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Romance श्रृष्टि की गजब रित
#81
भाग - 29



साक्षी ने जो कहा यहीं सच था। श्रृष्टि जब भी राघव को नजरंदाज कर देती या फ़िर कोई कड़वी बातें कह देती थी उसके बाद वो खुद को कोसती रहती थी और आंखों से नीर बहा देती थी। ऐसे करते हुए कई बार पकड़ी भी गई। पकड़े जानें पर अपने सामने मौजूद वस्तु का बहाना बनाकर टाल देती थीं।

आज जब साक्षी ने उसकी झूठ को पकड़ लिया और उसके हाल-ए-दिल बयां कर दिया तब श्रृष्टि खुद को रोक नहीं पाई और साक्षी से लिपट कर फाफक पड़ी फ़िर रोते हुए बोलीं...साक्षी तू सही कह रहीं हैं सर के साथ जब भी बूरा वर्ताव किया। प्रत्येक बार मुझे उनसे ज्यादा तकलीफ हुआ बहुत ज्यादा तकलीफ हुआ फिर भी सहती रहीं।

कुछ देर श्रृष्टि को रोकर जी हल्का करने दिया। जब श्रृष्टि कुछ संभली तब साक्षी बोलीं... ये आशिकी का बुखार भी बड़ा अजीब होता है जब चढ़ती है सहन शक्ति बढ़ जाती हैं। वहा राघव सर तेरी बेरूखी सहकर भी हंस रहें थे मुस्कुरा रहे थे और यहां तू उनसे बेरूखी दिखाकर कुढ़ती रहती थी। तू जानती हैं। इस मामले में शिवम भी कुछ कम नहीं हैं। बेचारे को न जानें मैंने कितनी कड़वी बातें सुनाया, कितना डांटा बिना एक लफ्ज़ बोले सब सहता रहा। आखिर सहता नहीं तो क्या करता उस पर भी आशिकी का भूत सवार था और मुझे प्यार जो करता हैं। मुझे आज समज में आता है उस शिवम् की स्थिति के बारे में दुःख भी बहोत हुआ अपर अब क्या करू ???

कहते है जब कोई आहत हो या चोटिल हों तब ध्यान भटकने के लिए कुछ ऐसी बातें कह दो जिसकी अपेक्षा उसने कभी किया न हों जिससे उसका ध्यान कुछ पल के लिए भटक जाता है। बिल्कुल वैसा ही श्रृष्टि के साथ हुआ। जो अभी तक आहत थी। साक्षी का कथन सुनकर श्रृष्टि अचंभित हों गई और साक्षी से अलग होकर एक टक बिना पलके झपकाए देखने लगी। उसे ऐसा करते देखकर साक्षी बोलीं...क्या हुआ तू मुझे ऐसे क्यों देख रही है? तुझे क्या लगता है प्यार सिर्फ तू और राघव सर ही कर सकते हैं। बाकी कोई नहीं कर सकता हैं।

श्रृष्टि... ऐसा नहीं है प्यार तो सभी कर सकते हैं ताज्जुब की बात ये है की हिटलर को भी प्यार होता है। प्यार पर किसी का मालिकाना हक थोड़ी न है। मुझे तो बस इसलिए झटका लगा की उसने कभी किसी को आभास ही नहीं होने दिया की उसके मन में ऐसी कोई बात है।

साक्षी... बड़ा छुपा हुआ आशिक है। मुझे भी उसकी आशिकी भा गई। अब मैं भी प्यार की दरिया में इश्क का नाव लिए उतर गई रे।

श्रृष्टि... अच्छा तो बता न ये कब और कैसे हुआ?

साक्षी... कब कैसे ये भी जान लेना पर पहले मुझे चाय पिला और जो मैं जानने आई हूं एक एक वाक्य सच सच बता देगी तब ही मैं अपनी बताऊंगी।

श्रृष्टि को समझते देर नहीं लगी की साक्षी क्या जानने आई है इसलिए चुप्पी सद लिया और पलट गई। वह चाय उबालकर गिर चुका था तो साफ सफाई करके दुबारा चाय चढ़ा दिया। चाय बनते ही दो कप में डालकर बहार आ गई और बैठे एक कप साक्षी को पकडा दिया फिर दुसरा कप खुद ले लिया। चाय की चुस्कियां लेते हुए साक्षी बोलीं... श्रृष्टि चाय तो तूने बड़ा बेहतरीन बनाया हैं। अब उतनी ही बेहतरीन तरीके से वो बता जो मैं जानना चहती हूं।

श्रृष्टि... बताना ज़रूरी हैं।?

