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“आप मेरी गोद में बैठ जाना… मैं स्टियरिंग कंट्रोल करूँगा और आप गेयर कंट्रोल करना… मेरे डैडी ने भी मुझे ऐसे ही ड्राइविंग सिखायी थी।”
“लेकिन कोई हमें देखेगा तो कैसा लगेगा?”
“मैडम इस वक्त यहाँ कोई नहीं आयेगा... और वैसे भी आपकी कार में यह शीशों पर फ़िल्म लगी है जिससे अंदर का कुछ भी बाहर से दिखाई नहीं देता। सो डोंट वरी, नो वन कैन सी व्हॉट इज़ गोइंग आन इन साइड।”
“चलो ठीक है!”
फिर मैं ड्राइवर सीट पर बैठा और मैडम मेरी गोद में। जैसे ही मैडम मेरी गोद में बैठी, मेरे बदन में करंट सा दौड़ गया। हम दोनों का यह पहला स्पर्श था। मैंने कार स्टार्ट करी।
“रैडी मैडम?”
“हाँ... मुझे सिर्फ़ गेयर ही सम्भालने हैं ना?”
“येस मैडम। आज के दिन आप सिर्फ़ गेयर ही सीखो”
कार चलनी शुरू हुई। क्योंकि मेरे हाथ स्टियरिंग पर थे और मैडम मेरी गोद में, इसलिए मेरी बाहें मैडम की चूचियों की साईड से छू रही थी और मैडम की चूचियाँ थी भी काफ़ी बड़ी। वोह थोड़ा अनकम्फर्टेबल फ़ील कर रही थीं और इसलिए वो मेरी जाँघों पे न बैठ के मेरे घुटनों के पास बैठी थी। जैसे ही मैं कार को टर्न करता तो मैडम की पूरी चूचियाँ मेरी बाहों को छूती थी। मैडम गेयर सही बदल रही थीं।
“क्यों सुमित... ठीक कर रही हूँ ना?”
“परफैक्ट मैडम! अब आप थोड़ा स्टियरिंग भी कंट्रोल कीजिए!”
“ओके!”
क्योंकि मैडम मेरी गोद में काफ़ी आगे होकर बैठी थीं इसलिए स्टियरिंग कंट्रोल करने में उन्हें प्रॉब्लम हो रही थी।
“मैडम... आप थोड़ी पीछे खिसक जाईये... तभी स्टियरिंग सही कंट्रोल हो पायेगा।”
अब मैडम मेरी जाँघों पे बैठ गयी और हाथ स्टियरिंग पर रख लिये।
“मैडम! थोड़ा और पीछे हो जाईये!”
“और कितना पीछे होना पड़ेगा?”
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“जितना हो सकती हों”
“ठीक है।” अब मैडम पूरी तरह से मेरे लौड़े पर बैठी थी। मैंने अपने हाथ मैडम के हाथों पर रख दिये और स्टियरिंग कंट्रोल करना सिखाने लगा। जब भी कार टर्न होती तो मैडम के चुत्तड़ मेरे लौड़े में धँस जाते। मैडम की चूचियाँ इतनी बड़ी थी कि वो मेरे हाथों को छू रही थी। मैं जान बूझ कर उनकी चूचियों को टच करता रहा।
“मैडम अब एक्सलरेटर भी आप संभालिये!”
“कहीं कार फिर से आउट आफ़ कंट्रोल ना हो जाये…!”
“मैडम अब तो मैं बैठा हूँ ना”
मैडम ने फिर से पूरा एक्सलरेटर दबा दिया तो कार ने एक दम स्पीड पकड़ ली। इस पर मैंने एक दम से ब्रेक लगा दी तो कार एक दम से रुक गयी। मैडम को झटका लगा तो वो स्टियरिंग में घुसने लगी। इस पर मैंने मैडम की चूचियों को अपने हाथों में पकड़ कर मैडम को स्टियरिंग में घुसने से बचा लिया। कार रुक गयी थी और मैडम की चूचियाँ मेरे हाथों में थी।
मैडम बोली, “मैंने कहा था ना कि मैं फिर कुछ गलती करूँगी”
“कोई बात नहीं। कम से कम गेयर तो बदलना सीख लिया।” मैडम की चूचियाँ अभी भी मेरे हाथ में थीं।
“शायद मुझे स्टियरिंग संभालना कभी नहीं आयेगा”
“एक बार और ट्राई कर लेते हैं!”
“ठीक है!”
मुझे एहसास दिलाने के लिये कि मेरे हाथ उनकी चूचियों पर हैं, मैडम ने चूचियों को हल्का सा झटका दिया तो मैंने अपने हाथ वहाँ से हटा लिये। मैंने कार फिर से स्टार्ट करी। मैडम ने अपने हाथ स्टियरिंग पर रख लिये और मैंने अपने हाथ मैडम के हाथों पर रख दिये।
“मैडम एक्सलरेटर मैं ही संभालुँगा... आप सिर्फ़ स्टियरिंग ही संभालिये!”
“यही मैं कहने वाली थी!”
कुछ देर तक मैडम को स्टियरिंग में हेल्प करने के बाद मैं बोला, “मैडम अब मैं स्टियरिंग से हाथ उठा रहा हूँ... आप अकेले ही संभालिये।”
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“ओके...अब मुझे थोड़ा कॉनफिडैंस आ रहा है... लेकिन तुम अपने हाथ रैडी रखना कहीं कार फिर से आउट आफ कंट्रोल हो जाये।”
“मैडम मेरे हाथ हमेशा रैडी रहते हैं।”
“सुमित मुझे कस के पकड़ना... कहीं ब्रेक मारने पर मैं स्टियरिंग में ना घुस जाऊँ!”
“येस मैडम मैं कस के पकड़ता हूँ।”
मैंने अपने हाथ स्टियरिंग से उठा कर मैडम की चूचियों पर रख दिये। मैं तो मैडम से डाँट की उम्मीद कर रहा था लेकिन मैडम ने कुछ ना कहा। मैंने तब मैडम की चूचियों को दबा दिया तो उनके के मुँह से आह निकल गयी।
“सुमित... मेरे ख्याल से आज इतना सीखना ही काफ़ी है। चलो अब घर चलते हैं!”
“ओके मैडम।” मैडम मेरी गोद से उठ कर अपनी सीट पर बैठ गयी और हम मैडम के घर चल दिये।
“ओके मैडम... मैं चलता हूँ!”
“खाना खाके जाना!”
“नहीं मैडम… मैंने मम्मी को कहा था कि खाने के टाईम तक घर पर आ जाऊँगा”
“ठीक है... तो कल १० बजे आओगे ना?”
“येस मैडम... आफ़ कोर्स!”
मैं अगले दिन भी पूरे १० बजे पहुँच गया। आज भी मैडम काफी खूबसूरत लग रही थीं। उन्होंने ने आज पीकॉक ब्लू कलर की सिल्क की सलवार कमीज़ पहनी हुई थी और उनके सफ़ेद कलर के हाई हील सैंडल काफ़ी मैच कर रहे थे। मैडम ने आज बहुत ही अच्छा परफ़्यूम लगा रखा था। पढ़ने के बाद हम फिर से कार सीखने उसी ग्राऊँड में आ गये।
“तो सुमित आज कहाँ से शुरू करेंगे?”
“मैडम मेरे ख्याल से आप पहले स्टियरिंग में परफ़ेक्ट हो जाइये। उसके बाद और कुछ करेंगे!”
“ठीक है। कल जैसे ही बैठना है?”
“येस मैडम”।
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मैडम आज सीधे आकर मेरे लौड़े पर बैठ गयी। आज मैडम की सलवार थोड़ी टाईट थी और मैडम के चूत्तड़ों से चिपकी हुई थी। हमने कार चलानी शुरू की। मैडम ने अपने हाथ स्टियरिंग पर रख लिये। मैंने अपने हाथ मैडम के हाथों पर रख लिये। आज मैडम के चूत्तड़ मेरे लौड़े पर बार-बार हिल रहे थे। कुछ देर बाद मैंने कहा, “मैडम... अब मैं अपने हाथ स्टियरिंग से हटा रहा हूँ!”
“हाँ... अपने हाथ स्टियरिंग से हटा लो… पर मुझे कस के पकड़ के रखना… कहीं कल की तरह स्टियरिंग मे घुस ना जाऊँ?”
“मैडम... आप बिल्कुल फ़िक्र ना करें… मैं हूँ ना!” मैंने हाथ स्टियरिंग से उठा कर मैडम को पकड़ने के बहाने उनकी चूचियों पर रख दिये। और वाह... मज़ा आ गया। मैडम ने आज ब्रा नहीं पहनी थी। इसलिए आज मैडम की चूचियाँ बड़ी सॉफ़्ट और माँसल लग रही थी। मैंने मैडम की चूचियों को धीरे-धीरे दबाना शुरू कर दिया। मैडम की सिल्क की कमीज़ में उनकी चूचियों को दबाने में बड़ा मज़ा आ रहा था। मैडम ने भी तब अपनी टाँगें चौड़ी कर लीं और अब उनकी बुर मेरे लौड़े पर थी। उनकी इस हरकत से मैंने साहस करके अपना एक हाथ मैडम की कमीज़ में डाला और मैडम की एक चूची को दबाने लगा। और आश्चर्य कि उन्होंने कुछ नहीं कहा।
“मैडम... मज़ा आ रहा है?”
“आहहह...ऊँ... किसमे?”
“कार चलाने में…!”
“हाँ... कार चलाने में भी मज़ा आ रहा है!”
“मैडम... अब आपको स्टियरिंग संभालना आ गया!”
“हुम्म!!”
अब मैंने अपना दूसरा हाथ भी मैडम की कमीज़ में डाल दिया और दोनों चूचियों को दबाने लगा।
“आआहह...हह... सुमित तुम... आहह... यह क्या कर रहे हो?”
“मैडम... आपको कार सीखा रहा हूँ!”
“तुम्हें मेरे साथ ऐसा नहीं करना चाहिये... और वैसे भी मैं तो शादी-शुदा औरत हूँ, और मेरे २ बच्चे भी हैं... मुझ में तुम्हें क्या अच्छा लगेगा?”
“मैडम आपकी एक-एक चीज़ अच्छी है”
“सुमित मैं थोड़ा थक गयी हूँ। पहले तुम कार रोक लो... आगे जा कर थोड़ी झाड़ियाँ हैं... कार वहाँ ले चलो…!”
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मैंने कार झाड़ियों में ले जा कर रोक ली और हम कार से बाहर आ गये।
“बस थोड़ी देर आराम कर लेते हैं... हाँ तो सुमित इस शादी-शुदा और २ बच्चों की अम्मी मे तुमको क्या अच्छा लगता है?”
“मैडम... एक बात बोलूँ?”
“हाँ बोलो!”
“मैडम... आपका ड्रेसिंग सैंस बहुत अच्छा है और आपके खरबुजे बहुत अच्छे हैं”
“क्या?? खरबुजे? मैं क्या कोई पेड़-पौधा हूँ जो मुझ में खरबूजे हों?”
“मैडम यह वाले खरबुजे” मैंने मैडम की चूचियों को दबाते हुए कहा।
“आहह। उहहह।”
“मैडम आपके तरबूज भी बहुत अच्छे हैं”
“क्या... तरबूज? मुझ में तरबूज कहाँ हैं” वोह हँसते हुए बोलीं।
“मैडम... मेरा मतलब आपके चूत्तड़” और मैंने उनकी गाँड पर अपना हाथ रख दिया।
“झूठ!! मेरे चौड़े और मोटे चूत्तड़ क्या तुम्हें अच्छे लगते हैं?” यह कह कर मैडम मेरी तरफ़ पीछे मुड़ गयीं और अपनी सलवार नीचे कर दी। मैडम ने पैंटी नहीं पहनी हुई थी।
“देखो ना... कितने बड़े हैं मेरे चूत्तड़!”
मैं तो देखता ही रह गया। मैडम के चूत्तड़ मेरे मुँह के पास थे। मैं मैडम के चूत्तड़ों पर हाथ फेरने लगा।
“मैडम मुझे तो ऐसे ही चूत्तड़ अच्छे लगते हैं। गोरे-गोरे और बड़े-बड़े... मैडम... आपके चूत्तड़ों की महक बहुत अच्छी है।” यह कह कर मैं मैडम के चूत्तड़ों पर किस करने लगा। मैं मैडम के चूत्तड़ों के बीच की दरार में जीभ मारने लगा।
“ओह... ऊऊऊऊ.... सुमित यह क्या कर रहे हो?”
“मैडम... मुझे तरबूज बहुत अच्छे लगते हैं!”
“आहहह... और क्या अच्छा लगता है तुम्हें!”
