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Misc. Erotica मैं हसीना गज़ब की
“फिर क्या....? जो होना है होकर रहेगा।” उन्होंने एक गहरी साँस ली। मैंने उन्हें इतना परेशान कभी नहीं देखा था।

 
“कल आप उनको कह दो कि लड़कियों का इंतज़ाम हो जायेगा।” मैंने कहा, “देखते हैं उनके यहाँ पहुँचने से पहले क्या किया जा सकता है।”
 
अगले दिन जब वो आये तो उन्हें रिलैक्स्ड पाने कि जगह और ज्यादा टूटा हुआ पाया। मैंने कारण पूछा तो वो टाल गये।
 
“आपने बात की थी उनसे?”
 
“हाँ!”
 
“फिर क्या कहा आपने? वो तैयार हो गये? अरे परेशान क्यों होते हो..... हम लोग इस तरह की किसी औरत को ढूँढ लेंगे। जो दिखने में सीधी साधी घरेलू औरत लगे।”
 
“अब कुछ नहीं हो सकता!”
 
“क्यों?” मैंने पूछा।
 
“तुम्हें याद है वो हमारे निकाह में आये थे।“
 
आये होंगे… तो?”
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“उन्होंने निकाह में तुम्हें देखा था।” 

“तो???” मुझे अपनी साँस रुकती सी लगी और एक अजीब तरह का खौफ पूरे जिस्म में छाने लगा। 
 
“उन्हें सिर्फ तुम चाहिये।”
 
“क्या?” मैं लगभग चींख उठी, “उन हरामजादों ने समझा क्या है मुझे? कोई रंडी?”
 
वो सर झुकाये हुए बैठे रहे। मैं गुस्से से बिफ़र रही थी और उनको गालियाँ दे रही थी और कोस रही थी। मैंने अपना गुस्सा शांत करने के लिये किचन में जाकर एक पैग व्हिस्की का पिया। फिर वापस आकर उनके पास बैठ गयी और कहा, “फिर???” मैंने अपने गुस्से को दबाते हुए उनसे धीरे-धीरे पूछा।
 
“कुछ नहीं हो सकता!” उन्होंने कहा, “उन्होंने साफ़ साफ़ कहा है कि या तो तुम उनके साथ एक रात गुजारो या मैं इलाईट ग्रुप से अपना कांट्रेक्ट खत्म समझूँ”, उन्होंने नीचे कार्पेट की ओर देखते हुए कहा।
 
“हो जाने दो कांट्रेक्ट खत्म। ऐसे लोगों से संबंध तोड़ लेने में ही भलाई होती है। तुम परेशान मत हो। एक जाता है तो दूसरा आ जाता है।”
 
“बात अगर यहाँ तक होती तो भी कोई परेशानी नहीं थी।” उन्होंने अपना सिर उठाया और मेरी आँखों में झाँकते हुए कहा, बात इससे कहीं ज्यादा संजीदा है। “अगर वो अलग हो गये तो एक तो हमारे माल की खपत बंद हो जायेगी जिससे कंपनी बंद हो जायेगी… दूसरा उनसे संबंध तोड़ते ही मुझे उन्हें १५ करोड़ रुपये देने पड़ेंगे जो उन्होंने हमारी फर्म में इनवेस्ट कर रखे हैं।”
 
मैं चुपचाप उनकी बातों को सुन रही थी लेकिन मेरे दिमाग में एक लड़ाई छिड़ी हुई थी।
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“अगर फैक्ट्री बंद हो गयी तो इतनी बड़ी रकम मैं कैसे चुका पाऊँगा। अपनी फैक्ट्री बेच कर भी इतना नहीं जमा कर पाऊँगा।” अब मुझे भी अपनी हार होती दिखायी दी। उनकी माँग मानने के अलावा अब और कोई रास्ता नहीं बचा था। उस दिन हम दोनों के बीच और बात नहीं हुई। चुपचाप खाना खा कर हम सो गये। मैंने तो सारी रात सोचते हुए गुजारी। ये ठीक है कि जावेद के अलावा मैंने उनके बहनोई और उनके बड़े भाई से जिस्मानी ताल्लुकात बनाये थे और कुछ-कुछ ताल्लुकात ससुर जी के साथ भी बने थे लेकिन उस फैमिली से बाहर मैंने कभी किसी से जिस्मानी ताल्लुकात नहीं बनाये। 

अगर मैं उनके साथ एक रात बिताती हूँ तो मुझ में और दो टके की किसी रंडी में क्या फर्क रह जायेगा। कोई भी मर्द सिर्फ मन बहलाने के लिये एक रात की माँग करता है क्योंकि उसे मालूम होता है कि अगर एक बार उसके साथ जिस्मानी ताल्लुकात बन गये तो ऐसी एक और रात के लिये औरत कभी मना नहीं कर पायेगी। 
 
लेकिन इसके अलावा हो भी क्या सकता था। इस भंवर से निकलने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। ऐसा लग रहा था कि मैं एक बीवी से एक रंडी बनती जा रही हूँ। किसी ओर भी रोश्नी की कोई किरण नहीं दिख रही थी। किसी और से अपना दुखड़ा सुना कर मैं जावेद को जलील नहीं करना चाहती थी।
 
सुबह मैं अलसायी हुई उठी और मैंने जावेद को कह दिया, “ठीक है! मैं तैयार हूँ!”
 
जावेद चुपचाप सुनते रहे और नाश्ता करके चले गये। उस दिन शाम को जावेद ने बताया कि रस्तोगी से उनकी बात हुई थी और उन्होंने रस्तोगी को मेरे राज़ी होने की बात कह दी है।
 
“हरामजादा… मादरचोद…. खुशी से मरा जा रहा होगा!” मैंने मन ही मन जी भर कर गंदी-गंदी गालियाँ दीं।
 
“अगले हफ़्ते दोनों एक दिन के लिये आ रहे हैं”, जावेद ने कहा, “दोनों दिन भर ऑफिस के काम में बिज़ी होंगे.... शाम को तुम्हें उनको एंटरटेन करना होगा।”
 
“कुछ तैयारी करनी होगी क्या?”
 