साक्षी... हां ज़रूरी है।

कुछ देर की चुप्पी छाया रहा। इतने वक्त में श्रृष्टि के मस्तिस्क में विचार चलता रहा फ़िर चुप्पी तोड़ते हुए श्रृष्टि बोलीं…सर से मेरी बेरूखी की वजह सिर्फ उनकी शादी हैं।

इतना बोलकर श्रृष्टि नज़रे चुराने लग गई और साक्षी बोलीं... झूठ सफेद झूठ क्योंकि राघव सर की शादी की बात झूठी थी। यह बात मैंने ही फैलाया था। ये बात मैं तुझे बता चुकी थी और क्यों फैलाया था यह भी तुझे बता चुकी थी फ़िर भी तू उनसे बेरूखी दिखाती रहीं। तो जाहिर सी बात है वजह दूसरी हैं। अब मुझे वहीं दूसरी वजह जानना हैं।

यह सुनकर श्रृष्टि नज़रे झुका लिया और मूल वजह बताने में हिचकिचने लग गई। यह देखकर साक्षी बोलीं...श्रृष्टि राघव सर से मुझे इतना तो पता चल गया कि तू बीती घटनाओं को बताकर सहानुभूति पाने वालो में से नहीं है यह बात तूने खुद राघव सर को बोला था लेकिन अब मामला सहानुभूति की नहीं बल्कि दो दिलों का हैं जो एक दुसरे से बहुत प्यार करते हैं मगर उसी एक वजह के कारण तू आगे कदम बढ़ाने से डर रहीं हैं।

श्रृष्टि... वो वजह मां है।

"आंटी पर क्यों?" चौकते हुए बोलीं

श्रृष्टि... तू मां सुनके इतना चौकी क्यों?

साक्षी... मैं तो बस ऐसे ही चौक गई थी अब तू ये बता आंटी वजह कैसे हों सकती हैं?

श्रृष्टि... मां नही मां के साथ घटी एक घटना मूल वजह हैं।

साक्षी...यार तूने क्या मुझे पागल समझा है कभी कहती है आंटी ही वजह है कभी कहती है उनके साथ घटी एक घटना वजह हैं। यार जो कहना है ठीक ठीक बता यूं मुझे शब्दों में न उलझा।

श्रृष्टि... बात उस वक्त की है जब मां की शादी नहीं हुई थी और मां एक यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हुआ करती थी। उस वक्त मां की मुलाकात दक्ष नाम की एक शख्स से हुआ जो कि मेरा बाप हैं। दोनों की मुलाकाते दिन वा दिन बढ़ती गई और मां को उनसे प्यार हों गया। शुरू शुरू में मां उनसे कतराती थीं लेकिन एक दिन पापा ने खुद मां को प्रपोज कर दिया। मां तो पहले से ही उनके प्यार में डूबी हुईं थी इसलिए उन्होंने हां कर दिया।

जब बात शादी की आई तो पापा टाला मटोली करने लग गए। सहसा एक दिन वो खुद से शादी को मान गए। जब ये बात नाना नानी को बता दिया गया। तो उन्होंने मना कर दिया क्योंकि वो रूढ़ी वादी सोच के थे और प्रेम विवाह के सख्त खिलाफ थे।

"अजीब ख्यालात के लोग है। जिन्होंने प्रेम का पाठ पढ़ाया उनकी अर्चना करते हैं। वखान सुनाते हैं और खुद भी सुनते है लेकिन जब वही प्रेम उनके बच्चे करते हैं तो उनकी रूढ़ी वादी सोच आड़े आ जाती हैं।" बात काटते हुए साक्षी बीच में बोलीं

श्रृष्टि…इन्हीं लोगों को ही दोहरा चरित्र वाले कहते है। ये दिखावा कुछ ओर करते है और इनके मन मस्तिष्क में कुछ ओर ही चलता रहता हैं। खैर छोड़ इन बातों को तू आगे सुन... बहुत मान मुनावल किया गया। मगर नाना नानी नहीं माने तब पापा के कहने पर दोनों ने भागकर शादी कर लिया। यहीं एक गलती मां से हों गई। खैर शादी को साल भर बीता ही था की मां को पता चलने लग गई कि पापा भी दौहरे चरित्र वाले है वो जैसा दिखते है वैसा नहीं हैं।

