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नमस्ते मित्रों,
यहाँ हिंदी में ये मेरा पहला कहानी है.
अपनी तरफ़ से कुछ अलग लिखने और उसे आपको लोगों के सामने रखने की कोशिश की है.
पढ़ कर अपना वक्तव्य/टिप्पणियाँ ज़रूर दीजियेगा.
व्याकरण अशुद्धि यदि हो तो उसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ.
धन्यवाद.
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नदी का रहस्य
१)
घर के मुख्य दरवाज़े पर ‘ठक ठक ठक ठक’ की आवाज़ हुई ... और इसी के साथ आवाज़ आया....
“हाँ..... मैडम जी.... दूध ले लीजिए...!!”
अभी ये आवाज़ ठीक से ख़त्म हुई भी नहीं कि घर के ऊपर तल्ले से एक जनानी की खनकती सी आवाज़ गूँज उठी,
“बिट्टू... ए बिट्टू... देख बेटा ... दूधवाला आया है.. जा के दूध ले ले ज़रा...”
लेकिन बिट्टू की ओर से कोई आवाज़ नहीं आया...
जब और दो तीन बार आवाज़ देने के बाद भी बिट्टू ने कोई उत्तर नहीं दिया तब उसी जनानी की आवाज़ गूँजी... झुँझलाहट भरी,
“ओफ्फ़.. इस लड़के को तो सिर्फ़ खाना और सोना है... और सोना भी ऐसा कि चिल्लाते रह जाओ .... या फ़िर, बगल से रेलगाड़ी ही क्यों न गुज़रे... मजाल इसके कानों में जूँ तक भी रेंग जाए.... |”
इसके एक मिनट बाद ही कमरे से वही खनकती आवाज़ की मालकिन निकली...
रुना...
रुना मुखर्जी नाम है इनका...
गौर और गेहूँअन के बीच की वर्ण की है ... सुन्दर गोल मुख... भरा बदन ... धनुषाकार भौहें (भवें) और उतने ही सुंदर बड़ी आँखें ... दोनों हाथों में पाँच पाँच लाल रंग की मोटी चूड़ियाँ जिन पर सोने की अति सुन्दर नक्काशी की हुई हैं ... |
सीढ़ियों पर से जल्दी उतरती हुई नीचे सीधे रसोई घर में घुसी और एक बड़ा सा बर्तन लेकर तेज़ कदमों से चलते हुए घर के मुख्य दरवाज़े की ओर बढ़ी...
दरवाज़ा खोली...
और,
बर्तन आगे बढ़ाते हुए बोली,
“लीजिए भैया... जल्दी भर दीजिए... मुझे देर हो रही है.”
दूध वाला बर्तन लेने के लिए हाथ बढ़ाते हुए एक नज़र रुना की ओर डालता है ... और ऐसा करते ही उसके हाथ और आँखें दोनों जम जाती हैं..
रुना एक तो है ही रूपवती ... और उसपे भी इस समय दूधवाले के सामने ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी है.
38C के उन्नत उभारों के कारण ब्लाउज में बने सुंदर उठाव ध्यान तो खींच ही रहे हैं... साथ ही V शेप से बाहर झाँकता ४ इंच लम्बा क्लीवेज तो बस मुग्ध ही किये दे रहा है.
देबू ने रुना को देखा तो है कई बार... पर कभी इस तरह... ऐसे कपड़ों में नहीं देखा.
देबू को यूँ अपनी ओर अपलक आश्चर्य और एक अव्यक्त आनंद से देखता हुआ देखी तो रुना का भी ध्यान अपनी ओर गया .... और खुद की अवस्था का बोध जैसे ही हुआ; तो हड़बड़ी के कारण हुई अपनी इस नादान गलती से वह बुरी तरह अफ़सोस करते हुए लगभग उछल पड़ी..
खुद को जल्दी से दरवाज़े के पीछे करती हुई आँखें बड़ी बड़ी करके बोली,
“ए चल... जल्दी कर... कहा न मुझे देर हो रही है.”
देबू मुस्कराया... बर्तन लिया और दूध भर कर वापस रुना की ओर बढ़ाया.. पर जानबूझ कर इतनी दूरी रखा कि रुना को बर्तन लेने के लिए हाथ तनिक और बढ़ाना पड़े ... अब चाहे इस क्रम में उसे थोड़ा झुक कर आगे बढ़ना पड़े या फ़िर कुछ और करना पड़े.
देबू की इस करतूत को रुना समझ नहीं पाई. एक तो उसे देर हो रही थी और दूजे, जल्दबाजी में ऐसे अर्धनग्न अवस्था में एक पराए लड़के के सामने खड़े रहते हुए शर्म से ज़मीन में गड़ी जा रही थी.
देबू को ठीक से हाथ आगे न बढ़ा कर देते हुए देख कर रुना झुँझलाते हुए अपना बायाँ हाथ आगे बढ़ाई.. पर बर्तन अभी भी कुछ इंच दूर है.. वो देबू को कुछ बोले उससे पहले ही देबू बोल पड़ा,
“जल्दी कीजिए मालकिन... मेरे को अभी दस जगह और जाना है.”
जो बात वो देबू को फ़िर से बोलना चाह रही थी; वही बात देबू ने उसे कह दी..
कुछ और सोच समझ न पाई वो..
दरवाज़े के पीछे से थोड़ा आगे आई... एक कदम आगे बढ़ाई, थोड़ा सामने की ओर झुकी और हाथ बढ़ाकर बर्तन पकड़ ली.
पर तुरंत ही बर्तन को ले न सकी क्योंकि देबू ने छोड़ा ही नहीं... वो फ़िर से आँखें बड़ी कर घोर अविश्वास से रुना की ओर देखने लगा था. रुना की स्त्री सुलभ प्रवृति ने तुरंत ही ताड़ लिया कि देबू क्या देख रहा है.
देबू को डाँटने के लिए मुँह खोली... पर एकदम से कुछ बोल न पाई.
उसका कामातुर स्त्री - मन इस दृश्य का ... एक मौन प्रशंसा का आनंद लेने के लिए व्याकुल हो उठा.
जवानी में तो बहुत देखे और सुने हैं... पर अब उम्र के इस पड़ाव पर उसकी देहयष्टि किसी पर क्या प्रभाव डाल सकते हैं और कोई प्रभाव डाल भी सकते हैं या नहीं इसी बात को जानने की एक उत्कंठा घर कर गई उसके मन में.
करीब दो मिनट तक ऐसे ही खड़ी रही वह.. केवल ब्लाउज पेटीकोट में... आगे की ओर झुकी हुई... देबू की लालसा युक्त तीव्र दृष्टि के तीरों के चुभन अपने वक्षों पर साफ़ महसूस करने लगी और साथ ही उसके खुद के झुके होने के कारण अपने ब्लाउज कप्स पर पड़ते दबाव का भी स्पष्ट अनुभव होने लगा उसे.
इधर देबू का भी हालत ख़राब होता जा रहा है. गाँव में बहुत सी छोरियों को देखा है उसने; और सुंदर भाभियों को भी. उनमें से एक है ये रुना मुख़र्जी. दूध पहुँचाने के सिलसिले में कई बार रुना के घर आता जाता रहा है और इसी वजह कई बार भेंट भी हुई है उसकी रुना से, कई बार बातें भी हुईं, और बातों के दौरान ही कई बार देबू ने अच्छे से रुना को ताड़ा भी; पर साड़ी से अच्छे से ढके होने के कारण उसकी उभार एवं चर्बीयुक्त सुगठित देह के ऐसे कटाव को कभी समझ न सका था. हमेशा अच्छे कपड़ों में रहने वाली रुना दिखने में हमेशा से ही प्यारी और सुसंस्कृत लगी है उसे; पर वास्तव में वह प्यारी होने के साथ साथ इतनी सुपर हॉट हो सकती है ये देबू ने कभी नहीं सोचा था |
और फ़िलहाल तो उसकी नज़रें निर्बाध टिकी हुई थी ब्लाउज कप्स से झाँकते रुना के दूधिया चूचियों के ऊपरी अंशों पर एवं झुके होने के कारण ४ से ६ इंच हो चुकी उस मस्त कर देने वाले क्लीवेज और क्लीवेज के ठीक सामने, गले से लटकता पानी चढ़ा सोने की चेन पर जो कदाचित उसका मंगलसूत्र भी है.