“किस बात की तैयारी?” जावेद ने मेरी ओर देखते हुए कहा, “शाम को वो खाना यहीं खायेंगे, उसका इंतज़ाम कर लेना..... पहले हम सब ड्रिंक करेंगे।”
 
मैं बुझे मन से उस दिन का इंतज़ार करने लगी।
 
अगले हफ़्ते जावेद ने उनके आने की इत्तला दी। उनके आने के बाद सारा दिन जावेद उनके साथ बिज़ी थे। शाम को छः बजे के आस पास वो घर आये और उन्होंने एक पैकेट मेरी ओर बढ़ाया।
 
“इसमें उन लोगों ने तुम्हारे लिये कोई ड्रेस पसंद की है। आज शाम को तुम्हें यही ड्रेस पहननी है। इसके अलावा जिस्म पर और कुछ नहीं रहे.... ये कहा है उन्होंने।”
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भाग ७ 
 
मैंने उस पैकेट को खोल कर देखा। उसमें एक पारदर्शी झिलमिलाती साड़ी थी और साथ में काफी ऊँची और पतली हील के सैंडल थे और कुछ भी नहीं था। उनके कहे अनुसार मुझे अपने नंगे जिस्म पर सिर्फ वो साड़ी और सैंडल पहनने थे बिना किसी पेटीकोट और ब्लाऊज़ के। साड़ी इतनी महीन थी कि उसके दूसरी तरफ़ की हर चीज़ साफ़-साफ़ दिखायी दे रही थी। 

“ये..?? ये क्या है? मैं ये साड़ी पहनुँगी? इसके साथ अंडरगार्मेंट्स कहाँ हैं?” मैंने जावेद से पूछा। 
 
“कोई अंडरगार्मेंट नहीं है। वैसे भी कुछ ही देर में ये भी वो तुम्हारे जिस्म से नोच देंगे और तुम सिर्फ इन सैंडलों में रह जाओगी।” मैं एक दम से चुप हो गयी।
 
"तुम?...... तुम कहाँ रहोगे?” मैंने कुछ देर बाद पूछा।
 
"वहीं तुम्हारे पास!” जावेद ने कहा।
 
“नहीं तुम वहाँ मत रहना। तुम कहीं चले जाना। मैं तुम्हारे सामने वो सब नहीं कर पाऊँगी..... मुझे शरम आयेगी”, मैंने जावेद से लिपटते हुए कहा।
 
“क्या करूँ। मैं भी उस समय वहाँ मौजूद नहीं रहना चाहता। मैं भी अपनी बीवी को किसी और की बाँहों में झूलता सहन नहीं कर सकता। लेकिन उन दोनों हरामजादों ने मुझे बेइज्जत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वो जानते हैं कि मेरी दुखती रग उन लोगों के हाथों में दबी है। इसलिये वो जो भी कहेंगे मुझे करना पड़ेगा। उन सालों ने मुझे उस वक्त वहीं मौजूद रहने को कहा है”, कहते-कहते उनका चेहरा लाल हो गया और उनकी आवाज रुंध गयी। मैंने उनको अपनी बाँहों में ले लिया और उनके सिर को अपने दोनों मम्मों में दबा कर साँतवना दी।
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“तुम घबराओ मत जानेमन! तुम पर किसी तरह की परेशानी नहीं आने दूँगी।” 

मैंने नसरीन भाभी जान से फ़ोन पर इस बारे में कुछ घूमा फ़िरा कर चर्चा की तो पता चला उनके साथ भी इस तरह के वाक्यात होते रहते हैं। मैंने उन्हें उन दोनों के बारे में बताया तो उन्होंने मुझे कहा कि बिज़नेस में इस तरह के ऑफर्स चलते रहते हैं और मुझे आगे भी इस तरह की किसी सिच्युवेशन के लिये हमेशा तैयार रहना चाहिये। उन्होंने सलाह दी कि मैं नेगेटिव ना सोचूँ और ऐसे मौकों पर खुद भी इंजॉय करूँ
 
उस दिन शाम को मैं बन संवर कर तैयार हुई। मैंने कमर में एक डोरी की सहायता से अपनी साड़ी को लपेटा। मेरा पूरा जिस्म सामने से साफ़ झलक रहा था। मैं कितनी भी कोशिश करती अपने गुप्ताँगों को छिपाने की, लेकिन कुछ भी नहीं छिपा पा रही थी। एक अंग पर साड़ी दोहरी करती तो दूसरे अंग के लिये साड़ी नहीं बचती। खैर मैंने उसे अपने जिस्म पर नॉर्मल साड़ी की तरह पहना। फिर उनके दिये हुए हाई-हील के सैंडल पहने जिनके स्ट्रैप मेरी टाँगों पर क्रिसक्रॉस होते हुए घुटनों के नीचे बंधते थे। मैंने उन लोगों के आने से पहले अपने आप को एक बार आईने में देख कर तसल्ली की और साड़ी के आंचल को अपनी छातियों पर दोहरा करके लिया। फिर भी मेरे मम्मे साफ़ झलक रहे थे।
 
उन लोगों की पसंद के मुताबिक मैंने अपने चेहरे पर गहरा मेक-अप किया था। मैंने उनके आने से पहले कोंट्रासेप्टिव का इस्तेमल कर लिया था क्योंकि प्रिकॉशन लेने के मामले में इस तरह के संबंधों में किसी पर भरोसा करना एक भूल होती है।
 
उनके आने पर जावेद ने जा कर दरवाजा खोला। मैं अंदर ही रही। उनकी बातें करने की आवाज से समझ गयी कि दोनों अपनी रात हसीन होने की कल्पना करके चहक रहे हैं। मैंने एक गहरी साँस लेकर अपने आप को वक्त के हाथों छोड़ दिया। जब इसके अलावा हमारे सामने कोई रास्ता ही नहीं बचा था तो फिर कोई झिझक कैसी। मैंने अपने आप को उनकी खुशी के मुताबिक पूरी तरह से निसार करने की ठान ली।
 
जावेद के आवाज देने पर मैं एक ट्रे में चार ग्लास और आईस क्यूब कंटेनर लेकर ड्राइंग रूम में पहुँची। सब की आँखें मेरे हुस्‍न को देख कर बड़ी-बड़ी हो गयी। मेरी आँखें जमीन में धंसी जा रही थी। मैं शरम से पानी-पानी हो रही थी। किसी अंजान के सामने अपने जिस्म की नुमाईश करने का ये मेरा पहल मौका था। मैं हाई-हील सैंडलों में धीरे-धीरे कदम बढ़ाती हुई उनके पास पहुँची। मैं अपनी झुकी हुई नजरों से देख रही थी कि मेरे आजाद मम्मे मेरे जिस्म के हर हल्के से हिलने पर काँप उठते और उनकी ये उछल कूद सामने बैठे लोगों की भूखी आँखों को राहत दे रही थी।
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Wahh gajab
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nice update.. waiting for more..
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(30-06-2020, 06:15 PM)Klauacami Wrote: Wahh gajab

thanks
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(02-07-2020, 07:23 PM)longindian_axe Wrote: nice update.. waiting for more..

thanks
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जावेद ने पहले उन दोनों से मेरा इंट्रोडक्शन कराया, “मॉय वाईफ शहनाज़ !” उन्होंने मेरी ओर इशारा करके उन दोनों को कहा, फिर मेरी ओर देख कर कहा, “ये हैं मिस्टर रस्तोगी और ये हैं…” 

“चिन्नास्वामी.. चिन्नास्वामी येरगंटूर मैडम। यू कैन काल मी चिन्ना इन शॉर्ट।” चिन्नास्वामी ने जावेद की बात पूरी की। मैंने सामने देखा दोनों लंबे चौड़े शरीर के मालिक थे। चिन्नास्वामी साढ़े छः फ़ीट का मोटा आदमी था। रंग एकदम कार्बन की तरह काला और खिचड़ी दाढ़ी में एकदम साऊथ इंडियन फ़िल्म का कोई टिपिकल विलेन लग रहा था। उसकी उम्र ४५ से पचास साल के करीब थी और वजन लगभग १०० किलो के आस्पास होगा। जब वो मुझे देख कर हाथ जोड़ कर हंसा तो ऐसा लगा मानो बादलों के बीच में चाँद निकल आया हो। 
 
