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नमस्ते प्रिय पाठकों,
आज इस नयी कहानी का शुभारंभ कर रहा हूँ. आशा है आप सब मेरी इस कहानी को अपना प्यार व समर्थन देंगे.
धन्यवाद.
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१)
आरंभ
अचानक से उसकी आँखें खुलीं.
नज़रें सीधे नीचे पैरों की ओर गई.
चौंक पड़ा,
“न... नेहा?!”
नेहा उसके पैरों के तलवों को चूम रही थी!
देव ने सिरहाने के पास रखे एक छोटे से टेबल पर रखे टेबल क्लॉक की ओर नज़र घूमाया.
रात के तीन बज रहे थे!
“न... नेहा... तीन बज रहे हैं.. अभी ... य.. ये क्या कर रही हो..? आओ, सो जाओ.”
कहा तो देव ने बहुत प्यार से, बिल्कुल स्पष्ट..
लेकिन नेहा तो जैसे कुछ सुनी ही नहीं.
वो पहले की ही तरह देव के पैरों को हाथों में उठा कर लगातार चूमती रही.
फ़िर अचानक से अपना जीभ जरा सा निकाल कर देव के बाएँ पैर के अँगूठे पर रख दी और धीरे धीरे बड़े प्यार से अँगूठे के ऊपरी सिरे पर जीभ फिराते हुए उसे अपने मुँह में भर ली.
भीगे जीभ के साथ मुँह के अंदर का गर्म अहसास पाते ही एकदम से एक सनसनाहट सी तरंग उस पैर से होते हुए तैर गई देव के पूरे बदन में.
कुछ पलों के लिए देव की आँखें स्वतः ही बंद हो गई...
एक अलग किस्म का आनंद मिलने लगा उसे.
गर्म अहसास पाते हुए भीगे जीभ का अँगूठे के चारों ओर घूमने से जो एक अलग सुखद अहसास होने लगा देव को; उससे वो कुछ ही क्षण पहले किए अपने प्रश्न और वर्तमान स्थिति को भूल गया.
खुद को दोबारा उसी हाल में निढाल छोड़ने ही वाला था कि तभी उसे कुछ याद आया.
नेहा अमूमन ऐसा करती नहीं है.. ये उसका तरीका नहीं है..
निःसंदेह वो दोनों टाँगों के बीच आती ज़रूर है, लेकिन पूरे टाँगों को कभी इस तरह प्यार नहीं करती.
बहुत हुआ तो दोनों गोरे जाँघों को ५ – १० मिनट चूम ली, पुचकार दी... पर इससे ज्यादा कभी नहीं.
असल में उसका ध्यान तो हमेशा देव के दोनों जाँघों के बीच ............ |
इतनी देर में नेहा उसके अँगूठे को छोड़ कर पैर को चूमते हुए ऊपर उठने लगी थी.
जल्द ही घुटने को भी पार कर गई.
ऊपर की ओर उठने के दौरान देव के उस पैर का थोड़ा सा हिस्सा नेहा के दाएँ स्तन से छू गया.
हल्के छूअन से ही उसका स्तन तनिक दब गया और इसी के साथ ही देव को किसी रेशमी कपड़े को छूने का अहसास हुआ!
जाँघों के अंदरूनी हिस्सों तक सिमट आए बरमूडा को कस के पकड़ कर एक झटके में घुटनों से नीचे कर के देव पर लगभग कूद ही गई नेहा. नेहा के द्वारा किए गए अब तक के सेक्सी क्रियाओं ने देव के लंड को सख्त कर चुका था.
एक क्षण भी गँवाए बगैर नेहा का मुलायम हाथ देव के जाँघों के बीच चला गया और हल्की गुदगुदी करते हुए उसके आंड़ पर घूमने लगा.
बढ़ती उत्तेजना और आंड़ पर होती गुदगुदी से देव कसमसा उठा और हाथ बढ़ा कर नेहा को छूना चाहा; पर नेहा उसका हाथ झटक दी.
देव समझ गया...
नेहा खुद चार्ज लेने के मूड में है!
वैसे देखा जाए तो... बेवक्त... रात के इस समय देव का न तो इस सब का मूड है और न ही अपनी नींद ख़राब करना चाहता है लेकिन नेहा के इस रूप... इस सेक्सी अवतार ने देव को उसकी खातिर मान जाने को विवश कर दिया. और तो और, आज नेहा के प्रत्येक छुअन ने तो जैसे प्रतिपल देव को अलग ही दुनिया में पहुँचाने का निर्णय किया हुआ है... शरीर पर मंद मंद रेंगती नेहा की नर्म अंगुलियाँ और बीच बीच में उसके स्तनों के छुअन उत्तेजना और प्रेम का जो संचार किया है देव के मन में; ऐसा आज से पहले कभी हुआ नहीं.
देव की आँखें दोबारा बंद होने लगी.... कि तभी..
अचानक कुछ ऐसा हुआ जिसने देव को उसकी सोच की दुनिया से एक झटके में बाहर कर दिया...
नेहा की नर्म अँगुलियों ने अब सख्त हो चुके देव के लंड को बड़े प्यार से अपनी कोमल गिरफ़्त में ले लिया और धीरे धीरे.... बड़े प्यार से... बेहद अपनेपन का अहसास लिए लंड के मशरूम मुंड से ले कर नीचे जड़ तक घूमने लगे.
कुछ देर के सहलाने से लंड के मशरूम मुंड का मुहाना चिपचिप सा हो गया...
नेहा ने अँगूठे से मुहाने पर थोड़ा से छेड़खानी करते हुए उस चिपचिपे पानी को पूरे मशरूम मुंड पर लगा दी और धीरे धीरे देव पर... उसके सीने पर झुकने लगी.
देव की धडकनें बढ़ने लगीं.. तेज़... बहुत तेज़... क्यों..?... पता नहीं... इससे पहले इस तरह का फोरप्ले तो कई बार हुआ था... पर ऐसी हालत नहीं हुई थी... वरन.. इसके उलट ही हुआ था... चरम उत्तेजना में भर जाया करता था वो. तो फिर आज... आज क्यों उसे इस तरह की फीलिंग आ रही है..? ऐसी ... मनो आज ये उसका फर्स्ट टाइम है... और मारे घबराहट और उत्तेजना के उसकी साँसें ही रुक जाएगी.
सामने आते आते नेहा एक सेकंड रुकी और फिर देव के सीने पर एकदम से झुकी और उसके सीने को चूमने लगी.
सीने पर नेहा के होंठों का स्पर्श पहले भी कई बार पा चुका है देव पर जो बात आज के चुम्बन और होंठों के स्पर्श में है; बिल्कुल वो बात देव को इससे पहले नहीं मिली थी.
देव के कमर के ऊपर बैठ कर नेहा ने एक झटके में अपना टॉप उतार दी और सेकंड भर रुक कर देव के दोनों हाथों को पकड़ अपने सीने पर वक्षों वाले स्थान पर रख दी.
३४ के सख्त गोलाईयाँ और एक अलग मुलायम लिए आज इन स्तनों में भी कुछ भिन्न, कुछ विशेष लगा उसे.
इस बात पर अधिक न सोचते हुए देव उन मुलायम स्तनों पर अपने हाथों का हल्का दबाव बनाते हुए उन परफेक्ट गोलाईयों को महसूस करने लगा.
नेहा सामने की ओर थोड़ा और झुकी; अपना दायाँ हाथ देव के सीने पर रखते हुए खुद को ओर झुकाती हुई देव पर झुकती चली गई.. इतना की अब उसके सिर के लंबे बाल देव के चेहरे से टकराती हुई गुदगुदी करने लगी. दोनों के गर्म साँसें एक दूसरे के चेहरे से टकराकर दोनों को एक दूसरे के निकटतम होने का अहसास कराने लगे.
नेहा ने बड़े प्यार से देव के होंठों पर अपने होंठ रखकर एक छोटा सा किस किया और जल्दी से सीधी हो कर बैठ गई.
नेहा के इस हरकत को देख कर देव धीरे से हँस पड़ा और अपने दोनों हाथों को सिर के पीछे दबा कर नेहा की अगली हरकत का अंदाज़ा लगाने लगा.
नेहा का दायाँ हाथ अब भी देव के सीने पर था. फिर से थोड़ा झुकी वो और अब अपने बाएँ हाथ को पीछे कर के अपने पीठ पर ले गई.
रात के इस समय कमरे में पसरे सन्नाटे में एक हल्की ‘क्लिक’ की आवाज़ हुई...
अगले ही क्षण नेहा की ब्रा ढीली हो गई.....
आज नेहा के इस बदले अंदाज़ से देव को जितनी हैरानी हो रही है उससे भी कहीं अधिक उसे ख़ुशी और उत्तेजना हो रही है... वो भी बिल्कुल अलग स्तर का.
तभी देव को कुछ अलग सा अनुभव हुआ और अनायास ही अपने दाएँ ओर सिर घूमा कर देखा......
