28-08-2024, 06:55 PM
अब साक्षी की जुबान से
साक्षी ने बोलला शुरू किया
देखो आंटी मै ज्यादा डीप में तो नहीं बताउंगी पर ऊपर ऊपर से बता देती हु
मेरे मा बाप का नाम “अनाथालय” है
क्या ??????? दोनों मा बेटी के मुह से एक स्वर निकला
साक्षी: अरे अभी से हैरान हो गई दोनों ........पहले मुझे बता देने दो बाद में सवाल जवाब भी होते रहेंगे
साक्षी आगे बोली
मुझे नहीं पता मै अनाथालय कैसे पहोची हु, मा ने जन्म देते ही छोड़ दिया होगा या फिर मै एक अनैतिक सम्बन्ध का परिणाम हो सकती हु या फिर किसी बलात्कार का फल या फिर एक हवस मा की भी या बाप की भी या दोनों की या फिर एक अनचाही औलाद या फिर किसी की भूल कम उम्र की भूल या फिर एक पाप जो भी हो लेकिन बाद में ये सब मेरे सर्टिफिकेट बन गए |
खेर हर बच्चे के पैदा होने के मकसद होते है मा बाप की आशा होती है उम्मीद होती है ख़ुशी होती है अपने प्रेम का सफल फल के स्वरुप में माना जाता है या फिर मा बाप को अपनी क्रियेटिविटी का अनोखा सुख होता है
मेरा जन्म मकसद के बगैर का था खेर अनाथालय में पाई गई और वही बड़ी हुई मेट्रन के हाथ निचे उनकी देखरेख में पली बाप का नाम ऐसे ही दिया गया रामलाल जो सिर्फ एक सर्टिफिकेट के लिए जरुरी था और वहां भी एक हेस्त्रिक लगा हुआ है की सिर्फ नाम दिया गया है जैविक कुछ भी नहीं
स्कुल में अव्वल रहने की वजह से पढ़ाई जारी रखी गई वो भी ट्रस्टी के मेहरबानी से..... खेर प्यार प्रेम क्या होता है वो हम अनाथो के लिए शब्दकोष से बहार होता है
स्कुल शिक्षण के बाद कोलेज में जाने के लिए और उसकी फ़ीस भरने के लिए मैंने लोगो के घरकाम भी किया सफाई भी की, ऑफिस की सफाई भी की
आखिर एक लड़की हु ना निखरी भी और रस पीनेवाले शुरू भि हुए
एक दिन मेरा सौदा भी हो गया लेकिन जैसे तैसे मै वहा से भाग निकली
आंटी, नारी होना और वो भी सुन्दर मतलब गुनाह है मुझे कम उमर में ही पता चला की नारी क्या होती है और वही से मैंने थाम ली की मै बिकनेवालो में से नहीं हु मा बाप ने छोड़ा है लेकिन जीना तो मुझे है ही और अपने ढंग से मेट्रन से लड़ी भी और सिखा की कैसे जिंदगी में जीने के लिए लड़ना जरुरी है अपने वजूद के लिए
आखिर फिर से वोही मेट्रन के निचे जाना पड़ा लेकिन इस बार उद्देश्य कोलेज था काम भी करती रही और अपने आप को बचाती भी रही और इस प्रकार मेरा निखार जो आज है वैसा बना और मेरा सौदा फिर से हो गया पर भगवान ने मेरे नसीब कुछ अच्छे लिखे थे की मैंने उनकी बाते सुनी और अनाथालय छोड़ दिया और मै भी, आप ही की तरह यहाँ आके एक झोपड़ी में रही और कोलेज ख़त्म किया और आज मै ऐसी हु जो आप लोगो को दिख रही हु|
हां यहाँ आप से एक बात नहीं छुपाना चाहती ऐसे परिश्थिति से अपने आप को बचाया भी लेकिन अपने आप को अक्षत नहीं रख पायी सो आज मै अक्षत नहीं हु अब ये ना पूछना की वो भेडीया कौन था उस नज़र से मै आज भी अक्षत हु पर मेरी मेट्रन ने मुज से समलैंगिक शारीरिक सम्बन्ध बनाए थे मेरे लिए वो जरुरी भी था क्यों की वोही थी जो मुझे बचा के रख सकती थी फिर भी पैसो के लिए उसने मेरा सौदा 2 बार किया पर बच निकली सो किसी पुरुष ने मेरी अक्षतता नहीं ली पर एक नार ही......
