना लंड रगड़ने लगा। फ़रीदा बोली, “अब तुम पीछे से मेरी चूत में लंड पेल कर कुत्ते की तरह मुझे चोदो!” मैंने थोड़ा से थूक अपने लंड पर लगाया और फ़रीदा की चूत में अपना लंड पेल दिया। फ़रीदा मेरे लंड को अंदर लेते ही अपनी कमर आगे पीछे करने लगी और जोर-जोर से बोलने लगी, “देख नाज़ देख, कैसे अमित का कुँवारा लंड मेरी चूत में घुस कर मुझे मज़ा दे रहा है। अब तुझे भी सर अपने लंड से मज़ा देंगे। तू जल्दी से अपनी चूत में सर का का लंड डलवा ले!”
“अरे अम्मी मैं कब इंकार कर रही हूँ। सर ही तो अपना मेरे अंदर नहीं डाल रहे हैं, वो तो बस मेरी चूत को चूस रहे हैं। वैसे मुझे भी अपनी चूत चुसवाने में बहुत मज़ा आ रहा है,” नाज़ अपनी माँ से बोली।
तब फ़रीदा ने मनोज से कहा, “अरे सर... नाज़ चुदवाने के लिये तैयार है... आप अपना लंड जल्दी से नाज़ की चूत में पेल दो!” मनोज ने फिर नाज़ को ठीक से लिटा कर उसकी चूत और अपने लौड़े पे अच्छी तरह से पॉंड्स कोल्ड क्रीम लगाई और अपना लंड नाज़ की चूत के ऊपर रख दिया।
जैसे ही मनोज ने अपना लंड नाज़ की चूत के अंदर दबाया तो नाज़ चिल्ला पड़ी, “हाय! अम्मी मुझे बचाओ, मैं मरी जा रही हूँऊँऊँ। हाय! मेरी चूत फटी जा रही है। सर अपना लंड मेरी चूत से निकाल लो प्लीज़!”
फ़रीदा तब मेरे लंड को अपनी चूत से निकाल कर नाज़ के पास पहुँच गयी और उसके चूँची को दबाते हुए बोली, “बस नाज़ बस, अभी तेरी तकलीफ़ दूर हो जायेगी! बस थोड़ा सा बर्दाश्त कर। तेरी यह पहली चुदाई तो है नहीं? मैं जानती हूँ सर का लंड बेहद बड़ा और मोटा है.... जब मैं इनसे पहली बार चुदी थी तो मेरी भी यही हालत हुई थी लेकिन ऐसे शानदार लंड से चुदवाना हर औरत को नसीब नहीं होता! अभी सर तुझे चोद-चोद कर इस कद्र मज़ा देंगे कि दिवानी हो जायेगी तू सर के लौड़े की!” यह कह कर फ़रीदा नाज़ की चूचियों को चूसने लगी।
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थोड़ी देर के बाद फ़रीदा ने अपनी बेटी की चूत को दोनों हाथों से लंड खाने के लिये फ़ैला दिया और मनोज से कहा, “सर लीजिये... मैंने नाज़ की चूत को फ़ैला दिया है... अब आप अपना लंड धीरे-धीरे नाज़ की चूत में डालो और इसको मज़ा दो!” फिर मनोज ने अपना सुपाड़ा फिर से नाज़ की चूत के ऊपर रखा और धीरे से उसको अंदर कर दिया। नाज़ फिर से चिल्लाने लगी लेकिन उसकी बात ना सुनते हुए मनोज ने एक जोरदार धक्का मारा और उसका लंड नाज़ की चूत में घुस गया। नाज़ एक चींख मार कर बेहोश सी हो गयी। फ़रीदा नाज़ की चूँची को जोर-जोर मसलने लगी। मनोज यह सब ना देखते हुए अपनी रफ़्तार से नाज़ की चूत में अपना लंड पेले जा रहा था। थोड़ी देर के बाद नाज़ ने आँखें खोली और अपनी मम्मी से कहने लगी, “हाय! अम्मी बहुत दर्द कर रहा है और मज़ा भी आ रहा है!” यह सुन कर फ़रीदा बोली, “बस अब थोड़ी ही देर में तेरा सब दर्द दूर हो जायेगा और तुझे मज़ा ही मज़ा आयेगा!”
मैंने जब देखा कि नाज़ अब मज़े ले लेकर मनोज का लंड अपनी चूत में लील रही है, तब मैंने भी फ़रीदा के पीछे से जाकर फ़रीदा की चूत में अपना लंड फिर से घुसा दिया और अपनी रफ़्तार से फ़रीदा को चोदने लगा। यह देख कर नाज़ बोली, “हाय! अम्मी तुम्हारी चूत में भी अमित का लंड घुसा हुआ है और तुम मज़े से चुदवा रही हो। अब मुझे भी मज़ा आ रहा है।” अब नाज़ ने अपनी टाँगें उठा कर मनोज की कमर में अपने पैर फंसा लिये और नीचे से अपने चूत्तड़ उठा-उठा कर मनोज के हर धक्के का जवाब देने लगी। मनोज भी नाज़ की दोनों चूँचियों को पकड़ कर उसकी चूत में अपना लंड हचक-हचक कर डाल रहा था। अब दोनों माँ और बेटी को चुदाई का मज़ा आ रहा था और दोनों जोर-जोर से चोदने को कह रही थीं। मैं अपना लुंड फ़रीदा की चूत में जोर-जोर से अंदर बाहर कर रहा था और दोनों हाथों से उसकी चूँचियाँ मल रहा था। फ़रीदा भी अपना चेहरा घुमा कर मुझको चुम्मा दे रही थी। थोड़ी देर इस तरह मैं और मनोज फ़रीदा और नाज़ को चोदते रहे और फिर उनकी चूत में अपना लंड ठाँस कर झड़ गये। हम लोगों के सथ ही माँ और बेटी भी झड़ गयीं।
जब हम लोगों ने अपना लंड माँ और बेटी की चूतों से निकाला तो दोनों ने अपनी-अपनी चूत रुमाल से पोंछी। मैं और मनोज आमने-सामने की सीट पर बैठ गये और तब फ़रीदा भी मेरे पास बैठ गयी और मेरे लंड को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। मनोज उठ कर बाथरूम चला गया तो नाज़ भी मेरे पास आ कर अपनी मम्मी से मेरा लंड छीन कर चूसने लगी और मेरा हाथ पकड़ कर अपनी चूँची से लगा दिया। मैं भी नाज़ की चूँचियाँ मसलने लगा। थोड़ी देर के बाद मनोज कूपे में आया तो देखा कि नाज़ मेरे लंड को मुँह में ले कर चूस रही है और फ़रीदा मेरे से लिपटी हुए अपनी बेटी को देख रही है। मनोज यह देख कर बोला, “अरे फ़रीदा, तुम्हारी बेटी है बहुत मस्त चीज़। नाज़ की चूत चोदने में मुझे बहुत मज़ा आया। अब तुम भी कुछ अपनी बेटी से सीखो, चलो आओ और मेरे लंड को चूस-चूस कर खड़ा करो । अब मैं तुम्हारी गाँड में अपना लंड पेलुँगा!”