“च्युईंग गम!!!”
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“क्या... च्युईंग गम? वो कौन सा पार्ट है?”
जवाब में मैं मैडम की चूत दबाने लगा।
“ऊहह... आह... आह... सुमित... च्युईंग गम को दबाते नहीं हैं!!”
“मैडम... इस पोज़िशन से मैं च्युईंग गम को च्यू नहीं कर सकता!”
“सुमित... कार की पिछली सीट पे च्युईंग गम च्यू की जा सकती है!!!”
“यहाँ कार के बाहर क्यों नहीं मैडम?”
“क्योंकि कोई देख भी सकता है!”
फिर हम दोनों कार मे घुस गये और पिछली सीट पर आ गये। मैडम ने टाँगें खोल ली और आपनी चूत पे हाथ रख कर बोली, “सुमित... यह रही तुम्हारी च्युईंग गम!”
मैं मैडम की चूत चाटने लगा। मैडम सीट पे लेटी हुई थी। मेरी जीभ मैडम की चूत पे और मेरे हाथ उनकी चूचियों को दबा रहे थे। मैं करीब १० मिनट तक मैडम की चूत को जीभ से चाटता रहा।
“सुमित... क्या तुम्हारी पेंसिल शार्पेंड है?”
“क्या मतलब?”
“बेवकूफ़... मेरे पास शार्पनर है और पेंसिल तुम्हारे पास है...!”
“येस मैडम... मेरी पेंसिल को शार्प कर दीजिए!”
“लेकिन पहले तुम अपनी पेंसिल दिखाओ तो!”
मैंने अपनी जींस उतार दी। मैंने अंडरवीयर नहीं पहना था। मैं अपना लौड़ा मैडम के मुँह के पास ले गया तो मैडम ने जल्दी से उसे अपने मुँह में ले लिया। कुछ देर तक मैडम मेरा लौड़ा चूसती रहीं। फिर बोलीं, “सुमित... तुम्हारी पेंसिल काफ़ी अच्छी क्वालिटी की है!”
“मैडम… क्या आपका शार्पनर भी अच्छी क्वालिटी का है?”
“यह तो पेंसिल शार्प होने पर ही पता चलेगा!”
“तो मैडम कर लूँ अपनी पेंसिल शार्प?”
“येस्स्स्स... सुमित... जस्ट डू इट... फ़क मी... येस फ़क मी हार्ड... चोदो मुझे... स्क्रू मी...!”
मैंने अपना लौड़ा मैडम की चूत में डाल दिया और धक्के देने लगा।
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“ओहह... सुमित... माय डार्लिंग... तुम्हारी पेंसिल मेरे शार्पनर के लिये बिल्कुल फिट है.... आआआआहहह.... वेरी गुड लगे रहो.... ऐसे ही धक्के मारते रहो... सुमित... मेरे खरबूजों को ना भूलो... इन्हें तुम्हारे हाथों की सख्त ज़रूरत है!”
“मैडम... आहह... आपकी चूत मारने में बहुत मज़ा आ रहा है!”
“आआहहहह... सुमित... अपनी मैडम के खर्बूजों को तो खाओ!”
फिर मैं धक्के देने के साथ-साथ मैडम के निप्पलों को मुँह में लेकर चूसने लगा।
“आआआआईईईईईई.... सुमित... और तेज... तेज... जोर-जोर से धक्के मारो... आज अच्छी तरह ले लो मेरी चूत… स्पीड बढ़ाओ!!!”
मैंने तेज-तेज धक्के मारने शुरू कर दिए। करीब १५ मिनट बाद मैडम बोलीं, “आआआआ... ओहह... सुमित.... तेज.... मैं आने वाली हूँ…” और हम दोनों एक साथ ही झड़े।
“आआआआआ.... आआहह... आई लव यू सुमित... मज़ा आ गया!”
“येस मैडम... आपका शार्पनर गज़ब का है!”
“तुम्हारी पेंसिल भी कमाल की है।”
“मैडम, क्या मैं अपनी पेंसिल आपके शार्पनर से फिर एक बार शार्प का सकता हूँ?”
“श्योर... लेकिन बाकी का काम घर चल कर... और फिर अभी तो मुझे कार सीखने में कुछ दिन और लगेंगे!”
तब हमने अपने कपड़े ठीक किये और अचानक मैडम ने कार का दरवाजा खोला और ड्राईविंग सीट पर बैठ गईं। उन्होंने बड़ी दक्षता से कार स्टार्ट की और देखते ही देखते कार हवा से बातें करने लगी। शहर की घुमावदार सड़कों से होती हुई कार कुछ ही समय में मैडम के घर के सामने थी। इस दौरान मेरे मुख से कोई बोल नहीं फूटे बल्कि मैं हक्का-बक्का सा मैडम को कार ड्राईव करते देखता रहा।
“सुमित आओ... कुछ देर बैठते हैं… तुम काफ़ी थक भी गये हो। चाय नाशता कर के जाना।”
“पर मैडम आप तो कार चलाने में पूरी एक्सपर्ट हैं।”
“अरे अब अंदर भी तो आओ। या यहीं बाहर खड़े ही सब पूछते रहोगे?”
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मैडम के एसा कहने पर हम दोनों घर में आये। मैडम किचन में गयीं और जल्दी ही दो प्याली चाय के बना लायीं। साथ में कुछ बिसकुट और स्नैक्स भी थे। मैडम ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा, “हाँ तो तुमने कहा कि मैं एक्सपर्ट हूँ पर तुम्हें भी तो एक्सपर्ट करना था। जब तुम मुझसे ट्यूशन पड़ने आये तो मैंने देखा की तुम्हारी नज़र खरबूजों और तरबूजों पर ज्यादा है। जब तक तुम्हारी नज़र इन पर ज्यादा रहती तुम ईंग्लिश में एक्सपर्ट नहीं हो सकते थे। तो मैंने सोचा पहले मैं तुम्हें इनका स्वाद चखा दूँ।”
“मैडम आप सच्ची गुरू हैं जो शिष्य का इतना खयाल रखती हैं।”
मैडम हँसती हुई उठीं और मुझे अपने पीछे-पीछे अपने बेडरूम में ले गयीं।
“हूँ तो तुम क्या कह रहे थे। तुम्हें तरबूजों का बहुत शौक है ना। अच्छा सुमित एक बात बता... तुम्हें मेरे तरबूज कैसे लगते हैं?” एसा कहते-कहते मैडम ने मेरी तरफ़ अपने भारी चुत्तड़ कर दिए और अपनी एक हथेली चुत्तड़ पर जमा कर थोड़ा सा झुकीं। मैडम की इस अदा ने मेरे तन-बदन में आग लगा दी।
“मैडम सही कहूँ तो आप जैसे तरबूज मैंने और किसी के नहीं देखे।”
“मेरे सामने ही मेरी गाँड की तारीफ कर रहे हो और मैडम भी बोल रहे हो… मेरा नाम नसीफा है!”
“वोह तो मैडम मैं जानता हूँ... पर मैं आपका नाम कैसे ले सकता हूँ!”
“मेरी चूत में अपना लौड़ा डाल सकते हो। मेरी गाँड मारना चाहते हो पर नाम नहीं ले सकते। तुम्हारा यही भोलापन तो मुझे भा गया। तभी तो मैंने तुम्हें अपनी च्यूईंग-गम चखाई। अब हो सकता है तरबूज भी चखा दूँ। पर इसके लिये मैडम नहीं चलेगा!”
“अच्छा तो नसीफा जी… आप के तरबूजों को चखने के लिये तो मैं कुछ भी करने को या कहने को तैयार हूँ!”
“तो ठीक है तुम मुझे एक रंडी की तरह ट्रीट करो… और खयाल रखना जितना खुल कर तुम मेरे साथ पेश आओगे उतना ही खुल कर मैं तुम्हें इन तरबूजों का मजा चखाऊँगी!”
एसा कह कर नसीफा मैडम ने मुझे अपने हाथों से उसे नंगी करने को कहा। मुझे तो मन की मुराद मिल गयी। मैंने धीरे-धीरे उनकी कमीज़ और सलवार उतारी और अब वोह मेरे सामने सिर्फ़ सफ़ेद कलर के हाई हील सैंडल पहने बिल्कुल मादरजात नंगी खड़ी थी। फिर देखते ही देखते उन्होंने मुझे भी पूरा नंगा कर दिया।
फिर वोह डबल बेड पर कुत्तिया की तरह चोपाया बनी। उन्होंने अपना चेहरा एक तकिये में दबा लिया और अपनी विशाल गाँड हवा में ऊँची कर दी।
“सुमित लो अब मेरी गाँड अच्छी तरह से देखो, इसको सहलाओ, इसको प्यार करो!”
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“वाह नसीफा मैडम तुम्हें मान गया। तुम केवल ईंग्लिश की टीचर ही नहीं हो, बल्कि पूरी ईंग्लिश सैक्स की भी टीचर हो!” ऐसा कह कर मैं उनकी गाँड पर हाथ फेरने लगा। बीच-बीच में मैं उनकी गाँड के छेद को भी खोद रहा था।
“अरे भोसड़ी के गाँडू! केवल गाँड को देखता ही रहेगा या और कुछ भी करेगा? ठीक से देख यह तेरी अम्मी की गाँड नहीं है। घर मैं जब तेरी अम्मी गाँड मटकाती है तो ऐसी ही लगती है क्या?”
“अरी छिनाल नसीफा! मेरी मम्मी की क्या बात पूछती है... मैं मादरचोद नहीं हूँ… समझी??? पर लगता है तेरा पती एक भड़वा है… तभी तो तेरे जैसी छिनाल को घर में अकेली छोड़ कर पंद्रह - पंद्रह दिन के लिये बाहर चला जाता है। आज मैं तेरी इस मस्त गाँड को फाड़ के रख दूँगा!”
“हाय मेरे सुमित मेरे दिलबर! यही तो मैं तेरी ज़ुबान से सुनना चाहती हूँ। अब पहले मेरी गाँड को थोड़ी चिकनी तो कर ले!”
उनके ऐसा कहते ही मैंने उनकी गाँड के गोल छेद पर अपनी जीभ रख दी। कुछ ही देर में उनकी गाँड खुलने लगी और मैं उसकी गाँड अपनी जीभ से मारने लगा।
“ओहहह..... मरीईईईई..... हाय इसी तरह और पेल… अपनी पूरी जीभ अपनी टीचर की गाँड में घुसा दे… और ठेल.... पेल!!!”
कुछ देर मैं उनकी गाँड अपनी जीभ से चोदता रहा। फिर मैंने अपना लंड जो अब तक तन्ना कर लोहे की रॉड बन चुका था, उनके मुख के पास लाया और उनके मुख में पेलने लगा। नसीफा मैडम भी मेरे लंड को अपने मुख में पूरा का पूरा लेकर चूसने लगी। साथ में वोह मेरे लंड को थूक से भी तर कर रही थी। उन्हें पता था कि मैं अब उनकी गाँड मारने वाला हूँ इसलिए जितना हो सके उतना वो उसे चीकना बना रही थी जिससे उन्हें गाँड मरवाने में कम दर्द हो।
अब मैं उनके पीछे आ चुका था। उनकी गाँड अपनी पूर्ण छटा के साथ हवा में उठी मेरे लंड को आमंत्रण दे रही थी। मैंने अपने लंड का सुपाड़ा उनकी गाँड पर टेका। फिर दोनों हाथों से मैं उनकी गाँड जितना चीर सकता था उतनी चीरी और कस कर एक करारा शॉट लगाया। मेरा आधा लंड एक ही बार में उनकी गाँड में ठँस गया था।
इस हमले के लिये शायद वो तैयार नहीं थी।
“अरे हरामी यह क्या कर दिया… किसी की गाँड ऐसे मारी जाती है? कम से कम कुछ देर वहाँ लंड रगड़ता, बात करता, बताता कि गाँड मैं लंड डालने जा रहा हूँ… और तू साला ऐसा है कि एक ही बार में मूसल की तरह ठोक दिया। क्या तेरा बाप तेरी अम्मी की ऐसे ही मारता है? बाहर निकाल…! बहुत दर्द हो रहा है! मैं कितने चाव से तुझसे गाँड मरवाने वाली थी… तूने एक ही बार में बर्बाद कर दिया!”
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“साली नसीफा! पहले तो बड़ी अकड़ रही थी। मैंने तो पहले ही कहा था आज मैं तेरी गाँड फाड़ के रहुँगा । अभी तो केवल आधा गया है। अब मैं पूरा डालने वाला हूँ!” ऐसा कह कर मैंने पहले से भी तगड़ा एक शॉट और मारा और इस बार मेरा लंड उनकी गाँड में जड़ तक समा गया।
“अरे मादरचोद, मुझ पर से नीचे उतर… ना तो तुझसे से कार सीखनी, ना तुझसे चुदवाना, ना तुझे ईंग्लिश पढ़ाना… अरे मर गयीईईईई..... साले तूने मेरी गाँड फा....आआआ....ड़ दी!”
