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Fantasy तांत्रिक बहू
#3
अध्याय २ गोसाई जी
 
रात में खाने के बाद शीला प्राची के कमरे में जाती है
शीला : आज मैं यही सो रही हूँ ।
प्राची : नहीं आप अपने कमरे में ही सोइए मैं ठीक हूँ ।
शीला : नहीं बेटा आज मैं तुम्हारे साथ ही सोने वाली हूँ ।
प्राची बच्चे को सुला के और सब काम करके बिस्तर पर आती है । उसे शीला का वहाँ होना अच्छा भी लग रहा था क्योंकि वो अकेले और निसहाय महसूस कर रही थी ।
शीला : बेटा तेरा जीवन को पटरी पर लाने का एक तरीका है मेरे पास ।
प्राची : अब इतना लड़ाई होने के बाद मुझे लगता नहीं की कुछ ठीक होगा ।
शीला : देख लोग दो तरह के होते है एक तो दबने वाले और दूसरे दबाने वाले, तू अभी तक इनसे दब के चल रही थी और तेरी ज़िंदगी सही नहीं चल रही थी  लेकिन अब तू इनको दबा के चलेगी फिर देखना कैसे सब ठीक होता है ।
प्राची : मैं कुछ समझी नहीं अब ये लोग क्यों मेरे से दबने लगे ?
शीला : लगेंगे और देखना सब तेरे इशारों पर नाचेंगे भी ।
प्राची : कैसे ?
शीला : तंत्र से ।
प्राची : लेकिन बाबा तो पहले ही हाथ खड़ा कर चुके है ?
शीला : हाँ लेकिन गोसाईं जी ख़ुद नहीं करेंगे लेकिन तेरे को सिखायेंगे और एक एक करके तू सबको अपने वश में कर सकती है ।
प्राची : मुझे इन बातों में यकीन नहीं माँ, पता नहीं क्यों आपलोग इन चक्करों पड़े रहते हो ।
शीला : बेटा बहुत साल पहले जब तेरे नाना की तबीयत ख़राब थी उसी समय तेरी नानी ने तंत्र सीखा था उसके कुछ साल बाद मैंने भी गोसाईं जी से दीक्षा ली और तब से हमारे जीवन हमारे कंट्रोल में चल रहा है ।
प्राची चौकते हुए पूछती है : क्या आप भी ? तंत्र मंत्रा जानते हो ?
शीला : हाँ .
प्राची : मुझे तो एहसास भी नहीं था की ये सब चीज़ें आपको आती होंगी ?
शीला : इसीलिए मैं एक अच्छी तांत्रिक हूँ जिसको अपनी विद्या छुपानी आती है ।
प्राची : तो आप ही मुझे सीखा दो ?
शीला : गोसाईं जी के बहुत से शिष्य और शिष्या है तुम भी उन्ही से दीक्षा लो । यही सबसे अच्छा रहेगा ।
प्राची : करना क्या होगा ?
शीला :अपने आप को बदलना होगा । समर्पण करना होगा और गोसाईं जी के आदेशों को मानना होगा ?
प्राची : कैसा समर्पण ?
शीला : सब कुछ । तुम्हारे प्यार और नफ़रत दोनों को गोसाईं जी मिटा देंगे और तुमको एक नया इंसान बनायेंगे जिसके कारण तुम आसानी से दूसरों पर नियंत्रण रख पाओगी ?
प्राची : मतलब मेरे ससुराल वालो पर ?
शीला : उनपर भी और जिसपर भी तुम चाहो ।
प्राची थोड़ा खुश होती है क्योंकि उसके मन में एक आशा की किरण शीला ने जगा दी थी लेकिन उसके मन में बहुत से सवाल होते है जो वो क्लियर करना चाहती थी ।
प्राची : कितने दिनों तक गोसाईं जी सिखाते है ?
शीला : लगभग इक्कीस दिनों तक ।
प्राची : उसके बाद में मैं सब तंत्र सीख जाऊँगी ?
शीला : वो अथाह सागर है जो तुम उम्र भर सीखती रहोगी । गोसाईं जी केवल तुमको मूलभूत चीज़ें सिखायेंगे ।
प्राची : क्या ये सही में काम करेगा माँ ?
शील : हाँ बेटा लेकिन इसको अपनी सारी ताक़त लगा के सीखना ये तुम्हारी आख़िरी रास्ता है और एक बार तंत्र की दुनिया में गए तो वापस भी नहीं आ पाओगी । इसमें पागलपन से मौत तक सब कुछ संभव रहता है , सम्भाल के सीखना, गुप्त रखना और जरूरत होने पर ही इस्तेमाल करना बस यही इसमें सुरक्षित चलने का मंत्र है ।
प्राची : हम कब से शुरू करे ?
