25-08-2024, 06:51 PM
उधर साक्षी के जरिए राघव को भी खबर मिल चुकी थी कि किस करण श्रृष्टि चली गई थी जिसे जानकार राघव ने कहीं बार श्रृष्टि को कॉल किया लेकिन एक भी बार श्रृष्टि ने कॉल रिसीव नहीं किया बल्कि जवाब में एक msg भेज देया था।
राघव बेचारा प्यार की बुखार से पीड़ित, आशिकी का भूत सिर पर चढ़ाए बस श्रृष्टि की एक शोर्ट msg से खुद को संतुष्ट कर लेता था।
एक हफ्ते की छुट्टी के बाद श्रृष्टि दफ्तर पहुंची जहां सभी ने श्रृष्टि का अव भगत ऐसे किया जैसे श्रृष्टि कई महीनों बाद दफ्तर आई हों।
राघव की जानकारी में था कि आज श्रृष्टि दफ्तर आ रहीं हैं तो महाशय आज अपने नियत समय से पहले ही दफ्तर पहुंच गए और जा पहूंच अपनी माशूका के दीदार करने मगर बेचारे की फूटी किस्मत श्रृष्टि ने नज़र उठकर भी राघव को नहीं देखा। कुछ वक्त तक वह खड़ा रहा इस आस में की श्रृष्टि कभी तो उसकी और देखेगी लेकिन श्रृष्टि ज्यो की त्यों बनी रहीं। अंतः जाते वक्त राघव बोला... श्रृष्टि जरा मेरे कमरे में आना कुछ बात करनी हैं और हा तुमसे ही बात करनी हैं किसी ओर से नहीं इसलिए तुम्हे ही आना होगा।
इतना बोलकर राघव चला गया और श्रृष्टि असमंजस की स्थिति में फंस गई कि करे तो करे क्या? आस की निगाह से साक्षी को देखा तो उसने भी कंधा उचा कर कह दिया। मैं इसमें तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकती हूं जो करना हैं तुम्हें ही करना हैं।
अब राघव के पास जानें के अलावा श्रृष्टि के पास कोई और चारा ही नहीं बचा इसलिए श्रृष्टि राघव के पास पहुंच गई। श्रृष्टि को आया देखकर राघव के होठो पर मंद मंद मुस्कान तैर गया और आंखों से शुक्रिया अदा करते हुए राघव बोला... श्रृष्टि तुम्हारी मां की खबर जानने के लिए कितना फोन किया मगर तुमने एक बार भी बात करना ज़रूरी नहीं समझा। ऐसा क्यों?
श्रृष्टि... सर उस वक्त मैं बिजी रहती थी इसलिए फोन रिसीव नहीं कर पाईं। वैसे भी साक्षी से आप को खबर मिल ही गया होगा कि मां कैसी हैं तो मैं बताऊं या साक्षी बताए बात तो एक ही हैं।
राघव... तुम्हारी मां की खबर मिल ही गया था फ़िर भी मैंने इतना फोन किया कम से कम एक बार कॉल रिसीव कर लेती भला घर पर रहते हुए भी कौन इतना बिजी रहता है जो किसी से बात करने की फुरसत ही नहीं मिल रहा था।
श्रृष्टि... सर दफ्तर के काम के अलावा घर पर भी सैकड़ों काम होते हैं जिसे करना भी ज़रूरी होता हैं। आपकी ज़रूरी बाते हो गया हों तो मैं जाऊं।
राघव... श्रृष्टि मैं देख रहा हूं। कई दिन से तुम मुझे नजरंदाज कर रहें हों। मैं जान सकता हूं मुझसे ऐसा कौन सा गुनाह हों गया है जिसके लिए तुम ऐसा कर रहीं हों।
"सर गुनाह आप से नहीं मूझसे हुआ हैं। मुझे लगता है आपकी ज़रूरी बाते खत्म हों गया होगा इसलिए मैं चलती हूं बहुत काम पड़ा हैं।" सपाट लहजे में श्रृष्टि ने अपनी बाते कह दि और पलट कर चल दिया।
जब श्रृष्टि द्वार तक पहुंची तब रूक गई और आंखें मिच लिया शायद उसके आंखों में कुछ आ गई होगी तो आंखो को पोंछते हुए चली गई। राघव पहले तो अचंभित सा हों गया फ़िर श्रृष्टि को द्वार पर रूकते देखकर मंद मंद मुस्करा दिया और श्रृष्टि के जाते ही धीरे से बोला... ओ हों इतना गुस्सा चलो इसी बहाने ये तो जान गया कि तुम भी मूझसे प्यार करती हों।
जारी रहेगा….
