23-11-2025, 03:30 PM
ये एक लंबी कहानी है और कई भागों में आएगी, यह कहानी काल्पनिक है और एक ऐसे लड़की की है जो अपने ससुराल वालो से परेशान होकर तंत्र की दुनिया में कदम रखती है और उसके बाद अपने सारे ससुराल वालों को वश में करती है ।
अध्याय १ : पृष्ठभूमि
यदु परिवार, जिसमें 6 सदस्य है एक सामान्य परिवार है जिनकी आर्थिक स्थिति वर्तमान में उनके बड़े बेटे के बिज़नेस अच्छा चलने से सुधरी है। पहले गाँव में रहते थे और किसानी का काम करते थे पर लड़के के शादी में दिक्कत होने के कारण सब सभी शहर में शिफ्ट हो गए थे फिर शादी के बाद अपना मकान बना कर शहर में रहने लगे ।
पात्र परिचय इस प्रकार है :
प्राची : इस कहानी की मुख्य किरदार है व यदु परिवार की बड़ी बहू है , इनकी उम्र अभी 34 की है और एक बच्चे की मां हैं । रंग हल्का सांवला और तीखी नैन नक्श की हैं इनका शरीर भी कसा हुआ है।
आशीष : प्राची का पति , सामान्य कद काठी का लड़का उम्र 36 साल । ये भी हल्का सांवला और कसे बदन का है । ख़ुद का व्यवसाय चलता है और अच्छा पैसा भी कमाता है ।
मंजु : प्राची की सास है उम्र लगभग 53 साल और ढीले बदन की गोरी महिला हैं , ये आदत में काफ़ी स्ट्रिक्ट और अपनी बात मनवाने वाली औरत है ।
खेमू : प्राची का ससुर है , लंबा चौड़ा और हट्टा कट्टा आदमी है उम्र 56 साल और ये किसानी का काम करने अपना ज़िंदगी चलाये है ।
सत्यम : प्राची का देवर है किसी फर्म के लिए ऑनलाइन कम करता है । दिखने में आशीष के समान ही कद काठी का है बस आशीष से पतला दुबला है ।
साल 2023 में यदु परिवार अपने बड़े लड़के के लिए रिश्ते खोज रहे थे लेकिन जैसी लड़की इनको चाहिए थी वैसे लड़की मिलने में बहुत समस्या हो रही थी खासकर मंजू देवी के कारण जिसको अपनी बहु बहुत सुंदर और पैसे वाले खानदान से चाहिए थी इसीलिए पसंद की लड़की मिलने में मुश्किल हो रही थी बहुत समय बीतने के बाद आशीष ने ऑनलाइन प्राची को ढूंढा जो दिखने में सामान्य थी और बहुत पैसे वाली भी नहीं थी लेकिन वो बीटेक की हुई थी और आशीष ख़ुद जो काम के चक्कर में कॉलेज नहीं जा पाया था वो चाहता था की उसकी बीवी पढ़ेलिखी हो ताकि अपने पैसेवाले और पढ़े लिखे दोस्तों के बीच उसका भी रौब बन सके । प्राची के पिता एक चतुर्थ श्रेणी के सरकारी कर्मचारी थे और तीन बेटियों के बाप थे जिसने प्राची दूसरे नंबर की बेटी थी । प्राची के घर की मुखिया उसकी माँ शीला थी उनके घर में उसकी माँ का ही चलता था । शीला चाहती थी की उनकी तीनो बेटियों की शादी बेटियों के पसंद से ही हो । प्राची भी आशीष से बात करके उसको पसंद कर ली हालाकि उसको ये बात चुभती थी की लड़का पढ़ा लिखा कम है लेकिन उसके पैसे देख के उसके आशीष को हाँ कर दिया ।
इधर आशीष ने भी अपनी माँ मंजू को समझाने की कोसिस की, मंजू देवी को लड़की और उसका परिवार पसंद नहीं आ रहा था उसको पता था की लड़की केवल पैसे के लिए ही इससे शादी कर रही है, लेकिन बेटे के ज़िद के आगे वो झुक गई और उसने भी अपनी हामी भर दी ।
