Thread Rating:
  • 1 Vote(s) - 5 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
UNSC में कश्मीर पर जीता भारत, लेकिन इन 3 चुनौतियों से पाना होगा पार
#1
UNSC में कश्मीर पर जीता भारत, लेकिन इन 3 चुनौतियों से पाना होगा पार

[Image: modi-imran-082019090203.png]

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पिछले सप्ताह कश्मीर के मुद्दे पर भारत की कूटनीति ने चीन की कोशिशों को नाकाम कर दिया हालांकि अभी भारत की चुनौतियां कम नहीं हुई हैं. मोदी सरकार के जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के बाद से ही पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने में जुटा हुआ है जिसमें उसे चीन का भरपूर साथ मिल रहा है.

हालांकि, यूएस और फ्रांस ने भारत का साथ देते हुए कश्मीर को आंतरिक मुद्दा करार दिया जिससे ना संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में औपचारिक चर्चा का प्रस्ताव पेश हो सका और ना ही भारत के विरोध में कोई बयान आया. शीतयुद्ध के वक्त से यूएनएससी में कश्मीर मुद्दे पर भारत का साथ देते आए रूस ने साफ कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच सारे विवाद द्विपक्षीय स्तर पर ही सुलझाने जाने चाहिए. वहीं, ब्रिटेन चीनी रुख की तरफ झुकते हुए यूएनएससी की तरफ से कश्मीर पर बयान जारी करने की मांग कर रहा था.

यूएनएससी में सामूहिक राय भारत के ही पक्ष में ही रही लेकिन भारत के सामने कूटनीतिक चुनौतियां पूरी तरह से खत्म नहीं हुई हैं. नई दिल्ली इस्लामाबाद के यूएनएससी में राजनीतिक  दावे को तो बड़ी आसानी से खारिज कर सकता है लेकिन इस्लामाबाद के चीन की मदद से यूएनएससी में बार-बार कश्मीर मुद्दा उठाने के इरादे को किसी भी सूरत में नजरअंदाज नहीं कर सकता है. अगली बार यूएनएससी में कश्मीर मुद्दे पर क्या प्रतिक्रिया देता है, यह वहां के जमीनी हालात पर भी काफी कुछ निर्भर कर सकता है.

विश्लेषकों का कहना है कि पोखरण परमाणु परीक्षण-2 के बाद से किसी घरेलू घटनाक्रम से पहली बार इतनी बड़ी कूटनीतिक चुनौती पेश हुई है. पोखरण परमाणु परीक्षण के वक्त जिन देशों की भूमिका थी, इस बार भी वही खिलाड़ी हैं हालांकि भारत अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में 1998 में ज्यादा मजबूत स्थिति में आ चुका है.

भारत के सामने पहली चुनौती नागरिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की बहस को लेकर भारत की स्थिति को मजबूत करना है. न्यू यॉर्क/लंदन के पत्रकार, ऐक्टिविस्ट, पाकिस्तानी स्टेट एजेंट लगातार कश्मीर में मानवाधिकार को लेकर मोदी सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं और प्रोपेगैंडा फैला रहे हैं.

कश्मीर में कानून व्यवस्था खराब होने या किसी भी सूरत में नागरिकों के खिलाफ अगर सैन्य ताकत का इस्तेमाल करना पड़ता है तो इससे भारत का अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन कमजोर पड़ सकता है. पाकिस्तान के साथ लगी सीमा (LoC) पर किसी भी तरह का सैन्य संघर्ष भी अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए खतरा माना जा सकता है और यूएनएससी के राजनीतिक हस्तक्षेप का रास्ता खोल सकता है. पाकिस्तान घाटी में हिंसा फैलाने की भी कोशिश कर सकता है.