अब आप जान ना चाहेगी की मेरी उपलब्धि
ये जान लो की मेरी उपलब्धि ये है की मै कोई वेश्या नहीं बनी अपने आप को काबिल बनाया और भद्र समाज में रहने के काबिल हु ये सब से बड़ी उपलब्धि होती है हम जैसे अनाथो के लिए
अब श्रुष्टि ये जान लो की मै ने तेरे साथ जो सुलूक किया वो मेरा पुराना अनुभव से हुआ मुझे लगता है की सिर्फ मै ही होनी चाहिए लेकिन तुम्हारे व्यवहार ने मुझे समाज को फिर मान देना पड़ा वर्ना मै इस भद्र समाज को सिर्फ गाली ही देती हु या देती थी
मै नशिबवाली हु पर अनाथालय की हर बच्ची मेरे जैसे नसीब नहीं ले के आती कही ना कही उसे हार मान ही लेनी पड़ती है क्यों की रक्षा का विशवास मा बाप की नहीं, सर के ऊपर छत्र नहीं, सुरक्षा की कोई गेरंटी नहीं.........फिर भी सभी जीती है
श्रुष्टि तुम्हे ऐसा लगता है की मा की वजह से ऐसा होता है या फिर तुम खुद अपने आप को कोसती हो और अपनी मा के गोद में अपना सर रख के रो सकती हो, एक प्रेमाल और हेतार्थ हाथ सदा के लिए तेरे सीर पर रहेगा उसका विश्वास है
मै क्या करू ???? कहा रोउ कौनसे कंधे पे जाके ,,,, किस को अपना ख़ुशी या दुःख पेश करू ? बहार एक से एक कंधे पड़े है जो रोने देते है और अपनी हवस भी मिटाते है विश्वनीय कंधा तुम्हारे पास है.....कुछ किताबो में पढ़ा था श्रुष्टि की कुछ दुःख तो मा के शरीर की गंध (सुगंध) आते ही दूर हो जाते है मुझे पता नहीं की वो गंध या सुगंध कैसी होती है और बेटी के दुःख उस सुगंध कैसे दूर करती है, मुज से विवरण मत पूछना
लेकिन फिर भी खुश हु हा ये जरुर है की तुम जैसो को मा के प्रेम पाते हुए देख के मुझे बहोत जलन होती है मै तुरंत वो जगह छोड़ देती हु और उसी वजह से मैंने उस दिन तुम दोनों से खास बात नहीं की थी
मै मेरे घर जाके कितने सवाल पूछती हु अपने माँ और बाप से कोई नहीं जानता लेकिन कोई जवाब भी तो नहीं देता ........मेरे अनुभव और आकलन ने मुझे ये सिखाया है की कुछ भी करो लेकिन अपने वजूद बनाए रखो शायद इसलिए मैंने तुम से ऐसा व्यवहार किया माफ़ कर देना अगर हो सके तो
अब रूम में कुल मिला के 6 आंखे रो रही थी
आखिर माताश्री ने चुपकी तोड़ी “बेटा तुम्हारे बारे में जानने के बाद हमारा रोना तो बिलकुल बेकार है तुम सच में महान हो मुझे पता है की एक अकेली नारी को जीने के लिए कितना सहन करना पड़ता है और तूने तो बचपन से यही देखा है
“मुझे तुम से कोई शिकायत पहले भी नहीं थी और आज भी नहीं है” श्रुष्टि ने भी अपना विचार प्रगट कीया
साक्षी “खेर मैंने कहा था ना की मेरी कहानी रोचक नहीं” मानती ही नहीं थी
हो सकता है मैंने कुछ गलत बोला हो या मेरी भाषा अभद्र रही हो पर मैंने यही सिखा है और यही सिखाया है अगर मा होती तो शायद मै भी आप लोगों की तरह .........भद्र ..ही ......होती ..........रो देती हुई
माताश्री “ बेटी एक बात कहू ?? अगर तुम्हे बुरा ना लगे तो ?
