Posts: 2,727
Threads: 13
Likes Received: 1,217 in 788 posts
Likes Given: 494
Joined: Jan 2019
Reputation:
47
'सोलवां सावन '
पहली फुहार
सैयां जिन मांगो, ननदी, सैयां जिन मांगो, ननदी, सेज का सिंगार रे,
अरे, सैयां के बदले, अरे, सैयां के बदले, भैया दूंगी, चोदी चूत तुम्हार रे,
अरे, दिल खोल के मांगो, अरे बुर खोल के मांगो ननदी
अरे बुर खोल के मांगो ननदी जो मांगो सो दूंगी।
सोहर (पुत्र जन्म के अवसर पर गाये जाने वाले गाने) में, सावन में भाभी के मायके में मुझे ही टारगेट किया जा रहा था, आखिर मैं उनकी एकलौती छोटी ननद जो थी।
भाभी ने मुश्कुराते हुये पूछा-
“क्यों ननद रानी, मेरा कौन सा भाई पसंद है, अजय, सुनील, रवी या दिनेश… किससे चुदवाओगी…”
मेरे कुछ बोलने के पहले ही भाभी की अम्मा बोल पड़ी-
“अरे किससे क्या… चारों से चुदवायेगी। मेरी ये प्यारी बिन्नो सबका मन रखेगी…”
और यह कहते-कहते, मेरे गोरे, गुलाबी गालों पर चिकोटी काट ली।
मैं शर्म से लाल हो गयी।
हमारी हम उमर भाभी की छोटी कजिन, चन्दा ने मुझे फिर चिढ़ाया-
“मन-मन भाये, मूड़ हिलाये, मौका मिलते ही सटासट गप्प कर लोगी, अभी शर्मा रही हो…”
तब तक चन्दा की भाभी, चमेली भाभी ने दूसरा सोहर शुरू कर दिया, सब औरतें उनका साथ दे रही थीं।
कहां से आयी सोंठ, कहां से आया जीरा,
अरे, कहां से आयी ननदी हो मेरी गुंइयां।
अरे पटना से आयी सोंठ, बनारस से आया जीरा,
अरे आज़मगढ़ से, आयीं ननदी, हो मेरी गुंइयां।
क्या हुई सोंठ, क्या हुआ जीरा,
अरे क्या हुई ननदी, ओ मेरी गुंइयां।
अरे जच्चा ने खाई सोंठ, बच्चा ने, बच्चा ने खाया जीरा,
अरे, मेरे भैय्या ने, अरे, मेरे भैय्या ने चोदी ननदी रात मोरी गुंइयां।
अरे, मेरे देवर ने चोदी ननदी, हो मेरी गुंइयां, (भाभी ने जोड़ा।)
अरे राकी ने चोदी ननदी, हो मेरी गुंइयां, (भाभी की भाभी, चम्पा भाभी ने जोड़ा।)
जब भाभी की शादी हुई थी, तब मैं 10वें में पढ़ती थी, आज से करीब दो साल पहले .चौदह की थी तब , पर बरात में सबसे ज्यादा गालियां मुझे ही दी गयीं, आखिर एकलौती ननद जो थी, और उसी समय चन्दा से मेरी दोस्ती हो गई थी।
भाभी भी बस… गाली गाने और मजाक में तो अकेले वो सब पर भारी पड़ती थीं। पर शुरू से ही वो मेरा टांका किसी से भिड़वाने के चक्कर में पड़ गई।
शादी के बाद चौथी लेकर उनके घर से उनके कजिन, अजय और सुनील आये (वह एकलौती लड़की थीं, कोई सगे भाई बहन नहीं थे, चन्दा उनकी कजिन बहन थी और अजय, सुनील कजिन भाई थे, रवी और दिनेश पड़ोसी थे, पर घर की ही तरह थे।
वैसे भी गांव में, गांव के रिश्ते से सारी लड़कियां बहनें और बहुयें भाभी होती हैं)। उन दोनों के साथ भाभी ने मेरा नंबर…
दोनों वैसे भी बरात से ही मेरे दीवाने हो गये थे, पर अजय तो एकदम पीछे ही पड़ा था। रात में तो हद ही हो गई, जब भाभी ने दूध लेकर मुझे उनके कमरे में भेजा और बाहर से दरवाजा बंद कर दिया। पर कुछ ही दिनों में भाभी अपने देवर और मेरे कजिन रवीन्द्र से मेरा चक्कर चलवाने के…
रवीन्द्र मुझसे 4-5 साल बड़ा था, पढ़ाई में बहुत तेज था, और खूबसूरत भी था, पर बहुत शर्मीला था। पहले तो मजाक, मजाक में… हर गाली में मेरा नाम वह उसी के साथ जोड़तीं,
मेरी ननद रानी बड़ी हरजायी,
अरे गुड्डी छिनार बड़ी हरजायी,
हमरे देवर से नैना लड़ायें,
अरे रवीन्द्र से जुबना दबवायें, अरे जुबना दबवायें,
वो खूब चुदवायें।
पर धीरे-धीरे सीरीयसली वह मुझे उकसाती। अरे कब तक ऐसे बची रहोगी… घर का माल घर में… रवीन्द्र से करवाओगी तो किसी को पता भी नहीं चलेगा।
मुन्ने के होने पर जब मैंने भाभी से अपना नेग मांगा, तो उन्होंने बगल में बैठे रवीन्द्र की जांघों के बीच में मेरा हाथ जबर्दस्ती रखकर बोला- “ले लो, इससे अच्छा नेग नहीं हो सकता…”
“धत्त…” कहकर मैं भाग गई। और रवीन्द्र भी शर्मा के रह गया।
……
मुन्ने के होने पर, बरही में भाभी के मायके से, चन्दा भी आयी थी। हम लोगों ने उसे खूब चुन-चुन कर गाने सुनाये, और जो मैं सुनाने में शरमाती, वह मैंने औरों को चढ़ाकर सुनवाये-
“मुन्ने की मौसी बड़ी चुदवासी, चन्दा रानी बड़ी चुदवासी…”
एक माह बाद जब सावन लगा तो भाभी मुन्ने को लेकर मायके आयीं और साथ में मैं भी आयी।
“अरे राकी ने चोदी ननदी, रात मोरी गुंइयां…” चम्पा भाभी जोर-जोर से गा रही थीं।
किसी औरत ने भाभी से पूछा-
“अरे राकी से भी… बड़ी ताकत है तुम्हारी ननद में नीलू…”
“अरे, वह भी तो इस घर का मर्द है, वही क्यों घाटे में रह जाय…” चमेली भाभी बोलीं-
“और क्या तभी तो जब ये आयी तो कैसे प्यार से चूम चाट रहा था, बेचारे मेरे देवर तरसकर रह जाते हैं…”
चम्पा भाभी ने छेड़ा।
“नहीं भाभी, मेरी सहेली बहुत अच्छी है, वह आपके देवरों का भी दिल रखेगी और राकी का भी, क्यों…”
कहकर चन्दा ने मुझे जोर से पकड़ लिया।
सावन की झड़ी थोड़ी हल्की हो चली थी। खूब मस्त हवा बह रही थी। छत से आंगन में जोर से पानी अभी भी टपक रहा था। किसी ने कहा एक बधावा गा दो फिर चला जाये। चम्पा भाभी ने शुरू किया-
आंगन में बतासा लुटाय दूंगी, आंगन में… मुन्ने की बधाई।
अरे जच्चा क्या दोगी, आंगन में… मुन्ने की बधाई।
अरे मैं तो अपनी ननदी लुटाय दूंगी, मुन्ने की बधाई।
अरे मुन्ने की बुआ क्या दोगी, मुन्ने की बधाई
अरे मैं तो दोनों जोबना लुटाय दूंगी, मुन्ने की बधाई
मुन्ने के मामा से चुदवाय लूंगी, मुन्ने की बधाई।
बारिश खतम सी हो गई थी। सब लोग चलने के लिये कहने लगे।
चमेली भाभी ने कहा- “हां, देर भी हो गई है…”
मेरी भाभी ने हँसकर चुटकी ली- “और क्या… चमेली भाभी, वहां भैय्या भी बरसने के लिये तड़पते होंगे…”
चमेली भाभी हँसकर बोली- “और क्या… बाहर बारिश हो, अंदर जांघों के बीच बारिश हो, तभी तो सावन का असली मजा है…”
मैंने चन्दा से रुकने के लिये कहा।
पर वह नखड़ा करने लगी- “नहीं कल आ जाऊँगी।
चम्पा भाभी ने उसे डांट लगायी-
“अरे तेरी भाभी तो सावन में चुदवासी हो रही हैं पर तेरे कौन से यार वहां इंतजार कर रहे हैं…”
आखिर चन्दा इस शर्त पर तैयार हो गई कि कल मैं उसके और उसकी सहेलियों के साथ मेला जाऊँगी।
चन्दा, भाभी के साथ मुन्ने को सम्हालने चली गई और मैं कमरे में आकर अपना सामान अनपैक करने लगी।
मेरे सामने सुबह से अब तक का दृश्य घूम रहा था…
______________________________
•
Posts: 2,727
Threads: 13
Likes Received: 1,217 in 788 posts
Likes Given: 494
Joined: Jan 2019
Reputation:
47
सामने सुबह से अब तक का दृश्य घूम रहा था…
सुबह जब मैं भाभी के साथ उनके मायके पहुँची, तभी सायत अच्छी हो गई थी।
सामने अजय मिला और उसने सामान ले लिया।
चम्पा भाभी ने हँसकर पूछा-
“अरे, इस कुली को सामान उठाने की फ़ीस क्या मिलेगी…”
भाभी ने हँसकर धक्का देते हुये मुझे आगे कर दिया और अजय की ओर देखते हुए पूछा-
“क्यों पसंद है, फीस…”
अजय जो मेरे उभारों को घूर रहा था, मुश्कुराते हुए बोला-
“एकदम दीदी, इस फीस के बदले तो आप चाहे जो काम करा लीजिये…”
मुन्ना मेरी गोद में था। तभी किसी ने मुझे चिढ़ाया-
“अरे, बिन्नो तेरी ननद की गोद में बच्चा… अभी तो इसकी शादी भी नहीं हुई…”
मैं शर्मा गयी।
पीछे से किसी का हाथ मेरे कंधे को धप से पड़ा और वह बोली-
“अरे भाभी, बच्चा होने के लिये शादी की क्या जरुरत… हां, उसके लिये जो जरूरी है, वो करवाने लायक यह अच्छी तरह हो गई है…”
पीछे मुड़कर मैंने देखा तो मेरी सहेली, हम उमर चन्दा थी।
भाभी अपनी सहेलियों और भाभियों के बीच जाकर बैठ गयीं। अजय मेरे पास आया और मुन्ने को लेने के लिये हाथ बढ़ाया। मुन्ने को लेने के बहाने से उसकी उंगलियां, मेरे गदराते उभारों को न सिर्फ छू गयीं बल्कि उसने उन्हें अच्छी तरह रगड़ दिया। जहां उसकी उंगली ने छुआ था, मुझे लगा कि मुझे बिज़ली का करेंट लगा गया है। मैं गिनिगना गई।
चन्दा ने मेरे गुलाबी गालों पर चिकोटी काटते हुए कहा-
“अरे गुड्डो, जरा सा जोबन पर हाथ लगाने पर ये हाल हो गया, जब वह जोबन पकड़कर रगड़ेगा, मसलेगा तब क्या हाल होगा तेरा…”
मेरी आँख अजय की ओर मुड़ी, अभी भी मेरे जोबन को घूरते हुए वह शरारत के साथ मुश्कुरा रहा था।
मैं भी अपनी मुश्कुराहट रोक नहीं पायी। भाभी ने मुझे अपने पास बुलाकर बैठा लिया।
एक भाभी ने, भाभी से कहा- “बिन्नो… तेरी ननद तो एकदम पटाखा लगा रही है। उसे देखकर तो मेरे सारे देवरों के हिथयार खड़े रहेंगे…”
मुझे लगा कि शायद, मुझे ऐसा ड्रेस पहनकर गांव नहीं आना चाहिये था। टाप मेरी थोड़ी टाइट थी उभार खूब उभरकर दिख रहे थे। स्कर्ट घुटने से ऊपर तो थी ही पर मुड़कर बैठने से वह और ऊपर हो गयी थी और मेरी गोरी-गोरी गुदाज जाघें भी दिख रही थीं।
मेरी भाभी ने हँसकर जवाब दिया- “अरे, मेरी ननद तो जब अपनी गली से बाहर निकलती है तो उसे देखकर उसकी गली के गदहों के भी हिथयार खड़े हो जातें हैं…”
तो चमेली भाभी उनकी बात काटकर बोलीं-
“अच्छा किया जो इसे ले आयीं इस सावन में मेरे देवर, इसके सारे तालाब पोखर भर देंगे…”
तभी राकी आ आया और मेरे पैर चाटने लगा। डरकर, सिमटकर मैं और पीछे दीवाल से सटकर बैठ आयी। राकी बहुत ही तगड़ा किसी विदेशी ब्रीड का था।
चम्पा भाभी ने कहा- “अरे ननद रानी डरो नहीं वह भी मिलने आया है…”
चाटते-चाटते वह मेरी गोरी पिंडलियों तक पहुँच गया। मैं भी उसे सहलाने लगी। तभी उसने अपना मुँह खुली स्कर्ट के अंदर तक डाल दिया, डर के मारे मैं उसे हटा भी नहीं पा रही थी।
