26-08-2024, 03:56 PM
भाग - 30
श्रृष्टि के एक सवाल ने साक्षी को विचाराधीन कर दिया। दोषी कौन है मां, बाप या फिर नाना नानी कुछ देर गहन विचार के बाद साक्षी बोलीं...यार तूने जो किस्सा सुनाया उसे सुनने के बाद मेरे समझ में नहीं आ रहा हैं कि मैं किसे दोषी मानूं कभी लगता है तेरा बाप दोषी हैं कभी लगता तेरी मां दोषी हैं कभी लगता है तेरे नाना नानी दोषी है कभी तो ऐसा लगता है जैसे तीनों ही अपने अपने जगह दोषी हैं।
श्रृष्टि…तू सही कह रहीं है कौन दोषी है ये कह पाना असम्भव है। पता हैं मां खुद को दोषी मानती है और कहती है वो ऐसे दोहरे चरित्र शख्सियत वाले इंसान से प्यार न करती तो ऐसा कभी नहीं होता।
सब से बड़ी दुःख की बात ये है की उनकी भरी जवानी में उन्हों ने मेरी वजह से दूसरी शादी की नहीं सोची या फिर उनका एक अनुभव ने उन्हें ये करने से रोक के रखा जो भी है पर एक स्त्री या फिर पुरुष एक सही उम्र के पड़ाव पर दोनों को एक दुसरे की जरुरत होती है तुम समज सकती हो मै क्या कह रही हु ? उनका ये उपकार है मेरे पर और उन्हों ने अपनी जवानी मुज पर कुर्बान कर दी
कभी कभी सोच के ही डर लगता है अगर मेरे साथ भी ऐसा हुआ तो ????????
साक्षी…यार ये आंटी भी अजीब ही सोचती है भला वो अकेले कैसे दोषी हुइ। प्यार करना कोई गुनाह थोड़ी न है। हां उनसे गुनाह बस इतना हुआ की उन्होंने घर से भागकर शादी किया और प्यार ऐसे शख्स से किया जिसे उनसे प्यार था ही नहीं इसमें तेरा बाप भी कम दोषी नहीं है जब वो जान रहें थे कि तेरे नाना नानी राजी नहीं है। फिर उन्हें तेरे मां से प्यार था ही नहीं तो भाग कर शादी करने का विचार ही नहीं करना चहिए था। और तुम्हारी मा को भोग ना सही बात नहीं थी एक स्त्री की भावनाओं से खेलना मतलब वो स्त्री की जिंदगी से खेलना या फिर उसकी ह्त्या के बराबर है.......तेरे नाना नानी भी कम दोषी नहीं है उन्हें जब पता चला की बेटी किसी से प्यार करती हैं तो मान लेना चाहिए था और लड़के को परख लेते अगर गलत होते तब तेरी मां को समझा देते तो शायद ऐसा नहीं होता। तुझे क्या लगता हैं?