आंटीजी आपको पूछने का कोई अधिकार नहीं है सिर्फ कहना है चाहे बुरा लगे या अच्छा
“क्या मै आंटी जी से माताश्री में आ सकती हु तुम्हारे लिए ???”
साक्षी हतप्रभ बनी हुई देखती रही
श्रुष्टि: अब जल्दी जवाब दे वर्ना मै दे दुगी और माँ को बता दूंगी की आपने मुझे एक बहन दे दी
साक्षी कुछ बोल ना सकी बस माता के कंधे पे सर रख के फुट फुट और चिल्ला चिल्ला के रोने लगी
और 4 आँखे और 2 ह्रदय भी उसका साथ देने लगे
मा : रो ले बेटे जितना रो सकती है रो ले और साक्षी की पीठ को पसारे जा रही थी
काफी देर के बाद में साक्षी अपने आप को संभल पायी
आंटीजी आपका आभार
उतना ही बोल सकी की एक हल्का सा तमाचा उसके गाल पर पड़ा और वो मा के हाथ से था
“आज के बाद आंटी शब्द मेरे लिए तुम्हारे मुह से निकला तो अभि सिर्फ़ हल्का तमाचा पडा है फिर झाड़ू से मार पड़ेगी ये मत भूलना की मै तुम्हे झेलती जाउंगी” कह के उसे गले लगा दिया और कान में बोली मा बोल
“मा” !!!!!!!!!! माफ़ कर दो ............साक्षी अपनी आप को ना रोक पाई और फिर से रोने बैठ गई
बहन से मिलेगी ??? या दोस्त से मिलेगी या फिर सहकर्मचारी से ????
यहाँ बहन से मिलूंगी, खानगी में दोस्त से मिलूंगी जब मा नहीं होगी तब, और ऑफिस में सहकर्मचारी से मिलूंगी बोल अब कुछ बोलना है तुजे !!!!!!!!!!
वातावरण गमगीनी से कुछ प्रसन्नता की तरफ बढ़ा
अरे हां तेरी प्रेम कहानी का मुझे उस में ज्यादा रूचि थी ये मा भी ना बिच में आ गई सच में “ कह के साक्षी को आँख मरते हुए और एक ऊँगली उसके पेट में सरसरी करते हुए बोली
“देख अब मा है मतलब वो सब नहीं” मा से शर्म रख साक्षी ने भी आँख मारते हुए जवाब दिया
अरे मा है तो क्या है बेटे बता भी दे मन में रखने से तो अच्छा है और मा भी तो दोस्त बन ही जाती है जब बेटी बैठती उठती हो जाती है ठीक है चलो मै फिर थोड़ी चाय बना लेती हु कह के दोनों बहनों को अकेला छोड़ ना ही बेहतर समजी
मुझे क्या पता ?? ही ही ही ही
चल शुरू कर श्रुष्टि ने फिर से आँख मारी
साक्षी...मेरी प्रेम कहानी तेरी तरह टिपिकल नहीं है बिल्कुल सिंपल सा हैं। जैसा की तू जानती है शिवम और मैं बहुत समय से तिवारी कंस्ट्रक्शन ग्रुप में काम कर रहें हैं। जब से मैं और शिवम एक साथ एक ही प्रोजेक्ट पर काम करने लगें तभी से शिवम मुझे पसंद करने लगा लेकिन मैं उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया क्योंकि मेरे दिमाग़ में कोई ओर ही फितूर चल रहा था। अब तू उस फितूर के बारे में पूछने न लग जाना ठीक हैं। (श्रृष्टि हां में मुंडी हिला दिया तब साक्षी आगे बताना शुरू किया) जैसे जैसे वक्त बीतता गया वो मेरे प्यार में गिरता गया। मैं जो करने को कहता चाहे सही हो या गलत खुद भी करता और दूसरे सहयोगी को भी वैसा करने को मनवा लेता था।