यह सुन कर फ़रीदा पहले मुस्कुरायी और फिर मनोज के पास जा कर बैठ गयी। फरीदा बोली, “सर इजाज़त हो तो पहले एक पैग और पी लूँ... तब आपका लंड गाँड में लेने में ज्यादा मज़ा आयेगा!” मनोज हंसते हुए बोला, “ठीक है! सिर्फ़ एक पैग और ज़रा जल्दी करो...!” फ़रीदा ने गिलास में व्हिस्की डाली और नीट ही गटागट पी गयी! उसके बाद मनोज ने फ़रीदा के चेहरे को अपने लंड तक झुका दिया और अपना लंड फ़रीदा के मुँह से लगा दिया। फ़रीदा अपनी जीभ निकाल कर मनोज का लंड चाटने लगी। थोड़ी देर के बाद नाज़ ने अपने मुँह से मेरा लंड निकाला और फिर अपनी मम्मी से पुछा, “अम्मी सर का लंड गाँड में लेने से तुम्हें दर्द नहीं होगा?”
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फ़रीदा बोली, “नहीं नाज़... मुझे तो बेहद मज़ा आता हैं गाँड मरवाने में... तू भी अमित से कह कि वो अपना लंड तेरी गाँड में डाले!”
“नहीं बाबा, मुझे डर लग रहा है। मैंने पहले कभी गाँड नहीं मरवायी। पहले से ही मेरी चूत सर ने फाड़ रखी है और अब मैं अपनी गाँड अमित से नहीं फड़वाऊँगी!” नाज़ ने अपनी अम्मी से कहा तो फ़रीदा बोली, “अरे पगली! पहली मर्तबा शुरूआत में थोड़ा दर्द होगा लेकिन फिर मज़ा आयेगा! तू भी एक तगड़ा सा पैग मार ले फिर दर्द का एहसास भी कम होगा और मज़ा भी आयेगा!”
फ़रीदा ने खुद ही अपनी बेटी के लिये गिलास में व्हिस्की डाल कर उसे दी। फ़रीदा की आवाज़ और हावभाव से स्पष्ट था कि वो शराब के नशे में मदहोश थी। नाज़ अपनी अम्मी से शराब का गिलास लेकर उसी की तरह गटागट पी गयी। उसके बाद भी वो हिचकिचा रही थी तो मैंने नाज़ की चूँची को मसलते हुए कहा, “ठीक है नाज़ मेरी जान... मैं पहले तुम्हारी चूत चोदुँगा और अगर तुम चाहो तो बाद में मैं तुम्हारी गाँड मारूँगा!”
अब मैंने नाज़ को सीट से उठा कर सीट के सहारे खड़ा कर दिया और उसका हाथ सीट के किनारे से पकड़ा दिया। मैं फिर नाज़ के पीछे जाकर उसकी चूत, जो कि पीछे से बाहर निकल आयी थी, अपनी जीभ से चूसने लगा। नाज़ मारे गर्मी के अपनी कमर आगे-पीछे कर रही थी। मैं अपने एक हाथ से नाज़ की चूँचियाँ मसलने लगा। थोड़ी देर के बाद मैंने अपना लंड नाज़ की चूत पर रखा और धक्का मार कर उसको अंदर कर दिया। लंड अंदर जाते ही नाज़ हाय-हाय करने लगी लेकिन मैं उसको धीरे-धीरे चोदने लगा। नाज़ कहने लगी, “हाय! बेहद अच्छा लग रहा है, तुम जरा जोर से अपना लंड अंदर बाहर पेलो। मेरे चूत में बेहद खुजली हो रही है। अब तुम जोर-जोर से चोदो मुझे!”
इतना सुनते ही मैं नाज़ पर पिल पड़ा और उसे जोर-जोर से चोदने लगा और अपनी एक अँगुली में थूक लगा कर उसकी गाँड के छेद में घुसा कर घुमाने लगा। उधर मनोज भी फ़रीदा को सीट के सहारे झुका कर खड़ा कर के उसकी गाँड में अपना लंड पेल चुका था। फ़रीदा अपना सैंडल वाला एक पैर उठा कर सीट पर रखा हुआ था और अपनी कमर हिला-हिला कर अपनी गाँड मनोज से मरवा रही थी और बोल रही थी, “देख नाज़... देख कैसे सर का लंड मेरी गाँड में घुस कर मेरी गाँड चोद रहा है। सच कह रही हूँ... मुझे गाँड चुदवाने में बड़ा मज़ा आ रहा है। अब तू भी अमित से अपनी गाँड मरवा ले!”
“नहीं अम्मी, मुझे पहले अपनी चूत चुदवानी है। अमित से चूत चुदवाने में बेहद मज़ा आ रहा है मुझे! मैं बाद में अपनी गाँड में लंड पिलवाऊँगी। तुम अब मज़े से अपनी गाँड चुदवाओ,” नाज़ अपनी अम्मी से बोली। मैं उसकी इस तरह खुल्लम खुल्ला बात सुन कर बहुत खुश हुआ और उसकी चूत चोदता रहा। थोड़ी देर के बाद नाज़ बोली, “अमित मुझे अपनी अम्मी के पास जाना है। तुम ऐसे ही चोदते-चोदते मुझे अम्मी के करीब ले चलो!” मैंने भी अपना लंड निकाले बगैर नाज़ को अपनी बाहों में भर लिया और फ़रीदा के पास ले गया।
नाज़ अपनी अम्मी के पास पहुँचते ही फ़रीदा की चूंची को अपने मुँह में भर कर चूसने लगी और अपने हाथों को फ़रीदा की चूत पर रख दिया। फिर वो बोली, “अम्मी जब जब अब्बू तुमको चोदते थे... मैं छुप-छुप कर देखती थी और अपने चूत में उंगली किया करती थी और सोचती थी कि एक दिन मैं तुम्हारे करीब बैठ कर तुम्हारी चूत की चुदाई देखुँगी। आज अल्लाह ने मेरी सुन ली और मैं तुम्हारे करीब खड़ी-खड़ी अपनी चूत में लंड चुदवाते हुए तुम्हें भी चुदते हुए देख रही हूँ!” यह कह कर नाज़ अपनी अम्मी की चूत सहलाने लगी।
हम लोगों ने अपने बिस्तर जमीन पर बिछा दिये और फिर फ़रीदा और नाज़ को साथ-साथ लिटा कर मैंने और मनोज ने उनकी चूत और गाँड खूब जम कर मारी। एक बार तो मैं फ़रीदा की गाँड मार रहा था और फ़रीदा नाज़ की चूत अपनी जीभ से चूस रही थी और मनोज अपना लंड नाज़ के मुँह में डाल कर चुसवा रहा था। फ़रीदा और नाज़ दोनों अपनी चूत और गाँड हम लोगों से मरवा कर बहुत खुश थीं और लौटने का प्रोग्राम भी हमने साथ-साथ बना डाला। यहाँ तक कि फ़रीदा ने अपने घर का पता और फोन नंबर भी मुझे दे दिया और बोली कि “दिल्ली लौट कर हमारे यहाँ जरूर आईयेगा... वहाँ मेरी सहेलियाँ भी होंगी जो कि अपनी चूत और गाँड तुमसे चुदवा कर खुश होंगी!”