और रस्तोगी? वो भी बहुत बुरा था देखने में। वो भी ४० साल के आसपास का ५’८" हाईट वाला आदमी था जिसकी फूली हुई तोंद बाहर निकली हुई थी। सिर बिल्कुल साफ़ था। उसमें एक भी बाल नहीं था। मुझे उन दोनों को देख कर बहुत बुरा लगा। मैं उन दोनों के सामने लगभग नंगी खड़ी थी। कोई और वक्त होता तो ऐसे गंदे आदमियों को तो मैं अपने पास ही नहीं फ़टकने देती। लेकिन वो दोनों तो इस वक्त मेरे फूल से जिस्म को नोचने को बेकरार हो रहे थे। दोनों की आँखें मुझे देख कर चमक उठीं। दोनों की आँखों से लग रहा था कि मैंने वो साड़ी भी क्यों पहन रखी थी। दोनों ने मुझे सिर से पैर तक भूखी नजरों से घूरा। मैं ग्लास टेबल पर रखने के लिये झुकी तो मेरे मम्मों के वजन से मेरी साड़ी का आंचल नीचे झुक गया और रसीले फलों की तरह लटकते मेरे मम्मों को देख कर उनके सीनों पर साँप लौटने लगे। मैं ग्लास और आईस क्यूब टेबल पर रख कर वापस किचन में जाना चाहती थी कि चिन्नास्वामी ने मेरी बाजू को पकड़ कर मुझे वहाँ से जाने से रोका।
 
“तुम क्यों जाता है.... तुम बैठो हमारे पास!” उसने थ्री सीटर सोफ़े पर बैठते हुए मुझे बीच में खींच लिया। दूसरी तरफ़ रस्तोगी बैठा हुआ था। मैं उन दोनों के बीच सैंडविच बनी हुई थी।
 
“जावेद भाई ये किचन का काम तुम करो। अब हमारी प्यारी भाभी जान यहाँ से नहीं जायेगी”, रस्तोगी ने कहा। जावेद उठ कर ट्रे किचन में रख कर आ गया। उसके हाथ में सोडे की बोतलें थीं। जब वो वापस आया तो मुझे दोनों के बीच कसमसाते हुए पाया। दोनों मेरे जिस्म से सटे हुए थे और कभी एक तो कभी दूसरा मेरे होंठों को या मेरी साड़ी के बाहर झाँकती नंगी बांहों को और मेरी गर्दन को चूम रहे थे। रस्तोगी के मुँह से अजीब तरह की बदबू आ रही थी। मैं किसी तरह साँसों को बंद करके उनकी हरकतों को चुपचाप झेल रही थी।
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जावेद केबिनेट से बीयर की कईं बोतलें और एक स्कॉच व्हिस्की की बोतल ले कर आया। उसे उसने स्वामी की तरफ़ बढ़ाया। 

“नक्को.. भाभी जान खोलेंगी!” उसने एक बीयर की बोतल मेरे आगे करते हुए कहा। 
 
“लो हम तीनों के लिये बीयर डालो ग्लास में और अपने लिये व्हिस्की। रस्तोगी अन्ना का गला प्यास से सूख रहा होगा!” चिन्ना ने कहा।
 
“जावेद! योर वाईफ इज़ अ रियल ज्वैल…” रस्तोगी ने कहा, “यू लकी बास्टर्ड, क्या सैक्सी जिस्म है इसका। यू आर रियली अ लकी बगर।” जावेद तब तक सामने के सोफ़े पर बैठ चुका था। दोनों के हाथ आपस में मेरे एक एक मम्मे को बाँट चुके थे। दोनों साड़ी के आंचल को छातियों से हटा कर मेरे दोनों मम्मों को चूम रहे थे। ऐसी हालत में तीनों के लिये बीयर उढ़ेलना एक मुश्किल का काम था। दोनों तो ऐसे जोंक की तरह मेरे जिस्म से चिपके हुए थे कि कोशिश के बाद भी उन्हें अलग नहीं कर सकी।
 
मैंने उसी हालत में तीनों ग्लास में बीयर डाली और अपने लिये एक ग्लास में व्हिस्की डाली और जब मैं अपनी व्हिस्की में सोडा डालने लगी तो रस्तोगी ने मेरे व्हिस्की के ग्लास को बीयर से भर दिया। फिर मैंने बीयर के ग्लास उनकी तरफ़ बढ़ाये।
 
पहला ग्लास मैंने रस्तोगी की तरफ़ बढ़ाया। “इस तरह नहीं। जो साकी होता है.... पहले वो ग्लास से एक सिप लेता है फिर वो दूसरों को देता है!”
 
मैंने ग्लास के रिम को अपने होंठों से छुआ और फिर एक सिप लेकर उसे रस्तोगी कि तरफ़ बढ़ा दिया। फिर दूसरा ग्लास उसी तरह चिन्ना स्वामी को दिया और तीसरा जावेद को। तीनों ने मेरी खूबसूरती पर चियर्स किया। सबने अपने-अपने ग्लास होंठों से लगा लिये। मैं भी व्हिस्की और बियर की कॉकटेल पीने लगी। मेरी धड़कनें तेजी सी चल रही थीं और बेचैनी में मैंने चार-पाँच घूँट में ही अपना ग्लास खाली कर दिया।
 
“मस्त हो भाभी जान तुम....” कहकर रस्तोगी मेरे लिये दूसरा पैग बनाने लगा। उसने मेरा ग्लास व्हिस्की से आधा भर दिया और बाकी आधा बीयर से भर कर ग्लास मुझे पकड़ा दिया। इतने में जावेद ने सिगरेट का पैकेट चिन्ना स्वामी की तरफ बढ़ाया।
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“नहीं ऐसे नहीं.... ड्रिंक्स की तरह भाभी ही सिगरेट सुलगा कर देंगी!” रस्तोगी ने कहा। 

“ल…लेकिन मैं स्मोक नहीं करती!”
 
“अरे ये सिगरेट ही तो है। ड्रिंक्स के साथ स्मोक करने से और मज़ा आता है।”
 
“प्लीज़ रस्तोगी। इससे जबरदस्ती मत करो ये स्मोक नहीं करती है।” जावेद ने रस्तोगी को मनाया।
 
“कोई बात नहीं सिगरेट के फिलटर को चूम कर हल्का सा कश लेकर सुलगा तो सकती है। इसे बस सुलगा दो तो इसका मज़ा बढ़ जायेगा...... हम पूरी सिगरेट तो स्मोक करने को नहीं कह रहे!”
 