कारण वो सभी जानते थे मगर शिवम में इतनी हिम्मत नहीं हुआ कि वो मुझे प्रपोज कर पाए कहीं न कहीं उसके मन में डर था कहीं मैं बूरा मान गई ओर राघव सर से कहके उसे नौकरी से निकलवा दिया तो वो मूझसे दूर चला जायेगा। बाकी सहयोगी के बार बार कहने पर उसमे थोड़ा थोड़ा हिम्मत आने लगा और मेरे एक हफ्ते की छुट्टी के बाद वापस लौटते ही उसमे बहुत बदलाब आ चुका था। वो मूझसे कुछ कहना चहता था लेकिन झिकक के कारण कहा नहीं पाता था।
जब सर ने हम सभी को लंच पर ले जानें की बात कहा तब शिवम मौका ताड़ने की सोचा और लंच पर ही कोई मौका देखकर मूझसे बात करने का प्लान बना लिया। आंटी की वजह से तू चली आई और तेरे आ जानें के कारण राघव सर लंच पे नहीं जाना चाहते थे।
"क्या सिर्फ मेरे कारण सर लंच पर नहीं जाना चाहते थे।"चौकते हुए श्रृष्टि बोलीं
साक्षी... हां क्योंकि लांच पर जानें का प्लान सिर्फ तेरे कारण बनाया गया था ताकि सर तुझसे बात कर पाए और लंच पर जानें का प्लान मैंने ही बनाने को कहा था क्योंकि तू सर के साथ अकेले कहीं जानें को राज़ी नहीं हों रहीं थीं।
श्रृष्टि…मतलब तू सब जानती थीं ओर मैं सोचती थी तू मेरी हरकते देखकर तुक्का भिड़ती थी जो सही बैठता था।
साक्षी...चल हट पगली मैं सब जान बूझकर कहती थीं। मुझे उस दिन पता चला जब मैं छुट्टी के बाद इस्तीफा देने वापस आईं थीं। तू तो मुझे प्रोजेक्ट हेड बनाने की बात कहकर चली आई पर बाद में सर ने मुझे बता दिया की उनके मन में तेरे लिए क्या है। पता है सर कितना हक से कह रहे थे "श्रृष्टि सिर्फ मेरी हैं।"
"श्रृष्टि सिर्फ मेरी हैं।" ये सुनकर श्रृष्टि मुस्करा दिया फ़िर बोला... मैं कितना उनकी हूं ये तो बाद में पाता चलेगा अब तू अपनी सूना।
साक्षी... राघव सर ने मुझे सभी को लंच पे ले जानें को कहा पर मेरा मन जानें को नहीं कर रहा था इसलिए मैंने भी मना कर दिया। मेरे न जानें की बात जब उन लोगों को कहा तो तब शिवम ने झिझकते हुए अपने दिल की बात कह दिया। मुझे पहले से अंदाजा था कि वो कुछ कहना चाहत है। जब जाना तो मैंने उससे कुछ वक्त मांगा और उसने दे भी दिया। इस बीच मैंने उसकी कुंडली खंगाला और उसके साथ छुट्टी वाले दिन कुछ वक्त बिताने लगी तब मुझे पता चला शिवम नेचर का बहुत अच्छा है। मगर अब तेरे बाप और नाना नानी के दोहरे चरित्र शख्सियत की बात जानकर लग रहा हैं शिवम के साथ ओर वक्त बिताना पडेगा। तभी पता चलेगा कही शिवम ने भी दोहरे चरित्र शख्सियत का मुखौटा तो नहीं ओढ़ रखा हैं साथ ही ये भी पाता करना है उसके परिवार वाले कैसे हैं।
जारी रहेगा...
