Thread Rating:
  • 5 Vote(s) - 2.4 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
Romance श्रृष्टि की गजब रित
#87
भाग - 32



दोनों बाप बेटे भोजन करते हुए। दफ्तर की बाते कर रहें थे। तब राघव बोला... पापा कल शाम को मुझे कुछ काम से 10-15 दिन के लिए बहार जाना हैं। आप इतने दिनों के लिए जब भी आपको मौका मिले दफ्तर हों आना।

तिवारी ने हां बोल दिया फिर भोजन से निपट कर राघव अपने कमरे में चला गया और तिवारी वही बैठे रहें। कुछ देर में अरमान भोजन करने के बाद अपने कमरे में जा रहा था कि तिवारी ने उसे बुला लिया। अरमान के आते ही तिवारी बोला...अरमान तुझे जयपुर वापस कब जाना हैं।

अरमान... आज ही तो आया हूं। कुछ दिन बाद चला जाऊंगा।

तिवारी... ठीक है कल शाम को राघव किसी काम से बाहर जा रहा हैं उसके आने तक तू रोजाना दफ्तर जायेगा।

अरमान... जयपुर का काम देखू फ़िर दफ्तर भी जाऊं इतना काम मेरे से नहीं हो पायेगा।

तिवारी... क्यों नहीं हो पायेगा? राघव को देखा हैं उसे अपने बारे में सोचने का फुरसत नहीं मिलता हैं दिन रात सिर्फ काम और काम में लगा रहता हैं।

अरमान... काम और काम के अलावा उसे और कुछ सूझता ही नही मैं उसके जीतना काम मैं नहीं कर सकता हूं।

तिवारी...अच्छा राघव दिन रात मेहनत करके संपत्ति बढ़ाएगा और तू बैठें बैठें बराबरी का हिस्सा लेगा।? तूझे संपति में बराबरी का हिस्सा चहिए तो राघव के बराबर काम करना होगा। अगर नहीं कर सकता तो संपत्ति में बराबरी का हिस्सा तो छोड़ जीतना मिल रहा हैं शायद वो भी न मिले।

अरमान... मतलब आप...।

"हां मैं संपत्ति का बराबर हिस्सा कर दूंगा लेकिन तब जब तू राघव जितना काम उतनी ही ज़िम्मेदारी से करेगा जितनी ज़िम्मेदारी से राघव करता हैं।" अरमान की बात पूरा करते हुए तिवारी बोला

"ठीक हैं" बुझे मन से बोलकर अरमान चला गया उसके बाद तिवारी भी अपने कमरे में चला गया।

Like Reply


Messages In This Thread
RE: श्रृष्टि की गजब रित - by maitripatel - 30-08-2024, 06:35 PM



Users browsing this thread: 7 Guest(s)