मेरी भाभी ने कहा-
“अरे गुड्डी, लगता है इसका भी दिल तेरे ऊपर आ आया है जो इतना चूम चाट रहा है…”
चम्पा भाभी बोलीं-
“अरे बिन्नो, तेरी ननद माल ही इतना मस्त है…”
चमेली भाभी कहां चुप रहतीं, उन्होंने छेड़ा-
“अरे घुसाने के पहले तो यह चूत को अच्छी तरह चूम चाटकर गीली कर देगा तब
पेलेगा । बिना कातिक के तुम्हें देख के ये इतना गर्मा रहा है तो कातिक में तो बिना चोदे छोड़ेगा नहीं।
लेकिन मैं कह रही हूँ कि एक बार ट्राई कर लो, अलग ढंग का स्वाद मिलेगा…”
मैंने देखा कि राकी का शिश्न उत्तेजित होकर थोड़ा-थोड़ा बाहर निकाल रहा था।
बसंती जो नाउन थी, तभी आयी। सबके पैर में महावर और हाथों में मेंहदी लगायी गयी।
मैंने देखा कि अजय के साथ, सुनील भी आ गया था और दोनों मुझे देख-देखकर रस ले रहे थे।
मेरी भी हिम्मत भाभियों का मजाक सुनकर बढ़ गयी थी और मैं भी उन दोनों को देखकर मुश्कुरा दी।
•
Posts: 622
Threads: 0
Likes Received: 361 in 284 posts
Likes Given: 2,484
Joined: Dec 2018
Reputation:
57
•
Posts: 535
Threads: 4
Likes Received: 206 in 129 posts
Likes Given: 28
Joined: Dec 2018
Reputation:
41
बहुत खूबसूरत कहानी को हम रीडर्स के सामने पेश करने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया कोमल जी।। एक छोटी सी भेंट आपके लिए।।
गांव की बहार और उनकी मस्तियों की याद दिलाती है।
यार सोलहवाँ सावन हमें कुछ इस तरह से गुदगुदाती है।।
भूल जातें हैं हम ज़िन्दगी और वक़्त की ठोकरों को बस,
ये शराब इस कहानी की पी कर मदहोश से हो जाते है।।
तारीफ़ मैं कोमल आपकी और क्या-क्या नग़मे गाऐं हम,
नादान है हम माफ करना बस यूँ ही कलम चलाये जाते हैं।।
•
Posts: 2,727
Threads: 13
Likes Received: 1,217 in 788 posts
Likes Given: 494
Joined: Jan 2019
Reputation:
47
(10-01-2019, 11:31 PM)Bregs Wrote: Great start komalji
thanks....nice to see you here
•
Posts: 2,727
Threads: 13
Likes Received: 1,217 in 788 posts
Likes Given: 494
Joined: Jan 2019
Reputation:
47
(11-01-2019, 12:22 AM)Rocksanna999 Wrote: बहुत खूबसूरत कहानी को हम रीडर्स के सामने पेश करने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया कोमल जी।। एक छोटी सी भेंट आपके लिए।।
गांव की बहार और उनकी मस्तियों की याद दिलाती है।
यार सोलहवाँ सावन हमें कुछ इस तरह से गुदगुदाती है।।
भूल जातें हैं हम ज़िन्दगी और वक़्त की ठोकरों को बस,
ये शराब इस कहानी की पी कर मदहोश से हो जाते है।।
तारीफ़ मैं कोमल आपकी और क्या-क्या नग़मे गाऐं हम,
नादान है हम माफ करना बस यूँ ही कलम चलाये जाते हैं।।
Thanks
•
Posts: 2,727
Threads: 13
Likes Received: 1,217 in 788 posts
Likes Given: 494
Joined: Jan 2019
Reputation:
47
दूसरी फुहार
सावन में झूले पड़े
बसंती जो नाउन थी, तभी आयी। सबके पैर में महावर और हाथों में मेंहदी लगायी गयी। मैंने देखा कि अजय के साथ, सुनील भी आ गया था और दोनों मुझे देख-देखकर रस ले रहे थे। मेरी भी हिम्मत भाभियों का मजाक सुनकर बढ़ गयी थी और मैं भी उन दोनों को देखकर मुश्कुरा दी।
हम लोग फिर झूला झूलने गये। भाभी ने पहले तो मना किया कि मुन्ने को कौन देखेग। भाभी की अम्मा बोलीं कि वह मुन्ने को देख लेंगी।
बाहर निकलते ही मैंने पहली बार सावन की मस्ती का अहसास किया।
रियाली चारों ओर, खूब घने काले बादल, ठंडी हवा… हम लोग थोड़ा ही आगे बढे होंगे कि मैंने एक बाग में मोर नाचते देखे, खेतों में औरतें धान की रोपायी कर रहीं थी, सोहनी गा रहीं थी, जगह जगह झूले पड़े थे और कजरी के गाने की आवाजें गूंज रहीं थीं।
कजरी रास्ते में ही शुरू हो गयी और मुझे और भाभी को लेकर ,
घरवा में से निकलीं ,ननद भौजइया ,जुलुम दोनों जोड़ी रे साँवरिया।
भौजी के सोहे ला ,लाल लाल सिन्दुरा,
ननद जी के रोरी रे साँवरिया।
घरवा में से निकलीं ,ननद भौजइया ,जुलुम दोनों जोड़ी रे साँवरिया।
भौजी के सोहे ला ,लाल लाल चुनरी
ननद जी के पियरी रे साँवरिया।
घरवा में से निकलीं ,ननद भौजइया ,जुलुम दोनों जोड़ी रे साँवरिया।
भौजी के सोहे ला ,सोने क कंगना
ननद जी के चूड़ी रे साँवरिया।
घरवा में से निकलीं ,ननद भौजइया ,जुलुम दोनों जोड़ी रे साँवरिया।
भौजी के हाथे ढोलक मजीरा ,
ननद गावें कजरी रे साँवरिया।
घरवा में से निकलीं ,ननद भौजइया ,जुलुम दोनों जोड़ी रे साँवरिया।
भौजी के संग है एक सजना
अरे ,ननदी के दस दस रे साँवरिया.
घरवा में से निकलीं ,ननद भौजइया ,जुलुम दोनों जोड़ी रे साँवरिया।
हम लोग जहां झूला झूलने गये, वह एक घनी अमरायी में था, बाहर से पता ही नहीं चल सकता था कि अंदर क्या हो रहा है। एक आम के पेड़ की मोटी धाल पर झूले में एक पटरा पड़ा हुआ था।
झूले पे मेरे आगे चन्दा और पीछे भाभी थीं। पेंग देने के लिये एक ओर से चम्पा भाभी थीं और दूसरी ओर से भाभी की एक सहेली पूरबी थी जो अभी कुछ दिन पहले ससुवल से सावन मनाने मायके आयी थीं। चन्दा की छोटी बहन ने एक कजरी छेड़ी,
अरे रामा घेरे बदरिया काली, लवटि आवा हाली रे हरी।
अरे रामा, बोले कोयलिया काली, लवटि आवा हाली रे हरी,
पिया हमार विदेशवा छाये, अरे रामा गोदिया होरिल बिन खाली,
लवटि आवा हाली रे हरी,
भाभी ने चम्पा भाभी को छेड़ा-
“क्यों भाभी रात में तो भैया के साथ इत्ती जोर-जोर से धक्के लगाती हैं, अभी क्या हो गया…”
चम्पा भाभी ने कस-कसकर पेंग लगानी शुरू कर दिया। कांपकर मैंने रस्सी कसकर पकड़ ली।
•
Posts: 2,727
Threads: 13
Likes Received: 1,217 in 788 posts
Likes Given: 494
Joined: Jan 2019
Reputation:
47
मज़ा झूले का , भाभी के गाँव में
भाभी ने चमेली भाभी से कहा-
“अरे जरा मेरी ननद को कसके पकड़े …रहिएगा ”
और चमेली भाभी ने टाप के ऊपर से मेरे उभारों को कस के पकड़ लिया। भाभी ने और सबने जोर से गाना शुरू कर दिया-
कैसे खेलन जैयो कजरिया, सावन में, बदरिया घिर आयी ननदी,
गुंडा घेर लेहिंयें तोर डगरिया, सावन में बदरिया घिर आयी ननदी,
चोली खोलिहें, जोबना दबइहें, मजा लुटिहें तोर संग, बदरिया घिर आयी ननदी
कैसे खेलन जैयो कजरिया, सावन में, बदरिया घिर आयी ननदी
तब तक चमेली भाभी का हाथ अच्छी तरह मेरे टाप में घुस गया था,
पहले तो कुछ देर तक वह टीन ब्रा के ऊपर से ही मेरे उभारों की नाप जोख करती रहीं, फिर उन्होंने हुक खोल दिया और मेरे जोबन सहलाने मसलने लगीं।
झूले की पेंग इत्ती तेज चल रही थी कि मेरे लिये कुछ रेजिस्ट करना मुश्किल था। और जिस तरह की आवाजें निकल रहीं थी कि मैं समझ गयी कि मैं सिर्फ अकेली नहीं हूँ जिसके साथ ये हो रहा है।
कुछ देर में बिन्द्रा भाभी और चन्दा की छोटी बहन कजली पेंग मारने के काम में लगा गयीं, पर उन्होंने स्पीड और बढ़ा दी।
इधर चमेली भाभी के हाथ, अब मेरे जोबन खूब खुलकर मसल, रगड़ रहे थे और आगे से चन्दा ने भी मुझे दबा रखा था। मैं भी अब खुलकर मस्ती ले रही थी।
अचानक बादल एकदम काले हो गये और कुछ भी दिखना बंद हो गया। हवा भी खूब ठंडी और तेज चलने लगी। चम्पा भाभी ने छेड़ा-
अरे रामा, आयी सावन की बाहर
लागल मेलवा बजार,
ननदी छिनार, चलें जोबना उभार,
लागें छैला हजार, रस लूटें, बार-बार,
अरे रामा, मजा लूटें उनके यार, आयी सावन की बाहर
मेरी स्कर्ट तो झूले पर बैठने के साथ ही अच्छी तरह फैलकर खुल गयी थी। तभी एक उंगली मेरी पैंटी के अंदर घुसकर मेरी चूत के होंठों के किनारे सहलाने लगी।
घना अंधेरा, हवा का शोर, जोर-जोर से कजरी के गाने की आवाज। अब कजरी भी उसी तरह “खुल” कर होने लगी थी।
रिमझिम बरसे सवनवां, सजन संग मजा लूटब हो ननदी,
चोलिया खोलिहें, जोबना दबईहें, अरे रात भर चुदवाईब हो ननदी।
तोहार बीरन रात भर सोवें ना दें, कस-कस के चोदें हो ननदी।
अरे नवां महीने होरिल जब होइंहें, तोहे अपने भैया से चुदवाइब हो ननदी।
जब उंगली मेरे निचले होंठों के अंदर घुसी तो मेरी तो सिसकी निकल गयी।
अब धीरे-धीरे सावन की बूंदे भी पड़ने लगी थीं और उसके साथ उंगली का टिप भी अब तेजी से मेरी योनी में अंदर-बाहर हो रहा था। ऊपर से चमेली भाभी ने अब मेरे टाप को पूरी तरह खोल दिया था और ब्रा ने तो कब का साथ छोड़ दिया था।
किसी ने कहा कि अब घर चलते हैं पर मेरी भाभी ने हँसकर कहा कि अब कोई फायदा नहीं, रास्ते में अच्छी तरह भीग जययेंगे, यहीं सावन का मजा लेते हैं।
तेज होती बरसात के साथ, मेरी चूत में उंगली भी तेजी से चल रही थी।
कपड़े सारे भीग गये और बदन पर पूरी तरह चिपक गये थे। चूत में उंगली के साथ अब क्लिट की भी अंगूठे से रगड़ाई शुरू हो गयी और थोड़ी देर में ही मैं झड़ गयी और उसी के साथ बरसात भी रुक गयी।
लौटते समय भाभी, चमेली भाभी के घर चली गयी और मैं चम्पा के साथ लौट रही थी कि रास्ते में अजय और सुनील मिले। भीगे कपड़ों में मेरा पूरा बदन लगभग दिख रहा था, ब्रा हटने से मेरे उभार, सिंथेटिक टाप से चिपक गये थे और मेरी स्कर्ट भी जांघों के बीच चिपकी थी।
चन्दा जानबूझ कर रुक कर उनसे बात करने लगी और वो दोनों बेशर्मी से मेरे उभारों को घूर रहे थे।
मैंने चन्दा से कहा- “हे चलो, मैं गीली हो रही हूं…”
चन्दा ने हँसकर कहा- “अरे, बिन्नो देखकर ही गीली हो रही हो तो अगर ये कहीं पकड़ा-पकड़ी करेंगे तो, तुम तो तुरंत ही चिपट जाओगी…”
सुनील और अजय दोनों ने कहा- “कब मिलोगी…”
