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भाग ८
उसे मुझे दर्द देने में मज़ा आ रहा था। नहीं तो वो अगर चाहता तो उस हालत में ही अपने लंड को धक्का दे कर और अंदर कर देता। लेकिन वो तो पूरे लंड को बाहर निकाल कर वापस मुझे उसी तरह के दर्द से छटपटाता देखना चाहता था। मैंने उसके जुनून को कम करने के लिये उसके सीने पर अपना एक हाथ रख दिया था लेकिन ये तो आँधी में एक कमज़ोर फूल की जुररत के समान ही था।
उसने वापस अपने लंड को मेरी चूत पर लगा कर एक जोर का धक्का दिया। मैं दर्द से बचने के लिये आगे की ओर खिसकी लेकिन कोई फ़र्क नहीं पड़ा। मैं दर्द से दोहरी हो कर चींख उठी, “उफफऽऽऽ माँऽऽऽ मार गयीईऽऽऽऽ।”
उसका आधा लंड मेरी चूत के मुँह को फाड़ता हुआ अंदर धंस गया। मेरा एक हाथ उसके सीने पर पहले से ही गड़ा हुआ था। मैंने दर्द से राहत पाने के लिये अपने दूसरे हाथ को भी उसके सीने पर रख दिया। उसके काले सीने पर घने काले सफ़ेद बल उगे हुए थे। मैंने दर्द से अपनी अँगुलियों के नाखुन उसके सीने पर गड़ा दिये। एक दो जगह से तो खून भी छलक आया और मुट्ठियाँ बंद हो कर जब खुली तो मुझे उसमें उसके सीने के टूटे हुए बाल नज़र आये। स्वामी एक भद्दी सी हँसी हँसा और मेरी टाँगों को पकड़ कर हँसते हुए उसने मुझसे पूछा, “कैसा लग रहा है जान.. मेरा ये मिसाईल? मज़ा आ गया ना?”
मैं दर्द को पीती हुई फ़टी हुई आँखों से उसको देख रही थी। उसने दुगने जोर से एक और धक्के के साथ अपने पूरे लंड को अंदर डाल दिया। मैं किसी मछली की तरह छटपटा रही थी। “आआऽऽऽऽहहहऽऽऽऽ मेरे खुदाऽऽऽऽऽ!! जावेद बचाऽऽऽओ ऊऊऽऽऽ मुझे ये फाड़ देंगेऽऽऽ।”
मैं टेबल से उठने की कोशिश करने लगी मगर रस्तोगी ने मेरे मम्मों को अपने हाथों से बुरी तरह मसलते हुए मुझे वापस लिटा दिया। उसने मेरे दोनों निप्पलों को अपनी मुठ्ठियों में भर कर इतनी जोर का मसला कि मुझे लगा मेरे दोनों निप्पल उखड़ ही जायेंगे। मैं इस दो तरफ़ा हमले से छटपटाने लगी। शुक्र है कि मैंने उनके कहने पर इतनी शराब पी रखी थी। अगर मैं इतने नशे में नहीं होती तो मैं ये सब बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं कर पाती थी।
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स्वामी अपने पूरे लंड को मेरी चूत में डाल कर कुछ देर तक उसी तरह खड़ा रहा। मेरी चूत के अंदर मानो आग लगी हुई थी। मेरी चूत की दीवारें चरमरा रही थीं। रस्तोगी उस वक्त मेरे निप्पल और मेरे मम्मों को अपने हाथों से और दाँतों से बुरी तरह नोच रहा था और काट रहा था। इससे मेरा ध्यान बंटने लगा और कुछ देर में मैं अपने नीचे उठ रही दर्द की लहर को भूल कर रस्तोगी से अपने मम्मों को छुड़ाने लगी। कुछ देर बाद स्वामी का लंड सरसराता हुआ बाहर की ओर निकलता महसूस हुआ । उसने अपने लंड को टिप तक बाहर निकाला और फिर पूरे जोश के साथ अंदर डाल दिया। अब वो मेरी चूत में जोर-जोर से धक्के मारने लगा। उसको हरकत में आते देख रस्तोगी का लंड वापस खड़ा होने लगा। वो घूम कर मेरे दोनों कंधों के पास टाँगें रख कर अपने लंड को मेरे होंठों पर रगड़ने लगा। मैंने उसको लाचार समझ कर अपने मुँह को खोल कर उसके लंड को अपने मुँह में ले लिया। वो मेरी छातियों के ऊपर बैठ गया। मुझे ऐसा लगा मानो मेरे सीने की सारी हवा निकल गयी हो। वो अपने लंड को मेरे मुँह में देकर झुकते हुए अपने दोनों हाथों को अपने घुटनों पर रख कर मेरे मुँह में अपने लंड से धक्के मारने लगा। इस पोज़िशन में स्वामी मुझे दिखायी नहीं दे रहा था मगर उसके जबरदस्त धक्के मेरे पूरे जिस्म को बुरी तरह झकझोर रहे थे।
कुछ देर बाद मुझे रस्तोगी का लंड फूलते हुए महसूस हुआ। उसने एक झटके से अपने पूरे लंड को बाहर की ओर खींचा और उसे पूरा बाहर निकाल लिया। उसकी ये हरकत मुझे बहुत बुरी लगी। किसी को इतना चोदने के बाद भी उसके पेट में अपना रस नहीं उढ़ेलो तो लगता है मानो सामने वाला दगाबाज़ हो। मैंने उसके वीर्य को पाने के लिये अपना मुँह पूरा खोल दिया। उसने अपने लंड को अपनी मुठ्ठी में पकड़ा और वीर्य की एक तेज़ धार हवा में उछलती हुई मेरी ओर बढ़ी। उसने ढेर सारा वीर्य मेरे चेहरे पर, मेरे बालों में और मेरे खुले हुए मुँह में डाल दिया। मैंने तड़प कर अपने मुँह को उसके लंड के ऊपर लगाया और उसके बचे हुए वीर्य को अपने मुँह में भरने लगी।