इधर नसीफा मैडम बड़बड़ाए जा रही थी और मैं धीरे धीरे लंड हिलाता उनकी गाँड में लंड के लिये जगह बना रहा था। कुछ ही देर में मेर लंड आसानी से उनकी गाँड में अंदर बाहर होने लगा। अब उन्हें भी मज़ा आने लगा और वो अपने चूत्तड़ हिलाने लग गयी थी।
“हाँ इसी तरह… अब मज़ा आ रहा है। मेरी बात का मेरे दिलबर बूरा मत मानना। मैं जानती थी कि तुझसे गाँड मराने में मुझे बहुत मज़ा आयेगा तभी तो मैं तुझे घर लेके आयी। तेरी बातों से मुझे पता लग गया था कि तू गाँड का रसिया है। जब से तूने मेरे तरबूजों की तारीफ़ की तभी से मैं तुझसे गाँड मरवाने को तड़प उठी थी!”
“नसीफा रानी मेरी नज़र तो तेरी गाँड पर उस समय से है जब तू पहली बार क्लास लेने आयी थी। जब तू हाई हील के सैंडल पहन कर अपने बड़े-बड़े तरबूज जैसे चूत्तड़ मटकाती क्लास और कॉलेज में फिरती थी तौ मेरा लौड़ा तेरी गाँड में घुसने के के लिये तड़प जाता था… लेकिन इतनी जल्दी मेरा लंड तेरी गाँड में जड़ तक घुसा हुआ होगा इसकी उम्मीद नहीं थी… लेकिन जो हुआ अच्छा ही हुआ… लो अब मेरे लंड की ठाप सहो!”
ऐसा कह कर मैं बेतहाशा उनकी गाँड मारने लगा। नसीफा मैडम भी गाँड उठा-उठा कर मेरा साथ दे रही थी। करीब १० मिनट बाद मैंने ढेर सारा वीर्य उनकी गाँड में झाड़ दिया। जब मैंने लंड उनकी गाँड से निकाला तो उनकी गाँड से सफेद-सफेद मेरा वीर्य ज्वाला मुखी से लवा की तरह बाहर निकलने लगा।
जब तक नसीफा मैडम के हसबैंड और बच्चे वापस नहीं आ गये, मैं रोज उसके घर जाता रहा। मैं उसके घर जाते ही उसको पूरी नंगी कर देता था। वो नंगी ही घर के काम भी करती थी, मुझ से चुदवाती थी, गाँड मरवाती थी और ये सब करने के बाद मुझे ईंग्लिश भी पढ़ाती थी। बाद में कॉलेज की छुट्टियाँ खतम होने पर, कॉलेज में भी मौका देख कर कॉलेज में ही किसी जगह पर अपनी सलवार नीचे करके मुझसे अपनी गाँड या चूत मरवाने लगी।
****** समाप्त ********
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Bahut hi mazedar kahaniya hai…. Agli kahani ka intezar hai bhai…
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(26-12-2021, 06:46 PM)ShakirAli Wrote: Bahut hi mazedar kahaniya hai…. Agli kahani ka intezar hai bhai…
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31-12-2021, 12:09 AM
(This post was last modified: 28-04-2022, 01:30 AM by rohitkapoor. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
प्रमोशन की मजबूरी
लेखक: दीनू
मेरी उम्र छब्बीस साल है और मैं सरकारी दफ़्तर में ऑडिटिंग ऑफिसर हूँ और हमारे दफ़्तर की शाखायें पूरे देश में हैं और अक्सर मुझे काम के सिलसिले में दूसरे शहरों की शाखाओं में दो-तीन महीनों के लिये जाना पड़ता है। मैं शादीशुदा नहीं हूँ इसलिये मुझे इसमें कोई दिक्कत नहीं होती है।
एक बार मुझे काम के सिलसिले में तीन महीने के लिये लखनऊ शाखा जाना पड़ा। वहाँ के दफ़्तर में मेरी सहकरमी ‘रूबिना’ थी जो कि सीनियर क्लर्क थी। उसकी उम्र बत्तीस-तेत्तीस साल की थी और उसकी शादी को आठ साल हुए थे। उसके शौहर बहरीन में दो साल से सर्विस कर रहे थे। रूबिना बेहद खूबसूरत थी और उसका फिगर ३६-३०-३८ था। उसका भरा-भरा सा जिस्म बेहद सुडौल था और मैं तो उसके चूतड़ों पर बहुत फिदा था। वो जब ऊँची हील की सेंडल पहन कर चलती थी तो गाँड मटका-मटका कर चलती थी। रुबिना काफी बनठन कर दफ्तर आती थी। एक महीने में ही काम के दरमियाँ काफी घुलमिल गयी थी। वो मुझे ‘सर’ कह कर बुलाती थी क्योंकि वो मुझसे जुनियर थी। मैं भी उम्र में उससे छः-सात साल छोटा होने की वजह से उसे ‘रूबीना जी’ कह कर बुलाता था ।
एक बार बातों-बातों में उसने मुझसे रिक्वेस्ट की कि “सर! आप चाहें तो मेरा प्रमोशन हो सकता है... इसलिये आप हेड ऑफिस में मेरी सफारिश करेंगे तो मेरा प्रमोशन हो जायेगा और मैं इसके लिये कुछ दे भी सकती हूँ!” तब मैंने कहा, “आप क्या दे सकती हो?” तो वो कुटिल मुस्कान भरते हुए अदा के साथ बोली, “चाय पानी!” मैं भी हंस कर रह गया। उसके बाद से तो मैंने महसूस किया कि वो मुझे अजीब निगाहों से देखती थी और उसकी नज़रों में काम वासना की ललक नज़र आती थी। पहले मैं समझ नहीं सका कि वो ऐसे क्यों देखती है। फिर मुझे लगा कि या तो वो प्रमोशन के लिये ऐसा कर रही है या फिर दो साल से प्यासी होगी। रूबिना को देख केर अक्सर मेरा लण्ड भी पैंट में तंबू की तरह खड़ा हो जाता था।
एक दिन उसने मुझे डिनर के लिये अपने घर इन्वाइट किया। उस दिन शुक्रवार था तो ऑफिस से मैं उनके साथ ही उसके घर के लिये निकला। रास्ते में उसने व्हिस्की की बोतल खरीद ली और होटल में डिनर का ऑर्डर दे दिया। घर पहुँच कर उसने मुझे ड्राइंग रूम में बिठाया और खुद फ्रेश होने अंदर चली गयी। जब वो ऊँची हील की सैंडल खटखटाती हुई व्हिस्की की बोतल, सोडा, बर्फ और ग्लास वगैरह ले कर वापस आयी तो मैंने देखा कि रूबिना ने अपना मेक-अप दुरुस्त किया हुआ था और बदल कर दूसरा सलवार-सूट पहन लिया था।
उसने दो ग्लास में पैग बनाये तो मैंने चौंकते हुए पूछा, “रूबिना जी! आप भी ये शौक फरमाती हैं क्या?” वो अदा से हंसते हुए बोली, “क्यों औरतें शराब का मज़ा नहीं ले सकती क्या...?” और फिर एक ग्लास नुझे पकड़ाते हुए बोली, “अकेलापन दूर करने के लिये कभी-कभी पी लेती हूँ!” फिर हम दोनों व्हिस्की पीते हुए बातें करने लगे। जब हम दो-दो पैग पी चुके तो मैंने महसुस किया कि रूबिना कुछ ज्यादा ही खिलखिला कर हंस रही थी और बार-बार मुझे अजीब निगाहों से देखती थी और बातों-बातों में कभी-कभी आँख मार देती या अपने होंठों को अपने दाँतों से दबा लेती थी। मैं समझ गया कि वो आज गरम हो चुकी है और उसे नशा चढ़ने लगा है। उसकी हरकतों से मेरा लण्ड भी सख्त हो गया था।
वो मेरे सामने सोफे पर बैठी थी और जब वो अपने लिये एक और पैग बनाने उठी तो मैंने रूबिना का हाथ पकड़ कर उसको अपनी तरफ़ खींच लिया। उसने कोई प्रतिरोध नहीं किया तो मैंने उठकर रूबिना को दीवार के सहारे खड़ा कर दिया और रूबिना के होंठों को चूमने और चूसने लगा। रूबिना एकदम पागल सी हो रही थी जैसे जन्नत का मज़ा आ रहा हो। मैं रूबिना की ज़ुबान भी चूसे जा रहा था और मेरे हाथ रूबिना की कमर पर चल रहे थे। फिर मैं एक हाथ से रूबिना चूची दबने लगा तो रूबिना बेताब होने लगी। मैंने रूबिना के कान में कहा, “बहुत ज्यादा भूखी हो आप तो रुबिना जी!” रूबिना सिर्फ़, “सर....” ही कह सकी।
मेरा हाथ अब धीरे-धीरे रूबिना की सलवार के नाड़े पर आ गया और मैंने रूबिना को चूमते हुए एक झटके में ही सलवार के नाड़े को खोल दिया। रूबिना की लाल सलवार सरक कर नीचे उसके पैरों के पास ज़मीन पर गिर गयी। वो नीचे बिल्कुल नंगी थी। उसकी फूली हुई गोरी चूत बिल्कुल चिकनी थी और उस पर झाँटों का एक रेशा भी नहीं था। उसकी चूत बेहद गीली हो गयी थी। रूबिना ने मेरी पैंट में से लण्ड बाहर निकाल लिया और सहलाते हुए बोली, “हायऽऽऽऽ अल्लाहऽऽऽ काफी मोटा और लंबा है सर आपका ये!”
फिर मैं रूबिना की टाइट कमीज़ ऊपर की तरफ़ करने लगा तो रूबिना और जोश में आ गयी और रूबिना ने सहुलियत के लिये अपने हाथ ऊपर की तरफ़ कर दिये। मैंने उसकी कमीज़ उतार दी। कमीज़ उतारने के बाद पीछे से रूबिना की ब्रा का हुक खोल दिया और एक झटके से रूबिना की ब्रा को उतार कर फेंक दिया। अब वो बिल्कुल नंगी थी और ऊँची हील के सैंडल में बहुत ही सैक्सी लग रही थी।
फिर मैंने उसको दीवार की तरफ़ मुँह करके खड़ा किया और पीछे से उसकी चूचियों को दोनों हाथों में पकड़ लिया और मसलने लगा। जब मैंने उसके निप्पलों को मसलना शुरू किया तो रूबिना सिसकरियाँ भरने लगी। मैंने उसको दीवार के सहारे और दबा दिया। रूबिना की गाँड पर मेरा लण्ड सटा हुआ था और रूबिना के दोनों बूब्स मेरी मुठ्ठी में थे। मैं उंगली और अंगूठे से रूबिना के निप्प्लों को बेदर्दी से मसलने लगा। रूबिना तो जोश में एक दम जैसे पागल सी हो रही थी। दस मिनट बाद मैं रूबिना को पकड़ कर टेबल के पास ले गया और उसे टेबल पर बैठने को कहा। रूबिना टेबल पर बैठ गयी। अब मेरा मोटा और लंबा तना हुआ लण्ड रूबिना के सामने था। उसने तुरंत ही मेरा लण्ड हाथ में पकड़ा और सहलाने लगी। मैं बोला, “रानी, मुँह में लेकर चूसो इसको!” रूबिना लण्ड को पकड़ कर अपनी जीभ से चाटने लगी। थोड़ी ही देर बाद रूबिना ने लण्ड अपने मुँह में ले लिया और लण्ड के सुपाड़े को चूसने लगी। रूबिना भी जोश में अपने आपको काबू में नहीं रख पा रही थी और बोली, “जानू, प्लीज़ जल्दी कुछ करो ना! नहीं तो मैं पागल हो जाऊँगी!” फिर मैंने रूबिना की गाँड को टेबल के किनारे पर किया और उसकी सुडौल टाँगों के बीच आ कर खड़ा हो गया।
रूबिना टेबल पर आधी लेटी हुई थी। मैंने रूबिना की टाँगों को हाथों से पकड़ कर फैला दिया और अपने लण्ड के सुपाड़े को उसकी चूत के बीच में रख दिया। फिर एक झटका दिया तो मेरा आधा लण्ड उसकी चूत को फाड़ता हुआ अंदर घुस गया। रूबिना दर्द से चिल्ला उठी, “ऊऊईईई! अल्लाह!! मर जाऊँगी मैं! आहहह रुक जाओ जानू! प्लीज़ऽऽ!” रूबिना कराहने लगी तो मैं रुक गया और अपने लण्ड को रूबिना की चूत से बाहर निकल लिया।
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(This post was last modified: 28-04-2022, 01:33 AM by rohitkapoor. Edited 3 times in total. Edited 3 times in total.)
