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Romance श्रृष्टि की गजब रित
#78
भाग - 28


जब श्रृष्टि द्वार तक पहुंची तब रूक गई और आंखें मिच लिया शायद उसके आंखों में कुछ आ गई होगी तो आंखो को पोंछते हुए चली गई। राघव पहले तो अचंभित सा हों गया फ़िर श्रृष्टि को द्वार पर रूकते देखकर मंद मंद मुस्करा दिया और श्रृष्टि के जाते ही धीरे से बोला... ओ हों इतना गुस्सा चलो इसी बहाने ये तो जान गया कि तुम भी मूझसे प्यार करती हों।

दोपहर के भोजन का समय हों चुका था। सभी आपने अपने जगह बैठ रहें थे। आज कुछ अलग ये हुआ कि साक्षी शिवम के बगल वाली कुर्सी पर बैठी थी और श्रृष्टि कमरे से बहार जा रहीं थीं ये देख साक्षी बोलीं... श्रृष्टि तू बहार कहा जा रहीं है तुझे लंच नहीं करना हैं।?

श्रृष्टि... लंच करने ही जा रही हूं वो क्या है कि आज टिफिन लेकर नहीं आई तो कैंटीन में जा रहीं हूं।

साक्षी... ठीक है फिर जल्दी से लेकर आ।

श्रृष्टि... सोच रहीं थी आज वहीं लंच कर लेती हूं।

इतना बोलकर बिना साक्षी की बात सुने श्रृष्टि चली गई और साक्षी बोलीं...पता नहीं इसे क्या हों गया?

सभी लंच करने की तैयारी कर ही रहें थे उसी वक्त राघव भी वहा आ गया। श्रृष्टि को न देखकर राघव बोला...श्रृष्टि कहा गई उसे लंच नहीं करना।

"सर श्रृष्टि मैम लंच करने ही गई हैं दरअसल मैम कह रहीं थी कि आज टिफिन नहीं लाई हैं तो कैंटीन में करने गईं हैं।" एक साथी बोला

"अच्छा" बस इतना ही बोलकर राघव मुस्करा दिया और अपना टिफिन खोलकर लंच करने लग गया। कुछ ही देर में सभी ने लंच समाप्त किया फ़िर अपने अपने काम में लग गए।

ऐसे ही कई दिन बीत गया और इन्हीं दिनों राघव जितनी भी बार वहा आता प्रत्येक बार श्रृष्टि राघव को नजरंदाज कर देती सिर्फ इतना ही नहीं लांच भी प्रत्येक दिन कैंटीन में जाकर ही करती साक्षी या दूसरे सहयोगी अपने में से खाने को कहते तो मना करके कैंटीन चला जाया करतीं थीं।

श्रृष्टि को ऐसा करते देखकर राघव भी लंच करने कैंटीन में चला जाता और श्रृष्टि के टेबल पर जाकर बैठ जाता तब श्रृष्टि उठकर दूसरे टेबल पे बैठ जाती। श्रृष्टि की बेरुखी देखकर राघव बेहद कुंठित हों जाता मगर हार नहीं मान रहा था। प्रत्येक दिन अपना क्रिया कलाप दौहराए जा रहा था।

जो भी श्रृष्टि कर रहीं थी इससे श्रृष्टि भी आहत हों रहीं थी। जब भी राघव आकर चला जाता तब श्रृष्टि की भावभंगिमा बदल जाती जिसे देखकर साक्षी श्रृष्टि के पास जाकर बोली...श्रृष्टि जब तुझे राघव सर के साथ ऐसा सलूक करके बूरा लगता हैं तो क्यों कर रहीं हैं।

श्रृष्टि... मैं भला राघव सर के साथ कैसा व्यवहार करने लगी जिससे मुझे बूरा लगेगा।

साक्षी...सब जानकर भी अंजान बनने का स्वांग न कर मैं सब देख रही हूं और समझ भी रहीं हूं जब भी तू सर को नजरंदाज करती है प्रत्येक बार तू उदास हों जाती हैं और तेरी आंखें छलक आती है फिर भी तू ऐसा क्यों कर रही हैं? ये बात मेरे समझ से परे हैं।

श्रृष्टि... मैं भाला स्वांग क्यों करने लग गई? मैने न कभी स्वांग किया है न ही करती हूं और रहीं बात मेरे आंखें छलकने की तो उस वक्त कोई धूल का कर्ण चला गया होगा।

साक्षी... श्रृष्टि बार बार एक ही किस्सा कैसे दौहराया जा सकता है? तू कह रहीं हैं तो मान लेती हूं। अच्छा सुन इस इतवार को मैं तेरे घर आ रही हूं तू घर पर तो रहेगी न।

श्रृष्टि... तुझे मैंने कभी रोका हैं? जब मन करें तब आ जाना।

साक्षी... रोका तो नहीं है पर सुनने में आया है तू आज कल इतवार को भी बहुत बिजी रहने लगीं है बस इसलिए पूछ लिया।

साक्षी ने जो कहा उसे सुनकर श्रृष्टि समझ गई की साक्षी का इशारा किस ओर है इसलिए बिना कुछ कहे अपने काम में लग गई। कुछ देर काम करने के बाद साक्षी जा पहुंची राघव के पास साक्षी को आया देखकर राघव बोला...साक्षी कुछ काम बना कुछ पता चला ? श्रृष्टि क्यों ऐसा कर रहीं हैं।?

 
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RE: श्रृष्टि की गजब रित - by maitripatel - 25-08-2024, 06:52 PM



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