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Adultery कुंवारी लड़की की कहानी
#1
कुंवारी लड़की की कहानी

दो माह पहले ही मैं अठारह वर्ष की हुई. पापा ने मेरे जन्मदिन को स्पेशल बनाने में कोई कर नहीं छोड़ी. होटल में पार्टी अरेंज की गयी. मेरे स्कूल कॉलेज के दोस्तों के साथ ही रिश्तेदार भी थे. और उस वक्त तो मैं खुशी से पागल हो गयी जब केक काटने के दौरान हेप्पी बर्थ डे का गायन समाप्त होते ही मेरे सामने गिफ्ट के रूप में बीस हजार रूपये मूल्य का स्मार्ट फोन था, सब फीचर थे उसमें और जियो की सिम. डेढ़ जीबी रोज इंटरनेट डाटा.
अब मैं एडल्ट हो गयी थी. इसके पहले की मेरी जिन्दगी बहुत ही मासूम रही. पापा की परी और माँ की लाड़ली थी. घर से स्कूल और स्कूल से घर. मगर अब तो क़ानून और मेडिकल साइंस दोनों मुझे मंजूरी देते हैं कि मैं जिन्दगी के नये मोड़ को भी समझूं और उसे जियूं. बस इसी भावना ने मेरी जीवन शैली में परिवर्तन किया और वह घटना घटी, जिसे मैं पहली कहानी के रूप में आपके सामने पेश कर रही हूँ.
घर में हम तीन ही सदस्य हैं. माँ, पापा और मैं. पापा डॉक्टर हैं. माँ एडवोकेट हैं. मैं बी.एससी. कर रही हूँ. साथ ही नीट की तैयारी भी कर रही हूँ. अगर पास हो गयी तो डॉक्टर बनूंगी. नहीं पास हो पायी तो सोचूंगी कुछ और!
दिन में घर पर अकेली ही रहती हूँ. एक दो दिनों में ही मैं मोबाइल के सारे फंक्शन समझ गयी. उस दिन पहली बार मोबाइल पर एडल्ट कंटेंट सर्च की. कुछ वीडियो देखे. इसी सर्च के दौरान मैं अन्तर्वासना तक पहुँच गयी. जहां आप मुझसे मुलाक़ात कर रहे हैं.
अन्तर्वासना पर मैंने हर श्रेणी की एक दो कहानियाँ पढ़ीं. आश्चर्य से भर गयी. ऐसा भी होता है. यहाँ तो कोई किसी को नहीं छोड़ रहा है. न पिता, न भाई, न अंकल, न पड़ोसी, न शिक्षक. सब एक ही कार्य में लगे हैं. क्या वाकई ऐसा होता है. फिर ध्यान आया कि कभी कभी समाचारों में भी देखने पढ़ने को मिलता है कि रिश्तों की मर्यादा तार तार हो गयी. पिता अपनी बेटी के साथ कई वर्षों तक यौनक्रिया करता रहा आदि आदि. तो होता है ऐसा.
अब मेरा भी मन मचलने लगा. मैं भी इस अनुभव से गुजरने की सोचने लगी. शादी को तो अभी कम से कम पांच सात वर्ष हैं. या तो इतना इन्तजार करूं या फिर कोई जुगाड़ लगाऊं. इतंजार अब होने का नहीं तो क्यों तकलीफ में रहूँ. बस एक बार करके देखती हूँ, ऐसा मैंने सोचा और आँखों को खुला छोड़ दिया. तलाशो अपने लिए कोई बांका यार.
मैंने अपने आपको विशेष रूप से सजाना संवारना प्रारम्भ कर दिया. कांच के सामने खड़े होकर अपने को निहारती रहती हूँ. बिना कपड़ों के भी और फैशनेबल कपड़े पहनकर भी.
मेरे कमरे में ही बाथरूम है. वहां से नहाकर निकलती हूँ तो तन पर एक भी वस्त्र नहीं रहता है. कमरे में ड्रेसिंग टेबल है. आदमकद है ड्रेसिंग टेबल. गीले बदन के साथ उसके सामने खड़ी होती हूँ तो अपने पर ही मोहित हो जाती हूँ. पांच फीट पांच इंच का मंझला कद है मेरा. रंग एकदम गोरा. जैसे किसी ने मक्खन में थोड़ा सा सिंदूर मिला दिया हो. चेहरे पर चमक है जो इस उम्र की लड़कियों में होती ही है. आँखें बड़ी बड़ी हैं. होठ एकदम लाल सुर्ख हैं. सुराहीदार गला है. सोने की चेन पहनती हूँ.
गले से नीचे नजर जाती है तो कहना ही क्या. मेरा सीना जबर्दस्त है. मेरी सहेलियां मुझे छेड़ा करती हैं. बड़े बड़े उरोज हैं. एकदम सफेद झक्क. छोटे छोटे निप्पल हैं. निप्पल के आसपास भूरे रंग के दो घेरे हैं.
पेट सपाट है. नाभि गोल और सुदर है.
और नीचे आइये ना … हल्के हल्के बाल उग रहे हैं. अभी तक एक बार भी मैंने नहीं काटे हैं. बालों का रंग सुनहरा है और सुनहरे बालों से घिरी हुई है मेरी चूत. चूत की फांकें थोड़ी उभरी हुई हैं. गुलाबी आभा लिए यह चूत किसी को भी मदहोश कर देने के लिए काफी है.
जब मैं दर्पण में खुद को देखती तो इस बात के लिए आश्वस्त हो जाती कि इस कायनात में कोई भी बन्दा ऐसा नहीं होगा जिसको मैं चाहूँ और वो मेरा न हो सके. मेरे पास पूरा मायाजाल था. बस अब एक ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जिसके साथ मैं वयस्कता यानि एडल्टहुड का अनुभव कर सकूं. सुरक्षित भी रहूँ. बदनामी भी न हो. माता पिता मेरे बड़े प्रतिष्ठित हैं. उनका नाम खराब न हो इस बात की भी मुझे फ़िक्र है.
किसके साथ लूँ यह रंगीन अनुभव? जिस पॉश कालोनी में मैं रहती हूँ वहां एक से बढ़कर एक स्मार्ट लड़के हैं. जब मैं अपनी स्कूटी से निकलती हूँ तो सब हसरत भरी निगाहों से देखते हैं. उम्रदराज लोग भी ताकते रहते हैं. फब्तियां भी कसते हैं. कॉलेज में मेरे क्लास फेलो लड़के भी हमेशा मेरे इर्द गिर्द घूमते रहते हैं. इनमें से कोई भी मेरी एक मुस्कान से ही मेरे कदमों में आ पड़ेगा.
परन्तु मैं ऐसा नहीं चाहती हूँ. इससे बदनामी हो सकती है.
कोई ऐसा लड़का हो, जिससे मैं पहली बार मिलूं और मेरा काम हो जाये.
मैंने तलाश जारी कर दी. जहाँ चाह वहां राह.
माम डेड के जाते ही उस दिन मैं भी अपनी स्कूटी से घर से निकल गयी. बड़े शहर में रहती हूँ. नाम नहीं बताऊँगी. घर से दस बारह किलोमीटर चलते हुए एक काफी हाउस के बाहर रुकी. अंदर गयी और काफी पीते हुए अपने जीवन के पहले अनुभव के लिए साथी की तलाश करने लगी.
कोई नहीं दिखा ढंग का बन्दा … निराश होकर बाहर आ गयी.
स्कूटी पर बैठकर स्टार्ट की तो वह घुर्र घुर्र करके बंद हो गयी. बार बार कोशिश करने के बाद भी वह चालू नहीं हुई. आठ दस बार किक भी मारी, मगर ढाक के तीन पात. कोई परिणाम नहीं निकला.
तभी वहां एक लड़का आया. बहुत ही शालीनता से बोला- छोड़िये ! मैं कर देता हूँ स्टार्ट!
मैंने देखा तो धड़कन बढ़ गयी. बस यही है, जिसकी मुझे तलाश थी.
मैंने उस दिन मेरून रंग का बड़े गले का टॉप पहना था और बहुत ही टाईट जींस थी. बूब्स तो आधे से अधिक दिख रहे थे. थोड़ा सा झुकती तो दोनों बाहर भागने को तैयार हो जाते. अगर कोई थोड़ा ध्यान से मेरी जींस की तरफ देखता तो उसे मेरी चूत की बनावट का आभास हो जाता और गांड का तो कहना ही क्या. वह तो जींस फाड़कर बाहर निकलने को बेताब थी.
मैं थोड़ा झुकी और स्कूटी से अलग हटकर खडी हो गयी.
उस लड़के ने जमकर दो तीन किक मारी और गाड़ी स्टार्ट हो गयी.
मुझे गुस्सा आया. इतनी जल्दी स्कूटी ऑन हो गयी. पर प्रकट रूप में कहा- थेंक्स !! आपने आते तो बहुत तकलीफ हो जाती मुझे.
वह- मेरा नाम धर्मेन्द्र है. मैं ऑटोमोबाइल इंजीनियर हूँ. मेरे लिए किसी भी गाड़ी को ठीक करना बाएं हाथ का खेल है.
मैं- और मेरा नाम नंदिनी है. मैं डॉक्टर बनने की कोशिश कर रही हूँ.
धर्मेन्द्र- गुड … अब मैं चलूं?
मैं- जी, मगर मुझे यहाँ से दस किलोमीटर जाना है, अगर गाड़ी फिर बंद हो गयी तो?
धर्मेन्द्र- वैसे तो बंद नहीं होगी अब आपकी गाड़ी, आप किस तरफ जा रही हैं?
मैंने अपने घर की उल्टी दिशा के बारे में बता दिया.
धर्मेन्द्र- अरे वाह! उधर तो मेरा भी घर है. चलिए मैं भी उधर ही जा रहा हूँ. रास्ते में अगर कोई तकलीफ हुई तो मैं आपकी हेल्प कर दूंगा.
मैं तो तैयार ही थी. चल दी साथ. धर्मेन्द्र की मोटर सायकल स्टायलिश थी.
कोई आठ किलोमीटर जाने के बाद धर्मेन्द्र ने एक मल्टी के सामने अपनी मोटरसायकल खडी कर दी और बोला- यहीं मैं रहता हूँ. अब आपका घर भी पास में ही है. अब आपको कोई दिक्कत नहीं आयेगी. आप चाहें तो मेरे घर चलिए, काफी पी लीजिये.
इसके पहले कि धर्मेन्द्र का इरादा बदलता मैंने तुरंत स्कूटी साइड में लगाई और उसके साथ उसके घर आ गयी.
धर्मेन्द्र एक जेंटलमेन था. वह कोई कोशिश नहीं कर रहा था. मैंने एक लड़की थी और इससे मेरा इगो हर्ट हो रहा था.
उसके घर पर कोई नहीं था. उसने बताया कि सभी परिवारजन किसी शादी में शामिल होने के लिए गये हैं और वह भी शाम को जायेगा.
मैं सोफे पर बैठ गयी. धर्मेन्द्र काफी बनाने चला गया. मैंने मन ही मन कहा ‘बेटा नंदिनी, तुझे भाग्य से मौका मिला है चूकना मत!’
काफी बहुत ही अच्छी थी.
मैं- आपका कर्ज कैसे उतारूँ. आपने पहले मेरी गाड़ी स्टार्ट की और अब काफी पिलाई.
धर्मेन्द्र- नहीं कर्ज की कोई बात नहीं है. मेरा मोबाइल नम्बर ले लीजिये कभी कोई काम हो तो बताइए.
मैं- आप मेरे लिए क्या कर सकते हैं?
धर्मेन्द्र- जो भी आप कहें.
मैं- अगर मैं आपसे अभी कोई काम बताऊं तो आप करेंगे.
धर्मेन्द्र- जरुर. बोलो ना नन्दिनी जी.
मुझे उसके मुंह से नन्दिनी जी सुनना अच्छा लगा. इसलिए मैंने यह कहानी नन्दिनी जी के नाम से ही लिखी है.
मैं- आप नाराज भी हो सकते हैं!
धर्मेन्द्र- प्रोमिस बाबा नहीं होऊंगा नाराज, बोलो?
मैंने संक्षेप में धर्मेन्द्र को अपनी ख्वाहिश बताई.
वह पहले तो भौचक्का रह गया. फिर मेरे पास आकर बैठ गया. उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा और गार्जियन की तरह समझाने लगा- नन्दिनी जी, यह रास्ता बहुत फिसलन भरा है. सम्भल जाओ.
मैं- बस एक बार … इसके बाद नहीं.
धर्मेन्द्र- ओके, बताओ क्या चाहती हो?
मैं- आपको पूरा नंगा देखना चाहती हूँ. और आपके लंड को छूना चाहती हूँ.
मेरे मुंह से लंड शब्द सुनकर धर्मेन्द्र मुस्कुरा दिया, बोला- तो पक्का इरादा करके निकली हो तुम. भगवान का शुक्र है कि मुझसे मिल गयी. आओ मैं तुम्हारी इच्छा भी पूरी कर दूंगा और तुम्हें नुक्सान भी नहीं पहुँचने दूंगा.
वह मुझे अपने कमरे में ले गया और बोला लो कर लो जो चाहो, मैं आधे घंटे के लिए तुम्हारे हवाले हूँ.
मैंने उसके शर्ट को खोल दिया. बनियान भी निकाल दी. उसने जींस पहना हुआ था. उसका लंड खड़ा हो गया था.
मैंने जींस का बटन खोला और चेन भी खोल दी. काले रंग की कट वाली अंडरवियर उसने पहन रखी थी.
मैंने उसे पूरा नंगा कर दिया.
वाह क्या दर्शनीय शरीर था उसका. एकदम फ़िल्मी हीरो की तरह.
लंड भी लम्बा और मोटा था. लंड की जड में घुंघराले बाल थे.
मैं उसके शरीर के एक एक भाग को ध्यान से देखने लगी. फिर मैंने अपने कपड़े भी उतार दिए. धर्मेन्द्र ने मुझे देखा और बोला- बहुत सुंदर हो नन्दिनी जी. खुद को बर्बाद मत करो.
मैं उससे लिपट गयी. उसका लंड मेरे पेट पर टकरा रहा था. मैंने अपने बूब्स उसके सीने में गड़ा रखे थे. मेरे कहने पर उसने मुझे अपनी बांहों में ले लिया. दस मिनट तक मैं उसे फील करती रही.
मेरी चूत गीली हो गयी थी. मन हो रहा था कि यह मुझे पटक के चोद दे तो मजा आ जाये.
पर वह किसी और ही मिट्टी का बना था. नपुंसक नहीं था वह. उसका लंड खड़ा था. एक मिनट में ही वह मेरी चूत को फाड़ सकता था. मुझे उसके संयम पर प्यार आने लगा.
मैं- धर्मेन्द्र जी! क्या मैं आपके लंड को छू सकती हूँ?
उसने हाँ में सिर हिलाया.
मैंने उसका लंड हाथ में लिया. गर्म और कड़क. मैं उस पर अपने हाथ फिराने लगी. मेरा मन हुआ कि चूम लूं इसे! अबकी बार मैंने पूछा नहीं और लंड पर तीन चार चुम्मे दिए. चूसने का मन हुआ. मुंह खोला और लंड अंदर ले लिया. चूसने लगी. धर्मेन्द्र अविचल खड़ा था. बस कभी कभी सिसकारी निकल जाती उसके मुंह से पर वह बेकाबू नहीं हो रहा था.
मैं- धर्मेन्द्र जी मेरे बूब्स को दबा सकते हो आप?
वह- हाँ मगर एक बार ही. आपको अनुभव देने के लिए.
मैं गांड की तरफ से उनके सीने से चिपक गयी, अब उसका लंड मेरी गांड को स्पर्श कर रहा था और मैंने उनके हाथ पकड़कर अपने बूब्स पर रख दिए. धर्मेन्द्र ने पांच मिनट तक बूब्स को दबाया. मालिश की. मैं मस्त हो गयी.
मैं- क्या आप मेरे चूत को छू सकते हो. थोड़ा चाट सकते हो.
उसने बिना कोई जवाब दिए वैसा कर दिया.
मैं- अब घुसा दो अपना लंड मेरी चूत में प्लीज.
वह- नहीं यह नहीं करूंगा नन्दिनी. लेटो तुम. मैं लंड तुम्हारी चूत से स्पर्श कर देता हूँ पर चोदूँगा नहीं.
उसने चूत के बाहर से अपने लंड को घिसा. मुझे अच्छा लगा. मैं उल्टी लेट गयी. वह मेरी भावना समझ गया. उसने मेरी गांड की दरार और उसके छेद पर भी अपना लंड घिसा.
धर्मेन्द्र- नन्दिनी जी, आपकी इच्छा पूरी हो गयी ना. चलो अब पहन लो कपड़े!
वाकई मुझे ऐसा लगा जैसे मैं पूरी तरह तृप्त हो गयी. मैं बिना चुदे ही अपने आपको तृप्त महसूस कर रही थी. मैं एक बार और धर्मेन्द्र से लिपटी और कपडे पहन लिए. धर्मेन्द्र भी वापस तैयार हो गया.
एक बार फिर उसने काफी बनाई और मुझे इस शर्त के साथ विदा किया कि मैं सीधे घर जाऊँगी और घर पहुँचते ही उसे फोन करूंगी.
मैं बच गयी उस दिन. कोई और होता तो मेरी लालसा का लाभ उठाता और मेरी चूत और गांड दोनों फाड़ देता. मगर धर्मेन्द्र अलग था. मैं उसपर मोहित हो गयी. दमदार लंड का मालिक अपने सामने नंगी पड़ी मस्त लड़की को देखकर भी संयम रख ले तो उसमें कोई बात है.
मैं गुनगुनाते हुए घर पहुँची और उसे फोन किया- थेंक्स धर्मेन्द्र जी.
धर्मेन्द्र- वेलकम नन्दिनी जी.
मैं- कभी और मेरा मन हुआ तो?
धर्मेन्द्र- मैं हूँ ना!
उसके बाद मैं धर्मेन्द्र से कई बार मिली.
आप की अपनी
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#2
PART 2

