30-08-2024, 06:35 PM
दृश्य में बदलाव
सुबह दफ्तर आने के बाद कुछ जरूरी काम निपटाकर राघव ने श्रृष्टि को बुलवाया। श्रृष्टि बेमन से राघव के पास जानें के लिए निकला ही था की किसी को देखकर चौक गया और खुद से बोला... ये कमीना यहां पर क्यों? क्या करने आया? पहले तो कभी नहीं देखा।
उस शख्स ने भी श्रृष्टि को देख लिया। देखकर पहले तो चौक गया फ़िर कमीनगी मुस्कान से मुस्कुरा कर बोला... ओहो मैडम आप यहां काम करती हों चलो अच्छा हुआ आप को ढूंढने के लिए मेहनत नहीं करना पड़ेगा।
इतना बोलकर वह शख्स अपने गाल पर हाथ रखकर मुस्कुराते हुए चला गया और श्रृष्टि के माथे पर चिंता की लकीरें आ गईं। उन्हीं लकीरों के साथ श्रृष्टि राघव के पास पहुंच गई। श्रृष्टि से नज़रे मिलते ही उसके माथे पर चिंता की लकीरें देखकर राघव बोला... श्रृष्टि क्या हुआ तुम इतनी चिंतित क्यों दिखाई दे रही हों।
"कुछ नहीं सर बस इसलिए चिंतित हूं की आप ने यू अचानक क्यों बुलाया।" मूल वजह न बताकर दुसरा वजह बता दिया जो उसके लिए चिंता का विषय था ही नहीं।
राघव... अच्छा चलो बुलाने का कारण भी बता देता हूं। अभी तुम जिस प्रॉजेक्ट पर काम कर रहीं हों। उसके क्लाइंट ने अभी के अभी मिलने बुलाया हैं और तुम्हारा जाना जरूरी हैं।
"क्या" चौक कर श्रृष्टि बोलीं।
राघव... हां चलो हमे अभी चलना हैं।
इतना बोलकर राघव बहार को चल दिया और बुझे मन से धीरे धीरे श्रृष्टि ऐसे चल रहीं थीं जैसे उसके शरीर का बोझ उसके पैर उठा नहीं पा रहा हों।
कुछ ही देर में दोनों राघव के कार में थे हालाकी राघव के साथ उसी के कार से श्रृष्टि जाना नहीं चहती थी और इसके लिए उसके पास देने को कोई तर्क ही नहीं था इसलिए बेमन से कार में बैठ गई।
रास्ता भर सामने के सीट पर खुद को समेटे श्रृष्टि बैठी रहीं और खिड़की से बाहर को देखती रहीं। राघव कभी कभी नज़र फेरकर श्रृष्टि को देख लेता फिर मुस्कुराकर अपना ध्यान कार चलाने में लगा देता।
शहर के मशहूर रेस्टोरेंट के सामने कार रोका तो श्रृष्टि चौककर राघव को ऐसे देखा जैसे पूछ रहीं हों यहां क्यों लाए, हमे तो क्लाइंट से मिलने जाना था।
श्रृष्टि को चौकते देखकर राघव खुद ही बोल दिया…श्रृष्टि तुम ऐसे क्यों चौक रहीं हों क्लाइंट ने हमे यही पर मिलने बुलाया था।
दोनों साथ में रेस्टोरेंट के अंदर गए फिर एक ओर इशारा करके श्रृष्टि को साथ लिए एक पर्सनल केबिन में जाकर बैठ गया फ़िर श्रृष्टि को मेनू कार्ड देते हुए राघव बोला... श्रृष्टि जो पसंद हो अपने लिए और मेरे लिए भी ऑर्डर कर देना।
मेनू कार्ड को कुछ देर देखने के बाद ऑर्डर दे दिया फिर श्रृष्टि बोलीं…सर आप मुझे यहां किस काम से लाए है।? क्या मैं जान सकती हूं?
राघव...क्यों तुम नहीं जानती? हम यहां क्लाइंट से मिलने आए हैं।
श्रृष्टि...क्लाइंट तो अभी तक आए नहीं है। तो क्या आप उनसे पूछ सकते है? वो कितने देर में आ रहे हैं।?
राघव…पूछ लूंगा उसे पहले तुम मेरे एक सवाल का जवाब दे सकती हों कि तुम्हें मेरे साथ कुछ वक्त बैठने में क्या दिक्कत हैं?
