Thread Rating:
  • 5 Vote(s) - 2.4 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
Romance श्रृष्टि की गजब रित
#90
भाग - 34



दिन के करीब चार बजे माताश्री कॉलेज से घर लौटी घर का मुख्य द्वार खुला था और श्रृष्टि की स्कूटी आंगन में खड़ी थीं। यह देखकर वो समझ गई कि श्रृष्टि घर आ गई हैं मगर एक सवाल उनके मस्तिष्क में कौंधा कि श्रृष्टि आज इतनी जल्दी घर कैसे आ गई। कहीं उसकी तबीयत तो खराब तो नहीं हैं।

इस सवाल के उत्पन्न होते ही माताश्री तुरंत घर में प्रवेश किया। बैठक में श्रृष्टि को न पाकर आवाजे देते हुए श्रृष्टि के कमरे की ओर बढ़ गईं।

कमरे का द्वार खुला हुआ था। भीतर जाते ही देखा श्रृष्टि छीने के बल लेटी हुई थीं। तूरंत माताश्री उसके पास गईं और बिस्तर पे बैठकर श्रृष्टि के पीठ पर हाथ रखकर बोलीं... श्रृष्टि बेटा क्या हुआ तू आज इतनी जल्दी कैसे आ गईं।?

मां की आवाज सुनते ही श्रृष्टि तूरंत उठाकर बैठ गई और आंखों को पोंछने लग गईं। क्षणिक पल में ही माताश्री भाप गई श्रृष्टि किसी बात से बहुत आहत हुई हैं और उसकी भरपाई करते हुए अपने कोमल आंखो को बहुत कष्ट दिया हैं।

"श्रृष्टि बेटा क्या हुआ तू इतना क्यों रोई कि तेरी आंखे और चेहरा सूज सा गया हैं।"

श्रृष्टि... मां मुझे जिस बात का डर था आज वोही हो गया जिससे न जानें मैं कब से बचती आ रही थीं। आज सर ने अपने प्यार का इजहार कर दिया और मैं चाहकर भी उनके प्यार को अपना नहीं पाई।

इतना बोलकर श्रृष्टि की रुलाई फिर से फूट पड़ी और मां से लिपट गईं। माताश्री उसके सिर सहलाते हुए बोलीं... जब तू उससे इतना प्यार करती हैं। उससे दूर नहीं रह सकती हैं फ़िर मना क्यों किया?

मां के इस सवाल का जवाब श्रृष्टि के पास था पर दे नहीं पाई और माताश्री बखुबी समझ रहीं थीं कि किस वजह से श्रृष्टि इतना प्यार करने के बावजूद राघव को मना कर दिया। इसलिए वो खुद से बोलीं... श्रृष्टि बेटा हम कभी कभी इंसान को समझने में भुल कर बैठते हैं। यही भूल तू और मैं तेरे सर को लेकर कर बैठें। मेरी भूल उसी दिन टूट गई थी जिस दिन मेरी पैर में फैक्चर हुआ था और शाम को तेरी साक्षी मैम हमारे घर आई थी उस दिन साक्षी बिटिया ने मुझे कुछ ऐसी बातें बताया जिसे जानकर मैं समझ गई कि तेरे सर तेरे पापा और नाना नानी जैसे दोहरे चरित्र वाला नहीं है।

श्रृष्टि तूरंत मां से अलग हुई और अपने आंखों को पोछते हुए बोली... उस दिन तो मैं आप दोनों के साथ ही थी फ़िर कब बताया कहीं आप झूठ तो नहीं बोल रहे हों।

"नहीं रे मैं क्यों झूठ बोलने लगीं उस दिन जब तू चाय बनाने गई थी तब बोला था। क्या बोला था ये मैं तूझे नहीं बोल सकती क्योंकि साक्षी बिटिया ने वो बाते तूझे बताने से मना किया था। तूझे जानना हैं तो साक्षी बिटिया से पूछ लेना।"

श्रृष्टि... वो तो मैं पूछ ही लूंगी साली मादर....तभी मा ने उसके मुह पे हाथ रख दिया और बोली नो गाली। जान लो अब वो तुम्हारी बहन है