साक्षी ने बोलला शुरू किया
देखो आंटी मै ज्यादा डीप में तो नहीं बताउंगी पर ऊपर ऊपर से बता देती हु
मेरे मा बाप का नाम “अनाथालय” है
क्या ??????? दोनों मा बेटी के मुह से एक स्वर निकला
साक्षी: अरे अभी से हैरान हो गई दोनों ........पहले मुझे बता देने दो बाद में सवाल जवाब भी होते रहेंगे
साक्षी आगे बोली
मुझे नहीं पता मै अनाथालय कैसे पहोची हु, मा ने जन्म देते ही छोड़ दिया होगा या फिर मै एक अनैतिक सम्बन्ध का परिणाम हो सकती हु या फिर किसी बलात्कार का फल या फिर एक हवस मा की भी या बाप की भी या दोनों की या फिर एक अनचाही औलाद या फिर किसी की भूल कम उम्र की भूल या फिर एक पाप जो भी हो लेकिन बाद में ये सब मेरे सर्टिफिकेट बन गए |
खेर हर बच्चे के पैदा होने के मकसद होते है मा बाप की आशा होती है उम्मीद होती है ख़ुशी होती है अपने प्रेम का सफल फल के स्वरुप में माना जाता है या फिर मा बाप को अपनी क्रियेटिविटी का अनोखा सुख होता है
मेरा जन्म मकसद के बगैर का था खेर अनाथालय में पाई गई और वही बड़ी हुई मेट्रन के हाथ निचे उनकी देखरेख में पली बाप का नाम ऐसे ही दिया गया रामलाल जो सिर्फ एक सर्टिफिकेट के लिए जरुरी था और वहां भी एक हेस्त्रिक लगा हुआ है की सिर्फ नाम दिया गया है जैविक कुछ भी नहीं
स्कुल में अव्वल रहने की वजह से पढ़ाई जारी रखी गई वो भी ट्रस्टी के मेहरबानी से..... खेर प्यार प्रेम क्या होता है वो हम अनाथो के लिए शब्दकोष से बहार होता है
स्कुल शिक्षण के बाद कोलेज में जाने के लिए और उसकी फ़ीस भरने के लिए मैंने लोगो के घरकाम भी किया सफाई भी की, ऑफिस की सफाई भी की
आखिर एक लड़की हु ना निखरी भी और रस पीनेवाले शुरू भि हुए
एक दिन मेरा सौदा भी हो गया लेकिन जैसे तैसे मै वहा से भाग निकली
आंटी, नारी होना और वो भी सुन्दर मतलब गुनाह है मुझे कम उमर में ही पता चला की नारी क्या होती है और वही से मैंने थाम ली की मै बिकनेवालो में से नहीं हु मा बाप ने छोड़ा है लेकिन जीना तो मुझे है ही और अपने ढंग से मेट्रन से लड़ी भी और सिखा की कैसे जिंदगी में जीने के लिए लड़ना जरुरी है अपने वजूद के लिए
आखिर फिर से वोही मेट्रन के निचे जाना पड़ा लेकिन इस बार उद्देश्य कोलेज था काम भी करती रही और अपने आप को बचाती भी रही और इस प्रकार मेरा निखार जो आज है वैसा बना और मेरा सौदा फिर से हो गया पर भगवान ने मेरे नसीब कुछ अच्छे लिखे थे की मैंने उनकी बाते सुनी और अनाथालय छोड़ दिया और मै भी, आप ही की तरह यहाँ आके एक झोपड़ी में रही और कोलेज ख़त्म किया और आज मै ऐसी हु जो आप लोगो को दिख रही हु|
हां यहाँ आप से एक बात नहीं छुपाना चाहती ऐसे परिश्थिति से अपने आप को बचाया भी लेकिन अपने आप को अक्षत नहीं रख पायी सो आज मै अक्षत नहीं हु अब ये ना पूछना की वो भेडीया कौन था उस नज़र से मै आज भी अक्षत हु पर मेरी मेट्रन ने मुज से समलैंगिक शारीरिक सम्बन्ध बनाए थे मेरे लिए वो जरुरी भी था क्यों की वोही थी जो मुझे बचा के रख सकती थी फिर भी पैसो के लिए उसने मेरा सौदा 2 बार किया पर बच निकली सो किसी पुरुष ने मेरी अक्षतता नहीं ली पर एक नार ही......
