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Romance श्रृष्टि की गजब रित
#79
साक्षी... सर पता तो नही चला लेकिन अब पता चल जायेगा मैं इतवार को उसके घर जा रहीं हूं और कैसे भी करके उससे जानकर ही रहूंगी कि वो आपको नजरंदाज क्यों कर रहीं हैं जबकि ऐसा करके वो दुखी हो जाती हैं।

राघव... तभी तो तुम्हें पता करने को कहा क्योंकि कई बार मैंने भी गौर किया है। श्रृष्टि मुझे नजरंदाज कर रही हैं या फिर सपाट लहजे में कुछ कह देती हैं उसके अगले ही क्षण उसकी आंखें डबडबा जाती हैं।

साक्षी... बस कुछ दिन और फ़िर सब पता कर लूंगी।

राघव... चलो ये भी करके देख लेता हूं। अच्छा ये बताओं तुम्हारा और शिवम का कहा तक पहुंचा है बेचारे को अभी तक लटका रखा हैं। उसे हा या न में जवाब क्यों नहीं दे देती।

साक्षी... सर शिवम को मैंने परख लिया है वो मेरी मापदंड में बिल्कुल खरा उतरता है। बस आप और श्रृष्टि के बीच जो थोड़ी बहुत दूरी है उसे खत्म कर दूं फिर शिवम जो सुनना चाहता है उसे उसके पसंदगी का जवाव दे दूंगी।

राघव... मतलब की तुम बेचारे को अभी और तराशने वाली हों।

साक्षी... हां! अभी तरसेगा तभी तो मेरे पीछे खर्चा करेगा ही ही ही।

राघव... तुम भी न चलो जाओ अब कुछ काम भी कर लो अलसी कहीं कि हां हां हां।

इसके बाद साक्षी चली गईं। काम काज में यह दिन बीत गया शाम को श्रृष्टि रात्रि भोजन बना रहीं थी माताश्री भी उसके बगल में थी जो उसकी मदद कर रही थीं।

श्रृष्टि सब्जी बना रहीं थीं मगर उसका ध्यान सब्जी पर नहीं कहीं और थीं। जिसे देखकर माताश्री उसके कंधे पर हाथ रख दिया। स्पर्श का आभास होते ही श्रृष्टि आंखें मिच लिया ये देख माताश्री बोलीं... क्या हुआ श्रृष्टि आंखें क्यों मिच लिया?

श्रृष्टि... मां लगता है सब्जी की मिर्ची वाली भाप आंखो में चला गया है।

"जा आंखें धो ले तब तक सब्जी मैं देख लेती हू।"

श्रृष्टि तूरंत ही सिंक में आंखो को धोने लग गई। बहरहाल खाना बन जाने के बाद दोनों मां बेटी साथ में खाना लगाकर खाने लग गई। खाना खाते वक्त भी श्रृष्टि का ध्यान खाने पर नहीं कहीं ओर था ये देखाकर माताश्री मुस्कुराते हुए बोली... श्रृष्टि तेरा ध्यान किधर हैं।

माताश्री की आवाज कानों को छूते ही श्रृष्टि का ध्यान भंग हुआ फिर श्रृष्टि बोलीं... बस मां काम को लेकर कुछ सोच रहीं थीं।

"तू काम की नहीं अपने सर के बारे में सोच रहीं थी। क्यों मैने सही कहा न?" अब मैंने भी बाल धुप में सफ़ेद नहीं किये है ही ही ही

इतना सुनते ही श्रृष्टि चौक कर माताश्री की और देखा और माताश्री मुस्कुरा दि। जिसे देखकर श्रृष्टि नज़रे घुमा लिया ओर बोलीं…नहीं तो मां मैं भला उनके बारे में क्यों सोचने लगीं।

"अच्छा! चल कोई बात नही मैंने शायद गलत ख्याल पाल लिया होगा। अच्छा सुन तू अपने सर और खुद के बारे मे जो भी फैंसला लेना सोच समझकर लेना और अभी तक नहीं सोचा हैं तो उस पर गौर से सोचना।"

इतना बोलकर माताश्री मुस्कुरा दिया। श्रृष्टि माताश्री को गौर से देखने लगी और समझने की कोशिश करने लगी कि मां ऐसा कहकर मुस्कुरा क्यों रही है उनके मुस्कुराने के पीछे वजह किया है पर श्रृष्टि कोई वजह तलाश ही नहीं पाई तो खाने में व्यस्त हो गईं।

ऐसे ही दिन बीतता गया और इतवार का दिन भी आ गया। दिन के करीब 12 बजे द्वार घंटी ने बजकर किसी के आने का संकेत दिया। श्रृष्टि जाकर दरवाजा खोला और आए हुए शख्स को देखकर बोलीं... साक्षी आने में कितनी देर कर दी मैं कब से तेरा वेइट कर रही थीं।

साक्षी... अच्छा मेरे आने का या फ़िर किसी ओर के आने का बेसबरी से वेइट कर रहीं थी।

श्रृष्टि... अरे जब आने वाली तू थी तो किसी और के आने का भला मैं क्यों वेइट करने लगीं।

साक्षी... वो क्या है न राघव सर भी तुझसे अकेला मिलना चाहते हैं तो मैंने सोचा शायद तू राघव सर के आने का वेट कर रहीं होगी इसलिए बोला था। अच्छा बता आंटी कहा हैं दिख नहीं रहीं।

"तू बैठ मैं चाय लेकर आती हूं। मां कुछ काम से बजार गई हैं।" इतना बोलकर श्रृष्टि रसोई की और चली गई। दो पल रूककर साक्षी भी रसोई की और चली गई। वह जाकर देखा श्रृष्टि का एक हाथ फ्रीज के डोर पर है और दुसरा हाथ उसके आंखों के पास है ये देखकर साक्षी बोलीं... श्रृष्टि क्या हुआ।

अचानक साक्षी की आवाज सुन कर श्रृष्टि सकपते हुए बोली... वो फ्रिज का डोर खोल रहा था तो शायद कुछ आंखों में चली गईं।

श्रृष्टि की बाते सुनकर साक्षी मुस्कुरा दिया फिर दो कदम आगे बढ़कर श्रृष्टि के कांधे पर हाथ रखकर बोली….फ्रिज का डोर तो बंद है फिर बिना डोर खुले तेरे आंखो में कुछ कैसे जा सकता हैं। ? और आजकल तेरी आँखों में कुछ ज्यादा ही कण घुस रहे है है ना?

श्रृष्टि का झूठ पकड़ा गया और उसके पास प्रतिउत्तर देने के लिए कुछ बचा ही नहीं था। इसलिए बिना कुछ बोले फ्रिज से दूध निकलकर चाय चढ़ा दिया। गैस पे चाय धीमी आंच पर पक रही थी और साक्षी बोलीं... श्रृष्टि कभी कभी हम कितना भी झूठा स्वांग रचा ले लेकिन कभी न कभी हमारा झूठ पकड़ा ही जाता हैं। आज तेरा भी झूठ पकड़ा गया। तू भले ही राघव सर के प्रति कितना भी बेरूखी दिखा ले मगर भीतर ही भीतर तू भी कूड़ती रहती हैं। खुद को कोसती रहती हैं कि तूने उनके साथ ऐसा क्यों किया। श्रृष्टि मैं सही कह रहीं हूं ना?।

जारी रहेगा…


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RE: श्रृष्टि की गजब रित - by maitripatel - 25-08-2024, 06:53 PM



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