“मेरे वीर्य को पीना नहीं। इसे मुँह में ही रख जब तक स्वामी का वीर्य तेरी चूत में नहीं छूट जाता!” रस्तोगी ने मुझसे कहा। स्वामी के धक्कों की स्पीड काफी बढ़ गयी। मैंने रस्तोगी का वीर्य अपने मुँह में भर रखा था जिससे मेरा मुँह फूल गया था। मुँह के कोरों से वीर्य छलक कर बाहर आ रहा था। बहुत सारा वीर्य डाला था उसने मेरे मुँह में। रस्तोगी मेरे ऊपर से हट गया। मेरे मम्मों पर अपने हाथ रखते हुए स्वामी मेरी चूत में धक्के मारने लगा। कुछ देर बाद वो नीचे झुक कर अपना सारा बोझ मेरे जिस्म पर डालते हुए मेरे मम्मों को अपने दाँतों से बुरी तरह काटने लगा। उसके जिस्म से वीर्य की तेज़ धार मेरी चूत में बहने लगी। स्वामी से चुदते हुए मैं भी दो बार अन्जाम तक पहुँची। पूरा वीर्य मेरी चूत में डाल कर वो उठा। मैं अपनी टाँगें फैलाये वहीं टेबल पर पड़ी पड़ी लंबी-लंबी साँसें ले रही थी। कुछ देर तक इसी तरह पड़े रहने के बाद रस्तोगी ने मुझे सहारा देकर उठाया।
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“दिखा कि रस्तोगी के वीर्य को अभी तक मुँह में संभाल कर रखा है या नहीं।” स्वामी ने कहा। मैंने अपना मुँह खोल कर अंदर भरा हुआ वीर्य उन दोनों को दिखाया।
“ले… अब अपने मुँह से सारा वीर्य निकाल कर इस ग्लास में भर”, रस्तोगी ने कहा और मुझे एक खाली ग्लास पकड़ा दिया। अपने मुँह का सारा वीर्य उस ग्लास में डाल दिया। “चल अब अपने शौहर का वीर्य भी इस ग्लास में ले”। जावेद सोफ़े पर एक तरफ बैठा हुआ था। मुझे खड़ा कर के रस्तोगी ने जावेद की तरफ़ ढकेला। मेरी टाँगों में जोर नहीं बचा था और मैं नशे में चूर हो रही थी इसलिये मैं भरभरा कर जावेद के ऊपर गिर गयी। मैंने उसके लंड को चूस कर उसे फारिग कराया और उसका वीर्य अपने मुँह में इकट्ठा करके ग्लास में उढ़ेल दिया। स्वामी व्हिस्की की बोतल ले आया और उस ग्लास को भर दिया। फिर मेरा सिर पकड़ कर मुझे वो वीर्य और व्हिस्की का कॉकटेल पीने पर मजबूर किया। मेरी चूत से दोनों का वीर्य बहता हुआ फर्श पर टपक रहा था।
मैं अब उठ कर हाई-हील सैंडलों में दौड़ती और लड़खड़ाती हुई बाथरूम में गयी। नशे में मेरा सिर जोर से घूम रहा था। मेरी टाँगों से होते हुए दोनों का वीर्य नीचे की ओर बह रहा था। बाथरूम में जाकर जैसे ही अपना चेहरा आईने में देखा तो मुझे रोना आ गया। मेरा पूरा जिस्म, मेरे रेशमी बाल, सब कुछ वीर्य से सने हुए थे। मेरे मम्मों पर अनगिनत दाँतों के दाग थे। मैं अपने जिस्म से उनके वीर्य को साफ़ करने लगी लेकिन तभी दोनों बाथरूम में पहुँच गये और मुझे अपनी गोद में उठा लिया।
“प्लीज़ मुझे छोड़ दो! मुझे अपना जिस्म साफ़ करने दो! मुझे घिन्न आ रही है अपने जिस्म से”, मैं उनके आगे गिड़गिड़ायी।
“अरे मेरी जान! तुम तो और भी खूबसूरत लग रही हो इस हालत में… और अभी तो पूरी रात पड़ी है। कब तक अपने जिस्म को पोंछ-पोंछ कर आओगी हमारे पास।” रस्तोगी हँसने लगा। दोनों मुझे गोद में उठा कर बेडरूम में ले आये और उसी हालत में मुझे बेड पर पटक दिया। स्वामी बिस्तर पर नंगा लेट गया और मुझे अपनी ओर खींचा।
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“आजा मेरे ऊपर”, स्वामी ने मुझे उसके लंड को अपने अंदर लेने का इशारा किया। मैंने अपनी कमर उठा कर उसके खड़े हुए लंड को अपनी चूत पर सैट किया। उसने अपने हाथों को आगे बढ़ा कर मेरे दोनों मम्मे थाम लिये। मैंने अपने चेहरे के सामने आये बालों को एक झटके से पीछे किया और अपनी कमर को उसके लंड पर धीरे-धीरे नीचे करने लगी। उसका मोटा लंड एक झटके से मेरी चूत का दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल हो गया। “आआऽऽऽहहहऽऽऽ उफफऽऽओहहऽऽऽ” मैं कराह उठी। एक बार उसके लंड से चुदाई हो जाने के बाद भी उसका लंड मेरी चूत में दाखिल होते वक्त मैं दर्द से छटपटा उठी। ऐसा लगता था शायद पिछली ठुकाई में मेरी चूत अंदर से छिल गयी थी। इसलिये उसका लंड वापस जैसे ही अंदर रगड़ता हुआ आगे बढ़ा, दर्द की एक तेज़ लहर पूरे जिस्म में समा गयी। मैंने अपने हाथ उसके सीने पर रख कर अपनी कमर को धीरे-धीरे नीचे किया। मेरा सिर नशे में बुरी तरह झूम रहा था और दिमाग पर नशे की जैसे एक धुँध सी छायी हुई थी।