अब आप जान ना चाहेगी की मेरी उपलब्धि
ये जान लो की मेरी उपलब्धि ये है की मै कोई वेश्या नहीं बनी अपने आप को काबिल बनाया और भद्र समाज में रहने के काबिल हु ये सब से बड़ी उपलब्धि होती है हम जैसे अनाथो के लिए
अब श्रुष्टि ये जान लो की मै ने तेरे साथ जो सुलूक किया वो मेरा पुराना अनुभव से हुआ मुझे लगता है की सिर्फ मै ही होनी चाहिए लेकिन तुम्हारे व्यवहार ने मुझे समाज को फिर मान देना पड़ा वर्ना मै इस भद्र समाज को सिर्फ गाली ही देती हु या देती थी
मै नशिबवाली हु पर अनाथालय की हर बच्ची मेरे जैसे नसीब नहीं ले के आती कही ना कही उसे हार मान ही लेनी पड़ती है क्यों की रक्षा का विशवास मा बाप की नहीं, सर के ऊपर छत्र नहीं, सुरक्षा की कोई गेरंटी नहीं.........फिर भी सभी जीती है
श्रुष्टि तुम्हे ऐसा लगता है की मा की वजह से ऐसा होता है या फिर तुम खुद अपने आप को कोसती हो और अपनी मा के गोद में अपना सर रख के रो सकती हो, एक प्रेमाल और हेतार्थ हाथ सदा के लिए तेरे सीर पर रहेगा उसका विश्वास है
मै क्या करू ???? कहा रोउ कौनसे कंधे पे जाके ,,,, किस को अपना ख़ुशी या दुःख पेश करू ? बहार एक से एक कंधे पड़े है जो रोने देते है और अपनी हवस भी मिटाते है विश्वनीय कंधा तुम्हारे पास है.....कुछ किताबो में पढ़ा था श्रुष्टि की कुछ दुःख तो मा के शरीर की गंध (सुगंध) आते ही दूर हो जाते है मुझे पता नहीं की वो गंध या सुगंध कैसी होती है और बेटी के दुःख उस सुगंध कैसे दूर करती है, मुज से विवरण मत पूछना
लेकिन फिर भी खुश हु हा ये जरुर है की तुम जैसो को मा के प्रेम पाते हुए देख के मुझे बहोत जलन होती है मै तुरंत वो जगह छोड़ देती हु और उसी वजह से मैंने उस दिन तुम दोनों से खास बात नहीं की थी
मै मेरे घर जाके कितने सवाल पूछती हु अपने माँ और बाप से कोई नहीं जानता लेकिन कोई जवाब भी तो नहीं देता ........मेरे अनुभव और आकलन ने मुझे ये सिखाया है की कुछ भी करो लेकिन अपने वजूद बनाए रखो शायद इसलिए मैंने तुम से ऐसा व्यवहार किया माफ़ कर देना अगर हो सके तो
अब रूम में कुल मिला के 6 आंखे रो रही थी
आखिर माताश्री ने चुपकी तोड़ी “बेटा तुम्हारे बारे में जानने के बाद हमारा रोना तो बिलकुल बेकार है तुम सच में महान हो मुझे पता है की एक अकेली नारी को जीने के लिए कितना सहन करना पड़ता है और तूने तो बचपन से यही देखा है
“मुझे तुम से कोई शिकायत पहले भी नहीं थी और आज भी नहीं है” श्रुष्टि ने भी अपना विचार प्रगट कीया
साक्षी “खेर मैंने कहा था ना की मेरी कहानी रोचक नहीं” मानती ही नहीं थी
हो सकता है मैंने कुछ गलत बोला हो या मेरी भाषा अभद्र रही हो पर मैंने यही सिखा है और यही सिखाया है अगर मा होती तो शायद मै भी आप लोगों की तरह .........भद्र ..ही ......होती ..........रो देती हुई
माताश्री “ बेटी एक बात कहू ?? अगर तुम्हे बुरा ना लगे तो ?