शीला : इस इतवार हम लोग गोसाईं जी के पास जाते है ।
प्राची अब शांत होके सोचती है कि कितना अच्छा होगा जब आशीष और उसकि माँ प्राची की बात मानेंगे और वो यही सब सोचते सोचते सो जाती है । प्राची को ये एहसास ही नहीं था की वो क्या बनने वाली है और ये तंत्र की दुनिया कितनी खतरनाक है ।
 
रविवार
सुबह चार बजे शीला , प्राची और उसके पिता जी गाँव के लिए निकलने है । कार में प्राची सोचती है कि आज लगभग पंद्रह साल बाद वो अपने नानी के गाँव में जा रही है वहाँ अब सब कुछ बदल चुका होगा । कार लगभग साड़े आठ बजे गाँव में पहुँचती है प्राची देख के हैरान थी की यहाँ कुछ भी नहीं बदला, उतने ही घर वही जंगल और एकदम ख़ाली गाँव। कुछ झोपड़ियों को पार करके वो एक कच्चे मकान में रुकते है जो उसकी नानी का घर था । घर में अब कोई नहीं रहता था लेकिन घर साफ़ सुथरा था क्योंकि शीला गाँव के एक आदमी को कुछ पैसे दे कर उसको साफ़ सुथरा रखवातीं थी । घर के अंदर दो रूम और किचन था । एक रूम में जाके पिता जी लेट गए और प्राची और शीला घर से लगे बाडी में पीछे चले गए ।
शीला : बेटा आज से तेरी नई जिंदगी शुरू होगी । तू अब अपने आप को ढालने के लिए त्यार रह ।
प्राची : मैं क्या करूँ ?
शीला : शर्माना छोड़ दे ।
शीला ये बोलते हुए अपनी साड़ी ऊपर करती है प्राची के सामने ही बैठ के पेशाब की तेज़ धार छोड़ते हुए बोलती है : हम इंसान अपने आप को बहुत नियमों से बांधे हुए है लेकिन हम है तो जानवर की तरह ही । तंत्र विद्या हमको अपने मूल स्वभाव में रहना सिखाती है ।
इतना बोलने के बाद मूत्र की धार बंद होती है और शीला उठ के सादी बीच करके खड़ी हो जाती है । प्राची का ध्यान शीला के बातों में कम और उसकी शरीर में जायदा था पहली बार उसने अपनी माँ के चूत को देखा  , एकदम चिकना , बिना बाल के और पचास के उम्र में भी तीस साल थी औरतों जैंसा शरीर था । खैर प्राची ने ये तो सुन रखा था कि तंत्र मंत्र वाले लोग शर्म हया छोड़ देते है लेकिन उसको लगा की साफ़ सुथरा रहते होंगे इसीलिए अपनी माँ को प्राची ताकते हुए बोली : आप बिना धोए कैसे खड़े हो गए ।
शीला : यही तो तुमको सीखा रही की अब जानवरो जैसा व्यवहार सीखो । अपने मन की सुनो और अपनी इच्छा पर ज़्यादा ध्यान दो ना की समाज ने तुमको जो सिखाया है उस पर। तुम्हारा शरीर तुमको ख़ुद बताएगा की कब क्या करना है । चलो तुम भी। चार घंटे से कार में हो पेशाब कर लो ।
प्राची : अपना साड़ी  ऊपर और पैंटी नीचे करती है और नीचे बैठ कर पेशाब की धार छोड़ना चालू करती है ।
शील लगातार प्राची के चूत को घूरते रहती है जिसके कारण प्राची शर्मा भी जाती है लेकिन वो दिखाती नहीं क्योंकि उसको पता था कि शीला उसे क्या सिखाना चाह रही है । प्राची पेशाब करके जैसे ही उठ रही होती तो शीला उसको उसकी पेंटी माँगती है ।
प्राची चुप चाप पेंटी शीला को दे देती है और शीला अंदर कमरे में आके पेंटी उसके पापा को दे देते है जो बिना कुछ बोले उसको बैग में रखते है । प्राची शर्म में तार तार हो जाती है लेकिन कुछ नहीं कहती । रास्ते से आते समय ही खाने का कुछ सामन रख लिया था उसी को खा के लगभग ग्यारह बजे शीला और प्राची दोनों गोसाईं जी के घर के लिए निकलते है , पिताजी अपने रूम में ही आराम कर रहे होते है ।
प्राची रास्ते में शीला से पूछती है : पापा को पता है आपके तांत्रिक होने की बात ?
शीला : हाँ उनको सब पता है ।
प्राची : उनको आपत्ति नहीं है ?