मैंने झिझकते हुए सिगरेट होंठों से लगायी और रस्तोगी ने बढ़ कर लाईटर सिगरेट के आगे जला दिया। मैंने हल्का सा ही कश लिया तो धुंआ मेरे फेफड़ों में भर गया और मेरी आँखों में पानी आ गया और मैं खाँसने लगी। स्वामी ने फटाफट मेरा ग्लास मेरे होंठों से लगा दिया और मैंने उस स्ट्रॉंग ड्रिंक का बड़ा सा घूँट पिया तो मेरी खाँसी बंद हुई। मैंने वो सिगरेट स्वामी को पकड़ा दी और फिर रस्तोगी और जावेद के लिये भी उसी तरह सिगरेट जलायीं पर उसमें मुझे पहले की तरह तकलीफ नहीं हुई। सब सिगरेट पीते हुए अपनी बीयर पीने लगे और मैं भी अपना कड़क कॉकटेल पीने लगी। स्वामी कुछ ज्यादा ही मूड में हो रहा था। उसने मेरे नंगे मम्मे को अपने हाथ से छू कर मेरे निप्पल को अपने ग्लास में भरे बीयर में डुबोया और फिर उसे अपने होंठों से लगा लिया। उसे ऐसा करते देख रस्तोगी भी मूड में आ गया। दोनों एक-एक मम्मे पर अपना हक जमाये उन्हें बुरी तरह मसल रहे थे और निचोड़ रहे थे। रस्तोगी ने अपने ग्लास से एक अँगुली से बीयर की झाग को उठा कर मेरे निप्पल पर लगा दिया फिर उसे अपनी जीभ से चाट कर साफ़ किया।
 
“म्म्म्म्म.. मज़ा आ गया!” रस्तोगी ने कहा, “जावेद तुम्हारी बीवी तो बहुत नशीली चीज़ है।”
 
मेरे निप्पल उत्तेजना में किसी बुलेट की तरह कड़े हो गये थे। मैंने सामने देखा। सामने जावेद अपनी जगह बैठे हुए एकटक मेरे साथ हो रही हरकतों को देख रहे थे। उनका अपनी जगह बैठे-बैठे कसमसाना ये दिखा रहा था कि वो भी किस तरह उत्तेजित होते जा रहे हैं। मुझे उनका इस तरह उत्तेजित होना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। ठीक है जान पहचान में स्वैपिंग एक अलग बात होती है लेकिन अपनी बीवी को किसी अंजान आदमी के हाथों मसले जाने का मज़ा लेना अलग होता है।
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मुझे वहाँ मौजूद हर मर्द पर गुस्सा आ रहा था लेकिन मेरा जिस्म, मेरे दिमाग में चल रही उथल पुथल से बिल्कुल बेखबर अपनी भूख से पागल हो रहा था। मैं अपना दूसरा ग्लास भी लगभग खाली कर चुकी थी लेकिन पता नहीं क्यों, व्हिस्की और बीयर की इतनी स्ट्रॉंग कॉकटेल पीने के बावजूद मुझे कुछ खास नशा महसूस नहीं हो रहा था। रस्तोगी से और नहीं रहा गया तो उसने उठ कर मुझे हाथ पकड़ कर खड़ा किया और मेरे जिस्म पर झूल रही मेरी इक्लौती साड़ी को खींच कर अलग कर दिया। अब तक मेरे जिस हुस्‍न की साड़ी के बाहर से झलक सी मिल रही थी, वो अब बेपर्दा होकर सामने आ गया। अब मैं सिर्फ वो हाई-हील के सैंडल पहने बिल्कुल नंगी उनके सामने अपना ड्रिंक का ग्लास पकड़े खड़ी थी। मैं शरम से दोहरी हो गयी। रस्तोगी ने मेरे जिस्म के पीछे से लिपट कर मुझे अपने गुप्ताँगों को छिपाने से रोका। उसने मेरी बगलों के नीचे से अपने हाथों को डाल कर मेरे दोनों मम्मे थाम लिये और उन्हें अपने हथेलियों से ऊपर उठा कर स्वामी के सामने करके एक भद्दी सी हंसी हंसा। 

“स्वामी... देख क्या माल है। साली खूब मजे देगी।” और उसने मेरे दोनों निप्पलों को अपनी चुटकियों में भर कर बुरी तरह उमेठ दिया। मैं दर्द से “आआआऽऽऽऽहहहऽऽऽ” कर उठी। स्वामी अपनी हथेली से मेरी चूत के ऊपर सहला रहा था। मैं अपनी दोनों टाँगों को सख्ती से एक दूसरे से भींचे खड़ी थी जिससे मेरी चूत उनके सामने छिपी रहे। लेकिन स्वामी ने जबरदस्ती अपनी दो अँगुलियाँ मेरी दोनों टाँगों के बीच घुसेड़ दी। मैंने अपना ग्लास एक घूँट में खाली किया तो रस्तोगी ने ग्लास मेरे हाथ से लेकर टेबल पर रख दिया। दो मिनट पहले तक मुझे कुछ खास नशा महसूस नहीं हो रहा था पर अब अचानक एक ही पल में जोर का नशा मेरे सिर चड़ कर ताँडव करने लगा और मैं झूमने लगी। 
 
चिन्नास्वामी ने मुझे बाँहों से पकड़ अपनी ओर खींचा तो मैं नशे में झूमती हुई लड़खड़ा कर उसकी गोद में गिर गयी। उसने मेरे नंगे जिस्म को अपनी मजबूत बाँहों में भर लिया और मुझे अपने सीने में कस कर दबा दिया। मेरी बड़ी-बड़ी चूचियाँ उसके मजबूत सीने पर दब कर चपटी हो रही थी। चिन्नास्वामी ने अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी। मुझे उसके इस तरह अपनी जीभ मेरे मुँह में फिराने से घिन्न आ रही थी लेकिन मैंने अपने जज़बातों को कंट्रोल किया। उसके दोनों हाथों ने मेरी दोनों छातियों को थाम लिया और अब वो उन दोनों को आते की तरह गूंथ रहे थे। मेरे दोनों गोरे मम्मे उसके मसलने के कारण लाल हो गये थे और दर्द करने लगे थे।
 
“अबे स्वामी इन तने हुए फ़लों को क्या उखाड़ फ़ेंकने का इरादा है तेरा? जरा प्यार से सहला इन खरबूजों को। तू तो इस तरह हरकत कर रहा है मानो तू इसका रेप कर रहा हो। ये पूरी रात हमारे साथ रहेगी इसलिये जरा प्यार से....” रस्तोगी ने चिन्नास्वामी को टोका।
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रस्तोगी मेरी बगल में बैठ गया और मुझे चिन्ना स्वामी की गोद से खींच कर अपनी गोद में बिठा लिया। मैं नशे में झूमती हुई चिन्नास्वामी के जिस्म से अलग हो कर रस्तोगी के जिस्म से लग गयी। स्वामी उठकर अपने कपड़ों को अपने जिस्म से अलग कर के वापस सोफ़े पर बैठ गया। वो नंगी हालत में अपने लंड को मेरे जिस्म से सटा कर उसे सहलाने लगा। रस्तोगी मेरे मम्मों को मसलता हुआ मेरे होंठों को चूम रहा था। 

