Thread Rating:
  • 5 Vote(s) - 2.4 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
Romance श्रृष्टि की गजब रित
#96
कुछ देर की खामोशी छाई रहीं फिर तिवारी ने पानी लाने को कहा तभी राघव को कुछ याद आया और वो बोल…पापा श्रृष्टि के साथ DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप में ऐसा कुछ हुआ था जिसके कारण उसने वहा का जॉब छोड़ दिया था आज फ़िर उसके साथ वैसा ही सलूक हुआ कहीं वो यहां का जॉब भी न छोड़ दे अगर जॉब छोड़ दिया। तो मेरा क्या होगा?

तिवारी..तेरा क्या होगा ... कहीं ये वोही लड़की तो नही जिससे...।

राघव... हां पापा श्रृष्टि वोही लड़की है जिससे मैं प्यार करता हूं।

तिवारी... मेरे तो ध्यान से उतर गया था तूझे पहले बोलना चहिए था। चल अभी उसके घर चलते हैं। आज दफ्तर में जो हुआ उसके लिए उससे माफी मांग लूंगा और आज ही उसके घर वालों से रिश्ते की बात कर लूंगा।

राघव... पर पापा...l

बस इतना ही बोला फिर साक्षी को कॉल लगा दिया उससे बात करने के बाद राघव बोला... चलो पापा

(नोट:- कुछ पाठकों को लग रहा होगा कि लड़के वाले कैसे लड़की वालों से बात करने जा रहा हैं जबकि लड़की वाले खुद बात करने आते हैं तो मैं इस पर सिर्फ इतना ही कहुंगी कि दूसरे संप्रदाय में क्या होता हैं मै नहीं जानती लेकिन बंगाली संप्रदाय में ऐसा ही होता हैं मै उसी आधार पर लिख रही हूं



और हां अब ज़माना बदल गया है अब तो लड़का और लड़की खुद ही अपना साथी ढूँढ लेते है | मा बाप को तो सिर्फ आशीर्वाद देना होता है . ये भी जान ले अब बहोत कुछ बदल रहा है यु कहो की पूरा समाज बदल रहा है या बदल गया है)

दोनों बाप बेटे घर से चल पड़े। कुछ ही देर में राघव के मोबाइल में एक msg आया। जिसमे एक एड्रेस था। राघव उस एड्रेस को गूगल मैप में फीड किया और उसी रास्ते पर कार को दौड़ा दिया।

कुछ देर में राघव वहा पहुंचा गया। जहां से श्रृष्टि के घर की गली में घुसना था। उस गली में घुस तो गया पर ठीक लोकेशन वाला घर ढूंढ नहीं पा रहा था। कुछ देर इधर उधर भटकने के बाद किसी से पूछकर सही ठिकाना श्रृष्टि के घर के पास पहुंच गया।

राघव ने द्वार घंटी बजाया और कुछ देर बाद द्वार खुला द्वार खोलने वाले को देखकर राघव मुस्कुरा दिया क्योंकि सामने श्रृष्टि ही खड़ी थीं। राघव के साथ एक बुजुर्ग को देखकर श्रृष्टि ने उन्हें प्रणाम किया फिर दोनों को अंदर आने का रास्ता दिया।

"श्रृष्टि बेटा कौन आया हैं।" माताश्री जानकारी लेते हुए बोलीं

अब श्रृष्टि के लिए दुविधा ये थीं राघव को तो जानती थी पर उसके साथ आए शख्स को नहीं पहचानती थी तब राघव धीरे से बोला "मेरे पापा हैं।" ये सुनकर श्रृष्टि मुस्कुराते हुए बोलीं... मां सर और उनके पापा आए है। श्रुष्टि ने तिवारी जी के पैर छुए और एसा कर की एक इशारा राघव को दे ही दिया| अब अपने आप को रोक पाना भी तो मुश्किल था |