मैं कुछ नहीं बोली।
चन्दा बोली- “अरे, तुमसे ही कह रहे हैं…”
हँसकर मैंने कहा- “मिलूंगी…” और चन्दा का हाथ पकड़कर चल दी।
पीछे से सुनील की आवाज सुनाई पड़ी- “अरे, हँसी तो फँसी…”
•
Posts: 2,727
Threads: 13
Likes Received: 1,217 in 788 posts
Likes Given: 494
Joined: Jan 2019
Reputation:
47
तब तक चन्दा की आवाज ने मुझे वापस ला दिया। उसने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया था और साड़ी उतार रही थी।
मैंने उसे छेड़ा- “क्यों मेरे चक्कर में घाटा तो नहीं हो गया…”
“और क्या, लेकिन अब तेरे साथ उसकी भरपायी करूंगी…”
और उसने मेरे उभारों को फ्राक के ऊपर से पकड़ लिया। हम दोनों साथ-साथ लेटे तो उसने फिर फ्राक के अंदर हाथ डालकर मेरे रसभरे उभारों को पकड़ लिया और कसकर मसलने लगी।
“हे, नहीं प्लीज छोड़ो ना…” मैंने बोला।
पर मेरे खड़े चूचुकों को पकड़कर खींचते हुए वह बोली-
“झूठी, तेरे ये कड़े कड़े चूचुक बता रहें हैं कि तू कित्ती मस्त हो रही है और मुझसे छोड़ने के लिये बोल रही है। लेकीन सच में यार असली मजा तो तब आता है जब किसी मर्द का हाथ लगे…”
मेरी चूचियों को पूरे हाथ में लेकर दबाते हुए वो बोली कि कल मेले में चलेगी ना, देख कित्ते छैले तेरे जोबन का रस लूटेंगे।
उसने मेरे हाथ को खींचकर अपने ब्लाउज़ के ऊपर कर दिया और उसकी बटन एक झटके में खुल गयीं।
“मैं अपने यारों को ज्यादा मेहनत नहीं करने देना चाहती, उन्हें जहां मेहनत करना है वहां करें…” चन्दा बोली।
उसका दूसरा हाथ मेरी पैंटी के अंदर घुसकर मेरे भगोष्ठों को छेड़ रहा था। थोड़ी देर दोनों भगोष्ठों को छेड़ने के बाद उसकी एक उंगली मेरी चूत के अंदर घुस गयी और अंदर-बाहर होने लगी।
चन्दा बोली-
“यार, सुनील का बड़ा मोटा है, मैं इत्ते दिनों से करवा रही हूँ पर अभी भी लगाता है, फट जायेगी और एक तो वह नंबरी चोदू भी है, झड़ने के थोड़ी देर के अंदर ही उसका मूसल फिर फनफना कर खड़ा हो जाता है…”
उसका अंगूठा अब मेरी क्लिट को भी रगड़ रहा था और मैं मस्ती में गीली हो रही थी।
“और अजय का…”
मैं अपने को पूछने से नहीं रोक पायी।
“अच्छा, तो गुड्डो रानी, अजय से चुदवाना चाहती हैं…”
चन्दा ने कसकर मेरी क्लिट को पिंच कर लिया और मेरी सिसकी निकल गयी।
“तुम्हारी पसंद सही है, मुझे भी सबसे ज्यादा मजा अजय के ही साथ आता है, और उसे सिर्फ चोदने से ही मतलब नहीं रहता, वह मजा देना भी जानता है, जब वह एक निपल मुँह में लेकर चूसते और दूसरा हाथ से रगड़ते हुए चोदता है ना तो बस मन करता है कि चोदता ही रहे।
तुम्हारा तो वह एकदम दीवाना है, और वैसे दीवाने तो सभी लड़के हैं तुम पर…”
चन्दा की उंगली अब फुल स्पीड में मेरा चूत मंथन कर रही थी और उसने मेरा भी हाथ खींच कर अपनी चूत पर रख लिया था।
“और रवी तो… वह चाटने और चूसने में एक्सपर्ट है, नंबरी चूत चटोरा है, वह…”
मैं खूब मस्त हो रही थी।
मेरी एक चूची चन्दा के हाथ से मसली जा रही थी और उसके दूसर हाथ की उंगली मेरी चूत में अंदर-बाहर हो रही थी। ऐसा नहीं था कि मेरी चूत रानी को कभी किसी उंगली से वास्ता न पड़ा हो, पिछली होली में ही भाभी ने जब मेरी स्कर्ट के अंदर हाथ डालकर मेरी चूत पर गुलाल रगड़ा मसला था तो उन्होंने उंगली भी की थी
और वह तो ऐसे भांग के नशे में थीं की कैंडलिंग भी कर देतीं पर भला हो कि रवीन्द्र, उनका देवर आ आया तो, मुझे छोड़कर उसके पीछे पड़ गयीं।
पर जैसे चन्दा एक साथ, चूची, चूत और क्लिट कि रगड़ाई कर रही थी वैसे पहले कभी नहीं हुई थी और एक रसीले नशे से मेरी आँखें मुदी जा रही थीं।
चन्दा साथ में मुझे समझा भी रही थी-
“सुन, मेरी बात मान ले, यहां जमकर मजा लूट ले, देखो यहां दो फ़ायदे हैं। अपने शहर में किसी और से करवायेगी तो ये डर रहेगा की बात कहीं फैल ना जाय, वह फिर तुम्हारे पीछे ना पड़ जाय, पर यहां तो तुम हफ्ते दस दिन में चली जाओगी फिर कहां किससे मुलाकात होगी।
और फिर शहर में चांस मिलना भी टेढ़ा काम है, जब भी बाहर निकलोगी कोई भी टोकेगा की कहां जा रही हो, जल्दी आना, और फिर अगर किसी ने किसी के साथ देख लिया और घर आके शिकायत कर दी तो अलग मुसीबत, और यहां तो दिन रात चाहे जहां घूमो, फिरो, मौज मस्ती करो, और फिर तुम्हारी भाभी तो चाहती ही हैं कि तेरी ये कोरी कली जल्द से जल्द फूल बन जाये…”
ये कह के उसने कस के मेरी क्लिट को दबा दिया।
मैं मस्ती से कांप गयी-
“पर… मैंने सुना है कि पहली बार दर्द बहुत होता है…”
मस्ती ने मेरी भी शर्म शत्म कर दी थी।
“अरे मेरी बिन्नो… बिना दर्द के मजा कहां आता है, और कभी तो इसको फड़वाओगी, जब फटेगी… तभी दर्द होगा… वह तो एक बार होना ही है… आखिर तुमने कान छिदवाया, नाक छिदवायी कित्ता दर्द हुआ, पर बाद में कित्ते मजे से कान में बाला और नाक में कील पहनती हो।
ये सोचो न कि मेरी उंगली से जब तुम्हें इतना मजा आ रहा है… तो मोटा लण्ड जायेगा तो कित्ता मजा आयेगा। और अगर तुम्हें इतना डर लगा रहा है तो मैं तो कहती हूँ तुम सबसे पहले अजय से चुदवाओ, वह बहुत सम्हाल-सम्हाल कर चोदेगा…”
सेक्सी बातों और उंगली के मथने से मैं एकदम चरम के पास पहुँच गयी थी, पर चन्दा इत्ती बदमाश थी… वह मुझे कगार तक ले जाकर रोक देती और मैं पागल हो रही थी।
“हे चन्दा प्लीज, रुको नहीं हो जाने दो… मेरा…” मैंने विनती की।
“नहीं पहले तुम प्रामिस करो कि अब तुम सब शर्म छोड़कर…”
“हां हां मैं अजय, रवी, सुनील, दिनेश, जिससे कहोगी, करवा लूंगी… बस प्लीज़ रुको नहीं…” उसे बीच में रोककर मैंने बोला।
“नहीं ऐसे थोड़े ही… साफ-साफ बोलो और आगे से जैसे खुलकर चम्पा भाभी बोलती हैं ना तुम भी बस ऐसे ही
बोलोगी…” चन्दा ने धीरे-धीरे, मेरी क्लिट रगड़ते हुए कहा।
“हां… हां… हां… मैं अजय से, सुनील से तुम जिससे कहोगी सबसे चुदवाऊँगी… ओह… ओह्ह्ह्ह…”
मैं एकदम कगार पर पहुँच गयी थी।
चन्दा ने अब तेजी से मेरी चूत में उंगली अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया और मेरी क्लिट कसकर पिंच कर ली और मैं बस… झड़ती रही… झड़ती रही… मेरी आँखें बहुत देर तक बंद रहीं।
जब मेरी आँख खुली तो मैंने देखा कि चन्दा ने मुझे अपनी बाहों में भर रखा है और वह धीरे-धीरे मेरे उभारों को सहला रही है। मैंने भी उसके जोबन को जो मेरे जोबन से थोड़े बड़े थे, को हल्के-हल्के दबाने शुरू कर दिया।
थोड़ी देर में ही हम दोनों फिर गर्म हो गये। अबकी चन्दा मेरी दोनों टांगों को फैलाकर, किसी मर्द की तरह, सीधे मेरे ऊपर चढ़ गयी और मेरे सख्त मम्मों को दबाना शुरू कर दिया।
“जानती हो अब तक सबसे मोटा और मस्त लण्ड किसका देखा है मैंने…”
चन्दा ने कहा।
“किसका…” उत्सुकता से भरकर मैंने पूछा।
•
Posts: 2,727
Threads: 13
Likes Received: 1,217 in 788 posts
Likes Given: 494
Joined: Jan 2019
Reputation:
47
तीसरी फुहार
कौन है वो
“किसका…” उत्सुकता से भरकर मैंने पूछा।
आगे
“जानती हो अब तक सबसे मोटा और मस्त लण्ड किसका देखा है मैंने…” चन्दा ने कहा।
“किसका…” उत्सुकता से भरकर मैंने पूछा।
मेरी चूत पर अपनी चूत हल्के से रगड़ते हुये, चन्दा बोली-
“तुम्हारे कजिन कम आशिक का… रवीन्द्र का…”
“उसका… पर वह तो बहुत सीधा… शर्मीला… और तुमने उसका कैसे देखा… फिर वह मेरा आशिक कहां से हो गया…”
“बताती हूं…”
मेरी चूत की रगड़ाई अपनी चूत से करते हुए उसने बताना शुरू किया-
“तुम्हें याद है, अभी जब मैं मुन्ने के होने पे गयी थी, मैंने रवीन्द्र पे बहुत डोरे डालने की कोशिश की…
मुझे लगता था कि भले ही वह सीधा हो पर बहुत मस्त चुदक्कड़ होगा, उसका बाडी-बिल्ड मुझे बहुत आकर्षक लगता था…
पर उसने मुझे लिफ्ट नहीं दी…
मैं समझ गयी कि उसका किसी से चक्कर है… पर एक दिन दरवाजे के छेद से मैंने उसे मुट्ठ मारते देखा… मैं तो देखती ही रह गयी, कम से कम बित्ते भर लंबा लण्ड होगा और मोटा इतना कि मुट्ठी में ना समाये… और वह किसी फोटो को देखकर मुट्ठ मार रहा था… कम से कम आधे घंटे बाद झड़ा होगा…
और बाद में अंदर जाकर मैंने देखा तो…
जानती हो वह फोटो किसकी थी…”
“किसकी… विपाशा बसु या ऐश की…” मेरी आँखों के सामने तो उसकी मुट्ठ मारती हुई तस्वीर घूम रही थी।
“जी नहीं… तुम्हारी… और मुझे लगा की पहले भी वह तुम्हारी फोटो के साथ कई बार मुट्ठ मार चुका है… यहां मैं अपनी चूत लिये लिये घूम रही हूँ वहां वह बेचारा… तुम्हारी याद में मुट्ठ मार रहा… अगर तुम दे देती तो…”
मुझे याद आ रहा था कि कई बार मैं उसको अपने उभारों को घूरते देख चुकी हूँ और जैसे ही हमारी निगाहें चार होती हैं वह आँखें हटा लेता है…
और एक बार तो मैं सोने वाली थी कि मैंने पाया कि वह हल्के-हल्के मेरे सीने के उभारों को छू रहा है… मैं आँख बंद किये रही और वह हल्के-हल्के सहलाता रहा… पर उसे लगा कि शायद मैं जगने वाली हूँ तो उसने अपना हाथ हटा लिया। मुझे भी वह बहुत अच्छा लगता था।
“क्यों नहीं चुदवा लेती उससे…” मेरी चूत पर कसकर घिस्सा मारते हुये, चन्दा ने पूछा।
“आखिर… कैसे… मेरा कजिन है…” मैंने कुछ झिझकते कुछ लजाते पूछा।
“अरे लोग सगे को नहीं छोड़ते… तुम कजिन की बात कर रही हो, तुम्हें कुछ ख्याल है कि नहीं उसका, अगर कहीं इधर-उधर जाना शुरू कर दिया… कोई ऐसा वैसा रोग लगा बैठा…” चंदा ने जोर देकर समझाया।
मुझे भी उसकी बात में दम लग रहा था ,लेकिन चंदा से कैसे हामी भरती ?