फिर मैंने एक तकिया लिया और रूबिना की गाँड उठा कर उसकी गाँड के नीचे रख दिया। अब रूबिना की चूत थोड़ा और ऊपर हो गयी। मैं रूबिना के ऊपर झुक गया और रूबिना के होंठों को अपने मुँह में ले लिया। फिर मैंने अपने लण्ड का सुपाड़ा एक बार फिर उसकी चूत के मुहाने पर रख कर एक जोरदार धक्का मारा। रूबिना की चींख निकलते-निकलते रह गयी क्योंकि मैंने उसके होंठों को अपने होंठों में दबा रखा था। रूबिना दर्द से कराह उठी तो मैं रुक गया। रूबिना के शौहर का लण्ड छोटा था और उसकी चूत का छेद छोटे लण्ड के लिये ही मुनासिब था।
मेरा आधा लण्ड घुस चुका था। दो-तीन मिनट तक मैं उसके ऊपर बिना हिलेडुले लेटा रहा। फिर मैंने धीरे-धीरे लण्ड को अंदर बाहर करना शुरू किया। रूबिना अभी भी दर्द से कराह रही थी। अचानक मैंने एक जोरदार धक्का दिया तो मेरा लण्ड सरसराता हुआ रूबिना की चूत में और ज्यादा अंदर तक घुस गया। रूबिना चिल्लाते हुए रुकने के लिये कहने लगी लेकिन मैं नहीं रुका और रूबिना को तेजी से चोदने लगा। बिजली की तरह मेरा लण्ड रूबिना की चूत में अंदर बाहर हो रहा था। जैसे ही रूबिना की चींख कुछ कम होती मैं एक धक्का ज़ोर से लगा देता था और रूबिना फिर चींख पड़ती थी। कुछ देर तक मैं इसी तरह चोदता रहा। धीरे-धीरे मेरा पूरा लण्ड रूबिना की चूत की गहराई तक जगह बना चुका था और तेजी के साथ अंदर-बाहर हो रहा था। रूबिना दर्द से तड़प रही थी। आठ-दस मिनट के बाद रूबिना को भी मज़ा आने लगा। उसने अपने हाथ मेरी कमर पर कैंची की तरह कस दिये और अपनी गाँड उठा-उठा कर मेरा साथ देने लगी। मैं बोला, “शाबाश जानेमन! अब तो तुम्हें भी चुदवाने में मज़ा आ रहा है!” मैं उसको लगभग पंद्रह-बीस मिनट तक चोदता रहा। इस दौरान रूबिना तीन-चार बार झड़ चुकी थी लेकिन मेरा लण्ड था कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था।
अब मैं रूबिना के ऊपर से हट गया और उसको घोड़ी की तरह बन जाने को कहा। रूबिना उठ कर ज़मीन पर आ गयी और घोड़ी की तरह हो गयी। मैंने उसकी कमर पकड़ कर अपना लण्ड पीछे से रूबिना की चूत में डाल दिया। रूबिना फिर दर्द से कराहने लगी पर कुछ ही देर में रूबिना का दर्द कम हो गया और रूबिना को मज़ा आने लगा। रूबिना अब अपनी गाँड को पीछे ढकेल-ढकेल कर ताल से ताल मिला रही थी। दस-पंद्रह मिनट के बाद मैं रूबिना की चूत में ही झड़ गया और अपना लण्ड रूबिना की चूत से बाहर निकाल कर रूबिना के मुँह में दे दिया। रूबिना ने मेरे लण्ड को चाट-चाट कर साफ़ किया और हम दोनों साथ साथ ही ज़मीन पर ही लेट गये।
फिर हम दोनों ने नंगे ही खाना खाया और खाना खाने के बाद हम फिर शराब पी रहे थे तो मैंने रूबिना से कहा, “रूबिना, और मज़ा दोगी?” रूबिना नशे में थी। उसने मुस्कुराते हुए अपना सिर हाँ में हिला दिया और बोली, “मज़ा दूँगी भी और लूटुँगी भी!” फिर रूबिना ने मेरा लण्ड, जोकि फिर खड़ा हो गया था, अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी। थोड़ी देर बाद मैंने अपनी बीच की मोटी उंगली रूबिना की चूत में घुसा दी। “उफ़्फ़....!” रूबिना तड़प उठी। मेरी उंगली रूबिना की चूत में अंदर बाहर होने लगी। रूबिना को भी मज़ा आने लगा और रूबिना मेरा लण्ड चूसते हुए आहें भरने लगी।
फिर मैंने रूबिना के मुँह में से अपना लण्ड निकाला और उसे लेटने को कहा। मैं भी उठा और रूबिना की टाँगों के बीच में आ गया। उसके पैर उठा कर अपने कंधों पर रख लिये। मेरा तना हुआ लण्ड रूबिना की चूत से केवल एक इंच की ही दूरी पर था। फिर मैंने उसकी आँखों में देखते हुए पूछा, “चोदूँ, मेरी रानी?” रूबिना ने अपना सर हाँ में हिला दिया और अपनी गाँड आगे ढकेलते हुए अपनी चूत मेरे लण्ड से सटा दी और बोली, “धीरे-धीरे चोदना प्लीज़! बहुत दर्द होता है... बहुत ही बड़ा है तुम्हारा!” फिर मैंने उसकी चूची को पकड़ा और निप्पलों को मसलते हुए अपने लण्ड को उसकी चूत में घुसाने लगा। अभी तक मैंने हल्का सा धक्का मारा था लेकिन आधा लण्ड रूबिना की चूत में घुस चुका था। रूबिना की चूचियों को दबाते हुए और दोनों निप्पलों को खींचते हुए मैं बोला, “एक बार में पुरा अंदर लोगी?” रूबिना तो एक दम जोश और नशे में थी और उसने दर्द की परवाह ना करते हुए कहा, “हाँ जानू!” फिर मैंने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया। इससे पहले कि रूबिना कुछ समझ पाती कि एक ही धक्के में मैंने अपना पूरा लण्ड वापस रूबिना की चूत में गहराई तक घुसा दिया। रूबिना अपनी चींख बड़ी मुश्किल से रोक पायी।
कुछ देर बाद मैंने रूबिना को तेजी से चोदना शुरू कर दिया। रूबिना के सैंडल मेरे हर धक्के के साथ मेरी गर्दन के पास थपथपाते थे जिससे मुझे और जोश आने लगा और मैं रूबिना को और तेजी के साथ चोदने लगा। मेरे हाथ अभी भी रूबिना की चूचियों और निप्पलों को मसल रहे थे और रूबिना को दर्द हो रहा था लेकिन उसे फिर भी मज़ा आ रहा था क्योंकि आज दो साल बाद कोई उसकी चूत की प्यास को बुझा रहा था वो भी इतने मोटे तगड़े लण्ड से। थोड़ी देर बाद मैंने रूबिना के पैरों को अपने कंधों से उठाया और रूबिना की टाँगें पीछे मोड़कर उसके कंधों की तरफ़ झुका दीं। अब रूबिना एक दम दोहरी हो गयी और रूबिना की चूत और ऊपर उठ आयी। फिर आगे होकर मैंने उसके पैरों के पास उसकी टाँगों को पकड़ कर बहुत ही तेजी के साथ रूबिना की चुदाई करनी शुरू कर दी। मुझे मेरे लण्ड के सुपाड़े पर उसकी बच्चेदानी का मुँह महसूस होने लगा था। रूबिना और भी जोश में आ गयी और अपनी आँखें बंद कर लीं। रूबिना के मुँह से केवल मस्ती भरी आवाज़ें निकल रही थी, “हाय मेरे जानू! ऐसे ही… और कस-कस कर जोर से चोदो... और जोर से चोदो... फाड़ दो मेरी चूत को!”
मेरे चेहरे का पसीना रूबिना की चूचियों पर टपक रहा था लेकिन लण्ड रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। रूबिना अब तक दो-तीन बार झड़ चुकी थी। कुछ ही देर में मेरे लण्ड ने फिर उसकी चूत में पानी छोड़ दिया था। मैं ऐसे ही थोड़ी देर रूबिना के ऊपर पड़ा रहा और रूबिना मुझे चूमती रही। फिर मैं रूबिना के ऊपर से हट कर उसके बगल में लेट गया।
थोड़ी देर बाद रूबिना ने मेरे मुर्झाये हुए लण्ड को अपने हाथों में लिया और अपने होंठों को दाँत से काटते हुए बोली, “अगर बुरा ना मानो तो मैं तुम्हारे लण्ड को फिर से चूसना चाहती हूँ, प्लीज़!!!” मैं बोला, “इसमें इजाज़त की क्या बात है... ये लण्ड तो अब सिर्फ़ तुम्हारा ही है!” रूबिना मेरे पैरों के बीच में आकर बैठ गयी और दोनों हाथों से लण्ड को पकड़ कर लण्ड के सुपाड़े पर धीरे से किस किया। रूबिना ने मेरी तरफ़ देख कर आँख मारी और वापस अपने होंठ मेरे लण्ड पर रख दिये। लण्ड को पकड़ कर चूसते हुए रूबिना अपने मुँह को ऊपर-नीचे करने लगी और मेरा लण्ड बिल्कुल तन गया। फिर रूबिना उठ कर मेरे ऊपर आ गयी और अपने हाथ से लण्ड को पोज़िशन में करके अपनी चूत के बीच में सटा दिया और ऊपर से दबाव डालने लगी पर सिर्फ़ सुपाड़ा ही रूबिना की चूत में घुस पाया। उसने तरसती निगाहों से मेरी तरफ़ देखा। मैं उसका इशारा समझ गया। मैंने उसकी कमर को पकड़ कर ज़ोर से नीचे किया तो एक झटके से आधे से ज्यादा लण्ड रूबिना की चूत में घुस गया। अब रूबिना धीरे-धीरे ऊपर नीचे होने लगी और मैं रूबिना की कमर को पकड़े हुए था। रूबिना ने अपनी आँखें बंद कर लीं और चुदाई का मज़ा लेने लगी। उसकी रफ़्तार बढ़ने लगी और वो इतनी तेज़ हो गयी कि पता ही नहीं लगा कब दोनों झड़ गये। फिर हम दोनों एक दूसरे की बाँहों में लिपट कर लेट गये।
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(This post was last modified: 28-04-2022, 01:35 AM by rohitkapoor. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
थोड़ी देर बाद रूबिना उठ कर बाथरूम में गयी। मैंने देखा कि चलते हुए नशे में रूबिना के कदम बीच-बीच में बहक रहे थे। उसने अभी भी ऊँची हील वाले सेंडल पहने हुए थे और नशे में डगमगाते हुए रूबिना के गुदाज़ चूतड़ बहुत ही कामुक ढंग से हिल रहे थे। ये देखकर मेरा लण्ड फिर तनने लगा था। जब वो बाथरूम से बाहर अयी तो मैं भी बाथरूम में जा कर थोड़ा प्रेश हुआ। बाथरूम से निकला तो रूबिना पैग बना रही थी। मैं अपना ग्लास लेकर सोफे पर बैठ गया और वो मेरी टाँगों के बीच में नीचे बैठ गयी। अचानक उसने मेरा लण्ड पकड़ कर अपने व्हिस्की के ग्लास में डुबा दिया और फिर बाहर निकाल कर अपने मुँह में लिया। रूबिना इसी तरह मेरा लण्ड व्हिस्की में डुबा-डुबा कर चूसने लगी।
मेरा लण्ड फिर से पत्थर की तरह सख्त हो कर तन कर गया था। मैं बोला, “रूबिना, अब तुम फिर से घोड़ी बन जाओ!” रूबिना ने जल्दी से अपना गिलास खाली किया और ज़मीन पर घोड़ी बन गयी। तब मैंने कहा, “रूबिना, अब मैं तुम्हारी गाँड मारुँगा!” रूबिना थोड़ा डरते हुए बोली, “लेकिन तुम्हारा लण्ड तो बहुत मोटा है!” मैं बोला, “तुम घबराओ मत... मैं आराम से करुँगा!” रूबिना अब काफी नशे में थी और मस्ती में चहकते हुए बोली, “ओके, तुम सिर्फ मेरे बॉस ही नहीं बल्कि जानेमन हो, मेरा सब कुछ तुम्हारा ही तो है! चाहे जो करो... आज तुम्हारी रूबिना तुम्हारे लण्ड की ग़ुलाम है! मारो मेरी गाँड को, फाड़ दो इसे भी... मैं कितना भी चिल्लाऊँ... तुम रुकना मत.... अपनी रूबिना की गाँड बेदर्दी से पेलना!”