रात के करीब दस बजे थे, जी-मेल लोग इन किया, पाँच सेकंड भी नहीं बीते होंगे कि मेरे प्रशंसक हाजिर हो गये। निन्यानवे प्रतिशत मेल और संदेश मुझसे एक ही चीज चाहते हैं और वो है मेरी चूत।

बहुत से लोग मेरे बूब्स सहलाना, दबाना, मसलना चाहते हैं, इनका दूध पीना चाहते हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो मेरी गांड पर अपना लंड साफ करना चाहते हैं।

नहीं नहीं … सब ऐसे नहीं होते हैं। निन्यानवे प्रतिशत तो कहा बाबा मैंने!
एक प्रतिशत में हैं वास्तविक दुनिया में धर्मेन्द्र जी और आभासी दुनिया में रवि जी। धर्मेन्द्र जी की जेंटलनेस को तो मैं वास्तविकता में भी देख चुकी हूँ। रवि जी हैंगआउट्स की बातचीत में तो सौम्य हैं. लेकिन जब सामने आएंगे और मैं नग्न हो जाऊँगी तो क्या अपने आपको संभाल पाएंगे।
देखेंगे भविष्य में!
क्यों रवि जी? क्या कहते हो आप?
तो ऐसे ही मेसेजेस में राहुल का मेसेज आया- हाय!
मैं- हाय!
राहुल- पिक भेजो अपनी जानेमन!
मैं- नो पिक, नो मोबाइल नंबर, नो एड्रेस, नो विडियो चेट।
राहुल- ओके! लोगी मेरा?
मैं- क्या?
राहुल- लंड, और क्या?
मैं- …
राहुल- लो देखो मेरा लंड!
और एक के बाद एक लंड की इमेजेस मेसेज बॉक्स में आने लगीं। खड़ा लंड भी और नॉर्मल लंड भी। धीरे धीरे इस तरह की इमेजेस की आदत हो रही है मगर राहुल के लंड को देखकर मेरी धड़कनें बढ़ गईं। बहुत लंबा और बहुत मोटा … खड़ा लंड नौ इंच से कम नहीं था। पैंतीस डिग्री का कोण बना रहा था वह लंड अपनी धूरी से।
मैं तो देखती ही रह गई … पलकें झपकाना भूल गई। टकटकी लगाकर ऐसे देखने लगी जैसे बिल्ली चूहे को देखती है।
अगर राहुल सामने होता तो मैं लपक कर अपनी चूत अड़ा देती उसके सामने और बोलती- मारो धक्का!
अगर वह चूत में घुसा देता तो पक्का गांड फाड़कर बाहर निकल जाता। इतना बड़ा लंड … एकदम गोरा चिट्टा … चिकना … लंड की जड़ के सारे बाल साफ।
और राहुल का नॉर्मल लंड भी छह इंच से कम नहीं होगा। पके हुये केले की तरह मोटा और गुलाबी रंग का। जब उस पर मेरी नजर पड़ी तो मैं सब कुछ भूल गई। मैं उस नॉर्मल लंड के हर हिस्से को मन भरकर देखने लगी।
बैचेन हो रही थी मैं … कल सुबह ही मैं पहुँच जाऊँगी राहुल की बांहों में और इसके नॉर्मल लंड को केले की तरह खा जाऊँगी अपने मुंह से। आँख बंद करके कल्पना में चूसने लगी राहुल का लंड।
सॉरी धर्मेन्द्र जी, अब नहीं बचा पाऊँगी अपने आपको। ऐसा सोचती भी जा रही थी।
आँखें खोलीं और आँखें फाड़फाड़ कर मैं लंड देखने लगी। कभी खड़े लंड को देखूँ तो कभी नॉर्मल लंड को।
राहुल- क्यों जानू! पसंद आया कि नहीं मेरा हथियार?
मैं क्या बोलती? मैं तो मर मिटी थी उन लंडो पर। अभी के अभी चाहिए मुझे बस! मेरे दिल की धड़कनें इतनी बढ़ गई थीं कि अगर मेरे डॉक्टर पापा अपना स्टेथोस्कोप मेरे सीने पर रखते तो घबरा जाते और जरूर ईसीजी करवा देते।
राहुल- बोलो ना जान मेरी … कहाँ चली गई? क्या मेरे लंड को देखकर चूत में उंगली कर रही हो या अपने बोबे अपने ही हाथों से मसल रही हो?
मैं उसकी इमेजेस से गर्म हो चुकी थी और उसकी बातें आग में घी डालने का काम कर रही थीं। मैं अपने कमरे में अकेली थी, दरवाजा बंद था। मैंने लोवर घुटनों के नीचे खिसका दिया और अपनी चूत पर धीरे धीरे हाथ फेरने लगी।
इसी बीच रवि जी के बहुत सारे मेसेजेस आ गये थे। मैंने उन पर निगाह डाली, वो अपने हर मेसेज में समझा रहे थे कि सोशल मीडिया पर किसी को दोस्त बनाओ तो सोच समझकर बनाना दोस्त नंदिनी जी।
उन्होंने बताया कि उनकी शादी की सालगिरह है।
मैंने उन्हें कहा- मैं अपनी तरफ से गिफ्ट देना चाहती हूँ।
उन्होंने पूछा- क्या दोगी?
मैंने कहा- आपको मैं छूट देती हूँ कि आज आप मुझसे चाहे जो कह सकते हो, कैसी भी बात कर सकते हो!
उन्होंने अपनी और अपनी पत्नी की पिक भेजी। दोनों बहुत ही सुंदर और समझदार लग रहे थे। मेरी तरफ दो तरह की ऊर्जा प्रवाहित हो रही थी। राहुल की तरफ से अश्लीलता की गर्म लपटें आ रही थीं तो रवि जी की तरफ से संस्कार की शीतल पवन।
दुनिया में कितनी वेरायटी है ना?
मैंने दोनों लंड की इमेजेस को सेव किया और कम्प्यूटर में देखने लगी। दोनों को मैंने एक साथ पेस्ट किया और एकटक देखने लगी। तभी मुझे लगा कि दोनों लंड अलग अलग हैं। नॉर्मल लंड की मोटाई खड़े लंड से अधिक दिखाई दी।
बायोलॉजी की छात्रा हूँ। मेडिकम की तैयारी कर रही हूँ। इतना तो समझती हूँ कि खड़ा हुआ लंड नॉर्मल लंड से अधिक मोटा होता है।
मुझे संदेह हुआ तो मैंने दोनों इमेजेस गूगल सर्च में डाल दी। गूगल से क्या छिपा है भला आज के दौर में। गूगलदेव ने दुनिया को कितना छोटा कर दिया है ना!
एक ही पल में पोल खुल गई।
ये दोनों ही लंड राहुल के नहीं थे … ये नेट पर थे।
मुझे पहले गुस्सा आया और फिर हंसी आई। ये लड़के भी ना! लड़कियों को इम्प्रेस करने के चक्कर में बेमौत मारे जाते हैं।
मैंने रवि जी को बताया कि मेरे पास गंदी गंदी इमेजेस और मेसेजेस आ रहे हैं। रवि जी मुझसे भावनात्मक रूप से जुड़ गये थे, दुखी होकर बोले- क्यों नहीं आएंगे नंदू! तुमने ही तो कहानी लिखी और तुमने ही तो कहा कि तुम यह अनुभव लेना चाहती हो?
उनके शब्दों के पीछे मेरे लिए छिपी चिंता ने मुझे अंदर तक भिगो दिया। भले लोग सदा भली बात करते हैं। मैंने उनसे अनुमति लेकर उन्हें राहुल द्वार भेजी लंड की इमेजेस सेंड की और अपनी जासूसी के निष्कर्ष भी बताये।
रविजी ने पुष्टि की और कहा- यह राहुल का लंड नहीं है।
इस बीच राहुल के मेसेजेस थम नहीं रहे थे- बोलो! कब दे रही हो अपनी चूत और कब ले रही हो मेरा लंड?
मैं- सोचकर बताती हूँ।
राहुल- सोचने में जवानी बर्बाद मत करो मेरे जाने-जिगर। ऐसे चोदूँगा कि धर्मेंद्र को भूल जाओगी। अरे उस धर्मेंद्र में क्या रखा है? वो तो हिजड़ा है हिजड़ा! अगर वो मर्द होता तो तुम्हें प्रेगनेंट करके ही घर से निकलने देता।
अब तो मैं गुस्से में भर उठी। धर्मेन्द्र जी मेरे निगाह में देवता हैं। रितिक रोशन की तरह सुंदर और एकदम मर्द आदमी। जो भी लड़की उनकी बीवी बनेगी वह अपने सौभाग्य पर आखिरी सांस तक इतराएगी और यह झूठा इंसान इतना गंदा बोल रहा है मेरे आदर्श मर्द के बारे में।
मैंने रवि जी से पूछा- अब मैं इन्हें आईना दिखा दूँ क्या?
रवि जी ने समझाया- रहने दो। उसे सही पता चलेगा तो वह निराश हो जाएगा और हो सकता है कि कुछ कदम उठा ले।
मुझे बात ठीक लगी।
मगर मैं राहुल को सबक तो सिखाना चाहती थी। मुझे मेरे पापा याद आए, पापा बहुत सफल डॉक्टर हैं। वो अपने हर पेशेंट को दो चीजों से ठीक करते हैं। एक सटीक दवाओं से और एक आशा से ओतप्रोत बातों से।
मैंने रवि जी को यकीन दिलाया कि मैं राहुल को अपमानित नहीं करूंगी और उसे सही रास्ते पर लाऊँगी।
रविजी ने कहा- अगर ऐसा है तो गो अहेड नंदू।
राहुल- कुछ तो जवाब दो।
मैं- तुम्हें झूठ बोलने में शर्म नहीं आई?
राहुल- मैंने कब झूठ बोला। मैं झूठ नहीं बोलता?
मैं मुस्कुरा दी। इस देश में कितने बड़े सत्य के अनुयायी हुये। सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की कहानी तो दुनिया जानती है। कितने ही देवता हुये जिनने सतपथ का अनुगमन करने का उपदेश दिया। महात्मा गांधी तो पूरी ज़िंदगी सत्य के साथ प्रयोग करते रहे। और यहाँ पर ही दुनिया के सबसे अधिक झूठे लोग हैं।
मैं- अच्छा तो ये दोनों बड़े और सुंदर लंड आपके हैं?
राहुल- हाँ बिल्कुल और किसके हैं? मैंने भेजे हैं तो मेरे हैं। तुम लोगी तो तुम्हारी चूत और गांड दोनों फट जायेंगी।
मैं- झूठे आदमी! ये तुमने नेट से ली है। दूसरे के हथियारों को अपना बताते हुये तुम्हें लज्जा नहीं आती है?
इसके बावजूद भी राहुल कुछ समय तक अपनी बात पर अड़ा रहा और बोलता रहा कि उसके लंड को किसी ने नेट पर डाल दिया होगा। मैंने उसे लिंक भेजी उस वेबसाइट की जहां ये लंड पड़े थे। उसको बताया कि ये विदेशियों के लंड हैं।
तो वह बोलने लगा कि मैं भी बहुत गोरा हूँ और ये मेरे ही हैं।
काफी नानुकुर के बाद जब मैंने यह कहा- अपना असली लंड दिखाओ … नहीं तो ब्लॉक कर दूँगी।
इसके बाद राहुल की बात सुनकर मुझे उस पर दया आई।
राहुल- नंदिनी, सोर्री!
मैं- क्यों?
राहुल- ये मेरे लंड नहीं हैं.
मैं- यह बात मैं जानती हूँ। तुम अपने लंड की पिक भेजो। अभी के अभी … नहीं तो ब्लॉक कर रही हूँ।
राहुल- भेज रहा हूँ रुको। मगर मुझे मालूम है कि उस पिक को देखने के बाद तुम मेरी नहीं हो पाओगी।
मैं- अच्छा दिखाओ तो? मैं वादा करती हूँ कि हर हाल में तुमसे बात करती रहूँगी।
राहुल- अभी मेरा खड़ा नहीं हो रहा है।
मैं- जैसा है, वैसा ही भेजो।
राहुल- ये लो।
और इसके बाद मेरे कम्प्यूटर की स्क्रीन पर राहुल का प्रायवेट पार्ट था, सोया हुआ … मुश्किल से दो इंच का होगा। एकदम पतला सा!
ओह! तो राहुल भी ‘बिग पेनिस’ के मिथक से ग्रसित है। इसको लगता है कि इसका प्रायवेट पार्ट बहुत ही छोटा है और वह किसी भी लड़की के काम नहीं आ सकेगा।
मैं सोच में पड़ गई ‘अकेला राहुल ही नहीं इस दुनिया में न जाने कितने लोग हैं जो अकारण आशंकाओं से ग्रस्त हैं। सेक्स एजुकेशन के अभाव में सेक्स माफिया पनप रहे हैं। ऐसे युवकों के डर को भुनाने के लिए न जाने कौन कौन सी दवा, क्रीम और ऑइल बेच रहे हैं।’
आप किसी भी सड़क पर निकाल जाओ, आपको बड़ी संख्या में गुप्त रोगियों का इलाज करने के दावे करते विज्ञापन मिल जाएँगे। ये शिकारी हैं और इनके शिकार बनते हैं राहुल जैसे अनगिनत लड़के।
राहुल- मैंने कहा था ना नंदिनी … असली देखकर तुम मुझसे नफरत करोगी।
मैं- नहीं तो … नफरत क्यों करूंगी राहुल? हाँ, तुमसे गुस्सा जरूर हूँ।
राहुल- गुस्सा! गुस्सा क्यों?
मैं- क्योंकि तुमने झूठ बोला।
राहुल- तो मैं और क्या करता नंदिनी?
मैं- सच का सामना करिए राहुल जी।
राहुल- यह सच बहुत खतरनाक है नंदिनी जी। मैं क्या करूँ कुछ समझ में नहीं आ रहा मुझे?
मैं- मैं समझाती हूँ तुम्हें! अच्छा बताओ तुम्हें बड़ा लंड क्यों चाहिए?
राहुल- ताकि मैं मेरे पार्टनर को संतुष्ट कर सकूँ। मैं जाऊंगा डॉक्टर के पास और दवाई लेकर करूंगा इसको बड़ा! देखना तुम नंदिनी!
मैं- सुनो राहुल, मैं बताती हूँ तुम्हें कि सच क्या है. अरे … दुनिया में ऐसी कोई दवा नहीं है जो पेनिस, लिंग, लंड लौड़ा लावड़ा, लवडा किसी भी नाम से पुकारो इसे … इसके आकार को एक उम्र के बाद बढ़ा सके। तुम जितनी तथाकथित दवाइयाँ लोगे, उतना ही तुम्हें धन और स्वास्थ्य का नुकसान होगा।
और देखो स्त्री की चूत तो एक सुरंग की तरह होती है। उसमें कुछ भी घुस जाता है। बड़े से बड़ा लंड हो … खीरा हो … केला हो … यहाँ तक कि हाथ भी घुस जाता है। तुमने देखा न कि इसी चूत में से बच्चा भी बाहर निकल जाता है। इस जादू की पुड़िया की कोई सीमा नहीं है।
मगर इसका दूसरा पहलू भी है। चूत का केवल अगला हिस्सा ही सेक्स को लेकर संवेदनशील है। और वह मुश्किल से दो इंच का है। इंटरकोर्स करते वक्त यहीं पर पता चलता है बाकी इसके अंदर कितना जा रहा है उसका स्त्री के आनंद और सन्तुष्टि से कोई लेना देना नहीं है।
मैं- अच्छा यह बताओ कि खड़ा होने पर तुम्हारा लंड कितना बड़ा हो जाता है?
राहुल- करीब पाँच इंच।
मैं- अगर यह चार इंच भी हो जाता है ना राहुल तो यह बहुत है। इससे तुम्हारा और तुम्हारी बिस्तर की साथिन दोनों का काम अच्छे से चल जाएगा।
राहुल- सच नंदिनी?
मैं- हाँ, एकदम सच।
फिर मैंने उसको हेंगआउटस पर और ईमेल पर सेक्स स्पेशलिस्ट की रिपोर्ट्स भेजी, बहुत देर तक उससे बातें की। तब जाकर उसको पूरी तरह से समझ में आ गया।
तब उसने कहा- नंदिनी! आज तुमने मेरे आँखें खोल दी हैं। अब मैं इस तरह फ़्राड नहीं करूंगा। मेरा लंड जैसा भी है वैसा ठीक है। और हाँ नंदिनी, मैं प्रोमिस करता हूँ कि किसी भी नीम हकीम के चक्कर में नहीं पड़ूँगा। नंदिनी ! मेरी दुआ है कि तुम एक बहुत अच्छी डॉक्टर बनो। तुम अच्छी लड़की तो हो ही। थेंक यू नंदिनी।
मैं मुस्कुरा दी।
राहुल ने कहा कि वह मुझे अपने पास इमेजीन कर रहा है और मेरे गोद में सिर रखकर सो रहा है।
मैंने उसे उसकी कल्पनाओं में अपनी गोद में सुला लिया
आप की अपनी
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#3
PART 3