इस तरह मैंने और मनोज ने अपने सफ़र का पूरा समय उन माँ और बेटी को चोदते हुए बिताया।
!! समाप्त !!
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26-07-2023, 01:01 AM
(This post was last modified: 26-07-2023, 01:17 AM by rohitkapoor. Edited 5 times in total. Edited 5 times in total.)
दोहरी ज़िंदगी
© तबस्सुम अख़्तर
करीब तीन साल पहले मैं अठाइस साल की ही थी जब मेरे शौहर की सड़क हादसे में मौत हो गयी। तब हम दिल्ली में रहते थे। उसके दो-तीन महीने बाद दिल्ली का मकान किराये पे दे कर मैं मेरठ से थोड़ी दूर अपने पेरन्ट्स के साथ आकर रहने लगी। मैं अच्छे खानदान से हूँ और पैसे की कोई कमी नहीं है। मेरे वालिद की शुगर-मिल है और वो मुक़ामी पॉलिटिशन भी हैं। मैं शुरू से ही ऐशो-आराम में पली बड़ी हुई हूँ... बोर्डिंग कॉलेज में पढ़ी और फिर दिल्ली के नामी कॉलेज से बी-ए और फिर बी-एड किया था। आज़ाद ख्यालात की की होने के बावजूद मैं काफी अच्छे इखलाक़ वाली तहज़ीब यफ़ता और परहेज़गार थी।
अपने पेरन्ट्स के यहाँ आकर मैंने वक़्त गुज़ारने के लिये अलीगढ़ युनिवर्सिटी से कॉरस्पान्डन्स से इंगलिश में एम-ए करना शुरू किया। मुझे यहाँ आये हुए दो-तीन महीने ही हुए थे कि मेरे अब्बा के एक दोस्त ने उनके कॉलेज में इंगलिश पढ़ाने की ऑफर दी। मेरठ के पास उनका एक बड़ा प्राइवेट कॉलेज था। ये कॉलेज बारहवीं क्लास तक था और मैं कम क्वालिफिकेशन होने पर भी बारहवीं क्लास तक इंगलिश पढ़ाने लगी। इसकी दो वजह थी। एक तो मैं शुरू से ही इंगलिश मीडियम में पढ़ी थी और बी-ए भी इंगलिश में ही किया था। दूसरी ये कि कॉलेज भी मेरे अब्बा के दोस्त का था और उन्हें कोई और काबिल टीचर मिल भी नहीं रहा था।
कॉलेज में तमाम स्टाफ़ को मालूम था कि मैं कॉलेज के मालिक के करीबी पहचान की हूँ और मुक़ामी पॉलिटिशन की बेटी हूँ... जिस वजह से कॉलेज में मेरा काफ़ी रुतबा था। मैं बहुत ही स्ट्रिक्ट टीचर थी और कॉलेज के ज्यादा बिगड़े हुए और नालायक काम-चोर लड़कों की पिटायी भी कर देती थी। इसलिये सब स्टूडेंट्स मुझसे डरते थे। कुछ ही हफ़्तों में मैं कॉलेज की डिसप्लिन इंचार्ज और स्टूडेंट काउन्सलर भी बन गयी थी और मुझे अपना छोटा सा ऑफ़िस भी मिल गया था। प्रिंसपल मैडम कॉलेज के तमाम इंतेज़ामी मुआमलातों में भी मुझे शामिल करने लगीं ।
कॉलेज मेरे घर से करीब पच्चीस किलोमिटर था। शुरू में दो-तीन हफ़्ते मैं खुद कार ड्राइव करके जाती थी लेकिन फिर मैं कॉलेज की बस से ही जाने लगी। हमारे रूट की कॉलेज की बस हमेशा खचाखच भरी होती थी लेकिन टीचरों को और छोटे बच्चों को हमेशा बैठने की जगह मिलती थी और बड़े स्टूडेंट्स खड़े होकर जाते थे।
![[Image: IMG-0395.jpg]](https://i.ibb.co/H48H3GH/IMG-0395.jpg)
सब कुछ बखूबी चल रहा था। पर एक दिन छुट्टी के बाद घर जाते वक़्त मैंने देखा कि बारहवीं क्लॉस की एक लड़की रोने जैसा चेहरा लिये हुए बस से उतरी और उसकी सहेली उसके कान में कह रही थी, “सुहाना तू घबरा मत... कल हम इंगलिश वाली तबस्सुम मैम से बात करेंगे... वो उन्हें अच्छा सबक सिखायेंगी!” मुझे बात कुछ समझ में नहीं आयी लेकिन मैंने सोचा कि अगले दिन जब ये मुझसे बात करेंगी तब खुद-ब-खुद पता चल जायेगा। कॉलेज की सभी बड़ी लड़कियाँ कभी-कभी अकेले में अपने कईं मसले अक्सर मेरे साथ डिस्कस करती थीं। इसकी वजह शायद ये थी कि बाकी टीचरों के मुकाबले मैं काफी यंग थी। बारहवीं क्लॉस की लड़के-लड़कियों से तो उम्र में मैं सिर्फ़ दस-ग्यारह साल ही बड़ी थी। इसके अलवा बारहवीं के कुछ चार-पाँच लड़कों और दो-तीन लड़कियों से तो मैं सिर्फ़ आठ-नौ साल ही बड़ी थी क्योंकि वो पहले किसी ना किसी क्लॉस में कमज़-कम दो-दो दफ़ा फेल हो चुके थे।
खैर अगले दिन मैं जब कॉलेज पहुँची तो मैं इंतज़ार कर रही थी कि कब वो लड़कियाँ आ कर मुझे अपना मसला बतायें और मैं उसे हल कर सकूँ। वैसे वो दोनों लड़्कियाँ भी उन फेल होने वाले लडके-लड़कियों में से एक थीं और कॉलेज की सबसे बड़ी लड़कियाँ थीं। उनकी उम्र करीब बीस-इक्कीस साल होगी। एक दिन बीता... दो दिन बीते, फिर पूरा हफ़्ता बीत गया पर उन्होंने मुझसे कोई बात नहीं की और मैं भी उसे भूल गयी। फिर एक दिन अचानक उसी दिन की तरह वो लड़की इस दफ़ा रोते हुए बस से उतरी। बल्कि बाकी टीचरें भी उसकी सहेलियों से पूछने लगी कि इसे क्या हुआ। इस पर उसकी सहेली ने कहा, “मैम इसका सर बहुत ज़ोर से दर्द कर रहा है!”