मैं उठ कर उसके पीछे आ गया और रूबिना की गाँड के छेद पर ढेर सारा थूक लगा दिया। मेरा लण्ड तो पहले से ही रूबिना के थूक से सना हुआ था। फिर मैंने रूबिना की गाँड के छेद पर अपने लण्ड की टोपी रखकर रूबिना की कमर को पकड़ लिया और धीरे-धीरे अपने लण्ड को रूबिना की गाँड में घुसाने लगा। रूबिना ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगी। अभी तक लण्ड का सिर्फ़ सुपाड़ा ही घुस पाया था। फिर मैंने रूबिना की गाँड के छेद को हाथों से फैलाया और फिर से रूबिना की कमर पकड़ कर एक धक्का दिया। रूबिना दर्द से अपना सर कुत्तिया की तरह इधर-उधर हिलाने लगी। मैंने थोड़ा ज़ोर और लगाया तो रूबिना और भी ज़ोर-ज़ोर से चींखने-चिल्लाने लगी। मैं बोला, “रूबिना मेरी जान! अगर तुम ऐसे चिल्लाओगी तो कैसे काम बनेगा? अभी तो ये तीन इंच ही अंदर घुसा है!” रूबिना दर्द से चिल्लाते हुए ही बोली, “मेरे चिल्लाने कि तुम परवाह मत करो! घुसा दो अपने तमाम लण्ड को मेरी गाँड में... फाड़ डालो इसे!”
फिर मैंने रूबिना के मुँह पर एक हाथ रख दिया और उसकी कमर को पकड़ कर धक्के पर धक्का लगाते हुए अपने लण्ड को रूबिना के गाँड में घुसाने लगा। लण्ड रूबिना की गाँड में और गहराई तक घुसने लगा तो रूबिना दर्द के मारे छटपटाने लगी। मैं बोला, “शाबाश रूबिना! मेरा लण्ड अब तुम्हारी गाँड में करीब छः इंच तक घुस चुका है!” दर्द से रूबिना कि हालत अभी भी खराब हो रही थी। मैं पूरी ताकत से रूबिना की गाँड में लंड ठूँसने में लगा था और रुकने का नाम ही नहीं ले रहे था। रूबिना की गाँड चौड़ी होती गयी और दर्द भी बढ़ता गया। गाँड में दर्द की वजह से रूबिना सिसकियाँ लेती रही। रूबिना के आँसू भी निकल आये पर रूबिना ने हिम्मत नहीं हारी। रूबिना की गाँड में अपना लण्ड पूरा घुसाने के बाद मैं रुक गया।
थोड़ी देर में दर्द धीरे-धीरे कम हो गया तो मैंने फिर धीरे-धीरे पेलना शुरू कर दिया। अब मैं अपना आधा लण्ड बाहर निकालता और वापस एक ही धक्के में पूरा लण्ड उसकी गाँड में अंदर तक घुसेड़ देता। हालांकि दर्द अभी खतम नहीं हुआ था पर फिर भी रूबिना अब अपनी गाँड मेरे हर धक्के के साथ आगे-पीछे हिलाने लगी थी। अब मैं पुरी स्पिड से रूबीना को चोदने लगा। अब मैं अपना पुरा लण्ड बाहर निकालता और वापस तेजी के साथ अंदर घुसा देता। रूबिना को तो यकीन ही नहीं था कि इतना लंबा और मोटा लण्ड वो कभी अपनी गाँड में ले पायेगी।
मैं बहुत मज़े ले-ले कर रूबिना की गाँड मारने में लगा हुआ था। रूबिना भी और ज्यादा मस्त हो गयी थी और अपनी गाँड ढकेलते हुए बोली, “पेलो मुझे! मेरी गाँड फाड़ दो! अपनी रूबिना की गाँड चौड़ी कर दो! बेदर्दी से पेलो मुझे... मेरे जनू! मेरे बॉस!” मैं रूबिना की गाँड पकड़ कर ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारता हुआ अपना लण्ड उसकी गाँड में गहराई तक घुसेड़-घुसेड़ कर पेलता रहा। वो भी कभी चींखती तो कभी सिसकती और कभी मुजे ज़ोर-ज़ोर से गाँड पेलने को कहती और फिर चींखने लगती। थोड़ी देर में मैं रूबिना की गाँड में ही झड़ गया और हम दोनों दोने ज़मीन पर ही लेट गये। दोनों की साँसें फूली हुई थीं। बीस पच्चीस मिनट ऐसे ही पड़े रहने के बाद मैं रूबिना को अपनी बांहों में सहरा दे कर बेडरूम में ले गया और हम दोनों बिस्तर पे लेट कर सो गये।
अगले दिन सुबह रूबिना बहुत खुश थी और मैंने भी एक हफ़्ते के अंदर उसका प्रमोशन करा दिया। रूबिना तो मेरे लण्ड की दीवानी बन गयी थी और मैं जब तक लखनऊ में रहा हर रात रूबिना के घर पर उसकी चुदाई करने में गुज़ारी।
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31-12-2021, 12:11 AM
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ननद और भाभी की चुदाई
लेखक: दीनू
मेरी उम्र छब्बीस साल है और मैं सरकारी दफ़्तर में ऑडिटिंग ऑफिसर हूँ और हमारे दफ़्तर की शाखायें पूरे देश में हैं और अक्सर मुझे काम के सिलसिले में दूसरे शहरों की शाखाओं में कुछ महीनों के लिये जाना पड़ता है। मैं शादीशुदा नहीं हूँ इसलिये मुझे इसमें कोई दिक्कत नहीं होती है। अपनी पिछली कहानी (प्रमोशन की मजबूरी) में जैसे कि मैंने आपको बताया था कि कैसे लखनऊ पोस्टिंग के दौरान मैंने अपनी सहकर्मी रूबिना को चोदा।
इस बार दफ़्तर के काम से मेरी पोस्टिंग चंडीगढ़ हुई थी। वहाँ मैंने अपने सह-कर्मचारी की मदद से एक जगह पेइंग-गेस्ट के तौर पे कमरा किराये पर ले लिया। उस मकान में मकान मालिक रशीद अहमद थे जो कि चालीस वर्षीय थे और सेना में मेजर थे। फिलहाल वो एक महीने के लिये छुट्टी पर आये थे। उनकी बीवी नज़ीला करीब पैंतीस के ऊपर थीं और कॉलेज में टीचर थीं। नज़ीला भाभी का जिस्म काफी मस्त और सुडौल था। उनकी बड़ी-बड़ी चूचियाँ और गोल-गोल चूतड़ थे। जब वो ऊँची हील के सैंडल पहन कर गाँड मटका कर चलती थी तो उन्हें देख कर किसी का भी लंड अपने आप खड़ा हो जाता था। उनकी कोई औलाद नहीं थी। रशीद जी और नज़ीला भाभी दोनों बहुत मिलनसार थे और खुले विचारों वाले थे। मियाँ-बीवी में खूब जमती थी। वो लोग मुझसे घर के सदस्य की तरह ही बर्ताव करते थे, कभी मुझे पराया नहीं समझते थे। जब तक रशीद जी की छुट्टी रही हम दोनों हर शुक्रवार और शनिवार को जम कर पीते थे और नज़ीला भाभी भी हमारा साथ देती थी। उस वक्त उनकी अदा काफी सैक्सी और अलग लगती थी।
एक बार रशीद जी और नज़ीला भाभी सुबह सो रहे थे। मैंने नहा-धोकर सोचा की काम वाली नौकरानी तो आयी नहीं है और नज़ीला भाभी भी अभी उठी नहीं है तो चाय कौन पिलायेगा। इसलिये मैं खुद ही रसोई में केवल टॉवल लपेट कर चाय बनाने चला गया। जब चाय बन कर तैयार हो गयी तो देखा नज़ीला भाभी रसोई में खड़ी-खड़ी मुझे देख रही थी।
वो बोली, “दीनू! मुझे उठा लिया होता तो मैं ही चाय बना देती।”
मैंने कहा, “आप लोगों की नींद खराब ना हो इसलिये मैंने आप को नहीं जगाया और सोचा जब चाय बन जायेगी तो आप लोगों को जगा दुँगा।”
इतने में वो मेरे पास आकर खड़ी हो गयी। तब मैं चाय को छलनी से छान रहा था कि पता नहीं कैसे मेरा टॉवल खुल कर नीचे गिरा और मैं बिल्कुल नंगा हो गया क्योंकि अंदर कुछ भी नहीं पहना था। मुझे नंगा देख कर वो अवाक रह गयी और सिर झुका कर खड़ी हो गयी। मैंने तुरंत चाय का बर्तन नीचे रखा और टॉवल उठा कर लपेट लिया। जब तक मैंने नंगे जिस्म को टॉवल में कैद नहीं किया वो तिरछी नज़र से मेरे मोटे और लंबे लौड़े को घूर रही थी।
मैंने कहा, “सॉरी भाभी!”
वो बोली, “कोई बात नहीं… तुमने जानबूझ कर तो नहीं किया… ये सब अचानक हो गया!”
फिर वो चाय की ट्रे लेकर अपने कमरे में चली गयी। मैं भी तैयार होकर दफ़्तर चला गया। शाम को जब सात बजे घर आया तो साथ में व्हिस्की लेकर आया क्योंकि शुक्रवार था और शनिवार और रविवार को मेरी छुट्टी रहती है।
घर आकर फ्रैश होके करीब पौने-नौ बजे रशीद जी और मैं पीने बैठे। अभी हमारा एक पैग भी खतम नहीं हुआ था की रशीद जी ने नज़ीला भाभी को बुलाया और कहा, “डार्लिंग तुम भी आ जाओ और हमें कंपनी दो।”
नज़ीला भाभी भी एक ग्लास लेकर आयी और पैग बना कर रशीद जी के बगल में बैठ कर पीने लगी। मैं और रशीद जी बरमुडा और टी-शर्ट पहने हुए थे और नज़ीला भाभी ने पारदर्शी नाइटी पहनी थी जिस में से उनकी काली रंग की ब्रा और पैंटी साफ़ दिख रही थी। दो पैग पीते ही हम तीनों को थोड़ा-थोड़ा नशा होने लगा।
अपना जाम उठा कर पीते हुए रशीद जी बोले, “यार दीनू! मेरी छुट्टी तो खतम हो रही है, और मंडे की सुबह मुझे आसाम के लिये रवाना होना है। अब मैं छः महीने बाद आऊँगा… तुम घर का और नज़ीला का खयाल रखना।”
मैंने कहा, “डोंट वरी मेजर साहब! ऑय विल टेक केयर! मैं भी यहाँ करीब छः महीने के लिये ही हूँ!”
वो बोले, “यार अब दो दिन बचे हैं… जम कर मौज करेंगे!”
फिर उन्होंने नज़ीला भाभी के कंधे पर हाथ रख दिया। हम सब बातों में मशगूल थे की अचानक मेरी नज़र नज़ीला भाभी पर पड़ी। मैंने देखा कि रशीद जी जाम पीते-पीते नज़ीला भाभी की बायीं चूची को दबा रहे थे। ये देख कर मेरा लंड अपनी हर्कत में आ गया लेकिन मैं अंजान बना रहा। फिर भी मेरी नज़र बार-बार नज़ीला भाभी की चूचियों पर जा रही थी। जब मेरी और नज़ीला भाभी की नज़र चार हुई तो वो मुझे देख कर मुस्कुराने लगी।
खैर पीने का प्रोग्राम खतम करके हम लोगों ने खाना खाया और अपने कमरों में सोने के लिये चले गये। मुझे नींद नहीं आ रही थी। करीब साढ़े-बारह बजे मैं उठ कर पेशाब करने गया और वापस आते हुए देखा कि रशीद जी के कमरे की लाईट जल रही थी। मेरे मन में जिज्ञासा हुई कि खिड़की से झाँक कर देखूँ कि वो क्या कर रहे हैं। मैंने खिड़की से झाँख कर देखा तो वो दोनों बिल्कुल नंगे थे और रशीद जी नज़ीला भाभी की चूत चटाई कर रहे थे। नज़ीला भाभी उनका सिर पकड़ कर उनका चेहरा अपनी चूत में दबा रही थी।
तभी नज़ीला भाभी बोली, “डार्लिंग मैंने दीनू का लंड देखा है… उसका लंड बहुत मोटा और लंबा है!”
रशीद जी बोले, “जानू! क्या तुम उसके लंड से चुदवाना चाहती हो?”