रवि जी ने स्पीड ब्रेकर के पहले अपनी मोटर साइकल को धीमा किया और ब्रेकर को पार करते वक्त इस तरह आगे की और झुक गए कि मेरे बूब्स उनकी पीठ से न टकरा जाये। दूसरा कोई लड़का होता तो मौका देखकर चौका लगा देता। इतनी तेज गति से स्पीड ब्रेकर को क्रॉस करता कि मैं पूरी उस पर जा गिरती और वो मेरे मस्त बड़े बड़े नर्म नाजुक बूब्स की अपनी पीठ पर रगड़ का आनन्द ले लेता। पर ये रवि जी हैं। मुझसे उम्र में काफी बड़े हैं। मैं उन्नीस की हूँ और वो अड़तीस के हैं। एकदम जेंटलमेन।

मैं उनकी दोस्त बन गई हूँ। अन्तर्वासना ने मिलाया हमको। मेरी कहानी पढ़कर उन्होंने मुझे ई-मेल किया। अपनी और अपनी पत्नी रीति की तस्वीरें भी भेजीं। मेरे कहने पर भी उन्होंने कभी चूत, लंड या चुदाई की बात नहीं की। मैं उन्हें स्वीटहार्ट कहती हूँ और वे मुझे प्यार से रानी कहकर बुलाते हैं।

कॉलेज के गेट पर गाड़ी रुकते ही मैं कूदकर उतर गई। मैंने काले रंग की एकदम टाइट जींस और गुलाबी रंग का टॉप पहना हुआ था। टॉप स्लीवलेस था। मेरे कूदते ही मेरे दोनों बूब्स भी कूद पड़े। काफी देर तक कम्पन चलता रहा। जब मैं चलती हूँ तो लोग इस असमंजस में पड़ जाते हैं कि मुझे आगे से देखे या पीछे से। आगे माउंट एवरेस्ट की तरह नुकीले बूब्स और पीछे पामीर के पठार की तरह फैली हुई और उठी हुई गांड।
दोनों नजारे धड़कनें बढ़ाने वाले!

पता है !! कोई कोई तो मेरा पीछा करते हुये कभी बहुत तेजी से आगे निकल जाता है और दूर खड़ा होकर मुझे आते हुये मेरे बूब्स को टकटकी लगाकर देखता है और फिर पीछे खड़ा रहकर मेरी गांड को घूरता है।

स्त्री के ये दो अंग ऐसे हैं जो मर्दों को दीवाना बनाते हैं।
अगर ये न होते तो!?!
कल्पना कीजिये!!
आगे पीछे सपाट होता तो स्त्री इतनी आकर्षक नहीं होती।

कामसूत्र में वात्स्यायन ने स्त्री के कितने रूपों का मनमोहक वर्णन किया है। मुझे स्त्री का गजगामिनी रूप पसंद है। थोड़ा भरा हुआ शरीर और मस्त उभार। भगवान का शुक्रिया कि उन्होंने मुझे बनाते हुये किसी तरह की कंजूसी नहीं की। खूब गोरा रंग दिया, लाल सुर्ख होंठ दिये, सुनहरे बालों वाली प्यारी चूत दी. इतनी प्यारी है मेरी चूत कि मैं स्नान के बाद दर्पण के सामने खड़ी होकर निहारती रहती हूँ … खुद की चूत पर खुद ही मोहित होकर कहती हूँ- मेरे रचयिता!! तुम वाकई पुरस्कार के हकदार हो।

क्या आप भी!! कहाँ खो गए। आइये न कहानी पर …

रवि जी ने कहा- सुनो रानी! अपना ध्यान रखना।
नन्दिनी- जी, रखती तो हूँ ध्यान, देखो न मोटी-ताजी लग रही हूँ।

मैं सेक्स स्टोरी की लेखिका हूँ … बिंदास। रवि जी और मैं खुलकर बातें करते हैं। सेक्स भी विषय होता है। मगर उन्होंने कभी लोलुपता नहीं दिखाई। सदा मुझे समझाते हैं और कहते हैं- पहले पढ़ाई कर लो। नीट क्लियर कर लो। फिर लिखना कहानी।
मैं उन्हें कहती हूँ- रवि जी, सेक्स जीवन का अनिवार्य अंग है। अन्तर्वासना बहुत ही प्रतिष्ठित साइट है। कहानी के बाद मुझे जो ई-मेल और हेंगआउट्स मेसेजेस मिलते हैं, उनसे मुझे लोगों को और दुनिया को समझने का मौका मिलता है। मैं उन्हें ई-मेल भी बताती हूँ। मुझे जो लंड के फोटो प्राप्त होते हैं, वो भी उन्हें दिखाती हूँ.
तो वो मज़ाक में बोलते हैं- रानी, तुम्हारे लिए कितने लोग रोज नंगे होकर अपने ही लंड की फोटो ले रहे हैं।

मैं पहले हँसती और फिर गंभीर हो जाती और कहती- रवि जी!! ये वो लोग हैं जो यह चाहते हैं कि उनकी शादी ऐसी लड़की से हो जो सील पैक हो और ये खुद अपने लंड हाथ में लेकर किसी को भी चोदने के लिए तैयार खड़े हैं। किसी भी उम्र से लेकर अस्सी साल की बूढ़ी औरतें भी इनसे बच नहीं पाई हैं। मानव में इतनी वहशियत कैसे आ गई रवि जी!!
रवि जी बेचारे क्या कहते। जो सत्य है उसे गलत कैसे बताते।

मैं रवि जी का इशारा समझ गई। वो चाहते हैं कि मैं ड्रेस सिलेक्शन करते वक्त ध्यान रखूँ।
मगर मैं एक महानगर के बहुत बड़े कॉलेज में पढ़ती हूँ। इस गर्ल्स कॉलेज की लड़कियों को तो छोड़ो, यहाँ की प्रोफेसर महिलाएं भी पूरी पटाखा बनकर आती हैं। खूब मेकअप, भड़कीले कपड़े।
वहाँ मैं ग्रामीण बहिन जी बनकर नहीं आ सकती हूँ ना!
जैसा देश वैसा भेष तो जरूरी है।

पर रवि जी की इसी तरह की बातों से उनके प्रति मेरा सम्मान का भाव बढ़ जाता।

क्लास के बाद मैं केंटीन गई तो वहाँ मेरी चांडाल चौकड़ी वाली फ्रेंड्स बैठी थीं। मैं जैसे ही कुर्सी पर बैठी, वैसे ही तेजी से खड़ी हो गई। सबकी सब हंस पड़ीं। सुनयना ने अपनी मुट्ठी कुर्सी पर रखी हुई थी और अंगूठा ऊपर किया हुआ था वो सीधे मेरे गांड के छेद पर टच हुआ।
मैं- ले खोल देती हूँ पैन्ट और पेंटी, कर ले अपनी हसरत पूरी। जब देखो तब मेरे गांड के पीछे पड़ी रहती हो तुम मुट्ल्ली।
सुनयना- हाय सच ! खोल न !! चल मेरे हॉस्टल पर … लेसबियन करेंगे।

रजनी- अरे नन्दिनी!! जा ना इसके साथ!! बिल्कुल लड़कों की तरह चूत चूसती है ये … और बूब्स को तो रौंद डालती है।
शकीना- यार! अब तो रहा नहीं जाता। मेरे बेबी को कोई बाबा चाहिए। वह अपनी चूत को बेबी और लंड को बाबा बोलती है।

हाँ जी … लड़कियां भी जब अकेली होती हैं तो ऐसी ही बातें करती हैं। जो बालिकाएँ आपके सामने सीधेपन का साक्षात अवतार दिखाई देती हैं ना … वो वैसी होती नहीं हैं। कई बार उनकी बातें लड़कों से भी ज्यादा अश्लील होती हैं।

हमारी बातें भी जमीन छोड़ रही थीं। हम सभी गर्म हो गईं। केंटीन के उस कोने में मौका देखकर एक दूसरे के बूब्स को दबा देतीं और सिसकारी से अपने आनंद और प्यास को दर्शा देती।
सभी को लंड लेना था … मगर किसका लें? बदनामी का डर था।

वैष्णवी ने सभी की समस्या का हल करते हुये कहा- मैं एक जिगोलो को जानती हूँ, एकदम मस्त माल है। चलो गार्डन में, मैं दिखाती हूँ उसकी पिक।

हम सभी बेताब थीं, सबकी चूतें गीली हो चुकी थीं और निप्पल्स तन चुके थे। सब की सब तुरंत उठ गईं।
मेरे गांड की दीवानी सुनयना ने मेरे कूल्हों पर हाथ रखा और चलने लगी। आज मुझे उसका स्पर्श बहुत अच्छा लगा। सच ही कहा गया कि जब भूख बहुत लगती है तो हर खाने की चीज स्वादिष्ट लगती है।

उद्यान में झाड़ियों के पीछे हम सभी इस तरह बैठ गई कि कोई सामने से आए तो हमें दिख सके। हम चारों की मनोदशा इस तरह की हो गई थी कि अगर वहाँ कोई आकर हमें अपना लंड दिखाता तो हम सभी तुरंत नंगी हो जाती, आँखें बंद करके अपनी अपनी चूत खोल देतीं।

शरीर से पहले कोई भी कार्य मन करता है। शरीर तो बेचारा मन का गुलाम है, वह मन के आदेशों का अनुसरण करता है और अभी हम चारों का मन कह रहा था कि लंड चाहिये।
वैष्णवी ने अपनी बिग स्क्रीन वाले स्मार्ट फोन में व्हाट्सएप पर एक पिक दिखाते हुये कहा- इसका नाम भुजंग है। छह फीट दो इंच इसकी हाइट है। बॉडी बिल्डर है।
सुनयना- इसके हथियार की साइज़ कितनी है?
वैष्णवी- नौ इंच, देखना है क्या?
हम सभी- हाँ ना … दिखा जल्दी।

वैष्णवी ने मुसकुराते हुये भुजंग की नंगी तस्वीर हमारे सामने कर दी।
‘ओ माय गॉड …’ हम सभी खुशी से चीख़ पड़ी।

मैं- ये आदमी का लंड है!?! इतना बड़ा!! ये तो लौकी की तरह है। हरी लौकी को काले रंग से रंग दो तो बिल्कुल भुजंग के लंड की तरह हो जायेगी।
वैष्णवी ने कहा- इसकी काम कला भी दिखाती हूँ.