श्रृष्टि... मुझे लगता हैं तीनों में से कोई दोषी नहीं है अगर कोई दोषी है तो वो है परिस्थिति शायद उस वक्त कोई ऐसी परिस्थिति बनी होगी जिसके कारण मां और पापा मिले होंगे। उनकी मुलाकाते बढ़ती गई और शायद तब पापा जानें होंगे कि मेरे नाना नानी काफी ज्यादा धन संपन्न है तब शायद उनके मन में लालच ने जन्म ले लिया होगा और उनका मूल मकसद मां को पाना हो गया होगा फ़िर नाना नानी के मना कर देने पर परिस्थिति उनके विपरीत बन गइ और परिस्थिति को अपने पक्ष में करने के लिए उन्होंने भागकर शादी करने की योजना बनाया होगा मगर शादी के बाद भी परिस्थिति उनके पक्ष में नहीं बना तब शायद किसी परिस्थिति के चलते दूसरी महिला से मिले फिर सब परिस्थिती के भेट चढ़ती गई और मैं भी उसी परिस्थिती का शिकार बन गईं। या फिर उस परिस्थिति का फल स्वरुप हु
साक्षी... मुझे नहीं लगता की सिर्फ परिस्थिती ही दोषी हैं फ़िर भी एक बार को तेरा कहा मान लिया जाएं तो तू कैसे परिस्थिति की शिकार बनी देख श्रृष्टि तेरा बाप और नाना नानी ने जिन दोहरे चरित्र शख्सियत का प्रमाण दिया हैं। उनके जैसा राघव सर को मान लेना न्यायसंगत नहीं है क्योंकि राघव सर को बहुत वक्त से मैं जानती हूं और वो जैसा है वैसे ही दिखते हैं।
श्रृष्टि... सर के बारे में जो तू कह रही हैं। वो मुझे भी सही लगता हैं पर जरा सोच जब उनके घर वालों को पता चलेगा कि मैं एक तलकसुदा महिला की बेटी हूं जिसके मां बाप खुद उससे ताल्लुक नहीं रखते तब क्या होगा।
साक्षी... आंटी का तलाकसुदा होना तेरे और राघव सर का एक दूसरे से दूर होने का कारण नहीं बनता और बनना भी नहीं चाहिए क्योंकि राघव सर के पापा ने भी दो शादी किया है यह बात तू भी जानती हैं और पुरा शहर भी जानता हैं।
श्रृष्टि...उनके दूसरी शादी करने के पीछे मूल कारण उनके पहली पत्नी का मौत है पर मां के मामले में ऐसा कुछ नहीं हैं। मां तलाक सुदा हैं और बहुत सालों से अकेले रह रही हैं। अकेली महिला का चरित्र चित्रण समाज के ठेकेदार अपने अपने सहूलियत के अनुसार करते हैं। कल को मेरे कारण उनके परिवार वाले मां पर टिका टिप्पणी करे ये मुझे सहा नहीं जाएगा इसलिए मेरा उनसे दूर रहना ही बेहतर हैं।
इतना कहकर श्रृष्टि ने आंखें मिच लिया और अपना मुंह दूसरी ओर घुमा लिया ये देख साक्षी हल्का सा मुस्कुरा दिया फिर श्रृष्टि का मुंह खुद की ओर घुमा कर बोलीं... श्रृष्टि क्या तू सर से दूर रह पाएगी सिर्फ कहने भर से तेरी आंखें भर आई।
श्रृष्टि... नहीं जानती क्या करूंगी ये भी नहीं जानती मेरे किस्मत में क्या लिखा हैं मेरी छोड़ तू अपनी बता।
साक्षी... मैं तो अपनी बता ही दूंगी लेकिन मै अब तुजे एक गारंटी देती हु की तेरे किस्मत में राघव सर ही लिखा है ये मैं सुनिश्चित करके ही रहूंगी। चाहे उसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े और कुछ भी का मतलब कुछ भी
अब ये साक्षी पहले जैसी नहीं है और ख़ासकर तेरे साथ और आंटी के साथ जब मैंने आंटी के बारे में जाना |
श्रृष्टि... सुनिश्चित करेंगी कहीं तू...।
"हां मैं राघव सर को सब बता दूंगी।" श्रृष्टि की बाते पूरा करते हुए साक्षी बोलीं