आशीष अच्छा पैसा कमाता था और शादी के लिए उतावला भी था इसलिए शीला ने इसका खूब फ़ायदा उठाया , सारा खर्च आशीष को ही करवाया और ऊपर से दहेज के नाम पर केवल अपनी बेटी को सोना ही दे दिया , ये बात मंजू अच्छे से समझ गई और इस बात से प्राची और उसके परिवार के लिए मंजू के दिल में चिढ़ सा बैठ गया ।
शादी के एक साल बाद प्राची को बच्चा भी हो गया और उसके बाद काम और जिम्मेदारी बढ़ने से घर में खट पट भी बढ़ती गई । मंजू आय दिन प्राची को कुछ ना कुछ बहाने निकाल के ताने मारती और प्राची भी समय समय पर उनका जवाब देने लग गई थी। लड़ाई का सिलसिला अब आशीष तक पहुँच गया और प्राची और आशीष भी घरेलू लड़ाई के कारण अपना रिश्ता कड़वा कर रहे थे । सास के लड़ाई तो प्राची को उतना परेशान नहीं करती लेकिन आशीष के साथ हुई लड़ाई उसे अंदर से डर से भर देती । एक साल लगभग वैसे ही कटा प्राची लड़ाइयों को अपनी माँ या बहन को नहीं बताती थी क्योंकि प्राची की बड़ी बहन के ससुराल में भी लड़ाई हुई थी तो उसकी माँ शीला के अड़ंगे डालने से लड़ाई और बढ़ गई और उसकी बहन छह महीने तक मायके में थी , प्राची आशीष से अलग नहीं रहना चाहती थी इसीलिए चुपचाप लड़ाई को सहती हुई चली आ रही थी । पर लड़ाइयों का सिलसिला थम ही नहीं रहा था , मंजू का साथ आशीष के साथ खेमू और देवर भी देने लगे थे और प्राची का सब्र का बांध तो तब टूटा जब बात मार पीट पर आ गई , आशीष की सहन शक्ति खत्म होते जा रही थी और प्राची के चुप चाप रहने के कारण भी आशीष और मंजू की हिम्मत बढ़ते गई और मार पीट रोज़ाना की बात बनते चले गई और एक दिन प्राची लड़ के मायके चली आई । मायके में शीला को जाके सारी आप बीती सुनाई । शीला को अंदाज़ा ही नहीं था कि बात इतनी ख़राब हो चुकी है । प्राची को शीला ढाँढस बंधा कर कुछ दिन शांति से रहने दिया फिर शीला प्राची से पूछती है : आगे क्या सोचा है बेटा , उन लोगो के साथ रहना है या तू अलग होके रहेगी ?
प्राची: मैं अकेले होती तो कब का छोड़ दी होती लेकिन अपने बच्चे के कारण मुझे उन लोगो को छोडने का मन नहीं है ।
शीला : लेकिन ऐसे मार खा के भी तो नहीं रह सकती । आशीष का कहीं बाहर चक्कर तो नहीं है ?
प्राची : मुझे नहीं पता वो अब कुछ बात ही नहीं करता मेरे से , मेरी सास ने उसके कान भर के रखे है ।
शीला : लेकिन पहले तो वो तुमसे प्यार करता था ना ?
प्राची : हाँ करता था लेकिन मुझे भी नहीं पता अब क्या हुआ है ?
शीला : तो तू क्या चाहती है ?
प्राची : मैं चाहती हूँ कि सब ठीक हो जाए और मेरा बच्चा अपने बाप के साथ रहे ।
शीला : मैं और तेरे पापा तेरी समस्या लेके गोसाईं जी के पास जाने का सोच रहे है , उनसे बात करके कुछ ना कुछ हल जरूर निकलेगा ।
प्राची : नाना के गाँव वाले बाबा ?