रस्तोगी के वीर्य ने अब चेहरे पर और मम्मों पर सूख कर पपड़ी का रूप ले लिये था। मैं कुछ देर तक यूँ ही स्वामी के लंड पर बैठी अपनी उखड़ी हुई साँसों और अपने नशे को काबू में करने की कोशिश करने लगी तो पीछे से मेरी दोनों बगलों के नीचे से रस्तोगी ने अपने हाथ डाल कर मेरे जिस्म को जकड़ लिया और उसे ऊपर नीचे करना शुरू किया। धीरे-धीरे मैं खुद ही अपनी कमर को उसके लंड पर हिलाने लगी। अब दर्द कुछ कम हो गया था। अब मैं तेजी से स्वामी के लंड पर ऊपर नीचे हो रही थी।
अचानक स्वामी ने मेरे दोनों निप्पलों को अपनी मुठ्ठियों में भर कर अपनी ओर खींचा। मैं उसके खींचने के कारण उसके ऊपर झुकते-झुकते लेट ही गयी। उसने अब मुझे अपनी बाँहों में जकड़ कर अपने सीने पर दाब लिया। मेरे मम्मे उसके सीने में पिसे जा रहे थे। तभी पीछे से किसी की अँगुलियों की छुअन मेरे नितंबों के ऊपर हुई। मैं उसे देखने के लिये अपने सिर को पीछे की ओर मोड़ना चाहती थी लेकिन मेरी हरकत को भाँप कर स्वामी ने मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये और मेरे निचले होंठ को अपने मुँह में लेकर चूसने लगा। मैंने महसूस किया कि वो हाथ रस्तोगी का था। रस्तोगी मेरे माँसल चूतड़ों को अपने हाथ से सहला रहा था। कुछ ही देर में उसकी अँगुलियाँ सरकती हुई मेरी चूत पर धोंकनी की तरह चल रहे स्वामी के लंड के पास पहुँच गयीं। वो अपनी अँगुलियों को मेरी चूत से उफ़नते हुए रस से गीला कर मेरी गाँड के छेद पर फ़ेरने लगा। मैं उसकी नियत समझ कर छूटने के लिये छटपटाने लगी मगर स्वामी ने मुझे जोंक की तरह जकड़ रखा था। उन साँडों से मुझ जैसी नशे में धुत्त नाज़ुक कली कितनी देर लड़ सकती थी। मैंने कुछ ही देर में थक कर अपने जिस्म को ढीला छोड़ दिया।
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रस्तोगी की पहले एक अँगुली मेरी गाँड के अंदर घुस कर काम रस से गीला करने लगी मगर जल्दी ही वो दो तीन अँगुलियाँ मेरी गाँड में ठूँसने लगा। मैं हर हमले पर अपनी कमर को उछाल देती मगर उस पर कोई असर नहीं होता। कुछ ही देर में मेरी गाँड को अच्छी तरह चूत के रस से गीला कर के रस्तोगी ने अपने लंड को वहाँ सटाया। स्वामी ने अपने दोनों हाथों से मेरे दोनों चूतड़ों को अलग करके रस्तोगी के लिये काम आसान कर दिया। मैंने पहले कभी गाँड चुदाई नहीं की थी, इसलिये घबराहट से मेरा दिल बैठने लगा।
रस्तोगी ने एक जोर के धक्के से अपने लंड को मेरी गाँड में घुसाने की कोशिश की मगर उसका लंड आधा इंच भी अंदर नहीं जा पाया। मैं दर्द से छटपटा उठी। रस्तोगी ने अब अपनी दो अँगुलियों से मेरी गाँड के छेद को फैला कर अपने लंड को उसमें ठूँसने की कोशिश की मगर इस बार भी उसका लंड रास्ता नहीं बना सका। इस नाकामयाबी से रस्तोगी झुँझला उठा। उसने लगभग चींखते हुए जावेद से कहा, “क्या टुकर-टुकर देख रहा है.... जा जल्दी से कोई क्रीम ले कर आ। लगता है तूने आज तक तेरी बीवी की ये सील नहीं तोड़ी। मैं तो इसकी गाँड सूखी ही मारना चाहता था पर साली बहुत टाईट है। मेरे लंड को पीस कर रख देगी।” रस्तोगी उत्तेजना में गंदी-गंदी बातें बड़बड़ा रहा था। जावेद ने पास के ड्रैसिंग टेबल से कोल्ड क्रीम की बोतल लाकर रस्तोगी को दी। रस्तोगी ने अपनी अँगुली से लगभग आधी शीशी क्रीम निकाल कर मेरे गाँड के छेद पर लगायी। फिर वो अपनी अँगुलियों से अंदर तक अच्छे से चीकना करने लगा। कुछ क्रीम उठा कर अपने लंड पर भी लगायी। इस बार जब उसने मेरी गाँड के छेद पर अपने लंड को रख कर धक्का दिया तो उसका लंड मेरी गाँड के छेद को फ़ाड़ता हुआ अंदर घुस गया। दर्द से मेरा जिस्म ऐंठने लगा। ऐसा लगा मानो कोई एक मोटी सलाख मेरी गाँड में डाल दी हो।
