27-11-2025, 09:52 PM
अध्याय ३ प्राची की गुफा में पहली रात
प्राची को उसके माँ बाप तय समय में वापस गाँव ले आते है । प्राची ने अपनी माँ को चुदते हुए देख के समझ लिया था की उसका हाल भी वही होने जा रहा है । वो वापसी में डरी हुई भी थी लेकिन उसने गोसाईं जी के लंड को हाथ में जब से लिया था तब से उनसे संभोग के लिए तरस रही थी । डर के ऊपर हवस हावी था । प्राची अब पूरा मन बना के आई थी कि अब जो भी हो वो उसने पूरा साथ देगी ।
गाँव पहुँचने के बाद फिर से शीला प्राची को गोसाईं जी के झोपड़ी में ले गई वहाँ नैनी बाहर ही मिली और प्राची और शीला को अंदर लेके गोसाईं जी के पास ले गई ।
गोसाईं जी : शीला कल से प्राची की दीक्षा चालू हो जाएगी । तुम अब 21 दिन बाद इसे लेने आना ।
शीला : जी गोसाईं जी ।
शीला प्राची को अंदर छोड़ के अपने घर वापस चली जाती है । झोपड़ी के अंदर गोसाईं जी नैनी से सब तैयारी के बारे में पूछते है । नैनी ने सब कुछ रेडी करके प्राची को अपने साथ बाहर ले जाती है ।
प्राची आज साड़ी और ब्लाउज पहन के आई है और अंदर कुछ नहीं जैसा की शीला ने उसे समझाया था, उसके पास इन कपड़ो के अलावा कोई सामान नहीं होता और शीला के कहे अनुसार उसने अपने अंदर के सब बाल भी साफ़ करवा लिए थे ।
नैनी बाहर प्राची को पीछे चलने कहती और पूछती है : तुमने खाने पीने में परहेज रखा था ना ?
प्राची: जी गोसाईं जी ने जैसे बोला था वैसे ही मैंने किया है ।
नैनी: बहुत अच्छा । और अपना शरीर साफ़ कर लिए हो या नहीं ?
प्राची: जी मैंने सारे बाल साफ़ करके अच्छे से अपना बदन साफ़ करके आई हूँ ।
नैनी : आज रात से दीक्षा चालू होगी । तुमको पूरा 21 दिन गुफा से निकालना नहीं है । गोसाईं जी आते जाते रहेंगे और तुमको उनकी हर एक बात पत्थर की लकीर मानके माननी पड़ेगी तभी दीक्षा सफल होगी । और तुमको कुछ पूछना है ?
प्राची सोचने लग जाती है और उसके मन में सवाल तो बहुत थे लेकिन वो जानती थी की पूछने से कोई मतलब नहीं उल्टा उसका डेयर बढ़ेगा । इसीलिए वो नैनी से बोलती है : आप की तरफ़ से कोई सलाह दे दीजिए ।
नैनी: बस जैसा बोलते है बिना सवाल करे उनको मानो , और कुछ नहीं ।
दोनों चलते चलते गुफा के बाहर आ जाते हैं । नैनी प्राची को कपड़े उतारने को कहती है । प्राची अपने सारे कपड़े उतार के नैनी को दे देती है ।
नानी: अब तुम अंदर जाके आराम करो । मैं शाम में आऊँगी ।
प्राची अंदर घुसती है, गुफा में इस बार पहले से कुछ सामान ज़्यादा होते है : एक सूती की साड़ी होती है और कुछ फल भी आट में रखे होते है । चटाई और एक घड़े में पानी और मिट्टी के ही कुल्हड़ रखे होते है । प्राची पानी पी के साड़ी लपेटती है और चटाई नीचे बिछा के उसके लेटती है । गुफा के अंदर माहौल एकदम शांत और ठंडा होता है , प्राची वैसे तो अकेले डरती है लेकिन गुफा में वो निश्चिंत होके नीचे सो जाती है। शाम होने पे नैनी ने प्राची को जगाया उसके लिए खाने के लिए हरी सब्जी और अंडा देती है । प्राची दोपहर से अब लगभग चार घंटे की नींद पूरी कर चुकी है और अब एकदम फ्रेश फील कर रही है , नैनी प्राची को समझाती है कि रात में गोसाईं जी आयेंगे और अब तुमको इस गुफा से बाहर नहीं निकलना है और इतना कह के वो वापस चली जाती है । प्राची के पास अब इंतज़ार करने के अलावा कुछ काम नहीं होता है । वो उस जगह पर गोसाईं जी और उसकी माँ की चुदाई के बारे में याद करती है, वो सोचाती है कि इस जगह कितने लोगो की चुदायी गोसाईं जी में किया होगा , और आज उसकी बारी है । वो जल्द से जल्द गोसाईं जी के नीचे आना चाहती है और आज रात में उसकी ख्वाहिश पूरी होना है ये जानती है । गुफा के अंदर समय का पता नहीं चलता , प्राची इंतज़ार करती है और इंतज़ार करते करते उसकी आँख लग जाती है । थोड़ी आहट से प्राची को नींद खुलती है वो अपने को संभालते हुए उठती है , गोसाईं जी धोती में उसके सामने होते है । प्राची उनको दंडवत प्रणाम करती है । गोसाईं जी प्राची को उठाते हुए बोलते है : अब तुमको 21 दिन तक मुझे प्रणाम करने की आवश्यकता नहीं है ।
और गोसाईं जी जाके अपने आट पर बैठ जाते है । प्राची भी सामने बैठती है । गोसाईं जी: क्या तुमने मेरी बातों का पालन किया है ?
प्राची: जी ।
गोसाईं जी: बहुत अच्छा : अपने वस्त्र निकाल दो ।
प्राची सूती कपड़े को निकाल के रख देती है और पूरी नंगी गोसाईं जी के सामने खड़ी होती है ।
गोसाईं जी: आज रात से तुम्हारी दीक्षा खत्म होने तक तुम मुझसे बँधी रहोगी हर समय , हर काम तुम मुझसे पूछ के करोगी मूत्र और शौच भी । जब भी मुझे गुफा से बाहर जाना होगा तुमको बांध के जाऊँगा मेरे आने तक तुम उस बंधन को खोल नहीं सकती । नैनी जो खाना लाएगी उतना ही खाओगी , हाँ पानी जितना चाहो पी सकती हो । समय समय पर मैं तुमको नियम बताते रहूँगा तुम ध्यान से सुनना और समझना ।तुम्हारा काम अपने आप को बदलना है । तुम अपने मन को दृढ़ बना के रखो ।
प्राची : जी गोसाईं जी ।
इतने में गोसाईं जी एक मजबूत कपड़े की बनी रस्सी से अपना पैर और प्राची का पैर बाँध देते है । रस्सी लंबा था और दोनों आराम से उसमे चल सकते थे, गोसाईं जी प्राची से उनका धोती खोलने को कहते है । प्राची सुनके मन ही मन खुस होती है की फिर से गोसाईं जी के लिंग के दर्शन आज होंगे । वो जल्दी से धोती खोलती है और उसकी नज़र मशाल के रोशनी में चमकते लिंग पर अड़ जाती है । गोसाईं जी आट के बगल से एक बोतल नुमा बर्तन उठाते है और प्राची को कहते है कि ये एक जड़ी बूटी का रस है इसी पियों । प्राची दो तीन घुट पीती है स्वाद में नमकीन सा होता है और पीने के बाद प्राची को शरीर हल्का लगने लगता है और मन एकदम शांत ।
गोसाईं जी बर्तन को वापस उसकी जगह पर रखते है और प्राची के स्तनों को अपने हाथ में लेते है । प्राची बिना शरमाए अपने जगह पे खड़ी होती है गोसाईं जी प्राची को खींचते हुए अपने आसन में आट में बैठ जाते है और प्राची को अपनी गाड़ी में बैठा के स्तनों को सहलाने लगते है, प्राची के स्तन दूध से भरे होने के कारण एकदम सख़्त हो गए और गोसाईं जी के छुअन के कारण प्राची की चूत पानी छोडने लगती है। गोसाईं जी प्राची के स्तन में अपना मुँह रख के एक एक करके चूसना चालू