पापा एक छोटा मोटा बिजनेस मैन थे और इनकी आकांक्षा बहुत बडी थीं। पापा मां को ताने देते थे कि उन्होंने सिर्फ उसने शादी इसलिए किया ताकी वो नाना नानी से मदद लेकर अपना व्यापार बड़ा कर सके मगर भागकर शादी करने की वजह से नाना नानी ने मां से सारे संबंध तोड़ लिए और उनकी मनसा धरी की धरी रह गई।

मां ने बहुत कोशिश किया कि उनका वैवाहिक जीवन ठीक चले इसलिए उन्होंने नाना नानी से बात करने की बहुत कोशिश किया मगर उनकी सारी कोशिशे विफल रहीं। इस बीच मैं भी दुनिया में आ चुकी थी पर मेरे आने के बाद भी पापा में कोई बदलाव नहीं आया और जब मैं लगभग तीन या चार साल की थी तब पापा ने मां के सामने डाइवर्स पेपर रख दिया। पेपर देखकर मां बोलीं कि आपके आकांक्षा के आगे मेरा प्यार इतना क्षिण हो गया कि आप मुझे डाइवर्स देने पर आ गए। मेरे बारे में नहीं तो कम से कम हमारी बेटी के बारे में सोच लेते। तब पापा बोले मुझे तुमसे कभी प्यार था ही नहीं मुझे तो बस तुम्हारे बाप की थोड़ी सी दौलत चहिए था जब वो मुझे नहीं मिल रहा तो भला मैं तुम्हें क्यों झेलूं वैसे भी मैंने मेरा इंतजाम कर लिया हैं तुम्हें डाइवर्स देकर उससे शादी करके उसके बाप की अपार संपत्ति का मालिक बनकर मौज करुंगा।


और हां ये श्रुष्टि मेरी ही है उसका कोई प्रमाणपत्र तो है नहीं

मा ने अपने चरित्र पर लांछन लेते हुए भी मां मनाने की बहुत जतन किया बहुत दुहाई दिया पर पापा नहीं माने अंतः मां ने डाइवर्स पेपर पे हस्ताक्षर कर दिया और निकल आए उस वक्त मां का मन किया की आत्महत्या कर ले लेकिन मेरी सुरत देखकर वो ये भी नहीं कर पाए आखिर करते भी तो कैसे मां इतनी निष्ठुर थोड़ी न थी जो मुझे इस दुनिया में अकेले छोड़कर चली जाती।

बाद में मां नाना नानी के पास भी गए पर उन्होंने ये कहकर मना कर दिया कि उनके लिए मां मर चुकी है। नाना नानी कि बात न मानकर मां ने जो गलती किया उसकी सजा मां को मिल रहीं थीं और मां के भाग जानें की वजह से समाज में जो उनकी किरकिरी हुआ था उसके लिए मां से कोई वास्ता नहीं रखना चाहते थे इसलिए उन्होंने मां को उनके हाल पर छोड़ दिया।

तब मां वो शहर छोड़कर यहां आ बसी और यहां एक कॉलेज में जॉब करना शुरू किया फिर मुझे पल पोसकर इस काबिल बनाया की मैं खुद के दाम पर दुनिया के कंधे से कंधा मिलाकर चल पाऊं। अब तू ही बता न, मां ने कौन सी गलती किया जो उन्हे ऐसी सजा मिली सिर्फ इतना ही न की वो एक दोहरे चरित्र वाले इंसान से प्यार किया। हां मानती हूं मां को भाग कर शादी नहीं करना चाइए थी जो उनकी सबसे बडी गलती थी। या शायद उनका अंधा प्रेम उनसे ये सब करवा दिया

मुझे सिर्फ इस बात का डर है कि सर भी दोहरे चरित्र के न हों और मुझे भी ऐसा कोई कदम उठाना पड़े जो मां ने उठाया था। इसलिए मैं खुद को बहुत रोकना चाहा मगर उनके भाव भंगिमा देखकर न जाने कैसे वो मेरे दिल में जगह बना लिया मैं समझ ही नहीं पाई और जब तूने शादी की झूठी खबर दिया तब मैं बहुत आहत हुई थीं और मां के समझाने पर मैं खुद को सामान्य कर लिया फिर खुद को आगे बढ़ने से रोकने के लिए सर के साथ बेरूखी वाला सलूक करने लग गइ। उससे सर जितने आहत होते थे उससे कहीं ज्यादा मैं आहत होती थी।

जारी रहेगा...


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RE: श्रृष्टि की गजब रित - by maitripatel - 26-08-2024, 03:32 PM



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