“आआआऽऽऽऽऊऊऊऊऽऽऽऽऽ ओहहऽऽऽऽ.. आआऽऽऽऽऽ.. ईईऽऽऽऽ ममऽऽऽमाँऽऽऽऽ”, मैं दर्द से छटपटा रही थी। दो तीन धक्के में ही उसका पूरा लंड मेरे पिछले छेद से अंदर घुस गया। जब तक उसका पूरा लंड मेरे शरीर में दाखिल नहीं हो गया तब तक स्वामी ने अपने धक्के बंद रखे और मेरे जिस्म को बुरी तरह अपने सीने पर जकड़ के रखा था। मुझे लगा कि मेरा शरीर सुन्न होता जा रहा है। लेकिन कुछ ही देर में वापस दर्द की तेज़ लहर ने पूरे जिस्म को जकड़ लिया। अब दोनों ने धक्के मारने शुरू कर दिये। हर धक्के के साथ मैं कसमसा उठती। दोनों के बड़े-बड़े लंड, ऐसा लग रहा था कि मेरे पेट की सारी अंतड़ियों को तोड़ कर रख देंगे। पंद्रह बीस मिनट तक दोनों के द्वारा मेरी ठुकायी चलती रही। फिर एक साथ दोनों ने मेरे दोनों छेदों को रस से भर दिया। रस्तोगी झड़ने के बाद मेरे जिस्म से हटा। मैं काफी देर तक स्वामी के जिस्म पर ही पसरी रही। उसका लंड नरम हो कर मेरी चूत से निकल चुका था। लेकिन मुझ में अब बिल्कुल भी ताकत नहीं बची थी। मुझे स्वामी ने अपने ऊपर से हटाया और अपनी बगल में लिटा लिया। मेरी आँखें बंद होती चली गयी। मैं थकान और नशे से नींद के आगोश में चली गयी। उसके बाद भी रात भर मेरे तीनों छेदों को आराम नहीं करने दिया गया। मुझे कईं बार कईं तरह से उन दोनों ने चोदा। मगर मैं नशे में चूर होकर बेसुध ही रही। एक दो बार दर्द से मेरी खुमारी जरूर टूटी लेकिन अगले ही पल वापस मैं नशे में बेसुध हो जाती। दोनों रात भर मेरे जिस्म को नोचते रहे। मेरे अंग-अंग को उन्होंने चोदा। मेरे मम्मों, बगलों और यहाँ तक कि मेरे पैरों और सैंडलों के बीच में भी अपने लौड़ों से रगड़ कर मुझे चोदा।
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सुबह दोनों कपड़े पहन कर वापस चले गये। जावेद उन्हें होटल पर छोड़ आया। मैं उसी तरह बिस्तर पर बेसुध सी पड़ी हुई थी। सुबह ग्यारह बजे के आस पास मुझे थोड़ा होश आया तो जावेद को मैंने अपने पास बैठे हुए पाया। उसने सहारा देकर मुझे उठाया और मेरे सैंडल उतार कर मुझे बाथरूम तक पहुँचाया। मेरे पैर बुरी तरह काँप रहे थे। बाथरूम में शॉवर के नीचे मैं लगभग पंद्रह मिनट तक बैठी रही।
मैं एक लेडी डॉक्टर के पास भी हो आयी। लेडी डॉक्टर मेरी हालत देख कर समझी कि मेरे साथ कोई रेप जैसा हादसा हुआ है। मैंने भी उसे अपने कानफिडेंस में लेटे हुए कहा, “कल घर पर हसबैंड नहीं थे। चार आदमी जबरदस्ती घुस आये थे और उन्होंने मेरे साथ रात भर रेप किया।”
लेडी डॉक्टर ने पूछा कि मैंने सिक्युरिटी में एफ़-आई-आर दर्ज़ करवायी या नहीं तो मैंने उसको कहा, “मैं इस घटना का जिक्र करके बदनाम नहीं होना चाहती। मैंने अंधेरे में उनके चेहरे तो देखे नहीं थे तो फिर कैसे पहचानुँगी उन्हें..... इसलिये आप भी इसका जिक्र किसी से ना करें।”
डॉक्टर मेरी बातों से सहमत हो गयी मेरा मुआयना करके कुछ दवाइयाँ लिख दीं। मुझे पूरी तरह नॉर्मल होने में कईं दिन लग गये। मेरे मम्मों पर दाँतों के काले काले धब्बे तो महीने भर तक नज़र आते रहे। जावेद का काम हो गया था। उनके इलाईट कंपनी से वापस अच्छे संबंध हो गये। जावेद ने, जब तक मैं बिल्कुल ठीक नहीं हो गयी, तब तक मुझे पलकों पर बिठाये रखा। मुझे दो दिनों तक तो बिस्तर से ही उठने नहीं दिया। उसके मन में एक गिलटी फ़ीलिंग तो थी ही कि मेरी इस हालत की वजह वो और उनका बिज़नेस है।
कुछ ही दिनों में एक बहुत बड़ा कांट्रेक्ट हाथ लगा। उसके लिये जावेद को अमेरिका जाना पड़ा। वहाँ कस्टमर्स के साथ डीलिंग्स तय करनी थी और नये कस्टमर्स भी तलाश करने थे। उसे वहाँ करीब छः महीने लगने थे। मैंने इस दौरान उनके पेरेंट्स के साथ रहने की इच्छा ज़ाहिर कि। मैं अब मिस्टर ताहिर अज़ीज़ खान के बेटे की बीवी बन चुकी थी मगर अभी भी जब मैं उनके साथ अकेली होती तो मेरा मन मचलने लगता। मेरे जिस्म में एक सिहरन सी दौड़ने लगती। कहावत ही है कि लड़कियाँ अपनी पहली मोहब्बत कभी नहीं भूल पातीं।
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ताहिर अज़ीज़ खान जी के ऑफिस में मेरी जगह अब उन्होंने एक ४५ साल की औरत, ज़ीनत को रख लिया था। नाम के बिल्कुल उलटी थी वो -- मोटी और कली सी। वो अब अब्बू की सेक्रेटरी थी। मैंने एक बार अब्बू को छेड़ते हुए कहा था, “क्या पूरी दुनिया में कोई ढंग की सेक्रेटरी आपको नहीं मिली?” तो उन्होंने हँस कर मेरी ओर देखते हुए एक आँख दबा कर कहा, “यही सही है। तुम्हारी जगह कोई दूसरी ले भी नहीं सकती और बाय द वे.... मेरा और कोई कुँवारा बेटा भी तो नहीं बचा ना।”
अभी दो महिने ही हुए थे कि मैंने ताहिर अज़ीज़ खान जी को कुछ परेशान देखा।
“क्या बात है अब्बू... आप कुछ परेशान हैं?” मैंने पूछा।
“शहनाज़! तुम कल से हफ़्ते भर के लिये ऑफिस आने लगो”, उन्होंने मेरी ओर देखते हुए पूछा, “तुम्हें कोई परेशानी तो नहीं होगी ना अपने पुराने काम को संभालने में?”