शीला : हाँ , आख़िर बार जब तेरी बहन के शादी में दिक्कत आई थी तो बाबा ने ही निराकरण दिया था और अब तेरी बहन ख़ुश है ।
प्राची : मुझे इन सब पर विश्वास नहीं होता है लेकिन आप लोग जाना चाहो तो चले जाओं ।
प्राची को ये मालूम था कि हर साल दिवाली के बाद इनके माँ और पिता जी दोनों बाबा के पास जाते थे लेकिन वो या उसकी कोई भी बहन आज तक बाबा के पास नहीं गए थे । प्राची का नाना गाँव में भी जाना कम ही हुआ था क्योंकि बचपन में ही नाना और नानी दोनों गुज़र गए थे और इनका कोई मामा था नहीं, इनकी माँ शीला की एक छोटी बहन है जो अब शहर में रहती है । शीला बाबा को गोसाईं जी कहके पुकारती थी और बहुत मानती थी हालाकि उनके घर में बहुत ज़्यादा पूजा पाठ का माहौल नहीं था लेकिन बाबा को शीला हर मुसीबत में याद करती ही थी । प्राची के नाना गाँव शहर से लगभग दो सौ किलोमीटर अंदर जंगल के गाँव में था , मुश्किल से वहाँ बीस घर हुआ करते थे और लगभग सौ लोगो का ही गाँव था ।
अगले रविवार को सुबह सुबह शीला अपने पति के साथ गाँव के लिए रवाना होती है, प्राची को पता था की इनलोगों को कम से कम दो दिन लगेंगे वापस आने में क्योंकि बाबा हर दिन नहीं मिलते थे कई बार उनसे मिलने के लिए इंतज़ार करना पड़ता था।
मंगलवॉर को शीला वापस घर आई , प्राची को ये सब में यकीन तो नहीं था लेकिन वो भी अंदर से चाहती थी किसी भी तरह उसकी ज़िंदगी वापस पटरी पर आ जाए ।
प्राची शीला के पास जाके पूछती है : क्या हुआ ? बाबा मिले ?
शीला : हाँ उनसे मुलाक़ात हुई
प्राची : तो कुछ हल बताए ?
शीला परेशान होते हुए : नहीं ,उनका कहना है कि तुम्हारी लड़ाई पूरे परिवार से है और चार पाँच लोगो को एक साथ अपने वश में इतने दूर से नहीं किया जा सकता है ।
प्राची : मुझे पता ही था ये सब से कुछ नहीं होता ।
शीला : गोसाईं जो को तू हल्के में मत ले अगर कौन डोंगी रहते तो हमारे परेशानी में हमे लूटने की कोसिस करते लेकिन इन्होंने साफ़ साफ़ बोल दिया की नहीं हो पाएगा ।
प्राची : तो अब मैं क्या करूँ ? आज मुझे आये हुए दो हफ़्ते हो गया लेकिन आशीष को तो जैसे कोई मतलब ही नहीं है । अब मैं हमेशा यहाँ तो नहीं रह सकती ।
शीला : एक काम करते है , उनके परिवार के साथ मीटिंग करते है और सामने सामने साफ़ साफ़ बात करेंगे ।
प्राची : हाँ ये करके देख लो लेकिन वो शायद ही मानेंगे ।
शीला ने अपने पति को बोलके उनके परिवार से मीटिंग तय किया , आशीष के पापा भी नहीं चाहते थे की आशीष अपनी बीवी बच्चो से दूर रहे इसीलिए उन्होंने मीटिंग के लिए हाँ कर दी । मंजू देवी , खेमू और आशीष तीनो मीटिंग करने प्राची के घर आए । मंजू देवी ने अपनी परेशानी सबके सामने बताई और शीला ने प्राची का पक्ष रखा , आशीष ने भी अपनी समस्या बताई , बातों बातों में सब एक दूसरे के गहरे झख़म को खुरचने लगे और बात शांत होने के जगह ज़्यादा बढ़ गई । प्राची और आशीष दोनों अपने में अड़े रहे , शीला और मंजू भी एक दूसरे की बात समझने की कोसिस ही नहीं कर रहे थे अंत में आशीष अपना परिवार