रुना ने हाथ से बर्तन को ज़रा सा झटका दिया और तब जा कर देबू की तंद्रा टूटी. वह बेचारा चोरी पकड़े जाने के डर से नर्वसा गया. आँखें नीची कर के जल्दी से अपने कैन को बंद किया और झट से उठ गया. रुना भी अब तक दुबारा दरवाज़े के पीछे आ गयी थी. देबू अपने दूध के बड़े से कनिस्तर को उठा कर जाने के लिए आगे बढ़ा ही था कि रुना बोली,
“सुनो, कल भी लगभग इसी समय आना... पर थोड़ा जल्दी करना.”
देबू ने रुना की ओर देखा नहीं पर सहमति में सिर हिलाया.
रुना मुस्करा पड़ी.
देबू तब तक दो कदम आगे बढ़ चुका था.. पर नज़रें उसकी तिरछी ही थीं... रुना के उस अनुपम रूप को जाते जाते अंतिम बार अपने आँखों में कैद कर लेना चाहता था.
और इसलिए रुना जब मुस्कराई तो वह नज़ारा भी देबू की आँखों कैद हो गई. ‘उफ्फ्फ़ क्या मुस्कान है... क्या मुस्कराती है यार! एक तो ऐसी अवस्था में, ऊपर से ऐसी कातिल मुस्कान...’ देबू पूरे रास्ते रुना के बारे में सोचता ही रहा. और सिर्फ़ रास्ता ही क्या, वह पूरा दिन रुना के बारे में सोचते हुए बीता दिया और रात में रुना के उस अनुपम सुगठित देह के बारे में सोच सोच कर स्वयं को तीन बार संतुष्ट करके सो गया.
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२)
नबीन बाबू सुबह आठ बजे ही घर से निकल जाते हैं... नदी के तट तक पहुँचने में पन्द्रह मिनट तो लगना तय है. फ़िर थोड़ी देर किसी नाव का इंतज़ार करते हैं. अक्सर ही कई नाव नदी किनारे ही मिल जाते हैं पर कई बार ऐसा भी होता है कि सवारियों की तादाद अनुमान से अधिक हो जाने पर नावों में भी तिल भर की जगह नहीं बचती और फ़िर सवार हो चुके सवारियों को नदी के दूसरी ओर छोड़ने के अलावा नाविकों के पास और कोई चारा नहीं रहता... और यही तो इन नाविकों का काम है... रोज़ी रोटी है.
हमेशा की तरह नबीन बाबू पहुंचे तो थे तट पर समय से; परन्तु आज तट पर एक भी नाव नहीं है.. कदाचित आज नदी के उस पार जाने वालों की संख्या बहुत अधिक रही होगी. कुल पन्द्रह नाव हैं जिनमें से ३ नाव मरम्मत के काम के कारण तीन दिन पानी में नहीं उतरेंगे. अब बाकी बचे बारह नाव में से एक भी नाव अभी यहाँ नहीं हैं. ‘उफ्फ्फ़... एक भी नाव नहीं है... पता नहीं कब तक वापस आएगी.. कहीं आज देर न हो जाए.’ नबीन बाबू ने सोचा. नदी के उस पार से इस पार आने में पन्द्रह से बीस मिनट लगते हैं और फ़िर वापस उस ओर जाने में भी उतना ही समय लगता है. यानि की करीब तीस से चालीस मिनट यूँ ही निकल जाते हैं इधर से उधर होने में.
नबीन बाबू ने अपने पैंट के जेब में रखे एक छोटा सा बंडल निकाला. बीड़ी का बंडल. एक निकाला और लाइटर जला कर सुलगाने ही वाले थे कि पीछे से किसी की पदचाप सुनाई दी.
जल्दी से पीछे देखा नबीन बाबू ने.
हरिपद चला आ रहा है.
हाथ में एक थैली लिए..
हरिपद जब तक पास आ कर खड़ा होता.. उतनी देर में नबीन बाबू ने बीड़ी सुलगा लिया.
हरिपद पास आ कर कुशल क्षेम पूछता हुआ एक मतलबी मुस्कान मुस्कराया. नबीन बाबू इस मुस्कान का मतलब बहुत अच्छी तरह जानते थे.. जाने भी क्यों न.. आखिर हरिपद के साथ उनका कोई आज का तो जान पहचान नहीं है. बचपन में साथ खेलते और पढ़ते थे.. कितनी ही शरारतें दोनों ने मिल कर की है. गाँव के लोग दोनों की जोड़ी को अटूट बोलते थें... पर जैसा की सबके साथ होता है.. समय कभी एक सा नहीं रहता.. हरिपद का परिवार नबीन बाबू की तरह साधन संपन्न नहीं था.. वैसे कुछ खास तो नबीन बाबू का भी परिवार नहीं था पर हरिपद के परिवार से थोड़ी बेहतर स्थिति में था.
आठवीं तक आते आते हरिपद के पिताजी ने साफ़ कह दिया की अब उनसे अकेले काम नहीं संभाला जाता.. बेहतर होगा अगर हरिपद भी उनके काम में हाथ बंटाए. ‘कॉलेज से आने के बाद थोड़ी देर काम करेगा.. फ़िर कॉलेज की पढ़ाई भी कर लेगा.’ ऐसा कहा था हरिपद के पिताजी ने. पर हरिपद और उनकी माता जी; दोनों जानते थे कि दोनों काम साथ कर पाना ज़्यादा दिन संभव नहीं होगा. शायद उनके पिताजी भी इस बात को समझते थे.. पर क्या करे... हरिपद और उसके तीन छोटे भाई बहन और माँ बाप... छह लोगों का परिवार एक अकेले के कमाई से तो नहीं चल सकता न..
परिवार की अवस्था और पिताजी के कहा को सिर माथे ले हरिपद भी जुट गए थे काम पर. हमेशा कुछ न कुछ करते रहते. जहाँ से भी हो, जितना भी हो; काम ज़रूर करते और जितना भी मिलता वो सब घर आ कर अपनी माताजी के हाथ रख देते. शुरू के कुछ महीने तो किसी तरह कॉलेज और काम दोनों को अच्छे से संभाला पर जल्द ही उन्हें इस बात का अच्छे से आभास हो गया कि दोनों नावों पर दोनों पैर रख कर अधिक दिन सवारी नहीं हो सकती और अगर किसी तरह हो जाए तो वह अपने आप में एक बेईमानी होगी, मिथ्याचार होगा. पर काम तो छोड़ा नहीं जा सकता... अगर छोड़ दिया तो जो भी थोड़े बहुत पैसे अधिक आ रहे हैं वो तो छूटेगा ही... साथ ही स्थिति के और अधिक ख़राब होने में अधिक समय नहीं लगेगा.
अतः पढ़ाई छोड़ना ही एकमात्र उपाय सूझा.
सो हरिपद ने किया भी.
पन्द्रह साल गुज़र गए.... आज इनके खुद के पास रोज़मर्रा की ज़रूरतों वाली एक छोटी सी दुकान और दो नावें हैं. दुकान पर कभी हरिपद स्वयं तो कभी उनकी धर्मपत्नी बैठती हैं और दोनों नाव सवारियों को नदी को पार करने के काम में आती हैं.
उन नावों के लिए गाँव के ही दो लड़कों को नाविक रखा हुआ है हरिपद ने.
कुल मिलाकर हरिपद के कर्मठता और सूझबूझ के कारण कमाई अच्छी होती है और घर की स्थिति भी काफ़ी सुधर गई है. पर एक बात जो आज तक हरिपद में नहीं बदला है वो है उसका हर बात में ज़रुरत से ज़्यादा जिज्ञासु होना. जब तक किसी बात के तह तक न पहुँच जाए तब तक उसे शांति नहीं होती, चैन नहीं मिलता.
हरिपद के इसी आदत की कुछ लोग प्रशंसा करते तो कई लोग बुराई करते नहीं थकते. कारण था, अपनी इसी जिज्ञासु प्रवृति के कारण कई बार हरिपद का दूसरों की निजी ज़िंदगी और मामलों में व्यर्थ का टांग अड़ा देना.
बचपन का यार होने के नाते नबीन बाबू हरिपद के इस आदत से बहुत भली प्रकार से परिचित थे... अतः वो हरिपद से ऐसी किसी भी विषय पर बात करने से कतराते थे जो कहीं न कहीं आगे जा कर उनके व्यक्तिगत या पारिवारिक जीवन को लेकर हरिपद के मन में संशय का बीज बो जाए और वो भी अपने प्रश्नों की प्यास के तृप्त न होने तक इधर उधर हाथ पाँव मारता रहे.
