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Incest मेरी प्यारी दीदी मुझसे चुद गई
#41
: मेरी प्यारी दीदी मुझसे चुद गई








Namaskar
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#42
तो मेरा भाई बोला आप भी तो सनी लेओनी से कम नहीं लगती हो. और फिर हम दोनों एक दूसरे के होठ को चूमने लगे और वो मेरी चूचियों को दबाने लगा





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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#43
उसका निचे का पेंटी तक उतार दिया और दोनों पैरो को अलग अलग कर के मैंने चूत के बिच में आ गया और छोटे छोटे भूरे बालों को जो की चूत पर था, मैंने सहलाते हुए वह पर एक जोर का किश किया. वो सिहर गई. मैंने फिर से चूमा वो मुस्कुरा दी. और बोली गुदगुदी हो रही है. मैंने कहा अच्छा और फिर जोर जोर से चूमने लगा





[Image: 44734763_006_605a.jpg]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#44
मैं और भैया उस अकेली बर्थ पर बैठ गये। सर्दियों के दिन थे। आधी रात के बद ठंड बहुत हो जाती थी। भैया ने बेग से कम्बल निकाल कर आधा मुझे उढा दिया और आधा खुद ओढ लिया। मैं मुस्कुराती हुई उनसे सट कर बैठ गयी। सारी सवारियां सोने लगी थीं। ट्रेन अपनी रफ़्तार से भागी जा रही थी।

मुझे भी नींद आने लगी थी और भैया को भी। भैया ने मुझे अपनी गोद में सिर रख कर सो जाने के लिये कहा। भैया का इशारा मिलते ही मैं उनकी गोद में सिर टिका और पैरों को फैला लिया। मैं उनकी गोद में आराम के लिये अच्छी तरह ऊपर को हो गई। भैया ने भी पैर समेट कर अच्छी तेरह कम्बल में मुझे और खुद को ढांक लिया और मेरे ऊपर एक हाथ रख कर बैठ गये।

तब तक मैंने कभी किसी पुरूष को इतने करीब से टच नहीं किया था। भैया की मोटी मोटी जांघों ने मुझे बहुत आराम पहुंचाया। मेरा एक गाल उनकी दोनो जांघों के बीच रखा हुआ था। और एक हाथ से मैंने उनके पैरों को कौलियों में भर रखा था।

तभी मेरे सोते हुये दिमाग ने झटका सा खाया। मेरी आंखों से नींद घायब हो गई। वजह थी भैया के जांघ के बीच का स्थान फूलता जा रहा था। और जब मेरे गाल पर टच करने लगा तो मैं समझ गई कि वो क्या चीज़ है। मेरी जवानी अंगड़ाइयां लेने लगी। मैं समझ गई कि भैया का लंड मेरे बदन का स्पर्श पाकर उठ रहा है।

ये ख्याल मेरे मन में आते ही मेरे दिल की गति बढ़ गई। मैंने गाल को दबा कर उनके लंड का जायज़ा लिया जो ज़िप वाले स्थान पर तन गया था। भैया भी थोड़े कसमसाये थे। शायद वो भी मेरे बदन से गरम हो गये थे। तभी तो वो बार बार मुझे अच्छी तरह अपनी टांगों में समेटने की कोशिश कर रहे थे। अब उनकी क्या कहूं मैं खुद भी बहुत गरम होने लगी थी।

मैंने उनके लंड को अच्छी तरह से महसूस करने की गरज़ से करवट बदली। अब मेरा मुंह भैया के पेट के सामने था। मैंने करवट लेने के बहाने ही अपना एक हाथ उनकी गोद में रख दिया और सरकते हुए पैंट के उभरे हुए हिस्से पर आकर रुकी। मैंने अपने हाथ को वहां से हटाया नहीं बल्कि दबाव देकर उनके लंड को देखा। उधर भैया ने भी मेरी कमर में हाथ डालकर मुझे अपने से चिपका लिया। मैंने बिना कुछ सोचे उनके लंड को उंगलियों से टटोलना शुरू कर दिया।

उस वक्त भैया भी शायद मेरी हरकत को जान गये। तभी तो वो मेरी पीठ को सहलाने लगे थे। हिचकोले लेती ट्रेन जितनी तूफ़ानी रफ़्तार पकड़ रही थी उतना ही मेरे अंदर तूफ़ान उभरता जा रहा था। भैया की तरफ़ से कोई रिएक्शन न होते देख मेरी हिम्मत बढ़ी और अब मैंने उनकी जांघों पर से अपना सिर थोड़ा सा पीछे खींच कर उनकी ज़िप को धीरे धीरे खोल दिया। भैया इस पर भी कुछ कहने कि बजाय मेरी कमर को कस कस कर दबा रहे थे।

पैंट के नीचे उन्होने अंडरवियर पहन रखा था। मेरी सारी झिझक न जाने कहां चली गई थी। मैंने उनकी ज़िप के खुले हिस्से से हाथ अंदर डाला और अंडरवियर के अंदर हाथ डालकर उनके हैवी लंड को बाहर खींच लयी। अंधेरे के कारण मैं उसे देख तो न सकी मगर हाथ से पकड़ कर ही ऊपर नीचे कर के उसकी लम्बाई मोटाई को नापा। ७-८ इंच लम्बा ३ इंच मोटा लंड था। बजाय डर के, मेरे दिल के सारे तार झनझना गये। इधर मेरे हाथ में लंड था उधर मेरी पैंट में कसी बुर बुरी तरह फड़फड़ा उठी।

इस वक्त मेरे बदन पर टाइट जींस और टी-शर्ट थी। मेरे इतना करने पर भैया भी अपने हाथों को बे-झिझक होकर हरकत देने लगे थे। वो मेरी शर्ट को जींस से खींचने के बाद उसे मेरे बदन से हटाना चाह रहे थे। मैं उनके दिल की बात समझते हुये थोड़ा ऊपर उठ गई। अब भैया ने मेरी नंगी पीठ पर हाथ फेरना शुरू किया तो मेरे बदन में करेंट दौड़ने लगा।

उधर उन्होने अपने हाथों को मेरे अनछुई चूचियों पर पहुंचाया इधर मैंने सिसकी लेकर झटके खाते लंड को गाल के साथ सटाकर ज़ोर से दबा दिया। भैया मेरी चूचियों को सहलाते सहलाते धीरे धीरे दबाने भी लगे थे। मैंने उनके लंड को गाल से सहलाया भैया ने एक बार बहुत ज़ोर से मेरी चूचियों को दबाया तो मेरे मुंह से कराह निकल गई.

हम दोनो में इस समय भले ही बात चीत नहीं हो रही थी मगर एक दूसरे के दिलों की बातें अच्छी तरह समझ रहे थे। भैया एक हाथ को सरकाकर पीछे की ओर से मेरी पैंट की बेल्ट में अपना हाथ घुसा रहे थे मगर पैंट टाइट होने की वजह से उनकी थोड़ी थोड़ी उंगलियां ही अंदर जा सकीं। मैने उनके हाथ को सुविधा अनुसार मन चाही जगह पर पहुंचने देने के लिये अपने हाथ नीचे लयी और पैंट की बेल्ट को खोल दिया। उनका हाथ अंदर पहुंचा और मेरे भारी चूतड़ों को दबोचने लगा। उन्होने मेरी गांड को भी उंगली से सहलाया। उनका हाथ जब और नीचे यानि जांघों पर पैंट टाइट होने के कारण न पहुंच सका तो वो हाथ को पीछे से खींच कर सामने की ओर लाये।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#45

