25-08-2024, 06:51 PM
भाग - 27
द्वार घंटी के आवाहन देने पर श्रृष्टि जाकर द्वार खोला और आए हुए शख्स को देखकर बोला...साक्षी तुम आओ आओ भीतर आओ।
साक्षी... श्रृष्टि तेरा तो क्या ही कहना। कितना फोन किया एक फोन रिसीव करना जरूरी नहीं समझा तुझे पता है राघव सर कितना परेशान हों रहें थे।
श्रृष्टि…सर भला क्यों परेशान होने लग गए। ओह्ह समझी आज दफ्तर जाकर लौट आईं इसलिए परेशान हों रहें होंगे। होना भी चहिए उनका आज का काम रूक जो गया। सही कहा ना।?
श्रृष्टि ने सपाट लहजे में अपनी बाते कह दिया जिसे सुनकर साक्षी सिर्फ मुंह तकती रह गई और श्रृष्टि आगे बढ़ते हुए बोलीं... साक्षी सॉरी हा वो मां हॉस्पिटल में थी और ये सूचना पाते ही मेरा सूज बुझ जवाब दे चुका था इसलिए कुछ बता नहीं पाई।
"क्या (चौकते हुए साक्षी बोली) आंटी हॉस्पिटल में है तो तू इस वक्त घर में क्या कर रहीं हैं?
"श्रृष्टि बेटा कौन आया हैं।" माताश्री जानकारी लेते हुए बोली
श्रृष्टि... मां साक्षी आई है। चल साक्षी मां से भी मिल ले।
इसके बाद दोनों माताश्री के कमरे में पहुंचे वहां साक्षी ने माताश्री का हाल चाल लिया फ़िर बोलीं... आंटी आपकी बेटी न पूरा का पूरा वावली हैं। आप की सूचना पाकर खुद तो परेशान हुइ ही साथ में ओर लोगों को भी परेशान कर दिया।
"वो तो होगी ही मां से इतना प्यार जो करती हैं।।"
साक्षी... मां से प्यार करती है ये तो अच्छी बात है मगर इसे समझना चाहिए कोई है जो इससे बहुत प्यार करता है। इसे परेशान देखकर वो भी परेशान हो जाता हैं।
कोई ओर भी श्रृष्टि को प्यार करता हैं यह सुनते ही माताश्री और श्रृष्टि समझ गई कि किसकी बात कही जा रही हैं। माताश्री कुछ बोलती उससे पहले ही श्रृष्टि बोलीं... साक्षी तू मां से बात कर मैं चाय बनाकर लाई।
साक्षी रूकने को कहा पर श्रृष्टि रूकी नहीं खैर कुछ देर में श्रृष्टि फ़िर से तीन कप चाय लेकर आई और साक्षी को देते हुए बोलीं... साक्षी तुझे तो कॉफी पीने की आदत है लेकिन हम मां बेटी को चाय पीने की आदत है। इसलिए कॉफी की जगह चाय लेकर आई हूं। तुझे बूरा तो नहीं लगेगा।
साक्षी... क्यों कल भी तो तूने मुझे चाय पिलाया था तब तो तूने मुझसे कुछ नहीं कहा अच्छा आंटी आप ही बताइए कहा लिखा है कॉफी पसंद करने वाला चाय नहीं पी सकता हैं।
"कहीं नहीं लिखा हैं।"
साक्षी... ये बात जरा अपने इस डफेर बेटी को समझाइए
डफेर सुनते ही माताश्री हंस दि और श्रृष्टि चिड़ते हुए बोलीं... मां साक्षी मुझे डफेर बोल रहीं हैं और आप इसे कुछ कहने के जगह हंस रहीं हों।
इस बार माताश्री और साक्षी दोनों श्रृष्टि की बातों पर हंस दिया फ़िर माताश्री बोलीं... श्रृष्टि बेटा इसमें छिड़ने वाली कोई बात ही नहीं हैं। तूने बाते ही मूर्खो वाली कहीं हैं।
श्रृष्टि... मां...।