हरिपद के मतलबी मुस्कान को समझने में क्षण भर की भी देर न लगी नबीन बाबू को. पॉकेट से बंडल को दुबारा निकाल कर एक बीड़ी निकाली और हरिपद के हवाले कर दिया.
हरिपद की मुस्कान और भी बड़ी हो गई.
सुबह सुबह ही किसी से मुफ्त का कुछ मिल जाए तो कदाचित हर किसी का मन प्रफुल्लित हो ही जाता है एवं मानव स्वभाव से ऐसा होना स्वाभाविक ही है.
अपने कुरते के जेब से एक छोटी माचिस की डिबिया निकालते हुए बीड़ी को होंठों के एक कोने में दबाए रख हरिपद दबी आवाज़ में बोला,
“और... भई नबीन बाबू... सब कुशल मंगल?”
नदी की ओर देखते हुए नबीन बाबू बेफ़िक्री में धुआँ उड़ाते हुए बोले,
“हाँ हरु... ऊपरवाले की दया से सब कुशल मंगल है.. अपनी सुनाओ... कैसी कट रही है ज़िंदगी..?”
बीड़ी सुलगाने के साथ ही एक अच्छे खासे परिमाण में धुआँ छोड़ता हुआ हरिपद बोला,
“ज़िंदगी का क्या है नबीन... कैसी भी हो काटनी - गुजारनी तो पड़ती ही है. खैर, मेरे मामले में भी कह सकते हो कि ऊपरवाले की कृपा है.”
नबीन बाबू एक आत्मीयता वाली हल्की सी मुस्कान लिए बोले,
“बढ़िया... बहुत बढ़िया.”
“बार बार नदी की ओर क्या देख रहे हो नबीन... उस ओर जाना है क्या?... ओह, समझा समझा.. ऑफिस के लिए निकले हो.”
“हाँ. रोज़ इसी समय आता हूँ तट पर... हमेशा एक न एक नाव मिल ही जाती है... पर आज देखो... खड़े खड़े ही दस से पन्द्रह मिनट हो गए पर नाव एक भी नहीं दिखी.”
“अरे होता है ऐसा कभी कभी. थोड़ा और रुको.. आ जाएगी एक न एक. (थोड़ा रुक कर) ... तुम्हारा ऑफिस का समय थोड़ा और पहले होता तो मैं अपने नाव से ही तुम्हें नदी पार करवा देता... रोज़.”
एक दीर्घ श्वास छोड़ते हुए नबीन बाबू ने धीरे से कहा,
“आधे घंटे के बाद मेरी घरवाली भी इधर से ही जाएगी.”
नबीन बाबू के मुँह से ‘घरवाली’ शब्द सुनते ही हरिपद पल भर के लिए बीड़ी पीना ही भूल गया. आँखों के सामने नबीन बाबू की ख़ूबसूरत लुगाई का खूबसूरत चेहरा और उसके समतल पेट की गोल नाभि छा गए.
सत्रह साल पहले जिस दिन नबीन बाबू की शादी हुई थी... हरिपद भी कई बारातियों में से एक था... और उस दिन गाँव के कई बड़े बुजुर्गों को यह कहते सुना था कि ‘नबीन की जैसी लुगाई बहुत किस्मत वालों को ही मिलती है.’
उस दिन तो हरिपद ने ऐसी बातों को नार्मल समझ कर एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल दिया था.. पर ‘बोउ भात’ अर्थात् रिसेप्शन के दिन नबीन के पारिवारिक नियमों के अंतर्गत जब सभी अतिथियों को उनके थाली में घर की नववधू थोड़ा थोड़ा कर भोजन परोस रही थी तब हरिपद ने उस सुन्दर से मुख को देखा था बहुत पास से... एक तो पहले से ही इतनी सुंदर और ऊपर से मेकअप ने नबीन की दुल्हन को पूनम की चाँद से भी कहीं अधिक सुंदर बना दिया था. और फ़िर जब हवा के झोंके से दुल्हन का साड़ी पेट पर से थोड़ा हट गया था तब उस समतल, चिकने सपाट पेट पर वो सुंदर गोल गहरी नाभि तो बस; जैसे हरिपद का साँस ही रुकवा दिया था.
किसी की नाभि तक भी इतनी सुंदर, नयनाभिराम हो सकती है ये उस दिन हरिपद को पता चला था.
सबको थोड़ा थोड़ा कर परोसते हुए जब दुल्हन हरिपद के सामने आई तब नबीन ने ख़ुशी ख़ुशी अपनी दुल्हन का हरिपद के साथ परिचय करवाया था... हरिपद को अपने पति का बचपन का दोस्त जान कर दुल्हन ने होंठों पर एक बड़ी सी मुस्कान लिए हाथ जोड़ कर हरिपद का अभिवादन की. हरिपद ने भी हाथ जोड़ कर प्रत्युत्तर दिया. ऐसा करते समय उसका ध्यान दुल्हन के होंठों की ओर गया.. ‘आह!’ कर उठा उसका मन... होंठों के बीच से झाँकते दुल्हन के सफ़ेद दांत सफ़ेद मोतियों के भांति लग रहे थे.
उस दिन हरिपद को इस बात का प्रत्यक्ष अनुभव हुआ था कि केवल यौनांग नहीं; अपितु कई और अंग भी ऐसे होते हैं जो अलग प्रकार के अथवा यौन सुख जैसा ही सुख दे सकते हैं.
“अरे वो देखो... एक नाव आ रही है!”
इस आवाज़ से हरिपद का ध्यान टूटा.. नबीन बाबू की लुगाई के बारे में सोचते सोचते हरिपद ऐसा खो गया था कि १-२ मिनट उसे लग गए अपने वास्तविक स्थिति को समझने में.
अपने बगल में नबीन बाबू को न पा कर जल्दी नज़रें दौड़ाई उसने.
देखा की नबीन बाबू ‘नाव आई नाव आई’ कहते हुए ख़ुशी से नदी की ओर भागे जा रहे हैं.
नाव में बैठना नबीन को बचपन से ही बहुत अच्छा लगता रहा है. नाव देखते ही नबीन बाबू ख़ुशी से उछलने नाचने लगते थे और आज भी यही कर रहे हैं.
नबीन की इस हरकत को देख कर हरिपद मुस्कराया.
पर तभी, क्षण भर में ही हरिपद के होंठों पर से मुस्कान गायब हो गई...
‘अरे ये क्या... नबीन तो दक्षिण दिशा की ओर जा रहा है! उस दिशा में...तो... उफ्फ्फ़...’
ज़्यादा न सोचा गया हरिपद से.. ‘नबीन...ओ नबीन....’ चिल्लाते हुए नबीन बाबू के पीछे दौड़ पड़े हरिपद.
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(08-06-2020, 12:02 PM)sarit11 Wrote:
Thank You
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३)
आज दिन भर कॉलेज में बहुत व्यस्त रही रुना. कक्षा ३ से ६ तक के बच्चों का वीकली टेस्ट था. सभी कक्षाओं में हिंदी, अंग्रेज़ी और पर्यावरण विज्ञान पढ़ाती है वो. छोटे बच्चों को पढ़ाने में बहुत दक्ष है एवं कड़ी अनुशासन में भी रखना जानती है. लगातार पाँच घंटे से टेस्ट लेते लेते थक गई है बेचारी इसलिए कक्षा ३ में कुर्सी पर बैठ कर सुस्ता भी रही है और टेबल पर रजिस्टर रख कर बच्चों की उपस्थिति का अवलोकन कर रही है... बच्चे चुपचाप रुना द्वारा दिए गए टास्क को बनाने में लगे हैं...
रजिस्टर चेक करते करते अचानक से रुना को आज सुबह घटी घटना याद आ गई..
सुबह जिस तरह से उसका देबू दूधवाले से आमना सामना हुआ, उसकी देह को देख कर देबू जिस तरह से मोहित हो गया था एवं उसके चेहरे के जो हाव भाव हो गए थे... सब याद आते ही रुना के दिल में एक गुदगुदी हो गई.
वो मन ही मन मुस्करा उठी.