देखते ही वो चौंक उठा.. बुरी तरह से चौंक पड़ा.
अपने बगल में जो देख रहा था अब वो; उसे देखकर उसे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ..
नेहा तो बगल में लेटी हुई है.!!!
तो फिर.....ये कौन है जो उसके कमर पर बैठी हुई है??!!
फौरन ही सिर घूमा कर अपने ऊपर बैठी लड़की को देखा उसने.
और अचानक से... न जाने कैसे... उस अँधेरे में पता नहीं दूर कहाँ से एक हल्की फीकी रौशनी चमकी और इसी के साथ देव को उसका चेहरा दिख गया.!
डर और आतंक के जैसे हज़ारों तरंगें दौड़ गईं देव के पूरे शरीर में... आँखें भी अत्यधिक डर और अविश्वास से चौड़ी हो गई...
.
.
और अगले ही क्षण,
तेज़ आवाज़ में बस एक ही शब्द गूँजा उस कमरे में...... “त... त.... तुम!!!”
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२)
अगले दिन,
सुबह से ही तेज़ बुखार से देव तप रहा था..
नेहा देव के बगल में ही बैठी उस के सिर पर पट्टी लगा रही थी... बहुत चिंतित थी वो.
एकदम इस तरह से कोई अपना बीमार पड़ जाए तो कोई भी परेशान हो ही जाता है.
देव के बगल में एक कुर्सी पर बैठा डॉक्टर निमेश तनिक सामने की ओर झुक कर उसकी जाँच कर रहा था. देव – नेहा और निमेश एक दूसरे से भली भांति परिचित हैं. निमेश के पापा भी एक डॉक्टर थे जो देव की फैमिली के ‘फैमिली डॉक्टर’ हुआ करते थे. आजकल रिटायरमेंट ले कर अपने घर के ही बगीचे में एक छोटा सा कमरा बना कर कम से कम फ़ीस लेकर गरीबों और अन्य लोगों का उपचार कर रहे हैं.
निमेश अपने पापा के ही पदचिन्हों पर चलते हुए डॉक्टरी का पढ़ाई किया. कई जगह प्रैक्टिस करने के बाद अपने शहर में लौट आया और अब यहीं रह कर अपनी डॉक्टरी की सेवाएँ दे रहा है. संयोग से देव भी अपने घर अर्थात् इसी शहर में ही अपने दम पर एक कॉलेज खोल चुका है और ये उसी की दूरदृष्टि, कार्य कुशलता, तीक्ष्ण बुद्धि, लक्ष्य के प्रति समर्पण एवं अथक परिश्रम का ही परिणाम है कि उसका कॉलेज आज शहर के सभी कॉलेजों का अग्रगण्य बन चुका है.
एक दिन मार्किट में निमेश से भेंट हुई, साथ चाय – सिगरेट पीना हुआ और धीरे धीरे बात इतनी बढ़ गई की शीघ्र ही निमेश भी अपने पिताजी की ही तरह देव का पर्सनल व फैमिली डॉक्टर बन गया.
कुछ देर चेकिंग के बाद निमेश बोला,
“और सब तो ठीक है, लगता है ठीक से नींद न लेने के कारण या फ़िर अत्यधिक टेंशन लेने के कारण ही शायद इसकी तबियत गड़बड़ हो गई है. काम काज से बीच बीच में छुट्टी लेने बोलिए इसे... नहीं तो आगे तरह तरह की बिमारियों से दो चार होना पड़ेगा.”
“जी, मैं ध्यान रखूँगी इस बात का. और इसे भी समझाऊँगी.” नेहा के इस कथन में भी चिंता स्पष्ट झलकी.
निमेश ने कुछ दवाईयाँ प्रेस्क्राइब किया और कुछ सावधानी बरतने को कह कर एक सप्ताह बाद फिर आ कर चेक करने की बात कह कर चला गया.
दरवाज़ा लगा कर नेहा देव के पास आई.. तापमान चेक की और फिर कुछ खाने का इंतजाम करने रसोई में चली गई.
इधर देव आँखें बंद किए लेटा रहा...
जल्द ही आँखें खुलीं....
तेज़ सर दर्द से जैसे दिमाग मानो फटा जा रहा हो..
पास ही रखे एक मरहम ले कर सिर में लगाने से उसे आराम मिला. दोबारा चादर खिंच कर आँखें बंद कर लेट गया. रसोई से आती खाने की भीनी भीनी सी सुगंध देव के पेट में भूख जगाने लगी. पर तापमान कुछ यूँ सिर चढ़ा है कि भूख जागते ही खुद ही मर जाती. बाम लगाने से मिली आराम के कारण देव भूख के बारे में अधिक न सोच कर कुछ देर सोने का निर्णय लिया मन ही मन इस बात के लिए तैयार भी हुआ.
कुछ ही देर बाद देव को एक मुलायम हथेली का अपने सिर पर मंद गति से रगड़ने का अहसास हुआ. देव मन ही मन मुस्कराया,
‘नेहा को मेरी कितनी चिंता है... अभी तो डॉक्टर बुलाई थी.. और अब ये... हम्म... शायद बाम लगा रही है.’
ऐसा सोचते सोचते अनायास ही बोल पड़ा,
“म.. मैं ठीक हो जाऊँगा.. नेहा.... त.. तुम अधिक चिंता न करो... ब.. बुखार ही तो है...”
पर कोई प्रत्युत्तर नहीं मिला.
देव ने सोचा की शायद नेहा अभी कुछ कहना नहीं चाहती... इसलिए चुप है. देव ने भी कुछ और न कहने का विचार कर चुपचाप लेटा रहा. कुछ और मिनट गुज़रे होंगे कि देव का ध्यान उस हाथ की नर्म अँगुलियों पर गया.
कुछ अधिक ही मुलायम हैं ये.....
“नेहा... क्या बात है... तुम.. आज कल कुछ लगाती हो क्या अपनी हथेलियों में.. कुछ ज्यादा ही मुलायम होती जा रही हैं..”
नेहा अब भी कुछ नहीं बोली...
देव आँखें बंद किए ही बोला,
“नेहा... प्लीज़.. इतना परेशान मत हो... बुखार ही है.. मैं ठीक हो जाऊँगा.”
कपाल और बंद आँखों पर स्नेहपूर्वक चलती नेहा की अँगुलियों को अपने बाएँ हाथ से पकड़ कर हल्के दबाव से मसलते हुए आँखें अभी भी बंद रखे ही देव खुद बोला,
“क्या हुआ... कुछ बोलोगी नहीं? गुस्सा हो? अगर वाकई गुस्सा हो तब तो मुझे अपनी आँखें खोल कर तुम्हारा ये गुस्से वाला फूला हुआ मुँह देखना चाहिए... हाहाहा.”
कहते हुए देव नेहा की हथेली को मुँह के और पास लाते हुए बड़े प्यार से चूमा. ऐसा करते ही देव को एक के बाद एक लगातार दो चीज़ें बड़ी अजीब लगीं.
वो आगे कुछ सोचता या बोलता की तभी कमरे के दरवाज़े के पास ज़ोर से आवाज़ हुई, देव चौंक कर लगभग उछलते हुए बिस्तर पर उठ बैठा.. दरवाज़े की ओर देखा.. नेहा दोनों हाथों से एक बर्तन आगे की ओर कर के पकड़ी हुई है और अपनी बायीं ओर नीचे देख रही है.
“क... क्या हुआ नेहा?”
अपनी तेज़ हो गई साँसों की गति पर थोड़ा नियंत्रण पाते हुए देव पूछा.
“ओह.. तुम उठ गए?! सो सॉरी.. देखो न तुम्हारे लिए ये काढ़ा बनाई.. ले के आ रही थी कि थोड़ी सी चूक हो जाने पर इसपर रखा प्लेट गिर गया.”
“ओह.. अच्छा.. कोई बात नहीं.. प्लेट टूट गया क्या?”
“अरे नहीं.. स्टील का है.. टूटेगा क्या?!”
कह कर नेहा हँस पड़ी... देव भी मुस्कराया. अब तक वह दुबारा बिस्तर पर पसर गया था. नेहा आकर बीएड के बगल में रखे स्टूल पर काढ़ा वाला बर्तन रखते हुए बोली,
“ऍम सो सॉरी... मेरे कारण तुम्हारा नींद खराब हो गया.”
“अरे नहीं.. मैं तो सिर्फ़ आँखें बंद किए ही लेटा था.. तुम टेंशन मत लो.” देव मुस्कराते हुए बोला.
“ठीक है.. मैं टेंशन नहीं लूँगी... लेकिन तुम्हें टेंशन होने वाली है.” कहते हुए नेहा एक शरारत सी मुस्कान दी.
“मतलब?”
“मतलब कि... ये लो... जल्दी से ये पी लो!”
ये कह कर नेहा ने काढ़ा वाला बर्तन एकदम से देव के सामने रख दी.