श्रृष्टि के पास इस सवाल का जवाब था ही नहीं तो क्या जवाब देती। बस दो पल राघव को देखा फ़िर नज़रे झुका लिया और राघव बोला…तुम्हारे नज़रे झुका लेने से मैं इतना तो समझ ही गया हूं कि तुम्हारे पास मेरे सवाल का कोई जवाब नहीं हैं। अगर हैं भी तो तुम देना नहीं चहती हो शायद मैं तुम्हारे नजरों में बहुत या कहूं हद से ज्यादा गयागुजरा हूं इसलिए तुम बीते काफी समय से मुझे नज़रअंदाज कर रहीं हों। जब भी मैं तुम्हारे साथ कुछ वक्त बिताने आता हूं तुम बहाने से कहीं और चली जाती हों। मैं सही कह रहा हूं न।
इतना सुनते ही श्रृष्टि ने कुछ वक्त राघव की ओर देखा फ़िर अपना मुंह दूसरी ओर घुमा लिया फ़िर आंखें मिच लिया। दूसरी ओर देखकर ही श्रृष्टि बोलीं... सही कहा अपने आप मेरे नजरों में हद से ज्यादा गए गुजरे हों इसलिए मैं आपके साथ से बच रहीं थीं और आज भी आना नहीं चहती थी मगर मजबूरी है शायद आप के साथ नहीं आती तो आप मुझे नौकरी से निकाल देते और कहते मैं अपने काम में ज़िम्मेदार नहीं हूं।
श्रृष्टि इतनी बातें कह तो दिया मगर बातों के दौरान उसका गाला भर आया हुआ था और आंखो ने उसे धोका दे दिया था।
अपनी बाते कहने के दौरान श्रृष्टि किस हाल से गुजरी राघव समझ गया था। इसलिए मुस्करा दिया फिर श्रृष्टि के रूकते ही राघव बोला...अरे तुम तो सच बोल रहीं हों। जब तुम मेरे मुंह पर सच बोल ही रहीं हों तो नजरे क्यों फेरना, यहीं बाते तुम मेरी आंखों में देखकर भी बोल सकती हों।
इस वक्त श्रृष्टि का हाल ऐसा था कि वो फूट फूट कर रो दे मगर राघव के सामने खुद को कमज़ोर नहीं दिखाना चहती थी इसलिए किसी तरह खुद को रोके हुए थी। ये बात राघव भी शायद समझ गया होगा इसलिए आगे कुछ न बोलकर चुप रहा।
कुछ देर में उनका ऑर्डर आ गया फ़िर भी श्रृष्टि राघव की ओर नहीं देखा तब राघव बोला... श्रृष्टि कुछ खा लो शायद तब तक क्लाइंट आ जाए।
श्रृष्टि अभी राघव की ओर मुंह फेरती तो राघव देखकर ही समझ जाता कि जितनी बाते उसने कहीं है कहीं न कहीं वो बाते श्रृष्टि को भी चोट पहुंचा रही हैं। इसलिए बिना राघव की और देखे उठ खड़ी हुई और केबिन में लगा वाशबेसिन में हाथ के साथ अपना चेहरा धोने लगीं ये देखकर राघव बोला... अरे श्रृष्टि ये क्या कर रहीं हों चेहरा क्यों धो लिया। इससे तो तुम्हरा सारा मेकअप धुल गया।
श्रृष्टि तूरंत पलटी और राघव को ऐसे देखा जैसे पूछ रहीं हों कि देख कर बताओं तो मैंने कितना मेकअप किया हैं। राघव मुस्कुराते हुए बोला... सॉरी सॉरी श्रृष्टि मैं भूल गया था तुम तो नैचुरल ब्यूटी हों तुम्हें तो मेकअप करने की जरूरत ही नहीं हैं।
ये सुनते ही स्वतः ही श्रृष्टि के होठो पर मुस्कान तैर गई फ़िर श्रृष्टि चेहरा और हाथ धोने के बाद आकर जो मंगवाया था वो खाने लग गई। बिना पूछे यूं मतलबी की तरह खाते हुए देखकर राघव बोला…श्रृष्टि बड़े मतलबी हों एक बार भी पूछना ज़रूरी नहीं समझा।
सॉरी सर बस इतना बोलकर नज़रे झुका लिया और राघव बोला... तुम्हें शर्मिंदा होने की जरुरत नहीं हैं मै तो बस ऐसे ही कहा था।
राघव के इस बात का श्रृष्टि ने कोई जबाव नहीं दिया बस चुप चाप खाने में बिजी रहीं। देखा देखी राघव भी खाने में बिजी हो गया। कुछ देर में उनका खाना पीना हो गया फ़िर श्रृष्टि बोलीं...सर हमे आए हुए काफी समय हो गया फ़िर भी आपके क्लाइंट नहीं आया। एक बार पूछ कर तो देखो कहा रह गए।
राघव... देखो श्रृष्टि यहां कोई क्लाइंट नहीं आ रहा हैं। मुझे तुमसे कुछ बात करनी थीं इसलिए तुम्हें झूठ बोलकर यहां लाया हूं। तुमसे झूठ बोला उसके लिए सॉरी सॉरी सॉरी।
जारी रहेगा...