करते है । प्राची कभी भी आशीष को दूध नहीं पिलाई थी इसीलिए उसको किसी मर्द के चूसने की आदत नहीं थी और यहाँ तो गोसाई जी अपना पूरा ताक़त लगा के चूस रहे थे । प्राची का दूध गोसाईं जी किसी बच्चे के तरह पीने लगे और पीते पीते उनके लिंग में सख्ती आने लगी जो प्राची पाने जांघो के पास महसूस कर रही थी । प्राची को लग रहा की अगर दूध खत्म हो जाए और ये चूसते रहे तो खून निकल जाएगा । दरअसल प्राची ने जो रस पिया था उसने ऐसी जड़ी बूटिया थी जो दर्द को कम कर देती है इसीलिए उसे बहुत ज़्यादा दर्द का एहसास नहीं हो रहा था । गोसाईं जी ने एक एक करके दोनों सस्तनों को ख़ाली कर दिया , और उनका हाथ नीचे प्राची की चूत को ओर जाने लगी प्राची उनके गोद में ही बैठे बैठे अपना पैसा खोलके गोसाईं जी को अपनी चूत सौप देती है । गोसाईं जी की उँगलिया चूत को रगड़ने लगती है इतनी सख़्त प्राची को लगता है जैसे किसी पत्थर पे अपनी चूत घिस रही हो । प्राची की चूत अब इतना पानी छोड़ रही थी कि उसके रस से गोसाईं जी का लिंग भीगने लग गया। गोसाईं जी ने प्राची को उठा कर अपना लिंक उसकी चूत में रख कर उसको बैठा देते है । गोसाईं जी का लंड अब पूरा तना था और आशीष की तुलना में लगभग दुगना लंबा और मोटा था । प्राची धीरे धीरे लिंड पे बैठती और दर्द के साथ उसके अंदर लेते रहती है जब पूरा लंड प्राची अंदर ले लेती है तो उसमे उछल उछल के मज़े लेती है । उसका पहला पराया लंड जो वो अपने नानी के गाँव मे आके ले रही है प्राची ने ऐसा कभी सोंचा भी नहीं था । प्राची पसीने से पूरी तरह से तर हो गई और गोसाईं जी को का के पकड़ के उनके लिंग पर ही झड़ जाती है । गोसाईं जी अपना लिंग अंदर रखे हुए ही प्राची को उठा के नीचे चटाई पे लेटा देते है और प्राची के अपर आके धीमे धीमे धक्का मारते है हर धक्के में लिंग की जड़ तक अंदर घुसते है और बाहर निकलती समय टोपा तक बाहर निकाल कर वापस लिंग धीरे से पूरा अंदर । लिंग जैसे पूरी लंबाई में अंदर होता प्राची को लगता की उसकी सांस अटक गई है । गोसाईं जी का धक्को की रफ़्तार और गहराई हर बार एक समान थी प्राची को जल्द ही दूसरे बार झाड़ गई । गोसाईं जी के धक्के उसी रफ़्तार से जारी रहे प्राची गोसाईं जी के पसीनों से पूरी तरह नहा चुकी थी और अब पसीने के कारण दोनों के शरीर का रगड़न भी अलग सुख दे रहा था । प्राची तीसरे बार झड़ती है और उसे लगता है अब गोसाईं जी रुकेंगे लेकिन गोसाईं जी अपने धक्के उसी रफ़्तार से जारी रखते है , प्राची को अब चूत में जलन होने लगती है और अब चूत की पानी भी तीन भर झाड़ने के कारण सूख रही होती है प्राची चाहती है की गोसाईं जी अब रुके वो हाथ से रोककर विरोध भी दिखाती है लेकिन गोसाईं जी को सीधे बोलने की हिम्मत नहीं करती , गोसाईं जी अपना धक्के जारी रखते है और प्राची जलन बढ़ता है और पेट में गोसाईं जी का वजन होने के कारण उसको लगता है की उसका मूत निकल जाएगा। प्राची दर्द से चिल्ला कर कहती है रुक जाइए गोसाईं जी मेरा मूत निकल जाएगा , गोसाईं जी धक्का तेज के देते है और रफ़्तार बढ़ा कर चोदने लग जाते है , प्राची अपना आँख बंद कर देती है और गोसाईं जी भी अपना आँख बंद करके अब पूरे रफ़्तार में छुड़ाई करते रहते है , प्राची को अब बरसात से बाहर हो जाता है और उसकी चूत से मूत की धार गोसाईं जी के लिंग के ऊपर ही छुट जाती है । गोसाईं जी नीचे में मूत्र की धार से अपना लिंग धोने के बाद उसे बाहर निकालते है प्राची निढाल होके ज़मीन पर ही पड़ी रहती है , गोसाईं जी बगल में लेट जाते है ।