देव हड़बड़ा गया.
बर्तन को देख नेहा की ओर देखा.. नेहा के चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान थी... देव समझ गया. निराश होते हुए बोला,
“ओह.. ये वाला टेंशन...!”
“तो.. तुम्हें क्या लगा... किस टेंशन की बात कर रही हूँ?”
‘सेक्स वाली टेंशन.’ देव मन में बोला.
“नहीं.. कुछ नहीं.. मैं सोचा पता नहीं तुम किस टेंशन की बात कर रही हो.”
“ओके.. चलो अब जल्दी से पी लो इसे... गर्मागर्म... बहुत लाभ होगा.”
“ये पीना ज़रूरी है?”
“बिल्कुल ज़रूरी है.”
नेहा तुनकते हुए बोली.
देव ने बात आगे न बढ़ाते हुए काढ़े की एक चुस्की लिया...
“ओह..यक...नेहा.. यार... कितना कड़वा है ये!”
“है तो है.. पीना तो तुम्हें पड़ेगा ही.”
नेहा ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठ कर बालों पर कंघी चलाते हुए बोली.
बुखार से तपता देव वैसे भी खुद को थोड़ा कमज़ोर महसूस कर रहा था... ऐसी हालत में नेहा से बहस बिल्कुल नहीं कर सकता है वो ये उसे अच्छे से पता है. मजबूरी वाला मुँह बनाते हुए चुपचाप काढ़ा पीने लगा. पीते पीते अचानक से उसे कुछ याद आया... नेहा की ओर देखते हुए पूछा,
“नेहा, तुमने ये कब बनाया?”
“क्यों?”
“अरे बोलो न..”
“अभी ही तो, देखो.. कितना गर्म है.”
“हम्म.. गर्म तो है...”
देव की पेशानी में बल पड़े; दो बातों को एक साथ नहीं मिला पा रहा था.. फिर पूछा,
“तुमने एक साथ दो काम कैसे कर ली?”
“मतलब? कौनसे दो काम?”
“तुम तो अभी यहाँ थी न.. मेरे पास...?”
“तुम्हारे पास?”
“हाँ.. मेरे पास.. यहाँ... मेरा सिर दबा रही थी... अम्म... बाम लगा रही थी... शायद...”
“शायद?”
देव की ये गोल गोल बातें अब नेहा को भी क्न्फ्यूजन में डालने लगीं... हतप्रभ सी वह देव को देखने लगी..
“अ.. ह.. हाँ.. दरअसल, मेरी आँखें बंद थीं न.. तेज़ दर्द था सिर में.. इसलिए आँखें बंद किए लेटा था... तुम्हें देखा नहीं...”
नेहा हँस पड़ी,
“अच्छा?!! मुझे देखा नहीं तुमने... और आँखें बंद किए तुम्हें लगा कि वो मैं हूँ?!.. मैं तुम्हारे पास थी?”
“अरे तो फ़िर और कौन होगा?.. घर में तो सिर्फ़ हमीं दोनों तो हैं.”
देव अपनी बात पे ज़ोर देते हुए बोला.
नेहा फ़िर हँसी.. बोली,
“बुखार के कारण तुम्हारा सिर दर्द करने लगा होगा.. तुम आँखें बंद कर लेटे और तुम्हें नींद आ गई होगी.. और कोई सपना देख लिया होगा तुमने.”
नेहा फ़िर से खिलखिला कर हँस दी,
“अच्छा!! सिर्फ़ हमीं दोनों हैं?”
‘हमीं’ शब्द पर उसने थोड़ा ख़ास ज़ोर दिया... देव का दिमाग घूम गया.. न जाने क्यों अब तक पिछली रात की घटना को भूल चुका वो अचानक से याद आ गया. पल भर को उसका दिमाग सन्न सा हो गया. उसे समझ में नहीं आया की उसकी अगली प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए. वो क्या कहे.. क्या पूछे.. क्या सोचे...
मन ही मन प्रश्न किया उसने,
‘क्या नेहा सीरियस है...? क्या वाकई हम केवल दो नहीं हैं?! कोई आया है क्या घर में? अगर हाँ तो फ़िर मैंने अब तक उसे देखा क्यों नहीं..?? कम से कम नेहा को तो बताना चाहिए था...’
देव को काढ़ा न पी कर किसी सोच में डूबा देख कर नेहा को थोड़ा आश्चर्य हुआ... अपने जगह से उठ कर देव के पास आई और उसके बगल में बैठ कर उसके कान के पीछे बालों में अंगुलियाँ चलाती हुए पूछी,
“अरे क्या हुआ... तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है.. इतना मत सोचो... और जल्दी से ये का...”
‘ॐ........’
उसके आगे के शब्दों को डोर बेल के आवाज़ से ब्रेक लग गए.
“ओफ्फो... अब कौन आ गया..”
नेहा का रोमांटिक अंदाज़ अब एक चिडचिडेपन में बदल गया..
बेमन और थोड़ा गुस्सा लिए उठ कर दरवाज़ा खोलने चली गई; इधर देव अपने सोच से बाहर आते हुए काढ़ा पीने लगा.
२ मिनट बाद ही बाहर से नेहा की आवाज़ आई,
“देवsss...”
आवाज़ से स्पष्ट था की देव को तुरंत ही वहाँ जाना होगा. थोड़े बचे काढ़े को वहीँ छोड़ देव अपने को सम्भालता हुआ किसी तरह मेन डोर तक पहुँचा.. देखा, नेहा ने दरवाज़ा पूरा नहीं खोला है.. दरवाज़े को जरा सा खोल कर बाहर किसी से बात कर रही है; आहट पा कर सिर घूमा कर देव की ओर देखी.. आँखों में आश्चर्य और अविश्वास मिले जुले भाव थे.. किसी अनहोनी का संदेह लिए देव दरवाज़े के पास पहुँच कर उसे थोड़ा और खोल कर बाहर देखा.. वाचमैन खड़ा है... हाँफ रहा है..
किसी अनिष्ट के संभावना को विचार कर मन में अपने इष्ट का नाम लेते हुए पूछा,
“क्या हुआ?”
दरबान के बदले नेहा बोली,
“अम्म.. देव... ये कह रहा है कि दो रात पहले जिस आदमी से तुम्हारा झगड़ा हुआ था; वो आज सुबह अपनी गाड़ी के पास लहूलुहान और मृतप्राय अवस्था में मिला है.. किसी ने शायद बहुत बुरी तरह से मारा है उसे....क..”
नेहा को बीच में टोकते हुए देव बोल पड़ा,
“मारना ही चाहिए.. ऐसे बदजुबान और बदमिज़ाज लोगों के साथ ऐसा ही सलूक होना चाहिए.. सभ्य, मॉडेस्ट समाज में रहने का कोई अधिकार नहीं ऐसे बेहुदे लोगों को...”
देव गुस्से में और न जाने कितना ही कुछ कह गया.. थोड़ा शांत होने पर पूछा,
“खैर, पता चला किसने उसे इतनी बुरी तरह पीटा है?”
“नहीं सर, लेकिन...”
“लेकिन क्या...??”
“व.. अम... किसी ने सिक्युरिटी को भी फ़ोन लगा दिया है और ऐसा संदेह जताया जा रहा है कि...”
“कि...??”
“क.. की उसे शायद आपने भी मारा हो सकता है..”
“मैंने?!!”
“नहीं.. सर... पक्का कुछ नहीं है... बस, दो – तीन लोगों की आपस में बातें हो रही थी...”
“कौन हैं वो - दो तीन लोग?” नेहा ने पूछा.
तनिक अफ़सोस सा चेहरा बनाते हुए दरबान बोला,
“सॉरी सर... वो दरअसल बी ब्लॉक के लोग थे.. मैं ठीक से जानता नहीं.”
एक तो बुखार, ऊपर से ये एक नयी परेशानी...देव झुँझला उठा.. बोला,
“हम्म.. अच्छा ठीक है.. जो होगा देख लूँगा... अ..”
देव की बात खत्म होने से पहले ही दरबान बोला,
“एक बात और है सर...”
“अब क्या?” देव के बजाए नेहा पूछी..
“जिस रात आपका उस आदमी के साथ झगड़ा हुआ था.. और बाद में जब सब अपने अपने घर चले गए थे... तब आप सबके जाते ही एक लड़की न जाने कहाँ से आई और पूरे मामले के बारे में पूछने लगी.. ख़ास कर आपके बारे में पूछ रही थी..”
नेहा तुनक कर पूछी,
“क्या पूछ रही थी?”
“यही कि सर कैसे हैं.. क्या कोई हाथापाई भी हुई है? सर को ज़्यादा चोट तो नहीं पहुँची...?? वगैरह वगैरह..”
“ओह..”
“जी सर... और...”
“और...??”
“कल रात भी आई थी.. आपके बारे में पूछने.”
“मेरे बारे में? फ़िर से??”