इसके बाद सभी अंदर आए। औपचारिक बातों के दौरान तिवारी माताश्री को गौर से देख रहे थे। जैसे उन्हें पहचानने की कोशिश कर रहें हों। जब पहचान नहीं पाए तो तिवारी बोला…आप को कहीं तो देखा हैं। जाना पहचाना लग रही हों पर याद नहीं आ रहा है आपको कहा देखा हैं।

तिवारी की बाते सुनकर माताश्री ऐसे मुस्कुराई जैसे वो जानती है तिवारी ने उन्हें कहा देखा हैं पर बताना नहीं चाहती हों। बहरहाल तिवारी की बातों का जवाब देते हुए माताश्री बोलीं... मैं इसी शहर के मशहूर *** कॉलेज में आध्यपिका हूं शायद अपने वहीं देखा होगा। (फ़िर श्रृष्टि से बोलीं) श्रृष्टि बेटा इनके लिए चाय नाश्ते का प्रबंध करो।

तिवारी मना करने लगें। लेकिन माताश्री ने अपना तर्क देकर श्रृष्टि को चाय नाश्ते का प्रबंध करने भेज दिया। एक नज़र राघव को देखकर मुस्कुरा दिया फ़िर श्रृष्टि रसोई की और चली गई फ़िर तिवारी मुद्दे पर आते हुए बोले...देखिए मेडम जी मैं ज्यादा घुमा फिरा कर बात नही करूंगा राघव कह रहा था वो आपके बेटी से प्यार करता है और शायद श्रृष्टि बिटिया भी उससे प्यार करती हैं।

"जी मैं भी ये बात जानती हूं श्रृष्टि भी मूझसे यहीं कह रहीं थीं कि वो भी आपके बेटे से प्यार करती हैं।" और हां मेरा नाम मनोरमा है आप मुझे मेडम ना कहे

तिवारी... जब दोनों एक दूसरे से प्यार करते है तो हमें बीच में दीवार बनके कोई फायदा नहीं है दोनों को एक कर देने में ही भलाई हैं।

"केह तो आप सही रहें हो फ़िर भी कुछ बाते हैं जो आपको जान लेना चहिए उसके बाद ही कुछ फैसला आप ले तो ही बेहतर होगा।"

दोनों के बिच की बाते चल ही रही थी कि श्रृष्टि चाय लेकर आ गई। एक एक करके सभी को चाय दिया जब राघव को चाय दे रहीं थीं तो कुछ पल के लिए दोनों की निगाह एक दूसरे में अटक गई फिर श्रृष्टि खुद ही शर्माकर अपना निगाह हटा लिया और अपने निर्धारित जगह बैठ गई। तब तिवारी बोला... श्रृष्टि बेटा आज दफ्तर में जो हुआ उसके लिए हमे खेद हैं। मैं नहीं जानता था अपने ही घर में एक सपोला पाल रखा हैं जो सरेआम मेरी इज्जत उछलता फिरता हैं। अब जो हों गया उसे तो बदल नहीं सकता पर तुमसे माफ़ी तो जरूर मांग...।

"सर आप माफी न मांगे आप मेरे पिता के उम्र के है। इसलिए आप माफी मांगकर मुझे शर्मिंदा न करें।" बीच में रोकते हुए श्रृष्टि बोलीं

श्रृष्टि की बाते सुनके वह मौजूद सभी मुस्कुरा दिए और श्रृष्टि नज़रे झुका लिया। इसके बाद सभी चाय पीने लगे चाय पीने के दौरान राघव बोला... माजी मुझे श्रृष्टि से कुछ बात करना हैं। क्या मैं कर सकता हूं?

"हां क्यों नही श्रृष्टि बेटा चाय खत्म करके अपने सर से बात कर लो सुनो वो क्या कहना चाहते हैं।"

चाय पीने के बाद श्रृष्टि राघव को लेकर छत पर चली गई। दोनों के जाते ही तिवारी... हां तो मनोरमाजी आप कुछ कह रहे थे।
Like Reply


Messages In This Thread
RE: श्रृष्टि की गजब रित - by maitripatel - 04-09-2024, 05:24 PM



Users browsing this thread: 11 Guest(s)