“नहीं! लेकिन क्यों?” मैंने पूछा।
“अरे वो नयी सेक्रेटरी अकल के मामले में बिल्कुल खाली है। दस दिन बाद पैरिस में एक सैमिनार है हफ़्ते भर का। मुझे अपने सारे पेपर्स और नोट्स तैयार करने हैं जो कि तुम्हारे अलावा और कोई नहीं कर सकता। तुम जितनी जल्दी अपने काम में एक्सपर्ट हो गयी थीं, वैसी कोई दूसरी मिलना मुश्किल है।”
“लेकिन अब्बू… मैं वापस उस पोस्ट पर रेग्युलर काम नहीं कर सकती क्योंकि जावेद के आने पर मैं वापस मथुरा चली जाऊँगी।”
“कोई बात नहीं। तुम तो केवल मेरे सैमिनार के पेपर्स तैयार कर दो और मेरी सेक्रेटरी बन कर पैरिस में सैमिनार अटेंड कर लो। देखो इंकार मत करना। तुम्हें मेरे साथ सैमिनार अटेंड करना ही पड़ेगा। ज़ीनत के बस का नहीं है ये सब। इन सब सैमिनार में सेक्रेटरी स्मार्ट और सैक्सी होना बहुत जरूरी होता है, जो कि ज़ीनत है नहीं। यहाँ के छोटे-मोटे कामों के लिये ज़ीनत रहेगी।”
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“ठीक है मैं कल से ऑफिस चलुँगी आपके साथ।” मैंने उन्हें छेड़ते हुए पूछा, “मुझे वापस स्कर्ट तो नहीं पहननी पड़ेगी ना?” मैंने अपनी राय सुना दी उन्हें। मैंने ये कहते हुए उनकी तरफ़ हल्के से अपनी एक आँख दबायी। वो मेरी बातों को सुन कर मुस्कुरा दिये।
“तुम्हारी जो मरज़ी हो, वो पहन लेना। कुछ नहीं पहनो तो भी ताहिर अज़ीज़ खान के बेटे की बीवी को लाइन मारने की हिम्मत किसी में नहीं होगी”, हम हँसते हुए अपने-अपने कमरों की ओर बढ़ गये। उस रात मुझे बहुत अच्छी नींद आयी। सपनों में मैं उस ऑफिस में बीते हर पल को याद करती रही।
मैं अगले दिन से ऑफिस जाने लगी। अब्बू के साथ कार में ही जाती और उनके साथ ही वापस आती। ऑफिस में भी अब सलवार कमीज़ या साड़ी में शालीनता से ही रहती। लेकिन जब केबिन में सिर्फ हम दोनों बचते तो मेरा मन मचलने लगता। मैंने महसूस किया था कि उस वक्त ताहिर अज़ीज़ खान जी भी असहज हो उठाते। जब मैं ऑफिस में बैठ कर कम्प्यूटर पर सारे नोट्स तैयार करती तो उनकी निगाहों की तपिश लगातार अपने जिस्म पर महसूस करती।
मैंने सारे पेपर्स तैयार कर लिये। चार दिन बाद मुझे उनके साथ पैरिस जाना था। एक दिन खाना खाने के बाद मैं और अब्बू टीवी देख रहे थे। अम्मी जल्दी सोने चली जाती हैं। कुछ देर बाद ताहिर अज़ीज़ खान जी ने कहा, “शहनाज़ पैरिस जाने की तैयारी करना शुरू कर दो। टिकट आ चुका है.... बस कुछ ही दिनों में फ्लाईट पकड़नी है।”
“मैं और क्या तैयारी करूँ। बस कुछ कपड़े रखने हैं।”
“ये कपड़े वहाँ नहीं चलेंगे”, उन्होंने कहा, “ओरगैनाइज़िंग कंपनी ने सैमिनार का ड्रेस कोड रखा है और उसकी कॉपी अपने सारे केंडीडेट्स को भेजी है। उन्होंने ड्रेस कोड स्ट्रिकटली फोलो करने के लिये सभी कंपनियों के रेप्रिसेंटेटिव्स से रिक्वेस्ट की है। जिसमें तुम्हें…, यानी सेक्रेटरी को सैमिनार के वक्त लाँग स्कर्ट और ब्लाऊज़ में रहना पड़ेगा। शाम को डिनर और कॉकटेल के समय माइक्रो स्कर्ट और टाईट शर्ट पहननी पड़ेगी विदाऊट.... अंडरगार्मेंट्स” उन्होंने मेरी ओर देखा। मेरा मुँह उनकी बातों से खुला का खुला रह गया। “शाम को अंडरगार्मेंट्स पहनना अलाऊड नहीं है। दोपहर और ईवनिंग में पूल में टू पीस बिकिनी पहननी पड़ेगी और पैरों में हर समय हाई-हील्स पहने होने चाहिये.... कम से कम चार इंच हाई हील वाले।”
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“हाई हील्स तो ठीक है लेकिन…?” मैंने थूक का घूँट निगल कर कहा, “मेरे पास तो इस तरह के सैक्सी ड्रेसेज़ हैं नहीं और आपके सामने मैं कैसे उन ड्रेसेज़ को पहन कर रहुँगी? ”
“क्यों क्या प्रॉब्लम है?”