“जी सर... मैंने जब ठीक से कोई जवाब नहीं दिया तब वो लिफ्ट की ओर जाने लगी.. मैंने रोका तो कहने लगी की सर ने.. मतलब आपने बुलाया है.. कहने लगी की सर को मेरी हेल्प चाहिए... मुझे जाना होगा. मैं उसे लिफ्ट में जाने से रोकने ही वाला था की तभी गेट पर मिस्टर खोसला जी का गाड़ी आ कर हॉर्न बजाने लगा. सर, आप तो जानते ही हैं की सेकंड भर की भी अगर देर हो जाए तो खोसला साहब कितना गुस्सा करते हैं, कितना चिल्लाने लगते हैं.. इसलिए मजबूरन मुझे उस लड़की को वहीँ छोड़ कर गेट खोलने के लिए जाना पड़ा.. वापस आ कर देखा तो लड़की वहाँ नहीं थी!”
देव और नेहा, एक साथ कुछ कहने के लिए मुँह खोला पर कुछ कह नहीं पाए.. दोनों ही असमंजस में पड़ गए... और एक दूसरे को प्रश्नसूचक दृष्टि से देखने लगे.... |
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३)
“सर... आपकी कॉफ़ी.”
“हम्म.. रख दो.”
“जी सर.”
कप रख कर कन्नू वापस चला गया.
ये रोज़ का था. देव के कॉलेज के अपने ऑफिस कमरे में पहुँचने के १० मिनट बाद ही उसका पियून कन्नू उसे एक कप गर्मागर्म कॉफ़ी दे जाता है; जिसे देव बड़े आराम और इत्मीनान से ए.सी. की हवा लेते लेते पीता है.
आज भी हमेशा की ही तरह कन्नू देव को उसकी कॉफ़ी पहुँचा गया. देव की फेवरेट..
पर देव का ध्यान फ़िलहाल कॉफ़ी पर नहीं गया.
कॉफ़ी की तलब तक उसे नहीं लगी... सिवाय सिगरेट के. लेकिन वो भी अधजली ही ऐश ट्रे में रख छोड़ा है उसने. और इन सबका कारण है... सुबह घटी वो घटना...
........ जब वो कॉलेज के लिए निकला था..
हमेशा की तरह खुद ही कार ड्राइव करते हुए.
प्लाजा मोड़ के पास गाड़ी को ट्रैफिक के रेड सिग्नल के कारण रोकना पड़ा था उसे. एफ.एम में गाने सुनने लगा. गाना कौन सा बज रहा है इस बारे में देव कभी दिमाग नहीं लगाता था; बस गाने बजने चाहिए... और गाने अच्छे हों..
इसी बीच एफ.एम में ‘तुमको देखा तो ये ख्याल....’ बजने लगा... ग्रीन सिग्नल का इंतज़ार करते हुए बोर होते देव ने भी सुर से सुर मिलाना शुरू किया ही था कि तभी उसे थोड़ी दूरी पर; सड़क के दूसरी ओर एक कॉफ़ी कैफ़े के सामने टेबल कुर्सी पर बैठी काले कपड़ों में एक लड़की दिखाई दी.. पहले तो कुछ वैसा ध्यान नहीं दिया था देव ने... लेकिन जब गाने के दौरान ही दो बार उसकी नज़रें उस ओर गयी तो पाया की लड़की उसी की ओर देख रही है!
देव ने काला चश्मा पहन रखा था... पकड़े जाने का कोई चांस नहीं था.. इसलिए चेहरे को सीधा अपने सामने खड़ी गाड़ियों की ओर कर चश्मे के अंदर से आँखों को तिरछी कर के उस लड़की की ओर देखने लगा था...
लड़की का चेहरा भी इसी ओर था पर क्या वो भी देव को देख रही थी?
क्योंकि अजीब संयोग था कि लड़की ने भी काला चश्मा लगा रखा था. उसका कॉफ़ी वाला कप उसके सामने ही रखा था... जिसमें से हल्का भाप भी निकल रहा था.. दो तीन बार और देखने पर देव को वाकई लगा की लड़की उसकी ओर... उसे ही देख रही है.
देव ने जैसे ही ये निर्णय लिया की अब वो चश्मा निकाल कर उसकी ओर देखेगा; तभी ट्रैफिक की ग्रीन सिग्नल ऑन हो गई और ठीक उसी के साथ ही लड़की अपनी कुर्सी पर से उठी और टेबल पर पैसे रख कर, कंधे पर हैण्डबैग रख कैफ़े से निकली और एक ओर चली गई.. इतने समय में अधिकतर वो देव की ही ओर देख रही थी. देव को ये बात वाकई अजीब लगी क्योंकि ऐसा आम तौर पर होता नहीं है.
ग्रीन सिग्नल के ऑन होने के कारण अब देव कॉलेज के लिए बढ़ चुका था; पर ये बात अब खुद देव को भी नहीं पता की जाने अनजाने में वो लड़की उसके दिल और दिमाग में घर बना चुकी थी.
अपनी ऑफिस के कुर्सी पर बैठे बैठे उस लड़की के बारे में सोचते हुए काफ़ी देर बीत गया देव का. देव बेचारा ये भी नहीं समझ पा रहा कि वो उस अंजान लड़की के बारे में सोच ही क्यों रहा है? कोई सॉलिड कारण तो दिख नहीं रहा.
तभी उसके टेबल पर बाएँ साइड रखा लैंडलाइन बज उठा.
“यस?”
“गुड मोर्निंग सर.”
“हाँ गुड मोर्निंग प्रिया, बोलो..”
“सर.. ऑल आर वेटिंग फॉर यू इन द ऑडिटोरियम.”
“ओह यस यस.. ऍम कमिंग.”
बोल कर रिसीवर को क्रैडल पर रख खुद को ठीक करते हुए कुर्सी से उठा और कमरे से बाहर चला गया.
आज ‘टीचर्स डे’ है..
देव को स्टूडेंट्स द्वारा आयोजित एक छोटे कल्चरल फंक्शन को अटेंड जो करना है....
घंटे भर बाद ही देव वापस अपने ऑफिस वाले कमरे में आ गया.. फंक्शन अभी भी चालू था.. लेकिन देव अपने लिए ब्रेक ले लिया.. आने से पहले एक जोशीला स्पीच भी दिया स्टूडेंट्स को. एक महान भारतीय संत के कथानुसार छात्रों को ‘लक्ष्य की प्राप्ति न होने तक आगे बढ़ते रहने’ का एक प्रेरणादायक भाषण दिया. छात्र जीवन से ही एक बहुत अच्छा वक्ता रहा है देव. जब भी बोलता है सामने वाले को मुग्ध कर देता है.. एक नयी आशा, अपेक्षा, उत्साह इत्यादि सकारात्कमक भावनाओं का संचार कर देने में महारथ प्राप्त रहा है उसे.
अपने कमरे में आते ही पहले तो साथ लगे वाशरूम में जा कर पानी से अपने चेहरे को अच्छे से धोया और फिर दो मिनट बाद कुर्सी पर बैठते बैठते एक सिगरेट सुलगा लिया.
रह रह कर उस लड़की का चेहरा देव के लाख न चाहने पर भी याद आ रहा था. उस लड़की से उसका कोई सम्बन्ध तो है नहीं; तो फ़िर यूँ याद आने का कारण??
तभी दरवाज़े पर नॉक हुआ..
“यस.. कम इन.”
दरवाज़ा ज़रा सा खुला..
पहले कन्नू का सिर दिखा जो झांक कर एकबार अंदर कमरे की वस्तुस्थिति का अंदाज़ा लगा लिया फ़िर तनिक झिझकते हुए प्रवेश किया..
देव ने नज़रें घूमा कर एकबार कन्नू को देखा और फिर सीलिंग की ओर देख कर धुआँ छोड़ते हुए पूछा,
“क्या हुआ, कन्नू?”
“सर, ये....”
देव ने उसकी ओर देखे बिना ही पूछा,
“क्या है?”
“सर... कोई ये दे कर...”
इसबार कन्नू का बात खत्म होने से पहले ही देव उसकी ओर पूरी तरह मुड़ कर देखा..
कन्नू का हाथों में एक बहुत ख़ूबसूरत गुलदस्ता दिखा.
“ये... कौन दे कर गया?”
“दे कर गया नहीं सर... दे कर गई!”
“गई??”
“जी सर..”
“कौन?”
“सर.. आप ही की एक स्टूडेंट दे गई है. कहा कि, ‘सर को ऐसे फूल और उन फूलों से बने गुलदस्ते बहुत पसंद है. उन्हें ये ज़रूर से दे देना.’.. इससे अधिक कुछ कहा नहीं उसने.”
“तुमने उससे उसका नाम पूछा?”
“पूछा था सर.. लेकिन नाम बोलने के जगह उसने कहा कि ‘सर से बोलना उनकी स्पेशल स्टूडेंट ने ये दिया है.’ वो खुद समझ जाएँगे... इतना बोलकर, मुस्कराते हुए चली गई.”