आंटीजी आपको पूछने का कोई अधिकार नहीं है सिर्फ कहना है चाहे बुरा लगे या अच्छा
“क्या मै आंटी जी से माताश्री में आ सकती हु तुम्हारे लिए ???”
साक्षी हतप्रभ बनी हुई देखती रही
श्रुष्टि: अब जल्दी जवाब दे वर्ना मै दे दुगी और माँ को बता दूंगी की आपने मुझे एक बहन दे दी
साक्षी कुछ बोल ना सकी बस माता के कंधे पे सर रख के फुट फुट और चिल्ला चिल्ला के रोने लगी
और 4 आँखे और 2 ह्रदय भी उसका साथ देने लगे
मा : रो ले बेटे जितना रो सकती है रो ले और साक्षी की पीठ को पसारे जा रही थी
काफी देर के बाद में साक्षी अपने आप को संभल पायी
आंटीजी आपका आभार
उतना ही बोल सकी की एक हल्का सा तमाचा उसके गाल पर पड़ा और वो मा के हाथ से था
“आज के बाद आंटी शब्द मेरे लिए तुम्हारे मुह से निकला तो अभि सिर्फ़ हल्का तमाचा पडा है फिर झाड़ू से मार पड़ेगी ये मत भूलना की मै तुम्हे झेलती जाउंगी” कह के उसे गले लगा दिया और कान में बोली मा बोल
“मा” !!!!!!!!!! माफ़ कर दो ............साक्षी अपनी आप को ना रोक पाई और फिर से रोने बैठ गई
बहन से मिलेगी ??? या दोस्त से मिलेगी या फिर सहकर्मचारी से ????
यहाँ बहन से मिलूंगी, खानगी में दोस्त से मिलूंगी जब मा नहीं होगी तब, और ऑफिस में सहकर्मचारी से मिलूंगी बोल अब कुछ बोलना है तुजे !!!!!!!!!!
वातावरण गमगीनी से कुछ प्रसन्नता की तरफ बढ़ा
अरे हां तेरी प्रेम कहानी का मुझे उस में ज्यादा रूचि थी ये मा भी ना बिच में आ गई सच में “ कह के साक्षी को आँख मरते हुए और एक ऊँगली उसके पेट में सरसरी करते हुए बोली
“देख अब मा है मतलब वो सब नहीं” मा से शर्म रख साक्षी ने भी आँख मारते हुए जवाब दिया
अरे मा है तो क्या है बेटे बता भी दे मन में रखने से तो अच्छा है और मा भी तो दोस्त बन ही जाती है जब बेटी बैठती उठती हो जाती है ठीक है चलो मै फिर थोड़ी चाय बना लेती हु कह के दोनों बहनों को अकेला छोड़ ना ही बेहतर समजी
मुझे क्या पता ?? ही ही ही ही
चल शुरू कर श्रुष्टि ने फिर से आँख मारी
साक्षी...मेरी प्रेम कहानी तेरी तरह टिपिकल नहीं है बिल्कुल सिंपल सा हैं। जैसा की तू जानती है शिवम और मैं बहुत समय से तिवारी कंस्ट्रक्शन ग्रुप में काम कर रहें हैं। जब से मैं और शिवम एक साथ एक ही प्रोजेक्ट पर काम करने लगें तभी से शिवम मुझे पसंद करने लगा लेकिन मैं उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया क्योंकि मेरे दिमाग़ में कोई ओर ही फितूर चल रहा था। अब तू उस फितूर के बारे में पूछने न लग जाना ठीक हैं। (श्रृष्टि हां में मुंडी हिला दिया तब साक्षी आगे बताना शुरू किया) जैसे जैसे वक्त बीतता गया वो मेरे प्यार में गिरता गया। मैं जो करने को कहता चाहे सही हो या गलत खुद भी करता और दूसरे सहयोगी को भी वैसा करने को मनवा लेता था।