चन्दा ने फिर मुझे पहली बार की तरह कगार पे ले जाके छोड़ना शुरू कर दिया, और जब मैंने खुलके कसम खाकर ये प्रामिस किया कि न मैं सिर्फ रवीन्द्र से चुदवाऊँगी बल की रवीन्द्र से उसकी भी चूत चुदवाऊँगी तभी उसने मुझे झड़ने दिया।
जब सुबह होने को थी तब जाकर हम दोनों सोये।
•
Posts: 62
Threads: 0
Likes Received: 17 in 17 posts
Likes Given: 1
Joined: Jan 2019
Reputation:
2
Komal Rani,
MAi to tumhra bahto bada fan hu maine tumhari sari kahaniya padhi hai. You are a mind blowing author apake jaise kahaniya koi nahi likh sakta. xossip site pe maien apaki sari kahaniya down load akr ke 3-4 bar padhi hai.
•
Posts: 2,727
Threads: 13
Likes Received: 1,217 in 788 posts
Likes Given: 494
Joined: Jan 2019
Reputation:
47
(18-01-2019, 11:22 AM)anwar.shaikh Wrote: Komal Rani,
MAi to tumhra bahto bada fan hu maine tumhari sari kahaniya padhi hai. You are a mind blowing author apake jaise kahaniya koi nahi likh sakta. xossip site pe maien apaki sari kahaniya down load akr ke 3-4 bar padhi hai.
Thanks so much ....yahan par bhi vahi sneh aur saath baanaye rakhiye ....jald hi nayi stories bhi post karungi aur sequel bhi ....Holi specials bi...bas aap kaa saath aur ashirvaad bana rahe
•
Posts: 2,727
Threads: 13
Likes Received: 1,217 in 788 posts
Likes Given: 494
Joined: Jan 2019
Reputation:
47
19-01-2019, 10:13 AM
(This post was last modified: 19-01-2019, 10:16 AM by komaalrani.)
गाँव की गोरी
अगले दिन दोपहर के पहले से ही मेले जाने की तैयारियां शुरू हो गयी थीं।
पहले एक चूड़ी वाली आयी और मैंने भी सबके साथ, कुहनी तक हरी-हरी चूड़ीयां पहनी। मैंने ज़रा सा नखड़ा किया की वो चुड़िहारिन ( आखिर भैया के ससुराल की थी ,तो भैया की सलहज लगी और फिर मुझसे अपने आप मजाक का रिश्ता बन गया ), और साथ में चंपा भाभी मेरे पीछे पड़ गयीं।
अच्छा ई बूझो , चुड़िहारिन ने मेरी कलाई को गोल गोल मोड़ते हुए पूछा,
" हमरि तुम्हरी कब , अरे हाथ पकड़ा जब।
चीख चिल्लाहट कब , अरे आधा जाये तब।
और मजा आये कब ,.... ?
बात उनकी पूरी की चम्पा भाभी ने ,
"अरे मजा आये कब , पूरा जाए तब और क्या , आधे तीहे में का मजा। "
मेरे गाल गुलाल हो गए , कल से तो भाभी ,भाभी की कुँवारी शादी शुदा बहने और भाभी की भाभियाँ सब एक ही तो बात कर रही थीं , मैं समझ गयी आधा तिहा और पूरा से का मतलब है।
फिर चंदा ने रात में अच्छी कोचिंग भी कर दी थी और भरतपुर के स्टेशन पे आग भी सुलगा दी थी।
"अरे वही लड़का लड़की , डालना और क्या , शरमाते शर्माते मैं बोली , फिर क्या था चूड़ी वाली चूड़ी पहनाते हुए मेरे पीछे पड़ गयी।
और मेरी भाभी से बोली ,
" अरी बिन्नो तोहरी ई ननदिया क बिल में बहुत चींटे काट रहे हैं मोटे मोटे , बहुत खुजली हो रही है , एके बात उसको सूझ रही है "
और मुझसे मुड़ के बोलीं ,
" अरे रानी एकर मतलब , चूड़ी पहिराना। पहले हाथ पकड़ना , फिर शुरू में जब घुसता है अंदर , चूड़ी जाती है रगड़ती कसी कसी तो कुछ दर्द तो होगा ही।
फिर जब भर हाथ चूडी हो जाती है तो कितना निक लगता है , मजा आता है , हैं की नहीं।
दो दर्जन से ऊपर एक एक हाथ में , एकदम कुहनी तक ,
और ऊपर से चम्पा भाभी बोलीं , चुड़िहारिन से ," दो दिन बाद फिर आ जाना ".
ये बात न मुझे समझ में आई न चुड़िहारिन को
लेकिन जब चम्पा भाभी ने अर्थाया तो सब लोग हँसते हँसते ,
(सिवाय मेरे , मेरे पास शर्माने के अलावा कोई रास्ता था क्या )
वो बोलीं ,
"अरे एक रात में तो दो दर्जन की एक दर्जन हो जायेगी , और कुछ खेत में टूटेगी कुछ पलंग पे ,कुछ हमरे देवर के साथ तो कुछ नंदोई के साथ। "
आज भाभी और चम्पा भाभी ने तय किया था कि वो मुझे शहर की गोरी से गांव की गोरी बनाकर रहेंगी।
तब तक पूरबी भी आगयी , भाभी की रिश्ते में बहन लगती थी ,उम्र में उनसे छोटी , मुझसे दो तीन साल बड़ी होगी ,
इसी साल शादी हुयी थी और पहले सावन में मायके आई थी।
और मेरे श्रृंगार और छेड़ने दोनों में हिस्सा बटाने लगी।
पावों में महावर और हाथों में रच-रच कर मेंहदी तो लगायी ही, नाखून भी खूब गाढ़े लाल रंगे गये, पावों में घुंघरु वाली पाजेब,
कमर में चांदी की कर्धनी पहनायी गयी। पूरबी ने चांदी की पाजेब बहुत प्यार से खुद मुझे पहनाई और मुझसे बोलने लगी ,
" ननद रानी ,तुम्हारे गहनों में सबसे जोरदार यही है। "
मेरे कुछ समझ में नहीं आया ,लेकिन पूरबी और चम्पा भाभी जोर जोर से मुस्करा रही थीं।
" अरे छैलों के कंधे पे चढ़ के बोलेगी ये , कभी गन्ने के खेत में तो कभी आम के बाग़ में, इसलिए सबसे पहले ये पाजेब ही पहना रही हूँ। "
कुछ देर में चंदा और रमा भी आ गयीं मेले के लिए तैयार हो के ,खूब सजधज के। साथ में कामिनी भाभी भी।
भाभी ने अपनी खूब घेर वाली हरे रंग की चुनरी भी पहना दी, लेकिन उसे मेरी गहरी नाभी के खूब नीचे ही बांधा, जिससे मेरी पतली बलखाती कमर और गोरा पेट साफ दिख रहा था।
लेकीन परेशानी चोली की थी, चन्दा के उभार मुझसे बड़े थे इसलिये उसकी चोली तो मुझे आती नहीं पर रमा जो भाभी की कजिन थी और मुझसे एक साल से थोड़ी ज्यादा छोटी थी, की चोली मैंने ट्राई की। पर वह बहुत कसी थी।
चम्पा भाभी ने कहा-
“अरे यहां गांव में चड्ढी बनयान औरतें नहीं पहनती…”
और उन्होंने मुझे बिना ब्रा के चोली पहनने को मजबूर किया।
भाभी ने तो ऊपर के दो हुक भी खोल दिये, जिससे अब ठीक तो लग रहा था पर मैं थोड़ा भी झुकती तो सामने वाले को मेरे चूचुक तक के दर्शन हो जाते और चोली अभी भी इत्ती टाइट थी कि मेरे जोबन के उभार साफ-साफ दिख रहे थे।
हाथ में तो मैंने चूड़ियां, कलाई भर-भरकर तो पहनी ही थीं, भाभी ने मुझे कंगन और बाजूबंद भी पहना दिये। चन्दा ने मेरी बड़ी-बड़ी आँखों में खूब गाढ़ा काजल लगाया, माथे को एक बड़ी सी लाल बिंदी और कानों में झुमके पहना दिये।
चम्पा भाभी ने पूरा मुआयना किया और कुछ देर तक सोचती रहीं , फिर बोलीं ,अभी भी एक कसर है।
अंदर गयीं और एक नथ ले आयीं , बहुत ही खूबसूरत , बहुत बड़ी नहीं तो बहुत छोटी भी नहीं। मेरे होंठों से रगड़ खाती , और एक प्यारा सा बड़ा सा सफेद मोती।
और कामिनी भाभी ने अपने हाथ से पकड़ के पहना दिया।
मैंने जरा सा नखड़ा किया , ना नुकुर किया तो ,कामिनी भाभी चिढ़ाते हुए बोलीं ,
" अरी बिन्नो ,नथ पहनोगी नहीं तो उतरेगी कैसे "
फिर साथ साथ चंदा को हड़काया भी ,
" ये मस्त माल तेरे हवाले कर रही हूँ , तेरी जिम्मेदारी है। २४ घंटे के अंदर नथ उतर जानी चाहिए। "
चंदा भी कौन कम थी , बोली
" भाभी , अरे २४ घंटे। मेरी सहेली को समझती क्या हैं , १२ घंटे से कम में ये नथ न उतर गयी तो कहिये। अरे इसकी बुलबुल तो आई है है यहाँ चारा घोंटने। "
और हँसते हँसते सभी लोट पोट होगये।
•
Posts: 2,727
Threads: 13
Likes Received: 1,217 in 788 posts
Likes Given: 494
Joined: Jan 2019
Reputation:
47
मेला
चन्दा की छोटी बहन, कजरी, उसकी सहेली, गीता, पूरबी और रमा भी आ गई थीं और हम सब लोग मेले के लिये चल दिये।
काले उमड़ते, घुमड़ते बादल, बारिश से भीगी मिट्टी की सोंधी-सोंधी महक, चारों ओर फैली हरी-हरी चुनरी की तरह धान के खेत, हल्की-हल्की बहती ठंडी हवा, मौसम बहुत ही मस्त हो रहा था।
हरी, लाल, पीली, चुनरिया, पहने अठखेलियां करती, कजरी और मेले के गाने के तान छेड़ती, लड़कियों और औरतों के झुंड मस्त, मेले की ओर जा रहे थे, लग रहा था कि ढेर सारे इंद्रधनुष जमीन पर उतर आयें हो।
और उनको छेड़ते, गाते, मस्ती करते, लम्बे, खूब तगड़े गठीले बदन के मर्द भी… नजर ही नहीं हटती थी।
कजरी ने तान छेड़ी-
“अरे, पांच रुपय्या दे दो बलम, मैं मेला देखन जाऊँगी…” और हम सब उसका गाने में साथ दे रहे थे।
तभी एक पुरुष की आवाज सुनायी पड़ी-
“अरे पांच के बदले पचास दै देब, जरा एक बार अपनी सहेली से मुलाकात तो करवा दो…”
वह सुनील था और उसके साथ अजय, रवी, दिनेश और उनके और साथी थे।
पूरबी ने मुझे छेड़ते हुये कहा-
“अरे, करवा ले ना… एक बार… हम सबका फायदा हो जायेगा…”
मैंने शर्मा कर नीचे देखा तो मेरा आंचल हटा हुआ था और मेरे जोबन के उभार अच्छी तरह दिख रहे थे, जिसका रसास्वादन सभी लड़के कर रहे थे।
“बोला, बोला देबू, देबू कि जइबू थाना में बोला, बोला…” सुनील ने मुझे छेड़ते हुए गाया।
“अरे देगी, वो तो आयी ही इसीलिये है… देखो ना आज हरी चुनरी में कैसे हरा सिगनल दे रही है…”
चन्दा कहां चुप रहने वाली थी।
“अच्छा अब तो इस हरे सिगनल पर तो हमारा इंजन सीधे स्टेशन के अंदर ही घुसकर रुकेगा…”
उसके साथी ने खुलकर अपना इरादा जताया।
माल तो मस्त है , एकदम जबरदस्त है ई नयका माल
उसने जोड़ा और गाना शुरू कर दिया , और मेरी ओर इशारा कर कर के ,
कमरिया चले ले लपलप्प ,लालीपाप लागेलू
जिल्ला टॉप लागेलू
तू लगावेलु जब लिपस्टिक तब जिया मार लागेलू
चंदा ने मुझे इशारे से बताया की यही रवी है , कल जिसकी तारीफ़ वो चूत चटोरा कह के कर रही थी ,वही।
खूब खुल के मेरी ओर इशारे कर के वो गा रहा था और सब लड़के दुहरा रहे थे.