फिर वो जोर-जोर से मेरी दोनों छातियों को मसलने लगा। मेरे मुँह से “आआआऽऽऽहहऽऽऽ, ममऽऽऽ” जैसी आवाजें निकल रही थी। पराये मर्द के हाथ जिस्म पर पड़ते ही एक अजीब सा सेंसेशन होने लगता है। मेरे पूरे जिस्म में सिहरन सी दौड़ रही थी। रस्तोगी ने आईस बॉक्स से कुछ आईस क्यूब्स निकाल कर अपने ग्लास में डाले और एक आईस क्यूब निकाल कर मेरे निप्पल के चारों ओर फिराने लगा। उसकी इस हरकत से मेरा पूरा जिस्म गनगना उठा। मेरा मुँह खुल गया और जुबान सूखने लगी। ना चाहते हुए भी नशे में मुँह से उत्तेजना की अजीब-अजीब सी आवाजें निकलने लगी। मेरा निप्पल जितना फूल सकता था उतना फूल चुका था। वो फूल कर ऐसा कड़ा हो गया था मानो वो किसी पत्थर से बना हो। मेरे निप्पल के चारों ओर गोल काले चकते में रोंये खड़े हो गये थे और छोटे छोटे दाने जैसे निकल आये थे। बर्फ़ ठंडी थी और निप्पल गरम। दोनों के मिलन से बर्फ़ में आग सी लग गयी थी। फिर रस्तोगी ने उस बर्फ़ को अपने मुँह में डाल लिया और अपने दाँतों से उसे पकड़ कर दोबारा मेरे निप्पल के ऊपर फिराने लगा। मैं सिहरन से काँप रही थी। मैंने उसके सिर को पकड़ कर अपने मम्मे के ऊपर दबा दिया। उसकी साँसें घुट गयी थीं। मैंने सामने देखा कि जावेद मुझे इस तरह हरकत करता देख मंद-मंद मुस्कुरा रहा है। मैंने बेबसी से अपने दाँत से अपना निचला होंठ काट लिया। मेरा जिस्म गरम होता जा रहा था। नशे की वजह से बार-बार मैं उनकी हरकतों से खिलखिला कर हंस पड़ती थी। मैं नशे में इतनी धुत्त थी और अब उत्तेजना इतनी बढ़ गयी थी कि अगर मैं सब लोक लाज छोड़ कर रंडियों जैसी हरकतें भी करने लगती तो किसी को ताज्जुब नहीं होता। तभी स्वामी बचाव के लिये आगे आ गया। 
 
“अ‍इयो रस्तोगी.... तुम कितना देर करेगा। सारी रात ऐसा ही करता रहेगा क्या। मैं तो पागल हो जायेगा। अब आगे बढ़ो अन्ना।” स्वामी ने मुझे अपनी ओर खींचा। मैं गिरते हुए उसके काले रीछ की तरह बालों वाले सीने से लग गयी। उसने मुझे अपनी बाँहों में लेकर ऐसे दबाया कि मेरी साँस ही रुकने लगी। मुझे लगा कि शायद आज एक दो हड्डियाँ तो टूट ही जायेंगी। मेरी जाँघों के बीच उसका लंड धक्के मार रहा था। मैंने अपने हाथ नीचे ले जाकर उसके लंड को पकड़ा तो मेरी आँखें फ़टी की फ़टी रह गयीं। उसका लंड किसी बेस बाल के बल्ले की तरह मोटा था। इतना मोटा लंड तो मैंने बस ब्लू फ़िल्म में ही देखा था। उसका लंड ज्यादा लंबा नहीं था लेकिन इतना मोटा था कि मेरी चूत को चीर कर रख देता। उसके लंड की मोटाई मेरी कलाई के बराबर थी। मैं उसे अपनी मुठ्ठी में पूरी तरह से नहीं ले पा रही थी।
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मेरी आँखें घबड़ाहट से बड़ी-बड़ी हो गयी। स्वामी की नजरें मेरे चेहरे पर ही थी। शायद वो अपने लंड के बारे में मुझसे तारीफ़ सुनना चाहता था जो कि उसे मेरे चेहरे के जज़बातों से ही मिल गयी। वो मुझे डरते देख मुस्कुरा उठा। अभी तो उसका लंड पूरा खड़ा भी नहीं हुआ था। 

“घबराओ मत... पहले तुम्हारी कंट को रस्तोगी चौड़ा कर देगा फिर मैं उसमें डालेगा”, कहते हुए उसने मुझे वापस अपने सीने में दबा दिया और अपना लंड मेरी जाँघों के बीच रगड़ने लगा। 
 
रस्तोगी मेरे नितंबों से लिपट गया। उसका लंड मेरे नितंबों के बीच रगड़ खा रहा था। रस्तोगी ने टेबल के ऊपर से एक बीयर की बोतल उठायी और जावेद को इशारा किया उसे खोलने के लिये। जावेद ने ओपनर ले कर उसके ढक्कन को खोला। रस्तोगी ने उस बोतल से बीयर मेरे एक मम्मे के ऊपर उढ़ेलनी शुरू की।
 
“स्वामी! ले पी ऐसा नशीला बीयर साले गेंडे तूने ज़िंदगी में नहीं पी होगी”, रस्तोगी ने कहा। स्वामी ने मेरे पूरे निप्पल को अपने मुँह में ले रखा था इसलिये मेरे मम्मे के ऊपर से होती हुई बीयर की धार मेरे निप्पल के ऊपर से स्वामी के मुँह में जा रही थी। वो खूब चटखारे ले-ले कर पी रहा था। मेरे पूरे जिस्म में सिहरन हो रही थी। मेरा निप्पल तो इतना लंबा और कड़ा हो गया था कि मुझे उसके साइज़ पर खुद ताज्जुब हो रहा था। बीयर की बोतल खत्म होने पर स्वामी ने भी वही दोहराया। इस बार स्वामी बीयर उढ़ेल रहा था और दूसरे निप्पल के ऊपर से बीयर चूसने वाला रस्तोगी था। दोनों ने इस तरह से बीयर खत्म की। मेरी चूत से इन सब हरकतों के कारण इतना रस निकल रहा था कि मेरी जाँघें भी गिली हो गयी थी। मैं उत्तेजना में अपनी दोनों जाँघों को एक दूसरे से रगड़ रही थी और अपने दोनों हाथों से उन दोनों के तने हुए लौड़ों को अपनी मुठ्ठी में लेकर सहला रही थी। अब मुझे उन दोनों के चुदाई में देरी करने पर गुस्सा आ रहा था। मेरी चूत में मानो आग लगी हुई थी। मैं सिसकारियाँ ले रही थी। मैं अपने निचले होंठों को दाँतों में दबा कर सिसकारियों को मुँह से बाहर निकलने से रोकती हुई जावेद को देख रही थी और आँखों ही आँखों में मानो कह रही थी कि “अब रहा नहीं जा रहा है। प्लीज़ इनको बोलो कि मुझे मसल मसल कर रख दें।”
 