शीला : कैसे हो सकती है , तुम भी सीखो देखो फिर आशीष को तुम्हारे किसी चीज़ में आपत्ति ही नहीं होगी ।
शीला आगे आगे और प्राची उसके पीछे जंगल में अंदर पगडंडी में चले जा रहे कुछ देर चलने के बाद उनको एक झोपड़ी दिखाई दी जहाँ बाहर एक औरत अनाज साफ़ कर रही थी वो शीला को देख के खड़े हुई और पास एक पैर छू कर शीला से आशीर्वाद लिया । प्राची को अब ये ज़्यादा हैरानी की बात नहीं लग रही थी उससे एहसास था कि उसकी माँ इस गाँव की पुरानी रहने वाली है तो सब उसे जानते ही होंगे । शीला ने प्राची को उससे मिलवाया उसका नाम नैनी था, वो गोसाईं जी के शिष्या थी । नैनी ने बताया कि गोसाईं जी अंदर है , शीला प्राची को चलने का इशारा किया और दोनों अंदर झोपड़ी में घुस गए । अंदर एक सफेद दाढ़ी में धोती पहने, पतले लेकिन लगभग छह फीट ऊंचे गोसाईं जी समाधि लगा के बैठे थे । शीला दण्डवत होके उनको प्रणाम किया और प्राची ने भी वैसे ही किया । गोसाईं जी ने आँख खोली और शांत स्वर में कहा : शीला ? तू आ गई फिर ?
शीला : प्रणाम। मेरी बेटी आपसे दीक्षा लेना चाहती है , इसकी तकलीफ़ भी दूर कर दीजिए ।
गोसाईं जी का नज़र शीला पर टिका रहता है और कहते है : आज कल के लड़कियां अब इस दीक्षा को नहीं सीख पाएगी, उतना सब्र और समर्पण नहीं है ।
इतने में प्राची शीला को काटते हुए कहती है : मैं सीखना चाहती हूँ गोसाई जी मैं वो सब करूँगी जो आप कहोगे । मैं सब्र और समर्पण पूरा दिखाऊँगी ।
गोसाई जी: अच्छा है जिसको करना है वो ही बात करे ? सीख के क्या करोगी ?
प्राची: मुझे अपना जीवन सही करना है ।
गोसाईं जी: किसी से बदला लेना है?
प्राची : नहीं गोसाईं जी । मैं चाहती हूँ कि मेरा बच्चा अपने बाप के साथ अच्छे से रहे ।
गोसाईं जी : जब सीखने आओगी तो बच्चा कहाँ रहेगा ?
शीला: मेरे पास ।
गोसाईं जी: महीना कब आया था आख़िर ?
प्राची इन सवालों के लिए तैयार थी क्योंकि शीला के बात उसको समझ आ गई थी कि शरम हया छोड़ना होगा ।
प्राची: तीन हफ़्ते हो गए ।
गोसाईं जी: तुम लोग अभी गुफा में चलो ।
गोसाईं जी अपना आँख बंद कर लेते है । शीला प्राची को उठने का इशारा करती है और बिना कुछ कहे झोपड़ी से बाहर निकल कर जंगल में अंदर चलने लगती है प्राची बिना कोई सवाल के शीला के पीछे चलती है पास में ही एक गुफा के बाहर जाकर शीला अपना साड़ी और ब्लाउज़ उतार के एक पेड़ पर रखती है और प्राची को भी वैसे करना का इशारा करती है । प्राची के नंगी होने के बाद शीला प्राची को आगे जाने के लिए कहती है गुफा में एक बार में एक ही आदमी घुस सकते थे और प्राची के पीछे पीछे शीला भी घुसती है । गुफा के अंदर एक कमरे का जगह था मशाल जल रही थी  , गुफा ठंडी और एकदम शांत थी , नीचे ज़मीन में नर्म मिट्टी और आगे एक पत्थर में चीते का खाल था जिसमे गोसाईं जी बैठते थे । शीला और प्राची दोनों मिट्टी पर बैठ गए । दोनों का बदन साँवला और आग की रोशनी में सोने सा चमक रहा था । प्राची का कसा हुआ और शीला का गदराया बदन का चमक अलग अलग थी लेकिन जहाँ शीला का बदल बिना बाल के था प्राची पे चूत और गांड में जंगल बना हुआ था । प्राची अपनी माँ की खूबसुरती देख के दंग थी और साथ ही उसे अपने बाल बढ़े होने के कारण शरम भी आ रही थी ।
थोड़े देर में ही गोसाईं जी गुफा के अंदर आये, वो केवल धोती में थे उनका शरीर पूरा काला था और उम्र लगभग 65 की थी बदन चुस्त और कसा हुआ था , गोसाईं जी का शरीर पतला और ऊँचाई 6  फीट से ज़्यादा की थी । गोसाईं जी का व्यक्तित्व आकर्षक था प्राची जैसे जवान औरत को भी उनका डील डौल देख के उनके प्रति सम्मोहन सा हो गया ।