श्रृष्टि एक बार फिर से चीड़ गई। माताश्री ने उसे समझा बुझा कर मना लिया बहरहाल चाय खत्म होने के बाद साक्षी फ़िर आने को बोलकर विदा लिया। साक्षी को श्रृष्टि बहार तक छोड़ने आई। बहार आकर श्रृष्टि बोलीं... साक्षी सर को बोल देना मैं कुछ दिन छुट्टी पर रहूंगी।
साक्षी... मैं क्यों बोलूं छुट्टी तुझे चाहिए तू खुद ही बोल देना।
श्रृष्टि...क्या तू मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकती हैं।
साक्षी... कर तो बहुत कुछ सकती हूं पर करूंगी नहीं क्योंकि जब तू बिना बताए आ गई तो सर सुनकर बहुत चिंतित हों गए थे। इसलिए नहीं की तू उनके साथ लंच पर नहीं गईं। वो चिंतित इसलिए हुए थे क्योंकि उन्हें तेरी फिक्र हैं। अरे मैं भी कौन सी बाते लेकर बैठ गई अच्छा मैं चलती हूं और तू अपने छुट्टी की अर्जी खुद ही सर को फ़ोन करके लगा देना।
साक्षी चली गई और श्रृष्टि भीतर आ गई। जब वो माताश्री के कमरे में पहुंची तो देखा माताश्री किसी ख्यालों में गुम है। ये देख श्रृष्टि बोलीं... मां आप किस ख्यालों में खोए हों।
"कुछ नहीं बस ऐसे ही। अच्छा ये बोल रात के खाने में क्या बना रहीं हैं।"
श्रृष्टि... जो आप कहो
रात्रि भोजन में क्या बनाया जाएं। ये सुनिश्चित होते ही श्रृष्टि रसोई में चली गई और रात्रि भोजन की तैयारी करने लग गईं। तभी "श्रृष्टि बेटा तेरा फ़ोन बज रहा है देख ले किसका फ़ोन आया हैं।" माताश्री आवाज देते हुए बोली। तब श्रृष्टि अपना मोबाइल लेने गई तब तक कॉल कट चुका था।
स्क्रीन पर दिख रहे नाम को देख कर फटा फट एक msg टाइप करके भेज दिया और फ़ोन अपने साथ लेकर रसोई में आ गई। रसोई में आने के बाद भी कई बार मोबाइल बजा मगर श्रृष्टि नजरंदाज करके अपना काम करती रहीं। उसकी आँखे अब जवाब दे गई पर तय जो किया था
माताश्री के पांव में फैक्चर की वजह से प्लास्टर चढ़ा हुआ था इसलिए सावधानी बरते हुए श्रृष्टि ने दफ्तर में छुट्टी की अर्जी लगा दिया था। इसका पाता चलते ही माताश्री ने श्रृष्टि को डांटा कि साधारण सी चोट है इसके लिए तुझे छुट्टी लेने की जरूरत नहीं हैं। तू दफ्तर जा मैं खुद का ख्याल रख लूंगी। मगर श्रृष्टि माताश्री की एक न सुनी और घर पर ही रहीं।
द्वार घंटी के आवाहन देने पर श्रृष्टि जाकर द्वार खोला और आए हुए शख्स को देखकर बोला...साक्षी तुम आओ आओ भीतर आओ।
साक्षी... श्रृष्टि तेरा तो क्या ही कहना। कितना फोन किया एक फोन रिसीव करना जरूरी नहीं समझा तुझे पता है राघव सर कितना परेशान हों रहें थे।
श्रृष्टि…सर भला क्यों परेशान होने लग गए। ओह्ह समझी आज दफ्तर जाकर लौट आईं इसलिए परेशान हों रहें होंगे। होना भी चहिए उनका आज का काम रूक जो गया। सही कहा ना।?
श्रृष्टि ने सपाट लहजे में अपनी बाते कह दिया जिसे सुनकर साक्षी सिर्फ मुंह तकती रह गई और श्रृष्टि आगे बढ़ते हुए बोलीं... साक्षी सॉरी हा वो मां हॉस्पिटल में थी और ये सूचना पाते ही मेरा सूज बुझ जवाब दे चुका था इसलिए कुछ बता नहीं पाई।
"क्या (चौकते हुए साक्षी बोली) आंटी हॉस्पिटल में है तो तू इस वक्त घर में क्या कर रहीं हैं?
