10-09-2025, 07:45 AM
रातभर की थकान और नींद से भारी पलकें लिए Shipra सुबह बिस्तर से उठी। बदन अब भी सुन्न था, जाँघों में भारीपन और सीने पर हल्की सी जलन महसूस हो रही थी। उसने आईने में खुद को देखा — चेहरा पसीने और थकान से मुरझाया हुआ, आँखें लाल, लेकिन होंठों पर अजीब सी नमी और हल्की मुस्कान भी थी।
उसने जल्दी से नहाकर बैंगनी फूलों वाली साड़ी पहन ली, ताकि सबके सामने उसकी हालत छुप जाए। माथे पर बड़ी सी लाल बिंदी, होंठों पर हल्की लिपस्टिक और गले में मंगलसूत्र — बाहर से सब सामान्य, लेकिन भीतर से उसका शरीर अब भी Neeraj की रातभर की दीवानगी से कांप रहा था।
जब वो रसोई में चाय बना रही थी, उसके हाथ काँप रहे थे। कप में चम्मच टकराने की आवाज़ से ही दिल धड़कने लगा — कहीं कोई उसकी हालत पहचान न ले।
Neeraj हॉल में पहले से मौजूद था। सोफे पर बैठा मोबाइल में कुछ स्क्रॉल कर रहा था, लेकिन उसकी नज़र दरवाज़े पर ही थी। जैसे ही Shipra ट्रे लेकर बाहर आई, उसकी आँखों में शरारती चमक लौट आई।
Shipra ने नज़रें झुकाकर सबके सामने कप रखे। Rohit और बाकी लोग अपने-अपने फोन में बिज़ी थे। किसी को ख्याल भी नहीं था कि Shipra कितनी थकी और शर्म से भरी बैठी है।
जब Shipra ने Neeraj को कप दिया, उनकी उंगलियाँ फिर से हल्के से छू गईं। Shipra का दिल जोर से धड़क गया। रात की सारी यादें एक झटके में लौट आईं — फटे कपड़े, जोर से दबाए गए हाथ, और उसके अपने ही कराहों की आवाज़।
Shipra (धीरे से, सिर्फ़ Neeraj को सुनाई दे इतना):
“प्लीज़… अब कुछ मत बोलना। किसी ने देख लिया तो…”
Neeraj (हल्की हँसी दबाते हुए):
“किसी ने देखा तो क्या? सबको लगेगा मैं बस तुझसे चाय ले रहा हूँ। पर तू जानती है… मेरी असली चाय तो तेरे होंठ हैं।”
Shipra ने झटके से नज़रें फेर लीं और सोफे के पास बैठ गई। उसके चेहरे पर शर्म और घबराहट साफ़ थी।
कुछ ही देर में घर के लोग चैट और काम में उलझ गए। कोई कमरे में चला गया, कोई फोन पर बिज़ी हो गया। अब हॉल में सिर्फ़ Shipra और Neeraj बचे थे।
सोफे पर दोनों के बीच बस कुछ इंच का फ़ासला था।
Shipra के हाथ अब भी कप से खेल रहे थे, ताकि उसकी बेचैनी छुप जाए।
Neeraj उसकी ओर झुककर मुस्कुराया —
“कल रात तेरी हालत देखी थी… आज सुबह भी वैसी ही लग रही है। लेकिन जान ले, तेरी ये बैंगनी साड़ी में तू और भी जानलेवा लग रही है।”
Shipra ने होंठ काटे, चेहरा लाल हुआ और उसने धीमे स्वर में कहा —
“बस कर… दिल अब भी संभल नहीं रहा।”
हॉल में अब बस सन्नाटा था। बाकी सब लोग या तो कमरे में थे या फोन में घुसे पड़े थे।
सोफ़े पर सिर्फ़ Shipra और Neeraj।
Shipra ने बैंगनी साड़ी कसकर ओढ़ रखी थी, पर उसकी साँसें पहले से ही भारी थीं।
Neeraj सोफ़े पर फैलकर बैठा, आँखें तरेरकर बोला—
Neeraj (हँसते हुए, दबी आवाज़ में):
“साली… कल रात की तेरी चूत अब भी मेरे लंड का स्वाद चख रही होगी न?”