उसने एक विडियो ऑन किया।
भुजंग एक बेडरूम में एक मोटी और एजेड औरत के साथ था। वह उस औरत के कपड़े उतारता है। बहुत ही भद्दी और मोटी औरत। पेट बाहर और बूब्स लटके हुये। मगर भुजंग के चेहरे पर नापसंदगी के कोई भाव नहीं। वह उसे चूमता है और उसके बूब्स को चूसता है।
वह औरत भुजंग के कपड़े उतारती है। भुजंग का लंड बाहर आते ही झटके मारने लगता है। बहुत प्यार से भुजंग उस औरत को डोगी स्टाइल में झुकाता है और फिर चुदाई प्रारम्भ करता है। धीरे से शुरू करके जिस स्पीड पर ले जाता है तो ऐसा लगता है कि मशीन में पिस्टन अंदर बाहर जा रहा हो। वह आदमी न होकर मशीन हो। एक जैसी रफ्तार। और वह औरत आनंद के चरम दौर से गुजरती हुई सिसकारियाँ लेती है।

“उफ़्फ़ … शानदार चुदाई … दमदार चुदाई … वाकई कामदेव है भुजंग तो! जिसे भुजंग मिल जाये … उसकी चूत की तो किस्मत ही खुल जाये।” हम सब जो सोच रही थी, उसे सुनयना ने कह दिया।
सुनयना- अब तो इसका लिए बिना नहीं रहेंगे। बोल कैसे चोदेगा ये हमको?
वैष्णवी- चोदना इसका धंधा है। यह रोज तीन चार औरतों को चोदता है। एक साथ कितनी ही औरतें हों यह सबको खुश करता है। वियाग्रा खाता है। इसका रेट बीस हजार रुपए है। बोलो !! क्या करना है?
शकीना- डन !! हम पाँच हैं। सब मिलकर उसको बीस नहीं पच्चीस हजार दे देंगे। बुलाओ इसको।

सुनयना- गांड भी मारता है ना ये। ऐसा न हो कि फिर नखरे करे। मैं तो गांड में भी लूँगी।

वैष्णवी ने फोन लगाया। कुछ ही देर बाद हम सभी कॉलेज के बाहर थीं।
तभी एक कार गेट के पास आई और उसमें से भुजंग उतरा …लंबा तड़ाग बंदा … बाहुबली की तरह कद-काठी। पैन्ट के सामने का भाग बता रहा था कि अंदर ऐसा राकेट है जो हम सभी को आसमान की सैर करवा सकता है।

भुजंग को हम सभी ने घेर लिया। वह बहुत ही सलीके से बात कर रहा था।

अगले दिन दोपहर बारह बजे का समय तय हुआ। एक साथ पाँच लड़कियों को चोदने की फीस तीस हजार रुपए तय हुई। उसने पता दिया। जाने से पहले जब वह हम सभी से हाथ मिला रहा था
तभी रवि जी वहाँ आ गये। मैं रवि जी की बाइक पर बैठ गई। आँख मारते हुये सभी को बाय बाय कहा।
सुनयना ने चिल्लाकर कहा- स्वीट ड्रीम नंदू!

रवि- कौन था यह आदमी? गुंडा लग रहा था।
रवि जी को मैं सब बात बता देती थी, मैंने कहा- जिगोलो है। नाम भुजंग और कल मैं इसके पास जा रही हूँ।
रवि- ओह! नहीं नहीं नन्दिनी!! इससे बिल्कुल मत मिलो। ये लोग ठीक नहीं होते। न जाने किस किस औरत के पास जाते हैं। मत करो ऐसा!
मैं- देखो रवि जी! अगर आप मेरी निजी ज़िंदगी में हस्तक्षेप करोगे तो मैं आपसे बात नहीं करूंगी। मैं और मेरे सारी फ्रेंड्स कल दोपहर बारह बजे उसके बताए हुये इस स्थान पर जाएँगी। हमने उसको दस हजार रुपए एडवांस भी दे दिये हैं. कल वह हम सभी को चोदेगा.

रवि जी खामोश हो गये, उन्हें मेरे बात का बुरा लगा।
मेरे घर के बाहर मुझे उतारकर रवि जी बस इतना बोलकर आगे बढ़ गये- अब हम दोस्त नहीं रहे नन्दिनी जी।

मैंने उन्हें जाते हुये देखा। वो आँखों से ओझल हुये तो सामने भुजंग और उसका लंड आ गये। दिल पागल हो गया।

अगले दिन ठीक ग्यारह बजे रवि जी मेरे घर के सामने आकर खड़े हो गये। वे ही मुझे रोज कॉलेज छोड़ते थे। उधर ही उनका ऑफिस था।

मैंने अपनी चूत के सुनहरे बालों को साफ कर लिया था। वहाँ भी चंदन का स्प्रे किया। गांड पर गुलाब सेंट का स्प्रे किया। बहुत ही सेक्सी कपड़े पहनकर और गहरा मेकअप करके मैं घर से निकली। रास्ते भर कोई बात नहीं हुई। रविजी ने मुझे कॉलेज छोड़ा और बिना कुछ बोले ही आगे निकल गये।

मैं कामान्ध हो चुकी थी। मैंने रविजी की नाराजगी पर कोई ध्यान नहीं दिया। चुदाई के हसीन नजारे को ख्यालों में बसाकर मैं आने वाले पलों के बारे में सोचने लगी।

बहुत बड़े उद्योगपति की बेटी सुनयना की कार में बैठकर हमारा काफिला चल पड़ा। पांचों ही सौंदर्य की देवियाँ लग रही थीं।
सुनयना ने पूछा- सच सच बताना … अभी तक किसने लंड नहीं लिया है।
मैं- मैंने नहीं लिया सुनयना।
सुनयना- ओके … तो फिर सबसे पहले तुम चुदोगी आज। उसके बाद तुम्हारी चूत से यात्रा करके आए भुजंग बाण को हम घुसवा लेंगी. ठीक है।
सभी ने स्वीकार किया।
मैं खुश हो गई।

ठीक समय पर हम बताए हुये स्थान पर पहुँच गये। सुनयना ने रिंग दी। भुजंग ने एक फ्लैट से बाहर आकर हमको रिसीव किया। वह बहुत ही हेंडसम लग रहा था।

अंदर जाते ही भुजंग ने दरवाजे को लॉक किया। हम जैसे ही बेडरूम में पहुंचे तो चौंक गये। वहाँ चार और आदमी थे।
सुनयना- भुजंग!! ये कौन हैं? हमारी बात तो सिर्फ तुम्हारा लंड लेने की हुई थी।
भुजंग- ये मेरे पार्टनर हैं। हम सभी मिलकर तुम्हें चोदेंगे। आज तुम सभी की चूत और गांड फाड़कर रख देंगे।
शकीना- नहीं !! हम बस तुम्हारा ही लंड लेंगे।

वो पांचों ज़ोर ज़ोर से हंसने लगे। डरावना वातावरण बन गया।
भुजंग- तुम जैसी चुदक्कड़ छिनालों को हम केवल चोदते ही नहीं है बल्कि विडियो भी बनाते हैं। वो देखो केमरे सामने। कई एंगल से लगे हैं केमरे। हर लड़की एक लाख रुपए देगी तो विडियो डिलीट कर देंगे नहीं तो इनको वायरल कर देंगे।
उन पांचों ने अपने चेहरे पर मास्क लगाए। विडियो के स्विच ऑन किए और हम पर टूट पड़े। मैं भुजंग के हाथ में पड़ गई।

तभी बेल बजी और दरवाजे को ज़ोर ज़ोर से ठोकने की आवाजें भी आने लगी। भुजंग के इशारे पर उन चारों ने हम पांचों को कंट्रोल में किया। सभी को वो दबोचे हुये थे और हमारे मुंह पर हाथ था। सभी मुस्टंडे थे और हम नाजुक कलियाँ।
भुजंग ने दरवाजा खोला। सामने आठ दस पुलिस वाले थे। उन्होंने भुजंग को दबोच लिया।
इंस्पेक्टर- लड़कियां कहाँ हैं?

भुजंग समझ गया कि वह फंस चुका है, उसने बेडरूम की तरफ संकेत किया। सिपाहियों ने तुरंत ही रिवाल्वर से उन गुंडों को कंट्रोल किया। हम भी उनके साथ बाहर आए। हाल में इंस्पेक्टर के पास सिर झुकाये रवि जी खड़े थे।

मैं उन्हें देखते ही ज़ोर से रोने लगी और दौड़कर रवि जी से लिपट गई।
रवि जी की आँखें भी भरी हुई थीं। उनके हाथ मेरे पीठ पर फिर रहे थे सांत्वना देते हुये।
सुनयना ने इंस्पेक्टर को सारी बात बताई। उन्होंने पहले तो हमें डांटा और फिर भुजंग और उनके गुंडों को गाड़ी में बैठाकर चल दिये।

चारों लड़कियां सुनयना की गाड़ी में बैठ गई। सब डरी हुई थीं। चुदाई का भूत न जाने कहाँ भाग गया था। मैंने रविजी की तरफ देखा। वो अपनी बाइक की तरफ बढ़ गये।
मैं- रवि जी!
रवि- …!!

रवि जी ने गाड़ी स्टार्ट की। सुनयना ने सोचा कि मैं रवि जी के साथ जा रही हूँ तो वो जा चुकी थी।
मैं रो पड़ी, रोती हुई ही चिल्लाई- सुनो! कभी साथ न छोड़ना रवि जी।

रवि ने गाड़ी बंद की और सिर झुकाकर खड़े हो गये। मैं उनके पास गई और उनसे लिपटकर रोने लगी, सिसकते हुये बोली- क्या आप मुझे अकेला छोडकर जा रहे थे?
रवि- नंदू मेरी रानी!! अगर तुम्हें अकेला छोड़ना होता तो यहाँ आता ही क्यों? अरे पागल तुझसे दोस्ती की है। दोस्त को कोई ऐसे छोड़ता है। मेरे उम्र तुमसे डबल है रानी !! मैं इस दुनिया को ज्यादा अच्छे से जानता हूँ। तुम्हें सेक्स ही करना है तो शादी कर लो। अब तुम व्यस्क हो गई हो। बाजारू लोगों से कोई तृप्ति नहीं मिलती रानी!! सच्चा प्यार पति से ही मिलेगा तुम्हें। मैं तो समझा था कि यहाँ भुजंग अकेला होगा और मैं उसे अवैध धंधा करने के आरोप में गिरफ्तार करवा दूंगा। पुलिस विभाग में मेरी पहचान थी। पर यहाँ तो बहुत बड़ी वारदात हो जाती।

मैं समझ गई कि जो रास्ता हमने चुना था वह ठीक नहीं था.