सोरी मां, मा मैं कुछ कुछ तो जान ही गई थीं कि सर दोहरे चरित्र वाले नहीं हैं लेकिन उनके घर वाले ऐसे हुए तो क्या होगा और अगर नहीं हुए तो कहीं वो आप के बारे में जानकर आप पे लांछन लगाकर मुझे ठुकरा दिया तो।? मैं सब कुछ सह सकती हूं पर कोई आप पर लांछन लगाएं ये मैं नहीं सह सकती सिर्फ इसी कारण मैं सर को मना कर दिया।

बेटी की बाते सुनते ही माताश्री की पलके भारी हों गई और आंखे मिच लिया फ़िर श्रृष्टि को खुद से लिपटा कर माताश्री बोलीं... श्रृष्टि आज तेरी बातों ने मुझे भी ये सोचने पर मजबूर कर दिया और जो साक्षी ने भी बोला था कि तू जब मेरे कोख में थी जरूर मैंने अलहदा कुछ खाया था जिसके कारण तू ऐसी सोच के साथ पैदा हुइ। जहां प्यार होते ही प्रेमी सिर्फ अपने खुशी की सोचते हैं वहीं तू सिर्फ इसलिए अपना प्यार कुर्बान कर रही है ताकि तेरे मां पर लांछन न लगें। तूझे अपना प्यार कुर्बान करने की जरूरत नहीं हैं तू अभी के अभी फोन कर और तेरे सर को हां कर दे।

श्रृष्टि... मैं ऐसा बिल्कुल नहीं करूंगी मैं जुदाई सह लूंगी पर आप पर लांछन लगे ये सह नहीं पाऊंगी।

"अरे पगली मां पर इतना तो भरोसा कर ले तेरे कारण तेरी मां पर लांछन नहीं लगेगा।"

श्रृष्टि... मतलब क्या हैं आपका?

"बस इतना जान ले कुछ बातें समय आने पर पता चले तो ही बेहतर होता हैं।"

श्रृष्टि... मतलब आप सर के परिवार के बारे मे जानते है। बताओं न मां आप उनके परिवार के बारे में क्या जानते हों।?

"क्या और कैसे जानती हूं ये तेरे लिए अभी जानना ज़रूरी नही है। जब समय आएगा मैं तूझे बता दूंगी अभी जो जरूरी है वहीं कर तेरे सर को फ़ोन कर और हां बोल दे।"
अपने प्यार को मार मत बेटी


मां से “हां” बोलने की बात सुनकर श्रृष्टि का चेहरा खिल उठा और तूरंत फोन उठा लिया फ़िर कुछ सोचकर मुस्करा दिया और फ़ोन को वापस रख दिया।

"क्या हुआ फ़ोन क्यों रख दिया?"

श्रृष्टि…कल दफ्तर जाकर मै खुद उन्हे डेट पर चलने को कहूंगी फिर वहीं पर ही उनके प्रपोजल को एक्सेप्ट कर लूंगी और कुछ बातों की माफी भी मांग लूंगी जो आज मैंने उन्हें कहा था।

"एक तो प्रपोजल एक्सेप्ट नहीं किया। ऊपर से कुछ कह आई। बता क्या कह आई? जिसके लिए तूझे माफी मांगनी हैं।"

श्रृष्टि... ये बातें उनके ओर मेरे बीच की हैं जिसे मैं किसी को भी नहीं बताने वाली।

माताश्री ने जानने की जिद्द भी नहीं कियाबस सिर्फ अनुभवी आँखों ने उसे भाप ने की कोशिश की। श्रृष्टि को देखकर वो समझ गई। बाते बहुत बडी है। जिसके कारण उसकी खुशी में हल्की सी उदासी और अफसोस झलक रहीं थीं।

अब उसके मन के मोर फिर नाच उठे थे


Like Reply


Messages In This Thread
RE: श्रृष्टि की गजब रित - by maitripatel - 03-09-2024, 07:00 PM



Users browsing this thread: 3 Guest(s)