Shipra ने झटके से नज़रें फेर लीं, लेकिन होंठ काँप उठे।
Shipra (गुस्से और शर्म में):
“चुप कर बे मादरचोद… सब यहीं हैं, कोई सुन लेगा।”
Neeraj और पास खिसक आया, उसकी साड़ी की पल्लू को उँगली से सरकाते हुए बोला—
Neeraj:
“किसी ने सुना तो सुना… सबको बता दूँगा कि तेरी ये बैंगनी साड़ी के नीचे लाल पैंटी छुपी है, और वो भी अब मेरी है।”
Shipra का चेहरा तमतमा उठा। उसने उसकी कलाई पकड़कर दबाया,
Shipra (गाली देते हुए फुसफुसाई):
“साले… हरामज़ादे… मुँह तोड़ दूँगी तेरा। तेरे लंड की गर्मी ने तो मेरी चूत सुजाकर रख दी है।”
Neeraj ने उसकी पकड़ छुड़ाई, हँसते हुए उसके कान पर झुक गया।
Neeraj:
“यही तो चाहिए मुझे, रंडी… तेरी सूजी हुई चूत ही मेरी जीत है। तू चाहे जितनी गालियाँ दे, तेरे दूध जैसे सेने तो अब भी मेरी उँगलियों को बुला रहे हैं।”
उसकी उँगली Shipra के ब्लाउज़ की गाँठ छू गई। Shipra काँप गई।
Shipra (साँस रोककर, गुस्से से):
“अबे हाथ हट बे… सबको छोड़कर तू ही पागल है मेरे पीछे।”
Neeraj ने उसकी आँखों में देखकर दबी हँसी छोड़ी—
Neeraj:
“हाँ, पागल हूँ तेरी चूत का… और तेरे लाल ब्रा-पैंटी का। बस एक बार सरकाऊँ न, तो तू खुद मेरे लंड पर चढ़ जाएगी।”
उसने जल्दी से नहाकर बैंगनी फूलों वाली साड़ी पहन ली, ताकि सबके सामने उसकी हालत छुप जाए। माथे पर बड़ी सी लाल बिंदी, होंठों पर हल्की लिपस्टिक और गले में मंगलसूत्र — बाहर से सब सामान्य, लेकिन भीतर से उसका शरीर अब भी Neeraj की रातभर की दीवानगी से कांप रहा था।
जब वो रसोई में चाय बना रही थी, उसके हाथ काँप रहे थे। कप में चम्मच टकराने की आवाज़ से ही दिल धड़कने लगा — कहीं कोई उसकी हालत पहचान न ले।
Neeraj हॉल में पहले से मौजूद था। सोफे पर बैठा मोबाइल में कुछ स्क्रॉल कर रहा था, लेकिन उसकी नज़र दरवाज़े पर ही थी। जैसे ही Shipra ट्रे लेकर बाहर आई, उसकी आँखों में शरारती चमक लौट आई।
Shipra ने नज़रें झुकाकर सबके सामने कप रखे। Rohit और बाकी लोग अपने-अपने फोन में बिज़ी थे। किसी को ख्याल भी नहीं था कि Shipra कितनी थकी और शर्म से भरी बैठी है।
जब Shipra ने Neeraj को कप दिया, उनकी उंगलियाँ फिर से हल्के से छू गईं। Shipra का दिल जोर से धड़क गया। रात की सारी यादें एक झटके में लौट आईं — फटे कपड़े, जोर से दबाए गए हाथ, और उसके अपने ही कराहों की आवाज़।
Shipra (धीरे से, सिर्फ़ Neeraj को सुनाई दे इतना):
“प्लीज़… अब कुछ मत बोलना। किसी ने देख लिया तो…”
Neeraj (हल्की हँसी दबाते हुए):