श्रृष्टि...तू ऐसा बिल्कुल नहीं करेगी तुझे मेरी कसम है अगर तू मुझे दोस्त मानती है तो तुझे हमारी दोस्ती का वास्ता जो भी मैंने तुझे बताया इसका एक अंश भी तू सर को नहीं बताएगी।
साक्षी...तू मुझे तो वास्ता देकर रोक लिया मगर ऊपर जो बैठा है न इस श्रृष्टि की रचायता उसने जरूर तेरे लिए कुछ अच्छा सोच के ही रखा है और शायद उस ओर कदम बड़ा भी चुके होंगे बस सही वक्त आने का इंतेजार करना हैं।
श्रृष्टि...जो भी सोचा होगा वो मेरे पक्ष में तो नहीं होगा फ़िर भी तू कहती है तो प्रतीक्षा भी करके देख लूंगी अच्छा तू बैठ मैं दो कप चाय और बना लाती हूं फ़िर चाय की चुस्कियां लेते हुए तेरी प्रेम कहानी भी सुन लूंगी।
साक्षी...सिर्फ चाय ही बनना चाय के बहाने आंसू बहाने न लग जाना।
बिना कुछ कहें हल्का सा मुस्कुरा दिया फिर चाय बनाने चली गईं।
इस बिच माताश्री भी आ गई तो साक्षी ने बूम लगाईं श्रुष्टि अब तीन कप चाय आंटीजी आ गई है
अंदर से श्रुष्टि हा ठीक है
और आंटी से बाते करने लगी
थोड़ी बात चित के दौरान माताश्री ने जान लिया की साक्षी अब सब जानती है
थोड़ी ही देर में दो काफ चाय लेकर लौटी और चाय की चुस्कियां लेते हुए साक्षी को उसकी प्रेम कहानी सुनाने को बोला।
साक्षी ने एक बार माताश्री के सामने देखा तो माताश्री बोली क्या मुझे जान ने का अधिकार नहीं है या फिर मै मा ज्यादा हु और दोस्त कम हु |
साक्षी “ नहीं आंटी आप से अब क्या छुपाना जो है सब सामने है या होगा “
माता श्री “ तो अब मुझे तेरी प्रेम कहानी बाद में जानना है सब से पहले तू अपने बारे मे बता क्यों की तुम हमारे बारेमे सब जानती हो पर हम तुम्हे सिर्फ नाम से ही जानते है और कुछ नहीं “
साक्षी “ मेरी कहानी या मेर एबारेमे में कुछ ज्यादा रोचक नहीं है आंटी “
जो भी हो सराहने वाली कोई बात होगी तो सराहेंगे और डांटनेवाली बात होगी तो जरुर डातुंगी जो भी है बस बता भी “
साक्षी ने शुरुआत में तो टाल ने की की पर दोनों मा बेटी के सामने हार गई
बने रहिये
श्रृष्टि के एक सवाल ने साक्षी को विचाराधीन कर दिया। दोषी कौन है मां, बाप या फिर नाना नानी कुछ देर गहन विचार के बाद साक्षी बोलीं...यार तूने जो किस्सा सुनाया उसे सुनने के बाद मेरे समझ में नहीं आ रहा हैं कि मैं किसे दोषी मानूं कभी लगता है तेरा बाप दोषी हैं कभी लगता तेरी मां दोषी हैं कभी लगता है तेरे नाना नानी दोषी है कभी तो ऐसा लगता है जैसे तीनों ही अपने अपने जगह दोषी हैं।
श्रृष्टि…तू सही कह रहीं है कौन दोषी है ये कह पाना असम्भव है। पता हैं मां खुद को दोषी मानती है और कहती है वो ऐसे दोहरे चरित्र शख्सियत वाले इंसान से प्यार न करती तो ऐसा कभी नहीं होता।
सब से बड़ी दुःख की बात ये है की उनकी भरी जवानी में उन्हों ने मेरी वजह से दूसरी शादी की नहीं सोची या फिर उनका एक अनुभव ने उन्हें ये करने से रोक के रखा जो भी है पर एक स्त्री या फिर पुरुष एक सही उम्र के पड़ाव पर दोनों को एक दुसरे की जरुरत होती है तुम समज सकती हो मै क्या कह रही हु ? उनका ये उपकार है मेरे पर और उन्हों ने अपनी जवानी मुज पर कुर्बान कर दी
कभी कभी सोच के ही डर लगता है अगर मेरे साथ भी ऐसा हुआ तो ????????