मुस्कराने का एक कारण ये भी था कि देबू की नज़रों ने उसके देह और मन में कामोत्तेजना की एक धीमी आँच प्रज्ज्वलित कर दी थी... जैसे जैसे देबू की नज़रें रुना के बदन पर जमते जा रहे थे वैसे वैसे शर्मो ह्या के साथ साथ थोड़ी थोड़ी कर के काम वासना का भी संचार होने लग रहा था रुना में. ब्रा विहीन ब्लाउज के अंदर उसके निप्पल्स धीरे धीरे सख्त हो उठे थे जिस वजह से ब्लाउज पर उनकी छाप से बनने लगी थी और यह चीज़ देबू की नज़रों से छुपी न रह सकी थी.
उसके ब्लाउज पर निप्पल्स वाले स्थान को देख आकर जिस तरह से देबू ने अविश्वास के साथ ज़ोर से थूक निगला था उससे तो रुना लगभग हँस ही पड़ी थी.
देबू के चले जाने के बाद रुना दूध के बर्तन को रसोई में सही जगह रखने के बाद सीधे अपने कमरे में गई और जा कर खड़ी हो गई थी ड्रेसिंग टेबल के सामने. आदमकद दर्पण के सामने खड़ी हो कर अपने जिस्म को स्वयं ही बड़े मनमोहक ढंग से निहारने लगी थी. देबू की दृष्टि ने जो आँच लगाया था रुना के अंदर; उसे अब धीरे धीरे कई महीनों की यौन तृष्णा हवा देने लगी थी.
रुना की बढ़ी हुई धड़कन बीच बीच में एक बार के लिए धौंकनी की तरह तेज़ हो जाती और फ़िर कम होती जाती.
‘टन टन टन टन टन!!!’
कॉलेज की घंटी बजी...
और इसी के साथ रंगीले मनोरम सपनों से एक झटके में बाहर आ जाना पड़ा उसे.
बच्चों को विदा कर, साथी शिक्षक-शिक्षिकाओं से विदा ले कर रुना चल पड़ी अपने घर की ओर... अर्थात् नदी की ओर... मतलब यह कि घर पहुँचने के लिए उसे पहले नदी को पार करना पड़ेगा और फ़िर यही कोई पन्द्रह बीस मिनट चलने के बाद ही सीधे अपने घर पहुँचेगी.
नदी तट पर पहुँचने के साथ ही उसे नाव भी मिल गई.
नाव में ही उसे अपने घर के पास ही रहने वाली एक औरत मिल गई.. मीना.. मीना नाम है उसका. रुना के घर से दो घर आगे रहती है. कई दिनों से एक ही रट लगाए रखी है की उसे भी कहीं छोटी मोटी सी नौकरी करनी है और कॉलेज से बढ़िया जगह और कौन हो सकती है... इसलिए रुना के पीछे पड़ी रहती है हमेशा... ताकि वो अपने कॉलेज में बात करके मीना के लिए कुछ कर दे.
नाव में दोनों साथ ही बैठी इधर उधर की बातें कर रही हैं...
नाव नदी के दूसरे तट के पास पहुँचने के बहुत पहले ही अचानक से धीरे हो गई और धीरे धीरे ही जिस रास्ते चल रही थी उससे परे हट गई.
इस बात पे रुना का ध्यान गया..
हालाँकि ऐसा वो अपने शादी हो कर यहाँ आने के बाद से ही ऐसा होता हुआ देख रही है पर कभी इस विषय पर बात नहीं कर पाई. जिस किसी से भी बात करना चाही; उसने या तो बात को जल्दी से रफ़ा दफ़ा कर दिया या फ़िर आधा अधूरा ही बताया.
रुना के मन में अचानक से एक बेचैनी सी होने लगी.
उसे ऐसा लगने लगा की आज उसे ये बात जानना ही होगा कि सच क्या है...? क्या बातें होती हैं नदी को लेकर...? लोग क्यों भयभीत होते हैं इस नदी के दक्षिण दिशा को लेकर?
वो इधर उधर देखी..
बगल में ही मीना एक पत्रिका पढ़ने में मग्न थी.
रुना को मीना से बढ़िया कोई और न सूझा जो इस विषय पर उससे बात करे.
कोहनी से ज़रा सा धक्का दे कर मीना से पूछी,
“ए.. क्या पढ़ रही है?”
“कुछ नहीं दीदी.. बस यह फ़िल्मी पत्रिका पढ़ रही हूँ... घर में बैठे बैठे बोर हो जाती हूँ न.. इसलिए आज घर से ये सोच कर ही निकली थी कि शहर वाले मार्किट से तीन – चार किताबें खरीदनी ही खरीदनी है... कुल पाँच खरीद ली.. ही ही...”
बोल कर शरारत से खिलखिला उठी मीना.
रुना भी बिना मुस्कराए न रह पाई.
मीना की यही एक बात उसे बहुत भाती है. शादी हुए कितने साल हो गए पर बचपना अब तक नहीं गया उसका. पता नहीं पति से चुदती समय क्या करती होगी..!!
‘चुदती’ शब्द मन में आते ही रुना शर्मा गई.
‘हाय... ये कैसे कैसे शब्द आ रहे हैं दिमाग में... छी...’ मन ही मन सोची.
“क्यों दीदी.. तुम्हें भी पढ़ना है क्या.. पढ़ना है तो बोलो... अभी एक देती हूँ.”
रुना को चुप देख मीना पूछी.
मीना के सवाल से रुना अपने विचारों से बाहर आई..
“नहीं मीना.. पढ़ना नहीं है.. कुछ पूछना है..”
“हाँ पूछो.”
“वादा कर मैं जो भी पूछूँगी वो तू ज़रूर बताओगी...?”
“बिल्कुल दीदी... बिल्कुल बताऊँगी... पक्का.. वादा..”
“और किसी को बताओगी नहीं कि मैंने तुमसे कभी कुछ पूछा और तुमने मुझे उसका जवाब दिया था... यहाँ तक की मेरे पति को भी नहीं.”
रुना के इस बात पे मीना सशंकित हो गई.
थोड़ा रुक कर सोची...
कुछ बोलने ही वाली थी कि तभी उसकी नज़र नदी के दक्षिण दिशा की ओर चली गई..
और मानो उसे अपने आप ही जवाब मिल गया की रुना उससे क्या पूछना चाहती है...
उसने तुरंत ही अपना निर्णय सुना दिया,
“देखो दी, अगर और कुछ पूछना चाहती हो तो ठीक है.. पर अगर इस दक्षिण दिशा के बारे में कुछ पूछना है तो पहले ही बता देती हूँ की मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं है.. माफ़ करो.”
कह कर दूसरी तरफ़ थोड़ा सा घूम कर पत्रिका को दुबारा पढ़ने लगी.
रुना को मीना के इस तरह मना कर देने पर बुरा लगा. कुछ पल सोच कर उसने भी अपना निर्णय सुना दिया,
“ठीक है... मैं तुमसे कुछ पूछना और जानना चाहती थी इस भरोसे के साथ कि तुम ही एकमात्र मेरी वो करीबी हो जो सब खुल कर बताओगी.. पर नहीं.. तुमसे इतना सा भी नहीं हुआ.. कोई बात नहीं... तुम इतना छोटा सा काम नहीं कर सकती तो मैं भी भला कॉलेज में तुम्हारी नौकरी की बात करने जैसी भारी काम कैसे कर पाऊँगी... ना बाबा.. माफ़ करो.”
कह कर रुना भी मुँह फूला कर दिखावटी गुस्सा करते हुए दूसरी तरफ़ घूम कर बैठ गई.
रुना के इस बात पे तो जैसे मीना को काठ मार गया.
‘हे भगवान... ये मैं क्या सुन रही हूँ... रुना दी मेरा काम नहीं कर देगी.. बस इतनी सी बात के लिए कि मैं उन्हें नदी के दक्षिण दिशा के बारे में बताने से मना कर दिया... उफ्फ्फ़... क्या करूँ.. वैसे बात तो सही है... ये पूछेंगी... और मैं बताऊँगी... छोटा सा ही तो काम है.. और वैसे भी दीदी कितनी हेल्पफूल है... मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए.’
ऐसा सोच कर मीना रुना की बायीं बाँह हल्के से पकड़ कर बोली,
“सॉरी दी.. दरअसल ये बात ही ऐसी है की बोलना तो छोड़ो... सोच कर ही जी घबराने लगता है.. तुम पूछो दी.. क्या क्या पूछना है?”
रुना पलट कर मीना को देखी...