“किसी ने देखा तो क्या? सबको लगेगा मैं बस तुझसे चाय ले रहा हूँ। पर तू जानती है… मेरी असली चाय तो तेरे होंठ हैं।”
Shipra ने झटके से नज़रें फेर लीं और सोफे के पास बैठ गई। उसके चेहरे पर शर्म और घबराहट साफ़ थी।
कुछ ही देर में घर के लोग चैट और काम में उलझ गए। कोई कमरे में चला गया, कोई फोन पर बिज़ी हो गया। अब हॉल में सिर्फ़ Shipra और Neeraj बचे थे।
सोफे पर दोनों के बीच बस कुछ इंच का फ़ासला था।
Shipra के हाथ अब भी कप से खेल रहे थे, ताकि उसकी बेचैनी छुप जाए।
Neeraj उसकी ओर झुककर मुस्कुराया —
“कल रात तेरी हालत देखी थी… आज सुबह भी वैसी ही लग रही है। लेकिन जान ले, तेरी ये बैंगनी साड़ी में तू और भी जानलेवा लग रही है।”
Shipra ने होंठ काटे, चेहरा लाल हुआ और उसने धीमे स्वर में कहा —
“बस कर… दिल अब भी संभल नहीं रहा।”
हॉल में अब बस सन्नाटा था। बाकी सब लोग या तो कमरे में थे या फोन में घुसे पड़े थे।
सोफ़े पर सिर्फ़ Shipra और Neeraj।
Shipra ने बैंगनी साड़ी कसकर ओढ़ रखी थी, पर उसकी साँसें पहले से ही भारी थीं।
Neeraj सोफ़े पर फैलकर बैठा, आँखें तरेरकर बोला—
Neeraj (हँसते हुए, दबी आवाज़ में):
“साली… कल रात की तेरी चूत अब भी मेरे लंड का स्वाद चख रही होगी न?”
Shipra ने झटके से नज़रें फेर लीं, लेकिन होंठ काँप उठे।
Shipra (गुस्से और शर्म में):
“चुप कर बे मादरचोद… सब यहीं हैं, कोई सुन लेगा।”
Neeraj और पास खिसक आया, उसकी साड़ी की पल्लू को उँगली से सरकाते हुए बोला—
Neeraj:
“किसी ने सुना तो सुना… सबको बता दूँगा कि तेरी ये बैंगनी साड़ी के नीचे लाल पैंटी छुपी है, और वो भी अब मेरी है।”
Shipra का चेहरा तमतमा उठा। उसने उसकी कलाई पकड़कर दबाया,
Shipra (गाली देते हुए फुसफुसाई):
“साले… हरामज़ादे… मुँह तोड़ दूँगी तेरा। तेरे लंड की गर्मी ने तो मेरी चूत सुजाकर रख दी है।”
Neeraj ने उसकी पकड़ छुड़ाई, हँसते हुए उसके कान पर झुक गया।
Neeraj:
“यही तो चाहिए मुझे, रंडी… तेरी सूजी हुई चूत ही मेरी जीत है। तू चाहे जितनी गालियाँ दे, तेरे दूध जैसे सेने तो अब भी मेरी उँगलियों को बुला रहे हैं।”
उसकी उँगली Shipra के ब्लाउज़ की गाँठ छू गई। Shipra काँप गई।
Shipra (साँस रोककर, गुस्से से):
“अबे हाथ हट बे… सबको छोड़कर तू ही पागल है मेरे पीछे।”
Neeraj ने उसकी आँखों में देखकर दबी हँसी छोड़ी—
Neeraj:
“हाँ, पागल हूँ तेरी चूत का… और तेरे लाल ब्रा-पैंटी का। बस एक बार सरकाऊँ न, तो तू खुद मेरे लंड पर चढ़ जाएगी।”