मैं और भैया उस अकेली बर्थ पर बैठ गये। सर्दियों के दिन थे। आधी रात के बद ठंड बहुत हो जाती थी। भैया ने बेग से कम्बल निकाल कर आधा मुझे उढा दिया और आधा खुद ओढ लिया। मैं मुस्कुराती हुई उनसे सट कर बैठ गयी। सारी सवारियां सोने लगी थीं। ट्रेन अपनी रफ़्तार से भागी जा रही थी।
मुझे भी नींद आने लगी थी और भैया को भी। भैया ने मुझे अपनी गोद में सिर रख कर सो जाने के लिये कहा। भैया का इशारा मिलते ही मैं उनकी गोद में सिर टिका और पैरों को फैला लिया। मैं उनकी गोद में आराम के लिये अच्छी तरह ऊपर को हो गई। भैया ने भी पैर समेट कर अच्छी तेरह कम्बल में मुझे और खुद को ढांक लिया और मेरे ऊपर एक हाथ रख कर बैठ गये।
तब तक मैंने कभी किसी पुरूष को इतने करीब से टच नहीं किया था। भैया की मोटी मोटी जांघों ने मुझे बहुत आराम पहुंचाया। मेरा एक गाल उनकी दोनो जांघों के बीच रखा हुआ था। और एक हाथ से मैंने उनके पैरों को कौलियों में भर रखा था।
तभी मेरे सोते हुये दिमाग ने झटका सा खाया। मेरी आंखों से नींद घायब हो गई। वजह थी भैया के जांघ के बीच का स्थान फूलता जा रहा था। और जब मेरे गाल पर टच करने लगा तो मैं समझ गई कि वो क्या चीज़ है। मेरी जवानी अंगड़ाइयां लेने लगी। मैं समझ गई कि भैया का लंड मेरे बदन का स्पर्श पाकर उठ रहा है।
ये ख्याल मेरे मन में आते ही मेरे दिल की गति बढ़ गई। मैंने गाल को दबा कर उनके लंड का जायज़ा लिया जो ज़िप वाले स्थान पर तन गया था। भैया भी थोड़े कसमसाये थे। शायद वो भी मेरे बदन से गरम हो गये थे। तभी तो वो बार बार मुझे अच्छी तरह अपनी टांगों में समेटने की कोशिश कर रहे थे। अब उनकी क्या कहूं मैं खुद भी बहुत गरम होने लगी थी।
मैंने उनके लंड को अच्छी तरह से महसूस करने की गरज़ से करवट बदली। अब मेरा मुंह भैया के पेट के सामने था। मैंने करवट लेने के बहाने ही अपना एक हाथ उनकी गोद में रख दिया और सरकते हुए पैंट के उभरे हुए हिस्से पर आकर रुकी। मैंने अपने हाथ को वहां से हटाया नहीं बल्कि दबाव देकर उनके लंड को देखा। उधर भैया ने भी मेरी कमर में हाथ डालकर मुझे अपने से चिपका लिया। मैंने बिना कुछ सोचे उनके लंड को उंगलियों से टटोलना शुरू कर दिया।
उस वक्त भैया भी शायद मेरी हरकत को जान गये। तभी तो वो मेरी पीठ को सहलाने लगे थे। हिचकोले लेती ट्रेन जितनी तूफ़ानी रफ़्तार पकड़ रही थी उतना ही मेरे अंदर तूफ़ान उभरता जा रहा था। भैया की तरफ़ से कोई रिएक्शन न होते देख मेरी हिम्मत बढ़ी और अब मैंने उनकी जांघों पर से अपना सिर थोड़ा सा पीछे खींच कर उनकी ज़िप को धीरे धीरे खोल दिया। भैया इस पर भी कुछ कहने कि बजाय मेरी कमर को कस कस कर दबा रहे थे।
पैंट के नीचे उन्होने अंडरवियर पहन रखा था। मेरी सारी झिझक न जाने कहां चली गई थी। मैंने उनकी ज़िप के खुले हिस्से से हाथ अंदर डाला और अंडरवियर के अंदर हाथ डालकर उनके हैवी लंड को बाहर खींच लयी। अंधेरे के कारण मैं उसे देख तो न सकी मगर हाथ से पकड़ कर ही ऊपर नीचे कर के उसकी लम्बाई मोटाई को नापा। ७-८ इंच लम्बा ३ इंच मोटा लंड था। बजाय डर के, मेरे दिल के सारे तार झनझना गये। इधर मेरे हाथ में लंड था उधर मेरी पैंट में कसी बुर बुरी तरह फड़फड़ा उठी।
इस वक्त मेरे बदन पर टाइट जींस और टी-शर्ट थी। मेरे इतना करने पर भैया भी अपने हाथों को बे-झिझक होकर हरकत देने लगे थे। वो मेरी शर्ट को जींस से खींचने के बाद उसे मेरे बदन से हटाना चाह रहे थे। मैं उनके दिल की बात समझते हुये थोड़ा ऊपर उठ गई। अब भैया ने मेरी नंगी पीठ पर हाथ फेरना शुरू किया तो मेरे बदन में करेंट दौड़ने लगा।
उधर उन्होने अपने हाथों को मेरे अनछुई चूचियों पर पहुंचाया इधर मैंने सिसकी लेकर झटके खाते लंड को गाल के साथ सटाकर ज़ोर से दबा दिया। भैया मेरी चूचियों को सहलाते सहलाते धीरे धीरे दबाने भी लगे थे। मैंने उनके लंड को गाल से सहलाया भैया ने एक बार बहुत ज़ोर से मेरी चूचियों को दबाया तो मेरे मुंह से कराह निकल गई.
हम दोनो में इस समय भले ही बात चीत नहीं हो रही थी मगर एक दूसरे के दिलों की बातें अच्छी तरह समझ रहे थे। भैया एक हाथ को सरकाकर पीछे की ओर से मेरी पैंट की बेल्ट में अपना हाथ घुसा रहे थे मगर पैंट टाइट होने की वजह से उनकी थोड़ी थोड़ी उंगलियां ही अंदर जा सकीं। मैने उनके हाथ को सुविधा अनुसार मन चाही जगह पर पहुंचने देने के लिये अपने हाथ नीचे लयी और पैंट की बेल्ट को खोल दिया। उनका हाथ अंदर पहुंचा और मेरे भारी चूतड़ों को दबोचने लगा। उन्होने मेरी गांड को भी उंगली से सहलाया। उनका हाथ जब और नीचे यानि जांघों पर पैंट टाइट होने के कारण न पहुंच सका तो वो हाथ को पीछे से खींच कर सामने की ओर लाये।
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#46
मेरी ये इच्छा भी जल्द ही पूरी हो गयी। भैया मेरी टांगों में हाथ डालकर अपनी तरफ खींचने लगे थे। मैने उनकी इच्छा को समझ कर अपना सिर उनकी जांघों से उतारा और कम्बल के अंदर ही अंदर घूम गयी। अब मेरी टांगें भैया की तरफ थीं और मेरा सिर बर्थ के दूसरे तरफ था। भैया ने अब अपनी टांगों को मेरे बराबर में फैलाया फिर मेरे कूल्हों को उठा कर अपनी टांगों पर चढ़ा लिया और धीरे धीरे कर के पहले मेरी पैंट खींच कर उतार दी और उसके बाद मेरी पैंटी को भी खींच कर उतार दिया अब मैं कम्बल में पूरी तरह नीचे से नंगी थी। अब शायद मेरी बारी थी मैं ने भी भैया के पैंट और अंडर वियर को बहुत प्यार से उतार दिया। अब भैया ने थोड़ा आगे सरक कर मेरी टांगों को खींच कर अपनी कमर के इर्द गिर्द करके पीछे की ओर लिपटवा दिया।

इस समय मैं पूरी की पूरी उनकी टांगो पर बोझ बनी हुयी थी। मेरा सिर उनके पंजों पर रखा हुआ था। मैने ज़रा सा कम्बल हटा कर आसपास की सवारियों पर नज़र डाली सभी नींद में मस्त थे। किसी का भी ध्यान हमारी तरफ़ नहीं था। फिर मेरी नज़र भैया की तरफ पड़ी उनका चेहरा आवेश के कारण लाल भभूका हो रहा था वो मेरी ओर ही देख रहे थे न जाने क्यों उनकी नज़रों से मुझे बहुत शरम आयी और मैने वापस कम्बल के अंदर अपना मुंह छुपा लिया।

भैया ने फिर मेरी बुर को टटोला। मेरी बुर इस समय पूरी तरह रस से भरी हुई थी फिर भी भैया ने ढेर सारा थूक उस पर लगाया और अपने लंड को मेरी बुर पर रखा उनके गर्म सुपाड़े ने मेरे अंदर आग दहका दी फिर उन्होने टटोल कर मेरी बुर के मुहाने को देखा और अच्छी तरह सुपाड़ा बुर के मुंह पर रखने के बाद मेरी जांघें पकड़ कर हल्का सा धक्का दिया मगर लंड अंदर नहीं गया बल्कि ऊपर की ओर हो गया।

भैया ने इसी तरह एक दो बार और कोशिश किया वो आसपास की सवारियों की वजह से बहुत सावधानी बरत रहे थे। इस तरह जब वो लंड न डाल सके तो खीज कर अपने लंड को मेरी बुर के आस पास मसलने लगे। मैने अब शरम त्याग कर मुंह खोला और उन्हें सवालिया निगाहों से देखा। वो बड़ी बेबस निगाहों से मुझे देख रहे थे। मैने सिर और आंखों के इशारे से पूछा “कया हुआ?”

तब वो थोड़े से नीचे झुक कर धीरे से फुसफुसाये, “आस पास सवारियां मौजूद हैं गुडू इसलिये मैं आराम से काम करना चाहता था मगर इस तरह होगा ही नहीं, थोड़ी ताकत लगानी पड़ेगी।”

“तो लगाओ न ताकत भैया” मैं उखड़े स्वर में बोली।

“ताकत तो मैं लगा दूंगा परंतु तुम्हे कष्ट होगा क्या बरदाश्त कर लोगी?”

“आप फ़िक्र न करें कितना ही कष्ट क्यों न हो मैं एक उफ़ तक न करूंगी। आप लंड डालने में चाहे पूरी शक्ति ही क्यों न झोंक दें।”

“तब ठीक है मैं अभी अंदर करता हूं” भैया को इतमिनान हो गया।

और इस बार उन्होने दूसरी ही तरकीब से काम लिया। उन्होने उसी तरह बैठे हुये मुझे अपनी टांगों पर उठा कर बिठाया और दोनो को अच्छी तरह कम्बल से लपेटने के बाद मुझे अपने पेत से चिपका कर थोड़ा सा ऊपर किया और इस बार बिल्कुल छत की दिशा में लंड को रखकर और मेरी बुर को टटोलकर उसे अपने सुपाड़े पर टिका दिया। मैं उनके लंड पर बैठ गयी। अभी मैने अपना भार नीचे नहीं गिराया था। मैने सुविधा के लिये भैया के कंधों पर अपने हाथ रख लिये।
भैया ने मेरे कूल्हों को कस कर पकड़ा और मुझसे बोले, “अब एक दम से नीचे बैठ जाओ”

मैं मुस्कुराई और एक तेज़ झटका अपने बदन को देकर उनके लंड पर चपक से बैठ गयी। उधर भैया ने भी मेरे बदन को नीचे की ओर दबाया। अचानक मुझे लगा जैसे कोई तेज़ धार खंजर मेरी बुर में घुस गया हो। मैं तकलीफ़ से बिलबिला गयी। क्योंकि मेरी और भैया की मिली जुली ताकत के कारण उनका विशाल लंड मेरी बुर के बंड दरवाज़े को तोड़ता हुआ अंदर समा गया और मैं सरकती हुयी भैया की गोद में जाकर रुकी।

मैने तड़प कर उठना चाहा परंतु भैया की गिरफ़्त से मैं आज़ाद न हो सकी। अगर ट्रेन में बैठी सवारियों का ख्याल न होता तो मैं बुरी तरह चीख पड़ती। मैं मचलते हुये वापस भैया के पैरों पर पड़ी तो बुर में लंड तनने के कारण मुझे और पीड़ा का सामना करना पड़ा। मैं उनके पैरों पर पड़ी पड़ी बिन पानी मछली की तरह तड़पने लगी।

भैया मुझे हाथों से दिलासा देते हुये मेरी चूचियों को सहला रहे थे। करीब १० मिनट बाद मेरा दर्द कुछ हल्का हुआ तो भैया कूल्हों को हल्के हल्के हिला कर अंदर बाहर करने लगे।

फिर दर्द कम होते होते बिल्कुल ही समाप्त हो गया और मैं असीमित सुख के सागर में गोते लगाने लगी।