मुस्कराई..
बोली,
“ज़्यादा कुछ नहीं.. बस, इस नदी और इसके दक्षिण दिशा को लेकर यहाँ के लोगों के मन में जो आतंक है.. उसके बारे में जानना है.”
मीना धीरे से बोली,
“ठीक है दी.. पर मेरी भी एक शर्त है...”
“क्या?”
“वादा करो की तुम किसी को भी नहीं बताओगी कि मैंने तुम्हें इस नदी और इसके दक्षिण दिशा के बारे में कुछ भी बताया है.”
“ठीक है.. वादा करती हूँ की कभी किसी को नहीं बताऊँगी... और वैसे भी, तू ही सोच.. किसी को ये बता कर मुझे किसी झमेले में फँसना है क्या?” रुना होंठों पर विजयी मुस्कान लिए बोली.
मीना एक गहरी साँस ले कर बोलना शुरू की,
“दीदी, बात है तो छोटी सी... पर है खतरनाक.. कई साल पुरानी बात है. तब हमारा ये गाँव था तो सही पर.. उस समय ये गाँव कम और जंगल का एक विशाल टापू सा लगता था. आज ही की तरह उस समय भी गाँव के लोग काफ़ी मिलनसार और एक दूसरे की मदद को हमेशा तैयार रहने वाले थे. पैसे वाले हो या गरीब, बहुत अच्छी सद्भावना थी लोगों में. बहुत ही अच्छा वातावरण हुआ करता था. इसी गाँव का एक लड़का इसी गाँव की ही एक लड़की के प्यार में पड़ गया. लड़की पैसे वाली थी... लड़का गरीब तो न था पर लड़की जैसा पैसा वाला भी नहीं था. खैर, इधर लड़की भी उसको चाहने लगी थी. दोनों अक्सर चोरी छिपे मिला करते थे. धीरे धीरे दोनों एक दूसरे के बहुत घनिष्ठ हो गए. बहुत करीबी हो गए एक दूसरे के. एक दिन गाँव वालों ने दोनों को रंगे हाथ आपत्तिजनक अवस्था में पकड़ लिया.
पंचायत बैठी.
गाँव के वरिष्ठ और गणमान्य लोग भी थे सभा में.
लड़के और लड़की को बहुत खरी खोटी सुनाई गई.
दोनों को ही गाँव और उनके परिवारों के संस्कार आदि की घुट्टी पिलाई गई. चूँकि इस तरह की ये पहली घटना थी गाँव के इतिहास में; इसलिए इस बात पे की आज के बाद दोनों एक दूसरे से कभी नहीं मिलेंगे, एक दूसरे की शक्ल तक नहीं देखेंगे... दोनों को छोड़ दिया गया. साथ में ये भी घोषणा कर दी गई भरी सभा में की यदि भविष्य में ऐसी घटना की पुनरावृत्ति होती है तो चाहे वो कोई भी हो... उसे कड़ी से कड़ी सजा दी जाएगी. दया और माफ़ी की कोई गुंजाइश नहीं होगी.”
“फ़िर?” मीना को एक क्षण के लिए चुप होती देख रुना व्यग्रता से पूछ उठी.
“फ़िर काफ़ी दिनों तक दोनों ने एक दूसरे को देखा तक नहीं.. दोनों के आपस में मिलने, भेंट करने वाली जैसी कोई बात गाँव वालों के नज़रों में नहीं आई. धीरे धीरे गाँव वाले इस बात को भूल गए. उन्होंने यही सोचा होगा कि शायद दोनों सुधर गए होंगे. पर वास्तविकता कुछ और थी. वह लड़का उस लड़की से मिलता रह रहा था. कैसे... यह किसी को पता नहीं चला. एक दिन अचानक लड़की के घर में कोहराम मच गया. सुबह से लड़की घर से गायब थी... लड़की को अहले सुबह सबसे पहले उठ जाने की आदत थी. उस दिन जब काफ़ी देर बाद भी अपने कमरे से नहीं निकली तो उसकी माँ ने लड़की को जगाने के लिए उसके कमरे के दरवाज़े पर कई बार दस्तक दी थी... पर जब काफ़ी देर तक दस्तक और आवाज़ देने के बाद भी अंदर से कोई जवाब जब न आया तब उसकी माँ ने शोर मचाया. घर के मर्द जब दरवाज़ा तोड़ कर अंदर घुसे तब कमरे से लड़की नदारद थी.
बात फैलते देर नहीं लगी.
लड़की की खोज शुरू हो गई. उस लड़की से संबंधित हर उस स्थान को तलाशा गया जहाँ उसके होने की सम्भावना हो सकती थी. जब काफ़ी खोजबीन के बाद भी लड़की का पता न चला तब लड़की के घर वाले एवं गाँव वालों ने लड़के से पूछना ज़रूरी समझा. हालाँकि लड़की के गायब होते ही लड़के के घर में छापा पड़ चुका था... लड़का भी घर से गायब था. लड़की के माँ बाप से कड़ाई से पूछताछ करने पर पता चला था कि लड़का अहले सुबह ही पास के गाँव अपने दोस्त के यहाँ गया था... उसके साथ मिलकर फसलों की देख रेख करने.
गाँव वाले उस बगल वाले गाँव जाने की तैयारी कर ही रहे थे कि अचानक हल्ला हुआ की कुछ ही देर पहले इसी गाँव के ही मंदिर में से लड़का लड़की को निकलते हुए देखा गया है. संभवतः दोनों ने शादी कर ली है.
शादी कर लेने वाली बात सुन कर लड़की के घर वाले गुस्से से तमतमा गए और गाँव वालों को साथ ले कर चल दिए मंदिर की ओर. पुजारी से तो कुछ खास पता न चल सका पर मंदिर से दस कदम दूर स्थित एक चाय दुकान के आदमी ने बताया की एक लड़का और लड़की को मंदिर की ही कच्ची सड़क से नीचे उतर कर दक्षिण की ओर जाते देखा था. लड़की दुल्हन के जोड़े में थी.
तुरंत ही उस जगह का पता लग गया जहाँ वे दोनों उपस्थित थे.
एक पुराना घर था. वर्षों से वहाँ किसी का आना जाना नहीं था. सबने बाहर से देखा की उसी घर के एक कमरे में मद्धिम बत्ती जल रही है.. रोशनी बस इतनी सी ही थी की उस कमरे में मौजूद आदमी किसी तरह अपने आस पास देख सके. लड़की के घर वालों ने गाँव वालों को बाहर ही रहने का इशारा किया और खुद चुपचाप उस कमरे की ओर बढ़े.
दरवाज़े के पास पहुँच कर एक साथ मिलकर दरवाज़े पर ज़ोर लगाया और तोड़ दिया.. वर्षों पुराना बुरी तरह जर्ज़र हो चुका दरवाज़ा दो ही लात में टूट गया.
अंदर वाकई में वे ही दोनों उपस्थित थे.... और.... बेहद आपत्तिजनक अवस्था में थे...
दोनों को ऐसी हालत में देख कर लड़की के घर वालों का पारा चढ़ गया और वहीँ लड़के को पटक पटक कर पीटने लगे. लड़की विरोध करना चाही पर चाह कर भी कर न पाई. वो बेचारी खुद अपनी वर्तमान स्थिति के कारण शर्मसार थी. घर की महिलाओं ने भी उस लड़की को वहीँ जमकर खरी खोटी सुनाना शुरू कर दिया और साथ ही पाँच – छह हाथ भी जमा दिए. अब तक गाँव वाले भी वहाँ आ चुके थे और लड़की के घर वालों के साथ मिलकर उस लड़के को कूटने लगे. इस पूरे हो - हंगामे के बीच लड़की को किसी तरह से मौका मिला और मौके का फ़ायदा उठाते हुए टूटी हुई खिड़की से छलांग लगा कर भाग निकली. लड़की को अँधेरे में बाहर भागते देख घर वालों के होश उड़ गए और वो भी उस लड़की के पीछे चीखते चिल्लाते हुए भागने लगे. कुछ मिनटों के लिए सबका ध्यान लड़की की ओर गया और इसी बात का फ़ायदा उठा कर लड़का भी किसी तरह वहाँ से निकल भागा.
दोनों दो विपरीत दिशा में भाग रहे थे.
इसलिए कुछ गाँव वाले लड़की के घर वालों के साथ हो लिए और बाकी उस लड़के को पकड़ने उसके पीछे भागे.”