कारण वो सभी जानते थे मगर शिवम में इतनी हिम्मत नहीं हुआ कि वो मुझे प्रपोज कर पाए कहीं न कहीं उसके मन में डर था कहीं मैं बूरा मान गई ओर राघव सर से कहके उसे नौकरी से निकलवा दिया तो वो मूझसे दूर चला जायेगा। बाकी सहयोगी के बार बार कहने पर उसमे थोड़ा थोड़ा हिम्मत आने लगा और मेरे एक हफ्ते की छुट्टी के बाद वापस लौटते ही उसमे बहुत बदलाब आ चुका था। वो मूझसे कुछ कहना चहता था लेकिन झिकक के कारण कहा नहीं पाता था।
जब सर ने हम सभी को लंच पर ले जानें की बात कहा तब शिवम मौका ताड़ने की सोचा और लंच पर ही कोई मौका देखकर मूझसे बात करने का प्लान बना लिया। आंटी की वजह से तू चली आई और तेरे आ जानें के कारण राघव सर लंच पे नहीं जाना चाहते थे।
"क्या सिर्फ मेरे कारण सर लंच पर नहीं जाना चाहते थे।"चौकते हुए श्रृष्टि बोलीं
साक्षी... हां क्योंकि लांच पर जानें का प्लान सिर्फ तेरे कारण बनाया गया था ताकि सर तुझसे बात कर पाए और लंच पर जानें का प्लान मैंने ही बनाने को कहा था क्योंकि तू सर के साथ अकेले कहीं जानें को राज़ी नहीं हों रहीं थीं।
श्रृष्टि…मतलब तू सब जानती थीं ओर मैं सोचती थी तू मेरी हरकते देखकर तुक्का भिड़ती थी जो सही बैठता था।
साक्षी...चल हट पगली मैं सब जान बूझकर कहती थीं। मुझे उस दिन पता चला जब मैं छुट्टी के बाद इस्तीफा देने वापस आईं थीं। तू तो मुझे प्रोजेक्ट हेड बनाने की बात कहकर चली आई पर बाद में सर ने मुझे बता दिया की उनके मन में तेरे लिए क्या है। पता है सर कितना हक से कह रहे थे "श्रृष्टि सिर्फ मेरी हैं।"
"श्रृष्टि सिर्फ मेरी हैं।" ये सुनकर श्रृष्टि मुस्करा दिया फ़िर बोला... मैं कितना उनकी हूं ये तो बाद में पाता चलेगा अब तू अपनी सूना।
साक्षी... राघव सर ने मुझे सभी को लंच पे ले जानें को कहा पर मेरा मन जानें को नहीं कर रहा था इसलिए मैंने भी मना कर दिया। मेरे न जानें की बात जब उन लोगों को कहा तो तब शिवम ने झिझकते हुए अपने दिल की बात कह दिया। मुझे पहले से अंदाजा था कि वो कुछ कहना चाहत है। जब जाना तो मैंने उससे कुछ वक्त मांगा और उसने दे भी दिया। इस बीच मैंने उसकी कुंडली खंगाला और उसके साथ छुट्टी वाले दिन कुछ वक्त बिताने लगी तब मुझे पता चला शिवम नेचर का बहुत अच्छा है। मगर अब तेरे बाप और नाना नानी के दोहरे चरित्र शख्सियत की बात जानकर लग रहा हैं शिवम के साथ ओर वक्त बिताना पडेगा। तभी पता चलेगा कही शिवम ने भी दोहरे चरित्र शख्सियत का मुखौटा तो नहीं ओढ़ रखा हैं साथ ही ये भी पाता करना है उसके परिवार वाले कैसे हैं।
जारी रहेगा...