उन टीचरों के लिये बात वहीं दब गयी लेकिन मुझे इस बात पर यकीन नहीं हुआ क्योंकि दोनों काफी दबंग किस्म की लड़कियाँ थीं थीं और इतनी ज़रा सी बात पे रोने वाली लड़कियाँ नहीं थीं। इसलिये मैंने अगले दिन खुद सुहाना और उसकी सहेली फ़ातिमा को खाली पीरियड में अपने कमरे में बुलाया और उससे पूछा कि प्रॉब्लम क्या है। वो बोली, “कुछ नहीं तबस़्सुम मैम... सब ठीक है!”
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“मुझसे झूठ मत बोलो”, मैंने कहा, “उस दिन भी मैंने तुम्हें इसी तरह बस से रोते हुए उतरते देखा था और फ़ातिमा तुम्हें कह रही थी कि हम कल तबस़्सुम़ मैम को ये बात बतायेंगे और वो उनकी खबर लेंगी! मुझसे छुपाओ मत और खुल के बताओ कि प्रॉब्लम क्या है?”
इस पर सुहाना फूट-फूट कर रोने लगी। तब फ़ातिमा बोली, “त़बस्सुम मैम मैं आपको बताती हूँ कि प्रॉब्लम क्या है। आप तो जानती हैं कि हमारी बस में कितनी भीड़ होती है और हमें पीछे खड़े हो कर जाना पड़ता है!”
“हाँ! हाँ!” मैंने कहा।
“तो मैम प्रॉब्लम ये है कि पिछले एक महीने से वो हमारी क्लॉस के मुस्टंडे... वो बास्केटबॉल प्लेयर्स... वो फेल्यर्स... हमें बस में रोज़ तंग करते हैं। हम लड़कियों का उन्होंने बस में सफ़र करना मुश्किल कर दिया है! कभी तो वो हमारे लोअर बैक में उंगली डालते हैं तो कभी हमारी ब्रेस्ट पर चुँटी काटते हैं! कल तो उन्होंने हद ही कर दी। कल उन चारों ने हमें कस कर पीछे से पकड़ लिया और ज़ोर से हमारी ब्रेस्ट्स मसल दी!” वो बोली।
“क्या उनकी ये हिम्मत! मैं आज ही उनकी शिकायत प्रिंसपल से करती हूँ और खुद भी उनकी अच्छी पिटाई करुँगी... और ये सब तुमने पहले क्यों नहीं बताया... और बाकी लड़कियों ने इसकी शिकायत क्यों नहीं की?” मैं बोली।
“नहीं-नहीं त़बस्सुम मैम... आप प्लीज़ ये बात किसी से ना कहियेगा वरना सब हम पर हसेंगे और हमारी कॉलेज में बदनामी होगी और मज़ाक बनेगा। आप चाहें तो उनकी पिटाई कर दीजिये पर ये बात आप उनसे भी ना कहियेगा कि हमने बताया है वरना वो हमें और तंग करेंगे या फिर बदनाम करेंगे!” वो बोली।
“ठीक है, मैं देख लूँगी!” मैंने कहा। उस दिन उस क्लॉस में जाते ही मैंने उन चारों को खड़ा कर लिया और बिना कुछ बताये उनको जमकर थप्पड़ लगाये कि मेरे हाथ दुखने लगे और उनके गालों पर मेरे थप्पड़ों की वजह से निशान पड़ गये। जब उन्होंने पूछा कि “अख़तर मैम आप हमें क्यों मार रही हैं?” तो मैंने कहा, “तुम्हें बस में सफ़र करने की तमीज़ सिखा रही हूँ!” और वो चारों सिर झुका कर खड़े हो गये।
उस वाकिये के बाद कुछ दिन तक सब ठीक रहा, लेकिन एक दिन फिर वो लड़कियाँ मेरे पास आयी तो मैंने उनसे पूछा, “अब क्या हुआ... अब तुम किस बात पर परेशान हो? क्या वो तुम्हें अभी भी तंग करते हैं?”
इस पर वो मुझे बोलीं, “त़बस्सूम मैम आपने जब उनकी पिटाई की थी तो कुछ दिन तक सब ठीक रहा लेकिन पिछले दो दिन से वो फिर से हमें तंग कर रहे हैं!”