इतना कह कर मीना चुप हुई..
अपने हैण्ड बैग से पानी की बोतल निकाली और इधर उधर देखते हुए थोड़ा थोड़ा कर पीने लगी.
रुना से ज़रा सी देरी सही न गई और व्यग्रता से पूछने लगी,
“अरे आगे बोल न... आगे क्या हुआ..? दोनों पकड़े गए? पकड़ कर क्या किया गया उन दोनों के साथ?”
बोतल को वापस बैग में भरते हुए मीना बोली,
“नहीं दी, पकड़े नहीं गए... कहते हैं कि गाँव वालों के प्रचंड गुस्से से बुरी तरह डर कर अपने होशोहवास खो कर बेतहाशा इधर उधर भागता हुआ वह लड़का अपनी जान बचाने के लिए नदी में कूद गया... काफ़ी दूर तक हाथ पाँव मारते हुए तैरते हुए निकल गया... इधर गाँव वाले भी कुछ कम न थे.. जल्द से जल्द पास ही लगी कुछ नावों को लिया और उनपे सवार हो कर लड़के के पीछे लग गए. अपने को घिरता देख कर लड़का नदी के दक्षिण दिशा की ओर बढ़ गया. उन दिनों पिछले एक सप्ताह से काफ़ी बारिश हो रही थी. सावन का महीना हो या भारी वर्षा वाले दिन... इस नदी का दक्षिण दिशा हमेशा से ही कुछ अधिक ही गहरा हो जाता है.. ऐसा और कहीं होता है की नहीं ये पता नहीं दी, पर यहाँ... इस नदी में ऐसा ही होता आ रहा है न जाने कब से... लड़का दक्षिण दिशा में थोड़ा आगे बढ़ा ही था कि गहराई ने उसे अपने में समेट लिया. लड़का चीखता चिल्लाता रहा... हाथ जोड़ता रहा... गाँव वालों की ओर ... की उसे बचा ले... लेकिन गाँव वाले तो खुद ही दूर थे उससे... जब तक उस क्षेत्र विशेष तक पहुँचते... लड़का गहराई में समा गया था... हमेशा के लिए.”
“और लड़की का क्या हुआ?”
“उस दिन अँधेरे का लाभ उठा कर वह कहाँ चली गई थी किसी को पता नहीं चला था.. हालाँकि खोजना बदस्तूर जारी था... दो दिन बाद पास ही के एक जंगल में; एक पेड़ की ऊँची डाली पर से लड़की का शव बरामद हुआ था... फाँसी लगा ली थी... बेचारी... न घर की रही थी न घाट की...”
“ओह!”
पूरी कहानी को सुन कर रुना का मन उदास हो गया.
दोनों लड़के लड़की की मौत जिस प्रकार हुई... उसे जान कर रुना का मन रुआंसा हो गया...
उसके कान और कुछ सुनना नहीं चाहते थे.. पर मन जानता था कि अभी कुछ और जानना शेष रह गया है...
“पर.. दक्षिण दिशा से डरने का कारण क्या हुआ मीना... यही की वो लड़का उस दिन वहाँ डूब कर मर गया था...? इसलिए लोग उस तरफ़ से नहीं जाते की कहीं उनकी भी हालत उस लड़के जैसी न हो जाए.. अंधविश्वास?”
रुना के इस सवाल पर मीना ने उसे पैनी नज़रों से देखा... मानो समझ नहीं पाई की रुना केवल प्रश्न कर रही है या प्रश्न के आड़ में कटाक्ष...?
कुछ क्षण चुप रह कर बोली,
“नहीं दी.. अंधविश्वास नहीं.. वास्तविकता है.”
“क्या वास्तविकता है?”
“जिस दिन वो लड़का उस दिशा में उस विशेष जगह डूबा था.. उसके सप्ताह भर बाद से ही उस दिशा में उसी विशेष जगह और उसके आस पास निरंतर दुर्घटनाओं का एक सिलसिला शुरू हो गया... नावें डूबने लगीं... लोग मरने लगे... कई के शव मिलते तो कई के नहीं... उस हादसे वाले दिन के बाद अगले लगातार दो महीने में पचास से ज़्यादा लोगों की या तो मृत्यु हो गई... या फ़िर... गायब ही हो गए... जो गायब हो गए.. उनका कभी कुछ पता नहीं चला..”
नाव अब तक किनारे पर लग चुकी थी;
इसलिए अपनी बात को अधूरी छोड़ते हुए मीना उठ गई... मीना और रुना के साथ साथ नाव में जितने लोग सवार थे वे सब भी उतर गए.. वैसे कुछ खास नहीं थे.. उन दोनों और नाविक को मिला कर कुल सात जन थे नाव पर... चूँकि दोनों काफ़ी धीमे स्वर में बात कर रही थीं इसलिए और कोई उन दोनों के बीच हो रही बातों को सुन नहीं पाया..
घर की ओर चलते हुए रास्ते में मीना ने कहा,
“एक और बात है दी; नाव में चाहे एक ही महिला क्यों न हो... नाव उस दिशा से और भी अधिक दूरी बना कर अपने गन्तव्य की ओर जाते हैं... महिलाओं को विशेष रूप से उस दिशा से दूर रखा जाता है.”
रुना अचरज भरे स्वर में पूछी,
“ऐसा क्यों?”
“क्योंकि आज तक जितनी भी महिलाओं की उस दिशा में उस जगह में डूबने से मृत्यु हुई है... उनके शव तो अवश्य मिले हैं... पर जब डॉक्टरी जाँच की गई तो पता चला है कि उस महिला से जी भर कर दरिंदगी की गई है... जम कर शोषण किया गया है उसका... ऐसा समझो की बिना चबाए उस महिला के जिस्म को हर जगह से खा लिया गया है.”
भय से रुना का चेहरा फक पड़ गया...
धीरे से बोली,
“तुम्हारा मतलब...र... रेप?”
“हाँ दी.”
मीना ने छोटा सा जवाब दिया.
फ़िर पूरे रास्ते चलते हुए दोनों में से किसी ने भी एक दूसरे से कुछ नहीं कहा.
लेकिन इधर दोनों को ही पता नहीं था कि नदी से लेकर किनारे तक और फ़िर किनारे से लेकर उनके घर तक कोई उन्हें लगातार देख रहा था..!
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Bht hard bhai kya khub likhi hai.. dil chu liya
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(09-06-2020, 10:51 PM)Nitin_ Wrote: Behtareen story hai bhai
बहुत धन्यवाद आपका
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(10-06-2020, 12:10 AM)Abstar Wrote: Bht hard bhai kya khub likhi hai.. dil chu liya
बहुत बहुत धन्यवाद आपका
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(10-06-2020, 01:55 PM)Lustkingalone Wrote: Story bohot mast hai
बहुत धन्यवाद.
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inteesting
बहुत जबर्दस्त कहानी लग रही है.....................
हॉरर से ज्यादा मुझे...........क्राइम थ्रिलर लग रही है
देखते हैं आगे
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Bahot achchhi shuruaat kahani ki. Ab aayega asli mazaa.
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४)
एक दिन सुबह उठते ही रुना को अपना शरीर भारी और हल्का; दोनों ही लगने लगा. ऐसा पहले कभी हुआ नहीं था उसके साथ. बिस्तर पर उठ बैठी. आँखें खोलना चाही पर नींद तो जैसे जम कर पलकों पर बैठ गई हो. फ़िर भी कोशिश करते करते किसी तरह आँख खोल पाई. संयोग ऐसा हुआ की आँख खोलते ही अपने बदन पर ही सबसे पहले उसकी नज़र गई.
और इसी के साथ बुरी तरह चौंक उठी वह.
सीने पर उसके तो ब्लाउज है ही नहीं..!
सिर्फ़ ब्रा में है और उसमें भी नब्बे प्रतिशत चूचियाँ ब्रा कप से ऊपर उठ कर बाहर की ओर झलक रही हैं... और ऐसा हो भी क्यों न... ब्रा तो खुद भी अधखुली सी है... एक स्ट्रेप कंधे पर से उतरी हुई है. साड़ी तो जैसे हो कर भी नहीं है बदन पर.. ज़रा सा हिस्सा ही कमर पर किसी तरह लिपटा हुआ है ...वो भी सिर्फ़ जांघों तक ही.!
आशंकित सी हो पलट कर बिस्तर पर अपने बगल में देखी.