भैया धीरे से लंड खींच कर अंदर डाल देते थे। उनके लंड के अंदर बाहर करने से मेरी बुर से चपक चपक की अजीब अजीब सी आवाज़ें पैदा हो रही थीं। मैने अपनी कोहनियों को बर्थ पर टेक कर बदन को ऊपर उठा रखा था और खुद थोड़ा सा आगे सरक कर अपनी बुर को वापस उनके लंड पर ढकेल देती थी।

इस तरह से आधे घंटे तक धीरे धीरे से चोदा चादी का खेल चलता रहा और अंत में मैने जो सुख पाया उसे मैं बयान नहीं कर सकती।

भैया ने टोवल निकाल कर पहले मेरी बुर को पोंछा जो खून और हम दोनो के रज और बीज से सनी हुई थी उसके बाद मैने उनके लंड को पोंछा और फिर बारी बारी से बाथरूम में जाकर फ़्रेश हुये और कपड़े पहने।

मेरे पूरे बदन में मीठा मीठा दर्द हो रहा था। यहींन से हम दोनो भाई बहन न होकर प्रेमी प्रेमिका बन गये। अब जब भी भैया घर आते मुझे बिना चोदे नहीं मानते हैं मुझे भी उनका इंतज़ार रहता है। मगर अभी तक किसी और को मैने अपना बदन नहीं सौंपा है और न कोई इरादा है
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#47
रेन में मिली देसी चुत की चुदाई
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#48
अभी कुछ दिनों पहले मुझे कानपुर से झांसी जाना था. मैं वैसे तो हमेशा बस से जाता हूँ, पर इस बार एक दोस्त मिल गया.

वो बोला- ट्रेन से चलो.
मैंने कहा- ठीक है.

हम लोग अगले दिन सुबह 8 बजे निकल गए. झांसी तक के लिए जनरल टिकट ले ली और लगेज वाले बोगी में चढ़ गए, क्योंकि उसमें भीड़ कम थी.

इस डिब्बे में कुछ ही लोग थे. एक औरत भी थी, जिस पर मेरी नज़र बाद में पड़ी. जब मैं आराम से बैठ गया, तब मेरी उस महिला पर नजर पड़ी. वो देखने में कुछ खास नहीं थी या फिर सफर की वजह से कोई ज्यादा सजी धजी नहीं थी. पर जो भी हो, वो एक मस्त औरत थी और मुझे उसे देखने में मज़ा आ रहा था.

हालांकि मैं उसे उतनी गौर से नहीं देख पा रहा था क्योंकि मुझे डर था कि कहीं इसका पति इसके साथ न हो. पर ये मेरा डर कुछ ही देर में खत्म हो गया क्योंकि उसके साथ एक लड़का और बच्चा ही था.

जब धीरे धीरे लोग आने वाले छोटे छोटे स्टॉप पर उतरते चले गए. तब मुझे उसे देखने का अवसर मिलने लगा.

अब डिब्बे में मेरे अलावा मेरा दोस्त, वो, उसके साथ का लड़का और कुछ लोग ही रह गए थे. वे सब अपने अपने में मस्त थे.

मैं उसको देखता रहा और अपना लंड मसलता रहा, पर जब वो मेरी तरफ देखती, तो मैं मुस्कुरा देता.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#49
कुछ देर ऐसे ही चलता रहा, फिर उसका बच्चा रोने लगा. उसका बच्चा छोटा था, तब मुझे लगा कि अब मज़ा आएगा.

वही हुआ … उसने अपना बच्चा उठाया और उसे अपने मोटे मोटे चुचों से लगा लिया. वो बच्चा अपने मुँह में निप्पल लेते ही बिल्कुल शांत हो गया. ये देख कर मैंने मन में सोचा कि अब इसकी चूचियों के दीदार हो जाएं तो मजा आ जाए.

मैं जानता था कि ट्रेन की हवा से इसकी साड़ी जरूर उड़ेगी.
वैसा ही हुआ.

थोड़ी देर में उसकी साड़ी का आंचल ऊपर को हुआ और मुझे उसके थोड़े से चुचों के दीदार हो गए. उसने भी अपना पल्लू जल्दी से सही कर लिया, पर उसे पता चल गया था कि मैंने उसके मम्मों को देख लिया है. मैं अपने ख्यालों में उसके चुचों को किसी बच्चे की तरह पी रहा था.

अचानक अगला स्टॉप आया और ट्रेन रुक गई. उसके साथ वाला लड़का, उससे बोल कर नीचे चला गया कि मैं दूसरी बोगी में सीट देखने जा रहा हूँ.

ये कह कर वो चला गया. मैंने अपने दोस्त को भी सीट देखने भेज दिया. मैंने उससे कह दिया था कि वहीं रहना और उस लड़के को भी बिजी रखना. दोस्त समझ गया.

यही हुआ भी. थोड़ी देर में ट्रेन चलने लगी और उसके साथ वाला लड़का वापस नहीं आया.

अब बोगी में सिर्फ मैं और वो थी. उसके साथ उसका बच्चा था, जिसका मैं शुक्रगुजार था कि उसकी वजह से उसकी माँ मुझे चोदने को मिल सकती है.

ट्रेन चल दी. मैं अपनी जगह पर बैठा रहा और उसे देखता रहा. शायद अब वो मेरी मंशा जान चुकी थी … मगर उसने कुछ भी प्रतिक्रिया नहीं दी.

इतने में उसका बच्चा फिर से रोने लगा. उसने मेरी तरफ देखा, तो मैंने आंखें बंद कर ली थीं, ताकि वो खुल कर अपने बच्चे को दूध पिला सके.

उसने मेरी तरफ देखा और अपने बच्चे को दूध पिलाने लगी. वो दूध पिलाते हुए सो सी गई और तभी हवा के कारण उसकी साड़ी उसके मम्मों से उड़ गई. उसके एक नंगा स्तन मेरे सामने खुल गया था. मुझे मस्त भरा हुआ दूध देख कर ऐसा लगा कि मैं अभी जाकर उसकी चूची को चूस लूं और इसे चोद दूं. पर मैंने काबू किया और उसके जागने का इंतज़ार किया.

जब वो जागी, तो अपनी हालत देख कर शरमा गई. उसने मेरी तरफ देखा, तो मैं मुस्कुरा रहा था. वो भी मुस्कुरा दी.

मुझे लगा कि अब ये पट गई. मैं उठ कर उसके पास गया और उसकी तारीफ करने लगा. वो भी खुश सी दिखने लगी.

मैंने उससे पूछा- कहां जा रही हो.

तो पता चला कि वो भी अपने मायके झांसी जा रही थी. जो उसे लेने आया था, वो उसके चाचा का लड़का है.

मेरी उससे यहां वहां की बातें होती रहीं. बात ही बात में पता चला उसका पति कहीं बाहर नौकरी करता है और घर कम ही आ पाता है.
हवा तेज होने की वजह से मैंने उससे कहा- तुम इधर को आ जाओ, आवाजें समझ नहीं आ रही हैं.

वो मेरे करीब आ गई और मेरे पास चिपक कर बैठ गई. मुझे कोई डर नहीं था क्योंकि आखिरी स्टॉप झांसी था. मेरे पास टाइम और चुदने लायक चुत दोनों थे.

मैंने उसके कंधे पर हाथ रख लिया और हमारी बातें होती रहीं. तभी उसका बच्चा फिर से रोने लगा. वो फिर से उसे दूध पिलाने लगी.

मेरे मुँह से निकल गया दिन में ये बच्चा परेशान करता है और शाम को बच्चे के पापा.
वो हंस कर बोली- शाम को परेशान करने वाला कोई है ही कहां?
मैंने कहा- क्यों ये बच्चा किधर से आया … इसके पापा ने ही तो परेशान किया होगा.

वो हंस दी और कुछ नहीं बोली.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#50
मैंने उससे कहा- तुम आराम से बैठ जाओ. हवा तेज चल रही है.

वो मुझसे टिक गई और बात करते करते सो गई. कुछ पल बाद वो मेरे सीने से टिक गई.

मैं भी उसके शरीर की गर्मी का पूरा मजा ले रहा था. मैंने भी अपना हाथ उसके कंधों से आगे करके उसके चूचे के करीब रख दिया था. उसने कुछ नहीं कहा, तो मैं धीरे से उसे सहलाने लगा. हालांकि मेरे हाथ कंप रहे थे. मैंने हाथ कुछ और नीचे किया, तो थोड़ी ही देर में मेरा हाथ उसके चुचे से टकरा गया. मुझे महसूस हुआ कि बच्चे को दूध पिलाने के बाद इसने अभी अपना ब्लाउज़ नीचे नहीं किया है. मैंने दूध टटोला और तुरंत अपना हाथ हाथ हटा लिया.

पर ये तो आप भी समझते हैं कि एक बार कोई चीज छूने को मिले, तो दुबारा मन और बढ़ जाता है.

मैंने दूसरी बार हाथ ले जाकर उसके चुचों पर रख दिया और जरा सा सहला दिया. इससे वो जाग गई और अपना ब्लाउज सही करने लगी. उसने मेरा हाथ आराम से हटा दिया और फिर सो गई. उसके हटाने में कोई विरोध नहीं था.

मैंने सोचा कोई जल्दी नहीं है, आराम से काम करते हैं और मैं उसकी पीठ सहलाने लगा. वो लगभग मेरी बांहों में समा चुकी थी. मैंने उसकी कमर पर हाथ रखा, तो वो बहुत गर्म थी.

मैं मस्ती से सहलाने लगा. अब उसने भी मेरे सीने को जकड़ लिया था. उसके स्तन मेरे सीने पर आ गए थे और मेरा हाथ उसकी पीठ पर था.

मेरा हाथ अब मेरे काबू से बाहर हो चुका था और साड़ी के ऊपर से उसकी गांड को सहलाने लगा था. देखते ही देखते मेरी हिम्मत इतनी बढ़ चुकी थी कि मेरा हाथ अब उसकी साड़ी के अन्दर चला गया था. उसकी पैंटी मेरे हाथ में टच होने लगी थी. उसकी गांड और हाथ के बीच में सिर्फ पेंटी थी.