प्राची थोड़े देर में होश में आके देखती है की गोसाईं जी वही सो गए है उनका लिंग और जांघ अभी भी गीला था और प्राची का भी । प्राची अचंभे में थी की कोई इतना कैसे चोद सकता है और गोसाईं जी तो झड़े भी नहीं। छुड़ाई से उसका बदन पूरा थका और दर्द से भरा हुआ था इसीलिए वो भी वही ज़मीन पर पड़े पड़े सो गई ।
सुबह सुबह गोसाईं जी ने प्राची को जगाया, प्राची की कंघे और पेट मूत्र के कारण चिप चिप कर रहा था और गोसाईं जी का भी वही हाल था ।
प्राची को उठा के वो बाहर ले चलते है , प्राची उनसे बँधी हुई गुफा के बाहर आती है । गोसाईं जी उसे थोड़ी दूर ले जाके अपने साथ शौच के लिए बैठते है प्राची दूसरे तरफ़ मुँह करके खड़ी हो जाती , गोसाईं जी उनसे कहते है तुम भी अभी कर लो फिर मैं बाहर नहीं लाऊँगा तुमको और एक चिकना पत्थर दे कर कहते है कि इससे साफ़ करना । प्राची शरम के मारे तार तार हो जाती है लेकिन जानती है कि वो सही में वापस नहीं ला सकते उनको इसीलिए उनका कहा मानती है ।
शौच करके दोनों गुफा वापस आते है और गोसाईं जी उसको बाँध के कहते है कि तुम अब ध्यान लगाओ और गुफा से बाहर चले जाते है ।
आगे और…..
प्राची को उसके माँ बाप तय समय में वापस गाँव ले आते है । प्राची ने अपनी माँ को चुदते हुए देख के समझ लिया था की उसका हाल भी वही होने जा रहा है । वो वापसी में डरी हुई भी थी लेकिन उसने गोसाईं जी के लंड को हाथ में जब से लिया था तब से उनसे संभोग के लिए तरस रही थी । डर के ऊपर हवस हावी था । प्राची अब पूरा मन बना के आई थी कि अब जो भी हो वो उसने पूरा साथ देगी ।
गाँव पहुँचने के बाद फिर से शीला प्राची को गोसाईं जी के झोपड़ी में ले गई वहाँ नैनी बाहर ही मिली और प्राची और शीला को अंदर लेके गोसाईं जी के पास ले गई ।
गोसाईं जी : शीला कल से प्राची की दीक्षा चालू हो जाएगी । तुम अब 21 दिन बाद इसे लेने आना ।
शीला : जी गोसाईं जी ।
शीला प्राची को अंदर छोड़ के अपने घर वापस चली जाती है । झोपड़ी के अंदर गोसाईं जी नैनी से सब तैयारी के बारे में पूछते है । नैनी ने सब कुछ रेडी करके प्राची को अपने साथ बाहर ले जाती है ।
प्राची आज साड़ी और ब्लाउज पहन के आई है और अंदर कुछ नहीं जैसा की शीला ने उसे समझाया था, उसके पास इन कपड़ो के अलावा कोई सामान नहीं होता और शीला के कहे अनुसार उसने अपने अंदर के सब बाल भी साफ़ करवा लिए थे ।
नैनी बाहर प्राची को पीछे चलने कहती और पूछती है : तुमने खाने पीने में परहेज रखा था ना ?
प्राची: जी गोसाईं जी ने जैसे बोला था वैसे ही मैंने किया है ।
नैनी: बहुत अच्छा । और अपना शरीर साफ़ कर लिए हो या नहीं ?