"श्रृष्टि बेटा कौन आया हैं।" माताश्री जानकारी लेते हुए बोली
श्रृष्टि... मां साक्षी आई है। चल साक्षी मां से भी मिल ले।
इसके बाद दोनों माताश्री के कमरे में पहुंचे वहां साक्षी ने माताश्री का हाल चाल लिया फ़िर बोलीं... आंटी आपकी बेटी न पूरा का पूरा वावली हैं। आप की सूचना पाकर खुद तो परेशान हुइ ही साथ में ओर लोगों को भी परेशान कर दिया।
"वो तो होगी ही मां से इतना प्यार जो करती हैं।।"
साक्षी... मां से प्यार करती है ये तो अच्छी बात है मगर इसे समझना चाहिए कोई है जो इससे बहुत प्यार करता है। इसे परेशान देखकर वो भी परेशान हो जाता हैं।
कोई ओर भी श्रृष्टि को प्यार करता हैं यह सुनते ही माताश्री और श्रृष्टि समझ गई कि किसकी बात कही जा रही हैं। माताश्री कुछ बोलती उससे पहले ही श्रृष्टि बोलीं... साक्षी तू मां से बात कर मैं चाय बनाकर लाई।
साक्षी रूकने को कहा पर श्रृष्टि रूकी नहीं खैर कुछ देर में श्रृष्टि फ़िर से तीन कप चाय लेकर आई और साक्षी को देते हुए बोलीं... साक्षी तुझे तो कॉफी पीने की आदत है लेकिन हम मां बेटी को चाय पीने की आदत है। इसलिए कॉफी की जगह चाय लेकर आई हूं। तुझे बूरा तो नहीं लगेगा।
साक्षी... क्यों कल भी तो तूने मुझे चाय पिलाया था तब तो तूने मुझसे कुछ नहीं कहा अच्छा आंटी आप ही बताइए कहा लिखा है कॉफी पसंद करने वाला चाय नहीं पी सकता हैं।
"कहीं नहीं लिखा हैं।"
साक्षी... ये बात जरा अपने इस डफेर बेटी को समझाइए
डफेर सुनते ही माताश्री हंस दि और श्रृष्टि चिड़ते हुए बोलीं... मां साक्षी मुझे डफेर बोल रहीं हैं और आप इसे कुछ कहने के जगह हंस रहीं हों।
इस बार माताश्री और साक्षी दोनों श्रृष्टि की बातों पर हंस दिया फ़िर माताश्री बोलीं... श्रृष्टि बेटा इसमें छिड़ने वाली कोई बात ही नहीं हैं। तूने बाते ही मूर्खो वाली कहीं हैं।
श्रृष्टि... मां...।
श्रृष्टि एक बार फिर से चीड़ गई। माताश्री ने उसे समझा बुझा कर मना लिया बहरहाल चाय खत्म होने के बाद साक्षी फ़िर आने को बोलकर विदा लिया। साक्षी को श्रृष्टि बहार तक छोड़ने आई। बहार आकर श्रृष्टि बोलीं... साक्षी सर को बोल देना मैं कुछ दिन छुट्टी पर रहूंगी।
साक्षी... मैं क्यों बोलूं छुट्टी तुझे चाहिए तू खुद ही बोल देना।
श्रृष्टि...क्या तू मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकती हैं।
साक्षी... कर तो बहुत कुछ सकती हूं पर करूंगी नहीं क्योंकि जब तू बिना बताए आ गई तो सर सुनकर बहुत चिंतित हों गए थे। इसलिए नहीं की तू उनके साथ लंच पर नहीं गईं। वो चिंतित इसलिए हुए थे क्योंकि उन्हें तेरी फिक्र हैं। अरे मैं भी कौन सी बाते लेकर बैठ गई अच्छा मैं चलती हूं और तू अपने छुट्टी की अर्जी खुद ही सर को फ़ोन करके लगा देना।
साक्षी चली गई और श्रृष्टि भीतर आ गई। जब वो माताश्री के कमरे में पहुंची तो देखा माताश्री किसी ख्यालों में गुम है। ये देख श्रृष्टि बोलीं... मां आप किस ख्यालों में खोए हों।
"कुछ नहीं बस ऐसे ही। अच्छा ये बोल रात के खाने में क्या बना रहीं हैं।"
श्रृष्टि... जो आप कहो
रात्रि भोजन में क्या बनाया जाएं। ये सुनिश्चित होते ही श्रृष्टि रसोई में चली गई और रात्रि भोजन की तैयारी करने लग गईं। तभी "श्रृष्टि बेटा तेरा फ़ोन बज रहा है देख ले किसका फ़ोन आया हैं।" माताश्री आवाज देते हुए बोली। तब श्रृष्टि अपना मोबाइल लेने गई तब तक कॉल कट चुका था।
स्क्रीन पर दिख रहे नाम को देख कर फटा फट एक msg टाइप करके भेज दिया और फ़ोन अपने साथ लेकर रसोई में आ गई। रसोई में आने के बाद भी कई बार मोबाइल बजा मगर श्रृष्टि नजरंदाज करके अपना काम करती रहीं। उसकी आँखे अब जवाब दे गई पर तय जो किया था
माताश्री के पांव में फैक्चर की वजह से प्लास्टर चढ़ा हुआ था इसलिए सावधानी बरते हुए श्रृष्टि ने दफ्तर में छुट्टी की अर्जी लगा दिया था। इसका पाता चलते ही माताश्री ने श्रृष्टि को डांटा कि साधारण सी चोट है इसके लिए तुझे छुट्टी लेने की जरूरत नहीं हैं। तू दफ्तर जा मैं खुद का ख्याल रख लूंगी। मगर श्रृष्टि माताश्री की एक न सुनी और घर पर ही रहीं।