मैंने अपना हाथ पेंटी के अन्दर कर दिया और उसकी गांड का स्पर्श पाते ही मेरा हाथ जल उठा. उसकी गर्म गांड की तपिश मेरा हाथ सहन नहीं कर पा रहा था.

पहली बार किसी लड़की की गांड को हाथों से स्पर्श करना मेरे लिए रूहानी सा था. शायद आपने भी कभी ऐसा महसूस किया होगा. उसका हाथ भी हरकत करने लगा था. ये महसूस करते ही मैंने अपने दूसरे हाथ से अपना लंड बाहर निकाला और उसके हाथों में दे दिया. उसने भी तुरंत लंड हाथ में ले लिया और जोर जोर से हिलाने लगी. मैं सातवें आसामान पर था.

मैंने उसे एक पल के लिए रोका और मैं उठकर गेट बंद करने चला गया. मैं गेट लगाने के बाद नीचे लेट गया और उसे अपने पास बुला लिया. उसने अपने बच्चे को एक तरफ लिटा दिया.

पहले तो मैंने उससे कहा- तुम ब्लाउज उतारो. मुझे तुम्हारे चूचे देखने हैं.
उसने तुरंत ब्लाउज खोल दिया और मैं भूखे भेड़िए की तरह उसके मम्मों पर टूट पड़ा. मैं निप्पल चूसने लगा.

इस समय मैं एक छोटे बच्चे की तरह महसूस कर कर रहा था. मेरे दिमाग में कुछ नहीं चल रहा था, मैं बस उसकी चूचियों का आनन्द ले रहा था. उसका दूध मेरी जीभ को स्वाद दे रहा था.

उसके बाद मैंने उससे कहा- तुम लेट जाओ.

वो लेटने लगी तो मैंने उसकी साड़ी उतार दी और पैंटी के ऊपर से उसकी चुत मसलने लगा. यह बहुत हसीन एहसास था. मैंने उसकी पैंटी उतार दी और अब उसकी चुत और मेरे हाथ के बीच में कोई नहीं था.

मैं उसकी चूत को इस तरह से सहला रहा कि उसमें से जल्दी से रस निकल आए. इसी रस के लिए दुनिया पागल है. साथ ही मैं उसकी चुत को ऐसे मसल रहा था, जैसे मैं कुछ ढूंढ रहा हूं, जैसे मेरा कुछ उसके अन्दर खो गया हो.

देखते ही देखते पता नहीं क्या हुआ कि मैंने अपना मुँह अपनी जीभ उसकी चुत पर रख दिया और उसे किसी आम की फांक की तरह चूसने लगा. उसने भी टांगें खोल दीं और चुत चटवाने का मजा लेने लगी. वो बड़ी चुदासी थी.

उसकी चुत चाटते हुए मुझे बहुत अजीब लग रहा था, पर मैं खुद को रोक नहीं पा रहा था. उसके चेहरे पर वासना के भाव देखकर मैं और उत्साहित होता जा रहा था.

थोड़ी देर में उसकी चुत से कुछ रस सा निकल गया. उसकी चुत के रस का नमकीन स्वाद था. मैं उस नमकीन शहद को पी गया.

उसने मुझे रोकने का इशारा किया पर मैं कहां रुकने वाला था. मैं न जाने कितने समय से भूखा था. फिर मैंने उसकी चुत को छोड़ दिया और चूची मुँह में लेकर चूसने का काम करने लगा. वहां भी मुझे पीने के लिए दूध मिल गया. मेरी भूख तो कम हो गई, पर वासना और बढ़ गई.

उसके गोरे स्तनों पर काला निप्पल जामुन के जैसे लग रहा था और चूसने में उतना ही रसीला था.

उसके बाद कुछ देर तक हम किस करते रहे और वह भी मुझे सहलाती रही.

फिर मैंने उससे कहा- अब तुम मेरा लंड चूसो.
उसने मना कर दिया.
मेरी लाख कोशिशों के बाद भी वह नहीं मानी और मैंने ज्यादा जबरदस्ती करना ठीक नहीं समझा.

मैं समझ गया था कि इसका पानी निकल चुका है, इसलिए नखरे कर रही है. इसे फिर से गर्म करना होगा.

मैंने उसे घोड़ी बनने को बोला तो वो ट्रेन में चौपाया बन गई. मैं पीछे से कुत्ते की तरह उसकी गांड चाटने लगा. वो मचल उठी. जब मैंने उसकी गांड में उंगली डाली, तो वो चिहुंक गई और उसने मेरी उंगली हटा दी. फिर मैं उसकी चूत चाटने लगा और उसे गर्म करके आधा में ही छोड़ दिया.

अब वो कहने लगी कि लंड डालो.
मैंने कहा- पहले मेरा चूसो.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#51
से वही करना पड़ा. उसने जैसे ही मेरा लंड अपने मुँह में लिया, तो मैं जीवन में पहली बार आसामान पर उड़ने लगा था. मुझसे यह बर्दाश्त नहीं हुआ और मैंने अपना पानी छोड़ दिया.
पर मुझे आश्चर्य हुआ कि उसने लंड रस की एक बूंद भी गिरने नहीं दी. वह सारी मलाई अमृत की तरह पी गई.
अब उसे भी मजा आ रहा था तो हम दोनों सिक्सटी नाइन की पोजीशन में आ गए. उसके मुँह में मेरा लंड था और मेरे मुँह में उसकी चुत थी. जितनी अच्छी तरह से मैं उसकी चुत चाट रहा था, उतनी ही बेदर्दी से वो मेरा लंड चाट रही थी.
हम दोनों ने फिर से एक दूसरे के मुँह में अपना पानी छोड़ दिया और निढाल होकर एक दूसरे से चिपके लेटे रहे.
कुछ देर बाद फिर मेरे लंड ने उफान मारा और मैं अब खेल खत्म करना चाहता था, पर वो बुरी तरह से थक चुकी थी.
मैंने उसे परेशान करना ठीक नहीं समझा और उसके बगल में लेट गया. मैं उसके दूध भरे चुचे चूसने लगा.
जब मैंने उसका हाथ अपने लंड पर महसूस किया, तो मैं समझ गया कि खेल अब शुरू हो सकता है.
मैंने उसे किस किया और वो मेरी छाती के निप्पल चाटने लगी. मुझे बहुत अच्छा लग रहा था. फिर वो मेरे ऊपर चढ़ कर बैठ गई और अपनी चूत में लंड को घिसने लगी. आह चूत की गर्मी का अहसास का अपना अलग एक मज़ा है. पर वो लंड अन्दर नहीं ले रही थी, शायद वो दर्द से डर रही थी.
मैंने उससे घोड़ी बनने को बोला. वो झट से बन गई. मैंने पीछे आकर चुत पर थूक लगाया और अपना लंड पेल दिया.
वो दर्द से चिल्ला उठी और उसके मुँह से निकला- आंह मादरचोद … चोद दे इस चूत को … उम्म्ह… अहह… हय… याह… फाड़ डाल इस चूत को … बहुत परेशान करती है.
मैं भी जोश में था. उसकी गांड पर एक चांटा मार दिया.
वो चिल्ला उठी, उसके मुँह से आवाजें आ रही थीं- अहा याह आह.
ऊपर से मैं उसके दूध मसल कर उसे और गर्म करता जा रहा था.
फिर अचानक मैंने चुदाई रोकी, पर लंड उसकी चूत के अन्दर ही था. मैं उसकी चूत को महसूस कर रहा था कि कैसे उसकी चुत ने मेरे लंड को अपना समझ कर पकड़ लिया है. फिर वो खुद आगे पीछे होने लगी, तो मैंने उसकी कमर पकड़ कर फिर से उसे चोदना शुरू कर दिया.
थोड़ी देर में मेरा गर्म लावा फट कर उसकी चूत में चला गया और मैं उसके ऊपर ही गिर गया.
उसका पानी भी निकल गया था.
कुछ मिनट के बाद वो फिर से चुदना चाहती थी. वो मुझे खुश करने लगी. कहीं वो अपनी चूत मेरे मुँह के पास लाती, तो कभी गांड, तो कभी चूचे. उसने फिर से मेरा लंड मुँह में ले लिया और चूसने लगी.
मैंने इशारा किया कि चूत यहां लाओ.
वो आ गई. हम लोग 69 की पोजीशन में आ गए. जब मेरा लंड पूरी तरह सख्त हो गया, तो मैंने उसे हटाया और उसको पीछे से पकड़ कर किस करने लगा. उसकी गांड दबाने लगा.
शायद वो समझ गई थी कि अब उसकी गांड फटने वाली है.
मैंने भी ज्यादा देर ना करते हुए बहुत सारा थूक उसकी गांड के छेद पर लगा दिया. मैंने उससे पूछा- तुम तैयार हो इस हसीन दर्द के लिए … जो एक हसीन याद की तरह जिंदगी भर तुम्हारे साथ रहेगा.
वह नीचे देख कर मुस्कुराती रही.
मैं उसकी हां को समझ गया था. मैंने उसे इशारा किया कि पूरी घोड़ी बन जाओ … ताकि मैं बंदूक निशाने पर लगा सकूं.
वह घोड़ी बन गई, मैंने ज्यादा देर ना करते हुए अपना लंड उसकी गांड के छेद पर लगा दिया और जोरदार धक्के के साथ अपना लंड उसकी गांड के अन्दर डाल दिया. इस के साथ मैंने उसके मुँह को हाथों से दबा दिया था, ताकि हमारी आवाजें दिक्कत ना कर सकें.
उसकी दर्द भरी आवाजें निकलने लगीं. शायद पहली बार अपनी गांड में लंड ले रही थी. इसलिए मैंने भी जल्दबाजी करना ठीक नहीं समझा और धीरे धीरे अपना लंड अन्दर-बाहर करने लगा.
मुझे एहसास हुआ कि उसकी आंखों से आंसू निकल रहे हैं. मुझे दुख हुआ और मैंने अपना लंड बाहर निकाल दिया.
थोड़ी देर में सब नॉर्मल हो गया और वह मुझसे कहने लगी- गांड अगली बार मार लेना.
मैंने कहा- अगली बार कैसे मिलोगी?
तो उसने कहा- मैं सब बता दूंगी.
मैंने हां कर दी. फिर हमने साधारण चुदाई की और एक साथ नंगे लेट गए.
थोड़ी देर बाद हम दोनों ने कपड़े पहने और उसने मुझे अपना नंबर दिया और घर का पता दिया.
इसके बाद हम लोग गेट खोल कर ऐसे बैठ गए, जैसे कुछ हुआ ही नहीं. थोड़ी देर में स्टॉप आ गया और मैं उतर गया. मेरे दोस्त के साथ उसका भाई भी आ गया और वो लोग भी चले गए.
fight fight fight fight fight
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#52
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#53
बस के हिचकोले से वो बार बार मुझ पर गिर सी जाती थी। एक बार तो उनका हाथ मेरे लण्ड पर भी पड़ गया। मुझे लगा कि दीदी जान कर के मुझे उकसा रही है। मैं भी जवान था, मेरे दिल में भी हलचल मच गई। शाम होते होते हम जयपुर पहुंच चुके थे। टूसीटर ले कर हम सामने ही होटल में रुक गये और वहीं से दूसरे दिन का उदयपुर स्लीपर का रिजर्वशन करवा लिया। दीदी काऊंटर पर गई और कमरा बुक करवा लिया। मैंने सारा सामान एक साईड में रख दिया।