प्राची: जी मैंने सारे बाल साफ़ करके अच्छे से अपना बदन साफ़ करके आई हूँ ।
नैनी : आज रात से दीक्षा चालू होगी । तुमको पूरा 21 दिन गुफा से निकालना नहीं है । गोसाईं जी आते जाते रहेंगे और तुमको उनकी हर एक बात पत्थर की लकीर मानके माननी पड़ेगी तभी दीक्षा सफल होगी । और तुमको कुछ पूछना है ?
प्राची सोचने लग जाती है और उसके मन में सवाल तो बहुत थे लेकिन वो जानती थी की पूछने से कोई मतलब नहीं उल्टा उसका डेयर बढ़ेगा । इसीलिए वो नैनी से बोलती है : आप की तरफ़ से कोई सलाह दे दीजिए ।
नैनी: बस जैसा बोलते है बिना सवाल करे उनको मानो , और कुछ नहीं ।
दोनों चलते चलते गुफा के बाहर आ जाते हैं । नैनी प्राची को कपड़े उतारने को कहती है । प्राची अपने सारे कपड़े उतार के नैनी को दे देती है ।
नानी: अब तुम अंदर जाके आराम करो । मैं शाम में आऊँगी ।
प्राची अंदर घुसती है, गुफा में इस बार पहले से कुछ सामान ज़्यादा होते है : एक सूती की साड़ी होती है और कुछ फल भी आट में रखे होते है । चटाई और एक घड़े में पानी और मिट्टी के ही कुल्हड़ रखे होते है । प्राची पानी पी के साड़ी लपेटती है और चटाई नीचे बिछा के उसके लेटती है । गुफा के अंदर माहौल एकदम शांत और ठंडा होता है , प्राची वैसे तो अकेले डरती है लेकिन गुफा में वो निश्चिंत होके नीचे सो जाती है। शाम होने पे नैनी ने प्राची को जगाया उसके लिए खाने के लिए हरी सब्जी और अंडा देती है । प्राची दोपहर से अब लगभग चार घंटे की नींद पूरी कर चुकी है और अब एकदम फ्रेश फील कर रही है , नैनी प्राची को समझाती है कि रात में गोसाईं जी आयेंगे और अब तुमको इस गुफा से बाहर नहीं निकलना है और इतना कह के वो वापस चली जाती है । प्राची के पास अब इंतज़ार करने के अलावा कुछ काम नहीं होता है । वो उस जगह पर गोसाईं जी और उसकी माँ की चुदाई के बारे में याद करती है, वो सोचाती है कि इस जगह कितने लोगो की चुदायी गोसाईं जी में किया होगा , और आज उसकी बारी है । वो जल्द से जल्द गोसाईं जी के नीचे आना चाहती है और आज रात में उसकी ख्वाहिश पूरी होना है ये जानती है । गुफा के अंदर समय का पता नहीं चलता , प्राची इंतज़ार करती है और इंतज़ार करते करते उसकी आँख लग जाती है । थोड़ी आहट से प्राची को नींद खुलती है वो अपने को संभालते हुए उठती है , गोसाईं जी धोती में उसके सामने होते है । प्राची उनको दंडवत प्रणाम करती है । गोसाईं जी प्राची को उठाते हुए बोलते है : अब तुमको 21 दिन तक मुझे प्रणाम करने की आवश्यकता नहीं है ।
और गोसाईं जी जाके अपने आट पर बैठ जाते है । प्राची भी सामने बैठती है । गोसाईं जी: क्या तुमने मेरी बातों का पालन किया है ?