मैं उन सब लड़कियों से भी अनुरोध करती हूँ जो मेरी इस कहानी को पढ़ रही हैं।
‘प्लीज सेक्स उसी से कीजिये जिस पर आपको विश्वास हो। भुजंग जैसे लोगों के चक्कर में मत पड़ना। ये बहुत बुरे लोग होते हैं। और जो आदमी मेरी इस कहानी को पढ़ रहे हैं उसने भी मेरा निवेदन है कि अगर कोई लड़की अपनी कामवासना से विवश होकर आपके पास अपनी प्यास बुझाने के लिए आए तो उसकी चुदाई तो करें लेकिन उनका वीडियो न बनाएँ और न पिक लें। उन्हें ब्लेकमेल न करें।’

मुझे तो रविजी ने बचा लिया। मैं उनकी आभारी हूँ और मैं एक बार फिर बिना चुदी रह गई हूँ।
आप की अपनी
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#4
Very erotic and exited story chutki ji keep it up
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#5
(17-01-2019, 08:38 AM)Black boy Wrote: Very erotic and exited story chutki ji keep it up

THANK YOU!!!
आप की अपनी
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#6
Update do
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#7
Nice story rani.
Apna email id btao personal baat krni h.
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#8
nice story added five stars
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#9
NICE update
VIsit my story  

Main ek sex doll bani..https://xossipy.com/thread-2030.html

 uncle ne banai meri movie(bdsm).. https://xossipy.com/thread-40694.html
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#10
(18-01-2019, 06:14 AM)Black boy Wrote: Update do

Jaldi hi dungi
आप की अपनी
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#11
(20-01-2019, 10:46 AM)komaalrani Wrote: nice story added five stars

THANK YOU VERY MUCH !!!
आप की अपनी
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#12
(20-01-2019, 10:56 AM)Karishma saxena Wrote: NICE update

Thanks Karishma.... I am reading it... its amezing
आप की अपनी
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#13
आखिर चुद ही गयी

[Image: 94426671_th.gif]