पति पेट के बल लेटे मुँह दूसरी ओर किए अभी भी गहरी नींद में सो रहा है.
रुना जल्दी से पलंग से उतरी.. और कमरे में ही मौजूद अटैच्ड बाथरूम में घुस गई.
कपड़ों को ठीक करने के बाद ब्रश वगैरह की.
मुँह अच्छे से धोकर बाथरूम से निकलने के बाद रुना को अच्छा तो लग रहा था पर बदन अब भी टूट रहा था. आँखों पर इतना पानी देने, इतना धोने साफ़ करने के बाद भी नींद तो जैसे अंगद के पाँव की तरह आँखों पर जम गई थीं.. पति को ऑफिस के लिए देर न हो जाए ये सोच कर वो अपने वर्तमान शारीरिक अनुभूतियों को छोड़ नीचे उतर कर सीधे रसोई में घुसी.
कुछ देर में पति के लिए टिफ़िन तैयार कर के उन्हें जगाने ऊपर अपने कमरे में गई. सुबह का नाश्ता के साथ साथ अपने और अपने पति के लिए टिफ़िन जल्दी बन जाने के कारण रुना थोड़ा खुश थी. दो दिन हुआ बिट्टू अपने नाना नानी के पास (मामार बाड़ी) चला गया है. इसलिए चाहे नाश्ता हो, टिफ़िन हो या फ़िर दोपहर और रात का खाना; रुना को थोड़ा कम ही मेहनत करनी पड़ रही है पिछले दो दिन से.
कमरे में पहुँच कर पलंग पर अभी भी बेख्याली से सोये अपने पति को देख कर मुस्कराई.
पति को तीन चार बार आवाज़ दी ... उठने को बोली... पर पति ने कोई जवाब नहीं दिया.
अचरज हो जैसे ही पति के पास जा कर उन्हें हाथ लगा कर उठाने को हुई; अचानक से उसे अपना सिर फ़िर भारी सा लगने लगा. झुकी हुई स्थिति से तुरंत सीधी हो कर खड़ी हो गई. ध्यान दी, सिर सच में भारी हो गया है. नींद ठीक से न हो पाने को कारण मानते हुए वह तुरंत बाथरूम में घुसी और वॉशबेसिन का नल चला कर आँखों और मुँह पर ज़ोर ज़ोर से पानी लेने लगी.
पूरे दो मिनट तक वो जम कर अपने चेहरे, आँखों पर पानी लेती रही.
इस क्रम में उसकी साड़ी का ऊपरी हिस्सा और ब्लाउज भी बहुत भीग गए. करीब 70% तक ब्लाउज बुरी तरह भीग कर उसके बदन से चिपक गया. भीगे कपड़ों में खड़े रहने पर जैसा आभास होता है ठीक वैसा ही अब रुना को होने लगा.
नल बंद की..
वॉशबेसिन के ऊपर लगे आईने में खुद को देखने के लिए चेहरा ऊपर उठाई...
पलकों पर अभी भी बहुत पानी होने के कारण तुरंत आँख खोल कर देख नहीं पाई.
और जब आँखें खोल पाई, तब आईने में जो देखी... जो दिखा उसे... उसे बिल्कुल भी विश्वास नहीं हुआ. कुछ क्षण अपलक देखती रही वो आईने में. कुछ पल आईने में देखते हुए उसे ऐसा लगने लगा मानो उसे बहुत नींद आ रही है... उसकी आँखें बंद होने लगीं... उसे उसी समय बिस्तर पर जा कर लेट जाने का मन करने लगा. उसकी धड़कने धीरे धीरे तेज़ होने लगी.
वॉशबेसिन के दोनों साइड को अपने हाथों से कस कर पकड़ कर खुद को खड़ा रखने की कोशिश करने लगी. आईने में जो कुछ दिखा उसे; उसे कन्फर्म करने के लिए दुबारा देखने की कोशिश की.. पर आँखें अब बंद हो आई थीं... जो उसके लाख चाहने के बावजूद खुलने को राज़ी नहीं हो रहे थे.
खुद को सम्भालने के लिए कुछ सोचती; कि तभी वो चिहुंक उठी...
और ऐसा करने को विवश किया दो मर्दाना हाथों ने जो उसके पेट को पीछे से दोनों साइड से सहलाते हुए अपने आगोश में ले लिया था. दो गर्म हथेलियों का स्पर्श अपने पेट की नर्म त्वचा पर पाते ही रुना पहले डर ज़रूर गई थी पर जल्द ही उसका सारा डर उन हाथों की कोमल सहलाहट ने दूर कर दिया.
उन दोनों हाथों ने नर्म और कोमल तरीके से रुना के पेट, नाभि और कमर का मसाज करना शुरू कर दिया. इतने प्यार से कि कुछ ही पलों में रुना ने खुद को, अपने सिर दर्द को, अपने टूटते बदन की पीड़ा को उन हाथों के स्पर्श से हो रही चमत्कारिक सुख के हवाले कर दिया. किसी के भी हाथों के स्पर्श से ऐसी सुख की कभी आशा नहीं की थी रुना ने.
अब तक आँचल भी सीने पर ढीला हो कर कंधे से सरक कर बाएँ हाथ पर किसी तरह फँस कर रह गया था.
पर रुना को तो अब इसकी भी सुध नहीं थी...
उसे तो ये तक पता नहीं चला कि उन हाथों ने उसकी साड़ी को पेटीकोट सहित कमर व नाभि से नीचे.... बहुत नीचे कर दिया था. मतलब इतना नीचे कि शायद अगली एक और कोशिश में रुना की गांड की दरार और सामने से झांटें दिख जाए.
कुछ देर बड़े प्यार से चर्बीयुक्त कमर को मसलने के बाद वे हाथ धीरे धीरे ऊपर उठने लगे... बिल्कुल मेरुदंड की सीध में... उठते उठते ब्लाउज के बॉर्डर के पास जा रुके... फ़िर उस पूरे जगह को दोनों अँगूठों की मदद से थोड़े दबाव से मसाज किया जाने लगा.
रुना की सांसे गहरी और लंबी होने लगी.
इधर दोनों हाथ अब ब्लाउज के बॉर्डर को थोड़ा ऊपर कर अंदर घुस चुके थे... एक साथ दोनों हाथों को न संभाल पाने के कारण पीठ के तरफ़ से ही ब्लाउज का सिलाई दो साइड से खुल गया जिससे अब तक बदन पर फ़िट बैठता ब्लाउज अब अपेक्षाकृत ढीला हो गया. दोनों हाथ अब बहुत सरलता से ब्लाउज के अंदर रहते हुए पूरे मांसल पीठ पर घूमने लगे.
भरे पीठ को अच्छे से मसलते हुए वे दोनों हाथ बहुत बेहतरीन मसाज दे रहे थे.
मदहोशी में होने के बावजूद कुछ अटपटा सा ज़रूर लग रहा था रुना को पर वो इस मसाज वाले शारीरिक सुख को अभी तुरंत न तो रोक सकती है और ना ही रोकना चाहती है. जिस तरह इन हाथों ने उसके चर्बीयुक्त कमर, पेट और यहाँ तक की नाभि को रगड़ रगड़ कर आराम दिया है; ऐसा आराम वो अपने पूरे बदन पर पाने को इच्छुक हो गई. उसका रोम रोम इस मर्दाना छुअन से पुलकित हुआ जा रहा था. मन के किसी कोने में एक तमन्ना ऐसी जगने लगी थी कि काश ये हाथ अब उसके स्तनों पर जाए और जिस प्रकार अभी तक उसके शरीर के दूसरे अंगों को आराम मिला ठीक वैसा ही आराम ये हाथ उसके स्तनों का बेरहमी से मर्दन कर के दे.
अचानक उसे लगा जैसे पीठ पर पड़ने वाला दबाव कम हो गया... कम ही नहीं बल्कि दबाव एकदम से ही हट गया. पर.. पर... दोनों हाथ तो अब भी वहीँ हैं... उसके पीठ पर ... उसके भरी हुई पीठ का आनंद लेते हुए उसे आनंद देने का काम करते... तो फ़िर..?
क्षण भर बाद ही उसे उसका उत्तर मिल गया... और ऐसा होते ही स्त्री सुलभ एक मोहक लाज उसके सुंदर मुखरे पर बिखर गई.