गोसाईं जी सामने पत्थर की आट पर जा के विराजे और बोले : जब तुम्हारा महीना ख़त्म होगा तब तुम वापस आना 21 दिन की पूजा होगी , पूरे मन से करना होगा , बिना सवाल किए और आज से तुम केवल दो वक्त का खाना खाओगी पूजा तक जिसमे हरे पत्ते की सब्जी और सलाद होगी, हल्दी का प्रयोग नहीं करना है  , किसी भी प्रकार की दवाई नहीं लोगो और ना ही किसी प्रकार का नशीला सामान । संभोग भी नहीं लेना है और ना ही हस्तमैथुन । महीना चालू होते ही बच्चे को अपना दूध पिलाना बंद कर देना ।
 
प्राची : जी गोसाईं जी ।
गोसाई जी प्राची को देख कर : तुम अपना सारा ध्यान अब दीक्षा लेने में लगाओं जो भी पारिवारिक समस्या है वो सब भूल जाओ ।
प्राची : जी गोसाईं जी ।
गोसाईं जी : अब आशीर्वाद लेके तुम लोग चले जाओ ।
इतना बोलके गोसाईं जी अपने आट पर किसी कुर्सी में बैठने वाले अवस्था में बैठ के आँख मूँद लेते है , शीला घुटनों में चल कर गोसाईं जी के पास जाते है और बैठे बैठे ही उनके धोती में हाथ डाल कर उनके लिंग को सहलाते है , प्राची देखती है कि गोसाईं जी के मुंह का भाव वही बना रहता है और शीला लिंग में हाथ फेरते हुए धोती को हटा देते है प्राची के सामने गोसाईं जी का लटकता हुआ लिंग होता है, काला और चमकता हुआ जैसे रोज़ उसने तेल की मालिश होती हो , प्राची ने आजतक केवल आशीष का लिंग ही सामने से देखी होती है और उसके मुक़ाबले में ये लटका हुआ लिंग आशीष के उत्तेजित लंड से ज़्यादा बड़ा और मोटा था , अंडे आशीष के दो के बराबर इनका एक था और ज़लटका हुआ था । अंडे की चमक ऐसी थी कि प्राची का मन उसको गुलाब जामुन की तरह मुंह में लेके चूसने को कर गया । शीला के बार बार हाथ फेरने पर भी गोसाईं जी का लिंग उत्तेजित अवस्था में नहीं आया और शीला ने लिंग माथे में लगा के प्राची को भी ऐसे ही आशीर्वाद लेने को कहा । प्राची उठी और लिंग को अपने हाथ में लेकर सहलाने लगी , प्राची को लगा कि वो जैसे किसी मलमल के थैले पर लगा रही है , प्राची का हाथ पड़ते ही गोसाईं जी को भाँओ में थोड़ा सिकुड़न हुआ शायद किसी नए हाथ के चयन के कारण और प्राची ने लिंग को माथे से लगा कर छोड़ दिया । प्राची उठ कर जाने लगी और शीला उसके पीछे मुड़ी तभी गोसाईं जी खड़े होकर शीला को पीछे से पकड़ लिया और झुका दिया शीला ने अपनी गांड और चूत ऊपर उठाकर झुक के खड़े हो गई । प्राची ने हलचल महसूस करके पीछे देखा , अपनी माँ को झुके हुए और गोसाईं जी पीछे से अपना कमर उसकी माँ के कमर से मिला दिया था , आँखे बंद थी लेकिन दोनों में से कोई भी हिल डुल नहीं रहे थे । वैसे ही लगभग 10 मिनट रहने के  बाद गोसाईं जी के हाथ पैर अकड़ गए जानो वो अपने लिंग को और अंदर धकेल रहे हो और शीला की चीख निकल गई । गोसाईं जी अलग होके वापस अपनी जगह पर बैठ गए और शीला अपने जगह पर नंगी खड़ी पैर काँप रहे थे और कंघी में चूत  का पानी बह रहा था। शीला ने प्राची को चलने का इशारा किया दोनों बाहर आकर अपना कपड़ा पहने । प्राची के मन में बहुत सवाल था लेकिन वो शीला से इस वक्त पूछना उचित नहीं समझी । वापस घर एट तक शाम हो गई , उनके पापा उसी रूम में ही आराम के रहे थे । इनके अति ही सारा सामान कार में डाल के वापस शहर के लिए निकल गए । शीला कार में भाईचारे ही सो गई और प्राची अभी भी ये समझने की कोसिस में थी की वो सही कर रही है या नहीं ।
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तांत्रिक बहू - by Gomzey - 23-11-2025, 03:30 PM
RE: तांत्रिक बहू - by Pvzro - 24-11-2025, 07:29 PM
RE: तांत्रिक बहू - by Gomzey - 25-11-2025, 09:08 PM



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