हमने खाना जल्दी ही खा लिया और होटल के बाहर टहलने लगे। दीदी मुझे कभी आईसक्रीम तो कभी कोल्ड ड्रिंक पिला कर मुझे खुश कर रही थी। मुझे लगा मुझे भी दीदी के बदन को हाथ लगा कर खुश कर देना चाहिये। सो मैंने टहलते हुए मजाक में दीदी के चूतड़ पर हाथ मार दिया। उस हाथ मारने में मुझे उनके गाण्ड का नक्शा भी महसूस हो गया। दीदी की गाण्ड पर मेरा हाथ लगते ही वो चिहुंक गई….मुझे फिर से उसने मुस्करा कर देखा, मुझे इस से ओर बढ़ावा मिला। मुझे भी बहुत आनन्द आ रहा था इस सेक्सी खेल में।

“शैतान….मारने को यही जगह मिली थी क्या….?” मतलब भरी निगाहों से मुझे देखते हुए उसने कहा।

“दीदी….मजा आया ना….! नरम गद्देदार है….!” मैंने उसे छेड़ा।

“चल हट…. ” कह कर दीदी ने भी मेरी चूतड़ पर एक चपत लगा दी।

“दीदी एक और चपत लगाओ ना….” मैंने शरारत से कहा।

“क्यो तुझे भी मजा आया क्या ?” दीदी मुस्कराने लगी।

“हां….लगता है खूब मारो और बल्कि दबा ही दो !” मैं भी थोड़ा खुल गया।

“जानता है मुन्ना….मेरी भी हनीमून मनाने की इच्छा होती है !”

ये सुनते एकाएक मुझे विश्वास नहीं हुआ। मैंने अन्जान बनते हुए कहा,”ये कहां मनाते हैं? कैसे करते हैं?”

“होटल में और कहां….!” दीदी ने मेरी ओर देखते हुए कहा।

“होटल में….चलो ज्यादा से ज्यादा कुछ खर्चा हो जायेगा….पर तुम्हारी इच्छा तो पूरी हो जायेगी ना….”

“बुद्धू …. नहीं मालूम है क्या….?”

“दीदी….कोई बताये तो मालूम हो ना…. हाँ एक फ़िल्म आई थी….मैंने नहीं देखी थी !”

“पागल है तू तो …. तुझे सब सिखाना पड़ेगा…. बोल सीखेगा?” मुझे मालूम हो गया कि दीदी मुझसे चुदना चाहती है।

“हनीमून सीखने वाली बात है क्या?”

दीदी मेरी पीठ पर घूंसे मारने लगी।

रात के 9 बजने को थे। हम फिर से होटल के कमरे में आ गये और सोने की तैयारी करने लगे। अचानक मेरी नजर बिस्तर पर गई। एक ही सिंगल बिस्तर था। मुझे लगा दीदी ने जान बूझ कर के सिंगल बेड लिया है, मैंने अपना पजामा पहन लिया और अंडरवियर मैंने नहीं पहनी। मैं दीदी को अपना फ़ड़फ़ड़ाता लण्ड दिखाना चाहता था। मैंने झुक कर देखा तो पजामे में से मेरा झूलता हुआ लण्ड बाहर से ही नजर आ रहा था।

दीदी मेरी सब बातों को नोट कर रही थी और मुस्करा रही थी। मेरे झूलते हुए लण्ड को तिरछी नजरों से देख भी रही थी। मुझे भी अब शरीर में सनसनी होने लगी थी। लण्ड भी अब खड़ा होने लगा था। दीदी ने भी अपना नाईट गाऊन पहन लिया पर मेरी तेज निगाहों ने भांप लिया था कि अन्दर वो कुछ नहीं पहने थी। मुझे लगा कि दीदी आज सेक्सी मूड में हैं, और शायद हीट में भी हैं….दीदी ने अपने हाथों को उठा कर और अपनी चूंचियों को उभार कर एक भरपूर अंगड़ाई ली ….मुझे लगा कि मेरे दिल के सारे टांके टूट जायेंगे। मुझे महसूस हुआ कि मैं इसका फ़ायदा ले सकता हूँ। शायद मेरी किस्मत खुल जाये। दीदी बिस्तर पर लेट गई और बोली…”अरे मुन्ना….यहीं आजा तू भी….”

सुनते ही मेरा लण्ड कड़क गया। मैं भी लाईट बन्द करके दीदी की बगल में लेट गया। बिस्तर बहुत ही संकरा था। हम दोनों का बदन छू रहा था। मेरा हाथ उनके बदन पर यहाँ वहाँ लग जाता था पर वो कुछ नहीं कह रही थी। कुछ ही देर में वो सो गई। पर मेरे दिल में हलचल थी। लण्ड भी कड़ा हो रहा था।

अचानक दीदी ने नींद में अपना हाथ मेरे लण्ड पर रख दिया….मेरे जिस्म में झुरझुरी आ गई पर उसने किया कुछ नहीं। मैंने लण्ड को थोड़ा सा और कड़ा कर दिया और हिला दिया। पर दीदी ने कुछ नहीं किया। वो नींद में मेरे से और चिपक गई। उनका हाथ मेरे पेट पर से होता हुआ लण्ड पर था। मुझे दीदी के जवान जिस्म की अब महक आने लगी थी। मैंने भी अपनी हथेली उनकी चूचियों के ऊपर जमा दी और उनके सांस लेते समय उनकी उठती और गिरती छातियों को हल्के से दबा कर मजे ले रहा था।

शायद दीदी की नींद खुल गई थी या वो नाटक कर रही थी। उन्होने चुपके से मेरी तरफ़ देखा, और मेरी नजरें उनसे मिल ही गई। हम दोनों आपस में एक दूसरे को निहारने लगे। उसकी आंखों में निमंत्रण था, भरपूर वासना थी। मेरे हाथ उसने नहीं हटाये और ना ही मेरे लण्ड पर से उसका हाथ हटा। हम दोनों ने एक दूसरे की मौन स्वीकृति पा कर मैंने उसकी चूंची पर दबाव बढ़ा दिया और नीचे मेरे लण्ड पर उसके हाथ का कसाव बढ़ गया। दोनों के मुख से एक साथ सिसकारियाँ फ़ूट पड़ी।

मेरा लण्ड मसलते हुए बोल पड़ी,”मुन्ना क्या कर रहा है….छोड़ दे ना….”

“दीदी…. हाय….आप कितनी अच्छी है…!.” मैंने गाऊन के अन्दर हाथ डाल दिया और चूंचियों का जायका लेने लगा, और मसलने लगा।

“मुन्ना….हाय कितना शैतान है रे तू….मेरे तो बोबे ही मसल डाले रे….!” दीदी ने मेरा पजामा का नाड़ा खींच दिया और अन्दर हाथ डाल कर मेरा लण्ड पकड़ लिया।

“दीदी….जरा जोर से मसलो ना…. दबाओ और दबाओ….बहुत मजा आ रहा है….!”

“तू भी मेरे बोबे खींच खींच कर दबा डाल….हाय रे….तू अब तक कहां था रे….!” मैंने दीदी की चूंची निकाल कर मुख में भर ली और मैं दूध पीने लगा। मेरा दूसरा हाथ उनकी चूत पर पहुंच गया। मैंने उनकी चूत दबा दी।

वो तड़प उठी….”अरे छोड़ दे जालिम मेरी चूत….”

“दीदी….तू भी मेरा लण्ड छोड़ दे….हाय रे….!”

“मुन्ना….चल अपन दोनों हनीमून मना लें….!”

“कैसे….?”