“अम्म.. ओके.. कम से कम उसे रूकने के लिए या मुझसे सीधे मिलने के लिए कहना चाहिए था न.”
देव ने निराश और शिकायती लहजे में कहा.
“कहा था सर.. और वो रुकी भी थी. आप उस समय बच्चों के फंक्शन को अटेंड कर रहे थे. इसलिए आपको डिस्टर्ब करना मैंने उचित नहीं समझा और अपने दूसरे कामों में ध्यान दिया. काफ़ी देर रुकने के बाद वो बोली की उसे और भी ज़रूरी काम है... अब और नहीं रुक सकती.. ये गुलदस्ता मुझे देते हुए बोली कि मैं ये आप तक ज़रूर से पहुँचा दूँ; फ़िर चली गई.”
“ओह..हम्म.. ठीक है.. इसे यहीं रख दो.. और जाओ.”
कन्नू ने वहीँ किया.. गुलदस्ता टेबल पर, देव के ठीक सामने रखा और चला गया.
देव कुछ देर तक गौर से उस गुलदस्ते को देखता रहा और धुआं उड़ाता रहा... फिर उस गुलदस्ते को उठा कर देखा... बहुत ख़ूबसूरत काले और लाल रंग के गुलाब थे.. और उससे भी सुंदर ढंग से सजा कर गुलदस्ते को बनाया गया था.
फूलों के बीच में ही... बड़े करीने से एक कागज़ को छोटे से टुकड़े को कुछ ऐसे रखा गया था जो न जल्दी दिखे और न ही अनदेखा किया जा सके..
देव मुस्कराया.. इतना जतन भला कौन सा स्पेशल स्टूडेंट करता है?
कागज़ को दो फोल्ड किया गया था...
फोल्ड्स खोला देव ने,
अंदर एक बड़ा सा दिल बना हुआ था जिसमें लिखा था,
‘फॉर द वन एंड ऑनली.... फ्रॉम द वन एंड ऑनली!'
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31-03-2021, 09:43 PM
(This post was last modified: 31-03-2021, 10:03 PM by Dark Soul. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
४)
“देव... देव...!!”
“हाँ... क्या हुआ??”
शावर बंद करते हुए देव ने ज़ोर से पूछा...
“उफ़.. कब से चिल्ला रही हूँ.. अब जा कर सुने.”
“अरे तो जल्दी बोलो न.. पता ही है तुम्हें की अभी नहा रहा हूँ.”
“मैं कह रही थी कि मैं अभी जा रही हूँ. आज कुछ को स्पेशल क्लास देना है... थोड़ा हट के टिप्स... आने में भी लेट होगा. तुम अगर जल्दी आ जाते हो तो मेरा वेट मत करना.. खा कर सो जाना.. ओके?”
“ठीक है.. पर लेट क्यों होगा तुम्हें?”
दोबारा शावर ऑन करते हुए पूछा देव.
“आज कंटेसटेंट्स को कुछ टिप्स अलग से देने हैं.. उनकी थोड़ी और ग्रूमिंग करनी है... आने वाले कुछेक महीनों में डिमांड होने वाली है... इसलिए.”
“ओके.. कोशिश करना जल्दी आने की. साथ में खा लेंगे.”
“ओके.. आई विल ट्राई. बाय... लव यू.”
“बाय.”
पाँच मिनट बाद ही मेन डोर के खुलने और बंद होने का आवाज़ हुआ. नेहा चली गई. देव शावर से गिरते ठंडे पानी की ओर चेहरा कर दिया. छोटी छोटी अनवरत चेहरे पर गिरती पानी की बूँदों ने ठंडक और आराम का एक अद्भुत आनंद दे रहे थे उसे. देव का मन तो कर रहा था कि बस नहाता ही रहे... नहाता ही रहे..
आज वैसे भी कोई जल्दी नहीं है उसे. कॉलेज से एक दिन का ऑफ लिया है उसने. कॉलेज भले ही उसका खुद का है पर अभी तक... पाँच साल के समय में कभी भी अकारण छुट्टी नहीं लिया.
आज भी छुट्टी उसने अकारण नहीं लिया... वाकई कुछ दिन से काम का बोझ कुछ अतिरिक्त ही बढ़ गया है उस पर. कॉलेज में कुछेक डिपार्टमेंट और बढ़ाना चाहता है.. एक अच्छी ज़मीन भी देख रखा है उसने कॉलेज से थोड़ी ही दूरी पर. वहाँ एक कॉलेज खोलने की योजना है. इन सबके अलावा और भी कई तरह के योजनाएँ चल रही हैं और उनके समुचित रूप से क्रियान्वन पर काम भी.
देव हमेशा से ही बहुत महत्वाकांक्षी रहा है और अपनी दूरदर्शिता को अपना सबसे बड़ा हथियार मानता है... और निःसंदेह ऐसा है भी... नहीं तो कौन भला इतने युवावस्था और इतने कम समय में इतना कुछ पा लेता है?
चेहरे पर गिरते पानी की तेज़ बूँदों में से कुछेक बूँद देव के सीने पर भी गिरे.. और इसी के साथ एक हल्की टीस सी हुई.. पहले तो देव ने ध्यान नहीं दिया पर जब तीन – चार बार उसी एक जगह एक हल्की पीड़ा होने लगी पानी गिरते ही तब देव ने चेहरे – आँखों पर से पानी हटाते, पोंछते हुए अपने सीने पर एक नज़र डाला.
देखते ही चौंका..
सीने से ले कर पेट तक खरोंच के तीन निशान हैं...
साइड के दोनों थोड़े हल्के से... लेकिन बीच वाला कुछ ज़्यादा ही गहरा है.
‘ये कब और कैसे हुआ?’ मन ही मन प्रश्न किया देव ने.
पिछले तीन रात तो वो और नेहा सिर्फ़ खाए पिए, एक दूसरे के काम के बारे में थोड़ा डिस्कस हुआ और फिर सो गए! तो फ़िर.... ये खरोंच...??
खरोंचों को देखते हुए देव ने उन पर हल्के से हाथ रखा... और ऐसा करते ही एक तेज़ जलन हुई और देव मारे दर्द के ‘आह’ भरने लगा. ऐसी भीषण जलन आज से पहले देव को किसी ओर खरोंच से नहीं हुई थी.
जल्दी ही नहाना खत्म कर देव कुछ देर टीवी देखते हुए थोड़ा बहुत खाना खाया और फिर सो गया.
कुछ समय ही बीता होगा कि उसे ये अहसास होने लगा कि कोई उसके बिस्तर पर उसके ठीक बगल में बैठी है! देव आँखें खोलना चाहा पर तभी किसी ने उसके आँखों पर अपना नर्म हाथ रख दिया; और फिर एक अजीब सी सुस्ती छाती चली गई उसपर. अब न आँखें खुलें और न ख़ुद उठ सके.
बहुत चाह कर किसी तरह होंठ खोल पाया,
“क.. कौ... कौन नेहा??”
कोई जवाब नहीं...
दो तीन बार पूछा देव ने... लेकिन कोई जवाब नहीं मिला...
बहुत मुश्किल से आँखों को ज़रा सा ही खोल पाया... पर सब कुछ धुंधला दिखा.. बस इतना ही बढ़िया से समझ पाया की उसके दाहिने तरफ़ बिस्तर पर दोनों टाँगे उठा पीठ टिका कर एक लड़की बैठी हुई है. ड्रेस भी ठीक से दिखा तो नहीं पर रंग शायद काला पीला का मिश्रण लिए है.
“कौन... नेहा??”
फ़िर कोई जवाब नहीं.
“अ... अह... कुछ क... कहो..”
लड़की ने फ़िर कोई जवाब नहीं दिया लेकिन इस बार उसके बदन में थोड़ी हरकत हुई.. देव ने अपनी अधखुली आँखों से धुंधला सा देख पाया की लड़की के बदन में जो हरकत हुई वो यह कि उसने थोड़ा आगे झुक कर पेट के बल लेटे देव के दाएँ हाथ को थाम ली. ऐसा होते ही देव के अंदर मानो ये अहसास भर गया कि लड़की उससे कह रही है की वो चिंता न करे, घबराए नहीं... सब ठीक है.
“न... ने...”
“कैसा लग रहा है अभी?”
एक सुमधुर कंठस्वर ने देव के बात को पूरा ही नहीं होने दिया.
देव को ये स्वर इतना अच्छा लगा कि कुछ क्षणों के लिए वो भूल गया की उसे कुछ कहना है..
जब कुछ पल और निकल गए और देव कुछ न बोला तब फ़िर से वो शहद सी स्वर गूँजी,
“बहुत समय हो गया एक अच्छी गहरी नींद लिए.. है न?”
“अम्म.. ह.. हाँ..”
“एक अच्छी नींद भी सेहत के लिए बहुत लाभकारी है. सेहत का भी तो ध्यान रखना है; नहीं तो कैसे चलेगा?”