प्राची: जी ।
गोसाईं जी: बहुत अच्छा : अपने वस्त्र निकाल दो ।
प्राची सूती कपड़े को निकाल के रख देती है और पूरी नंगी गोसाईं जी के सामने खड़ी होती है ।
गोसाईं जी: आज रात से तुम्हारी दीक्षा खत्म होने तक तुम मुझसे बँधी रहोगी हर समय , हर काम तुम मुझसे पूछ के करोगी मूत्र और शौच भी । जब भी मुझे गुफा से बाहर जाना होगा तुमको बांध के जाऊँगा मेरे आने तक तुम उस बंधन को खोल नहीं सकती । नैनी जो खाना लाएगी उतना ही खाओगी , हाँ पानी जितना चाहो पी सकती हो । समय समय पर मैं तुमको नियम बताते रहूँगा तुम ध्यान से सुनना और समझना ।तुम्हारा काम अपने आप को बदलना है । तुम अपने मन को दृढ़ बना के रखो ।
प्राची : जी गोसाईं जी ।
इतने में गोसाईं जी एक मजबूत कपड़े की बनी रस्सी से अपना पैर और प्राची का पैर बाँध देते है । रस्सी लंबा था और दोनों आराम से उसमे चल सकते थे, गोसाईं जी प्राची से उनका धोती खोलने को कहते है । प्राची सुनके मन ही मन खुस होती है की फिर से गोसाईं जी के लिंग के दर्शन आज होंगे । वो जल्दी से धोती खोलती है और उसकी नज़र मशाल के रोशनी में चमकते लिंग पर अड़ जाती है । गोसाईं जी आट के बगल से एक बोतल नुमा बर्तन उठाते है और प्राची को कहते है कि ये एक जड़ी बूटी का रस है इसी पियों । प्राची दो तीन घुट पीती है स्वाद में नमकीन सा होता है और पीने के बाद प्राची को शरीर हल्का लगने लगता है और मन एकदम शांत ।
गोसाईं जी बर्तन को वापस उसकी जगह पर रखते है और प्राची के स्तनों को अपने हाथ में लेते है । प्राची बिना शरमाए अपने जगह पे खड़ी होती है गोसाईं जी प्राची को खींचते हुए अपने आसन में आट में बैठ जाते है और प्राची को अपनी गाड़ी में बैठा के स्तनों को सहलाने लगते है, प्राची के स्तन दूध से भरे होने के कारण एकदम सख़्त हो गए और गोसाईं जी के छुअन के कारण प्राची की चूत पानी छोडने लगती है। गोसाईं जी प्राची के स्तन में अपना मुँह रख के एक एक करके चूसना चालू करते है । प्राची कभी भी आशीष को दूध नहीं पिलाई थी इसीलिए उसको किसी मर्द के चूसने की आदत नहीं थी और यहाँ तो गोसाई जी अपना पूरा ताक़त लगा के चूस रहे थे । प्राची का दूध गोसाईं जी किसी बच्चे के तरह पीने लगे और पीते पीते उनके लिंग में सख्ती आने लगी जो प्राची पाने जांघो के पास महसूस कर रही थी । प्राची को लग रहा की अगर दूध खत्म हो जाए और ये चूसते रहे तो खून निकल जाएगा । दरअसल प्राची ने जो रस पिया था उसने ऐसी जड़ी बूटिया थी जो दर्द को कम कर देती है इसीलिए उसे बहुत ज़्यादा दर्द का एहसास नहीं हो रहा था । गोसाईं जी ने एक एक करके दोनों सस्तनों को ख़ाली कर दिया , और उनका हाथ नीचे प्राची की चूत को ओर जाने लगी प्राची उनके गोद में ही बैठे बैठे अपना पैसा खोलके गोसाईं जी को अपनी चूत सौप देती है । गोसाईं जी की उँगलिया चूत को रगड़ने लगती है इतनी सख़्त प्राची को लगता है जैसे किसी पत्थर पे अपनी चूत घिस रही हो । प्राची की चूत अब इतना पानी छोड़ रही थी कि उसके रस से गोसाईं जी का लिंग भीगने लग गया। गोसाईं जी ने प्राची को उठा कर अपना लिंक उसकी चूत में रख कर उसको बैठा देते है । गोसाईं जी का लंड अब पूरा तना था और आशीष की तुलना में लगभग दुगना लंबा और मोटा था । प्राची धीरे धीरे लिंड पे बैठती और दर्द के साथ उसके अंदर लेते रहती है जब पूरा लंड प्राची अंदर ले लेती है तो उसमे उछल