“लगता है अब प्रिंसपल से बात करनी ही पड़ेगी।” मैं बोली।
“प्लीज़ प्लीज़ तबस्सुम मैम आप प्रिंसपल से कुछ मत कहियेगा... ये बात अगर फ़ैल गयी तो हमारा मज़ाक उड़ेगा! हमारा कॉलेज आना मुश्किल हो जायेगा!” वो गिड़गिड़ायीं।
“तो ठीक है... आज मैं तुम लोगों के साथ बस में खड़ी रहुँगी। अगर उन्होंने कुछ किया तो में उनकी वहीं पिटाई करूँगी!” मैंने गुस्से में तमतमाते हुए कहा।
उस दिन मैंने क्लॉस में फिर उन चारों की पढ़ाई और होमवर्क ना करने के बहाने से पिटाई की और छुट्टी के बाद बस में लड़कियों के साथ पीछे खड़ी हो गयी। जब मेरी साथी टीचरों ने पूछा तो मैंने कहा कि मैं स्टूडेंट्स के साथ मिक्स-अप होने की कोशिश कर रही हूँ ताकि ये मुझसे इतना ज़्यादा ना डरें। उस दिन सब ठीक रहा। मैं उनके साथ तीन-चार दिन बस में खड़े हो कर सफ़र करती रही। वो चार बदमाश हमारे पीछे ही खड़े रहते थे लेकिन उनमें से किसी की हिम्मत नहीं हुई कि कुछ कर सकें। फिर कुछ दिन बाद मैं फिर आगे बैठने लगी। दो ही दिन बाद वो लड़कियाँ फिर मेरे पास वही शिकायत ले कर आ गयीं। उस दिन मैं फिर पीछे खड़ी हो कर सफ़र करने लगी।
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दो-एक दिन तक सब ठीक था लेकिन फिर एक दिन अचानक मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने कोई चीज़ मेरे पीछे मेरे चूतड़ों के बीच घुसा दी हो। मैं एक दम काँप गयी। मेरा पूरा जिस्म ठंडा पड़ गया। मेरे शौहर को गुज़रे हुए सात-आठ महीने हुए थे और इस दौरान मैंने अपनी जिस्मनी ख्वाहिशों को बिल्कुल दबा कर रखा था। कभी-कभार रात को अपनी उंगलियों से अगर खुद-लज़्ज़ती कर भी लेती थी तो तसव्वुर हमेशा अपने मरहूम शौहर का ही होता था। मैं बेहद पाक और नेक तरबियत वाली औरत थी। वैसे तो मैं गोरी-चिट्टी बेहद खूबसूरत और स्लिम और सैक्सी हूँ और अपने शौहर के साथ बेहद एक्टिव और अच्छी सैक्स लाईफ़ थी मेरी। लेकिन मेरे शौहर के अलावा किसी गैर-मर्द ने मुझे कभी छुआ तक नहीं था और ना ही मैंने कभी उनके अलावा किसी को ऐसी नज़र से देखा था।
लेकिन उस पल मुझे जैसे बिजली का झटका लगा। इतने महीनों में पहली मर्तबा मैंने किसी को अपने जिस्म के एक नाज़ुक हिस्से के अंदर शरारत करते हुए महसूस किया था। मेरी टाँगें कमज़ोर हो गयीं और हाई हील सैंडल में मेरा बैलेंस बिगड़ने लगा। एक लम्हे के लिये मेरे होश उड़ गये... चेहरे का रंग एक दम फ़ीका पड़ गया... गला सूख गया... मैं लड़खड़ा कर गिरने लगी लेकिन फिर बस की सीट पर लगे हैंडल को पकड़ कर अपने आप को संभाला। मेरे हाथ काँप रहे थे। उन लड़कियों ने पूछा, “तवस्सुम मैम आप ठीक तो हैं?”
“हाँ मैं ठीक हूँ”, मैंने कहा लेकिन मेरे चेहरे के उतरे रंग को देख कर मेरी साथी टीचरों ने जब यही सवाल मुझसे पूछा तो मैंने कहा कि शायद मुझे बुखार हो रहा है। उस दिन रात को देर तक मुझे नींद नहीं आयी। पूरी रात मुझे अपने चूतड़ों के बीच वो चीज़ सरकती महसूस होती रही। उस एहसास ने मेरे अंदर दबी हुई चिंगारी को जैसे हवा दे दी थी। मैंने उस रात करीब तीन मर्तबा अपनी उंगलियों से मैस्टरबेशन किया। मैं अगले दो दिन कॉलेज भी नहीं गयी और बिमार होने का बहाना कर दिया।
जिस दिन मैं कॉलेज गयी भी तो उस दिन बस में मैं आगे अपनी सीट पर जा कर चुपचाप बैठ गयी। वो लड़कियाँ उतरे से चेहरे के साथ मेरी जानिब देखती रही। मुझे टीचरों ने भी पूछा, “आज आपने स्टूडेंट्स के साथ खड़े नहीं होना क्या? क्या बात है? सब ठीक तो है ना तब्बू मैम?” सब टीचर्स मुझे त़ब्बू कह कर बुलाती थीं।
“सब ठीक है... बस थोड़ी वीकनेस लग रही है”, मैंने बहाना किया। अगले दिन वो लड़कियाँ फिर मेरे पास आयी और मुझसे बोली, “तबस्सुम मैम आपको क्या हुआ? मैम जब आप हमारे साथ खड़ी नहीं होती हैं तो वो लोग हमें फिर तंग करना शुरू कर देते हैं! मैम आप प्लीज़ हमारे साथ पीछे खड़ी हो जाया कीजिये... प्लीज़!”
मैंने कहा, “अच्छा ठीक है!” और वो चली गयी लेकिन मैं पूरा दिन टेंशन में रही और उस दिन का वाक़या याद करती रही। छुट्टी के बाद किसी तरह हिम्मत जुटा कर मैं पीछे जा कर खड़ी हो गयी। तकरीबन पूरा सफ़र आराम से कट गया और मैं भी इत्मिनान से हो गयी थी लेकिन मेरा स्टॉप आने से तीन-चार मिनट पहले ही किसी ने फिर पीछे से मेरे चूतड़ों में हाथ दे दिया और इस दफ़ा अच्छी तरह एक झटके में मेरे चूतड़ों के बीचों-बीच नीचे से सरकाते हुए ऊपर तक ले गया। मैं एक दम से पीछे पलटी तो सभी लड़के इधर-उधर देख रहे थे और मुझे पता भी नहीं चला कि ये किसने किया है। सुहाना और फ़ातिमा भी मेरे साथ ही खड़ी थीं। उन्होंने पूछा, “तब़स्सुम़ मैम सब ठीक है ना?” उन लड़कियों के पूछने के अंदाज़ में मुझे फ़िक्र की बजाय तंज़ महसूस हुआ और ऐसा लगा जैसे कि उन्हें पता था कि मेरे साथ किसी ने क्या हरकत की है। “हाँ!” मैंने जवाब दिया।