वो बोली, “डार्लिंग! क्यों नहीं? जबसे पिछला पेईंग-गेस्ट छोड़ कर तंज़ानिया वापस गया है तबसे कोई नया लंड नहीं लिया… दीनू का लंड तो उस नीग्रो से भी ज्यादा मोटा और लंबा है… उसे सिड्यूस करके उसके लंड से ज़रूर चुदवाऊँगी!”
रशीद जी बोले, “तुम बाज़ नहीं आओगी डार्लिंग! उस नीग्रो लड़के के साथ भी खूब ऐश करी थी तुमने… चलो ऑल द बेस्ट!”
फिर रशीद जी उठ कर उनकी चूत में लंड डाल कर फचाफच चोदने लगे। उनकी ये बातें सुन कर मैं हैरान हो गया और जब उनकी चुदाई खतम हुई तो मैं अपने कमरे में आकर सो गया लेकिन मेरे दिमाग में बार-बार उनकी बातें और चुदाई का खयाल घूम रहा था।
खैर सुबह करीब दस बजे मैं उठा और नहा धोकर जब नाश्ता करने लगा तो देखा रशीद जी घर पर नहीं थे। मैंने नज़ीला भाभी से पूछा, “भाभी! मेजर सहाब कहाँ हैं?”
नज़ीला भाभी बोली, “अपने दोस्त के घर गये है और दोपहर को करीब एक बजे आयेंगे।”
जब मैं नाश्ता कर रहा था तो देखा नज़ीला भाभी की नज़र बार-बार मेरे बरमूडे पर जा रही थी। जब हमारी नज़र चार हुई तो मैंने नज़ीला भाभी से पूछा, “भाभी क्या देख रही हो?”
नज़ीला भाभी बोली, “दीनू जब से मैंने तुम्हारा देखा है मैं हैरान हूँ… क्योंकि ऐसा मैंने आज तक किसी का ही देखा!”
मैं बोला, “क्या नहीं देखा भाभी?”
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31-12-2021, 12:11 AM
(This post was last modified: 28-04-2022, 01:47 AM by rohitkapoor. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
वो बोली, “दीनू ज्यादा अंजान मत बनो… कल जब तुम्हारा टॉवल गिरा तो मैंने तुम्हारी कमर के नीचे का हिस्सा नंगा देखा और दोनों टाँगों के बीच जो वो लटक रहा था… उसे देख कर मैं हैरत-अंगेज़ हूँ।”
नज़ीला भाभी की ये बातें सुन कर मैं उत्तेजित हो गया और हिम्मत कर के अपना लंड बरमूडे से निकाल कर उन्हें दिखाते हुए बोला, “नज़ीला भाभी… आप इसकी बत कर रही हो?”
वो बोली, “हाँ.. बिल्कुल इसी की बात कर रही हूँ!”
मैं बोला, “कल तो आपने दूर से देखा था… आज करीब से देख लो!” और उनका हाथ पकड़ कर अपना लंड उसके हाथ में दे दिया।
नज़ीला भाभी मेरे लंड को हाथ में पकड़ कर बोली, “हाय अल्लाह! कितना मोटा और लंबा है!” और लंड की चमड़ी को पीछे करके सुपाड़े पर एक चुम्मा दे दिया।
फिर मैंने कहा, “नज़ीला भाभी अब आपकी भी तो दिखा दो!” तो वो मेरे लंड को बरमूडे में डाल कर बोली, “दीनू आज नहीं! मेजर साहब के जाने के बाद दिखा दुँगी।”
फिर हम दोनों उठ कर खड़े हो गये। वो अपने काम में लग गयी और मैं टीवी देखने लगा। रविवार रात तक हम तीनों ने खूब जाम कर शराब पी और सोमवार की सुबह रशीद जी टैक्सी लेकर रेलवे स्टेशन चले गये। मैं उठा तो सुबह के करीब सात बज रहे थे। नज़ीला भाभी भी कॉलेज जाने के लिये तैयार हो चुकी थी। मैंने नज़ीला भाभी से कहा, “भाभी! अब तो मेजर सहाब चले गये… अब तो आपकी दिखा दो!”
नज़ीला भाभी ने अदा से मुस्कुराते हुए तुरंत अपनी सलवार नीचे खिसका कर अपनी चूत दिखा दी। उनकी चूत पर एक भी बाल नहीं था, लगता है की हेयर रिमूवर से नियमित अपनी चूत साफ करती थी। मैं उनकी चूत पर हाथ रख कर थोड़ी देर सहलाया और फिर उनकी चूत पर चुम्मा लिया।
वो बोली, “अब बस दीनू! रात को और दिखा दुँगी। अभी कॉलेज के लिये लेट हो रहा है!” फिर वो कॉलेज चली गयी और उसके बाद मैं भी नहाकर दफ़्तर चला गया। दफ़्तर में मेरा मन नहीं लग रहा था और शाम होने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था।
शाम को जब घर पहुँचा तो नज़ीला भाभी को देखकर बस देखता ही रह गया। उन्होंने घुटनों तक की छोटी सी मैरून रंग की नाइटी पहनी हुई थी। उनकी नाइटी इतनी पारदर्शी थी कि काली ब्रा और पैंटी में उनका पूरा हुस्न मेरी आँखों के सामने नंगा था। साथ में काले रंग के ही ऊँची हील वाले सैंडल पहने हुए थे जो उनके सैक्सी फिगर में चार चाँद लगा रहे थे। खुली ज़ुल्फें और मैरून लिपस्टिक लगे होंठों पर कातिलाना मुस्कुराहट कयामत ढा रही थी। मैंने नज़ीला भाभी को बाँहों में लेना चाहा तो वो बोली, “इतनी भी क्या बेसब्री है... पहले फ्रेश तो हो जाओ… मैं कहीं भगी तो नहीं जा रही हूँ… फिर जी भर के मेरे हुस्न का जाम पीना!”
फिर मैं बाथरूम में जा कर नहाया और बरमूडा और टी-शर्ट पहन कर बाहर आया तो कमरे में रोमैन्टिक संगीत बज रहा था और नज़ीला भाभी हम दोनों के लिये पैग बना रही थी। हम दोनों बैठ कर शराब पीने लगे और बातें करने लगे। नज़ीला भाभी के होंठों पर वही शरारती मुस्कुराहट थी।
नज़ीला भाभी मुझे छेड़ते हुए बोली, “तो जनाब और कितनों के हुस्न का मज़ा ले चुके हैं!”
“आप से झूठ नहीं बोलुँगा भाभी… मैंने कईयों के साथ ऐश की है…!” मैं बोला।
“सुभान अल्लाह! दिखते तो बड़े सीधे हो!” नज़ीला भाभी आँखें नचाते हुए बोली।
“वैसे भाभी कम तो आप भी नहीं हो… क्यों सही कह रहा हूँ ना?” मैंने भी वापस उन्हें छेड़ा।
“तुम्हें कैसे पता?” नज़ीला भाभी आँख मारते हुए बोली।
“बस ऐसे ही अंदाज़ा लगा लिया… बताओ ना भाभी सच है कि नहीं?” मैं ज़ोर देते हुए बोला।
हम दोनों इसी तरह शराब पीते हुए बातें करते रहे। नज़ीला भाभी ने बताया कि वो बेहद चुदासी हैं और ज़िंदगी में पचासियों लौड़े अपनी चूत में ले चुकी हैं। पेईंग-गेस्ट भी इसी मक्सद से रखती हैं ताकि मेजर-साहब की गैर-हाज़री में भी उनकी चूत प्यासी ना रहे। बातें करते-करते हमने काफी शराब पी ली थी और नज़ीला भाभी की तो आवाज़ भी बहकने लगी थी।
फिर वो बोली, “दीनू अपने कमरे में चलो… मैं भी दो मिनट में आती हूँ!”
मैंने पहले बाथरूम में जा कर पेशाब किया और फिर अपने कमरे में चला गया। नज़ीला भाभी भी नशे में झुमती हुई मेरे कमरे में आयी और आते ही अपनी नाइटी उतार कर कर बोली, “दीनू देख लो दिल भर कर मेरा शबाब!”
नज़ीला भाभी अब काली ब्रा-पैंटी और हाई हील के सैंडल पहने हुस्न की परी की तरह मेरे सामने खड़ी थीं। मैंने उन्हें अपनी बाँहों में भरते हुए कहा, “सिर्फ देखने से दिल नहीं भरेगा भाभी!”
“तो फिर कैसे…?” वो शरारती अंदज़ में बोली।
“अब तो आपके हुस्न की झील में डूब के ही करार मिलेगा!” कहते हुए मैं अपने कपड़े उतार कर नंगा हो गया। फिर मैंने उनकी ब्रा और पैंटी भी उतार दी और उन्हें बेड पर लिटा कर उनकी गीली चूत को चाटने लगा और वो भी मेरा लंड पकड़ कर सहलाने लगी। जब मेरा लंड चुदाई के लिये तैयार हो गया तो मैं नज़िला भाभी टाँगें फैला कर लंड के सुपाड़े को उनकी चूत पर रगड़ने लगा।
मेरे लंड की रगड़न से वो उतेजित हो कर मुँह से सिसकरी भरने लगी और कुछ ही देर में उनका जिस्म अकड़ने लगा और वो पहले चूत चटाई से अब लौड़े की रगड़न से झड़ गयी। फिर मैंने अपने सुपाड़े पर थूक लगा कर नज़िला भाभी की चूत पर रख कर एक कस के धक्का मरा तो आधे से ज्यादा लंड उनकी चूत में घुस गया। लंड घुसते ही उनके मुँह से “ऊऊऊईईईई ऊफ़फ़फ़” सिसकरियाँ निकलने लगी और वो लंबी-लंबी साँसें लेने लगी। नज़ीला भाभी सिसकते हुए बोली, “दीनू ऐसे ही डाले रहो कुछ करना नहीं!”
मैं कुछ देर तक बिना हिले-डुले आधे से ज्यादा लंड उनकी चूत में फसाये पड़ा रहा और उनकी दोनों चूचियों को अंगूठे और उंगली के बीच पकड़ कर मसलता रहा। कुछ ही देर में वो ज़रा नॉर्मल हुई तो मैंने कमर उठा कर थोड़ा लंड चूत से बाहर निकाल कर एक जोरदार धक्का मारा। मेरा लंड पूरा का पूरा उनकी चूत की गहरायी में घुस कर उनकी बच्चेदानी पर छू गया।
नज़ीला भाभी फिर चिल्ला पड़ीं, “ऊऊऊऊईईईई अल्लाहहऽऽऽ मार डाला रे तेरे ज़ालिम लंड ने… प्लीज़ दीनू… हिलना डुलना नहीं!”
मैं ऐसे ही लंड डाले पड़ा रहा। मेरे लंड पर उनकी चूत की दिवारें कस कर जकड़ी हुई थी। जब वो फिर नॉर्मल हुई तो मैं धीरे-धीरे अपना लंड नज़ीला भाभी की चूत के अंदर-बाहर करने लगा। जब मेरा लंड उनकी चूत के दाने को रगड़ता हुआ अंदर-बाहर होने लगा तो नज़ीला भाभी को भी जोश आ गया और बोली, “दीनू मॉय डार्लिंग! कीप फकिंग हार्ड… बेहद मज़ा आ रहा है! आआआहहह आआआईईई!”