“म्मम्म..”
देव स्पष्ट उत्तर तो देना चाह रहा था पर न जाने क्यों उस मीठे स्वर को सुनने के बाद उसे अपना स्वर बीच में लाना पसंद नहीं हो रहा है.
अजीब सी कशीश है इस स्वर में.. जो भी कहा जा रहा है सब में एक भिन्न ही प्रकार का केयरिंग वाली फीलिंग है... एक अलग ही अपनापन है...
इस अपनेपन में विभोर हो कर अनायास ही मुस्करा उठा देव...
“तू...तुम्हारी.. अ.. आवाज़ इतनी मी.. मीठी कब से हो ग.. गई..?”
जवाब के बदले एक पतली सी आवाज़ आई.. हँसने की... जैसे की उसे देव को हो रहे कंफ्यूशन से बहुत मज़ा आया.
देव फ़िर कुछ बोलने जा रहा था कि एक नर्म अँगुली उसके होंठों पर आ लगी,
फिर उसके कान से किसी के साँसों के टकराने का आभास हुआ... मानो कोई उसके पास... उस पर बहुत झुक आया हो... और... फ़िर.. बहुत प्यार से कहा,
“टेक अ गुड स्लीप... यू नीड इट.”
तत्क्षणात...
देव को अपने चारों ओर का वातावरण और भी अधिक शांत लगने लगा.. समय तो जैसे और भी धीरे हो गया हो मानो रुकने का ही मन बना लिया हो... एक हल्की हवा सी कुछ टकराई देव के शरीर से...
सोचने के लिए उसके पास अभी बहुत कुछ था पर ऐसा किया नहीं..
उस मीठी आवाज़ में ही इतना खो गया था वह की कब एक गहरी नींद में चला गया इसका भान ही न हुआ.
-------
जब आँख खुली तो देखा शाम के पाँच बज रहे हैं..
उठा, मुँह धोया, कॉफ़ी बनाया और टीवी खोल कर बैठ गया...
एक घंटा किसी तरह गुजरे होंगे की उसके एक करीबी दोस्त अजय का फ़ोन आया.. हालचाल जानने के बाद बहुत मान मनोव्वल करने के बाद प्लान बना आज की शाम को जाम के नाम किया जाए.
शहर के चार नामी बार में से एक बार, चाँदनी बार देव के घर के थोड़ा पास ही है.. तैयार हो कर वहाँ पहुँचते पहुँचते देव को आठ बज गए. अजय के अलावा भी वहाँ तीन पुराने दोस्त पहले से मौजूद थे..
ढेर सारी बातें हुई, पुराने दिनों को भी याद किया गया.. जम कर एक दूसरे की टांगें खिंची गयीं... इन सबके काफ़ी देर बाद चला जाम छलकाने का दौर...
कोई किसी से कम नहीं साबित होना चाहता था इस मामले में...
बार आने वाली कई नवयौवनाओं को भी जम कर आँखों से सेकना शुरू कर दिया सभी ने... सिवाय देव के.
ऐसा नहीं की जाम के नशे में वो इस काम में अपने दोस्तों का साथ नहीं देना चाहता है.. पर जैसे ही वो किसी लड़की की ओर देखता, उसे सब कुछ अचानक से धुंधला दिखाई देने लगता..
बात बहुत अजीब थी... उसने किसी को बताया नहीं पर अजय से छुपा न सका.. लेकिन नशे में होने के कारण अजय से सवाल जवाब नहीं किया गया..
रात ग्यारह बजे किसी तरह उन लोगों को होश आया कि यार, घर भी जाना है... सो, सब एक साथ उठे और एक दूसरे से विदा ले कर घर की ओर रवाना हो गए..
नेहा तो आज जल्दी आने वाली है नहीं... सो ताला देव को ही खोलना पड़ा...
मेन डोर बंद किया, चाबी फिश बाउल में रखा... बेडरूम में घुसा...
“अरे... नेहा?!... तुम तो जल्दी आ गई?!”
देव खुश होता हुआ बोला..
लेकिन नेहा ने कोई जवाब नहीं दिया.. वो दूसरी ओर मुँह कर के लेटी रही.
‘हम्म.. थक कर सो गई है लगता है...’
सोच कर देव कपड़े बदल कर बाथरूम जा कर फ्रेश हुआ.. आदतन सोने से पहले एक सिगरेट फूँका... माउथ फ्रेशनर लिया... और बिस्तर में आ कर नेहा को पीछे से जकड़ कर किस करता हुआ सो गया...
कुछ ही देर बीते होंगे कि ‘देवssss’ की एक तेज़ आवाज़ से देव की आँखें खुलीं.. देखा, बेड पर नेहा नहीं है... नेहा को कुछ हो न गया हो इस आशंका से घबरा कर देव जल्दी से उठा और लगभग दौड़ते हुए ड्राइंग रूम में पहुँचा... पहुँचते ही अवाक रह गया..
नेहा दरवाज़े पर खड़ी थी...
आँखें आश्चर्य और भय के कारण फ़ैल गई थीं.
एकटक फर्श पर देख रही थी..
देव ने भी उसकी आँखों का अनुसरन करते हुए नीचे देखा.. और देखते ही वो भी बेहद डर और अचम्भित सा हो गया.
फर्श पर खून सने नंगे पैरों के निशान थे जो कि मेन डोर से होकर अंदर बेडरूम तक चले गए थे...
देव डरते डरते पीछे मुड़ कर बेडरूम की ओर देखा... जहाँ वो खड़ा है इस समय वहाँ से बेडरूम और बेड का थोड़ा सा हिस्सा दिखता है... खून सने नंगे पैरों के निशान बेड तक गए हैं... पर बेड पर कोई नहीं है इस वक़्त..
हैरत में भरा देव पलट कर नेहा की ओर देखा... नेहा भी आँखों में आश्चर्य का सागर लिए देव की ओर देखी... और इस बार दोनों एक साथ और भी ज्यादा डरते हुए आश्चर्य के उस सागर में डूबते चले गए....
क्योंकि दोनों ने एक साथ ही एक दूसरे के पीछे एक काला साया देखा जो काफ़ी हद तक किसी लड़की का लग रहा था... लेकिन यहाँ थोड़ा अंतर है.. नेहा ने देखा कि एक लड़की नुमा काला साया देव को पीछे से बाँहों में लिए उसके कंधे पर अपने चेहरे को टिकाए एकटक नेहा की ओर एक कातिल मुस्कान से देख रही है.. चेहरा बिल्कुल भी स्पष्ट नहीं है पर आँखें.... आँखें जैसे दो नीले मणियों के समान एक अद्भुत प्रकाश लिए जगमग कर रहे हैं...
और इधर देव देख रहा है कि एक लड़की नुमा काला साया नेहा के पीछे खड़ी हो कर अत्यंत... अत्यंत गुस्से से नेहा को देख रही है.. साये का चेहरा यहाँ भी स्पष्ट नहीं है... पर जो स्पष्ट है वो है उस अत्यंत क्रोध और नफ़रत से धधकती दो लाल आँखें... जिन्हें देख कर ऐसा लग रहा है मानो अभी के अभी नेहा को कच्चा चबा जाएगी...!!
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(26-03-2021, 02:28 PM)vikya76 Wrote: VERY NICE
धन्यवाद.
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Not much of a response.....
Should I continue Posting?
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Damn you write amazing horror stories plz continue this thread..
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(03-04-2021, 07:27 PM)Bhavana_sonii Wrote: Damn you write amazing horror stories plz continue this thread..
Thank You so much.
But, there's not much response/comments.
Planning to stop here.
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Dont stop posting please complete this thread
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(06-04-2021, 12:41 PM)Bhavana_sonii Wrote: Dont stop posting please complete this thread
I will try to. (But) The posts will be little delayed.
Thank you for showing interest.
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५)
“देखो बॉस, मैं तो हमेशा अपने पेशेंट को यही सुझाव देता हूँ की किसी भी बात को सीमा से अधिक तुल न दे... और अपने अंदर दबा के तो बिल्कुल न रखे. जल्द से जल्द उस बात का एक समाधान करे; और किसी भी कारणवश वो ऐसा नहीं कर सकता तो फ़िर या तो किसी के सामने पूरी गाथा सुना दें या फिर उस बात को पूरी तरह से अपने दिमाग से निकाल दे.... भूल जाए. तुम्हारे केस में भी मैं यही कहूँगा.”
चाय की कप प्लेट पर रखते हुए निमेश ने कहा.
“ह्म्म्म..” चाय की एक सिप लेते हुए देव ने कहा.
“क्या ह्म्म्म..”
“मतलब?” देव ने पूछा.
“अरे भाई, मैं तुमसे भी यही कह रहा हूँ.. जो भी मन में है; उसे बक दो. यार, कुछ तो होगा... सोल्यूशन निकलेगा या नहीं निकलेगा.. सोल्यूशन निकला तो अच्छा नहीं तो कम से कम बोझ तो तनिक हल्का होगा की नहीं.”