“मैं आपकी बहू हूँ”, मैंने कहा।
“लेकिन वहाँ तुम मेरी सेक्रेटरी बन कर चलोगी!” ताहिर अज़ीज़ खान जी ने कहा।
“ठीक है सेक्रेटरी तो रहुँगी लेकिन इस रिश्ते को भी तो नहीं भुलाया जा सकता ना”, मैंने कहा।
“वहाँ देखने वाला ही कौन होगा। वहाँ हम दोनों को पहचानेगा ही कौन। वहाँ तुम केवल मेरी सेक्रेटरी होगी। एक सैक्सी और…”, मुझे ऊपर से नीचे तक देखते हुए आगे बोले, “हॉट! तुम वहाँ हर वक्त मेरी पर्सनल नीड्स का ख्याल रखोगी जैसा कि कोई अच्छी सेक्रेटरी रखती है… ना कि जैसा कोई बहू अपने ससुर का रखती है।”
उनकी इस बात की गंभीरता को भाँप कर मैंने अपना सिर झुका लिया।
“तुम परेशान मत हो.... सारा अरेंजमेंट कंपनी करेगी! तुम कल मेरे साथ चल कर टेलर के पास अपना नाप दे आना। बाकी किस तरह के ड्रेस सिलवाने हैं और कितने सिलवाने हैं.... सब मेरा हेडेक है।”
अगले दिन मैं उनके साथ जाकर एक फेमस टेलर के पास अपना नाप दे आयी। जाने के दो दिन पहले ताहिर अज़ीज़ खान जी ने दो आदमियों के साथ एक बॉक्स भर कर कपड़े भिजवा दिये।
मैंने देखा कि उनमें हर तरह के कपड़े थे और हर ड्रेस के साथ मेल खाते हाई हील के सैंडल भी थे। कपड़े काफी कीमती थे। मैंने उन कपड़ों और सैंडलों पर एक नज़र डाल कर अपने बेडरूम में रख दिये। मैं नहीं चाहती थी कि मेरी सास को वो एक्सपोज़िंग कपड़े दिखें। पता नहीं उसके बारे में वो कुछ भी सोच सकती थीं।
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शाम को उनके वापस आने के बाद जब मैंने उन्हें अकेला पाया तो मैंने उनसे पूछा, “इतने कपड़े! सिर्फ मेरे लिये हैं?”
“और नहीं तो क्या! तुम वहाँ मेरी सेक्रेटरी होगी और मेरी सेक्रेटरी सबसे अलग दिखनी चाहिये। तुम हर रोज एक नये डिज़ाईन का ड्रेस पहनना। उन्हें भी तो पता चले हम इंडियंस कितने शौकीन हैं। तुमने पहन कर देखा उन्हें?”
“नहीं, मैंने अभी तक इन्हें ट्राई करके तो देखा ही नहीं।”
“कोई बात नहीं! आज रात खाना काने के बाद तुम्हारा ट्रायल लेते हैं।” फिर मुस्कुरा कर बोले, “अपनी सास को जल्दी सुला देना।”
रात को खाना खाने के बाद अम्मी सोने चली गयी। अब्बू ने खाना नहीं खाया। उन्होंने कहा कि वो खाने से पहले दो पेग व्हिस्की के लेना चाहते हैं। अम्मी तो इंतज़ार ना करके खुद खाना खाकर उन्हें मेरे हवाले कर के चली गयीं। मैंने सारा सामान सेंटर टेबल पर तैयार करके रख दिया। वो सोफ़े पर बैठ कर धीरे-धीरे ड्रिंक्स सिप करने लगे। वो इस काम को लंबा खींचना चाहते थे जिससे अम्मी गहरी नींद में सो जायें। उन्हें ड्रिंक करते देख मेरा भी ड्रिंक पीने का मन तो हुआ पर मैंने कभी अब्बू के सामने ड्रिंक नहीं की थी। मैं उनके पास बैठी उनके काम में हैल्प कर रही थी कुछ देर बाद उन्होंने पूछा, “तुम्हारी अम्मी सो गयीं? देखना तो सही।” मैं उठ कर उनके बेडरूम में जाकर एक बार सासू जी पर नज़र मार आयी। वो तब गहरी नींद में सो रही थी। मैं सामने के सोफ़े पर बैठने लगी तो उन्होंने मुझे अपने पास उसी सोफ़े पर बैठने का इशारा किया। मैं उठ कर उनके पास बैठ गयी।
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उन्होंने कुछ देर तक मुझे निहारा और फिर कहा, “जाओ शहनाज़… और एक-एक कर के सारे कपड़े मुझे पहन कर दिखाओ।” ये कहते हुए उन्होंने अपना ड्रिंक बनाया। मैं उठ कर अपने बेडरूम में चली गयी। बेडरूम में आकर बॉक्स खोल कर सारे कपड़ों को बिस्तर के ऊपर बिछा दिया। मैंने सबसे पहले एक ट्राऊज़र और शर्ट छाँटा। उसके साथ उसके साथ के हाई हील के सैंडल पहन कर कैट-वॉक करते हुए किसी मॉडल की तरह उनके सामने सोफ़े तक पहुँची और अपने हाथ कमर पर रख कर दो सेकेंड रुकी और फिर झुक कर उन्हें बो किया और धीरे से पीछे मुड़ कर उन्हें अपने पिछवाड़े का भी पूरा जायज़ा करने दिया और फिर मुड़कर पूछा, "ठीक है?"