मैं थोड़ा शरमा ,झिझक रही थी लेकिन बाकी लड़कियां ,मेरी सहेलियां खुल के मजे लेरही थीं।
और लड़कों को और उकसा रही थीं
तब तक एक लड़के ने मेरे नथुनी को लेके मजाक शुरू कर दिया ,
" हे अरे यह शहरी माल क नथुनिया तो जान मार रही है "
और लगता है की वो कोई गीता का पुराना यार होगा , उसने सीधा उसी से पूछा
"नथ उतराई अभिन हुयी है है की नहीं। "
गीता एक पल के लिए रुकी और मेरा चेहरा उन सबों की ओर कर के दिखा के बोली ,
" अरे देख नहीं रहे हो इतनी बड़ी नथ , एकदम कच्ची कुँवारी कली मंगवाया है तुम सबके लिए "
और लड़कों के पहले सारी लड़कियां खिलखिला के हंसने लगी ,
रवी ने मेरे नथ की ओर इशारा करके एक नया गाना छेड़ दिया।
मोरे होंठवा से नथुनिया कुलेल करेला ,जैसे नागिन से सँपेरा अठखेल करेला।
जैसे नखड़ा जवानी में रखेल करेला , मोरे होंठवा से नथुनिया कुलेल करेला।
मोरे होंठवा से नथुनिया कुलेल करेला ,जैसे नागिन से सँपेरा अठखेल करेला।
भइले जब सैयां जी क दिल बेईमान , उनके रस्ते में ई बन गइले दरबान
मोरे होंठवा से नथुनिया कुलेल करेला ,जैसे नागिन से सँपेरा अठखेल करेला।
और जवाब उसके गाने का मेरी ओर से पूरबी ने दिया ,
सही कह रहे हो , खाली ललचाते रहना इसका लाल लाल होंठ देखकर , जबरस्त दरबान है ई नथुनिया।
तब तक अजय ने मुझे इस निगाह से देखा की मैं पानी पानी हो गयी।
कल जब से मैं अजय को देखा था कुछ कुछ हो रहा था , और वैसे भी शादी में जब मैं आई थी उस समय से , फिर भाभी भी बार बार उसे से मेरा टांका भीड़वाने के चक्कर में पड़ी थीं।
और फिर अजय चालू हो गया , उसकी आवाज में था कुछ
अरे जौन जौन कहबा , मानब तोर बचनिया
धीरे से चुम्मा लई ला हो टार के नथुनिया
चढ़त जवानी रहलो न जाय , तोहरे बिना हमार मन घबड़ाये
रतिया के आया जा तानी जुबना दबावे
धीरे से चुम्मा लई ला हो टार के नथुनिया
और चंदा ने चिढ़ाया मुझे ,
यार अब न तेरे होंठों का रस बचेगा न जुबना का आगया लूटने वाला भौंरा।
और मेरे मुंह से निकल गया तो क्या हुआ ,
फिर तो मेरी सारी सहेलियों ने ,....
लेकिन हम लोगों ने अब गाना शुरू किया ,
पूरबी ने शुरू किया , कुछ देर तक तो मैं शरमाई फिर मैंने भी ज्वाइन कर लिया
हो मोहे छेड़े हैं छैले बजरिया मां
अरे मार गवा बिच्छू बजरिया मां।
नागिन के जैसे लहरे कमरिया ,
छुरी जैसी है हमरी नजरिया ,
अरे , मार गवा बिच्छू बजरिया में।
अरे मच गवा सोर बजरिया मा
अरे मार गवा बिच्छू बजरिया माँ।
अरे कइसन बचाय आपन इमनवा
हो मोहे छेड़े हैं छैले बजरिया मां
" अरे ऐसा जानमारू माल होगा तो छैले छेड़ेंगे ही और सिर्फ छेड़ेंगे नहीं , बल्कि जरा ई चोली फाड़ उभार तो देखो "
ये सुनील था।
और मैंने ध्यान दिया तो गाने के चक्कर में मेरी चुनरी नीचे सरक गयी थी और दोनों कड़े कड़े गदराये उभार साफ साफ दिख रहे थे और रवी फिर चालू हो गया ,
अरे अरे निबुआ कसम से गोल गोल
तानी छूके देखा राजा , तोहार मनवा जाइ डोल।
अरे जुबना दबाइबा तब बड़ा मजा आई
तानी छूके देखा राजा , तोहार मनवा जाइ डोल।
गलवा दबयिबा तब बड़ा मजा आई ,
तानी दबाई के देखा राजा तोहार मनवा जाइ डोल।
जुबना क रस लेबा ता बड़ा माजा आई
तानी छूके देखा राजा , तोहार मनवा जाइ डोल।
आज तो सब के सब लड़के तेरे ही पीछे पड़ गए हैं यार ,
रमा ने चिढ़ाया मुझे।
“साढ़े तीन बजे गुड्डी जरुर मिलना, अरे साढ़े तीने बजे…”
अजय की रसभरी आवाज मेरे कानों में पड़ी।
पान खा ला गुड्डी , खैर नहीं बा अरे बोल बतिया ला बैर नहीं बा
साढ़े तीन बजे गुड्डी जरूर मिलना ,साढ़े तीन बजे
अरे एक बार देबू ,धरम पइबू ,
जोड़ा लइका खिलैबु ,मजा पइबू साढ़े तीन बजे ,
साढ़े तीन बजे गुड्डी जरूर मिलना ,साढ़े तीन बजे।
बबुरे का डंडा फटाफट होए ,
तोहरी जांघंन के बीचे सटासट होय ,साढ़े तीन बजे
साढ़े तीन बजे गुड्डी जरूर मिलना ,साढ़े तीन बजे
इकन्नी दुआँन्नी डबल पैसा
तुहारी पोखरी में कूदल बा हमार भैन्सा , साढ़े तीन बजे।
पांच के बादल पचास लग जाय ,
बिन रगड़े न छोड़ब चाहे सिक्युरिटी लग जाय ,
अरे करिवाय ल , अरे करिवाय ल , अरे डरवाय ला ,साढ़े तीन बजे।
साढ़े तीन बजे गुड्डी जरूर मिलना ,साढ़े तीन बजे
आज तेरी बचने वाली नहीं है जानू ,अजय की ओर इशारा करके चंदा ने मेरे कान में कहा और मेरे गुलाबी गाल मसल दिए।
चन्दा ने फ़ुसफुसाया-
“अरे बोल दे ना वरना ये पीछे पड़े ही रहेंगे…”
“ठीक है, देखूंगी…” मैंने अजय की ओर देखते हुए कहा।
“अरे लड़की शायद कहे, तो हां होता है…” अजय के एक साथी ने उससे कहा।
वह मर्दों के एक झुंड के साथ चल दिये और हम लोग भी हँसते खिलखिलाते मेले की ओर चल पड़े।
मेले का मैदान एकदम पास आ आया था, ऊँचे-ऊँचे झूले, नौटंकी के गाने की आवाज… भीड़ एकदम बढ़ गयी थी, एक ओर थोड़ा ज्यादा ही भीड़ थी।
कजरी ने कहा- “हे उधर से चलें…”
“और क्या… चलो ना…”
गीता उसी ओर बढ़ती बोली, पर कजरी मेरी ओर देख रही थी।
“अरे ये मेलें में आयी हैं तो मेले का मजा तो पूरा लें…”
खिलखिलाते हुये पूरबी बोली।
मैं कुछ जवाब देती तब तक भीड़ का एक रेला आया और हम सब लोग उस संकरे रास्ते में धंस गये।
मैंने चन्दा का हाथ कसकर पकड़ रखा था। ऐसी भीड़ थी की हिलना तक मुश्किल था, तभी मेरे बगल से मर्दों का एक रेला निकला और एक ने अपने हाथ से मेरी चूची कसकर दबा दी।
जब तक मैं सम्हलती, पीछे से एक धक्का आया, और किसी ने मेरे नितम्बों के बीच धक्का देना शुरू कर दिया। मैंने बगल में चन्दा की ओर देखा तो उसको तो पीछे से किसी आदमी ने अच्छी तरह से पकड़ रखा था, और उसकी दोनों चूचियां कस-कस के दबा रहा था और चन्दा भी जमके मजा ले रही थी।
कजरी और गीता, भीड़ में आगे चली गयी थीं और उनको तो दो-दो लड़कों ने पकड़ रखा था और वो मजे से अपने जोबन मिजवा, रगड़वा रही हैं। तभी भीड़ का एक और धक्का आया और हम उनसे छूटकर आगे बढ़ गये।
भीड़ अब और बढ़ गयी थी और गली बहुत संकरी हो गयी थी।
अबकी सामने से एक लड़के ने मेरी चोली पर हाथ डाला और जब तक मैं सम्हलती, उसने मेरे दो बटन खोलकर अंदर हाथ डालकर मेरी चूची पकड़ ली थी।
पीछे से किसी के मोटे खड़े लण्ड का दबाव मैं साफ-साफ अपने गोरे-गोरे, किशोर चूतड़ों के बीच महसूस कर रही थी। वह अपने हाथों से मेरी दोनों दरारों को अलग करने की कोशिश कर रहा था और मैंने पैंटी तो पहनी नहीं थी, इसलिये उसके हाथ का स्पर्श सीधे-सीधे, मेरी कुंवारी गाण्ड पर महसूस हो रहा था।
तभी एक हाथ मैंने सीधे अपनी जांघों के बीच महसूस किया और उसने मेरी चूत को साड़ी के ऊपर से ही रगड़ना शुरू कर दिया था। चूची दबाने के साथ उसने अब मेरे खड़े चूचुकों को भी खींचना शुरू कर दिया था। मैं भी अब मस्ती से दिवानी हो रही थी।
चन्दा की हालत भी वही हो रही थी। उस छोटे से रास्ते को पार करने में हम लोगों को 20-25 मिनट लग गये होंगे और मैंने कम से कम 10-12 लोगों को खुलकर अपना जोबन दान दिया होगा।
बाहर निकलकर मैं अपनी चोली के हुक बंद कर रही थी कि चन्दा ने आ के कहा-
“क्यों मजा आया हार्न दबवाने में…”
बेशरमी से मैंने कहा-
“बहुत…”
•
Posts: 2,727
Threads: 13
Likes Received: 1,217 in 788 posts
Likes Given: 494
Joined: Jan 2019
Reputation:
47
[i]चौथी फुहार [/i]
बाहर निकलकर मैं अपनी चोली के हुक बंद कर रही थी कि चन्दा ने आ के कहा- “क्यों मजा आया हार्न दबवाने में…”
बेशरमी से मैंने कहा- “बहुत…”
गन्ने के खेत में
पर तब तक मैंने देखा की गीता, पास के गन्ने के खेत में जा रही है। मैंने पूछा- “अरे… ये गीता कहां जा रही है…”
चन्दा ने आँख मारकर, अंगूठे और उंगली के बीच छेद बनाकर एक उंगली को अंदर-बाहर करते हुए इशारे से बताया चुदाई करवाने। और मुझे दिखाया की उसके पीछे रवी भी जा रहा है।
“पर तुम कहां रुकी हो, तुम्हारा कोई यार तुम्हारा इंतेजार नहीं कर रहा क्या…”
चन्दा को मैंने छेड़ा।
“अरे लेकिन तुम्हें कोई उठा ले जायेगा तो मैं ही बदनाम होऊँगी…” चन्दा ने हँसते हुए मेरे गुलाबी गालों पर चिकोटी काटी।
“अरे नहीं… फिर तुम्हें खुश रखूंगी तो मेरा भी तो नंबर लगा जायेगा। जाओ, मैं यही रहूंगी…” मैं बोली।
“अरे तुम्हारा नंबर तो तुम जब चाहो तब लग जाये, और तुम न भी चाहो तो भी बिना तुम्हारा नंबर लगवाये बिना मैं रहने वाली नहीं, वरना तुम कहोगी कि कैसी सहेली है अकेले-अकेले मजा लेती है…” और यह कह के वह भी गन्ने के खेत में धंस गयी।
[i][/i]
मैंने देखा की सुनील भी एक पगडंडी से उसके पीछे-पीछे चला गया।
गन्ने के खेत में सरसराहट सी हो रही थी।
मैं अपने को रोक नहीं पायी और जिस रास्ते से सुनिल गया था, पीछे-पीछे, मैं भी चल दी।
एक जगह थोड़ी सी जगह थी और वहां से बैठकर साफ़-साफ़ दिख रहा था।
चन्दा को सुनील ने अपनी गोद में बैठा रखा था और चोली के ऊपर से ही उसके जोबन दबा रहा था। चन्दा खुद ही जमीन पर लेट गयी और अपनी साड़ी और पेटीपेट को उठाकर कमर तक कर लिया। मुझे पहली बार लगा की साडी पहनना कित्ता फायदेमंद है।
उसने अपनी दोनों टांगें फैला लीं और कहने लगी- “हे जल्दी करो, वो बाहर खड़ी होगी…”
सुनील ने भी अपने कपड़े उतार दिये। उफ… कित्ता गठा मस्कुलर बदन था, और जब उसने अपना… वाउ… खूब लंबा मोटा और एकदम कड़ा लण्ड… मेरा तो मन कर रहा था कि बस एक बार हाथ में ले लूं।