इस खेल में उन दोनों का भी मेरे जैसा ही हाल हो गया था। अब वो भी अपने अंदर उबल रहे लावा को मेरी चूत में डाल कर शाँत होना चाहते थे। उनके लौड़ों से प्री-कम टपक रहा था।
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“अ‍इयो जावेद! तुम कुछ करता क्यों नहीं। तुम सारा सामान इस टेबल से हटाओ!” स्वामी ने जावेद को कहा। जावेद और रस्तोगी ने फ़टाफ़ट सेंटर टेबल से सारा सामान हटा कर उसे खाली कर दिया। स्वामी ने मुझे बाँहों में लेकर ऊपर कर दिया। मेरे पैर जमीन से ऊपर उठ गये। वो इतना ताकतवर था कि मुझे इस तरह उठाये हुए उसने टेबल का आधा चक्कर लगाया और जावेद के सामने पहुँच कर मुझे टेबल पर लिटा दिया। ग्लास टॉप की सेंटर टेबल पर बैठते ही मेरा जिस्म ठंडे काँच को छूकर काँप उठा। मुझे उसने सेंटर टेबल के ऊपर लिटा दिया। मैं इस तरह लेटी थी कि मेरी चूत जावेद के सामने थी। मेरा चेहरा दूसरी तरफ़ होने की वजह से मुझे पता नहीं चल पाया कि मुझे इस तरफ़ अपनी चूत को पराये मर्द के सामने खोल कर लेटे देख कर मेरे शौहर के चेहरे पर किस तरह के भाव थे। 

उसने मेरे पैर फैला कर पंखे की तरफ़ उठा दिये। मेरी चूत उनके सामने खुली हुई थी। स्वामी ने मेरी चूत को सहलाना शुरू किया। दोनों अपने होंठों पर जीभ फिरा रहे थे। 
 
“जावेद देखो! तुम्हारी बीवी को कितना मज़ा आ रहा है”, रस्तोगी ने मेरी चूत के अंदर अपनी अँगुलियाँ डाल कर अंदर के चिपचिपे रस से लिसड़ी हुई अँगुलियाँ जावेद को दिखाते हुए कहा।
 
फिर स्वामी मेरी चूत से चिपक गया और रस्तोगी मेरे मम्मों से। दोनों के मुँह मेरे गुप्ताँगों से इस तरह चिपके हुए थे मानो फ़ेविकोल से चिपका दिये हों। दोनों की जीभ और दाँतों ने इस हालत में अपने काम शुरू कर दिया था। मैं उत्तेजित हो कर अपनी टाँगों को फ़ेंक रही थी।
 
मैंने अपने बगल में बैठे जावेद की ओर देखा। जावेद अपनी पैंट के ऊपर से अपने लंड को हाथों से दबा रहा था। जावेद अपने सामने चल रहे सैक्स के खेल में डूबा हुआ था।
 
“आआऽऽऽऽहहऽऽऽ जावेदऽऽऽ ममऽऽऽऽ मुझे क्याऽऽऽ होता जा रहा है?” मैंने अपने सूखे होंठों पर ज़ुबान फिरायी, मेरा जिस्म सैक्स की गर्मी से झुलस रहा है।
 
जावेद उठ कर मेरे पास आकर खड़ा हो गया। मैंने अपने हाथ बढ़ा कर उसके पैंट की ज़िप को नीचे करके, बाहर निकलने को छटपटा रहे उसके लंड को खींच कर बाहर निकाला और उसे अपने हाथों से सहलाने लगी। रस्तोगी ने पल भर को मेरे निप्पल पर से अपना चेहरा उठाया और जावेद को देख कर मुस्कुरा दिया और वापस अपने काम में लग गया। मेरी लंबी रेशमी ज़ुल्फें जिन्हें मैंने जुड़े में बाँध रखा था, अब खुल कर बिखर गयीं और जमीन पर फ़ैल गयीं।
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रस्तोगी अब मेरे निप्पल को छोड़ कर उठा और मेरे सिर के दूसरी तरफ़ आकर खड़ा हो गया। मेरी नजरें जावेद के लंड पर अटकी हुई थीं, इसलिये रस्तोगी ने मेरे सिर को पकड़ कर अपनी ओर घुमाया। मैंने देखा कि मेरे चेहरे के पास उसका तना हुआ लंड झटके मार रहा था। उसके लंड से निकलने वाले प्री-कम की एक बूँद मेरे गाल पर आकर गिरी जिसके कारण मेरे और उसके बीच एक महीन रेशम की डोर से संबंध हो गया। उसके लंड से मेरे मुँह तक उसके प्री-कम की एक डोर चिपकी हुई थी। उसने मेरे सिर को अपने हाथों से पकड़ कर कुछ ऊँचा किया। दोनों हाथों से वो मेरे सिर को पकड़ कर अपने लंड को मेरे होंठों पर फिराने लगा। मैंने अपने होंठ सख्ती से बंद कर रखे थे। जितना वो देखने में भद्दा था उसका लंड भी उतना ही गंदा था। 

उसका लंड पतला और लंबा था। उसके लंड का शेप भी कुछ टेढ़ा था। उसमें से पेशाब की बदबू आ रही थी। साफ़ सफ़ाई का ध्यान नहीं रखता था। उसके लंड के चारों ओर फ़ैला घना जंगल भी गंदा दिख रहा था। लेकिन मैं आज इनके हाथों बेबस थी। मुझे तो उनकी पसंद के अनुसार हरकतें करनी थी। मेरी पसंद नापसंद की किसी को परवाह नहीं थी। अगर मुझसे पूछा जाता तो ऐसे गंदों से अपने जिस्म को नुचवाने से अच्छा मैं किसी और के नीचे लेटना पसंद करती। 
 
मैंने ना चाहते हुए भी अपने होंठों को खोला तो उसका लंड… जितना सा भी सुराख मिला उसमें रस्तोगी ने उसे ठेलना शुरू किया। मैंने अपने मुँह को पूरा खोल दिया तो उसका लंड मेरे मुँह के अंदर तक चला गया। मुझे एक जोर की उबकाई आयी जिसे मैंने जैसे तैसे जब्त किया। रस्तोगी मेरे सिर को पकड़ कर अपने लंड को अंदर ठेलने लगा लेकिन उसका लंड आधा भी मेरे मुँह में नहीं घुस पाया और उसका लंड मेरे गले में जा कर फ़ंस गया। उसने और अंदर ठेलने की कोशिश की तो उसका लंड गले के छेद में फ़ंस गया। मेरा दम घुटने लगा तो मैं छटपटाने लगी। मेरे छटपटाने से स्वामी के काम में रुकावट आ रही थी इसलिये वो मेरी चूत से अपना मुँह हटा कर रस्तोगी से लड़ने लगा।
 
“अबे इसे मार डालेगा क्या। तुझे क्या अभी तक किसी सी अपना लंड चुसवाना भी नहीं आया?”
 