उन्होंने मुस्कुरा कर कहा, “सैक्सी.. म्म्म्म…!”
मैं वापस अपने कमरे में आ गयी फिर दूसरे कपड़े पहन कर उनके सामने पहुँची..... फिर तीसरे.....। बनाने वाले ने बड़े ही खूबसूरत डिज़ाईन में सारे कपड़े सिले थे। जो रेडीमेड थे उन्हें भी काफी नाप तोल करके सेलेक्ट किया होगा क्योंकि कपड़े ऐसे लग रहे थे मानो मेरे लिये ही बने हों। जिस्म से ऐसे चिपक गये थे मानो मेरे जिस्म पर दूसरी चमड़ी चढ़ गयी हो।
ट्राऊज़र्स के बाद लाँग स्कर्ट्स और ब्लाऊज़ों की बारी आयी। ताहिर अज़ीज़ खान जी मेरे शो को दिल से इंजॉय कर रहे थे। हर कपड़े पर कुछ ना कुछ कमेंट पास करते जा रहे थे।
लाँग स्कर्ट्स के बाद माइक्रो स्कर्ट्स की बारी आयी। मैंने एक पहना तो मुझे काफी शरम आयी। स्कर्ट्स की लम्बाइ पैंटी के दो अंगुल नीचे तक थी। टॉप भी मेरी गोलाइयों के ठीक नीचे ही खत्म हो रही थी। टॉप्स के गले भी काफी डीप थे। मेरे आधे बूब्स सामने नज़र आ रहे थे। मैंने ब्रा और पैंटी के ऊपर ही उन्हें पहना और एक बार अपने जिस्म को सामने लगे फुल लेंथ आइने में देख कर शरमाती हुई उनके सामने पहुँची।
“नो नो.... तुम्हें पूरे ड्रेस-कोड को निभाना पड़ेगा”, उन्होंने अपने ग्लास से सिप करते हुए कहा, “नो अंदरगार्मेंट्स! ”
“मैं वहाँ उसी तरह पहन लुँगी.... यहाँ मुझे शरम आ रही है”, मैंने शरमाते हुए कहा।
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“यहाँ मैं अकेला हूँ तो शरम आ रही है.... वहाँ तो सैंकड़ों लोग देखेंगे फिर?”
“अब्बू वहाँ तो सारी लड़कियाँ इसी ड्रेस में होंगीं.... इसलिये शरम नहीं लगेगी।”
“नहीं नहीं! तुम तो उसी तरह आओ! नहीं तो पता कैसे चलेगा इन कपड़ों में तुम कैसी लगोगी”, उन्होंने कहा तो मैं चुपचाप लौट आयी और अपनी ब्रा और पैंटी उतार कर हाई-हील सैंडलों में धीरे-धीरे चलते हुए वापस पहुँची। उनके सामने जाकर जैसे ही मैंने अपने हाथ कमर पर रखे तो उनकी आँखें बड़ी-बड़ी हो गयीं। उन्होंने शॉर्ट्स पहन रखी थी और उसमें से उनके लंड का उभार साफ़ दिखने लगा। उनका लंड मेरे एक्सपोज़र का मान करते हुए तन कर खड़ा हो गया। शॉर्ट्स के ऊपर से तंबू की तरह उभार नज़र आने लगा।
“सामने की ओर थोड़ा झुको”, उन्होंने मुझे कहा तो मैं सामने की ओर झुकी। मेरे टॉप के गले से मेरे पूरे उभार बाहर झाँकने लगे। पूरे मम्मे उनकी नजरों के सामने थे ।
“पीछे घूमो”, उन्होंने फिर कहा।
मैं धीरे-धीरे पीछे घूमी। मुझे पूरा भरोसा है कि मेरे झुके होने के कारण पीछे घूमने पर छोटे से स्कर्ट के अंदर से मेरी चूत उनको नज़र आ गयी होगी। उन्होंने मेरी तारीफ़ करते हुए कहा, “बाय गॉड! तुम आग लगा दोगी सारे पैरिस में! ”
मुस्कुराते हुए मैं वापस बेड रूम में चली गयी। कुछ देर बाद एक के बाद एक, सारे स्कर्ट और टॉप ट्राई कर लिये। अब सिर्फ बिकिनी बची थी।
“अब्बू सारे कपड़े खत्म हो गये.... अब सिर्फ बिकिनियाँ ही बची हैं”, मैंने कहा।
“तो क्या! उन्हें भी पहन कर दिखाओ”, उन्होंने कसमसाते हुए अपने तने हुए लंड को सेट किया। इस तरह की हरकत करते हुए उनको मेरे सामने किसी तरह की शरम महसूस नहीं हो रही थी। काश कि मैंने भी उनकी तरह दो-तीन पैग व्हिस्की के पिये होते तो मैं भी और खुलकर और बेशर्म होकर ये शो इंजॉय करती।
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मैंने वापस कमरे में जाकर पहली बिकिनी उठायी और उसे अपने जिस्म पर पहन कर देखा। बिकिनी सिर्फ ब्रा और पैंटी की तरह टू पीस थी। बाकी सारा जिस्म नंगा था। हर बिकिनी के रंग के साथ मेल खाते सैंडल भी थे। मैं वो बिकिनी और उसके साथ के हाई-हील सैंडल पहन कर चलती हुई ताहिर अज़ीज़ खान जी के पास आयी। मेरे लगभग नंगे जिस्म को देख कर ताहिर खान जी की जीभ होंठों पर फिरने लगी।