अपने हरेक शब्द पर ज़ोर देते हुए निमेश बड़े संजीदगी से बोला.
देव कुछ नहीं बोला, बस चाय की सिप पर सिप लेता रहा.
निमेश २ मिनट तक देव के चेहरे को बहुत अच्छे से देखा, आते जाते भावों को पढ़ा, समझा, दोबारा पढ़ा... फ़िर स्वयं ही अधिक न समझने का सोच कर देव के उत्तर की प्रतीक्षा करने लगा.
चाय ख़त्म कर के देव ने एक विदेशी ब्रांड का सिगरेट सुलगाया और दो बार धुआँ उड़ाने के बाद बड़े थके से स्वर में बोला,
“डॉक्टर, क्या बताऊँ.. कहाँ से बताना शुरू करूँ मुझे तो यही समझ में नहीं आ रहा है. जब सोचता हूँ कि पूरा मैटर यहाँ से शुरू हुआ था; तो अगले ही क्षण कुछ ऐसा याद आ जाता है की मुझे लगता है की नहीं... मैटर यहाँ से नहीं वरन वहाँ से शुरू हुआ था. किस छोर को पकडूँ; यही नहीं पता.”
निमेश चुप रहा... गौर किया, देव वाकई अपने विचारों में खोया हुआ सा है... और तो और अपनी ओर से कोई विशेष जतन भी करता लग नहीं रहा है.
निमेश अपने ड्रावर में हाथ रखा ही कि देव ने अपना सिग्रेट का पैक उसे ऑफर करता हुआ बोला,
“आज ये वाली लो.”
“एक शर्त पर.”
“क्या?!”
“मैं अगर ये वाली लूँ तो तुम मुझे अपने साथ हो रहे घटनाओं के बारे में बताओगे?”
“अरे, मैं बोला न की कहाँ से शुरू....”
“कोई बात नहीं.. कहीं से भी शुरू कर दो... ज़रूरत हुई तो बाकी का मैं सम्भाल लूँगा.” देव को बीच में ही टोकते हुए निमेश बोला.
देव कुछ क्षण सोचा... फिर,
“ओके..!”
इस क्षणिक और आंशिक सफ़लता पर निमेश मुस्कराया और एक सिगरेट ले कर सुलगा लिया.
धुआँ छोड़ते हुए देव की ओर देख कर बोला,
“चलो भई, शुरू हो जाओ.”
देव निमेश की ओर एक नज़र डाला और फिर गहरी साँस लेते हुए खिड़की से बाहर देखते हुए बोला,
“कुछ दिन से एक के बाद एक अजीबोगरीब घटनाएँ घट रही हैं. कब कौन सी घटना घट जाए कहना मुश्किल होता है.. ये तो जानता ही होगे तुम, निमेश. पर इस केस में मेरे साथ ऐसा नहीं है. जब कुछ होने वाला होता है तो पता नहीं कैसे मुझे पहले ही उसका भान हो जाता है. और सबसे अजीब बात तो ये है की अगर सोचने बैठो तो कभी; सभी बातें, घटनाएँ परस्पर आपस में जुड़े हुए प्रतीत होते हैं तो कभी किसी भी घटना का एक दूसरे से कोई वास्ता नहीं होता लगता है. और....”
कहते हुए देव किसी सोच में पड़ गया.. निमेश पर उसकी उत्सुकता हावी हुई और तपाक से बोल उठा,
“और.... और क्या? चुप क्यों हो रहे हो भई, आगे भी तो बताओ?”
“शायद विश्वास नहीं करोगे.. हर घटना मुझसे... मुझसे जुड़ी होती हैं. मेरे आस पास ही घटित होती हैं.....”
“हम्म.. तुम्हारे आस पास ही घटित होती हैं; ये माना जा सकता है... पर.... तुमसे जुड़ी होती हैं.....?”
“वही तो.....मैं तो...”
“एक मिनट देव, पहले एक सवाल.”
“ओके.. पूछो.”
“तुम्हें कैसे पता... आई मीन, तुम इतने विश्वास से कैसे कह सकते हो कि सब कुछ... सभी घटनाएँ तुमसे ही जुड़ी होती हैं?”
“क्योंकि हरेक का सम्बन्ध मुझसे ही होता है.”
“मतलब?... ज़रा ठीक से बताओ.”
“मतलब... दो बातें हैं... एक, या तो घटना का केंद्रबिंदू मैं ही होता हूँ.. या, दूसरा, जो भी घटना घटित होती है वो इनडायरेक्टली मुझसे जुड़ी होती है.”
“हम्म... ओके... दो उदहारण दे सकते हो? एक, जिसमें तुम सीधे तौर पर जुड़े होते हो और दूसरा, जिसमें तुम अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए होते हो?”
रिवोल्विंग चेयर की आर्म रेस्ट पर रखे अपने बाएँ हाथ की हथेली को मुट्ठी में कर अपने होंठ और नाक पर रख कर देव थोड़ा सोचा... फिर सोचते हुए ही बोला,
“अं... हाँ, बता सकता हूँ... दो घटनाएँ.”
“बताओ.”
“एक घटना तो ये की एकदिन शाम को अपने अपार्टमेंट में ही गाड़ी पार्किंग को ले कर झगड़ा हो गया था... साले को कितना समझाया, वो सुनने को तैयार ही नहीं.. मानना तो दूर की बात.. बहुत उल्टा सीधा कहा उसने मुझे.. मुझे भी गुस्सा आया.. मैंने भी कुछ से कुछ कह दिया. हाथापाई की नौबत आई लेकिन और लोग भी तब तक जमा हो गए थे वहाँ... सबने बीच बचाव किया. कुछ देर बाद हम सभी अपने अपने फ्लैट्स की ओर चले गए. बात आई, गई, हो गई... मुझे याद नहीं रहा.. दो दिन बाद ही मुझे अचानक से तेज़ बुखार आया था.. फ़िर तुम्हें बुलाया गया.. तुमने तो खुद देखा था आ कर कि मुझे कितना बुखार था.. खैर, तुम जब चले गए तब थोड़ी देर बाद वाचमैन आ कर बोला की जिस आदमी से मेरी दो रात पहले झगड़ा हुआ था; उसे कल रात किसी ने बहुत बुरी तरह से मारा पीटा है... लगभग मरने वाली हालत हो गई थी उसकी....”
“हम्म.. आगे?”
“आगे क्या.. सिक्युरिटी स्टेशन से कॉल आया था.. मुझे आने को कहा गया था.. कुछ मामूली पूछताछ करनी थी उनको. दरअसल, २-३ लोगों ने सिक्युरिटी को मेरा नाम बताते हुए ये संदेह जताया था कि शायद मैंने उस आदमी को नुकसान पहुँचाया हूँ या हो सकता हूँ....”
“हाँ.. मुझे भी बुलाया गया था थाने में. मुझे जो कुछ भी कहना था वहाँ कह दिया. और तुम तो थे भी निर्दोष.” निमेश बीच में बोल पड़ा.
“हाँ..”
“और..??”
“बस यही की अगले कुछ दिनों तक सिक्युरिटी यही संदेह करती रही की उस आदमी की वैसी बुरी हालत करने के पीछे ज़रूर मेरा ही हाथ रहा है. लेकिन कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलने के कारण उन्हें जल्द ही मुझ पर से अपना ध्यान हटाना पड़ा.”
“ओके.. तो ये घटना तुम्हारे साथ कैसे.. किस तरह से जुड़ी है मिस्टर देव? आई मीन, तुम जिस परेशानी से दो चार हो रहे हो अभी; उससे कैसे जुड़ा हुआ है ये?”
“बिल्कुल जुड़ा हुआ है. उस आदमी से जब बाद में सिक्युरिटी की ओर से पूछताछ हुई थी तब उसने हमारे झगड़े की बात को कन्फेस किया था और ये भी कहा था कि हमले की रात उसे बराबर ऐसा लग रहा था कि मानो कोई उसे फोलो कर रहा है.. हर पल देख रहा है. और जब वो अपनी गाड़ी पार्क करने के बाद गाड़ी से उतर कर दरवाज़ा लगा रहा था तब किसी ने बहुत ज़ोर से पीछे से उसके पीठ पर किसी भारी चीज़ से वार किया था. पीठ पर अचानक से हुए ज़ोर के हमले से वो पंगु सा हो गया था इसलिए अपने बचाव के लिए कुछ नहीं कर पाया था.”
“हमलावर को देख पाया था?”
“नहीं. उसने कोशिश की थी पर असफ़ल रहा. पर एक बात पर ख़ास ज़ोर रहा उसका.”
“वो क्या?”
“उसका कहना था की जिस किसी ने भी उस पर हमला किया था; वो शारीरिक रूप से अधिक ताकतवर नहीं था क्योंकि अपने हर वार में उस हमलावर को अधिक ज़ोर लगाना पड़ रहा था.”