को लेके वापस चला जाता है और जो मीटिंग झगड़ा खत्म करने के लिए रखी गई थी वो झगड़ा और बढ़ा देती है । अगले दो दिन बाद आशीष प्राची को डाइवोर्स का नोटिस भेज देता है जिसको देख के प्राची और शीला दोनों के पाओं तले ज़मीन खिसक जाती है । प्राची का रो रो के बुरा हाल था , शीला अपने बेटी की ये हालत देख के समझ जाती है कि ये आशीष से अलग नहीं रह सकती और तय करती है की अब समय आ गया है की प्राची को तंत्र की दुनिया से रूबरू कराया जाए जो इतने सालों तक शीला अपने बच्चों से छुपा के रखी थी ।
अध्याय १ : पृष्ठभूमि
यदु परिवार, जिसमें 6 सदस्य है एक सामान्य परिवार है जिनकी आर्थिक स्थिति वर्तमान में उनके बड़े बेटे के बिज़नेस अच्छा चलने से सुधरी है। पहले गाँव में रहते थे और किसानी का काम करते थे पर लड़के के शादी में दिक्कत होने के कारण सब सभी शहर में शिफ्ट हो गए थे फिर शादी के बाद अपना मकान बना कर शहर में रहने लगे ।
पात्र परिचय इस प्रकार है :
प्राची : इस कहानी की मुख्य किरदार है व यदु परिवार की बड़ी बहू है , इनकी उम्र अभी 34 की है और एक बच्चे की मां हैं । रंग हल्का सांवला और तीखी नैन नक्श की हैं इनका शरीर भी कसा हुआ है।
आशीष : प्राची का पति , सामान्य कद काठी का लड़का उम्र 36 साल । ये भी हल्का सांवला और कसे बदन का है । ख़ुद का व्यवसाय चलता है और अच्छा पैसा भी कमाता है ।
मंजु : प्राची की सास है उम्र लगभग 53 साल और ढीले बदन की गोरी महिला हैं , ये आदत में काफ़ी स्ट्रिक्ट और अपनी बात मनवाने वाली औरत है ।
खेमू : प्राची का ससुर है , लंबा चौड़ा और हट्टा कट्टा आदमी है उम्र 56 साल और ये किसानी का काम करने अपना ज़िंदगी चलाये है ।
सत्यम : प्राची का देवर है किसी फर्म के लिए ऑनलाइन कम करता है । दिखने में आशीष के समान ही कद काठी का है बस आशीष से पतला दुबला है ।
साल 2023 में यदु परिवार अपने बड़े लड़के के लिए रिश्ते खोज रहे थे लेकिन जैसी लड़की इनको चाहिए थी वैसे लड़की मिलने में बहुत समस्या हो रही थी खासकर मंजू देवी के कारण जिसको अपनी बहु बहुत सुंदर और पैसे वाले खानदान से चाहिए थी इसीलिए पसंद की लड़की मिलने में मुश्किल हो रही थी बहुत समय बीतने के बाद आशीष ने ऑनलाइन प्राची को ढूंढा जो दिखने में सामान्य थी और बहुत पैसे वाली भी नहीं थी लेकिन वो बीटेक की हुई थी और आशीष ख़ुद जो काम के चक्कर में कॉलेज नहीं जा पाया था वो चाहता था की उसकी बीवी पढ़ेलिखी हो ताकि अपने पैसेवाले और पढ़े लिखे दोस्तों के बीच उसका भी रौब बन सके । प्राची के पिता एक चतुर्थ श्रेणी के सरकारी कर्मचारी थे और तीन बेटियों के बाप थे जिसने प्राची दूसरे नंबर की बेटी थी । प्राची के घर की मुखिया उसकी माँ शीला थी उनके घर में उसकी माँ का ही चलता था । शीला चाहती थी की उनकी तीनो बेटियों की शादी बेटियों के पसंद से ही हो । प्राची भी आशीष से बात करके उसको पसंद कर ली हालाकि उसको ये बात चुभती थी की लड़का पढ़ा लिखा कम है लेकिन उसके पैसे देख के उसके आशीष को हाँ कर दिया ।