“मुझे तो अपने बेटे की किस्मत पर जलन हो रही है। ऐसी खूबसूरत हूर तो बस किसमत वालों को ही नसीब होती है”, उन्होंने मेरी तारीफ़ की। मैंने उनके सामने आकर उसी तरह झुक कर अपने मम्मों को उनकी आँखों के सामने किया और फिर एक हल्के झटके से मम्मों को हिलाया और घूम कर अपने नितंबों पर चिपकी पैंटी के भरपूर जलवे दिखाये। फिर मैं अंदर चली गयी।
एक के बाद एक बिकिनी ट्राई करने लगी। हर बिकिनी पहले वाली बिकिनी से ज्यादा छोटी थी। आखिरी बिकिनी तो बस निप्पल को ढकने के लिये दो इंच घेर के दो गोल आकर के कपड़े के टुकड़े थे। दोनों एक दूसरे से पतली डोर से बंधे थे। उन्हें निप्पल के ऊपर सेट करके मैंने डोर अपने पीछे बाँध ली। पैंटी के नाम पर एक छोटा सा एक ही रंग का तिकोना कपड़ा चूत को ढकने के लिये इलास्टिक से बंधा हुआ था। मैंने आइने में देखा। मैं पूरी तरह नंगी नज़र आ रही थी। हाइ हील सैंडलों में मेरी नंगी गाँड ऊपर की और ऊघड़ रही थी।
मैं वो पहन कर जब चलते हुए उनके सामने पहुँची तो उनके हाथ का ग्लास फ़िसल कर कार्पेट पर गिर पड़ा। मैं उनकी हालत देख कर हँस पड़ी। लेकिन तुरंत ही शरम से मेरा चेहरा लाल हो गया।
मैंने अब तक कईं गैर मर्दों के साथ में सब कुछ किया था मगर फिरोज़ भाई जान के साथ ही सैक्स को इंजॉय किया था। उनकी तरह इनके साथ भी मैं इंजॉय कर रही थी। मैं इस बार उनके कुछ ज्यादा ही पास पहुँच गयी। उनके सामने जाकर मैं अपना एक पैर सोफे पर उनकी टाँगों के बीच में रख कर मैं झुकी तो मेरे बड़े-बड़े बूब्स उनकी आँखों के सामने नाचने लगे। मेरे दोनों मम्मे उनसे बस एक हाथ की दूरी पर थे। वो अपने हाथों को उठा कर उन्हें छू सकते थे। मेरे सैंडल की आगे की टिप उनके शॉर्ट्स के ऊपर से उनके लंड को छू रही थी। मैंने अपने जिस्म को एक झटका दिया जिससे मेरे मम्मे बुरी तरह उछल उठे। फिर मैं पीछे मुड़कर अपने कमरे में जाने को हुई तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपनी गोद में खींचा। मैं लहरा कर उनकी गोद में गिर गयी। उनके होंठ मेरे होंठों से चिपक गये। उनके हाथ मेरी गोलाइयों को मसलने लगे। एक हाथ मेरे नंगे जिस्म पर फिरता हुआ नीचे टाँगों के जोड़ तक पहुँचा। उन्होंने मेरी चूत के ऊपर अपना हाथ रख कर पैंटी के ऊपर से ही उस जगह को मुठ्ठी में भर कर मसला। अब उनके हाथ मेरी ब्रा को मेरे जिस्म से अलग करना चाहते थे।
वो कुछ और करते कि उनका मोबाइल बज उठा। उनके ऑफिस के किसी आदमी का फोन था। वो किसी ऑफिशल काम के बारे में बात कर रहा था। मैं मौका देख कर उन कपड़ों को समेट कर वहाँ से भाग गयी। मैंने अपने कपड़े उतार कर वापस सलवार कमीज़ पहनी और सारे कपड़ों को समेट कर बॉक्स में रख दिया। मैं पूरी तरह तैयार होकर दस मिनट बाद बाहर आयी। तब तक ताहिर अज़ीज़ खान जी जा चुके थे। मैं टेबल से ड्रिंक्स का सारा सामान उठाने को झुकी तो मुझे सोफ़े पर एक गीला, गोल धब्बा नज़र आया। वो धब्बा उनके वीर्य से बना था। मैं सब समझ कर मुस्कुरा उठी।
मैंने अपने लिये एक डबल नीट पैग बनाया और उसे पीने के बाद मैं अपने कमरे में जाकर सो गयी। आज मेरे ससुर जी की रात खराब होनी थी और मैं आने वाले दिनों के बारे सोचती हुई सो गयी जब हफ़्ते भर के लिये पैरिस जैसी रंगीन जगह में हम दोनों को एक साथ रहना था।
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(08-10-2020, 04:48 PM)Klauacami Wrote: Waah maza aa gya
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Agla update jaldi do bhai yha
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(14-10-2020, 05:40 PM)Klauacami Wrote: Agla update jaldi do bhai yha
Ji... update aaj hi aayega!
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(15-10-2020, 06:17 PM)BHOG LO Wrote: wonderful story
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