मेरा गाऊन ऊपर करके मेरे से चिपक जा….हनीमून अपने आप हो जायेगा। “

“सच दीदी….” मुझे तो अब चोदने की लग रही थी। लण्ड बेकाबू होता जा रहा था। मैंने गाऊन ऊंचा करके लण्ड उसकी चूत पर गड़ा दिया। दीदी ने अपनी चूत का मुँह खोल कर मेरे लण्ड का चिकना सुपाड़ा अपनी गीली चूत में फ़ंसा लिया और जोर लगा कर लण्ड अपनी चूत में अन्दर सरकाने लगी।

“ये लो मुन्ना….बन गया हनीमून…. अ….अ….आह्….स्सीऽऽऽऽऽऽऽ ….अह्ह्ह्ह्ह्….” लण्ड गहराई में धंसता चला गया। मेरे लण्ड के सुपाड़े में मिठास आने लगी। मैंने भी अपने चूतड़ का जोर लगा कर पूरा अन्दर तक घुसा डाला। दीदी तो चुद्दकड़ निकली….इतनी गहराई तक लण्ड लेने के बाद तो उसे और मस्ती चढ़ गई…. वो मेरे से चिपकती गई। मैंने उसे अपने नीचे दबा लिया और उसके ऊपर चढ़ गया। और उसकी नरम नरम चूत को चोदने लगा…. वो नीचे दबी सिसकती रही…. मैं आनन्द के सागर में डूब चला था। दीदी के कड़कती चूचियों को मसलता जा रहा था।

दीदी जैसे चुदाते समय भी तड़प रही थी, जैसे उसकी सारी इच्छायें पूरी हो रही हों…. कुछ ही देर में उसकी शरीर में जैसे ताकत भर गई हो….मुझे उसने बुरी तरह से भींच लिया….और सिसकी लेती हुई झड़ने लगी। मुझे भी लगा कि जैसे सारा संसार मेरे में सिमट रहा हो…. मेरे जिस्म ने ऐठन के साथ ही लण्ड से सारा वीर्य निकाल दिया। सारा वीर्य उसकी चूत में भरने लगा….मेरा लण्ड बार बार रुक रुक कर वीर्य छोड़ रहा था….जैसे सारा जिस्म निचोड़ लिया हो। मैं निढाल हो कर एक तरफ़ चित लेट गया। हम दोनों ही जाने कब सो गये।

सवेरे उठते ही नहा धो कर हमने नाश्ता किया। और घूमने निकल पड़े…. दिन भर में सारा काम निपटाया और रात की बस में बैठ गये। बस लगभग खाली थी। ठीक साढ़े नौ बजे बस रवाना हो गई। बस के चलने के बाद बस की लाईटें बन्द हो गई। अभी हम नीचे सीट पर ही बैठे थे जिसे हमें अजमेर में खाली करके स्लीपर में जाना था। सीट के साथ लगे पर्दे मैंने खींच दिये।

अंधेरे का फ़ायदा मैंने उठाते हुए दीदी के बोबे मसलने चालू कर दिये, दीदी ने भी मेरा लण्ड बाहर निकाल कर झुक कर चूसना शुरू कर दिया। वो मेरे सुपाड़े के रिंग को खास तरह से चूस रही थी। मेरा लण्ड बेहद कड़ा हो गया था। साथ में मैं सावधानी से इधर उधर भी देख लेता था कि कोई हमें देख तो नहीं रहा है….पर सब अलसाये हुए से आंखे बन्द किये पड़े थे। मैंने अब दीदी का सर अपने लण्ड पर जोर से दबा दिया और लण्ड से उसका मुँह चोदने लगा। मुझे लगा कि मैं झड़ने वाला हू, तो मैंने लण्ड दीदी के मुँह से लण्ड निकालने की कोशिश की पर दीदी लण्ड छोड़ने को तैयार नहीं थी…. मेरा वीर्य उसके मुँह में ही छूट पड़ा…. मै उसके सर को पकड़ कर उस पर दोहरा हो गया। मेरा सारा रस वो पी चुकी थी। मेरा एक दम साफ़ सुथरा लण्ड उसके मुह से बाहर निकला। मैंने जल्दी से अपनी पेन्ट की ज़िप चढ़ा दी। दीदी भी ठीक से बैठ गई। उसकी आंखे अभी भी शराबी लग रही थी।
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#54
अजमेर के बस स्टेण्ड पर बस आ गई थी….समय किस तेजी से निकला पता ही नहीं चला। यात्री बस में चढ़ रहे थे कुछ उतर रहे थे। हम भी कोल्ड ड्रिंक लेने के लिये उतर गये। हम दोनढ़ एक दूसरे से नजर मिला कर देखे जा रहे थे। आंखो ही आंखो में बातें हो रही थी।

तभी कंडक्टर ने कर तन्द्रा भंग की,”साहब जी….चलो या यहीं रहना है….?”

हम दोनों मुस्करा पड़े और बस की तरफ़ चल दिये। बस पूरी भर चुकी थी। हम दोनों आगे की डबल स्लीपर पर चढ़ गये…. हमने अपना सारा हिसाब जमाया और लेट गये…. पर्दा अच्छी तरह से खींच दिया। बस चल पड़ी। कुछ ही देर में बस की लाईट बंद हो गई और हमारे दिल में शैतान एक बार फिर से जाग उठा। बाहर अब हल्की सी बरसात होने लगी थी। ठण्डक बढ़ गई थी। हमने एक चादर ओढ़ ली।

कुछ ही देर में चादर के अन्दर कयामत टूट पड़ी। दीदी ने अपना कुर्ता ऊपर कर लिया और सलवार नीचे खींच ली। मैंने भी अपनी पैन्ट नीचे खींच ली। हम दोनों के लण्ड और चूत नीचे से खुले हुए थे। मैंने दीदी के चूतड़ों की दरार में अपना लण्ड दबा दिया। उसके गोल गोल मांसल चूतड़ की फ़ांके लण्ड के दबाव से खुलने लगी। मेरा लण्ड उसकी गाण्ड के छेद से टकरा गया।

“भैया आज तो गाण्ड भी हनीमून मनायेगी….!”

“चुप रह दीदी…. तेरी गाण्ड फ़ाड़ने को मन कर रहा है….!”

“फ़ाड़ दे मेरे मुन्ना….”

उसकी गाण्ड के छेद पर लण्ड ने अपना पूरा दबाव डाल दिया। मेरे लण्ड का रिंग उस छेद में अन्दर जा कर फ़ंस गया। अब मैंने और दीदी ने आराम की पोजीशन बना ली दोनो एक दूसरे से सट गये। दीदी ने भी अपनी गाण्ड पीछे उभार कर ढीली छोड़ दी। मैंने दीदी के बोबे पकड़ लिये और लण्ड अन्दर सरकाने लगा। मेरा लण्ड फिर मिठास से भरने लगा। मैंने अब धीरे धीरे लण्ड को अन्दर बाहर करना शुरु कर दिया। मुझे मजा आने लग गया। बस के झटके और सहायता कर रहे थे।

काफ़ी देर तक तक मैं उसकी गाण्ड मारने का मजा लेता रहा ….फिर मुझे लगा कि दीदी तो बेचारी अब तक प्यासी ही है। ये सोचते हुये मैंने अपना लण्ड गाण्ड से निकाल कर पीछे से ही उसकी चूत में घुसेड़ दिया। आनन्द की तेज सिसकारी दीदी के मुँह से निकल पडी…. मैंने तुरन्त उसके मुँह को दबा दिया….दीदी की नरम नरम चूत एक बार फिर मेरे लण्ड में उत्तेजना भरने लगी। चूत में अन्दर बाहर करने से दीदी और मुझे असीम आनन्द आने लगा। मैंने अब धक्के जमा कर जोर से मारने शुरू कर दिये। दीदी का जिस्म मसकने लगा…. बल खाने लगा….उसे जबरदस्त मस्ती चढ़ने लगी….जिस्म थरथराने लगा….

‘मुन्ना….मुझे जकड़ ले बोबे मसल दे…. राम रे….!” और दोहरी होते हुए झड़ने लगी…. अचानक मेरे लण्ड ने भी जोर से पिचकारी छोड़ दी। हम दोनों लगभग साथ ही झड़ने लगे थे…. एक दूसरे को हमने भींच रखा था……..। हम शान्त होने लगे थे। दीदी की चूत के पास वीर्य फ़ैल रहा था। मैंने तुरन्त चादर खींच ली और साफ़ करने लगा। पर उसकी चूत से रह रह कर वीर्य आता ही जा रहा था। मैंने अपना साफ़ रूमाल निकाला और उसे दीदी की चूत के अन्दर थोड़ा सा डाल कर रख दिया। दीदी ने अपना सलवार कुर्ता ठीक कर लिया। मैं भी पैन्ट पहन कर लेट गया। सवेरे बस उदयपुर पहुंच चुकी थी…. हमने टूसीटर वाले से किसी होटल में ले जाने को कहा….अब हम होटल में चाय नाश्ता कर रहे थे….

“मुन्ना ….अपना तो ये हनीमून का सफ़र हो गया….”

“दीदी बहुत मजा आता है ना…. होटल में….बस में…. कितना चोदा….मजा आ गया….” हम दोनों आगे प्लान बनाने लगे….काम का कम और हनीमून का अधिक …. उदयपुर बहुत सुन्दर जगह थी इसलिये हमने अपना प्रोग्राम दो दिन और बढ़ा लिया था….साथ में हनीमून के दिन भी बढ़ गये….
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#55
दीदी की करतूत
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#56
मैं भी खाली बैठी थी, सोचा कि चलो थोड़ा काम ही कर लूं ! मैंने कपड़ों वाली बाल्टी उठाई और सुखाने के लिये छत पर चली गई। छत पर मयंक बैठा पढ़ रहा था। मैं बाल्टी से कपड़े निकाल निकाल कर लोहे की तार पर डाल रही थी। अचानक मुझे अहसास हुआ कि जैसे कोई मुझे बहुत घूर घूर के देख रहा हो।

मैंने देखा तो ये मयंक ही था। जब भी मैं कपड़े उठाने के लिए झुकती तो मयंक मेरे भरे भरे गुन्दाज स्तनों को बड़े धयान से देखता।

कपड़े सुखाते सुखाते मैंने मयंक से इधर उधर की बातें शुरू की तो वो भी पढ़ाई छोड़ के मुझ से दिलचस्पी लेकर बातें करने लगा। जब कपड़े सूखने के लिए डाल दिए तो मैं जानबूझ कर मयंक के पास जा कर बैठ गई। मैंने दुपट्टा नहीं ओढ़ रखा था इसलिए मेरी वक्ष-रेखा स्पष्ट रूप से दिख रही थी और मयंक की आँखें मेरे स्तनों पे गड़ी हुई थी। मैं भी शर्म न करते हुए उसके सामने ही चटाई पर उलटी लेट गई और उससे बातें करने लगी।

अब मेरे स्तनों को वो बड़े आराम से देख सकता था और मैं भी देख रही थी कि उसकी आँखें मेरे बूब्स से नहीं हट रही थी। फिर मैंने एक और शरारत की और बोली,” मयंक, तुम्हारा दिल १ मिनट में कितनी बार धड़कता है?”
वो बोला- 72 बार !
“पर मुझे लगता है जैसे मेरा दिल ज्यादा धड़कता है, कहीं मुझे हार्ट-अटैक तो नहीं आ जायेगा !” मैं बोली।
“अरे दीदी पागल हो गई हो क्या? इतनी छोटी सी उम्र में भी कहीं हार्ट-अटैक हो सकता है !” उसने जवाब दिया।
“अच्छा चलो, मुझे अपनी दिल की धड़कन सुनाओ !”
यह कह कर मैं अपना कान उसके सीने पर लगा कर उसके दिल की धड़कन सुनने का नाटक करने लगी।
एक मिनट बाद मैंने सर हटा कर कहा,” बिलकुल ठीक ! पूरे ७२ बार ! अब मेरी सुनो !”