रस्तोगी अपने लंड को अब कुछ पीछे खींच कर मेरे मुँह में आगे पीछे धक्के लगाने लगा। उसने मेरे सिर को सख्ती से अपने दोनों हाथों के बीच थाम रखा था। जावेद मेरे पास खड़ा मुझे दूसरों से आगे पीछे से इस्तमाल किये जाते देख रहा था। उसका लंड बुरी तरह तना हुआ था। यहाँ तक कि स्वामी भी मेरी चूत को चूसना छोड़ कर मेरे और रस्तोगी के बीच लंड-चुसाई देख रहा था।
 
“योर वाईफ इज़ एक्सीलेंट! शी इज़ अ रियल सकर”, स्वामी ने जावेद को कहा।
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“ऊऊऽऽऽहहऽऽऽ अन्ना! तुम ठीक ही कहता है… ये तो अपनी रेशमा को भी फ़ेल कर देगी लंड चूसने में।” जावेद उनकी बातें सुनता हुआ हैरानी से मुझे देख रहा था। मैंने कभी इस तरह से अपने हसबैंड के लंड को भी नहीं चूसा था। ये तो उन दोनों ने मुझे इतनी स्ट्रॉंग शराब पिला कर मेरे नशे और जिस्म की गर्मी को इस कदर बढ़ा दिया था कि मैं अपने आप को किसी चीप रंडी जैसी हरकत करने से नहीं रोक पा रही थी। 

स्वामी ने कुछ ही देर में रस्तोगी के पीछे आकर उसको मेरे सामने से खींच कर हटाया। 
 
“रस्तोगी तुम इसको फ़क करो। इसकी कंट को रगड़-रगड़ कर चौड़ा कर दो। मैं तब तक इसके मुँह को अपने इस मिसाईल से चोदता हूँ।” ये कहकर स्वामी आ कर रस्तोगी की जगह खड़ा हो गया और उसकी तरह ही मेरे सिर को उठा कर उसने अपनी कमर को आगे किया जिससे मैं उसके लंड को अपने मुँह में ले सकूँ। उसका लंड एक दम कोयले सा काला था लेकिन वो इतना मोटा था कि पूरा मुँह खोलने के बाद भी उसके लंड के सामने का सुपाड़ा मुँह के अंदर नहीं जा पा रहा था। उसने अपने लंड को आगे ठेला तो मुझे लगा कि मेरे होंठों के किनारे अब चीर जायेंगे। मैंने सिर हिला कर उसको अपनी बेबसी जतायी। लेकिन वो मानने को तैयार नहीं था। उसने मेरे सिर को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर एक जोर का धक्का मेरे मुँह में दिया और उसके लंड के आगे का टोपा मेरे मुँह में घुस गया। मैं उस लंड के आगे वाले मोटे से गेंद को अपने मुँह में दाखिल होता देख कर घबरा गयी। मुझे लगा कि अब मैं और नहीं बच सकती। पहाड़ की तरह दिखने वाला काला भुजंग मेरे ऊपर और नीचे के रास्तों को फड़ कर रख देगा। मैं बड़ी मुश्किल से उसके लंड पर अपने मुँह को चला पा रही थी। मैं तो आगे पीछे तो क्या कर रही थी, स्वामी ही खुद मेरे सिर को अपने हाथों से पकड़ कर अपने लंड के आगे पीछे कर रहा था। मेरे मुँह में स्वामी के लंड को दाखिल होता देख अब रस्तोगी मेरे पैरों के बीच आ गया था। उसने मेरी टाँगों को पकड़ कर अपने कंधे पर रख लिया और अपने लंड को मेरी चूत पर लगाया। मैं उसके लंड की टिप को अपनी चूत की दोनों फाँकों के बीच महसूस कर रही थी। मैंने एक बार नजरें तिरछी करके जावेद को देखा। उसकी आँखें मेरी चूत पर लगे लंड को साँस रोक कर देख रही थी। मैंने अपनी आँखें बंद कर ली। मैं हालात से तो समझौता कर ही चुकी थी और शराब के नशे में मेरी चूत उत्तेजना में झुलसी जा रही थी। अब मैंने भी इस चुदाई को पूरी तरह इंजॉय करने का मन बना लिया।
 
रस्तोगी काफी देर से इसी तरह अपने लंड को मेरी चूत से सटाये खड़ा था और मेरी टाँगों और पैरों के साथ-साथ मेरे सैंडलों को अपनी जीभ से चाट रहा था। अब हालात बेकाबू होते जा रहे थे। अब मुझसे और देरी बर्दाश्त नहीं हो रही थी। मैंने अपनी कमर को थोड़ा ऊपर किया जिससे उसका लंड बिना किसी प्रॉब्लम के अंदर घुस जाये। लेकिन उसने मेरी कमर को आगे आते देख अपने लंड को उसी स्पीड से पीछे कर लिया। उसके लंड को अपनी चूत के अंदर सरकता ना पाकर मैंने अपने मुँह से “गूँऽऽऽ गूँऽऽऽ” करके उसे और देर नहीं करने का इशारा किया। कहना तो बहुत कुछ चाहती थी लेकिन उस मोटे लंड के गले तक ठोकर मारते हुए इतनी सी आवाज भी कैसे निकल गयी पता नहीं चला।
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मैंने अपनी टाँगें उसके कंधे से उतार कर उसकी कमर के इर्द-गिर्द घेरा डाल दिया और उसकी कमर को अपनी टाँगों के जोर से अपनी चूत में खींचा लेकिन वो मुझसे भी ज्यादा ताकतवर था। उसने इतने पर भी अपने लंड को अंदर नहीं जाने दिया। आखिर हार कर मैंने अपने एक हाथ से उसके लंड को पकड़ा और दूसरे हाथ से अपनी चूत के द्वार को चौड़ा करके अपनी कमर को उसके लंड पर ऊँचा कर दिया। 

“देख जावेद! तेरी बीवी कैसे किसी रंडी की तरह मेरा लंड लेने के लिये छटपटा रही है।” रस्तोगी मेरी हालत पर हंसने लगा। उसका लंड अब मेरी चूत के अंदर तक घुस गया था। मैंने उसके कमर को सख्ती से अपनी टाँगों से अपनी चूत पर जकड़ रखा था। उसके लंड को मैंने अपनी चूत के मसल्स से एक दम कस कर पकड़ लिया और अपनी कमर को आगे पीछे करने लगी। अब रस्तोगी मुझे नहीं बल्कि मैं रस्तोगी को चोद रही थी। रस्तोगी ने भी कुछ देर तक मेरी हालत का मज़ा लेने के बाद अपने लंड से धक्के देना शुरू कर दिया। 
 