साक्षी…यार ये आंटी भी अजीब ही सोचती है भला वो अकेले कैसे दोषी हुइ। प्यार करना कोई गुनाह थोड़ी न है। हां उनसे गुनाह बस इतना हुआ की उन्होंने घर से भागकर शादी किया और प्यार ऐसे शख्स से किया जिसे उनसे प्यार था ही नहीं इसमें तेरा बाप भी कम दोषी नहीं है जब वो जान रहें थे कि तेरे नाना नानी राजी नहीं है। फिर उन्हें तेरे मां से प्यार था ही नहीं तो भाग कर शादी करने का विचार ही नहीं करना चहिए था। और तुम्हारी मा को भोग ना सही बात नहीं थी एक स्त्री की भावनाओं से खेलना मतलब वो स्त्री की जिंदगी से खेलना या फिर उसकी ह्त्या के बराबर है.......तेरे नाना नानी भी कम दोषी नहीं है उन्हें जब पता चला की बेटी किसी से प्यार करती हैं तो मान लेना चाहिए था और लड़के को परख लेते अगर गलत होते तब तेरी मां को समझा देते तो शायद ऐसा नहीं होता। तुझे क्या लगता हैं?
श्रृष्टि... मुझे लगता हैं तीनों में से कोई दोषी नहीं है अगर कोई दोषी है तो वो है परिस्थिति शायद उस वक्त कोई ऐसी परिस्थिति बनी होगी जिसके कारण मां और पापा मिले होंगे। उनकी मुलाकाते बढ़ती गई और शायद तब पापा जानें होंगे कि मेरे नाना नानी काफी ज्यादा धन संपन्न है तब शायद उनके मन में लालच ने जन्म ले लिया होगा और उनका मूल मकसद मां को पाना हो गया होगा फ़िर नाना नानी के मना कर देने पर परिस्थिति उनके विपरीत बन गइ और परिस्थिति को अपने पक्ष में करने के लिए उन्होंने भागकर शादी करने की योजना बनाया होगा मगर शादी के बाद भी परिस्थिति उनके पक्ष में नहीं बना तब शायद किसी परिस्थिति के चलते दूसरी महिला से मिले फिर सब परिस्थिती के भेट चढ़ती गई और मैं भी उसी परिस्थिती का शिकार बन गईं। या फिर उस परिस्थिति का फल स्वरुप हु
साक्षी... मुझे नहीं लगता की सिर्फ परिस्थिती ही दोषी हैं फ़िर भी एक बार को तेरा कहा मान लिया जाएं तो तू कैसे परिस्थिति की शिकार बनी देख श्रृष्टि तेरा बाप और नाना नानी ने जिन दोहरे चरित्र शख्सियत का प्रमाण दिया हैं। उनके जैसा राघव सर को मान लेना न्यायसंगत नहीं है क्योंकि राघव सर को बहुत वक्त से मैं जानती हूं और वो जैसा है वैसे ही दिखते हैं।
श्रृष्टि... सर के बारे में जो तू कह रही हैं। वो मुझे भी सही लगता हैं पर जरा सोच जब उनके घर वालों को पता चलेगा कि मैं एक तलकसुदा महिला की बेटी हूं जिसके मां बाप खुद उससे ताल्लुक नहीं रखते तब क्या होगा।
साक्षी... आंटी का तलाकसुदा होना तेरे और राघव सर का एक दूसरे से दूर होने का कारण नहीं बनता और बनना भी नहीं चाहिए क्योंकि राघव सर के पापा ने भी दो शादी किया है यह बात तू भी जानती हैं और पुरा शहर भी जानता हैं।
श्रृष्टि...उनके दूसरी शादी करने के पीछे मूल कारण उनके पहली पत्नी का मौत है पर मां के मामले में ऐसा कुछ नहीं हैं। मां तलाक सुदा हैं और बहुत सालों से अकेले रह रही हैं। अकेली महिला का चरित्र चित्रण समाज के ठेकेदार अपने अपने सहूलियत के अनुसार करते हैं। कल को मेरे कारण उनके परिवार वाले मां पर टिका टिप्पणी करे ये मुझे सहा नहीं जाएगा इसलिए मेरा उनसे दूर रहना ही बेहतर हैं।