उस रात भी मैं ठीक से सो नहीं पायी। आज भी उन लड़कों की हरकत ने मेरे अंदर दबी हुई जिस्मानी हसरतें भड़का दी थी जो मैं बिल्कुल नहीं चाहती थी। ये मेरे तहज़िबे-इख्लाक़ के खिलाफ़ था लेकिन अपने जिस्म में उठती मीठी सी सनसनाहट मुझे कमज़ोर कर रही थी। अपनी अजीब सी जिस्मानी और ज़हनी हालत के लिये मुझे उन लड़कों पे बेहद गुस्सा आ रहा था। अगले दिन क्लॉस में जाते ही मैंने जानबूझ कर उन चारों से इंगलिश के ऐसे मुश्किल सवाल पूछे जिनका मुझे पता था कि वो नालायक जवाब नहीं दे सकेंगे और इस बहाने से उनकी खूब पिटाई की। उस दिन शाम को बस में चढ़ते ही जब लड़कियों ने मुझे पीछे बुलाया तो मैं कॉन्फिडेंस के साथ उन लड़कों को घूरती हुई पीछे जा कर खड़ी हो गयी। अब इतनी पिटाई होने के बाद भला वो क्यों नहीं सुधरेंगे। लेकिन बस चलने के थोड़ी देर बाद ही किसी ने मेरे चूतड़ों में फिर हाथ दे दिया। जब मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो इस बार चारों ने मेरी आँखों में देखा और मुस्कुरा पड़े। मैं आगे देखने लगी।
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26-07-2023, 01:20 AM
(This post was last modified: 27-07-2023, 04:32 AM by rohitkapoor. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
उन चारों में से दो लड़कों की उम्र तो करीब बीस साल होगी और चारों थे भी हट्टे-कट्टे। मेरी हाइट पाँच फुट पाँच इंच है और ऊपर से मैं हमेशा चार से पाँच इंच ऊँची पेन्सिल हाई हील की सैंडल ही पहनती हूँ तो भी मैं उनमें से सबसे बिगड़े लड़के कुल्दीप के कंधे तक ही पहुँचती थी जबकी सैंडल पहन के बाकी तीनों के करीब-करीब बराबर पहुँचती थी।
खैर कुछ पल बाद उन्होंने फिर मेरे चूतड़ों में हाथ दिया तो इस दफ़ा मैं थोड़ा सरक कर आगे हो गयी। उन्होंने फिर मेरे चूतड़ों हाथ दिया तो मैं थोड़ा और आगे सरक गयी। ऐसा चार-पाँच दफ़ा हुआ। आज भी पूरी रात मुझे अपने चूतड़ों में उनके हाथ ही महसूस होते रहे और मैंने तीन-चार मर्तबा मैस्टरबेट किया। मुझे बेहद शर्मिंदगी और गुनाह का एहसास हो रहा था। फ्रस्ट्रेशन और गुस्से में अगले दिन मैंने फिर किसी बहाने से उनकी पिटाई कर दी और क्लास के बाहर खड़ा कर दिया। शाम को बस में उस दिन उन्होंने मुझे छुआ भी नहीं।
मैं बहुत खुश थी लेकिन तीन दिन बाद ही फिर बस में उन्होंने अचानक मेरी गाँड में हाथ डाला तो मैं चिहुँक कर झटके से थोड़ा आगे सरक गयी जिस से बस के मटैलिक फर्श पे मेरे हील वाले सैंडल के ज़ोर से बजने की आवाज़ भी हुई। हर रोज़ की तरह सुह़ाना और फ़ातिमा बारहवी क्लास की कुछ और लड़कियों के साथ मेरे पास ही खड़ी थी। फ़ातिमा ने मुस्कुराते हुए पूछा कि मुझे क्या हुआ तो मैंने कहा कि “कुछ नहीं... बस खड़े-खड़े पैर सो गया था!” लेकिन अब मुझे गुस्सा आ गया था और मैंने ठान लिया कि अबकी बार मैं आगे नहीं सरकुँगी और देखती हूँ इनमें कितनी हिम्मत है। आखिर कब तक ये ऐसे ही उंगली देते रहेंगे। इस मर्तबा जब फिर से मेरे चूतड़ों में किसी ने हाथ दिया तो मैं वहाँ से नहीं हिली। उसने दो-तीन दफ़ा फिर हाथ दिया तो भी मैं नहीं हिली। इस बार उसने हाथ मेरे चूतड़ों के बीच डाल कर वहाँ टिका कर ही रख लिया। मैंने भी अपनी रानें जोड़ कर चूतड़ों के बीच उसके हाथ को दबा लिया। कुछ देर तक ना वो हिला और ना मैं। जब मैंने गर्दन घुमा कर पीछे देखा तो उनमें से सब से ज्यादा बिगड़ा लड़का मेरे पीछे खड़ा था। मेरे पीछे गर्दन घुमाने पर भी उसने हाथ नहीं हटाया बल्कि उसे मेरी टाँगों के बीच सरकाता हुआ आगे मेरी चूत तक ले गया और सलवार के ऊपर से उसे मसलने लगा। मेरे चेहरे का रंग उड़ गया। मेरी तो हालत खराब हो गयी और मेरी टाँगें काँपने लगीं। मेरी आँखें बंद हो गयीं और मेरे पेट में बल सा पड़ा और मेरी चूत ने धड़धड़ाते हुए पानी छोड़ दिया। बड़ी मुश्किल से अपने होंठ दबाते हुए मैंने अपने मुँह से सिसकारियाँ निकलने से रोकीं। पहली मर्तबा इस तरह मैं पब्लिक प्लेस में झड़ी थी और वो भी स्टूडेंट्स से भरी हुई बस में। सच कहुँ तो मुझे बेहद अच्छा लगा और मेरे चेहरे का रंग तो ठीक हो गया लेकिन मेरी चूत ने इतना पानी छोड़ा था कि मेरी रानों के गिर्द सलवार बिल्कुल गीली हो गयी थी।
घर पहुँच कर बार-बार बस का सीन मेरे ज़हन में घूमता रहा। रात को बेडरूम लॉक करके मैं सारे कपड़े उतार के बिल्कुल नंगी हो गयी और वही सीन याद करते हुए दो दफ़ा अपनी चूत को उंगलियों से सहलाते हुए झड़ी। फिर भी जब चैन नहीं पड़ा तो ज़िंदगी में पहली दफ़ा गाजर चूत में घुसेड़ कर मैस्टरबेट किया। इससे पहले सिर्फ़ उंगलियों से ही मैस्टरबेट किया था। बाद में ऐसे ही नंगी सो गयी लेकिन ख्वाब में भी मुझे वही बस में उस लड़के का बार-बार मेरी चूत और गाँड को रगड़ना और सहलाना ही याद आया और मैं सोते हुए भी अपनी चूत सहलाती रही। सुबह जब उठी तो मेरे हाथ टाँगों के बीच में चूत पे ही मौजूद थे।
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बेहद मज़ेदार कहानियाँ हैं! शेयर करने के लिए शुक्रिया! अभी सिर्फ़ पहली चार ही पढ़ी है और मज़ा आ गया पढ़ कर! सलाम!
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Looks like you have come back with a bang….
Mast story shuru ki hai Rohit bro… please continue posting log updates regularly
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(26-07-2023, 02:50 AM)ZareenK Wrote: बेहद मज़ेदार कहानियाँ हैं! शेयर करने के लिए शुक्रिया! अभी सिर्फ़ पहली चार ही पढ़ी है और मज़ा आ गया पढ़ कर! सलाम!
धन्यवाद
कृपया बाकी कहानियो का भी मज़ा लें और अपनी प्रतिक्रिया दें!