वो कुछ ही देर में पूरे जोश में आ गया और मेरी चूत में दनादन धक्के मारने लगा। हर धक्के के साथ लगता था कि मैं टेबल से आगे गिर पड़ुँगी। इसलिये मैंने अपने हाथों से टेबल को पकड़ लिया। रस्तोगी ने मेरे दोनों मम्मों को अपनी मुठ्ठी में भर लिया और उनसे जैसे रस निकालने की कोशिश करने लगा। मेरे मम्मों पर वो कुछ ज्यादा ही मेहरबान था। जब से आया था, उसने उन्हें मसल-मसल कर लाल कर दिया था। दस मिनट तक इसी तरह ठोकने के बाद उसके लंड से वीर्य की तेज़ धार मेरी चूत में बह निकली। उसके वीर्य का साथ देने के लिये मेरे जिस्म से भी धारा फूट निकली। उसने मेरे एक मम्मे को अपने दाँतों के बीच बुरी तरह जकड़ लिया। जब सारा वीर्य निकल गया तब जाकर उसने मेरे मम्मे को छोड़ा। मेरे मम्मे पर उसके दाँतों से हल्के से कट लग गये थे जिनसे खून की दो बूँदें चमकने लगी थी। स्वामी अभी भी मेरे मुँह को अपने खंबे से चोदे जा रहा था। मेरा मुँह उसके हमले से दुखने लगा था। लेकिन रस्तोगी को मेरी चूत से हटते देख कर उसकी आँखें चमक गयी और उसने मेरे मुँह से अपने लंड को निकाल लिया। मुझे ऐसा लगा मानो मेरे मुँह का कोई भी हिस्सा काम नहीं कर रहा है। जीभ बुरी तरह दुख रही थी। मैं उसे हिला भी नहीं पा रही थी और मेरा जबड़ा खुला का खुला रह गया। उसने मेरी चूत की तरफ़ आकर मेरी चूत पर अपना लंड सटाया।
 
जावेद वापस मेरे मुँह के पास आ गया। मैंने उसके लंड को वापस अपनी मुठ्ठी में लेकर सहलाना चालू किया। मैं उसके लंड पर से अपना ध्यान हटाना चाहती थी। मैंने जावेद की ओर देखा तो जावेद ने मुस्कुराते हुए अपना लंड मेरे होंठों से सटा दिया। मैंने भी मुस्कुरा कर अपना मुँह खोल कर उसके लंड को अंदर आने का रास्ता दिया। स्वामी के लंड को झेलने के बाद तो जावेद का लंड किसी बच्चे का हथियार लग रहा था।
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स्वामी ने मेरी टाँगों को दोनों हाथों से जितना हो सकता था उतना फैला दिया। वो अपने लंड को मेरी चूत पर फिराने लगा। मैंने उसके लंड को हाथों में भर कर अपनी चूत पर रखा। 

“धीरे-धीरे.. स्वामी! नहीं तो मैं मार जाऊँगी!” मैंने स्वामी से रिक्वेस्ट किया। स्वामी एक भद्दी हँसी हँसा। हँसते हुए उसका पूरा जिस्म हिल रहा था। उसका लंड वापस मेरी चूत पर से हट गया। 
 
“ओये जावेद! तुम्हारी बीवी को तुम जब चाहे कर सकता है..... अभी तो मेरी हेल्प करो। इधर आओ मेरे रॉड को हाथों से पकड़ कर अपनी वाईफ के कंट में डालो। मैं इसकी टाँगें पकड़ा हूँ। इसलिये मेरा लंड बार-बार तुम्हारी वाईफ की कंट से फ़िसल जाता है। पकड़ो इसे…” जावेद ने आगे की ओर हाथ बढ़ा कर स्वामी के लंड को अपनी मुठ्ठी में पकड़ा। कुछ देर से कोशिश करने की वजह से स्वामी का लंड थोड़ा ढीला पड़ गया था।
 
“जावेद! पहले इसे अपने हाथों से सहला कर वापस खड़ा करो। उसके बाद अपनी बीवी की पुसी में डालना। आज तेरी वाईफ की पुसी को फाड़ कर रख दुँगा!” जावेद उसके लंड को हाथों में लेकर सहलाने लगा। मैंने भी हाथ बढ़ा कर उसके लंड के नीचे लटक रही गेंदों को सहलाना शुरू किया। कैसा अजीब माहौल था; अपनी बीवी की चूत को ठुकवाने के लिये मेरा हसबैंड एक अजनबी के लंड को सहला कर खड़ा कर रहा था। कुछ ही देर में हम दोनों की कोशिशें रंग लायीं और स्वामी का लंड वापस खड़ा होना शुरू हो गया। उसका आकार बढ़ता ही जा रहा था। उसे देख-देख कर मेरी घिग्घी बंधने लगी।
 
“धीरे-धीरे स्वामी! मैं इतना बड़ा नहीं ले पाऊँगी। मेरी चूत अभी बहुत टाईट है।” मैंने कसमसाते हुए कहा, “तुम… तुम बोलते क्यों नहीं? ” मैंने नशे में लड़खड़ाती आवाज़ में जावेद से कहा।
 
जावेद ने स्वामी की तरफ़ देख कर उससे धीरे से रिक्वेस्ट की, “मिस्टर स्वामी! प्लीज़ थोड़ा धीरे से। शी हैड नेवर बिफोर एक्सपीरियंस्ड सच ए मासिव कॉक। यू मे हार्म हर… योर कॉक इज़ श्योर टू टियर हर अपार्ट।”
 
“हाहाह… डोंट वरी जावेद! वेट फोर फाईव मिनट्स। वंस आई स्टार्ट हंपिंग, शी विल स्टार्ट आस्किंग फोर मोर लाईक ए रियल स्लट”, स्वामी ने जावेद को दिलासा दिया। उसने मेरी चूत के अंदर अपनी दो अँगुली डाल कर उसे घुमाया और फिर मेरे और रस्तोगी के वीर्य से लिसड़ी हुई अँगुलियों को बाहर निकाल कर मेरी आँखों के सामने एक बार हिलाया और फिर उसे अपने लंड पर लगाने लगा। ये काम उसने कईं बार दोहराया। उसका लंड हम दोनों के वीर्य से गीला हो कर चमक रहा था। उसने वापस अपने लंड को मेरी चूत पर सटाया और दूसरे हाथ से मेरी चूत की फाँकों को अलग करते हुए अपने लंड को एक हल्का धक्का दिया। मैंने अपनी टाँगों को छत की तरफ़ उठा रखा था। मेरी चूत उसके लंड के सामने खुल कर फ़ैली हुई थी। हल्के से धक्के से उसका लंड अंदर ना जाकर गीली चूत पर नीचे की ओर फ़िसल गया। उसने दोबारा अपने लंड को मेरी चूत पर सटाया। जावेद उसके पास ही खड़ा था। उसने अपनी अँगुलियों से मेरी चूत की फाँकों को अलग किया और चूत पर स्वामी के लंड को फ़ंसाया। स्वामी ने अब एक जोर का धक्का दिया और उसके लंड के सामने का टोपा मेरी चूत में धंस गया। मुझे ऐसा लगा मानो मेरी दोनों टाँगों के बीच किसी ने खंजर से चीर दिया हो। मैं दर्द से छटपटा उठी, “आआआऽऽऽऽहहऽऽऽऽ” और मेरे नाखुन जावेद के लंड पर गड़ गये। मेरे साथ वो भी दर्द से बिलबिला उठा। लेकिन स्वामी आज मुझ पर रहम करने के मूड में बिल्कुल नहीं था। उसने वापस अपने लंड को पूरा बाहर खींचा तो एक फक सी आवाज आयी जैसे किसी बोतल का कॉर्क खोला गया हो।
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