उछल के मज़े लेती है । उसका पहला पराया लंड जो वो अपने नानी के गाँव मे आके ले रही है प्राची ने ऐसा कभी सोंचा भी नहीं था । प्राची पसीने से पूरी तरह से तर हो गई और गोसाईं जी को का के पकड़ के उनके लिंग पर ही झड़ जाती है । गोसाईं जी अपना लिंग अंदर रखे हुए ही प्राची को उठा के नीचे चटाई पे लेटा देते है और प्राची के अपर आके धीमे धीमे धक्का मारते है हर धक्के में लिंग की जड़ तक अंदर घुसते है और बाहर निकलती समय टोपा तक बाहर निकाल कर वापस लिंग धीरे से पूरा अंदर । लिंग जैसे पूरी लंबाई में अंदर होता प्राची को लगता की उसकी सांस अटक गई है । गोसाईं जी का धक्को की रफ़्तार और गहराई हर बार एक समान थी प्राची को जल्द ही दूसरे बार झाड़ गई । गोसाईं जी के धक्के उसी रफ़्तार से जारी रहे प्राची गोसाईं जी के पसीनों से पूरी तरह नहा चुकी थी और अब पसीने के कारण दोनों के शरीर का रगड़न भी अलग सुख दे रहा था । प्राची तीसरे बार झड़ती है और उसे लगता है अब गोसाईं जी रुकेंगे लेकिन गोसाईं जी अपने धक्के उसी रफ़्तार से जारी रखते है , प्राची को अब चूत में जलन होने लगती है और अब चूत की पानी भी तीन भर झाड़ने के कारण सूख रही होती है प्राची चाहती है की गोसाईं जी अब रुके वो हाथ से रोककर विरोध भी दिखाती है लेकिन गोसाईं जी को सीधे बोलने की हिम्मत नहीं करती , गोसाईं जी अपना धक्के जारी रखते है और प्राची जलन बढ़ता है और पेट में गोसाईं जी का वजन होने के कारण उसको लगता है की उसका मूत निकल जाएगा। प्राची दर्द से चिल्ला कर कहती है रुक जाइए गोसाईं जी मेरा मूत निकल जाएगा , गोसाईं जी धक्का तेज के देते है और रफ़्तार बढ़ा कर चोदने लग जाते है , प्राची अपना आँख बंद कर देती है और गोसाईं जी भी अपना आँख बंद करके अब पूरे रफ़्तार में छुड़ाई करते रहते है , प्राची को अब बरसात से बाहर हो जाता है और उसकी चूत से मूत की धार गोसाईं जी के लिंग के ऊपर ही छुट जाती है । गोसाईं जी नीचे में मूत्र की धार से अपना लिंग धोने के बाद उसे बाहर निकालते है प्राची निढाल होके ज़मीन पर ही पड़ी रहती है , गोसाईं जी बगल में लेट जाते है ।
प्राची थोड़े देर में होश में आके देखती है की गोसाईं जी वही सो गए है उनका लिंग और जांघ अभी भी गीला था और प्राची का भी । प्राची अचंभे में थी की कोई इतना कैसे चोद सकता है और गोसाईं जी तो झड़े भी नहीं। छुड़ाई से उसका बदन पूरा थका और दर्द से भरा हुआ था इसीलिए वो भी वही ज़मीन पर पड़े पड़े सो गई ।
सुबह सुबह गोसाईं जी ने प्राची को जगाया, प्राची की कंघे और पेट मूत्र के कारण चिप चिप कर रहा था और गोसाईं जी का भी वही हाल था ।
प्राची को उठा के वो बाहर ले चलते है , प्राची उनसे बँधी हुई गुफा के बाहर आती है । गोसाईं जी उसे थोड़ी दूर ले जाके अपने साथ शौच के लिए बैठते है प्राची दूसरे तरफ़ मुँह करके खड़ी हो जाती , गोसाईं जी उनसे कहते है तुम भी अभी कर लो फिर मैं बाहर नहीं लाऊँगा तुमको और एक चिकना पत्थर दे कर कहते है कि इससे साफ़ करना । प्राची शरम के मारे तार तार हो जाती है लेकिन जानती है कि वो सही में वापस नहीं ला सकते उनको इसीलिए उनका कहा मानती है ।
शौच करके दोनों गुफा वापस आते है और गोसाईं जी उसको बाँध के कहते है कि तुम अब ध्यान लगाओ और गुफा से बाहर चले जाते है ।
आगे और…..


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