सुबह दफ्तर आने के बाद कुछ जरूरी काम निपटाकर राघव ने श्रृष्टि को बुलवाया। श्रृष्टि बेमन से राघव के पास जानें के लिए निकला ही था की किसी को देखकर चौक गया और खुद से बोला... ये कमीना यहां पर क्यों? क्या करने आया? पहले तो कभी नहीं देखा।
उस शख्स ने भी श्रृष्टि को देख लिया। देखकर पहले तो चौक गया फ़िर कमीनगी मुस्कान से मुस्कुरा कर बोला... ओहो मैडम आप यहां काम करती हों चलो अच्छा हुआ आप को ढूंढने के लिए मेहनत नहीं करना पड़ेगा।
इतना बोलकर वह शख्स अपने गाल पर हाथ रखकर मुस्कुराते हुए चला गया और श्रृष्टि के माथे पर चिंता की लकीरें आ गईं। उन्हीं लकीरों के साथ श्रृष्टि राघव के पास पहुंच गई। श्रृष्टि से नज़रे मिलते ही उसके माथे पर चिंता की लकीरें देखकर राघव बोला... श्रृष्टि क्या हुआ तुम इतनी चिंतित क्यों दिखाई दे रही हों।
"कुछ नहीं सर बस इसलिए चिंतित हूं की आप ने यू अचानक क्यों बुलाया।" मूल वजह न बताकर दुसरा वजह बता दिया जो उसके लिए चिंता का विषय था ही नहीं।
राघव... अच्छा चलो बुलाने का कारण भी बता देता हूं। अभी तुम जिस प्रॉजेक्ट पर काम कर रहीं हों। उसके क्लाइंट ने अभी के अभी मिलने बुलाया हैं और तुम्हारा जाना जरूरी हैं।
"क्या" चौक कर श्रृष्टि बोलीं।
राघव... हां चलो हमे अभी चलना हैं।
इतना बोलकर राघव बहार को चल दिया और बुझे मन से धीरे धीरे श्रृष्टि ऐसे चल रहीं थीं जैसे उसके शरीर का बोझ उसके पैर उठा नहीं पा रहा हों।
कुछ ही देर में दोनों राघव के कार में थे हालाकी राघव के साथ उसी के कार से श्रृष्टि जाना नहीं चहती थी और इसके लिए उसके पास देने को कोई तर्क ही नहीं था इसलिए बेमन से कार में बैठ गई।
रास्ता भर सामने के सीट पर खुद को समेटे श्रृष्टि बैठी रहीं और खिड़की से बाहर को देखती रहीं। राघव कभी कभी नज़र फेरकर श्रृष्टि को देख लेता फिर मुस्कुराकर अपना ध्यान कार चलाने में लगा देता।
शहर के मशहूर रेस्टोरेंट के सामने कार रोका तो श्रृष्टि चौककर राघव को ऐसे देखा जैसे पूछ रहीं हों यहां क्यों लाए, हमे तो क्लाइंट से मिलने जाना था।
श्रृष्टि को चौकते देखकर राघव खुद ही बोल दिया…श्रृष्टि तुम ऐसे क्यों चौक रहीं हों क्लाइंट ने हमे यही पर मिलने बुलाया था।
दोनों साथ में रेस्टोरेंट के अंदर गए फिर एक ओर इशारा करके श्रृष्टि को साथ लिए एक पर्सनल केबिन में जाकर बैठ गया फ़िर श्रृष्टि को मेनू कार्ड देते हुए राघव बोला... श्रृष्टि जो पसंद हो अपने लिए और मेरे लिए भी ऑर्डर कर देना।
मेनू कार्ड को कुछ देर देखने के बाद ऑर्डर दे दिया फिर श्रृष्टि बोलीं…सर आप मुझे यहां किस काम से लाए है।? क्या मैं जान सकती हूं?
राघव...क्यों तुम नहीं जानती? हम यहां क्लाइंट से मिलने आए हैं।
श्रृष्टि...क्लाइंट तो अभी तक आए नहीं है। तो क्या आप उनसे पूछ सकते है? वो कितने देर में आ रहे हैं।?
राघव…पूछ लूंगा उसे पहले तुम मेरे एक सवाल का जवाब दे सकती हों कि तुम्हें मेरे साथ कुछ वक्त बैठने में क्या दिक्कत हैं?
श्रृष्टि के पास इस सवाल का जवाब था ही नहीं तो क्या जवाब देती। बस दो पल राघव को देखा फ़िर नज़रे झुका लिया और राघव बोला…तुम्हारे नज़रे झुका लेने से मैं इतना तो समझ ही गया हूं कि तुम्हारे पास मेरे सवाल का कोई जवाब नहीं हैं। अगर हैं भी तो तुम देना नहीं चहती हो शायद मैं तुम्हारे नजरों में बहुत या कहूं हद से ज्यादा गयागुजरा हूं इसलिए तुम बीते काफी समय से मुझे नज़रअंदाज कर रहीं हों। जब भी मैं तुम्हारे साथ कुछ वक्त बिताने आता हूं तुम बहाने से कहीं और चली जाती हों। मैं सही कह रहा हूं न।
इतना सुनते ही श्रृष्टि ने कुछ वक्त राघव की ओर देखा फ़िर अपना मुंह दूसरी ओर घुमा लिया फ़िर आंखें मिच लिया। दूसरी ओर देखकर ही श्रृष्टि बोलीं... सही कहा अपने आप मेरे नजरों में हद से ज्यादा गए गुजरे हों इसलिए मैं आपके साथ से बच रहीं थीं और आज भी आना नहीं चहती थी मगर मजबूरी है शायद आप के साथ नहीं आती तो आप मुझे नौकरी से निकाल देते और कहते मैं अपने काम में ज़िम्मेदार नहीं हूं।
श्रृष्टि इतनी बातें कह तो दिया मगर बातों के दौरान उसका गाला भर आया हुआ था और आंखो ने उसे धोका दे दिया था।
अपनी बाते कहने के दौरान श्रृष्टि किस हाल से गुजरी राघव समझ गया था। इसलिए मुस्करा दिया फिर श्रृष्टि के रूकते ही राघव बोला...अरे तुम तो सच बोल रहीं हों। जब तुम मेरे मुंह पर सच बोल ही रहीं हों तो नजरे क्यों फेरना, यहीं बाते तुम मेरी आंखों में देखकर भी बोल सकती हों।
इस वक्त श्रृष्टि का हाल ऐसा था कि वो फूट फूट कर रो दे मगर राघव के सामने खुद को कमज़ोर नहीं दिखाना चहती थी इसलिए किसी तरह खुद को रोके हुए थी। ये बात राघव भी शायद समझ गया होगा इसलिए आगे कुछ न बोलकर चुप रहा।
कुछ देर में उनका ऑर्डर आ गया फ़िर भी श्रृष्टि राघव की ओर नहीं देखा तब राघव बोला... श्रृष्टि कुछ खा लो शायद तब तक क्लाइंट आ जाए।
श्रृष्टि अभी राघव की ओर मुंह फेरती तो राघव देखकर ही समझ जाता कि जितनी बाते उसने कहीं है कहीं न कहीं वो बाते श्रृष्टि को भी चोट पहुंचा रही हैं। इसलिए बिना राघव की और देखे उठ खड़ी हुई और केबिन में लगा वाशबेसिन में हाथ के साथ अपना चेहरा धोने लगीं ये देखकर राघव बोला... अरे श्रृष्टि ये क्या कर रहीं हों चेहरा क्यों धो लिया। इससे तो तुम्हरा सारा मेकअप धुल गया।
श्रृष्टि तूरंत पलटी और राघव को ऐसे देखा जैसे पूछ रहीं हों कि देख कर बताओं तो मैंने कितना मेकअप किया हैं। राघव मुस्कुराते हुए बोला... सॉरी सॉरी श्रृष्टि मैं भूल गया था तुम तो नैचुरल ब्यूटी हों तुम्हें तो मेकअप करने की जरूरत ही नहीं हैं।
ये सुनते ही स्वतः ही श्रृष्टि के होठो पर मुस्कान तैर गई फ़िर श्रृष्टि चेहरा और हाथ धोने के बाद आकर जो मंगवाया था वो खाने लग गई। बिना पूछे यूं मतलबी की तरह खाते हुए देखकर राघव बोला…श्रृष्टि बड़े मतलबी हों एक बार भी पूछना ज़रूरी नहीं समझा।
सॉरी सर बस इतना बोलकर नज़रे झुका लिया और राघव बोला... तुम्हें शर्मिंदा होने की जरुरत नहीं हैं मै तो बस ऐसे ही कहा था।
राघव के इस बात का श्रृष्टि ने कोई जबाव नहीं दिया बस चुप चाप खाने में बिजी रहीं। देखा देखी राघव भी खाने में बिजी हो गया। कुछ देर में उनका खाना पीना हो गया फ़िर श्रृष्टि बोलीं...सर हमे आए हुए काफी समय हो गया फ़िर भी आपके क्लाइंट नहीं आया। एक बार पूछ कर तो देखो कहा रह गए।
राघव... देखो श्रृष्टि यहां कोई क्लाइंट नहीं आ रहा हैं। मुझे तुमसे कुछ बात करनी थीं इसलिए तुम्हें झूठ बोलकर यहां लाया हूं। तुमसे झूठ बोला उसके लिए सॉरी सॉरी सॉरी।
जारी रहेगा...