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27-07-2023, 04:24 AM
(This post was last modified: 27-07-2023, 04:47 AM by rohitkapoor. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
अगले दिन क्लास में जब वो लड़के फिर से होमवर्क करके नहीं लाये तो पहली दफ़ा ना चाहते हुए भी मैंने उनकी पिटाई की क्योंकि शायद मैं ये जताना चाहती थी कि पिछले दिन बस में हुए वाकिये के बावजूद मेरा इख़्तियार बरकरार है। टीचर हूँ इसलिये रौब रखना भी ज़रूरी है... लेकिन मुझे दिल में बेहद अफ़सोस महसूस हुआ। उस दिन बस में उनके करीब खड़ी थी लेकिन जब उन्होंने मुझे नहीं छुआ तो थोड़ी मायूसी हुई। लेकिन पता नहीं क्यों अब पहली बार मैं चाहती थी कि वो मुझे छुयें... मेरे चूतड़ों के बीच में हाथ डालें... मेरी चूत को सहलायें। इसी उम्मीद में मैं बस में पीछे उनके पास जाकर खड़ी होती लेकिन अगले दो-तीन दिन भी मेरे साथ ऐसी कोई हरकत नहीं की और उसके बाद फिर चार-पाँच दिन तो वो कॉलेज ही नहीं आये। मैं तड़प कर रह जाती और मायूस हो कर अपने स्टॉप पे उतर जाती। वो लड़के मेरे दिलो-दिमाग में बस से गये थे और ये हालत हो गयी थी कि रोज़ रात को उनके बारे में सोच-सोच कर बार-बार अपनी चूत सहलाती और गाजर से मैस्टरबेट करती। कॉलेज में भी कईं दफ़ा उनका ख्याल आ जाता तो चूत गीली हो जाती और फिर अपने ऑफिस या टॉयलेट में जा कर खुद-लज़्ज़ती करती। मुझे पोर्नोग्राफी से नफ़रत थी लेकिन एक रात को मैंने पहली दफ़ा अपने लैपटॉप पे पोर्न-वेबसाईट तक खोल ली। इससे पहले मैंने कभी गंदी तस्वीरें या ब्लू-फिल्म नहीं देखी थी लेकिन उस रात और फिर अगली दो-तीन रातें मैंने घंटों तक अलग-अलग तरह की चुदाई की क्लिप्स का मज़ा लिया। मेरे जिस्म में हवस की आग इस कदर भड़क गयी थी कि मेरे सारे इख़लाक़ और नेक तर्बियत उसमें जल कर ख़ाक हो रहे थे और कुछ ही दिनों में मेरी फ़ितरत और चाल-चलन में किस कदर बेइंतेहा तब्दीली आ गयी थी।
![[Image: IMG-1009.jpg]](https://i.ibb.co/GRLQ7kc/IMG-1009.jpg)
फिर एक दिन काफी बारिश हो रही थी और कॉलेज में बच्चे भी कम आये थे तो कॉलेज में जल्दी छुट्टी हो गयी। उस दिन बस में भीड़ नहीं थी। मैं आसानी से कहीं भी खड़ी हो सकती थी लेकिन खुश नसीबी से मुझे वो लड़के पीछे खड़े नज़र आये तो मैं पीछे उन ही लड़कों के पास जा कर खड़ी हो गयी क्योंकि मैं तो दिल में ये ही चाहती थी कि वो मुझे छुयें। हमेशा की तरह सुहाना और फ़ातिमा भी वहीं मौजूद थीं। मुझे पूरा शक हो गया था कि वो दोनों भी जानती थी कि लड़के मेरे साथ क्या फ़ाहिश हरकतें करते हैं।
बस में भीड़ ना होने की वजह से वो मुझसे थोड़ा पीछे खड़े थे। लेकिन बस चलने के थोड़ी देर बाद ही वो मेरे नज़दीक आ गये। बारिश की वजह से हाईवे पे काफी ट्रैफिक था और बस धीरे-धीरे चल रही थी। मैं मोबाइल फोन पे किसी से बात करने में मसरूफ थी कि अचानक मुझे महसूस हुआ कि कोई लड़का एक दम मेरे साथ चिपक कर खड़ा हो गया हो। मैंने फोन कॉल बंद करते हुए पीछे देखा तो वो बोला, “अखतर मैम आप ज्यादा पीछे आ गयी हैं... थोड़ा आगे सरक सकती हैं!” उस लम्हे मैंने गौर किया कि दर असल मैं ही फोन पे बात करते हुए पीछे उन लड़कों तक सरक गयी थी। इसके अलावा मैंने देखा कि सुहाना और फ़ातिमा भी उनमें से दो लडकों से बिल्कुल चिपक के खड़ी थीं। मैंने उन लड़कियों की जानिब देखा तो वो मेरी जानिब देखते हुए मुस्कुराने लगीं। तब मुझे एहसास हुआ कि हक़िकत में वो दोनों भी इन लड़कों से मिली हुई हैं और खुद उनसे उंगली करवा के मज़े लेती हैं।
मैं भी झेंप कर थोड़ा सा आगे सरक गयी तो वो सब भी आगे सरक आये और एक लड़के ने हल्के से मेरी गाँड में हाथ दे दिया। मैं तो खुद इसी इंतज़ार में थी इतने दिन से और इस बार मैं भी थोड़ा पीछे सरक गयी ताकि उसका हाथ अच्छी तरह से मेरी टाँगों के बीच में घुस जाये। मैंने अपनी रानों को थोड़ा-थोड़ा खोला और फिर बंद किया तो उस लड़के ने एक हाथ मेरी टाँगों के बीच में घुसा दिया और दूसरा हाथ वो मेरे चूतड़ों पे फेरने लगा। मुझे बेहद मज़ा आ रहा था। मेरी तरफ़ से कोई मुखालफ़त ना देख कर शायद मेरी नियत का भी अंदाज़ा हो गया था। फिर उसने मेरे कान में कहा, “तब़्बू मैम अगले स्टॉप पर पीछे की सीट खाली हो रही है... आप मेरे और मेरे दोस्त के बीच मैं बैठ जायें... बाकी दोनों लड़के और ये लड़कियाँ आगे अपनी हो जायेंगे ताकि किसी को आगे से पता ना चले!”
