30-08-2024, 06:34 PM
दृश्य में बदलाव
शाम के चाय का वक्त हों रहा था। चंद्रेश तिवारी डायनिंग हॉल में बैठे चाय की चुस्कियां ले रहें थे। तभी द्वार घंटी ने बजकर किसी के आने का संकेत दिया।
तिवारी... रमेश देख तो कौन आया हैं।
रमेश जाकर द्वार खोला सामने खड़े शख्स को देखकर बोला... छोटे मालिक आप
तिवारी... रमेश कौन आया हैं।
रमेश... साहब छोटे मालिक आएं हैं।
इतना बोलकर रमेश किनारे हट गया या कहूं अरमान ने धक्का देकर उसे किनारे किया और दनदनाते हुए भीतर घुस आया फ़िर "मां मां कहा हों"।
तिवारी... तेरी मां उसके कमरे मैं हैं। यहां खड़े खड़े चिल्लाने से कुछ नहीं होने वाला मिलना है तो तुझे खुद चलकर उसके कमरे तक जाना होगा।
अरमान बिना कुछ कहें बरखा के कमरे में चला गया। कुछ देर बाते करने के बाद बरखा को कमरे से बाहर चलने को कहा लेकिन बरखा ने मना कर दिया। तब अरमान बोला…क्यों नहीं जाना
"वो नहीं आएगी क्योंकि उसे चेतावनी मिला हुआ हैं जब तक मैं या राघव घर में रहेंगे वो अपने कमरे में कैद रहेगी।" ये आवाज तिवारी का था जो कमरे के द्वार से कुछ ही दूरी पर बैठे चाय की चुस्कियां ले रहा था।
अरमान... कहें की चेतावनी। मां तुम बाहर चलो मैं देखता हूं कौन क्या करता हैं ये बूढ़ा तो बुढ़ापे में सटिया गया हैं।
"सही कहा बूढ़ा बुढ़ापे में सटिया गया हैं और वो कर रहा हैं जो वर्षो पहले करना चहिए था। तू भी कान खोलकर सुन ले इस घर का मालिकाना हक मेरे पास हैं इसलिए जो मैं कहुंगा इस घर में वोही होगा। अगर तुझे इस घर में खुला घूमना है तो तुझे भी वहीं करना होगा जो मैं कहुंगा। मेरा कहा नहीं मानना हैं तो कहीं ओर अपना ठिकाना ढूंढ लेना।" लगभग चीखते हुए तिवारी ने अपनी बाते कह दिया।
तिवारी के बातों का जवाब देने के लिए अरमान का जीभ कुलबूला रहा था। मगर वो कुछ कह नहीं पाया क्योंकि बरखा ने उसे होठों पर उंगली रखकर चुप रहने का इशारा कर दिया था। यह देख तिवारी बोला... बरखा आज तुमने पहली बार अपने बेटे को बोलने से रोककर एक अच्छा काम किया हैं। आगे भी ऐसे ही अच्छा काम करती रहना इससे इस घर में शान्ति बनी रहेगी और तुम दोनों मां बेटे का ठाट बांट भरा जीवन सुचारू रूप से चलता रहेगा। जिस दिन तुमने यह काम नहीं किया उस दिन मैं तुम दोनों मां बेटे को धक्के मार कर इस घर से बहार फेंक दूंगा और संपति से भी बेदखल कर दूंगा।
तिवारी की कड़क मिजाज से भरी बातें सुनकर दोनों मां बेटे को सांप सूंघ गया। दोनों बिना कुछ कहें कमरे का द्वार बन्द कर लिया फिर अरमान के पूछने पर बरखा ने बता दिया की तिवारी ने अपना तेवर क्यों बदल लिया। जिसे जानकर अरमान और बरखा में योजना बनाने लगा की इस परिस्थिती से कैसे बाहर निकला जाए।
रात्रि भोजन का समय हों चुका था। तिवारी और राघव के लिए भोजन लगाया जा रहा था उसी वक्त अरमान अपने कमरे से बाहर निकला फ़िर बोला…रमेश मेरा और मां का खाना मां के कमरे में लगवा देना।
तिवारी... रमेश अभी खाली नहीं है हम दोनों बाप बेटे के लिए भोजन लगा रहा है। तुझे जल्दी है तो खुद से लेकर जा।
राघव... कैसा है भाई और कब आया।?
अरमान...देख ले कैसा हूं। शाम को आया हूं तब से पराए जैसा सलूक हों रहा हैं।
तिवारी... तुम्हारा किया हुआ तुम पर ही लौट रहा हैं बेटे। ऐसा ही सलूक तुम दोनों मां बेटे राघव के साथ करते आए हों। इतने से वक्त में जब तुझे इतना बूरा लग रहा हैं तो सोच जरा राघव को कितना बूरा लगता था?। जब तुम दोनों उसके साथ पराए जैसा सलूक करते हों और तुम दोनों तो वर्षों से करते आ रहे हों।
तिवारी का तेवर और सच्चाई बताने पर अरमान बिना कुछ कहें वहा से चला गया। उसके जाते ही तिवारी ने रमेश को बरखा और अरमान का खाना उनके कमरे में लगवा देने को कह दिया।
जारी रहेगा….