पाकिस्तान के अलावा, कश्मीर मुद्दे पर दो देश खुद ही थर्ड अंपायर बन गए हैं- चीन और यूके. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन और यूके का विरोध फ्रांस, यूएस और कुछ अन्य छोटे देशों के भारत को समर्थन देने की वजह से दब गया. जब चीन ने सामूहिक बयान जारी करने की मांग की तो रूस ने मध्यम मार्ग अपनाते हुए ना समर्थन किया और ना ही विरोध.

यूके के इस रवैये के पीछे दो वजहें हैं. ब्रिटेन की राजनीति में पाकिस्तानी मूल के लोगों की अच्छी-खासी भूमिका और प्रभाव है जिसकी वजह से लंदन को भारत-विरोधी रुख अपनाना पड़ रहा है. ब्रिटिश राजनयिक जब मीरपुर (PoK-पाक अधिकृत कश्मीर) के मूल नागरिकों के बारे में बात करते हैं तो उसे 'हमारे कश्मीरी समुदाय' कहकर बुलाते हैं. ये आबादी यूके में अपनी पहचान पाकिस्तानी समुदाय के तौर पर करती है.
(यूके के पीएम बोरिस जॉनसन)

इसके अलावा, ब्रिटेन का एक धड़ा मानता है कि कश्मीर विवाद को "सुलझाने" में उनकी भी कोई भूमिका है. भारत के स्वतंत्रता दिवस पर लंदन में भारतीय उच्चायोग के सामने हिंसा की घटनाओं पर स्थानीय अधिकारियों ने कड़ी प्रतिक्रिया तक नहीं दी.

भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती चीन है जिसने यूएनएससी में भारत के खिलाफ अपना पूरा जोर लगाने का सिग्नल दे दिया है. बीजिंग ने दिल्ली पर कश्मीर में राजनीतिक यथास्थिति बदलने को लेकर चीन की संप्रभुता को चुनौती देने का आरोप लगाया है. यही नहीं, कूटनीतिक इतिहास में वह पहली बार मानवाधिकारों के उल्लंघन की बात कर रहा है. वह भी तब, जब वह हॉन्ग कॉन्ग में प्रदर्शनकारियों का सामना कर रहा है और शिनजियांग में ,.,ों को हिरासत केंद्र में रखे जाने को लेकर दुनिया भर में आलोचना झेल रहा है. हालांकि, कश्मीर मुद्दे पर अब भारत बहुत मजबूत स्थिति में आ चुका है और अरब देश भी भारत के साथ खड़े हैं. अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए अब कश्मीर मुद्दा अतीत बनता जा रहा है.

वैसे भी, चीन की मुख्य चिंता कश्मीर नहीं बल्कि लद्दाख है. लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश बनाए जाने के बाद अब लद्दाख पर केंद्र सरकार का सीधा नियंत्रण होगा जिसकी वजह से चीन परेशान है. चीन ने सक्षगाम घाटी और अक्साई चिन पर कब्जा जमा रखा है. चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) के तहत ऐसा इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा किया गया है जिसका दोहरा इस्तेमाल हो सकता है, यानी गिलगिट-बाल्टिस्तान में चीन इसी बहाने अपनी सैन्य ताकत को भी मजबूत कर रहा है. तिब्बत और शिनजियांग में कब्जे और सैन्यकरण के जरिए चीन ने ऐतिहासिक बफर जोन को सशस्त्र सेना से लैस कर दिया है.

कश्मीर पर भारत को घरेलू, सीमा पार और अंतरराष्ट्रीय तीनों मोर्चों पर बहुत ही सावधानी से आगे बढ़ने की चुनौती है क्योंकि एक भी मोर्चे पर असफलता भारत के लिए मुश्किल पैदा कर सकती है.


గర్ల్స్ హైస్కూ'ల్ > INDEX 
నా పుస్తకాల సొరుగు > My (e)BOOK SHELF
చిట్టి పొట్టి కథలు - పెద్దల కోసం > LINK
Like Reply
Do not mention / post any under age /rape content. If found Please use REPORT button.




Users browsing this thread: