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छठवीं फुहार ,
![[Image: 37bf04b7adac8bb1376daba0555994b9.jpg]](https://i.ibb.co/fMj7qrf/37bf04b7adac8bb1376daba0555994b9.jpg)
मेले में
कुछ देर कभी चूड़ियों की दूकान पे तो कभी कहीं कुछ देर इधर उधर घूमने के बाद मैं उधर पहुँच गयी जहाँ मेरी सहेलियां खड़ी थी। शाम करीब करीब ढल चुकी थी , नौटंकी और बाकी दुकानों पे रौशनी जल गयी थी। बादल भी काफी घिर रहे थे।
जब मैंने अपनी सहेलियों की ओर निगाहें डाली तो वहां उनके साथ कई लड़के खड़े थे, जब मैं नजदीक गई तो पाया कि चन्दा के साथ सुनील, गीता के साथ रवी और कजरी और पूरबी के साथ भी एक-एक लड़का था। अजय अकेला खड़ा था।
गीता ने अजय को छेड़ा-
“अरे… सब अपने-अपने माल के साथ खड़े हैं… और तुम अकेले…”
मैंने ठीक से सुना नहीं पर मैं अजय को अकेले देखकर उसके पास खड़ी हो गयी और बोली-
“मैं हूँ ना…”
![[Image: tumblr-mciklv-FLfi1rjhuqoo1-1280.jpg]](https://i.ibb.co/tYd25R9/tumblr-mciklv-FLfi1rjhuqoo1-1280.jpg)
सब हँसने लगे, पर अजय ने अपने हाथ मेरे कंधे पर रखकर मुझे अपने पास खींच लिया और सटाकर कहने लगा-
“मेरा माल तो है ही…”
थोड़ा बोल्ड बनकर अपना हाथ उसकी कमर में डालकर, मैं और उससे लिपट, चिपट गयी और बोली-
“और क्या, जलती क्यों हो, तुम लोग…”
चन्दा मुझे चिढ़ाते हुए, अजय से बोली-
“अरे इतना मस्त, तुम्हारा मन पसंद माल मिल गया है, मुँह तो मीठा कराओ…”
“कौन सा मुंह… ऊपर वाला या नीचे वाला…”
छेड़ते हुए गीता चहकी।
“अरे हम लोगों का ऊपर वाला और अपने माल का दोनों…” चन्दा मुश्कुरा के बोली।
एक दुकान पर ताजी गरम-गरम जलेबियां छन रहीं थीं। हम लोग वहीं बैठ गये।
सब लोगों को तो दोने में जलेबियां दीं पर मुझे उसने अपने हाथ से मेरे गुलाबी होंठों के बीच डाल दी। थोड़ा रस टपक कर मेरी चोली पर गिर पड़ा और उसने बिना रुके अपने हाथ से वहां साफ करने के बहाने मेरे जोबन पे हाथ फेर दिया। हम लोग थोड़ा दूर पेड़ के नीचे बैठे थे। उसका हाथ लगाते ही मैं सिहर गयी।
एक जलेबी अपने हाथों में लेकर मैंने उसे ललचाया-
“लो ना…” और जब वो मेरी ओर बढ़ा तो मैंने जलेबी अपने होंठों के बीच दबाकर जोबन उभारकर कहा- “ले लो ना…”
अब वो कहां रुकने वाला था, उसने मेरा सर पकड़ के मेरे होंठों के बीच अपना मुँह लगा के न सिर्फ जलेबी का रसास्वादन किया बल्की अब तक कुंवारे मेरे होंठों का भी जमकर रस लिया और उसे इत्ते से ही संतोष नहीं हुआ और उसने कसके मेरे रसीले जोबन पकड़ के अपनी जीभ भी मेरे मुँह में डाल दिया।
“हे क्या खाया पिया जा रहा है, अकेले-अकेले…”
चन्दा की आवाज सुनकर हम दोनों अलग हो गये।
रात शुरू हो गयी थी।
हम सब घर की ओर चल दिये।
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वापसी
रास्ते में मैंने देखा कि पूरबी उन दोनों लड़कों से, जो मेरी “रसीली तारीफ” कर रहे थे, घुल मिलकर बात कर रही थी।
गीता ने बताया कि वे पूरबी के ससुराल के हैं और बल्की उसके ससुराल के यार हैं।
![[Image: nights.jpg]](https://i.ibb.co/ryjNMjX/nights.jpg)
रात शुरू हो चुकी थी , और साथ कजरारे मतवारे बादल के छैले ,बार बार चांदनी का रास्ता रोक लेते , बस झुटपुट रोशनी थी , और कभी वो भी नहीं /
दूर होते जा रहे मेले में गैस लाइट ,जेनरेटर सब की रौशनी थी , और वहां बज रहे गानों की आवाजें दूर तक साथ आ रही थीं।
सुबह मेरी सहेलियां सब एक साथ थीं और गाँव के लडके पीछे ,
लेकिन अभी ,कभी लडकियां एक साथ तो कभी कुछ अपने यार के साथ भी ,
ख़ास तौर से पगडंडी जहाँ संकरी हो जाती थी ,या दोनों ओर आम के बाग़ या गन्ने के खेत होते ,
बस गुट बनते बिगड़ते रह रहे थे।
चंदा मेंरा हाथ पकड़ कर चल रही थी , क्योंकि बाकी के लिए तो ये जानी पहचानी डगर थी लेकिन मैं तो पहली बार ,
कुछ ही दूर पे पीछे पीछे अजय और सुनील ,कुछ बतियाते चल रहे थे।
पूरबी , कजरी ,गीता सब आगे आगे।
![[Image: Teej-2211-th.jpg]](https://i.ibb.co/0KXH50k/Teej-2211-th.jpg)
" धंस गयल, अटक गयल ,सटक गयल हो ,
रजउ , धंस गयल, अटक गयल ,सटक गयल हो ,"
मेले में से नौटंकी के गाने की आवाज आई , और चंदा ने मुझे चिढ़ाते ,मेरे कान में फुसफुसा के बोला ,
" कहो , धँसल की ना ?"
" जाके धँसाने वाले से पूछो न। "
उसी टोन में मैंने आँखे नचा के पीछे आ रहे , अजय की ओर इशारा कर के बोला।
" सच में जाके पूछूं उससे ,मेरी सहेली शिकायत कर रही है ,क्यों नहीं धँसाया। "
चंदा बड़ी शोख अदा से सच में , पीछे मुड़ के वो अजय की ओर बढ़ी।
" तेरी तो मैं , … "
कह के मैंने उसकी लम्बी चोटी का परांदा पकड़ के खींच लिया और मेरा एक मुक्का उसकी गोरी खुली पीठ पे।
![[Image: Gulabiya-396eff1bd16a6c9a386896d556dcdf6a.jpg]](https://i.ibb.co/p4V4tnk/Gulabiya-396eff1bd16a6c9a386896d556dcdf6a.jpg)
चंदा भी , मुड़के मेरे कान में हंस के हलके से बोली ,
" जब धँसायेगा न तो जान निकल जायेगी ,बहुत दर्द होता है जानू,… "
" होने दे यार ,कभी न कभी तो दर्द होना ही है।"
एक बेपरवाह अदा से गाल पे आई एक लट को झटक के मैं बोली।
चांदनी भी उस समय बादलों के कैद से आजाद हो गयीं थी।
अमराई से हलकी हलकी बयार चल रही थी।
![[Image: mango-grove-3.jpg]](https://i.ibb.co/3YywWYL/mango-grove-3.jpg)
और पूरबी ने जैसे मेरी चंदा की बात चीत सुन ली और एक गाना छेड़ दिया , साथ में गीता और कजरी भी।
तानी धीरे धीरे डाला ,बड़ा दुखाला रजऊ ,
तानी धीरे धीरे डाला ,बड़ा दुखाला रजऊ ,
सुबह से ये गाना मैंने मेले में कितनी बार सूना था , तो अगली लाइन मैंने भी मस्ती में जोड़ दी।
बचपन में कान छिदायल ,तनिक भरे का छेद
मत पहिरावा हमका बाला , बड़ा दुखाला रजउ।
,
मस्त जोबनवा चोली धयला ,गाल तो कयला लाल ,
गिरी लवंगिया , बाला टूटल , बहुत कईला बेहाल।
और फिर पूरबी , कजरी ,सब ने आगे की लाइने जोड़ी
अरे अपनी गोंदिया में बैठाला ,बड़ा दुखाला रजऊ।
तानी धीरे धीरे डाला ,बड़ा दुखाला रजऊ ,
लौटते समय लड़कियां ज्यादा जोश में हो गयी थी।
एक तो अँधेरे में कुछ दिख नहीं रहा था साफ साफ ,कौन गा रहा है , सिरफ परछाइयाँ दिख रही थीं। हवा तेज चल रही थी।
दूसरे मेले की मस्ती के बाद हम सब भी काफी खुल गए थे
सब कुछ तो ले लेहला गाल जिन काटा ,
कजरी ने शुरू किया। वो सब काफी आगे निकल गयी थीं।
पीछे से मैंने भी साथ दिया , लेकिन मुझे लगा ,चंदा शायद , और मैंने बाएं और देखा तो , वास्तव में वो नहीं थीं।
तब तक मुझे गाल पे किसी की अँगुलियों का अहसास हुआ और कान में किसी ने बोला ,
" ऐसा मालपूआ गाल होगा तो , न काटना जुल्म है। "
अजय पता नहीं कब से मेरे बगल में चल रहा था लेकिन गाने की मस्ती में ,
मेरे बिना कुछ पूछे उसने पीछे इशारा किया ,
एक घनी अमराई में , दो परछाइयाँ ,लिपटी, चंदा और सुनील।
सुनील के घर का रास्ता यहाँ से अलग होता था।
बाकी लड़कियों भी एक एक करके ,
कुछ देर में में सिर्फ मैं अजय और चंदा रह गए , मैं बीच में और वो दोनों ओर , फिर चंदा की छेड़ती हुई बातें।
चंदा एक पल के लिए रुक गयी , किसी काम से।
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घर
चंदा एक पल के लिए रुक गयी , किसी काम से।
अजय का घर भाभी के घर से सटा हुआ ही था।
जब वो मुड़ने लगा तो हँसकर मैंने कहा-
“आज तुमने मुझे जूठा कर दिया…”
शैतानी से मेरी जांघों के बीच घूरता हुआ वो बोला-
“अभी कहां, अभी तो अच्छी तरह हर जगह जूठा करना बाकी है…”
मैंने भी जोबन उभारकर, आँख नचाते हुए कहा-
“तो कर ले ना, मना किसने किया है…”
"और मान लो मना कर दो तो" वो बोला।
अजय भी अब एकदम ढीठ हो गया था ,खुल के मेरी आँखों में आँखे डाल के बोल रहा था। घर से रौशनी छन छन के आ रही थी।
" तो मत मानना ,.... । कोई जरूरी है तुम हर बात मानों मेरी। "
हिम्मत कर के मैं बोली और तब तक चंदा आगयी थी उसके साथ घर में घुस गयी।
चन्दा घर जाने की जिद करने लगी और मुझसे कहने लगी की, मैं भी उसके साथ चलूं। मुझे भी उससे कुछ सामान लेना था, गानों की कापी , जिसमें सोहर ,बन्ना , से लेकर गारी तक। लेकिन मैं अकेले कैसे लौटती, ये सवाल था।
तभी अजय दरवाजे पे नजर गया।
चन्दा ने उससे बिनती की-
“अजय चलो ना जरा मुझे घर तक छोड़ दो…”
पर अजय ने मुँह बनाया और कहने लगा कि उसे कुछ जरूरी काम है।
मैंने बहुत प्यार से कहा-
“मैं भी चल रही हूँ और फिर मैं अकेले कैसे लौटूंगी, चलो ना…”
खुशी की लहर उसके चेहरे को दौड़ गयी- “हां, एकदम चलो ना मैं तो आया ही इसीलिये था…”
चम्पा भाभी, जो मेरी भाभी के साथ किसी और काम में व्यस्त थीं, ने भी उससे कहा कि वह हमारे साथ चल चले। भाभी ने मुझसे कहा कि सब लोग पड़ोस में रतजगे में जायेंगे इसलिये मैं जब लौटूं तो पीछे वाले दरवाजे से लौटूं और बसंती रहेगी वह दरवाजा खोल देगी।
हम तीनों चन्दा के घर के लिये चल दिये। चन्दा ने अजय को छेड़ा-
“अच्छा, मैं कह रही थी तो जनाब के पास टाइम नहीं था, और एक बार इसने कहा…”
“आखिर ये मेरा माल जो है…”
और अजय ने मुझे कस के पकड़ लिया।
और मैंने भी उसकी बांहो में सिमटते हुए, चन्दा को छेड़ा- “मुझे कहीं कुछ जलने की महक आ रही है…”
चन्दा बोली- “लौटते हुए लगता है इस माल का उद्घाटन हो जायेगा, डरना मत मेरी बिन्नो…”
“यहां डरता कौन है…”
जोबन उभारकर मैंने कहा।
चन्दा के यहां से हम जल्दी ही लौट आये। रात अच्छी तरह हो गयी थी। चारों ओर, घने बादल उमड़ घुमड़ रहे थे। तेज हवा सांय-सांय चल रही थी। बड़े-बड़े पेड़ हवा में झूम रहे थे, बड़ी मुश्किल से रास्ता दिख रहा था।
मैंने कस के अजय की कलाई पकड़ रखी थी। पता नहीं अजय किधर से ले जा रहा था कि रास्ता लंबा लग रहा था। एक बार तेजी से बिजली कड़की तो मैंने उसे कस के पकड़ लिया।
हम लोग उस अमराई के पास आ आ गये थे जहां कल हम लोग झूला झूलने गये थे। हल्की-हल्की बूंदे पड़नी शुरू हो गयी थीं।
अजय ने कहा- “चलो बाग में चल चलते हैं, लगता है तेज बारिश होने वाली है…”
और उसके कहते ही मुसलाधार बारिश शुरू हो गयी। मेरी साड़ी, चोली अच्छी तरह मेरे बदन से चिपक गये थे।
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सातवीं फुहार ,
बरसात की झड़ी
![[Image: rain-18-e0e15ec5f35a92422134cafde3fded31.md.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/10/15/rain-18-e0e15ec5f35a92422134cafde3fded31.md.jpg)
न्दा बोली- “लौटते हुए लगता है इस माल का उद्घाटन हो जायेगा, डरना मत मेरी बिन्नो…”
“यहां डरता कौन है…” जोबन उभारकर मैंने कहा।
चन्दा के यहां से हम जल्दी ही लौट आये।
रात अच्छी तरह हो गयी थी। चारों ओर, घने बादल उमड़ घुमड़ रहे थे। तेज हवा सांय-सांय चल रही थी। बड़े-बड़े पेड़ हवा में झूम रहे थे, बड़ी मुश्किल से रास्ता दिख रहा था।
मैंने कस के अजय की कलाई पकड़ रखी थी।
पता नहीं अजय किधर से ले जा रहा था कि रास्ता लंबा लग रहा था।
एक बार तेजी से बिजली कड़की तो मैंने उसे कस के पकड़ लिया।
हम लोग उस अमराई के पास आ आ गये थे जहां कल हम लोग झूला झूलने गये थे। हल्की-हल्की बूंदे पड़नी शुरू हो गयी थीं।
अजय ने कहा-
“चलो बाग में चल चलते हैं, लगता है तेज बारिश होने वाली है…”
और उसके कहते ही मुसलाधार बारिश शुरू हो गयी।
मेरी साड़ी, चोली अच्छी तरह मेरे बदन से चिपक गये थे।
![[Image: wet-6.jpg]](https://i.ibb.co/M9RqdM3/wet-6.jpg)
जमीन पर भी अच्छी फिसलन हो गयी थी। बाग के अंदर बारिश का असर थोड़ा तो कम था, पर अचानक मैं फिसल कर गिर पड़ी। मुझे कसकर चोट लगती, पर, अजय ने मुझे पकड़ लिया।
उसमें एक हाथ उसका मेरे जोबन पर पड़ गया और दूसरा मेरे नितंबों पर। मैं अच्छी तरह सिहर गयी।
सामने झूला दिख रहा था, उसने मुझे वहीं बैठा दिया और मेरे बगल में बैठ गया। तभी बड़े जोर की बिजली चमकी और उसने और मैंने एक साथ देखा कि भीगने से मेरा ब्लाउज़ एकदम पारदर्शी हो गया है, ब्रा तो मैंने पहनी नहीं थी इसलिये मेरी चूचियां साफ दिख रही थीं।
![[Image: wet-8.jpg]](https://i.ibb.co/hWyftSK/wet-8.jpg)
अजय के चेहरे पे उत्तेजना साफ-साफ दिख रही थी।
उसने मुझे खींचकर अपनी गोद में बैठा लिया और मेरे गालों को चूमने लगा। उसके हाथ भी बेसबरे हो रहे थे और उसने एक झटके में मेरी चोली के सारे बटन खोल दिये। मेरी साड़ी भी मेरी जांघों के बीच चिपक गयी थी। उसका एक हाथ वहां भी सहलाने लगा। मैं भी मस्ती में गरम हो रही थी।
उसका हाथ अब मेरे खुले जोबन को धीरे-धीरे सहला रहा था।
जोश में मेरे चूचुक पूरे खड़े हो गये थे। उसने साड़ी भी नीचे कर दी और अब मैं पूरी तरह टापलेश हो गयी थी। जब वह मेरे कड़े-कड़े निपल मसलता तो… मेरी भी सिसकी निकल रही थी।
तभी मुझे लगा की मैं क्या कर रही हूं… मन तो मेरा भी बहुत कर रहा था पर मैं बोलने लगी-
“नहीं अजय प्लीज मुझे छोड़ दो… नहीं रहने दो घर चलते हैं… फिर कभी… आज नहीं…”
पर अजय कहां सुनने वाला था, उसके हाथ अब मेरी चूचियां खूब कस के रगड़ मसल रहे थे। मन तो मेरा भी यही कर रहा था कि बस वह इसी तरह रगड़ता रहे, मसलता रहे… मेरे मम्मे।
पर मैं बोले जा रही थी-
“अजय, प्लीज छोड़ दो आज नहीं… हटो मैं गुस्सा हो जाऊँगी… सीधे से घर चलो… वरना…”
और अजय मुझे झूले पर ही छोड़कर हट गया। उसकी आवाज जाती हुई सुनाई दी- “ठीक है, मैं चलता हूं… तुम घर आ जाना…”
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बरस रहा सावन
मैं थोड़ी देर वैसे ही बैठी रही पर अचानक ही बिजली कड़की और मैं डर से सिहर गयी।
हवा और तेज हो गयी थी।
पास में ही किसी पेड़ के गिरने की आवाज सुनाई दी और मैं डर से चीख उठी-
“अजय… अजय… प्लीज अजय… लौट आओ… अजय…”
पूरा सन्नाटा था, फिर किसी जानवर की आवाज तेजी से सुनाई पड़ी और मैं एकदम से रुआंसी हो गयी।
मैं भी कितनी बेवकूफ हूं, मन तो मेरा भी कर रहा था, आखिर चन्दा, गीता सब तो चुदवा रही थीं और सुबह से तो मैं भी अजय को सिगनल दे रही थी-
“अजय… अजय… अजय्य्य्यय्य्य्य्य…”
मैंने फिर पुकारा, पर कोई जवाब नहीं था, लगाता है, गुस्सा होकर चला गया, लेकिन वह भी कितना… मुझे मना सकता था… कुछ ना हो तो जबर्दस्ती कर सकता था।
आखिर इतना हक तो उसका है ही
। थोड़ा वक्त और गुजर गया। मैं बहुत जोर से डर रही थी।
मैं पुकारने लगी-
“अजय प्लीज आ जाओ, मैं तुम्हारे पांव पड़ती हूं… तुम मुझे किस करो, जो भी चाहे करो, प्लीज आ जाओ… मैं सारी बोलती हूं… मैं तुम्हारी हूं… जो भी चाहे…”
तब तक उसने मुझे पीछे से पकड़ लिया, और बोला- “क्यों, मैं घर जाऊँ…”
“नहीं मैं बहुत सारी हूं…” मैं भी उसे और कस के जकड़ के बोली।
“अच्छा, सच सच बताओ, मेरी कसम, तुम्हारा भी मन कर रहा था कि नहीं…” अजय ने मेरे होंठों को चूमते हुए पूछा।
“हां कर रहा था… बहुत कर रहा था…” मैंने अपने मन की बात सच-सच बता दी। अजय के होंठ अब मेरे रसीले गलों का रस ले रहे थे।
“क्या करवाने को कर रहा था…” मेरे गालों को काटते हुए उसने पूछा।
“वही करवाने को… जो तुम्हारा करने को कर रहा था…” हँसते हुए मैंने कबूला।
“नहीं तुम्हारी सजा यही है कि आज तुम खुलकर बताओ कि तुम्हारा मन क्या कर रहा… वरना बोलो तो मैं चला जाऊँ तुम्हें यहीं छोड़कर…”
और ये कहते हुये उसने कस के मेरे कड़े निपल को खीचा।
“मेरा मन कर रहा था॰ चुदवाने का तुमसे आज अपनी कसी कुंवारी चूत… चुदवाने का…”
और ये कह के मैंने भी उसके गालों पर कस के चुम्मी ले ली।
“तो चुदवाओ ना… मेरी जान शर्मा क्यों कर रही थी, लो अभी चोदता हूँ अपनी रानी को…”
और उसने वहीं झूले पे मुझे लिटाके मेरे टीन जोबन को कसके रगड़ने, मसलने, चूमने लगा।
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मस्ती की बारिश
“तो चुदवाओ ना… मेरी जान शर्मा क्यों कर रही थी, लो अभी चोदता हूँ अपनी रानी को…” और उसने वहीं झूले पे मुझे लिटाके मेरे टीन जोबन को कसके रगड़ने, मसलने, चूमने लगा।
थोड़ी ही देर में मैं मस्ती में सिसकियां ले रही थी।
मेरा एक जोबन उसके हाथों से कसकर रगड़ा जा रहा था और दूसरे को वह पकड़े हुए था और मेरे उत्तेजित निपल को कस-कस के चूस रहा था। कुछ ही देर में उसने जांघों पर से मेरे साड़ी सरका दी और उसके हाथ मेरी गोरी-गोरी जांघों को सहलाने लगे।
मेरी पूरी देह में करेंट दौड़ गया।
देखते-देखते उसने मेरी पूरी साड़ी हटा दी थी और चन्दा की तरह मैं भी टांगें फैलाकर, घुटने से मोड़कर लेट गयी थी। उसकी उंगलियां, मेरे प्यासे भगोष्ठों को छेड़ रहीं थी, सहला रही थी।
अपने आप मेरी जांघें, और फैल रही थीं।
अचानक उसने अपनी एक उंगली मेरी कुंवारी अनचुदी चूत में डाल दी और मैं मस्ती से पागल हो गयी।
![[Image: fingering-a-16977090.gif]](https://i.ibb.co/Y2jNR0x/fingering-a-16977090.gif)
उसकी उंगली मेरी रसीली चूत से अंदर-बाहर हो रही थी और मेरी चूत रस से गीली हो रही थी। बारिश तो लगभग बंद हो गई थी पर मैं अब मदन रस में भीग रही थी। उसका अंगूठा अब मेरी क्लिट को रगड़, छेड़ रहा था।
और मैं जवानी के नशे में पागल हो रही थी- “बस… बस करो ना… अब और कितना… उह्ह्ह… उह्ह्ह… ओह्ह्ह… अजय… बहुत… और मत तड़पाओ… डाल दो ना…”
अजय ने मुझे झूले पे इस तरह लिटा दिया कि मेरे चूतड़ एकदम किनारे पे थे। बादल छंट गये थे और चांदनी में अजय का… मोटा… गोरा… मस्क्युलर… लण्ड, उसने उसे मेरी गुलाबी कुंवारी… कोरी चूत पर रगड़ना शुरू कर दिया, मेरी दोनों लम्बी गोरी टांगें उसके चौड़े कंधों पर थीं।
जब उसके लण्ड ने मेरी क्लिट को सहलाया तो मस्ती से मेरी आँखें बंद हो गयीं।
उसने अपने एक हाथ से मेरे दोनों भगोष्ठों को फैलाया और अपना सुपाड़ा मेरी चूत के मुहाने पे लगा के रगड़ने लगा। दोनों चूचीयों को पकड़ के उसने पूरी ताकत से धक्का लगाया तो उसका सुपाड़ा मेरी चूत के अंदर था।
ओह… ओह… मेरी जान निकल रही थी, लगा रहा था मेरी चूत फट गयी है-
“उह… उह… अजय प्लीज… जरा सा रुक जाओ… ओह…” मेरी बुरी हालत थी।
अजय अब एक बार फिर मेरे होंठों को चूचुक को, कस-कस के चूम चूस रहा था। थोड़ी देर में दर्द कुछ कम हो गया और अब मैं अपनी चूत की अदंरूनी दीवाल पर सुपाड़े की रगड़न, उसका स्पर्श महसूस कर रही थी और पहली बार एक नये तरह का मज़ा महसूस कर रही थी।
अजय की एक उंगली अब मेरी क्लिट को रगड़ रही थी और मैं भी दर्द को भूलकर धीरे-धीरे चूतड़ फिर से उचका रही थी।
एक बार फिर से बादल घने हो गये थे और पूरा अंधेरा छा गया था।
अजय ने अपने दोनों मजबूत हाथों से मेरी पतली कमर को कस के पकड़ा और लण्ड को थोड़ा सा बाहर निकाला, और पूरी ताकत से अंदर पेल दिया। बहुत जोर से बादल गरजा और बिजली कड़की… और मेरी सील टूट गयी।
मेरी चीख किसी ने नहीं सुनी, अजय ने भी नहीं, वह उसी जोश में धक्के मारता रहा।
मैं अपने चूतड़ कस के पटक रही थी पर अब लण्ड अच्छी तरह से मेरी चूत में घुस चुका था और उसके निकलने का कोई सवाल नहीं था। दस बाहर धक्के पूरी ताकत से मारने के बाद ही वह रुका।
जब उसे मेरे दर्द का एहसास हुआ और उसने धक्के मारने बंद किये।
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प्यासी धरती की तरह मैं सोखती रही और जब अजय ने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया तो भी मैं वैसे ही पड़ी रही। अजय ने मुझे उठाकर अपनी गोद में बैठा लिया। मैंने झुक कर अपनी जांघों के बीच देखा, मेरी चूत अजय के वीर्य से लथपथ थी और अभी भी मेरी चूत से वीर्य की सफेद धार, मेरी गोरी जांघ पर निकल रही थी। पर तभी मैंने देखा-
“ओह… ये खून खून कहां से… मेरा खून…
अजय ने मेरा गाल चूमते हुए, मेरा ब्लाउज उठाया और उसीसे मेरी जांघ के बीच लगा वीर्य और खून पोंछते हुए बोला-
“अरे रानी पहली बार चुदोगी तो बुर तो फटेगी ही… और बुर फटेगी तो दर्द भी होगा और खून भी निकलेगा, लेकिन अब आगे से सिर्फ मजा मिलेगा…”
अजय का लण्ड अभी भी थोड़ा खड़ा था। उसे पकड़कर अपनी मुट्ठी में लेते हुए, मैं बोली-
“सब इसी की करतूत है… मजे के लिये मेरी कुवांरी चूत फाड़ दी… और खून निकाला सो अलग… और फिर इतना मोटा लंबा पहली बार में ही पूरा अंदर डालना जरूरी था क्या…”
अजय मेरा गाल काटता बोला-
“अरे रानी मजा भी तो इसी ने दिया है… और आगे के लिये मजे का रास्ता भी साफ किया है… लेकिन आपकी ये बात गलत है की॰ जब तुम्हें दर्द ज्यादा होने लगा तो मैंने सिर्फ आधे लण्ड से चोदा…” ''
बनावटी गुस्से में उसके लण्ड को कस के आगे पीछे करती, मैं बोली-
“आधे से क्यों… अजय ये तुम्हारी बेईमानी है… इसने मुझे इत्ता मजा दिया, जिंदगी में पहली बार और तुमने… और दर्द… क्या… आगे से मैं चाहे जितना चिल्लाऊँ, चीखूं, चूतड़ पटकूं, चाहे दर्द से बेहोश हो जाऊँ, पर बिना पूरा डाले तुम मुझे… छोड़ना मत, मुझे ये पूरा चाहिये…”
अजय भी अब मेरी चूत में कस-कस के ऊँगली कर रहा था- “ठीक है रानी अभी लो मेरी जान अभी तुम्हें पूरे लण्ड का मजा देता हूं, चाहे तुम जित्ता चूतड़ पटको…”
मैंने मुँह बनाया-
“मेरा मतलब यह नहीं था और अभी तो… तुम कर चुके हो… अगली बार… अभी-अभी तो किया है…”
लेकिन अजय ने अबकी मेरे सारे कपड़े उतार दिये और मुझे झूले पे इस तरह लिटाया की सारे कपड़े मेरे चूतड़ों के नीचे रख दिये और अब मेरे चूतड़ अच्छी तरह उठे हुए थे। वह भी अब झूले पर ही मेरी फैली हुई टांगों के बीच आ गया
और अपने मोटे मूसल जैसे लण्ड को दिखाते हुए बोला-
“अभी का क्या मतलब… अरे ये फिर से तैयार है अभी तुम्हारी इस चूत को कैसा मजा देता है, असली मजा तो अबकी ही आयेगा…” वह अपना सुपाड़ा मेरी चूत के मुँह पर रगड़ रहा था और उसके हाथ मेरी चूचियां मसल रहे थे। वह अपना मोटा, पहाड़ी आलू ऐसा मोटा, कड़ा सुपाड़ा मेरी क्लिट पर रगड़ता रहा।
और जब मैं नशे से पागल होकर चिल्लाने लगी-
“अजय प्लीज… डाल दो ना… नहीं रहा जा रहा… ओह… ओह… करो ना… क्यों तड़पाते हो…” तो अजय ने एक ही धक्के में पूरा सुपाड़ा मेरी चूत में पेल दिया।
उह्ह्ह्ह, मेरे पूरे शरीर में दर्द की एक लहर दौड़ गयी, पर अबकी वो रुकने वाला नहीं था। मेरी पतली कमर पकड़ के उसने दूसरा धक्का दिया। मेरी चूत को फाड़ता, उसकी भीतरी दीवाल को रगड़ता, आधा लण्ड मेरी कसी किशोर चूत में घुस गया। दर्द तो बहुत हो रहा था पर मजा भी बहुत आ रहा था।
ह कभी मुझे चूमता, मेरी रसीली चूचियों को चूसता, कभी उन्हें कस के दबा देता, कभी मेरी क्लिट सहला देता, पर उसके धक्के लगातार जारी थे।
मैंने भी भाभी के सिखाने के मुताबिक अपनी टांगों को पूरी तरह फैला रखा था।
उसके धक्कों के साथ मेरी पायल में लगे घुंघरू बज रहे थे और साथ में सुर मिलाती सावन की झरती बूंदे, मेरे और उसके देह पर और इस सबके बीच मेरी सिसकियां, उसके मजबूत धक्कों की आवाज… बस मन कर रहा था कि वह चोदता ही रहे… चोदता ही रहे।
कुछ देर में ही उसका पूरा लण्ड मेरी रसीली चूत में समा गया था और अब उसके लण्ड का बेस मेरी चूत से क्लिट से रगड़ खा रहा था।
नीचे कपड़े रखकर जो उसने मेरे चूतड़ उभार रखे थे। एकदम नया मजा मिल रहा था।
थोड़ी देर में जैसे बरसात में, प्यासी धरती के ऊपर बादल छा जाते हैं वह मेरे ऊपर छा गया। अब उसका पूरा शरीर मेरी देह को दबाये हुए था और मैंने भी अपनी टांगें उसकी पीठ पर कर कस के जकड़ लिया था। कुछ उसके धक्कों का असर, कुछ सावन की धीरे-धीरे बहती मस्त हवा… झूला हल्के-हल्के चल रहा था।
मुझे दबाये हुए ही उसने अब धक्के लगाने शुरू कर दिये और मैं भी नीचे से चूतड़ उठा-उठाकर उसका जवाब दे रही थी। मेरे जोबन उसके चौड़े सीने के नीचे दबे हुए थे। वह पोज बदल-बदल कर, कभी मेरे कंधों को पकड़कर, कभी चूचियों को, तो कभी चूतड़ों को पकड़कर लगातार धक्के लगा रहा था, चोद रहा था, न सावन की झड़ी रुक रही थी, न मेरे साजन की चुदाई… और यह चलता रहा।
मैं एक बार… दो बार… पता नहीं कितनी बार झड़ी… मैं एकदम लथपथ हो गयी थी। तब बहुत देर बाद अजय झड़ा और बहुत देर तक मैं अपनी चूत की गहराईयों में उसके वीर्य को महसूस कर रही थी।
उसका वीर्य मेरी चूत से निकलकर मेरी जांघों पर भी गिरता रहा। कुछ देर बाद अजय ने मुझे सहारा देकर झूले पर से उठाया। मैंने किसी तरह से साड़ी पहनी, पहनी क्या बस देह पर लपेट ली।
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कहाँ बजी पायलिया
घर के पास पहुँचकर अजय ने एक बार फिर मुझे अपनी बाहों में भरकर पूछा- “अब कब मिलेगा…”
चारों ओर सन्नाटा था। मैंने भी हिम्मत से उसके होंठों को चूमकर कहा- “जब चाहो…” और घर की ओर भाग गयी।
बसंती ने पीछे की खिड़की खोली, वह गहरी नींद में थी और भाभी, अभी रतजगे से आयी नहीं थी। मैं जल्दी से अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर लेट गयी। अभी भी मेरी चूत में अजय का वीर्य था, और जोबन को उसके दबाने का रसभरा दर्द महसूस हो रहा था।
उसकी बात सोचते-सोचते मैं सो गयी।
सुबह जब मेरी नींद खुली तो चन्दा मेरे सामने थी और मुझे जगा रही थी-
“क्यों कल रात चिड़िया ने चारा खा लिया ना…”
उसकी मुश्कुराहट से मुझे पता चल रहा था कि उसे रात की बात का अंदाज हो गया है।
पर मैंने बहाना बनाया- “नहीं… ऐसा कुछ नहीं… वो तो…”
“अच्छा, तो ये क्या है, कल रात भर ये पायल कहां बजी…”
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अाठवीं फुहार
सुबह जब मेरी नींद खुली तो चन्दा मेरे सामने थी और मुझे जगा रही थी-
“क्यों कल रात चिड़िया ने चारा खा लिया ना…”
उसकी मुश्कुराहट से मुझे पता चल रहा था कि उसे रात की बात का अंदाज हो गया है।
पर मैंने बहाना बनाया- “नहीं… ऐसा कुछ नहीं… वो तो…”
“अच्छा, तो ये क्या है, कल रात भर ये पायल कहां बजी…” वो मेरे सामने मेरी एक पैर की घुंघरू वाली चांदी की पायल लहरा रही थी।
अब मैं समझी, कल रात लगाता है पायल वहीं झूले पे… मैं पायल छीनने की कोशिश करते हुए बोली- “हे, तुम्हें कहां मिली… दो ना, कल रात रास्ते में लगता है…”
मेरे जोबन दबाते हुए, चन्दा मुश्कुराई और बोली-
“बनो मत मेरी बिन्नो, यह वहीं मिली जहां कल रात तुम चुदवा रही थी, देखूं चारा खाने के बाद ये मेरी चिड़िया कैसी लग रही है…”
और उसने मेरे मना करते-करते, मेरी साड़ी उठाकर मेरी चूत कस के दबोच ली।
उसे रगड़ते मसलते वो बोली-
“देखो एक रात में ही घोंटने के बाद… कैसी गुलाबी हो रही है, लेकिन अब जब इसे स्वाद लग ही गया है तो इसके लिये तो रोज के चारे का इंतेजाम करना पड़ेगा…”
और मेरी ओर देखते हुए वो बोली-
“और अगर तुम्हें ये पायल चाहिये ना… और तुम चाहती हो कि ये राज़ राज़ रहे तो तुम्हें एक जगह मेरे साथ चलना पड़ेगा और मेरी एक शर्त माननी पड़ेगी…”
“ठीक है, मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजूर है पर…”
मैं नहीं चाहती थी की ये बात सब तक पहुँचे।
![[Image: cute-ff5a2ce0a991c331c0a2ad6c0b2a91a3.jpg]](https://i.ibb.co/dgvG3bY/cute-ff5a2ce0a991c331c0a2ad6c0b2a91a3.jpg)
“तो तुम जल्दी तैयार हो जाओ…” कहते हुए उसने मुझे पायल दे दिया।
मैं हाथ मुँह धोकर तैयार हो गयी और एक चटक गुलाबी रंग की साड़ी और लाल रंग की कसी-कसी चोली पहन ली। मैंने सोचा कि ब्रा पहनूं फिर उसे एक तरफ रख दिया।
कुछ सोचकर मैंने गाढ़े लाल रंग की लिपिस्टक भी लगा ली, और एक बड़ी सी लाल बिंदी भी। पायल पलंग पर पड़ी थी। मैंने दोनों पांवों में, जिसने मेरी कल की बात खोल दी थी, घुंघरू वाली, अपनी चांदी की पायल भी पहन ली। भाभी और चम्पा भाभी कुछ गांव की औरतों से बात करने में व्यस्त थीं।
![[Image: payal.jpg]](https://i.ibb.co/g3dLTJQ/payal.jpg)
चन्दा ने भाभी से मुझे साथ ले जाने के लिये बोला तो भाभी बोलीं की जाओ लेकिन जल्दी आ जाना।
चम्पा भाभी बोली- “लेकिन इसने कुछ खाया नहीं है…”
![[Image: Reenu-40034eee68e46fad839b30d572896a5a.jpg]](https://i.ibb.co/16cq9R6/Reenu-40034eee68e46fad839b30d572896a5a.jpg)
“अरे, भाभी मैं इसे अच्छी तरह से खिला दूंगी, सारी, हर तरह की भूख मिटवा दूंगी…” ये कहते, हँसते हुए चन्दा मेरा हाथ खींचते घर से बाहर ले गयी।
“कहां ले चल रही है। क्या खिलायेगी…” मुश्कुराते हुये मैंने पूछा।
पर चन्दा तेजी से मुझे खींचकर ले गयी। रास्ते में गांव के कुछ लड़के मिले। मुझे देखते ही छेड़ने लगे-
“अरे छुवे दा होंठवा के होंठ से, जोबना के मजा लेवे दा…”
दूसरे ने छेड़ा-
“खिलल खिलल गाल बा, अरे ये माल बड़ा टाइट बा…”
![[Image: dimples-is-the-cutest-defor-2-23203-1412...dblbig.jpg]](https://i.ibb.co/0GpKxdB/dimples-is-the-cutest-defor-2-23203-1412224108-1-dblbig.jpg)
एक ने हँसकर कहा- “अरे हमारी ओर भी तो एक नजर डाल लो…”
चन्दा ने हँसते हुये कहा- “अभी एडवांस बुकिंग चल रही है। लाइन में लग जाओ तुम्हारा भी नंबर लग जायेगा…”
थोड़ी ही देर में हम लोग उस गन्ने के खेत के पास पहुँच गये थे जहां कल चन्दा सुनील के साथ… चन्दा ने मेरा हाथ पकड़कर, मुझसे बिनती करते हुए कहा-
“सुन, मेरा एक काम कर दे प्लीज, सुनील ने… मेरा आज सुबह से मन कर रहा था, पर सुनील ने एक शर्त रख दी है, कि जब तक… तब तक वह मुझे हाथ भी नहीं लगायेगा, बस तू ही मुझे हेल्प कर सकती है…
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अाठवीं फुहार
सुनील के नाम
थोड़ी ही देर में हम लोग उस गन्ने के खेत के पास पहुँच गये थे जहां कल चन्दा सुनील के साथ… चन्दा ने मेरा हाथ पकड़कर, मुझसे बिनती करते हुए कहा-
“सुन, मेरा एक काम कर दे प्लीज, सुनील ने… मेरा आज सुबह से मन कर रहा था, पर सुनील ने एक शर्त रख दी है, कि जब तक… तब तक वह मुझे हाथ भी नहीं लगायेगा, बस तू ही मुझे हेल्प कर सकती है…”
मैं समझ तो गयी थी और ये सोच के मेरे मन में गुदगुदी भी हो रही थी कि ये लड़के मेरे कितने दीवाने हैं, पर बनावटी ढंग से मैं बोली-
“ठीक है बता ना क्या करना है, मैं तेरी पक्की सहेली हूं… कर दूंगी अगर तू कहेगी…”
“सच… पर पहले प्रामिस कर मेरी कसम खा, मैं जो कहुंगी… सुनने के बाद मुकर तो नहीं जायेगी…” चन्दा ने लगभग विनती करते कहा।
“हां हां, ठीक है, जो तू कहेगी, करूंगी, करूंगी, करूंगी…”
यह सुनते ही चन्दा लगभग घसीटते हुए, मुझे गन्ने के खेत के अंदर खींच ले गयी-
“तो चल प्लीज़ एक बार सुनील से करवा ले, उसने कहा कि मैं जब उसे… तुम्हारी दिलवाऊँगी तभी वह मेरे साथ करेगा… करवा ले ना, बस एक बार मेरी अच्छी सहेली…”
न्ने के घने खेत में हम बीच में पहुँच गये थे और वहां सुनील खड़ा था। मुझे देखकर, सुनील एकदम खुशी से जैसे पागल हो गया हो, वह कुछ बोल नहीं पा रहा था।
चन्दा ने कहा-
“देखो, तेरी मुराद पूरी करवा दी अब तुम हो और ये, जो करना हो करो… मैं चलती हूं…”
मैं भी चन्दा के साथ चलने के लिये मुड़ी पर सुनील ने मुझे कसकर अपनी बांहों में जकड़ लिया।
उस पकड़ा धकड़ी में मेरा आंचल नीचे गिर गया और मेरी कसी लो कट लाल चोली के अंदर तने हुए मेरे सर उठाये दोनों मस्त जोबन साफ-साफ दिख रहे थे। सुनील का तो मुँह खुले का खुला रह गया।
वह जमीन पर बैठ गया था और मुझे पकड़कर अपनी गोद में बैठाये हुये था। वह मेरे गुलाबी रसीले होंठ बार चूम चूस रहा था, पर मेरे तने, कड़े-कड़े जोबन को देखकर उससे नहीं रहा गया और चोली के ऊपर से ही उन्हें चूमने, काटने लगा।
“अरे इतने बेसबर हो रहे हो… ऊपर से ही…” मैंने उसे चिढ़ाया।
“तुम्हारे जोबन हैं ही ऐसे, तुम क्या जानो मैं कैसे इनके लिये तड़प रहा था, लेकिन तुम ठीक कहती हो…”
मेरी चोली इतनी कसी और तंग थी कि उसके हाथ लगाते ही ऊपर के दोनों हुक खुल गये और चूचुक तक मेरे मदमस्त, खड़े, गोरे-गोरे, जोबन बाहर हो गये। पर मैंने हाथ से नीचे चोली कस के पकड़ ली जिससे वह पूरी चोली ना खोल पाये।
थोड़ी देर तक कोशिश के बाद उसने पैंतरा बदला और अपने हाथ नीचे ले जाकर मेरी साड़ी जांघों तक उठा ली और मुझे नीचे से… मैंने तुरंत अपने दोनों हाथ नीचे करके उसे अपनी साड़ी पूरी तरह खोलने से रोका। वहां तो मैं बचा ले गयी पर तब तक अचानक उसने मेरी चोली के सारे हुक खोल दिये और मेरे जोबन को पकड़ के दबाने लगा।
“नहीं… नहीं छोड़ो ना मुझे शर्म लगा रही है…” मैं उसका हाथ हटाने की कोशिश करने लगी।
पर उसकी ताकत के आगे मेरा क्या जोर चलता, हां, मेरे दोनों हाथ जब जोबन को बचाने के चक्कर में थे तो उसने हँसते हुए मेरी साड़ी पूरी उठा दी और अब उसका एक हाथ कस के मेरी चूत को पकड़े हुए था
और दूसरा जोबन की रगड़ाई कर रहा था। मैं ऊपर से मना भले कर रही थी पर मेरे दोनों निपल मस्ती में कड़े हो रहे थे।
थोड़ी देर तक चूत को सहलाने मसलने के बाद उसने अपनी एक उंगली मेरी चूत में डाल दी और आगे पीछे करने लगा। उसका एक हाथ मेरी गोरी-गोरी कमसिन चूची का रस ले रहा था और दूसरा, निपल को पकड़कर खींच रहा था। उसने मुझे इस तरह उठाकर अपनी गोद में बिठा लिया की मेरे चूतड़ भी नंगे होकर उसकी गोद में हो गये थे।
अब मैं समझ गयी कि बचना मुश्किल है (वैसे भी बचना कौन बेवकूफ चाहती थी), तो मैंने पैंतरा बदला-
“अरे, तुमने मेरी चोली और साड़ी दोनों खोल ली, मेरा सब कुछ देख लिया, तो अपना ये मोटा खूंटा क्यों छिपाकर रखा है…”
उसके पाजामा फाड़ते, मोटे खूंटे पर अपना चूतड़ रगड़ते मैं बोली।
“देखती जाओ, अभी तुम्हें अपना ये मोटा खूंटा दिखाऊँगा भी और घोंटाऊँगा भी और एक बार इसका स्वाद चख लोगी ना तो इसकी दीवानी हो जओगी…”
ये कहते हुए उसने कस के अपनी उंगली पूरी तरह चुत के अंदर डालकर गोल-गोल घुमाना शुरू कर दिया।
मेरी चूत पूरी तरह गीली हो गयी थी और मैं सिसकियां भर रही थी। उसने मुझे जमीन पर, कल जैसे चन्दा लेटी थी, साया और साड़ी कमर तक करके, वैसे ही लिटा दिया। जब उसने अपना पाजामा खोला और उसका मोटा लंबा लण्ड बाहर निकला तो मेरी तो सिसकी ही निकल गई। उसने उसे मेरे कोमल किशोर हाथ में पकड़ा दिया।
कितना सख्त और मोटा… अजय से भी थोड़ा मोटा ही था।
मेरा ध्यान तब हटा जब सुनील की आवाज सुनाई दी-
“क्यों पसंद आया, जरा उसको आगे पीछे करो, इसका सुपाड़ा खोलो… असली मजा तो तब आयेगा जब तुम्हारी गुलाबी चूत इसको घोंटेगी…”
मैंने अपने कोमल हाथों से उसको कस के पकड़ते हुए, आगे पीछे किया और एक बार जोर लगाकर जब उसका चमड़ा आगे किया, तो गुलाबी, खूब बड़ा सुपाड़ा सामने आ गया। उसके ऊपर कुछ रिस रहा था।
सुनील मेरी दोनों गोरी लंबी टांगों के बीच आ गया और बिना कुछ देर किये, उसने मेरी टांगें अपने कंधे पर रख लीं। उसने अपने एक हाथ से मेरी गीली चूत फैलायी और दूसरे हाथ से अपना सुपाड़ा मेरी चूत पर लगाया। जब तक मैं कुछ समझती, उसने मेरी दोनों चूचियां पकड़कर पूरी ताकत से इत्ती कस के धक्का लगाया की उसका पूरा सुपाड़ा मेरी चूत के अंदर था।
मेरी बहुत कस के चीख निकल गयी।
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मजा आया गन्ने के खेत में
वह मुश्कुराता हुआ बोला-
“अरे, मेरी जान अभी तो सिर्फ सुपाड़ा अंदर आया है, अभी पूरा मूसल तो बाहर बाकी है, और वैसे भी इस गन्ने के खेत में तुम चाहे जितना चीखो कोई सुनने वाला नहीं…”
अब उसने मेरी दोनों पतली कोमल कलाईयों को कस के पकड़ लिया और एक बार फिर से पूरे जोर से उसने धक्का लगाया, मेरी चीख निकलने के पहले ही उसने संतरे की फांक ऐसे मेरे पतले रसीले होंठों को अपने दोनों होंठों के बीच कसके भींच लिया और मेरे मुँह में अपनी जीभ घुसेड़ दी।
मुझे उसी तरह जकड़े वह धक्के लगाता रहा।
मेरी आधी लाल गुलाबी चूड़ियां टूट गयीं।
मैं अपने गोरे-गोरे मदमस्त चूतड़, मिट्टी में रगड़ रही थी पर उसके लण्ड के निकलने का कोई चांस नहीं था। और जब आधे से ज्यादा लण्ड मेरी चूत ने घोंट लिया तभी उस जालिम ने छोड़ा।
पर छोड़ा क्या… उसके हाथ मेरी कलाईयों को छोड़कर मेरी रसीली चूचियों को मसलने, गूंथने में लग गये।
उसके होंठों ने मेरे होंठों को छोड़कर मेरे गुलाबी गालों का रस लेना शुरू कर दिया और उसका लण्ड उसी तरह मेरी चूत में धंसा था।
“क्यों बहुत दर्द हो रहा है…” उसने मेरी आँखों में आँखें डालकर पूछा।
“बकरी की जान चली गयी और खाने वाला स्वाद के बारे में पूछ रहा है…” मुश्कुराते, आँख नचाते, शिकायत भरे स्वर में मैंने कहा।
“अरे स्वाद तो बहुत आ रहा है, मेरी जान, स्वाद तो मेरे इससे पूछो…”
और ये कह के उसने मेरे चूतड़ पकड़ के कस के अपने लण्ड का धक्का लगाया। अब वह सब कुछ भूल के गचागच गचागच मेरी चुदाई कर रहा था। मेरी चूत पूरी तरह फैली हुई थी। दर्द तो बहुत हो रहा था, पर जब उसका लण्ड मेरी चूत में अंदर तक घुसता तो बता नहीं सकती, कितना मजा आ रहा था।
उसकी उंगलियां कभी मेरे निपल खींचतीं, कभी मेरी क्लिट छेड़तीं, और उस समय तो मैं नशे में पागल हो जाती। उसकी इस धुआंधार चुदाई से मैं जल्द ही झड़ने के कगार पर पहुँच गयी।
पर सुनील को भी मेरी हालत का अंदाज़ हो गया था और उसने अपना लण्ड मेरी चूत के लगभग मुहाने तक निकाल लिया।
![[Image: fucking-anuja-9.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/10/15/fucking-anuja-9.jpg)
मैं- “हे डालो ना, प्लीज़ रुक क्यों गये, करो ना… अच्छा लगा रहा है…”
पर वह उसी तरह मुझे छेड़ता रहा।
मैं- “हे डालो ना, करो ना…” मैंने फिर कहा।
“क्या डालूं… क्या करूं… साफ-साफ बोलो…” वो बोला।
मैं- “चोदो चोदो, मेरी चूत… अपने इस मोटे लण्ड से कस-कस के चोदो, प्लीज़…”
“ठीक है, लेकिन आज से तुम सिर्फ इसी तरह से बोलोगी, और मुझसे एक बार और चुदवाओगी…”
मैं- “हां, हां, जो तुम कहो एक बार क्या मेरे राजा तुम जितनी बार बोलोगे उतनी बार चुदवाऊँगी, पर अभी तो…”
उसने पूरी ताकत से मेरे कंधे पकड़ के इतनी जोर से धक्का मारा कि उसका पूरा लण्ड एक बार में ही अंदर समा गया। और मैं झड़ गयी, देर तक झड़ती रही, पर वह रुका नहीं और धक्के मारता रहा, मुझे चोदता रहा।
थोड़ी ही देर में मैं फिर पूरे जोश में आ गयी थी और उसके हर धक्के का जवाब चूतड़ उठा के देती। मेरे टीन चूतड़ उसके जोरदार धक्कों से जमीन पर रगड़ खा रहे थे। मेरी चूची पकड़ के, कभी कमर पकड़ के वह बहुत देर तक चोदता रहा और जब मैं अगली बार झड़ी तो उसके बाद ही वह झड़ा।
सुनील ने मुझे हाथ पकड़ के उठाया और मेरे नितम्बों पर लगी मिट्टी झाड़ने के बहाने उसने मेरे चूतड़ों पर कस-कस के मारा और एक चूतड़ पकड़ के न सिर्फ दबोच लिया बल्की मेरी गाण्ड में उंगली भी कर दी।
“हे क्या करते हो मन नहीं भरा क्या, अब इधर भी…” मैंने उसे हटाते हुये कहा।
“और क्या, तेरे ये मस्त चूतड़ देख के गाण्ड मारने का मन तो करने लगाता है…” ये कहते हुये उसने मेरे जोबन दबाते हुये गाल कसकर काट लिया।
“उइइइइ…” मैं चीखी और उससे छुड़ाते हुए बाहर निकली।
साथ-साथ सुनील भी आया। बाहर निकलते ही मैं चकित रह गयी।
चन्दा के साथ-साथ अजय भी था।
सुनील ने मेरे कंधे पे हाथ रखा था, मेरी चूची टीपते हुए, अजय को दिखाकर वो बोला- “देख मैंने तेरे माल पे हाथ साफ कर लिया…”
अजय कौन कम था, उसने चन्दा के गाल हल्के से काटते हुए कहा- “और मैंने तेरे पे…”
चन्दा भी छेड़ने के मूड में थी, उसने आँख नचाकर मुझसे पूछा- “क्यों, आया मजा… सुनील के साथ…”
मुंह बनाकर मैं बोली- “यहां जान निकल गयी और तू मजे की पूछ रही है…”
चन्दा मेरे पास आकर मेरे नितम्बों को दबोचती बोली-
“अभी चूतड़ उठा-उठाकर गपागप घोंट रही थी और… (मेरे कान में बोली) आगे का जो वादा किया है… और यहां छिनारपन दिखा रही है…”
“हे, तूने कहां से देखा…” अब मेरे चौंकने की बारी थी।
“जहां से तू कल देख रही थी…”
मैं उसे पकड़ने को दौड़ी, पर वह मोटे चूतड़ मटकाती, तेजी से भाग निकली। मुझे घर के बाहर छोड़कर ही वह चली गयी। घर के अंदर पहुँचकर मैं सीधे अपने कमरे में गयी और अपनी हालत थोड़ी ठीक की।
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The story is one of mine favourate story...... A great work by a great writer in field of erotic writing..... It somehow truly depicts the inner feeling good of girl when she turned between an age of 16-18 how she feels.....
Now for the update I need not to say anything much other than that wk baar padho ya baar baar, aapke update ka nasha humesha humpar ussi tarah hota hai jaise hum khud hi story ka koi kirdar ho.....
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(01-02-2019, 02:50 PM)Kumkum Wrote: The story is one of mine favourate story...... A great work by a great writer in field of erotic writing..... It somehow truly depicts the inner feeling good of girl when she turned between an age of 16-18 how she feels.....
Now for the update I need not to say anything much other than that wk baar padho ya baar baar, aapke update ka nasha humesha humpar ussi tarah hota hai jaise hum khud hi story ka koi kirdar ho.....
Thanks you so much ....i am posting it here for two reasons ....one of course is there may be readers in this forum who would not have read it , ... and discerning readers like you who love erotica like this and secondly i am planning to post a sequel ...Soalhvaan saavn shahar men ....
and for that i will insist please do keep on coming and posting your comments on this thread ....just to encourage men... lack of reader's views sometimes make one despondent ....
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नौवीं फुहार
सिंगार
[i]हे, तूने कहां से देखा…” अब मेरे चौंकने की बारी थी।
“जहां से तू कल देख रही थी…” मैं उसे पकड़ने को दौड़ी, पर वह मोटे चूतड़ मटकाती, तेजी से भाग निकली। मुझे घर के बाहर छोड़कर ही वह चली गयी। घर के अंदर पहुँचकर मैं सीधे अपने कमरे में गयी और अपनी हालत थोड़ी ठीक की। [/i]
[i]कुछ देर में भाभी मेरे कमरें में आयीं और बोली-
“हे तैयार हो जाओ, अभी पूरबी, गीता, कामिनी भाभी और औरतें, आती होंगी, आज फिर झूला झूलने चलेंगे। और हां ये मैं अपनी कुछ पुरानी चोलियां लाई हूं, जब मैं तुमसे भी छोटी थी, ट्राई कर लेना और ये बाकी कपड़ें भी हैं…”
चलते-चलते, दरवाजे पर रुक कर भाभी ने शरारत से पूछा- “तुम अपने आप तैयार हो जाओगी या… चम्पा भाभी को भेज दूं तैयार करवाने के लिये…”
“नहीं भाभी मैं तैयार हो जाऊँगी…” हँसकर उनका मतलब समझते मैं बोली और मैंने दरवाजा बंद कर लिया।
अच्छी तरह नहा धोकर मैं तैयार हो गयी।
रंगीन घाघरा, पैरों में, खूब चौड़ी चांदी की घुंघरू वाली पाजेब जो जब चलूं तो दूर-दूर तक रुन झुन करे और जब… मैं सोचकर ही शर्मा गयी। हाथ में कंगन, बाजूबंद, कानों के लिये लंबे लटकते झुमके, मेरी चोटी भी मेरे नितम्बों तक लटकती थी, मैंने माथे को लाल बिंदी और गुलाबी होंठों पे गाढ़ी लिपिस्टक भी लगा ली।
[/i]
[i]
पर चोली जो थोड़ी फ़िट हुई वह पीले रंग की कोनिकल आकार वाली थी, और नीचे से मेरे टीन जोबन को पूरा उभार रही थी और टाइट भी बहुत थी। मुझे ऊपर के दो बटन खोलने पड़े पर अब मेरा गोरे-गोरे उभारों के बीच का क्लीवेज़ एकदम साफ दिख रहा था। जब मैंने दर्पण में देखा तो मैं खुद शर्मा गयी। [/i]
[i][i][i]![[Image: choli-7.md.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/10/16/choli-7.md.jpg)
दरवाजे पे खटखट की आवाज सुनकर मेरा ध्यान हटा। दरवाजा खोला, तो सामने पूरबी खड़ी थी-
“हे बड़ा सजा संवरा जा रहा है, आज किधर बिजली गिराने का इरादा है…” फिर मुझे बांहो में भर के मेरे कानों में बोली-
“यार लड़कों का कोई दोष नहीं हैं, तू चीज़ ही इतनी मस्त है, अगर मैं लड़का होती ना, तो मैं भी तुझे बिना चोदे नहीं छोड़ती…”
वह मेरा हाथ पकड़ के बरामदे में ले गयी, जहां गीता, उसकी कुछ और सहेलियां, चमेली भाभी, चम्पा भाभी बैठी थीं और बसंती सबके पैर में महावर लगा रही थी। बसंती ने मेरा भी पैर पकड़ा, कि मुझे भी महावर लगा दे पर मैं आनाकानी कर रही थी।
चमेली भाभी ने हँसकर मुझे छेड़ते हुये कहा- “अरे बसंती इसे तो सबसे कस के और चटख लगाना, गांव के जिस-जिस लड़के के माथे पे वो महावर लगा मिलेगा…”
मेरे गोरे गाल उनका मतलब समझकर शर्म से लाल हो गये पर पूरबी बोली-
“अरे भाभी, इसीलिये तो वो नहीं लगवा रही है कि चोरी पकड़ी जायेगी…”
और बसंती से बोली- “अरे महावर लगाते लगाते, जरा अंदर का भी दर्शन कर लो…”
“हां बसंती देख लो, अंदर घास फूस है या मैदान साफ है…” चमेली भाभी ने मुश्कुराकर पूछा।
बसंती ने भी हँसकर मेरे घाघरे के अंदर झांकते हुए बोला- “मैदान साफ है, लगता है, घास फूस साफ करके पूरी तैयारी के साथ आयी हैं ननद रानी…”[/i] [/i][/i]
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पूरबी
मेरी भाभी मेरे बगल में आकर बैठ गयीं थीं। मेरी कलाईयों की ओर देखती हुई बोलीं- “अरे तुम्हारी चूड़ियां क्या हुईं… किसके साथ तुड़वा के आयी…”
“नहीं भाभी, बरसात है, फिसलन में गिर पड़ी थी…” मैं भोली बन के बोली।
“गिर पड़ी थी या किसी के साथ कुश्ती लड़ रही थी…” पूरबी ने मुझे छेड़ते हुए पूछा
तब तक कामिनी भाभी आ गयीं खूब लहीम-शहीम लंबा कद, ताकतवर, पकड़ लें तो कोई तगड़ा मर्द भी न छुड़ा पाये, गोरा रंग, कम से कम 38डी जोबन लेकिन एकदम कड़े और फर्म, मजाक करने और गालियां देने में चम्पा भाभी से भी दो हाथ आगे। मैं उनसे मिली नहीं थी पर सुना बहुत था।
मेरा चेहरा पकड़कर ध्यान से उन्होंने देखा और बोलीं- “जितना सुना था उससे भी बहुत अच्छा पाया…”
और फिर भाभी को छेड़तीं बोलीं-
“इसको इत्ता छेड़ रही हो, पर भूल गयी। इससे कम से कम तुम दो साल छोटी रही होगी, जब श्यामू ने तुम्हारे साथ… और उसके बाद…”
हँसते हुए, भाभी ने उन्हें रोकते हुये कहा-
“अरे जाने दीजिये भाभी आप तो इसके सामने मेरी सारी पोल ही खोल देंगी…”
पर मेरे गाल पर चिकोटी काटती चम्पा भाभी बोलीं- “अरे अब इससे क्या छिपाना, अब ये भी तो हमारी गोल की हो गयी है…”
पूरबी, मुझसे थोड़ी ही बड़ी रही होगी, और वह मेरी भाभी की बहन लगती थी। तीन चार महीने पहले ही उसकी शादी हुई थी और वह शादी के बाद पहली बार सावन में अपने मायके आयी थी, और अपनी ननद को छेड़ने का कोई मौका, कामिनी या चमेली भाभी क्यों छोड़तीं।
“इससे तो पूछ रही थी कि इसकी चूड़ी कहां… किसके साथ टूटी, तू बता… पहली रात में कितनी चूड़ियां टूटीं…” कामिनी भाभी ने पूछा।
“भाभी सच बताऊँ, दो दरज़न पहनी थीं अगली सुबह एक दरजन बचीं…” मुश्कुराती हुई पूरबी ने कबूला।
अच्छा बता आने के पहले झूला झूला की नहीं…” चमेली भाभी ने पूछा।
पूरबी- “वो तो मैं रोज…”
उसकी बात काटकर चम्पा भाभी बोलीं-
“अरे वो तो मुझे मालुम है दिन रात चुदवाती होगी, मुझे मालूम है कि मेरी ननदों का एक दिन बिना मोटे लण्ड के नहीं कट सकता, पर आने के पहले कभी झूले पे…”
पूरबी बोली- “धत्त… हां… यहां आने के एक दिन पहले… घर में कोई नहीं था, बादल खूब जोर से बरस रहे, और मैं, उनकी गोद में बैठी झूला झूल रही थी कि उन्होंने मेरी पहले तो चोली खोलकर जोबन दबाने शुरू किये और फिर साड़ी उठाकर करने लगे…”
“अरे मैं तेरी साड़ी उठाकर अपना हाथ तेरी चूत के अंदर कलाई तक कर दूंगी। साफ-साफ बता… डिटेल में…” कामिनी भाभी बोलीं।
अब पूरबी के पास कोई चारा नहीं बचा था, वह सुनाने लगी-
“मेरी चूची दबाते-दबाते, और मेरे चूतड़ों के रगड़ से उनका लण्ड एकदम खड़ा हो गया था, उन्होंने मुझसे जरा सा उठने को कहा और मेरी साड़ी साया उठाकर कमर तक कर दिया और अपना पाजामा भी नीचे कर लिया।
मेरी चूत फैलाकर मेरे चूत को सेंटर करके उन्होंने धक्का लगाया और पूरा सुपाड़ा अंदर चला गया, फिर वह मेरी चूचियां पकड़ के धक्का लगाते और मैं झूले की रस्सी पकड़ के पेंग लगाती, खूब खच्चाखच्च अंदर जा रहा था।
वो मेरा कभी गाल काटते, कभी चूम लेते। काफी देर बाद उन्होंने मुझसे कहा कि मैं उठकर झूले पे उनकी गोद में आ जाऊँ। मैं उनको फेस करते हुये, उनकी गोद में बैठ गयी, उन्होंने सुपाड़े को मेरी चूत में घुसाके मेरी पीठ पकड़के कसके मुझे अपनी ओर खींचा और अबकी बार तो पूरा लण्ड जड़ तक अंदर तक घुस गया था, मेरी चूचियां उनकी छाती से दब पिस रहीं थीं, अब तक बारिश भी खूब तेज हो गयी थी और तेज हवा के चलते बौछार भी एकदम अंदर आ रही थी।
हम दोनों अच्छी तरह से भीग रहे थे, पर चुदाई के मजे में कौन रुकता।
वो एक हाथ से मेरी पीठ पकड़ के धक्के लगाते और दूसरी से मेरी चूचियां, क्लिट मसलते और मैं दोनों हाथों से झूले की रस्सी पकड़ के पेंग लगाती… झड़ने के बाद भी हम लोग वैसे ही झूलते रहे…”
औरों का तो नहीं मालूम पर ये हाल सुनके मैं एकदम गरम हो गयी थी। मेरे मुँह से निकला-
“पर… कैसे… झूले पर… झूलते…”
“अरे मेरी बिन्नो, आज मैं झूले पर तुम्हारे ठीक पीछे बैठूंगी, और तुम्हारे ये दोनों रसीले जोबन दबाते, जिसके इस गांव के सारे लड़के दीवाने हैं, तुम्हें अच्छी तरह ट्रेनिंग दे दूंगी…”
वास्तव में मेरे जोबन कसके पकड़कर, दबाते, पूरबी बोली।
“पूरबी सही कह रही है, देखो तुम, (मेरी भाभी से वो बोलीं) पूरबी, मेरी सारी ननदें पक्की छिनाल हो, और ये तुम्हारी ननदें है तो जब ये यहां से वापस जाय तो तब तक तो दर-छिनाल हो जानी चाहिये, इसकी ट्रेनिंग तो पक्की होनी चाहिये…” कामिनी भाभी ने कहा।
“इसकी ट्रेनिंग मेरे सारे देवर देंगे…” चमेली भाभी ने हँसकर कहा-
“और यहां से लौटने के बाद मेरा देवर, इसका टेस्ट लेगा, क्यों ठीक है ना…” मुझसे पूछते हुए, मेरी आँखों में आँखें डालकर, भाभी बोली।
“हां और जब ये कातिक में वापस आयेगी ना तो फाईनल इम्तहान राकी के साथ, क्यों…” चम्पा भाभी कहां चुप रहने वालीं थीं।
“इसकी तो ऐसी ट्रेनिंग होनी चाहिये की ऐसी छिनार कहीं ना हो, बाकी “खास” ट्रेनिंग हम तुम मिलकर दे देंगे…” अर्थ पूर्ण ढंग से मुश्कुराते हुये, कामिनी भाभी चम्पा भाभी से बोलीं।
“दीदी, तुम कहो तो मैं भी कुछ इसकी ट्रेनिंग करवा दूं…” पूरबी मेरी भाभी से मुश्कुरा के बोली।
“और क्या, तुम ससुराल से इत्ती प्रैक्टिस करके आयी हो, और… आखिर ये तुम्हारी भी तो ननद है…” भाभी बोलीं।
हमलोग झूले के लिये निकलने ही वाले थे की जमकर बारिश शुरू हो गयी और हमारा प्रोग्राम धरा का धरा रह गया।
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पिया मिलन को जाना
बारिश खूब देर तक चली और बारिश के कारण चन्दा भी नहीं आ पायी।
पर पूरबी, गीता, कामिनी भाभी के साथ खूब चुहलबाजी हुई, सब शर्म छोड़कर, और खास कर तो पूरबी मेरे पीछे ही पड़ी थी। जब कोई भाभी उसे चिढ़ाते हुये पूछती- “लगाता है, खूब स्तन मर्दन हुआ है, तुम्हारी चोली तंग हो गयी है…”
तो वह चोली के ऊपर से ही मेरे जोबन दबा के दिखाते हुये कहती- “हां भाभी वो ऐसे ही दबाते थे…”
पूरबी तो मेरे पीछे थी ही, पर जिस तरह कामिनी भाभी मुझे मीठी तिरछी निगाहों से देख रहीं थी, मैं समझ गयी कि उनके भी इरादे कम खतरनाक नहीं।
दो-तीन घंटे में मैं पूरबी और कामिनी भाभी से काफी खुल गयी। जब शाम होने को थी तब बारिश बंद हुई और सब लोग जा रहे थे की चन्दा आयी। चलते समय, कामिनी भाभी मुझसे गले मिली और बोली-
“ननद रानी मैं तो तुम्हें इतना एक्सपर्ट बना दूंगी कि जितना चार-चार बच्चों की मां नहीं होती…”
चन्दा ने मुझे नीचे से ऊपर तक देखा, और धीरे से बोली- “इतना श्रिंगार, किसी के पास जाने वाली थी क्या…”
मैं भी उसी सुर में बोली- “तुम्हारे बिना कौन ले जाने वाला है…”
“उसी लिये तो आयी हूँ सुबह तुमने किसी से वादा किया था…” मेरे गाल पर कस के चिकोटी काटती वो बोली।
“भाभी, जरा इसको मैं बाहर की हवा खिला लाऊँ, गांव के बाग बगीचे दिखा लाऊँ…” वह चम्पा भाभी से बोली।
“ले जाओ, बेचारी सुबह से घर में बैठी है, बरसात के चक्कर में झूला भी नहीं जा पायी…” चम्पा भाभी ने इजाजत दे दी।
हम दोनों तेजी से घर के बाहर निकले। मैं चन्दा से भी तेज चल रही थी।
“हे बहुत बेकरार हो रही हो यार से मिलने के लिये…” चन्दा ने मुझे छेड़ा।
“और क्या…” मैं भी उसी अंदाज में बोली।
बरसात के बाद जमीन से जो भीनी-भीनी सुगंध निकल रही थी, ठंडी मदमस्त सावन की बयार बह रही थी, हरी कालीन की तरह धान के खेत बिछे थे, झूलों पर से कजरी गाने की आवाजें आ रही थीं, मौसम बहुत ही मस्त हो रहा था। चन्दा मेरा हाथ पकड़कर एक आम के बाग में खींच ले गयी।
बहुत ही घनाबाग़ था और अंदर जाने पर एक अमराई के झुंड के अंदर वो मुझे ले गई।
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दसवीं फुहार
फिर से अमराई में
एक कली दो भंवरे
कोई सोच भी नहीं सकता था कि वहां कोई कमरा होगा।
शायद बाग के चौकीदार का हो। पर तबतक चन्दा मेरा हाथ पकड़कर कमरे के अंदर ले गयी और जब तक मेरी आँखें उसके अंधेरे की अभ्यस्त होतीं, उसने अंदर से सांकल लगा दी।
अंदर पुवाल के एक ढेर पे सुनील और रवी लेटे थे, और एक बोतल से कुछ पी रहे थे। दोनों के पाजामे में तने तंबू बता रहे थे कि इंतजार में उनकी क्या हालत हो रही है।
“हे, दोनों… तुमने तो कहा था कि…” शिकायत भरे स्वर में मैंने चन्दा की ओर देखा।
तब तक सुनील ने मेरा हाथ पकड़कर अपनी गोद में खींच लिया, और जब तक मैं सम्हलती उसके बेताब हाथ मेरी चोली के हुक खोल रहे थे।
“अरे एक से भले दो… आज दोनों का मजा लो…” चन्दा भी उनके पास सटकर बैठकर बोली।
“अरे लड़कियां बनी इस तरह होती हैं, एक-एक गाल चूमे और दूसरा, दूसरा…” यह कहकर उसने मेरा गाल कस के चूम लिया।
“और एक-एक चूची दबाये और दूसरा, दूसरा…” ये कहते हुए सुनील ने कस के मेरी एक चूची अधखुली चोली के ऊपर से दबायी और रवी ने चोली खोल के मेरा दूसरे जोबन का रस लूटा।
मैं समझ गयी की आज मैं बच नहीं सकती इसलिये मैंने बात बदली-
“ये तुम दोनों क्या पी रहे थे, कैसी महक आ रही थी…”
अभी भी उसकी तेज महक मेरे नथुनों में भर रही थी।
“अरे चन्दा, जरा इसको भी चखा दो ना…” सुनील बोला। मैं उसकी गोद में पड़ी थी।
मेरा एक हाथ रवी ने कस के पकड़ा और दूसरा चन्दा ने।
चन्दा ने बोतल उठाकर मेरे मुँह में लगायी पर उसकी महक या बदबू इतनी तेज थी कि मैंने कसकर दोनों होंठ बंद कर लिये।
पर चन्दा कहां मानने वाली थी, उसने कस के मेरे गाल दबाये और जैसे ही मेरा मुँह थोड़ा सा खुला, बोतल लगाकर उड़ेल दी। तेज तेजाब जैसे मेरे गले से लेकर सीधे चूत तक एक आग जैसी लग गयी। थोड़ी देर में ही एक अजीब सा नशा मेरे ऊपर छाने लगा।
“अरे गांव की हर चीज ट्राई करनी चाहीये, चाहे वह देसी दारू ही क्यों ना हो…” चन्दा हँसते हुये बोली। पर चन्दा ने दुबारा बोतल मेरे मुँह को लगाया तो मैंने फिर मुँह बंद कर लिया। अबकी सुनील से नहीं रहा गया, और उसने मेरे दोनों नथुने कस के भींच दिये।
“मुझे मुँह खुलवाना आता है…” सुनील बोला।
मजबूरन मुझे मुँह खोलना पड़ा और अबकी चन्दा ने बोतल से बची खुची सारी दारू मेरे मुँह में उड़ेल दी।
मेरे दिमाग से लेकर चूत तक आग सी लगा गयी और नशा मेरे ऊपर अच्छी तरह छा गया।
सुनील और रवी ने मिलकर मेरी चोली अलग कर दी थी और दोनों मिलकर मेरे जोबन की मसलायी, रगड़ायी कर रहे थे।
“हे तुमने कहा था… की…” मैंने शिकायत भरे स्वर में सुनील की ओर देखा।
सुनील ने मेरे प्यासे होंठों पर एक कसकर चुम्बन लेते हुये, मेरे निपल को रगड़ते हुये बोला-
“तो क्या हुआ, रवी भी मेरा दोस्त है, और तुम भी… और वह बेचारा भी मेरी तरह तुम्हारे लिये तड़प रहा है, और इसके बाद तो मैं तुमको चोदूंग ही, बिना चोदे थोड़े ही छोड़ने वाला हूँ मैं। तुम मेरे दोस्त की प्यास बुझाओ तब तक मैं तुम्हारी सहेली की आग बुझाता हूं, चलो चन्दा…” और वह चन्दा को पकड़कर वहीं बगल में लेट गया।
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रवी
![[Image: Male-8.jpg]](https://i.ibb.co/qDt30bF/Male-8.jpg)
“हे ये क्या यहीं… मेरे सामने मुझे शर्म लगेगी…” मैंने मना किया।
“अरे रानी चोदवाने में… लण्ड घोंटने में शर्म नहीं और सामने शर्मा रही हो…”
“नहीं नहीं अबकी नहीं…” मैं मना करती रही।
“चलो अबकी तो मान जाती हूँ पर ये शरम वरम का चक्कर छोड़ो, अगली बार से मेरे सामने ही चुदवाना पड़ेगा…” चन्दा बोली।
“ये साली, शरम छोड़… वरना तुम्हारी गाण्ड में डाल दूंग…”
सुनील पूरी तरह नशे में लगा रहा था।
वह चन्दा को लेकर दूसरे कोने में चला गया, पुआल के पीछे, जहां वो दोनों नहीं दिख रहे थे।
अब रवी ने मुझे अपनी बाहों में ले लिया। मैं अपने घाघरे को ऊपर करने लगी पर “उंह” कहकर उसने सीधे घाघरे का नाड़ा खोल दिया और उसके बाद साये को भी। उसने दोनों को उतारकर उधर ही फेंक दिया जहां मेरी चोली पड़ी थी, और अब उसने मेरे प्यासे होंठों को चूमना शुरू कर दिया।
उसे कोई जल्दी नहीं लगा रही थी।
पहले तो वो धीरे-धीरे मेरे होंठों को चूमता रहा, फिर उसने अपने होंठों के बीच दबाकर रस ले-लेकर चूसना शुरू कर दिया। उसके हाथ प्यार से जोबन को सहला रहे थे और मैं अपना गुस्सा कब का भूल चुकी थी।
मेरे निपल खड़े हो गये थे। उसके होंठ अचानक मेरे जोबन के बेस पे आ गये और उसने वहां से उन्हें चूमते हुए ऊपर बढ़ना शुरू किया। मेरे निपल उसका इंतजार कर रहे थे, पर उसकी जुबान मुझे, मेरे खड़े चूचुक को तरसाती, तड़पाती रही। अचानक जैसे कोई बाज चिड़िया पर झपट्टा मारे उसने अपने दोनों होंठों के बीच मेरे निपल को कस के भींच लिया और जोर से चूसने लगा।
“ओह… ओह… हां बहुत… अच्छा लगा रहा है, बस ऐसे ही चूसते रहो। हां हां…”
मैं मस्ती में पागल हो रही थी।
थोड़ी देर के बाद उसने मेरी दोनों चूंचियां कस के सटा दीं और अपनी जीभ से दोनों निपल को एक साथ फ्लिक करने लगा। मस्ती में मेरी चूचियां खूब कड़ी हो गयी थीं। वह तरह-तरह से मेरे रसीले जोबन चूसता चाटता रहा।
जब मैं नशे में पागल होकर चूतड़ पटक रही थी, वह अचानक नीचे पहुँच गया और मेरी दोनों जांघों को किस करने लगा।
मेरी जांघें अपने आप फैलने लगी और उसके होंठ मुझे तड़पाते हुये मेरी रसीली चूत तक पहुँच गये। बगल से सुनील और चन्दा की चुदाई की आवाजें आ रहीं थीं।
उसकी जीभ मेरे भगोष्ठों के बगल में चाट रही थी। मस्ती से मेरी चूत एकदम गीली हो रही थी। धीरे से उसने मेरे दोनों भगोष्ठों को जीभ से ही अलग किया और अपनी जुबान मेरी चूत में डालकर हिलाने लगा। मेरी चूत के अंदरूनी हिस्से को उसकी जीभ ऐसे सहला, रगड़ रही थी कि मैं मस्ती से पागल हो रही थी।
मेरी आँखें मुंदी जा रही थीं, मेरे चूतड़ अपने आप हिल रहे थे, मैं जोश में बोले जा रही थी- “हां रवी हां… बस ऐसे ही चूस लो मेरी चूत और कस के… बहुत मज़ा आ रहा है…”
और रवी ने एक झटके में मेरी पूरी चूत अपने होंठों के बीच कस के पकड़ ली और पूरे जोश से चूसने लगा।
उसकी जीभ मेरी चूत का चोदन कर रही थी और होंठ चूत को पूरी ताकत से दबा के ऐसे चूस रहे थे कि बस… मैं अपनी कमर जोर-जोर से हिला रही थी, चूतड़ पटक रही थी और झड़ने के एकदम कगार पर आ गयी थी-
“रवी हां बस ऐसे ही झाड़ दो मुझको ओह्ह्ह… ओह्ह्ह… हां…”
पर उसी समय रवी मुझे छोड़कर अलग हो गया।
मैं शिकायत भरी निगाह से उसे देख रही थी और वह शरारत से मुश्कुरा रहा था। जब मेरी गरमी कुछ कम हुई तो उसने फिर मेरी चूत को चूमना, चाटना, चूसना शुरू कर दिया।
वह थोड़ी देर चूत को चूमता और फिर उसके आसपास…
एक बार तो उसने मेरे चूतड़ उठाकर मेरे लाख मना करने पर भी पीछे वाले छेद के पास तक चाट लिया। उसकी जीभ की नोक लगभग मेरी गाण्ड के छेद तक जाकर लौट गयी और फिर उसने खूब कस के मेरी चूत चूसनी शुरू कर दी। मेरी हालत फिर खराब हो रही थी।
अबकी रवी वहीं नहीं रुका।
वह अपनी जुबान से मेरी क्लिट दबा रहा था और थोड़ी ही देर में उसे कस-कस के चूसने लगा।
मैं अब नहीं रुक सकती थी और मस्ती से पागल हो रही थी-
“हां हां… चूस लो, चाट लो, काट लो मेरी क्लिट, मेरी चूत मेरे राजा, मेरे जानम… ओह… ओह… झड़ने ले मुझे…”
मेरे चूतड़ अपने आप खूब ऊपर-नीचे हो रहे थे पर उसी समय वह रुक गया।
“ओह क्यों रूक गये करो ना… प्लीज…”
मैं विनती कर रही थी।
“अभी तो तुम इतने नखड़े दिखा रही थी, कि तुम सुनील से चुदवाने आयी हो… मुझसे नहीं करवाओगी…”
अब रवी के बोलने की बारी थी।
मैं नशे से इत्ती पागल हो रही थी कि मैं कुछ भी करवाने को तैयार थी-
“मैं सारी बोलती हूं। मेरी गलती थी अब आगे से तुम जब चाहो… जब कहोगे तब चुदाऊँगी, जितनी बार कहोगे उतनी बार…”
“अब फिर कभी मना तो नहीं करोगी…” रवी बोला।
“नहीं कभी नहीं प्लीज बस अब चूस लो, चोद दो मुझको…” मैं कमर उठाती बोली।
रवी ने जब अबकी चूसना शुरू किया तो वह इतनी तेजी से चूस रहा था कि मैं जल्द ही फिर कगार पे पहुँच गई, अब उसकी उंगलियां भी मुझे तंग करने में शामिल थीं, कभी वह मेरी निपल को पुल करतीं कभी क्लिट को और जब वह मेरी क्लिट को चूसता तो वह चूत में घुसकर चूत मंथन करतीं।
अबकी जब मैं झड़ने के निकट पहुँची तो उसने शरारत से मेरी ओर देखा।
और मैं चिल्ला उठी- “नहीं, प्लीज़, अबकी मत रुकना तुम जिस तरह जब कहोगे मैं तुम चुदवाऊँगी… प्लीज…”
रवी मेरी क्लिट चूस रहा था, उसने कस के पूरी ताकत से मेरी क्लिट को चूमा और उसे हल्के से दांत से काट लिया। मेरे पूरे शरीर में लहर सी उठने लगी और उसी समय रवी ने मेरी दोनों जांघों को फैलाकर पूरी ताकत से अपना लण्ड मेरी चूत में पेल दिया और कमर पकड़कर पूरे जोर से ऐसे धक्के लगाये कि 3-4 धक्कों में ही उसका पूरा लण्ड मेरी चूत में था।
जैसे ही मेरी चूत को रगड़ता उसका लण्ड मेरी चूत में धंसा, मैं झड़ने लगी… और मैं झड़ती रही… झड़ती रही…
लेकिन वह रुका नहीं। उसके शरारती होंठ मेरे निपल को चूम चूस रहे थे।
मैं थोड़ी देर निढाल पड़ी रही पर, उसके होंठ, उंगलियां और सबसे बढ़कर मेरे चूत के अंत तक घुसा उसका मोटा लण्ड, थोड़ी ही देर में मैं फिर उसका साथ दे रही थी।
अब उसने मेरी लम्बी गोरी टांगें उठाके अपने कंधे पे रख रखीं थीं। दोनों हाथों से मेरे भरे-भरे जोबन पकड़ के वह धक्के लगा रहा था
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सुनील
चन्दा ने हँसकर कहा- “हम लोगों ने बहुत कुछ सुना और थोड़ा देखा भी कि रानी जी कैसे मस्त होकर चुदवा रहीं थीं…”
मैं बड़ी मुश्किल से उठकर खड़ी हुई और चन्दा से बोली- “क्यों चलें…” पर तब तक मैंने देखा की चन्दा ने मेरी चोली, घाघरा और साया उठाकर अपने कब्जे में कर रखा है।
सुनील ने मुझे पीछे से पकड़ लिया और बोला- “कहां चली, अभी मेरा नंबर तो बाकी है…”
चन्दा मेरे कपड़े दिखाती बोली- “नहीं नहीं… अगर ये ऐसे ही जाना चाहें तो जाय, कहो तो सांकल खोल दूं…”
मैं समझ गयी थी की बिना चुदवाये कोई बचत नहीं है। और सुनील का फिर से उत्थित होता लण्ड देखकर मेरा मन भी बेकाबू होने लगा था। सुनील ने मुझे पकड़ के अपनी गोद में बिठा लिया और अपना लण्ड मेरे गोरे मेंहदी लगे हाथों में दे दिया।
मैं अपने आप उसे आगे पीछे करने लगी।
सामने रवी ने चन्दा को अपनी गोद में बिठा लिया था और एक हाथ से उसकी चूची दबा रहा था और दूसरा, उसकी चूत में उंगली कर रहा था।
जल्द ही सुनील का लण्ड फुफ्कार मारने लगा था और मेरी मुट्ठी से बाहर हो रहा था।
पर मेरे कोमल किशोर हाथों को उसके मोटे कड़े लोहे की तरह सख्त लण्ड का स्पर्श इतना अच्छा लग रहा था कि उसी से मेरे चूचुक खड़े हो रहे थे।
सुनील मेरी फैली हुई जांघों के बीच आ आया और मेरी दोनों सख्त चूचियां पकड़ के उसने दो-तीन धक्कों में आधा से ज्यादा लण्ड मेरी कसी चूत में पेल दिया।
रवी की चुदाई के बाद मेरी चूत अच्छी तरह गीली थी पर सुनील का लण्ड इतना मोटा था की मेरी चीख निकल गयी। पर उसकी परवाह किये बगैर सुनील ने पूरी ताकत से धक्के लगाना जारी रखा।
मैं तड़प रही थी, चिल्ला रही थी, मिट्टी पर, पुवाल पर अपने किशोर चूतड़ काटक रही थी, पर जब तक उसका मोटा मूसल ऐसा लण्ड, जड़ तक मेरी चूत में नहीं घुस गया, वह पेलता रहा… चोदता रहा…
मैंने चन्दा की ओर मुड़कर देखा, वह मेरे पास ही बैठी थी और रवी उसकी जांघें फैलाकर उसकी चूत चूम चाट रहा था। मेरी ओर देखकर चन्दा मुश्कुरा दी।
सुनील ने मेरे भरे-भरे गोरे-गोरे गाल अपने मुँह में भर लिया था और उन्हें कस के चूस रहा था, अचानक उसने खूब कस के मेरा गाल काट लिया और मैं चीख पड़ी।
थोड़ी देर तक वहां चुभलाने के बाद उसने फिर वहीं कसकर काट लिया और अबकी उसके दांत देर तक वहीं गड़े रहे, भले ही मैं चीखती रही। आज मेरी चूचियों की भी शामत थी।
सुनील अपने दोनों हाथों से उन्हें खूब कस के मसल रगड़ रहा था और चूची पकड़ के ही पूरी ताकत से धक्के मार मारकर मुझे चोद रहा था। वह लण्ड सुपाड़े तक बाहर निकालता और फिर पूरी ताकत से पूरा लण्ड एक बार में अंदर तक ढकेल देता। उसका लण्ड मेरी क्लिट को भी अच्छी तरह रगड़ रहा था।
दर्द से मेरी जांघें और चूत फटी जा रही थी पर उसकी इस धकापेल चुदाई से थोड़ी देर में मैं भी नशे से पागल हो गयी और चूतड़ उठा-उठा के उसका साथ देने लगी। सुनील के होंठ अब मेरी चूची कस के चूस रहे थे, उसने चूची का उपरी भाग मुंह में दबा लिया और देर तक चूसने के बाद कस के काट लिया।
मैं चीख भी नहीं पायी क्योंकी चन्दा ने अपने होंठों के बीच मेरे होंठ दबा लिये थे और वह भी उन्हें कस के चूस रही थी। सुनील उसी जगह पर थोड़ी देर और चुभलाता, चूसता और फिर कस के काट लेता।
चन्दा ने भी मौके का फायदा उठा के मेरे होंठ चूसते हुये काट लिये और हँस के बोली-
“अरे, चुदाई का कुछ तो निशान रहना चाहिये…”
सुनील ने मेरे दोनों जोबन को कस-कस के ऊपर के हिस्से को अपने दांत के निशान बना दिये थे।
अब तक मेरी टांगें फैली हुईं थीं पर अब सुनील ने मुझे मोड़कर लगभग दुहरा कर दिया और मेरे पैर भी सटा दिये जिससे मेरी चूत अब एकदम कसी-कसी हो गयी। और जब उसने लण्ड थोड़ा बाहर निकालकर चोदा तो मेरी तो जान ही निकल गई।
पर चन्दा को इसमें भी मजा आ रहा था। वह हँस के बोली-
“हाँ… सुनील ऐसे ही खूब कस के चोदो की इसका सारा छिनारपन निकल जाय, तीन दिन तक चल न पाये…”
पर लण्ड इतना रगड़-रगड़ के जा रहा था की मैं जल्द ही झड़ गयी।
चन्दा ने मेरी एक चूची पकड़ ली और कस के सहलाते, दबाते बोली-
“अरी, ये एक बार मेरे साथ झड़ चुका है अबकी बहुत टाइम लेगा…”
सुनील मेरे चूतड़ पकड़ के लगातार धक्के लगा रहा था।
रवि दूसरी ओर से मेरी चूची पकड़ के दबा मसल रहा था। मेरे होश लगभग गायब थे, मुझे पता नहीं की मैं कितनी बार झड़ी पर बहुत देर तक चोदने के बाद सुनील झड़ा।
मैं बड़ी देर तक वैसे ही लेटी रही। थोड़ी देर में चन्दा और रवी ने सहारा देकर मुझे उठाया। जब मैंने गर्दन झुका कर देखा तो मेरे दोनों जोबनों के उपरी हिस्से में खूब साफ निशान थे, और वैसे तो पूरी चूची पर रगड़, खरोंच और काटने के निशान थे।
सुनील ने मुझसे कहा- “यार तुम्हें पाकर मैं होश खो बैठता हूं, तुम चीज ही ऐसी हो…”
मैं मुश्कुराके बोली- “चलो चलो ज्यादा मक्खन लगाने की जरूरत नहीं है…” और मैं चन्दा के साथ घर के लिये चल दी।
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रविन्द्र
और मैं चन्दा के साथ घर के लिये चल दी।
…………………
रास्ते में चन्दा ने बात छेड़ी-
“आज जो तुम्हारी कस के चुदाई हुई, वह तुम्हारे भाई रवीन्द्र के लिये बहुत जरूरी थी…”
मैं ठीक से चल नहीं पा रही थी। मैं बनावटी गुस्से में बोली-
“बेचारे मेरे भाई रवीन्द्र को क्यों घसीटती हो इसमें…”
चन्दा ने मेरे गाल पे चिकोटी काट कर कहा-
“इसलिये मेरी प्यारी बिन्नो कि रवीन्द्र का, सुनील बल्की अब तक मैंने जितने भी देखे हैं सबसे बहुत लंबा और मोटा है, इसलिये अब कम से कम वह अपना सुपाड़ा तो घुसा सकेगा, अपनी प्यारी बहना की चूत में…”
मेरी आँखों के सामने रवीन्द्र की तस्वीर घूम रही थी, पर मैंने चन्दा को छेड़ते हुए कहा-
“अगर ऐसी बात है तो तू ही क्यों नहीं चुदवा लेती रवीन्द्र से…”
“अरे यार, मैं तो अपनी चूत हाथ पे लेके घूम रही हूँ, पर उसको तो अपनी इस प्यारी बहना को ही चोदना है ना, साल्ला… बहनचोद…” चन्दा हँस के बोली।
“हे गाली क्यों देती है, मेरे प्यारे भाई को…” मैं उसे घूर के बोली।
चन्दा ने मुश्कुराकर कहा-
“अपनी इस प्यारी प्यारी बहना को तो वह बिना चोदे मानेगा नहीं और अब इस बहना की चूत में भी इतनी खुजली मच रही होगी की वह भी अपने भैय्या से बिना चुदवाये रहेगी नहीं।
तो बहनचोद वह हुआ की नहीं और उसकी इस बहन को गांव के मेरे सारे भाई बिना चोदे तो जाने नहीं देंगे, और जिसकी बहन यहां चुदेगी वह साला हुआ की नहीं…”
बात तो उसकी सही थी पर मेरे मन में बार-बार रवीन्द्र की शक्ल घूम रही थी। मुझसे नहीं रहा आया और मैंने चन्दा से पूछ ही लिया-
“लेकिन मेरी समझ में ये नहीं आता कि… वह इत्ता शर्मीला है… मैं शुरूआत कैसे करूं…”
थोड़ी देर में खिलखिलाती हुई चन्दा बोली-
“मेरे दिमाग में एक आइडिया आया है… जब तुम घर लौटोगी तो उसके कुछ दिन बाद ही सावन की पूनो, पड़ेगी, राखी…”
“तो…” उसकी बात बीच में काटकर मैं बोली।
“तो जब तुम उसको राखी बांधना तो वह पूछेगा की क्या चाहिये… तुम उसकी पैंट पर हाथ रखकर मांग लेना, भैय्या, मुझे तुम्हारा लण्ड चाहिये…” चन्दा जोर-जोर से हँस रही थी।
“हां जरुर मांगूंगी पर ये बोलूंगी की… मेरी प्यारी सहेली चन्दा के लिये चाहिये…”
मैंने चन्दा की पीठ पर हाथ मारकर कहा। बार-बार चन्दा की बात और रवीन्द्र मेरे मन में आ रहा था, इसलिये मैंने बात बदली-
“यार रवी… जब चूसता है तो… आग लग जाती है…”
“सही बात है, पक्का चूत चटोरा है, एक बार तो… अच्छा छोड़ो तुम विश्वास नहीं करोगी…”
“नहीं नहीं… बताओ ना…” मैंने जिद की।
“एक बार… हम लोग खेत में थे, मुझे पेशाब लगी थी मैं जैसे ही करके आयी, रवी ने मुझे पकड़ लिया, मैंने बहुत कहा कि मैंने अभी साफ नहीं किया, पर वह नहीं माना, कहने लगा- कोई बात नहीं, स्पेशल टेस्ट मिलेगा और उस दिन रोज से भी ज्यादा कस के चूसा और मुश्कुराके कहने लगा- थोड़ा खारा खारा था…”
“हाय… लगी हुई थी और…”
मैं आश्चर्य से बोली।
घर आ गया था इसलिये हम लोग बाहर खड़े-खड़े हल्की आवाज में बातें कर रहे थे।
“अरे, चौंक क्यों रही है देखना अभी चम्पा भाभी और कामिनी भाभी तुमसे क्या-क्या करवाती हैं…” चन्दा बोली।
मैं- “हां चम्पा भाभी हरदम चिढ़ाती रहती हैं कि कातिक में आओगी तो राकी के साथ…”
मेरी बात काटकर चन्दा ने फुसफुसाते हुए कहा-
“अरे राकी के साथ तो अब तुझे चुदवाना ही होगा उससे तो तू बच ही नहीं सकती। उसके साथ तो वो तेरी सुहागरात मनवाएंगी, पर… उसके बाद देखना, हर चीज तुम्हें पिलायेंगी-खिलायेंगी…”
तब तक घर के अंदर से भाभी की आवाज आयी, अरे तुम लोग बाहर क्या कर हो। जैसे ही हम अंदर गये चम्पा भाभी बोलीं-
“अरे मैं बताना भूल गयी थी, आज कामिनी भाभी के यहां सोहर और कजरी होगी, सबको बुलाया है तैयार हो जाओ, जल्दी चलना है…”
“ठीक है भाभी मैं चलती हूँ कामिनी भाभी के घर पे मिलूंगी…” ये कहकर चन्दा अपने घर को निकल गयी।
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