“इसका मतलब क्या हुआ?”
“अ...मम.. इसका.. यही मतलब हो सकता है कि हमलावर शारीरिक रूप से अधिक ताकतवर नहीं था....”
“ये तो तुमने कह दिया पहले ही.. और?”
“और.... अम्म्म... शायद वो कम उम्र का कोई हो?”
“कोई लड़का?”
“अ.. हाँ... सम्भव है..”
“हाँ.. सम्भव है की वो कोई लड़का ही रहा हो या.....”
“या??”
“या शायद कोई लड़की?”
निमेश के इस कथन पर देव उछल सा पड़ा...
“क्या.. लड़की?!!”
“क्यों.. तुम्हें नहीं लगता की ये सम्भव है?”
“नहीं.... ऐसा नहीं...” कहते हुए देव एकाएक ही रुक गया. रुक जाना ही था उसको क्योंकि निमेश के बताए जिस सम्भावना को वो तुरंत ही इंकार करने जा रहा था वो सहसा उसे कहीं न कहीं थोड़ा सा तर्कसंगत लगने लगा.
देव से तुरंत कुछ नहीं बोला गया. निमेश ने भी तुरंत कुछ नहीं पूछा...
थोड़ी देर के चुप्पी के बाद निमेश ने ही कहा,
“देव?”
“हूँ” किसी सोच में डूबा देव ने इतना ही उत्तर दिया.
“क्या लगता है?”
“किस बारे में?”
“कौन हो सकती है?”
इस प्रश्न ने देव को उसके सोच से बाहर ला दिया.. थोड़ा असहज होता हुआ पूछा,
“क्या? कौन ‘कौन हो सकती है’ ?”
“क्या कोई ऐसी है जिसे तुम... आई मीन तुम्हें ऐसी किसी को जानते हो जो इस तरह के काम कर सके? बहुत गुस्सा या ज़रूरत होने पर?”
“नहीं... बिल्कुल नहीं.” देव ने एक झटके से कहा.
स्पष्ट है की ऐसी बातें उसे हजम नहीं हो रही है. विश्वास कर पाना कठिन है.... स्वयं निमेश भी अपने इस विचार पर सहमत नहीं था... इसलिए अधिक ज़ोर दे कर देव से कुछ पूछ भी नहीं सका.
एक राउंड चाय और चला. सिगरेट के धुएँ फ़िर उड़े.. बिज़नेस और दूसरे कामों के बारे में थोड़ी देर गप्पशप्प चलीं.
“अच्छा... अब चलता हूँ.. बहुत देर तुम्हारा टाइम ले लिया.”
“अरे नों प्रॉब्लम.. आज तो वैसे भी बैठना ही था यहाँ. आज पेशेंट नहीं होते मेरे. इसलिए तुम्हें खास बुलाया था.” निमेश हँसते हुए बोला.
देव भी हँसा.. और “ओके” बोल कर चेयर से उठ गया. जाने के लिए मुड़ा ही कि निमेश बोल पड़ा,
“लेकिन एक बात मेरी समझ में नहीं आई.. उस दिन कॉलेज में मिले उस गुलदस्ते को देख कर तुम इतने टेंशन में क्यूँ आ गए थे? तुम्हारे तो कई सारे स्टूडेंट्स हैं.. कई के फेवरेट रह चुके हो तुम. तो वो गुलदस्ता किसी का भी हो सकता है. कोई भी दे कर जा सकता है.. या सकती है. है ना?”
निमेश का प्रश्न सुनते ही देव का मुस्कराता चेहरा तुरंत ही गंभीर हो उठा.. पर पल भर बाद ही स्वयं को सम्भालता हुआ बोला,
“बात गुलदस्ते की नहीं है डॉक्टर महोदय..बात है उस गुलदस्ते में मिले कागज़ की जिसपे लिखे शब्द मैं तुम्हें पहले ही बता चुका हूँ.”
“हाँ हाँ.. बिल्कुल. पर ऐसा भी तो हो सकता है न की किसी ने तुम्हें टीज़ करने के लिए ये कारनामा किया हो?”
देव जरा सा हँसा,
बोला,
“मुझे देख कर ऐसा लगता है कि कोई मेरे साथ भूल से सपने में भी इस तरह का प्रैंक करने का सोचेगा?”
निमेश दो पल देव को अच्छे से देखा... देख कर बोला,
“नहीं.. नहीं.. बिल्कुल नहीं लगता!”
“हम्म.. राईट! मैं स्टूडेंट शुभचिन्तक हूँ.. लेकिन स्टूडेंट फ्रेंडली नहीं... इसलिए कोई मेरे साथ मजाक करने के बारे में गलती से भी सोचने के बारे में गलती नहीं करेगा.”
“ओके.. फिर तुम इतना टेंशन में क्यों थे? कोई स्टूडेंट तुम्हें डियरली अपना मानता है.. तू....”
“मानती है...” निमेश की बात को बीच में काटते हुए देव बोला.
“हाँ??”
“मानती है, बोलो.”
“ओह यस... सॉरी... कोई स्टूडेंट तुम्हें डियरली अपना मानती है.. तुम्हें सिर्फ़ अपना टीचर, अपना सर कहना या होना पसंद करती है.. और खुद को भी तुम्हारा एकमात्र डियर स्टूडेंट कहलाना, समझाना पसंद करती है तो फ़िर इसमें गलत क्या है?’
देव मुस्कराया, आगे बढ़ा, टेबल पर अपने दोनों हाथ रखा और उन पर तनिक बल देते हुए आगे की ओर; निमेश की ओर झुक कर उसके आँखों में आँखें डाल कर धीरे, सधे और बड़े गम्भीर स्वर में एक एक शब्द पर ज़ोर देते हुए बोला,
“बात अगर यहीं तक होती तो ठीक होता निमेश... मान लेता... लेकिन इतना भी कोई किसी का कितना डियर हो सकता है कि उसे कोई मेसेज लिख कर भी दे तो वो भी खून से लिख कर दे?.. और क्या पता, शायद अपने ही खून से??!”
निमेश को लगा की जैसे किसी ने किसी भारी चीज़ से उसके सर पर; खास कर उसके लॉजिक पर बड़े करारे तरीके से प्रहार किया हो... कुछ क्षणों के लिए तो उसकी बोलती ही बंद हो गई.. बोलती क्या.. मानो दिमाग ने सोचना ही बंद कर दिया हो... फ़िर भी थूक गटक कर अपने लॉजिक, ज्ञान और डॉक्टरी की लाज रखने हेतु कुछ बोलना चाहा,
“अ.. मम.. प... पर... ज़रूरी नहीं की....”
“क्या ज़रूरी नहीं डॉक्टर महोदय? यही न की वो खून किसी इंसान का नहीं हो??” देव निमेश की हालत देख अब हँसे बिना नहीं रह पाया.
“हाँ.. यही... मैं...”
“निमेश... मेरे कॉलेज में लैब है और मैंने थोड़े से नमूने का टेस्ट भी करवाया है... इट्स ह्यूमन ब्लड!!”
निमेश अब बिल्कुल भी कुछ नहीं बोला. चुप रहा. कुछ बोलने के लिए उसे अभी अभी देव द्वारा कही गई बातों को हजम करना पड़ेगा जोकि उससे फ़िलहाल इस समय तो बिल्कुल ही नहीं हो रहा है.
एक दीर्घ साँस छोड़ते हुए विवशता में अपने सिर को सिर्फ़ हिलाया..
देव उसके संकेत को समझ गया.. इस अनाधिकारिक तर्कशास्त्र में स्वयं के विजयी होने का आनंद लेते हुए वहाँ से चला गया.
पीछे निमेश अब भी विवश सा बैठा, हाथ में काँच वाला पेपरवेट से खेलते हुए उसके और देव के बीच हुए वार्तालाप के बारे में गहराई से सोचने लगा.
इधर निमेश के क्लिनिक - कम - घर से निकल कर देव अपनी गाड़ी स्टार्ट कर अपने गन्तव्य की ओर बढ़ा और वहाँ से उसके जाते ही उस स्थान से थोड़ी दूरी पर स्थित एक चाय दुकान से एक आदमी चाय पीता हुआ थोड़ा साइड में खड़ा हो कर अपने दूसरे हाथ में पकड़े मोबाइल में बात करने लगा,
“हैलो..? हाँ.. मैं बोल रहा हूँ.. हाँ.. अभी.. तुरंत निकला है यहाँ से.. अब?”
मोबाइल में दूसरी ओर से मिले निर्देश पर अपना सिर हिलाते हुए धीरे से ‘ओके’ बोल कर वह आदमी चाय पीता हुआ फिर से चाय दुकान में चला गया.
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Really intresting plot building the story just making sure that I read it fully.. plz keep posting
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(08-04-2021, 11:59 PM)Bhavana_sonii Wrote: Really intresting plot building the story just making sure that I read it fully.. plz keep posting
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