आखिर कार मेरा एडमिशन गोवा के मेडिकल कॉलेज में हो ही गया।
मेरा एडमिशन घर से बाहर जहां मैं चाहती थी, पन्जिम, गोआ में मिला था। मैंने वहां एक किराये का कमरा ले लिया। पापा ने एक काम वाली लगा दी।
मेरे मकान मालिक का लड़का माइकल था जो मुझ पर शुरु से ही लाईन मारता था। मुझे भी वो अच्छा लगता था, पर वो अधिकतर अपने धन्धे ही लगा रहता था। कभी कभी लाईन मारने के इरादे से वो दुकान पर जाने के पहले मुझे मिलने आता था। पर मेरा मन उससे बहुत जल्दी उचट गया था, क्योंकि वह ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं था, बारहवीं के बाद वो अपने घरेलू बिजनेस में लग गया था।
मैं यहाँ बहुत ही खुश थी, बचपन से मैंने गोआ की सुन्दरता का नाम सुना था और अब मैं अपने मनपसन्द की जगह पर आ चुकी थी। कक्षा में हम 8 लड़कियाँ थी। पंजाबी होने से उनमें सबसे सुन्दर, लम्बी हूँ और अच्छा फ़िगर मेरा ही है।
कुछ ही दिनों में लड़के मुझ पर लाईन मारने लगे थे। मेरे सुन्दर होने से ये मेरी इच्छा थी कि मैं सबसे अच्छा ही चुनूं। एक लड़का मुझे बहुत प्यारा लगता था। वो मेरे अनुसार ही लम्बा था, हंसमुख था, जिस्म से बलशाली लगता था, मैं उसे रितिक रोशन कहती थी।
मेरे बोबे छोटे थे, पर ब्रा पहनने पर गोल गोल और भले लगते थे। मेरा दुबला पतला और लम्बा बदन, चूतड़ों के उभार, उनकी गोलाइयाँ सामान्य थी। जब कभी सन्दीप मुझसे बात करता था तो मैं उसे बातों में उलझा लेती थी और देर तक बातें करती थी। सन्दीप अन्दर ही अन्दर दिल में मुझे चाहता था। फ़्री पीरियड में हम दोनों अक्सर केन्टीन में आ जाते थे। संदीप भी मेरी ही तरह 18 वर्ष का था।
एक बार…
“नन्दिनी, तुम्हारा कोई दोस्त है लड़कों में?” सन्दीप ने पूछा।
“नहीं अब तक तो नहीं, मैं तो गर्ल्स स्कूल में थी, बस लड़कियाँ ही मेरी दोस्त रही हैं !”
“मुझसे दोस्ती करोगी?”
“तुम्हारी तो कई लड़कियाँ दोस्त हैं, कितनी से तो तुम बातें करते हो !”
“नहीं मुझे तो बस तुम अच्छी लगती हो।” कहते ही वो झेंप गया,”सॉरी नन्दिनी… मेरा मतलब था कि…”
मेरी आंखें झुक गई। मैं शरमा गई, सन्दीप ने यह क्या कह दिया। दिल धड़क उठा।
“नन्दिनी, मेरा मतलब यह नहीं था… मैं तो दोस्ती की बात कर रहा था !” सन्दीप हड़बड़ा गया। मैंने अपना चेहरा दोनो हाथों से छिपा लिया। मेरा चेहरा लाल हो उठा। किसी के दिल की बात सामने आ रही थी। मैंने साहस जुटाया और मन की बात कह डाली।
“सन्दीप, मैं तो तुम्हारी ही दोस्त हूँ, मुझे तुम भी बहुत अच्छे लगते हो !” लड़खड़ाती जुबान से मैंने कह ही डाला। मैंने चेहरे से हाथ हटाते हुए कहा, मेरी आंखें शर्म से लाल हो गई थी। उसे मैंने एकटक निहारते हुए कहा,”सच कहूँ सन्दीप, क्लास में तुम जैसा कोई नहीं !”
“नहीं नन्दिनी, तुम सा कोई नहीं है, तुम मुझे परी जैसी सुन्दर लगती हो !”
“तुम मुझे, जानते हो, रितिक रोशन फ़िल्म स्टार जैसे लगते हो !”
जाने समय कैसे निकल गया। अगला पीरियड आ गया, हम दोनों उठे और क्लास की ओर जाने लगे,”सुनो नन्दिनी, आज क्लास छोड़ो, चलो कहीं चलते हैं !”
मैंने उसकी ओर देखा, पर वहाँ सिर्फ़ प्यार था, मैं मना नहीं कर सकी, मैं उसका साथ अधिक से अधिक देर तक चाहती थी। उसने अपनी मोटर साईकल उठाई और मीरा-मार बीच की तरफ़ चल दिये। दिन का समय था, बीच खाली था, इक्के दुक्के लोग यहाँ वहाँ दिखाई दे रहे थे। पेड़ों की छांव में पार्क के पास कई जोड़े वहाँ पहले से ही जमे थे। यह यहाँ का आम दृश्य था।
हमने भी एक कोना पकड़ लिया और सीमेंट की बेंच पर बैठ गये। हमारे पास वाला जोड़ा चुम्बन में मग्न था, शायद वो लड़की के स्तनों से भी खेल रहा था।
सन्दीप ने मुझे इशारे से बताया,”वो देखो, कितना प्यार करते हैं एक दूसरे को !” मैंने भी उसे प्यासी नजरो से देखा।
सन्दीप समझ चुका था, प्यार की कोई भाषा नहीं होती। हमारे चेहरे नजदीक आने लगे, आंखें स्वत: ही एक दूसरे में खो गई। दोनों की आंखों में भरपूर प्यार था। मेरी आंखें बंद होने लगी। सन्दीप के होंठ मेरे गालों को चूमने लगे। मेरा जिस्म कंपकपाने लगा। होंठ कांपने लगे।
मैं एक असहाय सी लता की तरह उसकी बाहों में झूल गई। मेरे कांपते होंठों को उसके होंठों ने दबा लिया। दिल धड़क उठा, उसकी जीभ मेरे मुख में प्रवेश कर गई। मेरे वक्षस्थल पर उसके हाथों का दबाव आ गया। मैं अपना होश खो बैठी। मेरे होंठ ने भी अब उसकी जीभ को दबा लिया। अचानक हमारी तन्द्रा भन्ग हुई। हमारे सामने दो अंग्रेज महिलायें खड़ी थी,”एक्स्क्यूज मी, में आइ हेव योअर स्नेप्स?”
“वाई नोट, थेन्क्स” मैंने उन्हें लिपटे हुए ही कहा।
“नाउ प्लीज, किस अगेन !” उन्होंने वही सेक्सी पोज बनाने को कहा। हम दोनों फिर से उसी तरह से लिपट पड़े और चूमने लगे और सन्दीप मेरे स्तन दबाने लगा। मैं फिर से खोने लगी।
“ओके प्लीज, बी नोर्मल नाउ…जस्ट सी इट” वो मेरे पास बैठ गई, और वीडियो चला कर दिखाया।
“हाय राम, अपन ऐसे कर रहे थे क्या, और तुम इतने बेशर्म हो, देखो ये क्या कर रहे हो…प्लीज मेम, ट्रान्स्फ़र इट टू माय मोबाईल ऑलसो !”
“ओके, नो प्रोबलम” उन्होने मेरे मोबाईल में उसे कॉपी करके डाल दिया।
“ओके, प्लीज कन्टीन्यू… सॉरी फ़ोर डिस्टरबेन्स, एन्जोय लव !” कह कर वो दोनों आगे चली गई। अब मुझे शरम आने लगी थी कि मैंने ये क्या कर दिया। सन्दीप ने एक बार फिर से मुझे पास में खींच लिया। सामने वाला जोड़ा पर सेक्स एन्जोय कर रहा था। लड़की पैन्ट के ऊपर से ही लड़के का लण्ड दबा रही थी, और लड़का उसकी शर्ट में हाथ डाल कर चूचियाँ मसल रहा था। सन्दीप ने भी लिपटाये हुए मेरी चूत दबा दी। मैं उछल पड़ी।
“सन्दीप, ये नहीं करो, मुझे अच्छा नहीं लगता है !”
“सॉरी, नन्दिनी, मुझसे रहा नहीं गया था, ये देखो तो, इसका क्या हाल है !” उसने अपने लण्ड की तरफ़ इशारा किया। मैंने मौका पा कर तुरन्त ही उसका लण्ड पकड़ लिया और मसलते हुए अन्दर दबा दिया।
“इसे कन्ट्रोल में रखो, समझे !” पर उसके लण्ड का साईज़ और मोटापन का स्पर्श पा कर मेरा जिस्म कांप गया। सन्दीप के मुख से आह निकल गई। मैं खड़ी हो गई। सामने वाले जोड़े की नजर जैसे हम पर पड़ी वो अलग हो गये। मैं मुस्करा उठी और उनके पास आ गई।
“हाय, मजा आ रहा है ना?” लड़की शरमा गई, मुझे भी बहुत मजा आया, कल भी आप आयेंगे ना…हम भी आयेंगे” लड़का और लड़की दोनों मुस्करा उठे।
“आपने तो खूब मजे किये ना, हमने सब देखा, आप का जोड़ा मस्त है, थक्स फ़्रेन्ड्स”
रात को कमरे में अकेले लेटे लेटे मुझे बार बार सन्दीप का चुम्बन, वक्ष मर्दन और चूत को दबाना याद आने लगा था। उसके लण्ड का स्पर्श मेरी जान ले रहा था। मैंने मोबाइल पर वीडियो निकाल कर देखा। मेरी चूत में पानी उतर आया। मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने मोबाईल पर उसे कॉल किया।
“सन्दीप, क्या कर रहे हो ?”
“पढ़ रहा हूँ और क्या?”
“मेरे पास आ जाओ, तुम्हारी बहुत याद आ रही है!”
“अभी आऊँ क्या, कोई क्या कहेगा कि रात को आठ बजे तुम्हारे पास लड़के आते हैं !”
“आ जाओ ना, अभी यहाँ कोई नहीं है, पास के घर में अंधेरा है।”
“अच्छा अभी आता हूँ” उसने फोन रख दिया। मैं उसका बेसब्री से इन्तज़ार करने लगी।
कुछ ही देर में सन्दीप आ पहुंचा। मैं उसका दरवाजे पर ही इन्तज़ार कर रही थी।
आते ही उसने पूछा,”क्या हुआ, सब ठीक तो है न?”
“नहीं कुछ भी ठीक नहीं है।”
“क्या हो गया, ऐसे क्यो बोल रही हो ?”
“अन्दर तो आ जाओ पहले, फिर बताती हूँ।”
अन्दर आते ही मैंने दरवाजा अन्दर से बन्द कर दिया और चैन की सांस ली। उसके आते ही मेरी बैचेनी दूर हो गई और मैं जो कहने वाली थी, सब भूल गई।
“कुछ तो कहो अब…”
“बस तुम आ गये, मैं सब भूल गई।” मैंने शरमा कर अपनी बात कबूल कर ली।