सुनील ने उसकी चोली खोल दी और सीधे, फैली हुई टांगों के बीच आ गया।
उसके लण्ड का चूत पर स्पर्श होते ही चन्दा सिहर गयी और बोली-
“आज कुछ ज्यादा ही जोश में दिख रहे हो क्या मेरी सहेली की याद आ रही है…”
“और क्या… जब से उसे देखा है मेरी यही हालत है, एक बार दिलवा दो ना प्लीज…” सुनील अपने दोनों हाथों से चन्दा के मम्मे जमकर मसल रहा था।
चन्दा जिस तरह सिसकारी भर रही थी, उसके चेहरे पे खुशी झलक रही थी, उससे साफ लग रहा था की उसे कितना मजा आ रहा था। मेरा भी मन करने लगा कि अगर चन्दा की जगह मैं होती तो…
सुनील अपना मोटा लण्ड चन्दा की बुर पर ऊपर से ही रगड़ रहा था और चन्दा मस्ती से पागल हो रही थी-
“हे डालो ना… आग लगी है क्यों तड़पा रहे हो…”
सुनील ने उसके एक निपल को हाथों से खींचते हुए कहा-
“पहले वादा करो… अपनी सहेली की दिलवाओगी…”
चन्दा तो जोश से पागल हो रही थी और मुझे भी लगा रहा था कि कितना अच्छा लगता होगा। वह चूतड़ उठाती हुई बोली-
“हां, हां… दिलवा दूंगी, चुदवा दूंगी उसको भी, पर मेरी चूत तो चोदो, नशे में पागल हुई जा रही हूं…”
सुनील ने उसकी दोनों टांगों को उठाकर अपने कंधे पर रखा और उसकी कमर पकड़कर एक धक्के में अपना आधा लण्ड उसकी चूत में ठेल दिया।
मैं अपनी आँख पर यकीन नहीं कर पा रही थी, इतनी कसी चूत और एक झटके में सिसकी लिये बिना, लण्ड घोंट गयी।
अब एक हाथ से सुनील उसकी चूची मसल रहा था, और दूसरे से उसकी कमर कसकर पकड़े था।
थोड़ी देर में ही, चन्दा फिर सिसकियां लेने लगी-
“रुक क्यों गये… डालो ना प्लीज… चोदो ना… उहुह… उह्ह्ह…”
सुनील ने एक बार फिर दोनों हाथ से कमर पकड़कर अपना लण्ड, सुपाड़े तक निकाल लिया और फिर एक धक्के में ही लगभग जड़ तक घुसेड़ दिया। अब लगा रहा था कि चन्दा को कुछ लग रहा था।
चन्दा-
“उफ… उह फट गयी… लग रहा है, प्लीज, थोड़ा धीरे से एक मिनट रुक… हां हां ऐसे ही बस पेलते रहो हां, हां डालो, चोद दो मेरी चूत… चोद दो…”
चन्दा और सुनील दोनों ही पूरे जोश में थे। सुनील का मोटा लण्ड किसी पिस्टन की तरह तेजी से चन्दा की चूत के अंदर-बाहर हो रहा था।
चन्दा की मस्ती देखकर तो मेरा मन यही कह रहा था कि काश… उसकी जगह मैं होती और मेरी चूत में सुनील का ये मूसल जैसा लण्ड घुस रहा होता… थोड़ी देर में सुनील ने चन्दा की टांगें फिर से जमीन पर कर दीं और वह उसके ऊपर लेट गया, उसका एक हाथ, चन्दा के चूचुक मसल रहा था और दूसरा उसकी जांघों के बीच, शायद उसकी क्लिट मसल रहा था।
चन्दा का एक चूचुक भी सुनील के मुँह में था।
अब तो चन्दा नशे में पागल होकर अपने चूतड़ पटक रही थी। उसने फिर दोनों टांगों को उसके पीठ पर फंसा लिया। मैं सोच भी नहीं सकती थी कि चुदाई में इत्ता मजा आता होगा, अब मैं महसूस कर रही थी कि मैं क्या मिस कर रही थी।
सटासट, सटासट… सुनील का मोटा लण्ड… उसकी चूत में अंदर-बाहर…
चन्दा का शरीर जिस तरह से कांप रहा था उससे साफ था कि वो झड़ रही है।
पर सुनील रुका नहीं, जब वह झड़ गई तब सुनील ने थोड़ी देर तक रुक-रुक कर फिर से उसके चूचुक चूसने, गाल पर चुम्मी लेना, कसकर मम्मों को मसलना रगड़ना शुरू कर दिया और चन्दा ने फिर सिसकियां भरना शुरू कर दिया।
एक बार फिर सुनील ने उसकी टांगों को मोड़कर उसके चूतड़ों को पकड़ के जमके खूब कस के धक्के लगाने शुरू कर दिये। क्या मर्द था… क्या ताकत… चन्दा एक बार और झड़ गयी।
तब कहीं 20-25 मिनट के बाद वह झड़ा और देर तक झड़ता रहा। वीर्य निकलकर बहुत देर तक चन्दा के चूतड़ों पर बहता रहा। अब उसने अपना लण्ड बाहर निकाला तब भी वह आधा खड़ा था।
मैं मंत्रमुग्ध सी देख रही थी, तभी मुझे लगा कि अब चन्दा थोड़ी देर में बाहर आ जायेगी, इसलिये, दबे पांव मैं गन्ने के खेत से बाहर आकर इस तरह खड़ी हो गई जैसे उसके इंतेजार में बोर हो रही हूं।
चन्दा को देखकर उसके नितंबों पर लगी मिट्टी झाड़ती मैं बोली- “क्यों ले आयी मजा…”
“हां, तू चाहे तो तू भी ले ले, तेरा तो नाम सुनकर उसका खड़ा हो जाता है…” चन्दा हँसकर बोली।
“ना, बाबा ना, अभी नहीं…”
“ठीक है, बाद में ही सही पर ये चिड़िया अब बहुत देर तक चारा खाये बिना नहीं रहेगी…”
साड़ी के ऊपर से मेरी चूत को कसके रगड़ती हुई वो बोली, और मुझे हाथ पकड़के मेले की ओर खींचकर, लेकर चल दी।
•
Posts: 2,727
Threads: 13
Likes Received: 1,217 in 788 posts
Likes Given: 494
Joined: Jan 2019
Reputation:
47
मेले में
मेले में गीता के साथ पूरबी, कजरी और बाकी लड़कीयां फिर मिल गयीं।
चन्दा ने आँखों के इशारे से पूछा तो गीता ने उंगली से दो का इशारा किया। मैं समझ गयी कि रवी से ये दो बार चुदा के आ रही है।
पूरे मेले में खिलखिलाती तितलियों की तरह हम लोग उड़ते फिर रहे थे।
हम लोगों ने गोलगप्पे खाये, झूले पर झूले, हम लोगों का झुंड जिधर जाता, पूरे मेले का ध्यान उधर मुड़ जाता और फिर जैसे मिठाई के साथ-साथ मक्खियां आ जाती हैं, हमारे पीछे-पीछे, लड़कों की टोली भी पहुँच जाती।
और दुकानदार भी कम शरारती नहीं थे, कोई चूड़ी पहनाने के बहाने जोबन छू लेता तो कोई कलाई पकड़ लेता। और लड़कीयों को भी इसमें मजा मिल रहा था, क्योंकी इसी बहाने उन्हें खूब छूट जो मिल रही थी।
थोड़ी देर में मैं भी एक्सपर्ट हो गई। दुकानदार के सामने मैं ऐसे झुक जाती कि उसे न सिर्फ चोली के अंदर मेरे जोबन का नजारा मिल जाता बल्की वह मेरे चूचुक तक साफ-साफ देख लेता।
उसका ध्यान जब उधर होता तो मेरी सहेलियां उसका कुछ सामान तो पार ही कर लेतीं, और मुझे जो वो छूट देता वो अलग।
हम ऐसे ही मस्ती में घूम रहे थे।
पूरबी ने गाया-
अरे मैं तो बनिया यार फँसा लूंगी,
अरे जब वो बनिया चवन्नी मांगे,
अरे जब वो बनिया चवन्नी मांगे, मैं तो जोबना खोल दिखा दूंगी।
अरे मैं तो बनिया यार फँसा लूंगी, दूध जलेबी खा लूंगी
अरे जब वो बनिया रुपैया मांगे,
अरे जब वो बनिया रुपैया मांगे, मैं तो लहंगा खोल दिखा दूंगी।
गुदने वाली के पास भी हम लोग गये और मैंने भी अपनी ठुड्डी पे तिल गुदवाया।
तभी मैंने देखा कि बगल की दुकान पे दो बड़े खूबसूरत लड़के बैठें हैं, खूब गोरे, लंबे, ताकतवर, कसरती, गठे बदन के, उनकी बातों में मेरा नाम सुन के मेरा ध्यान ओर उनकी ओर लग गया।
“अरे तुमने देखा है, उस शहरी माल को, क्या मस्त चीज है…” एक ने कहा।
“अरे मैं, आज तो सारा मेला उसी को देख रहा है, उसकी लम्बी मोटी चूतड़ तक लटकती चोटी, जब चलती है तो कैसे मस्त, कड़े कड़े, मोटे कसमसाते चूतड़, मेरा तो मन करता है, कि उसके दोनों चूतड़ों को पकड़कर उसकी गाण्ड मार लूं… एक बार में अपना लण्ड उसकी गाण्ड में पेल दूं…” दूसरा बोला।
“अरे मुझे तो बस… क्या, गुलाबी गाल हैं उसके भरे-भरे, बस एक चुम्मा दे दे यार, मन तो करता है कि कचाक से उसके गाल काट लूं…” पहला बोला।
दूसरा बोला- “और चूची… ऐसी मस्त रसीली कड़ी-कड़ी चूचियां तो यार पहली बार देखीं, जब चोली के अंदर से इत्ती रसीली लगती हैं तो… बस एक बार चोदने को मिल जाय…”
शायद किसी और दिन मैं किसी को अपने बारे में ऐसी बातें बोलती सुनती तो बहुत गुस्सा लगता, पर आज ये सबसे बड़ी तारीफ लग रही थी… और ये सुनके मैं एकदम मस्त हो गयी।
•
Posts: 2,727
Threads: 13
Likes Received: 1,217 in 788 posts
Likes Given: 494
Joined: Jan 2019
Reputation:
47
अजय
पूरे मेले में हम लोगों की टोली ने धमाल मचा रखा था।
जो जो चीजे मैंने कभी देखी भी नहीं थी , सिर्फ पढ़ी थीं ,सुनी थीं वो सब , और सब से बढ़ के फुल टाइम मस्ती ,
जितना मैं चंदा से खुली थी , अब उतना ही गीता , पूरबी ,कजरी और गाँव की बाकी लड़कियों से भी ,
गीता ने पूरा किस्सा सुनाया मुझे चटखारे लेकर कैसे रवी ने उसके साथ , एक नहीं दो बार ,
पूरबी ने भी पूरे डिटेल में गन्ने के खेत के मजे के बारे में बताया।
और भीड़ भी इतनी की कहाँ कौन क्या कर रहा है , कोई देख नहीं सकता था ,सब अपने अपने में मगन थे।
टोलियां बन बिगड़ रही थीं , कभी किसी के साथ कोई किसी दूकान पे तो कोई किसी के साथ , और थोड़ी देर में फिर हम मिल जाते , आसमान में बनते बिगड़ते रंगीले बादलों के साथ।
हाँ ,जिधर हम जाते , लड़कों की टोली भी पीछे पीछे , और एक से एक कमेंट ,और उस से भी ज्यादा तीखे शोख जवाब भी मिलते , गीता और कजरी की ओर से और अब , मेरी भी जुबान खुल गयी थी , गाने से लेकर खुल के मजाक करने में।
मैं और चंदा मेले में घूम रहे थे की पीछे से सुनील कुछ इशारा कर के ,चंदा को बुलाया।
" बस पांच मिनट में आ रही हूँ , कुछ जरूरी काम है "
वो मुझसे बोली , लेकिन मैं तो सुनील के इशारे को देख ही चुकी थी। हँसते हुए मैंने छेड़ा ,
" अरे जाओ न , और वैसे भी यहाँ आस पास कोई गन्ने का खेत तो है नहीं जो तुझे ज्यादा टाइम लगे। "
जोर से एक हाथ मेरी पीठ पे पड़ा और खिलखिलाती चंदा ने बोला ,
" बहुत देर नहीं है , जल्द ही तुझे भी गन्ने के खेत में लिटाउंगी , सटासट सटासट लेगी न अंदर तो, और वैसे भी गन्ने के खेत के अलावा भी यहाँ आस पास बहुत जगहे हैं मजा लेंने की , कित्ता भी चीखो,बोलो कुछ पता नहीं चलने वाला। "