फिर उन्होंने अपनी टाँगें और फ़ैला दीं और मेरी कमर पर कस दीं। नज़ीला भाभी की सिसकारियों से मुझे भी जोश आ गया और मैं तेजी के साथ कस-कस कर चुदाई करते हुए लंड को अंदर-बाहर करने लगा। कुछ ही देर में उनकी चूत की सिकुड़न मुझे अपने लंड पर महसूस हुई। मैं समझ गया की वो झड़ रही थी लेकिन मैंने अपनी स्पीड नहीं रोकी बल्कि और बढ़ा दी। नज़िला भाभी की चूत गीली होने से अब मेरा लौड़ा आसानी से ‘पुच-पुच’ की आवाजें करता हुआ अंदर-बाहर हो रहा था और पूरे कमरे में चुदाई की आवाजें गूँजने लगी।
उनके झड़ने के बाद मैं करीब पंद्रह -मिनट तक चोदता रहा। फिर मेरा लंड भी नज़ीला भाभी की चूत में झड़ गया। लंड का पानी जब पूरा उनकी चूत में गिर गया तो मैंने लंड को बाहर निकाला। उनकी चूत खुल कर अंदर की गहरायी दिखा रही थी। हम दोनों जोर-जोर से साँसें ले रहे थे। फिर हम दोनों लिपट कर सो गये।
करीब तीन बजे मेरी आँख खुली तो नज़ीला भाभी सिर्फ सैंडल पहने बिल्कुल नंगी मुझसे लिपटी हुई सो रही थीं। मैंने फिर से उनकी चुदाई की और सुबह भी दफ़्तर जाने से पहले उनकी चुदाई की।
अब तो ये रोज़ का सिलसिला हो गया। हम रोज रात को शराब के एक-दो पैग पी कर चुदाई करने लगे। नज़ीला भाभी तो मेरे लंड पर फ़िदा हो चुकी थी और वो बेहद चुदासी थीं। हर वक्त चुदाई के मूड में रहती थीं। हम दोनों हर रात एक ही बिस्तर पर नंगे सोते और अलग-अलग तरह से चुदाई करते। कईं बार तो कॉलेज के लिये निकलने वाली होती तो जाते-जाते भी अपनी सलवार और पैंटी नीचे खिसका कर झटपट चोदने को कहतीं। हर दूसरे दीन मैं उनकी गाँड भी मारता था। जब भी हम दोनों में से किसी को चुदाई का मन होता, घर के किसी भी हिस्से जैसे कि किचन, बाथरूम, ड्राइंग रूम में कहीं भी चुदाई शुरू हो जाती। शुक्रवार और शनिवार को तो हम जम कर शराब पीते और नशे में धुत्त होकर खूब चुदाई करते।
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31-12-2021, 12:12 AM
(This post was last modified: 28-04-2022, 01:50 AM by rohitkapoor. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
एक दिन नज़ीला भाभी की चचेरी ननद ज़हरा कुछ दिनो के लिये आयी। ज़हरा बत्तीस साल की थी और बेवा थी। वो अजमेर में किसी कॉलेज में प्रोफेसर थी और चंडीगढ़ में किसी वर्कशॉप के लिये महीने भर के लिये आयी थी। वो करीब पाँच फुट चार इंच लंबी थी और उसका जिस्म ज्यादा मोटा भी नहीं था और ज्यादा पतला भी नहीं था। ज़हरा बेहद खुबसूरत थी और ज्यादातर जींस और कुर्ता-टॉप पहनती थी। आधुनिक कपड़ों के बावजूद बाहर जाते वक्त ज़हरा सिर पे स्कार्फ जैसा हिजाब बाँधती थी। सब से ज्यादा आकर्षक उसकी गाँड थी। ऊँची हील की सैंडल पहन कर जब वो चलती थी तो टाईट जींस में उसकी गाँड मटकती देख कर मेरा लंड भी नाचने लगता था।
ज़हरा भी सुबह यूनिवर्सिटी जाती थी और शाम को करीब मेरे साथ-साथ ही घर वापस आती थी। उसकी और नज़ीला भाभी की बहुत पटती थी लेकिन शुरू-शुरू में थोड़ी शरम की वजह से ज़हरा मुझसे दूर रहती थी और ज्यादा बात भी नहीं करती थी। कभी-कभी शाम को खाने से पहले ड्रिंक्स में ज़हरा हमारा साथ देती थी लेकिन औपचारिक बातें ही करती थी। ज़हरा के आने से अब मैं और नज़ीला भाभी पहले की तरह खुल कर कभी भी या कहीं भी चुदाई नहीं कर सकते थे। लेकिन रात तो को नज़ीला भाभी मेरे कमरे में ही सोती थी और हम खूब चुदाई करते।
एक दिन मुझे दफ्तर पहुँच कर एक घंटा ही हुआ था कि नज़ीला भाभी का फोन आया। मुझे थोड़ी हैरानी हुई क्योंकि नज़ीला भाभी ने पहले कभी इस तरह दफ्तर के वक्त फोन नहीं किया था और वो भी तो सुबह मेरे सामने ही तो कॉलेज जाने के लिये निकली थीं। जब मैंने फोन उठाया तो उन्होंने बताया कि किसी वजह से उनके कॉलेज में छुट्टी हो गयी है और वो घर वापस जा रही हैं। नज़ीला भाभी ने मुझे भी दफ्तर से छुट्टी लेकर घर आने को कहा क्योंकि ज़हरा कि गैर-मौजूदगी में शाम तक ऐश करने का ये अच्छा मौका था। मैंने कहा, “ठीक है भाभी… लेकिन मुझे घर पहुँचने में दो घंटे लगेंगे क्योंकि मुझे एक रिपोर्ट पुरी करनी है।”
नज़ीला भाभी बोली, “मैं रास्ते में आर्मी कैंटीन से घर का कुछ सामान और व्हिस्की वगैरह खरीदते हुए जाऊँगी… जल्दी आना दीनू… मुश्किल से ऐसा मौका मिला है!”
मैं साढ़े ग्यारह तक घर पहुँच गया तो देखा कि नज़ीला भाभी पूरे मूड में थीं। एम-टी-वी चैनल पर कोई भड़कता हुआ म्यूज़िक एलबम देखते हुए नज़ीला भाभी सोफे पर बैठी शराब पी रही थीं। उन्हें देख कर ऐसा लग रहा था जैसे कि आते ही पीने बैठ गयी थीं क्योंकि नजीला भाभी ने सुबह जो सलवार-सूट पहना था, इस वक्त भी वही सुबह वाली कमीज़ और ऊँची पेन्सिल हील की बारीक पट्टियों वाली सैंडल पहनी हुई थी जबकि उनकी सलवार इस वक्त सोफे के पास फर्श पर पड़ी थी।
मैंने अंदर आते ही कहा, “ये कया भाभी... आप तो सुबह ही शराब पीने बैठ गयीं और मेरा भी इंतज़ार भी नहीं किया!”
नज़ीला भाभी बोलीं, “दीनू! पिछले वीकेंड भी ज़ोहरा की वजह से ना तो दिल खोल कर शराब पी और ना ही जम कर चुदाई की और अगले तीन-चार हफ्ते हमें एहतियात बरतनी पड़ेगी। इसलिये आज सारी कसर निकालने का इरादा है...!”
ये कहते हुए वो सोफे से उठ कर झूमती हुई मेरे नज़दीक आयी और मेरे गले में बाँहें डाल कर मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये। ऊँची हील के सैंडलों में नज़ीला भाभी के लड़खड़ाते कदमों और बहकती ज़ुबान से साफ था कि वो काफी शराब पी चुकी थीं और नशे में धुत्त थीं। मैं जब भी नज़ीला भाभी को ऊँची हील की सैंडल पहने इस तरह नशे में लड़खड़ाते हुए देखता था तो मेरा लंड बेकाबू हो जाता था।
मैंने उन्हें चूमते हुए सोफे पर वापस बिठाया और खुद एक पैग पीने के बाद अपने कपड़े उतार कर नंगा हो गया। इतने में नज़ीला भाभी ने भी अपनी कमीज़ और ब्रा उतार कर एक तरफ फेंक दी और पैरों में सैंडलों के अलावा मादरजात नंगी हो कर फिर मुझसे लिपट गयीं। फिर हमारी चुदाई सोफ़े पर ही शुरू हो गयी। मैं सोफे पर पीछे टिक कर लेटा था और मेरे पैर ज़मीन पर थे। नज़ीला भाभी मुझ पर सवार हो गयी थी। मेरा ज़ालिम लंड उनकी चूत में घुस कर फंसा हुआ था। वो कुल्हे उठा-गिरा कर मेरा लंड अपनी चूत में अंदर-बाहर कर रही थी। उनकी चूचियाँ मेरे मुँह के ऊपर थीं और मैं उनके निप्पल चूस रहा था। शराब के नशे और चुदाई की मस्ती में नज़ीला भाभी जोर-जोर से सिसकारियाँ भर रही थीं।
इतने में मेरी नज़र दरवाज़े की तरफ पड़ी तो देखा ज़हरा वहाँ खड़ी-खड़ी हैरानी से स्तंभित सी हमें देख रही थी। मैंने चुदाई नहीं रोकी और बोला, “अरे ज़हरा जी... आप कब आयीं?”
नज़ीला भाभी ने भी उसे देखा तो चुदाई चालू रखते हुए कहा, “आजा ज़हरा... शरमा मत!”
हमारी बात सुनकर ज़हरा जैसे अचानक होश में आयी और भाग कर उसके कमरे में चली गयी। हमने अपनी चुदाई ज़ारी रखी और शाम तक ऐश करते रहे। इस दौरान ज़हरा अपने कमरे से नहीं निकली। फिर बाद में हम दोनों मेरे कमरे में जाकर नंगे ही सो गये।
अगले दिन सुबह जब हम उठे तो नज़ीला भाभी बोली कि वो ज़हरा को समझा देंगी। फिर हम तीनों अपने-अपने दफ्तर, कॉलेज ओर यूनिवर्सिटी निकल गये। उस दिन मुझे दफ्तर में देर तक रुकना पड़ा। शाम को जब नज़ीला भाभी और ज़हरा अकेले थे तो नज़ीला भाभी और ज़हरा साथ बैठ कर एक-एक पैग पीने लगीं। तब ज़हरा ने नज़ीला भाभी से कहा, “भाभी जान! मुझे माफ़ कर देना, मैं अंजाने में जल्दी आ गयी थी... मुझे मालूम नहीं था कि आप और वो...!”
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Very hot stories…. Next story ka intzaar hai
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02-01-2022, 11:36 PM
(This post was last modified: 28-04-2022, 01:52 AM by rohitkapoor. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
नज़ीला भाभी बीच में ही बोली, “देख, ज़हरा! सैक्स के मामले में मैं और तेरे भाईजान बिल्कुल खुले ख्यालात के हैं। चोदने-चुदवाने में हम शरम-हया नहीं रखते हैं। हम दोनों के बीच अंडरस्टैंडिंग भी है कि तेरे भाईजान किसी और को चोद सकते हैं और मैं भी किसी भी मनचाहे मर्द से चुदवा सकती हूँ! लेकिन हम किसी एरे-गैरे के साथ चुदाई नहीं करते!”
ज़हरा बोली, “दीनू कैसा है? आप दोनों क्या रोज़-रोज़...!”
नज़ीला भाभी ने तपाक से कहा, “हाँ! रोज़ रोज़! दीनू मुझे रोज़ चोदता है और वो भी कईं कईं दफा। तू बता कि तू चुदवाती है कि नहीं या सूखी ज़िंदगी गुज़ार रही है?”
ज़हरा बोली, “नहीं भाभी जान! नसीर को गुज़रे हुए छः साल हो गये... तब से बस ऐसे ही... दिल तो बहुत करता है... पर हिम्मत नहीं हुई कभी... जब कभी दिल ज्यादा ही मचलता है तो... यू नो.. केला या बैंगन वगैराह डाल कर अपनी प्यास बुझा लेती हूँ!”
नज़ीला भाभी बोली, “छोड़ ये बेकार की बातें! कब तक सोसायटी की बेकार की पाबंदियों से डर-डर के जवानी बर्बाद करती रहेगी... जस्ट टेल मी क्लियरली... चुदवाना है दीनू से?”
“दिल तो करता है मगर...” ज़हरा ने हिचकिचाते हुए कहा तो नज़ीला भाभी फिर बोली, “ये अगर मगर कुछ नहीं... जस्ट से येस ओर नो...!” ज़हरा ने सिर हिला कर हाँ कह दिया।
उस दिन मैं दफ्तर से काफी लेट आया था। रात को सोते वक्त अपनी और जहरा की बातें नज़ीला भाभी ने मुझे बाद में बतायीं। मैं तो खुद ज़हरा को चोदने के लिये बेकरार था। अगले दिन शाम को दफ्तर से आने के बाद मैं नज़ीला भाभी के साथ बैठ कर शराब पी रहा था तो उन्होंने ज़हरा को भी कंपनी देने के लिये बुला लिया। ज़हरा आयी तो मैं उसके हुस्न को देखता ही रह गया।
जब से ज़हरा चंडीगढ़ आयी थी मैंने तो उसे हमेशा जींस और कुर्ता-टॉप में ही देखा था। आज शायद नज़ीला भाभी की सलाह से उसने हल्के गुलाबी रंग की पतली सी स्लीवलेस नाइटी पहनी हुई थी जिसमें से उसका बेपनाह हुस्न छलक रहा था। होंठों पे लाल लिपस्टिक और गालों पे गुलाबी रूज़ और पैरों में सफेद रंग के ऊँची पेंसिल हील के कातिलाना सैंडल पहने हुए थे। ज़हरा भी हमारे साथ बैठ कर ड्रिंक करने लगी लेकिन ज़हरा मुझसे नज़र नहीं मिला रही थी। मैं और नज़ीला भाभी ही बातें कर रहे थे और ज़हरा चुपचाप अपना पैग पी रही थी। हमने दो-दो पैग खतम किये तो ज़हरा के हावभाव से साफ था कि उसे अच्छा खासा नशा होने लगा। नज़ीला भाभी ने जानबूझ कर ज़हरा के लिये तगड़े पैग बनाये थे। अब ज़हरा हमारी बातों पे खुल कर खिलखिलाते हुए हंस रही थी। मुझे भी हल्का सुरूर था और खुद नज़ीला भाभी भी नशे में झूम रही थीं। कातिलाना मुस्कुराहट के साथ उन्होंने मुझे आँख मार कर इशारा किया तो मैंने बेशरम होकर ज़हरा से पूछा, “क्या खयाल है ज़हरा जी? पसंद आया आपको मेरा लंड? कल तो आप शरमा कर अंदर ही भग गयी थीं!”