राघव बेचारा प्यार की बुखार से पीड़ित, आशिकी का भूत सिर पर चढ़ाए बस श्रृष्टि की एक शोर्ट msg से खुद को संतुष्ट कर लेता था।
एक हफ्ते की छुट्टी के बाद श्रृष्टि दफ्तर पहुंची जहां सभी ने श्रृष्टि का अव भगत ऐसे किया जैसे श्रृष्टि कई महीनों बाद दफ्तर आई हों।
राघव की जानकारी में था कि आज श्रृष्टि दफ्तर आ रहीं हैं तो महाशय आज अपने नियत समय से पहले ही दफ्तर पहुंच गए और जा पहूंच अपनी माशूका के दीदार करने मगर बेचारे की फूटी किस्मत श्रृष्टि ने नज़र उठकर भी राघव को नहीं देखा। कुछ वक्त तक वह खड़ा रहा इस आस में की श्रृष्टि कभी तो उसकी और देखेगी लेकिन श्रृष्टि ज्यो की त्यों बनी रहीं। अंतः जाते वक्त राघव बोला... श्रृष्टि जरा मेरे कमरे में आना कुछ बात करनी हैं और हा तुमसे ही बात करनी हैं किसी ओर से नहीं इसलिए तुम्हे ही आना होगा।
इतना बोलकर राघव चला गया और श्रृष्टि असमंजस की स्थिति में फंस गई कि करे तो करे क्या? आस की निगाह से साक्षी को देखा तो उसने भी कंधा उचा कर कह दिया। मैं इसमें तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकती हूं जो करना हैं तुम्हें ही करना हैं।
अब राघव के पास जानें के अलावा श्रृष्टि के पास कोई और चारा ही नहीं बचा इसलिए श्रृष्टि राघव के पास पहुंच गई। श्रृष्टि को आया देखकर राघव के होठो पर मंद मंद मुस्कान तैर गया और आंखों से शुक्रिया अदा करते हुए राघव बोला... श्रृष्टि तुम्हारी मां की खबर जानने के लिए कितना फोन किया मगर तुमने एक बार भी बात करना ज़रूरी नहीं समझा। ऐसा क्यों?
श्रृष्टि... सर उस वक्त मैं बिजी रहती थी इसलिए फोन रिसीव नहीं कर पाईं। वैसे भी साक्षी से आप को खबर मिल ही गया होगा कि मां कैसी हैं तो मैं बताऊं या साक्षी बताए बात तो एक ही हैं।
राघव... तुम्हारी मां की खबर मिल ही गया था फ़िर भी मैंने इतना फोन किया कम से कम एक बार कॉल रिसीव कर लेती भला घर पर रहते हुए भी कौन इतना बिजी रहता है जो किसी से बात करने की फुरसत ही नहीं मिल रहा था।
श्रृष्टि... सर दफ्तर के काम के अलावा घर पर भी सैकड़ों काम होते हैं जिसे करना भी ज़रूरी होता हैं। आपकी ज़रूरी बाते हो गया हों तो मैं जाऊं।
राघव... श्रृष्टि मैं देख रहा हूं। कई दिन से तुम मुझे नजरंदाज कर रहें हों। मैं जान सकता हूं मुझसे ऐसा कौन सा गुनाह हों गया है जिसके लिए तुम ऐसा कर रहीं हों।
"सर गुनाह आप से नहीं मूझसे हुआ हैं। मुझे लगता है आपकी ज़रूरी बाते खत्म हों गया होगा इसलिए मैं चलती हूं बहुत काम पड़ा हैं।" सपाट लहजे में श्रृष्टि ने अपनी बाते कह दि और पलट कर चल दिया।
जब श्रृष्टि द्वार तक पहुंची तब रूक गई और आंखें मिच लिया शायद उसके आंखों में कुछ आ गई होगी तो आंखो को पोंछते हुए चली गई। राघव पहले तो अचंभित सा हों गया फ़िर श्रृष्टि को द्वार पर रूकते देखकर मंद मंद मुस्करा दिया और श्रृष्टि के जाते ही धीरे से बोला... ओ हों इतना गुस्सा चलो इसी बहाने ये तो जान गया कि तुम भी मूझसे प्यार करती हों।
जारी रहेगा….