शाम के चाय का वक्त हों रहा था। चंद्रेश तिवारी डायनिंग हॉल में बैठे चाय की चुस्कियां ले रहें थे। तभी द्वार घंटी ने बजकर किसी के आने का संकेत दिया।
तिवारी... रमेश देख तो कौन आया हैं।
रमेश जाकर द्वार खोला सामने खड़े शख्स को देखकर बोला... छोटे मालिक आप
तिवारी... रमेश कौन आया हैं।
रमेश... साहब छोटे मालिक आएं हैं।
इतना बोलकर रमेश किनारे हट गया या कहूं अरमान ने धक्का देकर उसे किनारे किया और दनदनाते हुए भीतर घुस आया फ़िर "मां मां कहा हों"।
तिवारी... तेरी मां उसके कमरे मैं हैं। यहां खड़े खड़े चिल्लाने से कुछ नहीं होने वाला मिलना है तो तुझे खुद चलकर उसके कमरे तक जाना होगा।
अरमान बिना कुछ कहें बरखा के कमरे में चला गया। कुछ देर बाते करने के बाद बरखा को कमरे से बाहर चलने को कहा लेकिन बरखा ने मना कर दिया। तब अरमान बोला…क्यों नहीं जाना
"वो नहीं आएगी क्योंकि उसे चेतावनी मिला हुआ हैं जब तक मैं या राघव घर में रहेंगे वो अपने कमरे में कैद रहेगी।" ये आवाज तिवारी का था जो कमरे के द्वार से कुछ ही दूरी पर बैठे चाय की चुस्कियां ले रहा था।
अरमान... कहें की चेतावनी। मां तुम बाहर चलो मैं देखता हूं कौन क्या करता हैं ये बूढ़ा तो बुढ़ापे में सटिया गया हैं।
"सही कहा बूढ़ा बुढ़ापे में सटिया गया हैं और वो कर रहा हैं जो वर्षो पहले करना चहिए था। तू भी कान खोलकर सुन ले इस घर का मालिकाना हक मेरे पास हैं इसलिए जो मैं कहुंगा इस घर में वोही होगा। अगर तुझे इस घर में खुला घूमना है तो तुझे भी वहीं करना होगा जो मैं कहुंगा। मेरा कहा नहीं मानना हैं तो कहीं ओर अपना ठिकाना ढूंढ लेना।" लगभग चीखते हुए तिवारी ने अपनी बाते कह दिया।
तिवारी के बातों का जवाब देने के लिए अरमान का जीभ कुलबूला रहा था। मगर वो कुछ कह नहीं पाया क्योंकि बरखा ने उसे होठों पर उंगली रखकर चुप रहने का इशारा कर दिया था। यह देख तिवारी बोला... बरखा आज तुमने पहली बार अपने बेटे को बोलने से रोककर एक अच्छा काम किया हैं। आगे भी ऐसे ही अच्छा काम करती रहना इससे इस घर में शान्ति बनी रहेगी और तुम दोनों मां बेटे का ठाट बांट भरा जीवन सुचारू रूप से चलता रहेगा। जिस दिन तुमने यह काम नहीं किया उस दिन मैं तुम दोनों मां बेटे को धक्के मार कर इस घर से बहार फेंक दूंगा और संपति से भी बेदखल कर दूंगा।
तिवारी की कड़क मिजाज से भरी बातें सुनकर दोनों मां बेटे को सांप सूंघ गया। दोनों बिना कुछ कहें कमरे का द्वार बन्द कर लिया फिर अरमान के पूछने पर बरखा ने बता दिया की तिवारी ने अपना तेवर क्यों बदल लिया। जिसे जानकर अरमान और बरखा में योजना बनाने लगा की इस परिस्थिती से कैसे बाहर निकला जाए।
रात्रि भोजन का समय हों चुका था। तिवारी और राघव के लिए भोजन लगाया जा रहा था उसी वक्त अरमान अपने कमरे से बाहर निकला फ़िर बोला…रमेश मेरा और मां का खाना मां के कमरे में लगवा देना।
तिवारी... रमेश अभी खाली नहीं है हम दोनों बाप बेटे के लिए भोजन लगा रहा है। तुझे जल्दी है तो खुद से लेकर जा।
राघव... कैसा है भाई और कब आया।?
अरमान...देख ले कैसा हूं। शाम को आया हूं तब से पराए जैसा सलूक हों रहा हैं।
तिवारी... तुम्हारा किया हुआ तुम पर ही लौट रहा हैं बेटे। ऐसा ही सलूक तुम दोनों मां बेटे राघव के साथ करते आए हों। इतने से वक्त में जब तुझे इतना बूरा लग रहा हैं तो सोच जरा राघव को कितना बूरा लगता था?। जब तुम दोनों उसके साथ पराए जैसा सलूक करते हों और तुम दोनों तो वर्षों से करते आ रहे हों।
तिवारी का तेवर और सच्चाई बताने पर अरमान बिना कुछ कहें वहा से चला गया। उसके जाते ही तिवारी ने रमेश को बरखा और अरमान का खाना उनके कमरे में लगवा देने को कह दिया।
जारी रहेगा….