ज़हरा ने शरमा कर मुस्कुराते हुए अपनी भाभी की तरफ देखा तो नज़ीला भाभी हंसते हुए बोली, “हाय अल्लाह... देखो कैसे शर्मा रही है...! अरे शरम हया छोड़... नहीं तो बस केले-बैंगन से काम चलाती रहेगी तमाम ज़िंदगी... सच में दीनू! ज़हरा तो बेकरार है तुम्हारा लंड लेने के लिये!”
“हाँ दीनू! छः साल से अपनी तमन्नाओं को दबा रखा था... अब और बर्दाश्त नहीं होता... भाभी जान की तरह प्लीज़ मेरी प्यास भी बुझा दो!” ज़हरा ज़रा खुलते हुए बोली।
मैं बोला, “क्यों शर्मिंदा कर रही हैं मुझे, बेकरार तो मैं हूँ इतने दिनों से आप जैसी ख़ूबसूरत हसीना को चोदने के लिये!”
ये सुनते ही ज़हरा के गालों पर लाली आ गयी। हमने एक-एक पैग और पिया तो नज़ीला भाभी ने उनके बेडरूम में चलने का इशारा किया। मैं बाथरूम में पेशाब करके नज़ीला भाभी के बेडरूम में पहुँचा और दो मिनट के बाद वो दोनों भी सैंडल खटखटती हुई नशे में झुमती कमरे में आयीं। नशे में होने की वजह से ज़हरा की चाल में लड़खड़ाहट साफ नज़र आ रही थी।
दोनों बेड पर बैठ गयीं। मैं उठ कर ज़हरा के पास आया और उसके गालों को चूमने लगा। नशे की मस्ती के बावजूद उसे बहुत शरमा आ रही थी। मैं अपने पैर लंबे करके पलंग पर बैठ गया और ज़हरा को अपनी गोद में खींच लिया और उसका चेहरा घुमा कर उसके होंठों को चूमा। फिर मैंने जीभ से उसके होंठ चाटे और जीभ मुँह में डालने का प्रयास किया लेकिन उसने मुँह नहीं खोला। “क्या हुआ ज़हरा जी? आपको अच्छा नहीं लग रहा क्या?” मैंने पूछा।
ज़हरा हंसते हुए धीरे से बोली, “नहीं-नहीं दीनू! बस थोड़ा ऑउट ऑफ प्रैक्टिस हो गयी हूँ ना!”
मैंने फिर उसके होंठों पे अपने होंठ रख दिये और उसका नीचे वाला होंठ अपने होंठों के बीच ले कर चूसा तो जहरा के जिस्म में झुरझुरी फ़ैल गयी और उसके दोनों निप्पल खड़े होने लगे। जहरा भी अब मेरा साथ देने लगी और मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी और हम दोनों एक दूसरे की जीभें चूसने लगे। फिर मैं अपना हाथ उसके पेट से उसके मम्मों पर ले गया और नाइटी के ऊपर से सहलाने लगा। उसके मम्मों को सहलाते हुए मैं बोला, “ज़हरा जी, मम्मे तो बहुत बड़े-बड़े हैं और कठोर भी हैं!”
वो कुछ नहीं बोली। कुछ देर तक मम्मे सहलाने के बाद मैंने उसकी नाइटी के हुक खोल दिये और फ़िर से उसके होंठों को चूमने लगा और फिर उसके बोब्बों को दबाने और सहलाने लगा। मेरी उंगलियाँ छूते ही उसके निप्पल खड़े हो गये। इतने में मैंने महसूस किया कि नज़ीला भाभी मेरा बरमूडा मेरी टाँगों से नीचे खिसका रही है। फिर उन्होंने मेरा अंडरवीयर और टी-शर्ट भी उतार दी। मैंने भी ज़हरा की नाइटी और ब्रा और पैंटी उसके जिस्म से अलग कर दी। नज़ीला भाभी तो पहले ही कब नंगी हो गयी थीं मुझे पता ही नहीं चला।
अब मैं बिल्कुल नंगा दो नंगी हसिनाओं के साथ एक ही बिस्तार पर मौजूद था। नज़ीला भाभी ने चॉकलेट रंग के पेंसिल हील के सैंडल पहने हुए थे और उनकी ननद ज़हरा ने सफेद रंग के ऊँची हील के सैंडल। दोनों का नंगा हुस्न देखकर मैं तो पागल हो गया।
ज़हरा को लिटा कर मैं उसकी चूत को सहलाने लगा और चूत में दो उंगलियाँ भी डाल दी। इतने में नज़ीला भाभी मेरे लंड को मुँह में लेकर चूसने लगी। मैंने भी झुक कर ज़हरा की चूत पर अपने होंठ लगा दिये और उसकी चूत में जीभ डाल कर चूसने लगा। ज़हरा के होंठों से मस्ती में खुल कर सिसकरियाँ निकल रही थी और और वो टाँगें फैलाये हुए बिस्तर की चादर अपनी मुठियों में भींच रही थी।
नज़ीला भाभी के चूसने से मेरा लंड पत्थर की तरह सख्त हो गया था और ज़हरा भी काफी गरम हो चुकी थी। वो अब बिल्कुल बेशरम होकर मस्ती में बोली, “दीनूऽऽ अब बर्दाश्ट नहीं हो रहा... प्लीज़ चोदो मुझे...!”
नज़ीला भाभी ने मेरा लंड अपने मुँह में से निकाला और बोली, “हाँ दीनू... अब चोद दो मेरी ननद को... देखो कैसे सब शर्म-ओ-हया छोड़ कर चोदने के लिये गुज़ारिश कर रही है!”
मैं ज़हरा के ऊपर आ गया और नज़ीला भाभी ने मेरा लंड को अपनी उंगलियों में पकड़ कर अपनी ननद की चूत के मुहाने रख दिया। मेरे लंड के गरम सुपाड़े को अपनी चूत पर महसूस करके जहरा और भी तड़प कर सिसक उठी। मेरे लंड को जहरा की चूत पर दबाते हुए नजीला भाभी बोली, “फक इट अप दीनू... पूरा लौड़ा अंदर तक...!”
मैंने एक जोर का धक्का मारा तो आधा लंड ज़हरा की चूत में घुस गया। दर्द की वजह से ज़हरा ज़ोर से चिल्लायी, “ऊऊऊईईईईई आआआहहह मेरे अल्लाह.... मरऽऽऽ गयीऽऽऽ!” अपनी ननद को दर्द से बेहाल होकर तड़पते देख नज़ीला भाभी ज़हरा के पास जाकर उसके होंठों को चूमने लगी और उसके मम्मों को दबाने लगी। जहरा की चींखें कुछ कम हुई तो मैंने फिर कस कर एक धक्का मारा तो पूरा लंड उसकी चूत में समा गया। ज़हरा की चूत की कसी-कसी और गरम-गरम दीवारें मेरे लंड को जकड़े हुए थी।
ज़हरा की तो फिर से चींख निकाल पड़ी और वो अपने सिर को इधर-उधर पटकते हुए चिल्लायी, “याऽऽ अल्लाहऽऽऽ... मेरे मालिक... इस जालिम लंड ने तो मेरी जान ही निकाल डाली... आआआईईईऽऽऽ!”
मैं कुछ देर उसकी चूत में पूरा लंड घुसाये पड़ा रहा और कुछ भी हर्कत नहीं की। नज़ीला भाभी अब भी अपनी ननद के मुँह में जीभ डालकर उसके होंठ चूम रही थी। जब जहरा नॉर्मल हुई तो मैं अपने चूतड़ हिला कर धीरे-धीरे चोदने लगा। नज़ीला भाभी अब उसे चूमना छोड़ कर ज़हरा के बगल में लेटी हुई अपने हाथ से उसकी चूचियाँ और पेट पर सहला रही थी। ज़हरा मस्ती में ज़ोर-ज़ोर से सिसकते हुए “आहह ऊँहह आँआँहह” कर रही थी। अपनी टाँगें उठा कर ज़हरा ने मेरे पीछे कमर पर कैंची की तरह कस दीं और अपनी बाँहें मेरी बगलों में से मेरे कंधों पर कस दीं। “हाँ...ओहह मेरा खुदा... सो गुड... ओह डू इट... चोदो...!” बड़बड़ाते हुए ज़हरा भी मेरे धक्कों के साथ-साथ अपने चूतड़ ऊपर उछालने की पूरी कोशिश कर रही थी।
थोड़ी ही देर में मैंने महसूस किया की नज़ीला भाभी अब मेरे पीछे थीं और मेरे चूतड़ों पर हाठ फिरा रही थीं। मैं भी सधे हुए लंबे-लंबे धक्के मारता हुआ अपना लंड ज़हरा की चूत में अंदर-बाहर चोद रहा था। “ओहह दीनू... आँहहा... अल्लाह... मैं... मैं... गयी... आआहहह!” ज़हरा ज़ोर से चींखी और अपनी टाँगें बहुत ज़ोर से मेरी कमर पर कस दीं और अपनी उंगलियों के नाखुन मेरे कंधों में गड़ा दिये। उसका बदन अकड़ गया और ज़हरा की चूत ने मेरे लंड पर पानी छोड़ दिया।
मैंने चोदना नहीं रोका और अब मैं और भी लंबे-लंबे धक्के मारते हुए चोदने लगा। पूरा लंड बाहर खींच कर एक झटके में ज़हरा की चूत में घुसेड़ने लगा। ज़हरा भी फिर से मस्ती में आ गयी और नीचे से अपने चूतड़ उछालने लगी। थोड़ी ही देर में धक्कों की रफ़्तार और बढ़ने लगी। कमरे में ज़हरा की “ऊँहहह आँहह” गूँज रही थी और उधर नज़ीला भाभी भी हमें जोश दिला रही थीं, “फक हर दीनू... और ज़ोर से चोद कुत्तिया को...!”
करीब पंद्रह-बीस मिनटों की चुदाई के बाद मैं ज़ोर से ज़हरा से लिपट गया और उसने भी मुझे ज़ोर से जकड़ लिया। हम दोनों ही झड़ने के कगार पर थे। पहले ज़हरा झड़ते हुए ज़ोरे से चींखी और मैंने भी पूरी ताकत से अपना लंड ज़हरा की चूत में अंदर तक ठाँस दिया। मेरी गोटियाँ भी ज़हरा के चूतड़ों के बीच की दरार में धंसी गयीं। अगले ही पल मेरा लंड उसकी चूत की गहरायी में पाँच-सात पिचकारियाँ मार कर झड़ गया। कुछ देर तक हम दोनों ऐसे ही लिपटे रहे। फिर जब मैंने आधा मुर्झाया हुआ लंड बाहर निकाला तो देखा उसकी चूत से वीर्य की धार बह रही थी। नज़ीला भाभी ने लपक कर अपनी जीभ ज़हरा की चूत पर लगा दी और उसमें से बहता हुआ मेरा वीर्य चाटने लगी। मेरा लंड भी नज़ीला भाभी ने चूस कर साफ किया और फिर उन्होंने ज़हरा से पूछा, “आया ना मज़ा?”
ज़हरा सिसकते हुए बोली, “या अल्लाह! इतने सालों से क्यों मैंने खुद को इतने मज़े से महरूम रखा?”
फिर मैंने नज़ीला भाभी को भी चोदा। ज़हरा भी नज़ीला भाभी की तरह ही चुदासी निकली। ज़हरा जितने दिन चंडिगढ़ रही हम तीनों रात को एक ही बिस्तर में सोते और रोज-रोज मैं उन दोनों ननद-भाभी को चोदता। दोनों चुदक्कड़ ननद-भाभी ने मुझे चुदाई की मशीन बना कर रख दिया और दोनों मिलकर मेरा लंड निचोड़ कर रख देतीं थीं। कईं दफा तो दोनों नशे धुत्त होकर में मेरे लौड़े के लिये आपस में बिल्लियों की तरह लड़ने और गाली-गलौच तक करने लगती थीं।
ज़हरा के जाने के बाद मैं करीब चार महीने चंडीगढ़ में नज़ीला भाभी के साथ रहा और उन्हें चोदता रहा।
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