इतना कहकर श्रृष्टि ने आंखें मिच लिया और अपना मुंह दूसरी ओर घुमा लिया ये देख साक्षी हल्का सा मुस्कुरा दिया फिर श्रृष्टि का मुंह खुद की ओर घुमा कर बोलीं... श्रृष्टि क्या तू सर से दूर रह पाएगी सिर्फ कहने भर से तेरी आंखें भर आई।
श्रृष्टि... नहीं जानती क्या करूंगी ये भी नहीं जानती मेरे किस्मत में क्या लिखा हैं मेरी छोड़ तू अपनी बता।
साक्षी... मैं तो अपनी बता ही दूंगी लेकिन मै अब तुजे एक गारंटी देती हु की तेरे किस्मत में राघव सर ही लिखा है ये मैं सुनिश्चित करके ही रहूंगी। चाहे उसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े और कुछ भी का मतलब कुछ भी
अब ये साक्षी पहले जैसी नहीं है और ख़ासकर तेरे साथ और आंटी के साथ जब मैंने आंटी के बारे में जाना |
श्रृष्टि... सुनिश्चित करेंगी कहीं तू...।
"हां मैं राघव सर को सब बता दूंगी।" श्रृष्टि की बाते पूरा करते हुए साक्षी बोलीं
श्रृष्टि...तू ऐसा बिल्कुल नहीं करेगी तुझे मेरी कसम है अगर तू मुझे दोस्त मानती है तो तुझे हमारी दोस्ती का वास्ता जो भी मैंने तुझे बताया इसका एक अंश भी तू सर को नहीं बताएगी।
साक्षी...तू मुझे तो वास्ता देकर रोक लिया मगर ऊपर जो बैठा है न इस श्रृष्टि की रचायता उसने जरूर तेरे लिए कुछ अच्छा सोच के ही रखा है और शायद उस ओर कदम बड़ा भी चुके होंगे बस सही वक्त आने का इंतेजार करना हैं।
श्रृष्टि...जो भी सोचा होगा वो मेरे पक्ष में तो नहीं होगा फ़िर भी तू कहती है तो प्रतीक्षा भी करके देख लूंगी अच्छा तू बैठ मैं दो कप चाय और बना लाती हूं फ़िर चाय की चुस्कियां लेते हुए तेरी प्रेम कहानी भी सुन लूंगी।
साक्षी...सिर्फ चाय ही बनना चाय के बहाने आंसू बहाने न लग जाना।
बिना कुछ कहें हल्का सा मुस्कुरा दिया फिर चाय बनाने चली गईं।
इस बिच माताश्री भी आ गई तो साक्षी ने बूम लगाईं श्रुष्टि अब तीन कप चाय आंटीजी आ गई है
अंदर से श्रुष्टि हा ठीक है
और आंटी से बाते करने लगी
थोड़ी बात चित के दौरान माताश्री ने जान लिया की साक्षी अब सब जानती है
थोड़ी ही देर में दो काफ चाय लेकर लौटी और चाय की चुस्कियां लेते हुए साक्षी को उसकी प्रेम कहानी सुनाने को बोला।
साक्षी ने एक बार माताश्री के सामने देखा तो माताश्री बोली क्या मुझे जान ने का अधिकार नहीं है या फिर मै मा ज्यादा हु और दोस्त कम हु |
साक्षी “ नहीं आंटी आप से अब क्या छुपाना जो है सब सामने है या होगा “
माता श्री “ तो अब मुझे तेरी प्रेम कहानी बाद में जानना है सब से पहले तू अपने बारे मे बता क्यों की तुम हमारे बारेमे सब जानती हो पर हम तुम्हे सिर्फ नाम से ही जानते है और कुछ नहीं “
साक्षी “ मेरी कहानी या मेर एबारेमे में कुछ ज्यादा रोचक नहीं है आंटी “
जो भी हो सराहने वाली कोई बात होगी तो सराहेंगे और डांटनेवाली बात होगी तो जरुर डातुंगी जो भी है बस बता भी “
साक्षी ने शुरुआत में तो टाल ने की की पर दोनों मा बेटी के सामने हार गई
बने रहिये