इधर आशीष ने भी अपनी माँ मंजू को समझाने की कोसिस की, मंजू देवी को लड़की और उसका परिवार पसंद नहीं आ रहा था उसको पता था की लड़की केवल पैसे के लिए ही इससे शादी कर रही है, लेकिन बेटे के ज़िद के आगे वो झुक गई और उसने भी अपनी हामी भर दी ।
आशीष अच्छा पैसा कमाता था और शादी के लिए उतावला भी था इसलिए शीला ने इसका खूब फ़ायदा उठाया , सारा खर्च आशीष को ही करवाया और ऊपर से दहेज के नाम पर केवल अपनी बेटी को सोना ही दे दिया , ये बात मंजू अच्छे से समझ गई और इस बात से प्राची और उसके परिवार के लिए मंजू के दिल में चिढ़ सा बैठ गया ।
शादी के एक साल बाद प्राची को बच्चा भी हो गया और उसके बाद काम और जिम्मेदारी बढ़ने से घर में खट पट भी बढ़ती गई । मंजू आय दिन प्राची को कुछ ना कुछ बहाने निकाल के ताने मारती और प्राची भी समय समय पर उनका जवाब देने लग गई थी। लड़ाई का सिलसिला अब आशीष तक पहुँच गया और प्राची और आशीष भी घरेलू लड़ाई के कारण अपना रिश्ता कड़वा कर रहे थे । सास के लड़ाई तो प्राची को उतना परेशान नहीं करती लेकिन आशीष के साथ हुई लड़ाई उसे अंदर से डर से भर देती । एक साल लगभग वैसे ही कटा प्राची लड़ाइयों को अपनी माँ या बहन को नहीं बताती थी क्योंकि प्राची की बड़ी बहन के ससुराल में भी लड़ाई हुई थी तो उसकी माँ शीला के अड़ंगे डालने से लड़ाई और बढ़ गई और उसकी बहन छह महीने तक मायके में थी , प्राची आशीष से अलग नहीं रहना चाहती थी इसीलिए चुपचाप लड़ाई को सहती हुई चली आ रही थी । पर लड़ाइयों का सिलसिला थम ही नहीं रहा था , मंजू का साथ आशीष के साथ खेमू और देवर भी देने लगे थे और प्राची का सब्र का बांध तो तब टूटा जब बात मार पीट पर आ गई , आशीष की सहन शक्ति खत्म होते जा रही थी और प्राची के चुप चाप रहने के कारण भी आशीष और मंजू की हिम्मत बढ़ते गई और मार पीट रोज़ाना की बात बनते चले गई और एक दिन प्राची लड़ के मायके चली आई । मायके में शीला को जाके सारी आप बीती सुनाई । शीला को अंदाज़ा ही नहीं था कि बात इतनी ख़राब हो चुकी है । प्राची को शीला ढाँढस बंधा कर कुछ दिन शांति से रहने दिया फिर शीला प्राची से पूछती है : आगे क्या सोचा है बेटा , उन लोगो के साथ रहना है या तू अलग होके रहेगी ?
प्राची: मैं अकेले होती तो कब का छोड़ दी होती लेकिन अपने बच्चे के कारण मुझे उन लोगो को छोडने का मन नहीं है ।
शीला : लेकिन ऐसे मार खा के भी तो नहीं रह सकती । आशीष का कहीं बाहर चक्कर तो नहीं है ?
प्राची : मुझे नहीं पता वो अब कुछ बात ही नहीं करता मेरे से , मेरी सास ने उसके कान भर के रखे है ।
शीला : लेकिन पहले तो वो तुमसे प्यार करता था ना ?
प्राची : हाँ करता था लेकिन मुझे भी नहीं पता अब क्या हुआ है ?
शीला : तो तू क्या चाहती है ?
प्राची : मैं चाहती हूँ कि सब ठीक हो जाए और मेरा बच्चा अपने बाप के साथ रहे ।
शीला : मैं और तेरे पापा तेरी समस्या लेके गोसाईं जी के पास जाने का सोच रहे है , उनसे बात करके कुछ ना कुछ हल जरूर निकलेगा ।
प्राची : नाना के गाँव वाले बाबा ?