उधर सुनील बैचैन हो रहा था।
चंदा रानी अपने मोटे मोटे चूतड़ मचकाती उधर चल दीं।
थोड़ा दूर से कुछ लाउडस्पीकर की आवाजें आ रही थीं ,गाने की , लेकिन आवाज साफ नहीं थी।
मैं थोड़ा उधर मुड़ी तो देखा की नौटंकी का बैनर दूर से नजर आ रहे थी।
दो तीन नौटंकी वालों के टेंट उधर लगे थे , नीलम नौटंकी कंपनी कानपुर , शोभा थियेटर।
मैं उधर बढ़ गयी , और अब गाने की आवाज साफ सुनाई दे रही थी ,
और एक जगह से थोड़ा थोड़ा स्टेज दिख भी रहा था ,
लड़ाई लो अंखिया हो लौंडे राजा , लड़ाई लो
सास गयीं गंगा , ननद गयी जमुना ,
लड़ाई लो अंखिया हो लौंडे राजा , लड़ाई लो
तबतक स्टेज के नीचे से किसी लड़के ने दस का नोट दिखाया ,
उसने दो बार अपने भारी उभार मचकाए और झुक कर , अपनी पूरी गहराइयाँ उसे दिखाते , रूपया ले लिया , फिर अपने होंठों से चूम कर , आँखों से लगा कर , पहले तो अपनी बहुत ही लो कट चोली में रखने का उपक्रम किया , फिर उसे हारमोनियम मास्टर के पास रख दिया।
जोर का चक्कर मार के वो फिर उस लड़के के सामने , जिसने पैसा दिया था , उसका नाम पूछा और गाया ,
रानी पर वाले बाबू साहब का , प्यारी प्यारी पब्लिक का शुक्रिया अदा करती ,अदा करती , अदा करती हूँ।
साथ में नगाड़े वाले ने तीन बार नगाड़े पर जोरदार टनक दी।
और गाना फिर शुरू हो गया ,
लड़ाई लो अंखिया हो लौंडे राजा , लड़ाई लो
दबाई दो छतियां हो लौंडे राजा ,लड़ाई लो अंखिया हो लौंडे राजा , लड़ाई लो
और दो हाथों ने जबरदस्त जोर से मेरी छाती दबा दी।
उन हाथों को मैं भूल सकती थी क्या , और कौन चंदा।
बिना उसका हाथ हटाये ,स्टेज पर चल रहा नाच देखते मैं बोली ,
" तू दबवाय आई न , यार से अपने "
"एकदम खूब दबवाया , लेकिन देख एक बिचारा तेरा दबाने के लिए बेचैन खड़ा है। अब तू भी दबवा ही ले यार "
चंदा ने मेरे कान में फुसफुसाया।
मैंने कनखियों से देखा ,जिधर चंदा ने इशारा किया ,
अजय एक दम नदीदे लड़के की तरह , जैसे होंठों से लार टपक रही हो।
सब लोग स्टेज पर नाच देखने में मगन थे और वो , उसकी निगाहें चिपकी हुयी थी मुझसे , बल्कि साफ कहूँ तो मेरे उभारों से। चुनरी थोड़ी सरक गयी थी और उभार काफी कुछ दिख रहे थे। लो कट होने से गहराई भी , बस अजय की निगाह वहीँ डूबी हुयी थी।
मेरा तन मन दोनों सिहर गया , ये लड़के भी और ख़ास तौर से ये अजय न ,
मेरे नए नए आये जोबन और कड़े हो गए।
चंदा ने अजय को टोका ,
" हे क्या देख रहे हो। "
बिचारा अजय जैसे उसकी चोरी पकड़ी गयी हो , एकदम खिसिया गया।
कुछ तो नहीं। धीमे से बोला।
" कुछ तो देख रहे थे ,जरूर " अब मैं भी उसकी रगड़ाई में शामिल हो गयी थी।
साथ ही चूनर अड्जस्ट करने के बहाने से उसे गोरी गोरी गुदाज गोलाइयों का के पूरा दर्शन भी दे दिया।
उसकी हालत और खराब ,
" इस बिचारे की क्या गलती , देखने लायक चीज हो तो कोई भी देखेगा ही ,"
चंदा ने पाला बदल लिया और अजय के बगल में खड़ी होगयी लेकिन फिर उसने अजय को चिढ़ाया ,
' सिर्फ देखने लायक है या कुछ और भी ,.... "
जवाब नाचने वाली की ओर से आया ,
लड़ाई लो अंखिया हो लौंडे राजा , लड़ाई लो
दबाई दो छतियां हो लौंडे राजा ,लड़ाई लो अंखिया हो लौंडे राजा , लड़ाई लो
अरे उठायी लो टंगिया , सटाय दो , घुसाय दो , धँसाय दो
और उस के साथ वो जिस तरह की आवाजें निकाल रही थी टाँगे उठाये थी , कुछ कल्पना के लिए बचा नहीं था।
बात अजय ने बदली ,
"हे निशाना लगाने चलोगी।"
और जवाब चंदा ने दिया ,
" जानती है , अजय का निशाना एकदम पक्का है चूकता नहीं। "
लेकिन अजय ने मुझसे बोला , " लेकिन कई बार नहीं भी लगता। "
भीड़ का एक धक्का आया , नौटंकी में घुसने वालों का ,
और चंदा थोड़ा पीछे रह गयी।
मैंने अजय का हाथ पकड़ लिया और मौके का फायदा उठा के , थोड़ा सट के धीमे से बोली ,
" क्या पता, लग गया हो और ,… तुम्हे पता न चला हो। "
•
Posts: 2,727
Threads: 13
Likes Received: 1,217 in 788 posts
Likes Given: 494
Joined: Jan 2019
Reputation:
47
निशाना चूक न जाए
बड़ी हिम्मत कर के अजय ने अपना हाथ मेरी कमर पे रख के मुझे और अपने पास खींच लिया।
लेकिन सामने पूरबी कजरी और रवी दिखाई दिए और उसने झट से हाथ हटा लिया।
हम लोग निशाने वाले की दूकान के सामने थे और चंदा भी हमारे साथ आ गयी थी।
पूरबी ,कजरी और गीता के साथ रवी ,दिनेश और एक दो लड़के और थे।
दस निशाने सही लगाने पर दस निशाने और फ्री लगाने को मिलते।
लड़के अजय को लेकर उकसाने लगे। मैं एकदम अजय के साथ ही खड़ी थी ,आलमोस्ट चिपकी सी। चंदा हम दोनों के पीछे और उसकी कमेंट्री चालू थी ।
" निशाना असली ,ठीक बगल में हैं "
चंदा ने मेरी ओर इशारा करके अजय को छेड़ा।
अजय ने मुस्कारते हुए शूट करना शुरू किया और देखते देखते दस के दस एकदम सही ,
अब चंदा मेरे पीछे पड़ गयी , अब तेरा नंबर। और उसके साथ पूरबी ,कजरी ,गीता सब,…
मैं लाख मना करती रही लेकिंन अजय ने शॉटगन मुझे पकड़ा दी , और जैसे ही मैंने पकड़ा ,पूरबी और चंदा दोनों मिल के ,
" देखा अजय ने पकड़ाया तो कैसे झट से पकड़ लिया। "
पूरबी ने छेड़ा।
" अरे अजय का माल है , तो पकड़ लिया उस ने प्यार से , और क्या। "
चंदा क्यों मौका छोड़ती।
" सिर्फ अजय का पकड़ेगी या बाकी लोगों का भी " सुनील अब पीछे पड़ा।
" तेरी सहेली का निशाना तो वैसे ही गजब का है ,मेले में डेढ़ सौ लोग घायल हो चुके हैं। " रवी ने चंदा को सुनाया।
सब कमेंट मुझे अच्छे लग रहे थे और मैंने निशाना लगाया ,
दस में दस मेरे भी।
सब लड़कियों ने खूब जोर की ताली बजायी , और ये तय हुआ की हम दोनों का मुकाबला होगा।
" ऐसे नहीं , जो हारेगा , वो मिठायी खिलायेगा ,"
पूरबी और कजरी बोलीं।
अजय ने झट मान लिया।
और हम दोनों के मुकाबले के चक्कर में ,...
पहला राउंड बराबर रहा , दस मेरे दस अजय के।
दूसरे राउंड में फिर ९ मेरे लेकिन अजय के दो निशाने चूक गए , और मैं तो नजदीक से देख रही थी , जान बूझ के उसने आखिरी दो शॉट गलत मारे थे।
लड़कियों ने शोर से आसमान गूंजा दिया ,लेकिन ये तो मैं जानती थी की सच में कौन जीता।
और जिस तरह से अजय ने मुझे देखा , मेरी आँखों में झांक के , मैं हार गयी और उसका हाथ दबा के मैंने अपनी हार कबूल कर ली।
इसके बाद फिर सब लोग अलग थलग ,
चंदा सुनील के साथ ,
अजय भी कुछ लड़कों के साथ ,
मैं कुछ देर पूरबी और कजरी के साथ , इधर उधर मस्ती से ,....
तब तक मैंने एक किताबों की दुकान देखी और रुक गयी ,
जमीन पर बिछा के , ढेर सारी ,
किस्सा तोता मैना , सारंगा सदाब्रिज , आल्हा , बेताल पच्चीसी ,सिंहासन बत्तीसी , शादी के गाने ,
•
Posts: 2,727
Threads: 13
Likes Received: 1,217 in 788 posts
Likes Given: 494
Joined: Jan 2019
Reputation:
47
मेले में खोयी गुजरिया
तब तक मैंने एक किताबों की दुकान देखी और रुक गयी ,
जमीन पर बिछा के , ढेर सारी ,
किस्सा तोता मैना , सारंगा सदाब्रिज , आल्हा , बेताल पच्चीसी ,सिंहासन बत्तीसी , शादी के गाने ,
मैं झुक के पन्ने पलट रही थी, पता ही नहीं चला कैसे टाइम गुजर रहा था , तब तक जोर से नितम्बो पे किसी ने चिकोटी काटी , और बोला तुम दोनों मिल के ये कौन सी किताब पढ़ रहे हो।
और मेरी निगाह बगल की ओर मुड़ गयी।
अजय हलके हलके मुस्कराता हुआ ,
और फिर मेरी निगाह उस किताब की ओर पड़ गयी, जिसकी ओर चंदा इशारा कर रही थी।
असली कोकशास्त्र , बड़ी साइज ,८४ आसन ,सचित्र।
मैं गुलाल हो गयी , और अजय बदमाशी से मुस्करा रहा था।
" सही तो कह रही हूँ , साथ साथ पढ़ लो तो साथ साथ प्रैक्टिस करने में भी आसानी होगी। "
मैं उसे मारने दौड़ी तो वो एक दो तीन , और मेले की भीड़ में गायब।
लेकिन मेरी पकड़ से कहाँ बाहर आती
आखिर पकड़ लिया , लेकिन उसी समय कामिनी भाभी और दो चार भाभियाँ मिल गयीं , और वो बच गयी।
बात बातें करते हम लोग मेले के दूसरी ओर पहुँच गए थे।
वहां एक बहुत संकरी गली सी थी , दुकानों के बीच में से। और मेला करीब करीब खत्म सा हो गया था वहां , पीछे उसके खूब घनी बाग़,
तभी मैंने देखा दो लड़कियां निकलीं , उसी संकरी गली में से , खिलखिलाती , खूब खुश और उसके पीछे थोड़ी देर बाद दो लड़के।
मैंने शक की निगाह से चंदा की ओर देखा तो उसने मुस्कराते हुए सर हिलाके हामी भरी।
फिर इधर उधर देख के फुसफुसाते हुए मेरे कान में कहा ,
" यही तो मेले का मजा है। अरे गन्ने के खेत के अलावा भी बहुत जगहें होती हैं ,उस के पीछे कुछ पुराने खँडहर है , जिधर कोई आता जाता नहीं है , सरपत और ऊँची ऊँची मेंडे फिर पीछे बाग़ और सीवान है। "
पूरबी चूड़ी की एक दूकान से इशारे कर के मुझे बुला रही थी , और मैं उसके पास चली गयी।
वहां कजरी भी थी और दोनों उस दूकान दार से खूब लसी थीं ,
मैं भी उन की छेड़छाड़ में शामिल हो गयी। वहां से फिर मैं चंदा को ढूंढने निकली , तो उस ओर पहुँच गयी जहां दुकानो के बीच की वो संकरी सी गली , एक एक करके कोई उसमें जा सकता था ,
तभी अचानक भगदड़ मची , खूब जोर की , कोई कहता लड़ाई हो गयी , कोई कहता सांप निकला।
सब लोगों की तरह मैं भी भागी , और भीड़ के एक रेले के धक्के के साथ मैं भी ,
कुछ देर में जब मैं रुकी तो मैंने देखा की मैं उसी संकरी गली के अंदर हूँ.
,
मैं आगे बढती रही , वह आगे इतनी संकरी होगयी थी की तिरछे हो के ही निकला जा सकता था ,रगड़ते दरेरते।
मैं अंदर घुस गयी , और थोड़ी देर बाद एक दम खुली जगह , ज्यादा नहीं , १००- २०० फीट।
उसमें कुछ पुराने अध टूटे कमरे , और खूब ऊँची मेड जिस पे सरपत लगी थी और उस के पार वो घनी बाग़।
बाहर से एक बार फिर मेले का शोर सुनाई देने लगा था।
मैं एकदम अकेली थी वहां।
आसमान में काले बादल भी घिर आये थे , काफी अँधेरा हो गया था।
और जब मैं वापस निकलने लगी तो , रास्ता बंद।
दो मोटे तगड़े मुस्टंडे , उस संकरे रास्ते को रोक के खड़े थे।
मेरी तो घिघ्घी बंध गयी।
अगर मैं चिल्लाऊं तो भी वहां कोई सुनने वाला नहीं थी।
उन में से एक आगे बढ़ने लगा , और मैं पीछे हटने लगी।
दूसरा रास्ता घेरे खड़ा था।
मैं आलमोस्ट उस खँडहर के पास पहुँच गयी।
वह कुछ बोल नहीं रहे थे पर उनका इरादा साफ था और मैं कुछ कर भी नहीं सकती थी।
" तेरी सोन चिरैया तो आज लूटी , कोई चाहने वाला लूटता पहली फुहार का मजा लेकिन यहाँ ये दो ,"
कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।
तबतक एकदम फिल्मी हीरो की तरह , अजय
और पहली बार मैंने नोटिस किया , उसकी चौड़ी छाती , खूब बनी हुयी मसल्स ,कसरती देह , ताकत छलक रही थी।
और अब उसके आगे तो दोनों जमूरे एकदम पिद्दी लग रहे थे।
उसने उन दोनों को नोटिस ही नहीं किया , और सीधे आके मेरा हाथ पकड़ के बोला ,
" अरे हम सब लोग तुमको ढूंढ रहे हैं , चलो न "
मैंने अपना सर उसके सीने पे रख दिया।
•
Posts: 2,727
Threads: 13
Likes Received: 1,217 in 788 posts
Likes Given: 494
Joined: Jan 2019
Reputation:
47
मजा झूले पे ,
" अरे हम सब लोग तुमको ढूंढ रहे हैं , चलो न "
मैंने अपना सर उसके सीने पे रख दिया।
थोड़ी देर में हम लोग फिर मेले की गहमागहमी के बीच , वहीं मस्ती ,छेड़छाड़। और पूरा गुट ।
गीता ,पूरबी ,कजरी , चंदा , रवि ,दिनेश और सुनील।
एक बड़ी सी स्काई व्हील के पास।
" झूले पे चढ़ने के डर से भाग गयी थी क्या " पूरबी ने चिढ़ाया।
" अरे मेरी सहेली इत्ती डरने वाली नहीं है , झूला क्या हर चीज पे चढ़ेगी देखना ,क्यों हैं न "
चंदा क्यों पीछे रहती द्विअर्थी डायलॉग बोलने में।
और अब झूले वाले ने बैठाना शुरू किया ,मुझे लगा मैं और चंपा एक साथ बैठ जायंगे , लेकिन जैसे ही चंदा बैठी , धप्प से उसके बगल में सुनील बैठ गया।
और अब मेरा नंबर था लेकिन जब मैं बैठी तो देखा , की सब लड़कियां किसी न किसी लड़के के साथ ,और कोई नहीं बची थी मेरे साथ बैठने के लिए।
बस अजय , और वो झिझक रहा था।
झूलेवाले ने झुंझला के उससे पूछा , तुम्हे चढ़ना है या किसी और को चढाउँ ,बहुत लोग खड़े हैं पीछे।
मैंने खुद हाथ बढ़ा के अजय को खीँच लिया पास में।
चंदा और सुनील अगली सीट पे साफ दिख रहे थे। चंदा एकदम उससे सटी चिपकी बैठीं थी और सुनील ने भी हाथ उसके उभारों पर , और सीधे चोली के अंदर
और झूला चलने के पहले ही दोनों चालू हो गए।
सुनील का एक हाथ सीधे चंदा की चोली अंदर , जोबन की रगड़ाई ,मसलाई चालू हो गयी और चंदा कौन कम थी , वो भी लिफाफे पे टिकट की तरह सुनील से चिपक गयी।
और झूला चलते हुए इधर उधर जो मैंने देखा तो सारी लड़कियों की यही हालत थी।
मैं पहली बार जायंट व्हील पे बैठी थी और जैसे ही वो नीचे आया, जोर की आवाज उठी , होओओओओओओओओओओ हूऊऊओ
और इन आवाजों में डर से ज्यादा मस्ती और सेक्सी सिसकियाँ थीं।
डर तो मैं भी रही थी ,पहली बार जायंट व्हील पे बैठी थी और जैसे ही झूला नीचे आया मेरी फट के , … मैं एकदम अजय से चिपक गयी।
लेकिन एक तो मैं कुछ शर्मा रही और अजय भी थोड़ा ज्यादा ही सीधा , झिझक रहा था की कहीं मैं बुरा न ,
लेकिन फिर भी जब अगली बार झूला नीचे आया , डर के मारे मैंने आँखें मिची , अजय ने अपना हाथ मेरे कंधे पर रख दिया।
अब मैं और उहापोह में उसके हाथ को हटाऊँ या नही। अगर न हटाऊं तो कहीं वो मुझे ,…
हाथ तो मैंने नहीं हटाया ,हाँ थोड़ा दूर जरूर खिसक गयी , बस अजय ने हाथ हटा लिया।
अब मुझे अहसास हुआ , कितनी बड़ी गलती कर दी मैंने। एक तो वो वैसे ही थोड़ा ,बुद्ध और सीधा ऊपर से मैं भी न ,
फिर बाकी लड़कियां कित्ता खुल के मजे ले रही थीं , चंदा के तो चोली के आधे बटन भी खुल गए थे और सुनील का हाथ सीधा अंदर , खुल के चूंची मिजवा रही थी। और मैं इतने नखड़े दिखा रही थी। क्या करूँ कुछ समझ में नहीं आ रहां था ,खुद तो उससे खुल के बोल नहीं सकती थी।
लेकिन सब कुछ अपने आप हो गया ,एकदम नेचुरल।
झूले की रफ्तार एकदम से तेज होगयी और मैं डर के अजय के पास दुबक गयी ,मैंने अपना सर उसके सीने में छुपा लिया , और अब जब उसने अपना हाथ सपोर्ट देने के लिए जैसे , मेरे कंधे पे रखा।
ख़ुशी से मैंने उसे मुस्करा के देखा और अपनी उंगलिया उसके हाथ पे रख के दबा दी।
और जब झूला नीचे आया तो अबकी सबकी सिसकियों में मेरी भी शामिल थी।
मैं समझ गयी थी ,हर बार लड़का ही पहल नहीं करता ,लड़की को भी उसका जवाब देना पड़ता है।
और अगर अजय ऐसा लड़का हो तो फिर और ज्यादा , आखिर मजा तो दोनों को आता है। फिर कुछ दिन में मैं शहर वापस चली जाउंगी , फिर कहाँ , और आज यहाँ अभी जो मौक़ा मिला है वैसा कहाँ ,… फिर
उसका हाथ पकड़ के मैंने नीचे खींच लिया सीधे अपने उभार पे , और हलके से दबा भी दिया।
और जैसे अपनी गलती की भरपाई कर दी हो , अजय की ओर मुस्करा के देखा भी।
फिर तो बस , उसकी शैतान उंगलियां ,मेरे कड़े कड़े किशोर उभारों के बेस पे , थोड़ी देर तो उसने बस जैसे थामे रखा ,फिर अपनी हथेली से हलके दबाना शुरू किया। हाथ का बेस मेरे निपल से थोड़े ऊपर , मैं साँस रोक के इन्तजार कर रही थी अब क्या करेगा वो ,
कुछ देर उसने कुछ नहीं किया , बस अपनी हथेली से हलके हलके दबाता , मेरी गोलाइयों का रस लेता , वो अभी खिली कलियाँ जिसके कितने ही भौंरे दीवाने यहाँ इस मेले में टहल रहे थे। पतली सी टाइट चोली से उसके हाथ का स्पर्श अंदर तक मुझे गीला कर रहा था।
मन तो मेरा कर रहा था बोल दूँ उससे जोर से बोल दूँ ,यार रगड़ दो मसल मेरे जोबन ,जैसे खुल के बाकी लड़कियां मजे ले रही हैं ,
पर ये साल्ली शरम भी न ,
लेकिन अबकी जब झूला नीचे आया तो बस मैंने अपनी हथेली उसकी हथेली के ऊपर रख के खूब जोर से दबा दिया , और उस प्यासी निगाह से देखा , जैसे सावन में प्यासी धरती काले बादलों की ओर देखती है।
और धरती की तरह मेरी भी मुराद पूरी हुयी।
अजय ने खूब जोर से मेरे जोबन दबा दिए।
इत्ता भी सीधा नहीं था वो , अब हलके हलके रगड़ मसल रहा था , और थोड़ी ही देर में दूसरा उभार भी उसके हथेली की पकड़ में ,
मेरी सिसकियाँ और चीखें और लड़कियों से भी अब तेज निकल रही थीं।
पहली बार मुझे ये मजा जो मिल रहा था , प्यार से कोई मेरे उभारों को सहला दबा रहा था , मसल रहा था ,रगड़ रहां था ,मीज रहा था।
और मैं भी उतने ही प्यार से , दबवा रही थी , मसलवा रही थी , रगड़वा रही थी ,मिजवा रही थी।
मैं आलमोस्ट उसके गोद में बैठी हुयी थीं ,मेरा एक हाथ जोर से उसके कमर को पकडे हुआ था , जैसे अब वही मेरा सहारा हो , आलमोस्ट कम्प्लीट सरेंडर।
अब मेरी सारी सहेलियां जिस तरह से खुल के अपने यारों के साथ मजा ले रही थीं ,उसी तरह
लेकिन अजय तो अजय ,उसकी उँगलियाँ हथेलियाँ अभी भी चोली के ऊपर से ही चूंची का रस ले रही थीं।
दो बटन तो मेरे पहले ही खुले थे , मेरी गोलाइयाँ , गहराइयाँ सब कुछ उसे दावत दे रही थीं लेकिन ,....
पर मेरे लिए चोली के ऊपर से भी जिस तरह से वो जोर जोर से दबा रहा था वही पागल करने के लिए बहुत था। अब मुझे अंदाज हो रहा था जवानी के उस लज्जत का जिसे लूटने के लिए सब लड़कियां कुछ भी , कभी गन्ने के खेत में तो कभी अपने घर में ही ,
उसकी डाकू उँगलियों ने हिम्मत की अंदर घुसने की , मैंने बहुत जोर से सिसकी भरी , जब उसके ऊँगली के पोर मेरे निपल से छू गए।
जैसे खूब गरम तवे पे किसी ने पानी के छींटे दे दिए हों
अंगूठा और तर्जनी के बीच वो मटर के दाने ,
लेकिन तबतक झूला धीमा होना शुरू हो गया था और उसने हाथ हटा लिया।
झूले के रूकने पे अजय ने मेरा हाथ पकड़ के उतारा और एक बार फिर उसकी हथेली मेरे उभारों पे रगड़ गयी।
वो बेशर्मों की तरह मुझे देख के मुस्करा रहा था , लेकिन मैं ऐसी शरमाई की , हिरनी की तरह अपने सहेलियों के झुण्ड से दूर।
|