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27-07-2023, 04:25 AM
(This post was last modified: 27-07-2023, 04:42 AM by rohitkapoor. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
मैं कुछ नहीं बोली। ये लड़के हमेशा मुझे अख़्तर या तबस़्सुम़ मैम कह कर बुलाते थे लेकिन आज बाकी स्टॉफ की तरह तब्बू मैम कह कर उस लड़के ने मुझसे बात करी। मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था और चूत गिली हो चुकी थी। बारिश की हल्की सी ठंडक मेरे जिस्म की गर्मी में और इज़ाफ़ा कर रही थी। हवस ने मुझे इतना अंधा कर दिया था कि अगर वो वहीं मुझे नंगी करके चोदना भी शुरू कर देते तो शायद मैं उन्हें मना नहीं करती। उस वक़्त मुझे अपनी इज़्ज़त-आबरू... हैसियत और सोसायटी में रुसवाई या बदनामी... किसी बात की ज़रा सी भी परवाह नहीं थी। मैंने देखा कि वो दोनों लड़कियाँ असल में मजे से दूसरे दो लड़कों का हाथ अपनी कॉलेज युनीफॉर्म की ट्यूनिक के अंदर अपनी टाँगों के बीच में ले रही थी। वो मेरी जानिब देख कर बेहयाई से मुस्कुराने लगीं। तब मेरे पीछे वाले लड़के ने मेरे कान में कहा, “ये दोनों तो अक्सर हम चारों चुदती हैं... तब्बु मैम आप इनकी परवाह ना कीजिये... इनका काम अब पूरा हो गया... अब इन्हें अगले संडे मजे से चोदेंगे... आज आपका नम्बर है!”
मैं उसकी हिम्मत पे हैरान थी कि किस तरह खुल कर गंदे लफ़्ज़ों में वो अपनी टीचर के साथ चुदाई की बातें कर रहा था। उसकी गंदी बातें सुनकर मेरा चेहरा शर्म से लाल हो गया लेकिन मुझे ज़रा भी बुरा नहीं लगा। मैं कुछ नही बोली और चुप रही। मैं तो खुद अपनी हवस की आग में अंधी हो गयी थी और अपनी इज़्ज़त लुटाने के लिये खुद ही तड़प रही थी। अगले स्टॉप पर पीछे वाली सीट खाली हुई तो मेरे पीछे वाला लड़का दायीं तरफ़ बैठ गया और मैं चुपचाप उसके बगल में बैठ गयी। दूसरा लड़का मेरी बांयी तरफ़ बैठ गया। बाकी दोनों लड़के और वो लड़कियाँ हमारे आगे खड़ी हो गयीं। बस चलने लगी तो मेरी बगल वाले लड़कों को जैसे खुली छूट मिल गयी मेरे साथ खेलने की... मेरे खज़ाने लूटने की।
दायीं तरफ़ वाले लड़के ने एक बाँह मेरे सर के पीछे सीट पर पसार दी और दूसरे हाथ को मेरी नरम और हवस की वजह से गरम दाहिनी रान पर रख दिया और उसे सहलाने लगा। बांयी तरफ़ वाला लड़का मेरी बांयी रान को सहलाने लगा। मेरी साँसें एक दम से और तेज़ और गरम हो गयीं और मेरा सर हल्का-हल्का महसूस होने लगा। मैं मदहोश सी हो गयी थी। मैंने आँखें बंद कर लीं। दोनों लड़कों ने अपने हाथ मेरी रानों पर ऊपर की जानिब सरकाये और मेरी कमीज़ के पल्ले के नीचे से सरकाते हुए मेरे पेट की तरफ़ बढ़ा दिये। तभी एक लड़के ने अपने हाथ को मेरी रानों के बीच मेरी चूत की जानिब सरकाने की कोशिश की तो मेरे मुँह से हल्की सी सिसकरी छूट गयी और मैंने अपनी दोनों टाँगों को ज़ोर से आपस में जोड़ लिया और अपने हाथों से उन लड़कों के हाथों को पकड़ लिया और मेरे मुँह से ज़ोर से एक साँस अटकती हुई निकली। इस पर मेरी दांयी तरफ़ वाले लड़के ने अपने होंठों को मेरे होंठों पर रख कर ज़ोर से से चूम लिया और मेरे होंठ चूसने लगा।
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28-07-2023, 05:40 PM
(This post was last modified: 28-07-2023, 05:40 PM by ShakirAli. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
Behad mazedaar update…. Waiting for next
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29-07-2023, 12:09 AM
(This post was last modified: 29-07-2023, 12:10 AM by ZareenK. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
(31-12-2021, 12:09 AM)rohitkapoor Wrote: प्रमोशन की मजबूरी
लेखक: दीनू
मेरी उम्र छब्बीस साल है और मैं सरकारी दफ़्तर में ऑडिटिंग ऑफिसर हूँ और हमारे दफ़्तर की शाखायें पूरे देश में हैं और अक्सर मुझे काम के सिलसिले में दूसरे शहरों की शाखाओं में दो-तीन महीनों के लिये जाना पड़ता है। मैं शादीशुदा नहीं हूँ इसलिये मुझे इसमें कोई दिक्कत नहीं होती है।
एक बार मुझे काम के सिलसिले में तीन महीने के लिये लखनऊ शाखा जाना पड़ा। वहाँ के दफ़्तर में मेरी सहकरमी ‘रूबिना’ थी जो कि सीनियर क्लर्क थी। उसकी उम्र बत्तीस-तेत्तीस साल की थी और उसकी शादी को आठ साल हुए थे। उसके शौहर बहरीन में दो साल से सर्विस कर रहे थे। रूबिना बेहद खूबसूरत थी और उसका फिगर ३६-३०-३८ था। उसका भरा-भरा सा जिस्म बेहद सुडौल था और मैं तो उसके चूतड़ों पर बहुत फिदा था। वो जब ऊँची हील की सेंडल पहन कर चलती थी तो गाँड मटका-मटका कर चलती थी। रुबिना काफी बनठन कर दफ्तर आती थी। एक महीने में ही काम के दरमियाँ काफी घुलमिल गयी थी। वो मुझे ‘सर’ कह कर बुलाती थी क्योंकि वो मुझसे जुनियर थी। मैं भी उम्र में उससे छः-सात साल छोटा होने की वजह से उसे ‘रूबीना जी’ कह कर बुलाता Thanks Rohit for sharing this story and Cheers to you Deenu for this scorching hot narrative of your experience with Rubina. I also commend Rubina for taking the lead and embracing her desires unapologetically. This scintillating tale of bold Rubina confidently seducing you for her promotion set my heart racing ad my senses on fire! Being a liberated and swinging Mus1im woman myself, who shares the similar background as Rubina, I felt an electric connection to this story's passionate moments. The hot sex scenes between you and Rubina ignited a whirlwind of emotions and sensation in me and it's no surprise that I couldn't help but masturbating and coming several times while reading this electrifying hot story.
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Waiting for the update bhai
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31-07-2023, 03:03 AM
(This post was last modified: 31-07-2023, 03:03 AM by ShakirAli. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
Update please
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