शीला : हाँ , आख़िर बार जब तेरी बहन के शादी में दिक्कत आई थी तो बाबा ने ही निराकरण दिया था और अब तेरी बहन ख़ुश है ।
प्राची : मुझे इन सब पर विश्वास नहीं होता है लेकिन आप लोग जाना चाहो तो चले जाओं ।
प्राची को ये मालूम था कि हर साल दिवाली के बाद इनके माँ और पिता जी दोनों बाबा के पास जाते थे लेकिन वो या उसकी कोई भी बहन आज तक बाबा के पास नहीं गए थे । प्राची का नाना गाँव में भी जाना कम ही हुआ था क्योंकि बचपन में ही नाना और नानी दोनों गुज़र गए थे और इनका कोई मामा था नहीं, इनकी माँ शीला की एक छोटी बहन है जो अब शहर में रहती है । शीला बाबा को गोसाईं जी कहके पुकारती थी और बहुत मानती थी हालाकि उनके घर में बहुत ज़्यादा पूजा पाठ का माहौल नहीं था लेकिन बाबा को शीला हर मुसीबत में याद करती ही थी । प्राची के नाना गाँव शहर से लगभग दो सौ किलोमीटर अंदर जंगल के गाँव में था , मुश्किल से वहाँ बीस घर हुआ करते थे और लगभग सौ लोगो का ही गाँव था ।
अगले रविवार को सुबह सुबह शीला अपने पति के साथ गाँव के लिए रवाना होती है, प्राची को पता था की इनलोगों को कम से कम दो दिन लगेंगे वापस आने में क्योंकि बाबा हर दिन नहीं मिलते थे कई बार उनसे मिलने के लिए इंतज़ार करना पड़ता था।
मंगलवॉर को शीला वापस घर आई , प्राची को ये सब में यकीन तो नहीं था लेकिन वो भी अंदर से चाहती थी किसी भी तरह उसकी ज़िंदगी वापस पटरी पर आ जाए ।
प्राची शीला के पास जाके पूछती है : क्या हुआ ? बाबा मिले ?
शीला : हाँ उनसे मुलाक़ात हुई
प्राची : तो कुछ हल बताए ?
शीला परेशान होते हुए : नहीं ,उनका कहना है कि तुम्हारी लड़ाई पूरे परिवार से है और चार पाँच लोगो को एक साथ अपने वश में इतने दूर से नहीं किया जा सकता है ।
प्राची : मुझे पता ही था ये सब से कुछ नहीं होता ।
शीला : गोसाईं जो को तू हल्के में मत ले अगर कौन डोंगी रहते तो हमारे परेशानी में हमे लूटने की कोसिस करते लेकिन इन्होंने साफ़ साफ़ बोल दिया की नहीं हो पाएगा ।
प्राची : तो अब मैं क्या करूँ ? आज मुझे आये हुए दो हफ़्ते हो गया लेकिन आशीष को तो जैसे कोई मतलब ही नहीं है । अब मैं हमेशा यहाँ तो नहीं रह सकती ।
शीला : एक काम करते है , उनके परिवार के साथ मीटिंग करते है और सामने सामने साफ़ साफ़ बात करेंगे ।
प्राची : हाँ ये करके देख लो लेकिन वो शायद ही मानेंगे ।
शीला ने अपने पति को बोलके उनके परिवार से मीटिंग तय किया , आशीष के पापा भी नहीं चाहते थे की आशीष अपनी बीवी बच्चो से दूर रहे इसीलिए उन्होंने मीटिंग के लिए हाँ कर दी । मंजू देवी , खेमू और आशीष तीनो मीटिंग करने प्राची के घर आए । मंजू देवी ने अपनी परेशानी सबके सामने बताई और शीला ने प्राची का पक्ष रखा , आशीष ने भी अपनी समस्या बताई , बातों बातों में सब एक दूसरे के गहरे झख़म को खुरचने लगे और बात शांत होने के जगह ज़्यादा बढ़ गई । प्राची और आशीष दोनों अपने में अड़े रहे , शीला और मंजू भी एक दूसरे की बात समझने की कोसिस ही नहीं कर रहे थे अंत में आशीष अपना परिवार को लेके वापस चला जाता है और जो मीटिंग झगड़ा खत्म करने के लिए रखी गई थी वो झगड़ा और बढ़ा देती है । अगले दो दिन बाद आशीष प्राची को डाइवोर्स का नोटिस भेज देता है जिसको देख के प्राची और शीला दोनों के पाओं तले ज़मीन खिसक जाती है । प्राची का रो रो के बुरा हाल था , शीला अपने बेटी की ये हालत देख के समझ जाती है कि ये आशीष से अलग नहीं रह सकती और तय करती है की अब समय आ गया है की प्राची को तंत्र की दुनिया से रूबरू कराया जाए जो इतने सालों तक शीला अपने बच्चों से छुपा के रखी थी ।


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