जबकि मुझे उसके दिल की धड़कन बढ़ी हुई लगी थी। मैंने जानबूझ कर उसका सर पकड़ कर अपने सीने पर इस तरह से रखा कि उसके होंठ मेरे स्तन-रेखा को छूते रहें।
उसने कान मेरे सीने से लगा तो लिया पर मैं जानती थी कि उसकी हालत खराब हो रही थी।
उसके बाद सारा दिन कोई ख़ास बात नहीं हुई, पर मयंक बात-बे-बात मेरे आस पास ही मंडराता रहा।

रात को खाना खाने के बाद सोने से पहले दूध लेकर जब मौसी ऊपर मयंक के कमरे में जाने लगी तो मैंने उन्हें कहा,”मौसी ! लाइए, दूध मैं ले जाती हूँ और हाँ मेरा गिलास भी इसके साथ ही रख दीजिये, दूध पीकर मैं भी अंकिता के साथ ही सो जाउंगी।” “ओ के बेटा ! ये लो, और गुड नाईट !”

“गुड नाईट !” कह कर तीन गिलास दूध लेकर मैं ऊपर चौबारे में मयंक और अंकिता के कमरे में चली गई। ऊपर कमरे में बैठे दोनों अपने अपने बिस्तर पर बैठे पढ़ रहे थे। मैंने जाकर ऊंची आवाज़ में कहा,”दूध पियो भाई दूध पियो !”

दोनों ने मुस्कुरा कर मेरी और देखा फिर हमने इकट्ठे बैठ कर दूध पिया और थोड़ी देर इधर उधर की बातें करके लाईट बंद कर दी और सोने लगे। पर मुझे तो नींद ही नहीं आ रही थी। अभी शादी को सिर्फ छः महीने ही हुए थे और पति महीने-डेढ़-महीने के लिए बाहर चले गए थे, अभी तो मेरा दिल भी नहीं भरा था।
मैं लेटी लेटी सोच रही थी और मेरे साथ लेटी अंकिता तो गहरी नींद में थी। फिर मैंने देखा कि मयंक उठ कर बाथरूम गया है और खिड़की से अन्दर आ रही चाँद की रौशनी उसके सारे बिस्तर पर पड़ रही थी। मैं चुपके से उठी और जाकर उसके बिस्तर पर लेट गई। जब मयंक आया तो मुझे वहां देखकर बोला,” अरे दीदी ! आप यहाँ? अंकिता के पास नींद नहीं आई क्या?”

मैं बोली,”नहीं, पर मुझे चांदनी में सोना अच्छा लगता है।”
तो वो बोला,”ठीक है ! आप यहाँ सो जाओ, मैं वहां सो जाता हूँ।”
मैंने तभी पलट कर कहा,”अरे नहीं ! तुम भी यहीं आ जाओ मेरे पास !”
तो मयंक भी उसी बेड पर मेरे साथ लेट गया पर कुछ फासला बना कर !

मैंने जो नाईटी पहन रखी थी उसका गला बहुत गहरा था और नाईटी के नीचे मैंने सिर्फ ब्रा और पेंटी पहन रखी थी। गहरे गले के कारण मेरे स्तनों का ज्यादातर हिस्सा दिख रहा था, यहाँ तक कि मेरी आधी ब्रा भी गले से बाहर झांक रही थी और मैं जानती थी कि चांदनी में नहाया हुआ मेरा बदन मयंक को अपनी तरफ खींच रहा था।

थोड़ी देर हम दोनों फुसफुसा कर इधर उधर की बातें करते रहे ताकि कहीं अंकिता की नींद न खुल जाये। फिर मैंने जान बूझ कर बहाना बनाया,”बड़ी गर्मी सी लग रही है ! क्या तुम्हें नहीं लग रही?”
“नहीं दीदी, मुझे तो मौसम ठीक लग रहा है।” मयंक बोला।

पर मैं तो बहाना बना रही थी इसलिए मैं उठ कर बाथरूम में गई और एक मिनट बाद अपनी ब्रा उतार कर और अपनी सारी नाईटी आगे की तरफ खींच कर वापिस आकर बिस्तर पर लेट गई।

“अब ठीक है, असल में मेरी ब्रा बहुत कसी थी, शायद इसीलिए मुझे घुटन महसूस हो रही थी !” कह कर मैं फिर मयंक की तरफ मुंह कर के लेट गई। अब ब्रा न होने की वजह से मयंक मेरे बूब्स के कट्स ज्यादा अच्छी तरह देख सकता था क्योंकि सिर्फ मेरे चूचुक को छोड़ के तकरीबन मेरा दायाँ स्तन उसे सारा का सारा दिख रहा था।

मैंने फिर उसकी गर्लफ्रेंड की और आलतू फालतू की सेक्सी बातें करनी शुरू की ताकि उसमे थोड़ी गर्मी आये और उसका हाथ पकड़ कर अपने बूब्स के साथ लगा कर रख लिया। पहले तो वो थोड़ा डर रहा था पर मैं महसूस कर सकती थी कि उसकी मर्दानगी जागने लगी थी। मैंने अपना हाथ पीछे खींच लिया पर उसने अपना हाथ अब भी मेरे वक्ष से सटा रखा था वो हल्के हल्के हाथ हिलाने के बहाने मेरे बूब्स को दबा कर देख रहा था।

मैंने सोचा कि अब ज्यादा औपचारिकता की ज़रुरत नहीं, सीधा मुद्दे पे आ जाना चाहिए, तो मैंने सीधे-सीधे ही मयंक से पूछ डाला- मयंक क्या तुम्हें इन्हें दबाना अच्छा लग रहा है?

उसने नज़र उठा कर मेरी तरफ देखा और बोला,” हाँ दीदी, बहुत अच्छा लग रहा है !”

मैंने अपनी नाईटी का गला एक तरफ से हटा कर अपना दायाँ स्तन पूरा बाहर निकाल कर उसके सामने कर दिया और बोली,”लो, अब आराम से इसे दबा कर देखो।”

वो हिचकिचाया तो मैंने उसका हाथ पकड़ कर खुद ही अपने बूब पर रख दिया। उसने धीरे से दो एक बार मेरा बूब दबाया पर शायद यही उसके सब्र की आखरी हद थी, उसने बिना कुछ कहे अपना मुंह आगे किया और मेरा निप्पल मुंह में लेकर चूसने लगा। मैंने भी समझ लिया कि गाड़ी अब पटरी पर चल पड़ी है। मैंने अपना दूसरा स्तन भी नाईटी से बाहर निकाला और हाथ उसके पायजामे के ऊपर से उसके लण्ड पे फेरने लगी जो पहले से ही अकड़ा हुआ था।
“दीदी, सीधी होकर लेटो !” मयंक बोला।

जब मैं सीधी होकर लेटी तो मयंक ने उठ कर मेरी दोनों छातियाँ अपने हाथों में पकड़ी और बारी बारी से चूसने लगा और मैं उसकी पीठ सहलाने लगी। थोड़ी देर बूब्स चूसने के बाद मयंक ने मेरे गालों और होंटों को चूमना शुरू किया, मैंने भी मज़े लेते हुए उसका भरपूर साथ दिया। हम दोनों बारी बारी से अपनी जीभें एक दूसरे के मुंह में डाल कर चूस रहे थे।
फिर मैंने उससे कहा,”मयंक, पजामा उतारो !”
मयंक ने अपने पायजामा और अंडरवियर उतारा और अपना लण्ड लाकर मेरे मुंह के पास कर दिया और मैंने भी उसका इशारा समझते हुए उसका पत्थर जैसा अकड़ा हुआ लण्ड मुंह में लेकर चूसना शुरू कर दिया। लण्ड चूसते-२ मयंक ने अपनी शर्ट और मेरी नाईटी भी उतार कर फ़ेंक दी। कुछ देर लण्ड चुसवाने के बाद मयंक टेढा होकर लेट गया और अपने हाथों के दोनों अंगूठों से मेरी पेंटी उतार दी। अब उसने मेरे पेट, कमर और जांघों को चूमना-चाटना शुरू किया और धीरे-२ मेरी टाँगें चौड़ी करके अपनी जीभ मेरी चूत में फिराने लगा। मैं भी चूत से टप-टप पानी छोड़ रही थी और उसका लण्ड चूस रही थी।
फिर मैंने कहा,”मयंक, अब ऊपर आ जाओ !”

यह सुन कर मयंक मेरी टांगों के बीच में आकर बैठ गया और अपना लण्ड मेरी चूत के होठों में फिराने लगा, जिससे मेरी चूत के पानी से उसके लण्ड का सुपाड़ा गीला और चिकना हो गया। जब उसने अपना लण्ड अन्दर डालना चाहा तो उसके मुंह से हल्की सी “ऊऽऽऊऽऽहऽऽ” करके चीख सी निकल गई। मैं समझ गई कि संजू तुझे तो कच्चा कुँवारा लौड़ा मिल गया। उसने ३-४ बार कोशिश की पर हर बार तकलीफ के साथ उसे अपना लण्ड बाहर निकालना पड़ा।
वो बोला,”दीदी मुश्किल है, ये अन्दर ही नहीं जा रहा, और डालता हूँ तो दर्द होता है !”
मैंने कहा,”ऐसे नहीं जायेगा, मैं तुम्हें तरीका बताती हूँ !”