” नन्दिनी तुम भी ना, बस” कह कर वो बिस्तर पर बैठ गया। “अच्छा अब मेरे पास तो आ जाओ ना”
“बोलो अब, लो आ गई।” मुझे पता था वो मुझे चूमेगा, छूएगा और मस्ती करेगा।
“तुमने मुझे यहाँ बुलाया, और अब चुप हो, कही तुम्हारा मन डोल तो नहीं रहा है ना?” सन्दीप ने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी तरफ़ खींच लिया। मैं फ़िर शरमा गई।
उसने मुझे अपनी गोदी में बैठा लिया और धीरे से कमर में हाथ डाल दिया। मेरा चेहरा उसके चेहरे के बिलकुल पास आ गया। मेरे होंठ कांप उठे। मेरे होंठ खुल गये और नीचे का लब उसके दोनो होंठ के बीच में दब गया। मेर निचला होंठ वो चूसने लगा। उसका एक हाथ मेरे वक्षस्थल पर आ गया। मेरे छोटे छोटे उरोज उसके हाथों में दब गये। मेरे मुख से सिसकारी निकल पड़ी।
“नन्दिनी, तुमने ब्रा नहीं पहनी” सन्दीप का हाथ मेरे नंगे उरोज पर फ़िसल रहा था। मैंने उसके लबों को दबा कर चुप कर दिया। उसके लण्ड में उफ़ान आ रहा था। मेरा हाथ धीरे से उस पर आ गया और उसके लण्ड के साइज़ का नाप तौल करने लगा।
“सॉरी, नन्दिनी, तुम्हारा रूप मुझसे सहा नहीं जा रहा है, ये गरम हो गया है।” मैंने फिर से उसके होंठ पर अंगुली रख दी।
“सन्दीप, तुम बहुत बोलते हो, चुप रहो, जो होना है वो तो होगा ही।” मेर बदन अब वासना से भर चुका था। कुंवारी कली खिलने को बेताब थी। भंवरा भी डंक मारने को बेताब था। उसने अब धीरे से मेरी चूत की तरफ़ हाथ बढ़ाया तो मैंने अपनी टांगें चौड़ी कर ली। उसका हाथ अब मेरी चूत पर था।
“तुमने पेन्टी भी नहीं पहनी है।”
“अंह्ह्ह, सन्दीप, मत बोलो ना, समझते हो तो कहते क्यो हो ?” मैंने उसे नाराजगी जताई। मैं अब सन्दीप के हाथों में खिलोने कि तरह खेल रही थी। मेरे अंग अंग को वो फ़्री स्टाईल से दबा रहा था। मुझे बहुत मजा आ रहा था।
“सन्दीप, अपनी जीन्स तो ढीली करो ना, इसको कब तक छुपाओगे”
“चल हट, ये बिगड़ गया तो फिर तुम नाराज नहीं होना।” सन्दीप ने शरारत से कहा। अपनी जीन्स उसने जल्दी से उतार दी।
“और ये अंडरवियर भी उतार दूँ क्या ?” उसने मेरे जवाब का इन्तज़ार नहीं किया औए पूरा नंगा हो गया। मैं उसका जिस्म देखती रह गई। चिकना, सुन्दर, तराशा हुआ, गोरा, कोई बाल नहीं… हाय मेरे तो पसीना छूटने लगा। उसे देख कर मेरे बदन में वासना की आग भड़क उठी। मैंने भी अपने रहे सहे कपड़े उतार फ़ेंके और नंगी हो गई। मैं उससे जा कर लिपट गई, दोनों जिस्म आपस में रगड़ उठे। नंगे जिस्म आपस में चिपक गये, नंगेपन का अह्सास होने लगा। मैंने सन्दीप का लण्ड हाथ में पकड़ लिया…
“हाय रे सन्दीप, इतना मोटा लण्ड, इतना बडा लण्ड, इसे मेरे जिस्म में समा दो अब।” मैं नशे में बहक उठी। उसके हाथ मेरी चूतड़ो की गोलाईयां मसल रहे थे। मैं उसके लण्ड को अपनी चूत से रगड़रही थी। उसका सुपाड़ा अब भी चमड़ी से ढका था। मेरे चूत का रस उसके लण्ड को गीला कर के तर कर रहा था।
सन्दीप मुझे दबा कर बिस्तर पर लेट गया और मेर ऊपर चढ़ गया। मेरे शरीर में मीठी मीठी वासनायुक्त जलन भरने लगी थी। चूत फ़ड़फ़ड़ा उठी थी। उसने अपने लण्ड का पूरा जोर मेरी चूत पर लगा दिया। पर वो इधर उधर फ़िसल जाता था। मेरे से रहा नहीं गया तो मैंने लण्ड पकड़ कर चूत में घुसा डाला। लण्ड घुसते ही उसके मुँह से चीख निकल गई। लण्ड कच्चा था, पहली बार चूत का स्वाद चखा था। उसके सुपाड़े के रिन्ग की झिल्ली फ़ट गई थी।
“क्या हुआ सन्दीप, डर गये क्या मेरी चूत से” मैं उसकी चीख को समझ नहीं पाई थी।
“चुप हो जाओ, मुझे लगती है, ये क्या हो गया है ?
“कुछ नहीं, लगाओ ना, घुसेड़ो ना लण्ड अन्दर तक, प्लीज !” उसने मेरी बेकरारी देखी और सम्भल कर उसने थोड़ा सा बाहर निकल कर हिम्मत करके पूरा जोर लगा कर लण्ड धक्का मार कर पूरा घुसेड़ दिया। इस बार उसके साथ मेरी भी चीख निकल गई। सन्दीप रुक गया।
“अब तुम्हें क्या हुआ?” चूत में से खून निकल पड़ा। पर उसकी नजर मेरे चेहरे पर थी, जहाँ से आंसू बह निकले थे।
“रो क्यों रही है, लगी तो मुझे है, तुम क्यों रो रही हो?”
“मेरी फ़ट गई है, हाय रे !” मैं रो पड़ी। मुझे पता था कि झिल्ली होती है, पर फ़टती कैसे है यह आज पता चला।
“पर मैंने गाण्ड थोड़ी मारी है, जो तुम्हारी फ़ट गई है?” सन्दीप ने हैरानी से कहा।
“अरे चूत की झिल्ली फ़ट गई है, गाण्ड नहीं फ़टी है, बस अब नहीं, उतरो मेरे ऊपर से !” उसे भी लण्ड में दर्द हो रहा था और मुझे भी चूत में दर्द हो रहा था।
उसने लण्ड चूत से बाहर निकाला तो खून भी निकल पड़ा। मैंने झट से पास में पड़ा कपड़ा उठाया और नीचे लगा दिया। खून देख कर सन्दीप घबरा गया। मैंने उसे अपनी जानकारी के अनुसार उसे बताया तो वो शान्त हुआ।
अब हमारे में चुदाई का जोश समाप्त हो गया था। हम दोनों ने बाथ रूम में जा कर सफ़ाई की। उसका लण्ड देखा तो सुपाड़े के रिन्ग से लगी स्किन अलग हो गई थी और थोड़ी सी लालिमा आ गई थी। मैंने भी सेनेटरी नेपकिन लगा लिया था।
“सन्दीप हमें कितना मजा आ रहा था, पर ये अब क्या है… मुझे तो डर लग गया है।”
“लगता है हमें सजा मिली है…” वो जाने के लिये तैयार था।
हम दोनों का कुंवारापन जाता रहा था, अब हम दोनों मर्द और औरत बन चुके थे। जो अब चुदाई के लिये तैयार थे। सन्दीप जा चुका था। मैं बिस्तर पर लेट गई। अपना दर्द किससे कहती। चूत में अब भी टीस उठ रही थी। रात देर तक जागती रही थी, फिर कब आंख लग गई पता ही नहीं चला। दूसरे दिन मेरे चूत का दर्द समाप्त हो चुका था। मुझमें फिर से वासना अंगड़ाईयां लेने लगी थी।
आज सवेरे सन्दीप का कोई फोन नहीं आया। मैंने किया तो फोन ओफ़ था। कॉलेज में भी वो नहीं दिखा। मैं परेशान हो उठी। शाम को माइकल घर आया और मुझे परेशान देख कर पूछा, तो मैंने उसे बताया कि सन्दीप मुझसे बात नहीं कर रहा है। उसने मुझे तसल्ली दी कि शायद वो यहाँ नहीं होगा, आ जायेगा, इन्तज़ार करो।
माइकल अब रोज मेरा दिल बहलाने लगा। मजाक करता, मुझे हंसाता, सेक्सी जोक्स करता। मैं धीरे धीरे माइकल की तरफ़ आकर्षित होने लगी। सन्दीप का ख्याल दिल में आता पर माइकल अपनी जिन्दादिली से उसे भुला देता था।
एक शाम को मैं अपना संयम तोड़ बैठी और माइकल से चुद गई। मैं कॉलेज से आने के बाद बिस्तर पर लेटी माइकल और सन्दीप के बारे में सोच रही थी। अचानक मुझे माइकल सेक्सी लगने लगा। उसके नंगे जिस्म की मैं कल्पना करने लगी। उससे चुदने का अनुभव मह्सूस करने लगी। मुझे माइकल की हर बात अब अच्छी लगने लगी। उसकी हंसी, उसकी बातें, उसका स्टाईल इत्यादि। मेरे मन में वासना करवटे लेने लगी। मुझे लगा कि अब माइकल से ही मैं सन्तुष्ट हो पाऊंगी।
माइकल हमेशा की तरह शाम को आया और एक आइस्क्रीम जो मुझे पसन्द थी, मुझे दी, ये उसका हमेशा का काम था। पर मेरी नजरें बदल चुकी थी। आते ही उसने एक सेक्सी मजाक किया जो मुझे अच्छा लगा। उसकी हर बात में मुझे सेक्स नजर आने लगा। आइस्क्रीम खाते खाते पिघल कर मेरी छाती पर गिर पड़ी।
“हाय माइकल, मेरा कुर्ता गंदा हो गया !” माइकल ने तुरन्त एक कपड़ा गीला किया और मेरी छाती पर लगा कर धीरे से घिस दिया। दाग तो मिट गया पर मेरी चूची जो दब गई थी, उसने मन में आग लगा दी। जोर की गुदगुदी उठी और मेरे मुख से आह निकल पड़ी।
“मजा आया ना?” उसने तुरन्त मजाक किया।
“तुझे तो मारना चाहिये, साला गड़बड़ी करता है।” मैंने यूँ ही नाराजगी जताई।
“देख मारना ही है तो पूरा मारना, पूरा दाग साफ़ कर दूँ क्या ?” उसने फिर से मजाक किया।
“माईकल, एक तो दबा दिया और अब मजाक कर रहा है !”
” ऐ नन्दिनी, दबाने दे ना, तेरा क्या जायेगा, बस चमड़ी ही तो दबेगी, मुझे मजा आ जायेगा।”
“अब देख माइकल, पिटेगा तू !”
“अच्छा पिटना ही है तो दबा कर ही पिटूँ !” फिर उसने शरारत कर ही दी।