उन दो हथेलियों के अलावा जो चीज़ रुना के पीठ पर दबाव बना रहा था और जो अभी अभी एकदम से हट गया; वो था उसकी ब्रा की हुक. उन हथेलियों की करामाती अँगुलियों ने बड़े ही सरलता से उसके हुक को खोल दिए जिसका पता खुद रुना को कम से कम दो तीन मिनट बाद लगा.
अब तो वे हथेलियाँ और भी स्वतंत्र रूप से पूरे पीठ का भ्रमण करने लगे... जहाँ मन करे वहीँ रम जाए ... और फ़िर बड़े अच्छे तरीके से बिना तेल के ही मर्दन करने लग जाए.
काम पीड़ित होती जा रही रुना उन हथेलियों का स्पर्श अपने यौनक्षुद्रात स्तनों पर पाने की कामना में इतनी ही विभोर हो गई थी कि उसे अपने बदन के दूसरी जगह पर होते छेड़छाड़ का रत्ती भर भी पता न चला. पता ही कब और कैसे उसकी साड़ी पेटीकोट सहित उसके भरे गोल पिछवाड़े पर से और नीचे सरक गई थी और अब तो किसी प्रकार इस तरह ऊपरी जांघों के इर्द – गिर्द इस तरह लिपटी – अटकी हुई थी की अब गिरे तो तब गिरे!
और अब एक और मर्दाना अंग अपने काम पर लग चुका था.
जोकि बड़े प्रेम और समर्पित भाव से रुना के गांड के दरार पर ऊपर नीचे हो रहा था. एक बार ऊपर से नीचे आता.. फ़िर नीचे से ऊपर.... फ़िर ऊपर से नीचे... पर अब की बार बीच में ही रुक कर कुछेक क्षणों के लिए दरार पर हल्का दबाव डालता... और फ़िर नीचे जाता... और फ़िर वही काम शुरू से शुरू होता.
ऐसी लगातार हरकतों ने रुना को गर्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
चरम यौनेतेज्जना में ‘म्मम्म....आह्ह्ह..’ करने लगी..
उस गर्म अंग का यूँ बार बार ऊपर नीचे हो कर उसकी तृष्णा को बढ़ा कर छोड़ देना; ये उससे सहन नहीं हो रहा था. वो उस अंग को जल्द से जल्द अपने में समाहित करना चाहती थी. इसलिए धीरे धीरे अपनी गांड को पीछे करने लगी... उसके ऐसा करने के बावजूद वह अंग अपने पूर्व की हरकत से तनिक भी नहीं डिगा और पहले की तरह ही दरार पर ऊपर नीचे होता रहा.
रुना के बर्दाश्त के बाहर होने लगा ये सब अब. उसके अतृप्त मन ने ठान लिया की अब चाहे जो हो, जैसे भी हो, जितना भी हो.. वो उस गर्म फड़कते अंग को अपने अंदर ले कर रहेगी. ये सोचने के साथ ही उसने अपनी गांड को आगे पीछे करना शुरू किया. तीन से चार बार ऐसा की ही थी कि कानों से एक आवाज़ टकराई,
“रुना....ओ रुना...”
पर उसने ध्यान नहीं दिया... वो तो बस अपने अतृप्त मन की अधीन हो अपने जिस्म के एक एक रोएँ को आराम... सुख देना चाहती थी.
आवाज़ फ़िर गूँजी..
और साथ ही किसी ने उसके बाँह को पकड़ कर झकझोड़ा,
“अरे रुना... उठो... क्या कर रही हो??”
रुना अचानक से हड़बड़ा कर उठी,
और इसी के साथ वर्तमान स्थिति को देख कर हतप्रभ रह गई...
सीने पर आँचल अनुपस्थित है.. ब्लाउज के सारे बटन खुले हुए हैं... ब्रा भी गैर हाजिर... पेटीकोट कमर तक उठा हुआ और खुद उसका हाथ... बायीं हाथ की मध्यमा और अनामिका ऊँगली उसकी चूत में अंदर तक प्रविष्ट हैं जो खुद भी गीली है!
रुना अविश्वास से अपने आस पास देखी...
बगल में ही उसके पति श्री नबीन मुख़र्जी, अर्थात् “नबीन बाबू” बड़े आश्चर्य से आँखें फाड़े उसे देख रहे थे...
बोले,
“रुना.. ये क्या कर रही हो... सुबह सुबह ही... छी: ... कोई और समय होता तो और बात होती... क्या हुआ है तुम्हें..?”
सेक्स को लेकर नबीन बाबू आज भी उतने ही अपरिचित हैं जितना की सत्रह साल पहले अपने शादी के समय थे.. सफलता बस इतनी ही रही की किसी तरह अपने खड़े अंग को किसी तरह रुना के ताज़ी योनि में डाल पाए और समय समय पर थोड़ा बहुत कर के एक संतानोपत्ति कर पाए.
ऐसा नहीं की सेक्स के मामले में एकदम भोंदू हैं नबीन बाबू... फ़िर भी सेक्स किसी रॉकेट साइंस की ही तरह रहा है हमेशा से उनके लिए.
“ज..जी... वो....म”
“चलो चलो... जल्दी उठो... मुझे देर हो रही है.. आठ बजने को आया है.”
“आप नहा लिए?”
“हाँ.”
“ओह.. ठीक है. नाश्ता टेबल पर है. खा लीजिए.” खुद को सम्भालते हुए बोली रुना.
नबीन बाबू कुछ बोले नहीं.. आश्चर्य से देखते रहे रुना को.
रुना को अजीब लगा.. बोली,
“क्या हुआ... क्या देख रहे हैं?”
“देख रहा हूँ की ये तुम क्या अनाप शनाप बक रही हो... तुम सुबह से एक बार भी उठी ही कब थी? मैंने तुम्हें उठाया... अभी... जब उठी ही नहीं तब नाश्ता कैसे बना ली?”
“ओह्हो... मैं बना चुकी हूँ... टेबल पर है... चलिए .. दिखाती हूँ.”
रुना नबीन को लेकर नीचे वाले कमरे में आई...
“देखिए... टेबल प...”
डाइनिंग टेबल की ओर इशारा करते करते रुना के हाथ और होंठ थम गए.
टेबल पर कुछ नहीं था!
रुना आश्चर्य से दोहरी हो गई.
उसे अपने सामने खाली टेबल को देख कर खुद पे विश्वास नहीं हो रहा था.
कहाँ गया सारा नाश्ता...??
कुछ देर पहले ही तो रखी थी....
नबीन बाबू कुछ बोले नहीं.. काम के प्रेशर का नतीजा बता कर उसे कॉलेज से छुट्टी लेकर आज घर पर ही रहने को कहा.
नबीन का बिना कुछ खाए ही ऑफिस के लिए निकल जाते देख रुना को बहुत दुःख हुआ.
पर दुखी होने से भी ज़्यादा अपने साथ सुबह से हो रही घटनाओं को लेकर परेशान हो रही थी.
बिस्तर पर लेटी हुई पूरे घटनाक्रम के बारे में सोच ही रही थी कि मुख्य दरवाज़े पर दस्तक हुई.
साथ ही एक आवाज़ भी आई,
“मैडम जी, दूध ले लीजिए...”
इच्छा तो नहीं थी उठने की... फ़िर भी उठी....
रसोई में गई, बर्तन ली और जा कर दरवाज़ा खोल कर बर्तन आगे बढ़ा दी.
“नमस्ते मैडम जी.”
“हम्म.. नमस्ते.”
अनमने भाव से रुना प्रत्युत्तर देते हुए देबू की ओर देखी.. और एक बार फ़िर बुरी तरह चौंक उठी,
“अरे...ये क्या.... ये तो बिल्कुल सुबह जैसे.... उफ़..!!”
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(10-06-2020, 10:52 PM)Momhunter Wrote: Great start
(11-06-2020, 06:20 PM)harishgala Wrote: Update please
(11-06-2020, 06:20 PM)harishgala Wrote: Good story update please
(13-06-2020, 07:33 PM)kamdev99008 Wrote: inteesting
बहुत जबर्दस्त कहानी लग रही है.....................
हॉरर से ज्यादा मुझे...........क्राइम थ्रिलर लग रही है
देखते हैं आगे
(14-06-2020, 02:32 AM)doctor101 Wrote: Bahot achchhi shuruaat kahani ki. Ab aayega asli mazaa.
(14-06-2020, 03:39 PM)harishgala Wrote: Waiting for update
आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद.
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