मुझे पता था कि अगर इससे ना डाला गया तो मैं तो प्यासी रह जाउंगी, इसलिए मैंने उसको अपने ऊपर लिटाया, अपनी टांगों का घेरा उसकी कमर के चारों तरफ बना कर अपनी एडियाँ उसके चूतडों पे रखीं, फिर अपने दोनों हाथों से उसकी कमर को पकड़ा और उससे बोली,” अब धीरे धीरे से घस्से मारते हुए अपना लण्ड मेरी चूत में डालने की कोशिश करो और अपनी जीभ मेरे मुंह में डाल दो ताकि मैं उसे चूस सकूं !”

उसने ऐसा ही किया और धीरे धीरे लण्ड चूत में डालने की कोशिश करने लगा, पर तकलीफ उसे अब भी हो रही थी। मैं भी मौक़ा देख रही थी, जब उसने कमर थोड़ी ढीली की तो मैंने पूरा जोर लगा अपने पांव से उसके चूतड़ और हाथों से उसकी कमर अपनी ओर खींची जिससे एक ही झटके में उसका लण्ड मेरी चूत में आधे से ज्यादा घुस गया।

अपने होंठों से मैंने उसके होंठ पकड़ रखे थे जिस वजह से वो चीख भी ना सका और उसकी चीख मेरे मुंह में ही दब गई। मुझसे अपने होंठ छुड़वा कर बोला,”दीदी प्लीज़ ! बाहर निकलने दो, बहुत दर्द हो रहा है, मुझे लगता है शायद खून निकल रहा है !”

मैं बोली- रुको ! ऐसे नहीं निकालते ! तुम्हें और ज्यादा दर्द होगा, मैं बताती हूँ, धीरे धीरे आगे पीछे करके निकालना !

वो जब दर्द से तड़पता हुआ आगे पीछे हो रहा था तो मैंने उसे दूसरा झटका मारा जिससे उसका पूरा लण्ड मेरी चूत में समां गया और वो दर्द से तड़प उठा,”नहीं दीदी, अब नहीं सहा जाता, प्लीज़ निकाल दो !” मयंक बोला।

“बेवकूफ, मर्द बन ! ज़रा से दर्द से डर गया? सिर्फ आज ये दर्द होगा उसके बाद सारी उम्र का आराम है, मुझे भी पहली बार में बहुत दर्द हुआ था मैं लड़की हो कर सह गई और तू लड़का हो कर रोता है? डर मत ! चुपचाप चोदता रह !”

मेरे कहने पे वो धीरे-२ लगा रहा। मैंने उसके साथ पूरा सहयोग करके उससे सम्भोग करवाया और उसे अपने बूब्स और चूमा-चाटी से बांध के रखा। सेक्स करते-करते वो मेरे होंट और चूचियां चूसता रहा। मैं जानती थी कि उसे दर्द हो रहा है पर मर्द का बच्चा लगा रहा ! पीछे नहीं हटा ! और फिर तो स्पीड बढ़ा कर मुझे चोदने लगा।

जब उसे मज़ा आने लगा तो वो भी दर्द भुला के मुझे चोदने का स्वाद लेने लगा और ५-६ मिनट बाद हम दोनों बारी बारी से झड़ गए। मैं तृप्त हो कर सो गई और वो बाथरूम में अपना लण्ड धोने चला गया। अक्सर मर्द अपनी छाती फुला कर कहते हैं,”अरे मैंने तो कच्ची कली फाड़ दी !” आज मैं भी अपनी छातियाँ फुला कर कह सकती हूँ,”अरे मैंने तो कच्चा केला छील दिया !
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#57
दीदी की चुदाई का कारनामा
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#58
री उम्र 32 साल है, दोस्तों में आज आप सभी को अपनी एक सच्ची घटना सुनाने जा रहा हूँ और यह कहानी उस समय की है जब में 26 साल का था और में एक दुकान चलाता था. मुझे उस समय सेक्स करना बहुत अच्छा लगता था और उसी समय मेरे एक बहुत अच्छे दोस्त की बहन अपने पति और बच्चों के साथ रहने आ गई. उनकी उम्र करीब 38 साल थी और उनके बूब्स का साईज करीब 36-32-38 था.

दोस्तों वो मुझे अपने खुले बालों में बहुत सेक्सी लगती थी, लेकिन वो मेरे दोस्त की बहन थी इसलिए में भी उन्हें हमेशा दीदी कहता था. वो अक्सर मेरे पास आकर मेरे पास बैठकर मुझसे बहुत देर तक बातें किया करती थी और जब वो मटककर चलती तो उनकी वो बड़ी सी गांड जब आगे पीछे होती तो कोई भी उनके सेक्सी बदन को देखकर चोदना चाहता था और उनकी नाभि बहुत गहरी थी. वो अधिकतर समय बिना ब्रा के ब्लाउज पहना करती थी तो वो बहुत सेक्सी दिखती थी और में उनके बूब्स, गांड सेक्सी बदन को देख देखकर हमेशा उनकी तरफ आकर्षित हो जाता था.
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#59
वो भी मुझसे अब बहुत खुलकर हंस हंसकर बातें करने लगी थी. दोस्तों उनकी बड़ी लड़की जो उस समय करीब 21 साल की थी और उसका रंग दूध सा गोरा और उसके गाल बिल्कुल गुलाबी, उसके बूब्स बिल्कुल बड़े बड़े मुलायम थे. उसके फिगर का साईज़ 34-26-34 था. वो दिखने में बिल्कुल हुस्न की परी थी. कोई भी उसे एक बार देख ले तो उसका लंड खड़ा होकर सलामी करने लगता था और वो मुझे मामा कहकर बुलाती थी.

दोस्तों वो अब यहीं पर रहने वाली थी. उनकी दो लड़कियाँ और दो लड़के थे, बड़ी लड़की 21 साल की लेकिन बहुत सेक्सी थी. उसका नाम था हेमा. दोस्तों कब हम दोनों में बहुत अच्छी दोस्ती हुई और कब प्यार हो गया मुझे पता ही नहीं चला? लेकिन कुछ दिनों के बाद वो अपने ससुराल गई और वो मुझे भी अपने साथ में ले गई. में अब वहां पर बहुत खुश था, लेकिन मेरे साथ एक बहुत बड़ी समस्या भी थी कि अब दीदी भी मुझे बहुत अजीब नज़रो से देखने लगी थी. फिर एक दिन मेरे सर में थोड़ा सा दर्द हो रहा था और वो ठंड का महीना था इसलिए में एक कम्बल ओढ़कर लेटा हुआ था कि दीदी मेरे पास आई और फिर वो मुझसे कहने लगी कि क्या में तुम्हारे सर की मालिश कर दूँ?
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#60
मैंने अब उन्हें कुछ सोचकर साफ मना कर दिया, लेकिन वो नहीं मानी और में उस समय दीवार के पास में लेटा हुआ था. वो भी अब उसी तरफ बैठकर मेरे सर की मालिश करने लगी और उस समय रात के करीब 11 बज रहे होंगे. घर के सभी लोग सो गये थे, दीदी एक हाथ से मेरे सर पर मालिश कर रही थी और उन्होंने अपना एक हाथ मेरे पेट रखा हुआ था. मुझे अब कुछ देर बाद उनकी आँखो में एक अजीब सी चमक दिख रही थी और उनके वो कोमल मुलायम हाथ मेरे ऊपर रखने की वजह से मेरा 6.5 का लंड अब तनकर खड़ा होने लगा था और वो अब अपना हाथ धीरे धीरे मेरे लोवर के अंदर खिसका रही थी और में अपनी दोनों आँखे बंद करके चुपचाप लेटा हुआ था. मुझे भी अब उनके यह सब करने की वजह से बहुत मज़ा आ रहा था और कुछ देर बाद जब में बहुत गरम हो गया तो मैंने उनका हाथ पकड़कर मेरे लंड पर रख दिया. वो मेरे ऐसा करते ही एकदम से बहुत खुश हो गई और अब वो मेरे लंड को धीरे धीरे सहलाने लगी, लेकिन मेरा बहुत बुरा हाल था.

फिर उन्होंने अपने मुहं में मेरे लंड को लिया और वो अब मेरे लंड को पागलों की तरह चूसने लगी और अब में भी उसके बूब्स दबा रहा था और उस समय मुझे जो आनंद मिल रहा था में वो आप लोगो को शब्दों में नहीं बता सकता. उनके बूब्स का साईज़ 36 था और उसके बूब्स बिल्कुल गोल पहाड़ की छोटी की तरह तनकर खड़े हुए थे. में उनके निप्पल को ज़ोर ज़ोर से चूस रहा था और दबा रहा था. में दूसरे हाथ से उनके पेट और पीठ के नीचे कमर तक सहला रहा था. करीब दस मिनट तक ऐसे ही चलता रहा और अब उनकी चूत और गांड का नंबर था.

फिर मैंने एक हाथ उनकी साड़ी के अंदर डाल दिया और वो पेंटी नहीं पहनती थी. मैंने हाथ लगाकर महसूस किया कि उनकी चूत अब एकदम गीली हो चुकी थी और मुझे ऐसा लग रहा था कि वो बूब्स को दबाते हुये झड़ चुकी थी और अब मैंने उनसे लाईट बंद करके अपने साथ सोने को कहा और वो उठकर लाईट बंद करके आ गई और मेरे पास में लेट गई. अब हम दोनों एक ही कम्बल में थे और में उनके पैरों की तरफ गया और फिर मैंने उनकी साड़ी को ऊपर करके अपना मुहं उनकी बालों वाली चूत पर रख दिया. वाह दोस्तों क्या मस्त खुशबू थी. में अब उनकी चूत को चाटने लगा और वो तड़प रही थी और अपने हाथों से मेरा सर पकड़कर चूत में घुसाने की कोशिश करने लगी. मैंने भी इसी दौरान अपने एक हाथ का अंगूठा उनकी गांड पर रखा और गोल गोल आसपास घुमाने लगा और इधर चूत के दाने को चाट रहा था और अब वो एक बार फिर से झड़ने वाली थी और उन्होंने मेरे सर को अपनी चूत पर दबाया और मेरे मुहं पर अपनी चूत से ज़ोर ज़ोर से झटके देने लगी. कुछ ही सेकिंड के बाद वो मेरे मुहं में झड़ गई..
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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