माइकल ने आगे बढ़ कर मेरे बोबे दबा दिये, मैं वासना की मारी, क्या कहती उसे, मेरी दिली इच्छा भी यही थी। मैंने उसका हाथ दूर करने की असफ़ल चेष्टा की, फिर मन किया कि मजा आ रहा है तो उसे करने दिया।
“छोटे हैं, पर कड़े हैं, नन्दिनी हाय रे, देख तेरा कुछ नहीं बिगड़ा ना, मजा आया ना?” मेरी सांसें तेज हो गई।
“हाय, ना कर अब, वर्ना सब गड़बड़ हो जायेगा रे !” मेरी धड़कनें तेज हो गई। माइकल शायद यह जानता था कि वो शुरू कर देगा तो मैं मना नहीं करूंगी।
“फिर भी तेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा, ये तो सिर्फ़ चमड़ी का खेल है, बस हमें रगड़ना ही तो है।”
“माइकल, तू बड़ा खराब है, जिस्म को चमड़ी कह रहा है, ला तेरी नीचे की चमड़ी को मसल दूँ” मैंने उसका वार उसी पर किया। उसका लण्ड जोर मार रहा था। मैंने उसके जवाब का इन्तज़ार नहीं किया और उसका लण्ड पैन्ट के ऊपर से ही भींच लिया। उसके मुँह से आह निकल गई। उसने मुझे लिपटा कर चूमना शुरू कर दिया। उसके हाथ मेरे स्कर्ट के अन्दर घुस गए। मेरा नंगा बदन उसके कब्जे में आ गया, मेरे निपल को हौले से मसलने लगा।
“हाय माइकल बस कर अब, वर्ना सब गड़बड़ हो जायेगा।” मेर जिस्म पिघलने लगा। मन में खुशी की तरन्गें उछाल मारने लगी।
“सच मान यार तेरी चमड़ी को कुछ नहीं होगा, देखना वैसी की वैसी रहेगी।” मुझे वासना के साथ ये हंसी का खेल बहुत भा रहा था।
“माइकल, मत बोल ना, देख चमड़ी को छूने से मस्ती आ रही है।” मुझे हंसी भी आ रही थी और मस्ती का रन्ग भी चढ़ रहा था। लग रहा था कि वो बस मेरे अंग दबाता ही जाये।
“साली, मस्ती बढ़ती जा रही है, चल अपन चमड़ी की रगड़मपट्टी करें।”
“देख मुझे और ना हंसा !” मेरी हंसी रोके नहीं रुक रही थी। उसने मेरा स्कर्ट पूरा उतार दिया, मेरा ऊपर का शरीर नंगा हो गया।
“गोरी चमड़ी, चिकनी चमड़ी, क्या शेप है, यार तुम तो क्या फ़िगर वाली हो?” मैं फिर से हंस पड़ी।
“लगता है तुम चमड़ी का पीछा नहीं छोड़ने वाले, अब अपनी चमड़ी तो दिखाओ, उतारो अपने कपड़े !”
उसको तो जैसे मौका चाहिये था। झट से पूरा नंगा हो गया और पहलवान का पोज बना कर खड़ा हो गया।
“ये देखो मेरी सोलिड बॉडी, हूँ न मच्छर पहलवान?”
“हाय रे, माइकल तुम भी ना !” मैं खिलखिला कर हंस पड़ी, “अब बस करो मेरा पेट दुखने लगा है।”
“क्यूँ, पसन्द नहीं आई ये बॉडी ?”
“बस ऐसे ही खड़े रहो, तुम्हारा ये सब बहुत सुन्दर है।” उसका खड़ा हुआ तन्नाया लण्ड मुझे सुन्दर लगने लगा था। मैंने आगे बढ़ कर उसका लण्ड थाम लिया।
“नरम चमड़ी का कड़क लन्ड… माइकल देखो ना कितना मस्त है।”
“नरम चमड़ी का कड़क लण्ड… क्या बात है, अब तुम्हारी नरम चमड़ी की प्यारी चूत की बारी है।” माइकल ने मुझे हंसते हंसाते बिस्तर पर लेटा दिया। और उसका लण्ड मेरी चूत पर दब गया। मन किया, साला मुझे चोद दे, लण्ड घुसेड़ दे, क्यूँ देर कर रहा है।
“बोलो नन्दिनी, जय हो ऊपर वाले की, बोलो ना !”
“अब बस करो ना, कितना हंसाओगे, अच्छा जय ऊपर वाले की…बस” और उसी समय उसका लण्ड मेरी चूत में उतरता चला गया। मेरी चूत भी ऊपर जोर लगा कर लण्ड को निगलने लगी। तेज मीठी सी मस्ती वाली गुदगुदी उठी।
मुझे हैरानी हुई कि मुझे बिलकुल दर्द नहीं हुआ, बल्कि मजा आया। मेरे दिल में ख्याल आया कि दर्द और मजा तो सब अपने अन्दर ही निहित है। कल दर्द था यहीं पर, आज स्वर्ग सी मिठास है, मुझे सन्दीप या माइकल की क्या जरूरत है, मजा तो अन्दर ही है। बस चुदने के सॉलिड लण्ड चाहिये और एक भरोसे का मर्द। अपनी मस्ती खुद ही लूटो और मन करे उससे चुदाओ, क्यूँ किसी की लौंडी बन कर रहो। उसके धक्के बढ़ते गये, मैं मस्त होने लगी।
“तो फूल तो खिल चुका है, किसी ने चोदा है या खेल खेल में खिल गई?” मैं उसका इशारा समझ रही थी, पर मुझे ये समझ में आ गया था कि मजा तो लण्ड में है माईकल में नहीं।
“मजा तो खिले फूल में है ना, भरपूर मजा मिलेगा ना।” उसका लण्ड चूत में पूरा समेटते हुये बोली।
“मजा आ रहा है ना चमड़ी रगड़ने में, ये सारा खेल ही इसका है डार्लिन्ग” उसने लण्ड पेलते हुए कहा। मेरी चूत पानी पानी हुई जा रही थी। मिठास चरम सीमा पर आ चुकी थी। मेरा बदन अब ऐंठने लगा था। मुझे लगा कि चूत पानी छोड़ने वाली है, चूत लपलपा उठी, सारी नसें खिंचने लगी। मैं होश खोने लगी। और अन्जाने में मेरी चूत कसने लगी और पानी छोड़ दिया।
“आह्ह माईकल, मेरी तो निकल गई, हाय, पानी निकल रहा है।” मेरा शरीर कसने लगा और झड़ने लगा। धीरे धीरे स्वर्ग सा आनन्द लेते हुए मैं झड़ने के सुख का अह्सास अनुभव करने लगी। मेरा पानी निकल रहा था। पर माईकल के धक्के बन्द नहीं हुए। मेरा पूरा पानी निकलते ही उसने मुझे उल्टा लेटा दिया और और मेरे चूतड़ों की गोलाईयाँ हाथ से फ़ैला दी। और उसका लण्ड मेरी गाण्ड के छेद से टकरा गया। मुझे गुदगुदी सी लगी। पर अगले ही पल मैं चीख उठी। उसका लण्ड गाण्ड में घुस चुका था।
“माइकल बस, निकाल लो, मर जाऊंगी !”
“यार चमड़ी है, कुछ नहीं होगा, कुछ देर में फ़ैल जायेगी, शान्त रहो।”
उसका दूसरा धक्का मुझे फिर से हिला गया। मेरी गाण्ड में जलन होने लगी। पर वो रुका नहीं। मैंने कस कर अपना मुँह बन्द कर लिया, वो जोर लगा कर गाण्ड चोद रहा था। वैसे तो मेरी गाण्ड का छेद बहुत नरम था पर उसमे कोई लण्ड पहली बार घुसा था।
कुछ देर धक्के मारने के बाद उसके लण्ड ने माल छोड़ दिया और मेरी गाण्ड में ही पूरा वीर्य भर दिया। जलन में वीर्य ने मरहम का काम किया। थोड़ा चिकनापन गाण्ड में लगा। उसका लण्ड बाहर आ गया। वह तुरंत उठा और कराह उठा। उसका लण्ड गाण्ड मारने से जगह जगह से छिल गया था, चमड़ी फ़ट गई थी। मेरी गाण्ड में भी जलन हो रही थी।
हम दोनों ने बाथ रूम में पानी से सब साफ़ कर लिया। मुझे ज्यादा नहीं लगी थी, बस हल्की सी सूजन आ गई थी। माइकल ने मुझसे बोरोप्लस ले कर मेरी गान्ड में लगा दी और अपने लण्ड में लगाने लगा।
“नन्दिनी रुकना मैं अभी आया।” मैं बिस्तर पर लेट गई और आज की चुदाई के बारे में सोचने लगी। फिर मुझे हंसी भी आने लगी।
“क्यों हंसी तुम?” माईकल रात का खाना ले आया और मेज़ पर लगाने लगा।
“हंसी क्यों ना आये, यार तुम्हारे इस चमड़ी के खेल में अपनी तो सारी चमड़ी फ़ट गई।” मैं खिलखिला कर हंसी।
“हा यार, मेरे तो लण्ड की माँ चुद गई।” मैंने उसके होंठों पर अंगुली रख दी।
“गाली नहीं, समझे…” हम फिर से हंस पड़े । वो मेरे टोकने से शरमा गया और सॉरी कहा।
“सन्दीप के बारे में मैं कल पता करूंगा।” माईकल ने मुझे दिलासा दिया। पर अब सन्दीप किसे चाहिये था।
“रहने दो ना, अब तो तुम ही मुझे प्यारे लगने लगे हो।”
“नहीं, मुझे पता है, तुम्हें एक लण्ड और चाहिये… और शायद और भी ज्यादा…” माइकल कह कर हंस पड़ा। क्या इसे मेरे मन की बात मालूम हो गई है या ये ऐसे ही कह रहा है।
“अच्छा तुम्हें और चूत नहीं चाहिये क्या ? किसी को पटाऊँ क्या ?”
दोनों ने एक दूसरे को पहले तो गहरी नजरों से देखा, फिर ठहाको से कमरा गून्ज उठा। शायद हम जवानी का तकाजा समझ गये थे।
आप की अपनी
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#14
Chud to gai lekin maja nahi aaya.michal see Janwaro ki tarah chudti .chilla chilla k hay mar gai
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#15
(21-01-2019, 08:51 AM)Black boy Wrote: Chud to gai lekin maja nahi aaya.michal see Janwaro ki tarah chudti .chilla chilla k hay mar gai
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:D
आप की अपनी
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#16
nice story
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#17
Nice update
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