24-08-2024, 04:53 PM
दृश्य में बदलाब
श्रृष्टि इस वक्त एक हॉस्पिटल में हैं। जहां उसकी मां बेड पर लेटी हुई है। उनके एक पाव में प्लास्टर चढ़ा हुआ है और श्रृष्टि मां से बोल रहीं हैं।
"जब आप की तबीयत सुबह से खराब लग रही थी तो आपको कॉलेज जानें की जरूरत क्या थीं।"
"श्रृष्टि बेटा मैं एक शिक्षक हूं। शिक्षक होना बहुत ज़िम्मेदारी का काम हैं। चाहें कुछ भी हों जाएं मैं अपनी ज़िम्मेदारी से विमुख नहीं हों सकता।"
"शिक्षक होने के साथ साथ आप एक मां हों और आपके अलावा आपके बेटी का इस दुनिया में कोई नहीं है ये बात क्यों भुल जाती हों।" श्रृष्टि लगभग रोते हुए बोलीं
"अहा श्रृष्टि बेटा रोते नहीं हैं मुझे कुछ हुआ थोड़ी हैं बस पाव थोड़ा सा मोच हुआ है और ये बोतल तो डॉक्टर लोगों ने बस अपना बिल बढ़ने के लिए लगा रखा हैं।"
श्रृष्टि...आपको तो सब सहज लगता हैं। लेकिन मुझ पर क्या बीत रहीं थी मैं ही जानती हूं। जब मेरे पास फ़ोन आया कि आप सीढ़ी से गिर गई हों। तब कितने अनाप शनाप ख्याल मेरे दिमाग़ में आ रहे थे।
"अहा श्रृष्टि ज्यादा अनाप शनाप ख्याल आपने दिमाग में न लाया कर एक तू और एक वो बताने वाला उसने पुरी बात बताया नहीं और तूने पुरी बात सूनी नहीं मैं तो बस...।"
"बस आपको चक्कर आ गया था ओर आप गिर गई थी जिसे आपका पैर मुड़ गया था।" मां की बात पूरा करते हुए श्रृष्टि बोलीं
"हां बस इतना ही हुआ देखना शाम तक बिल्कुल ठीक हों जाउंगी।"
श्रृष्टि... कितना ठिक हों जाओगी मैं जानती हूं। जब तक आपका पाव ठीक नहीं हो जाता तब तक आप कॉलेज नहीं जाओगी।
"पर...।"
"पर वर कुछ नहीं जो बोला यहीं आपको करना होगा अब आप आराम करो मैं डॉक्टर से मिलकर आती हूं।" मां को लगभग डांटते हुए बोली
मा “ ये लड़की मेरी मा ही बनेगी “
इसके बाद श्रृष्टि डॉक्टर के पास पहुंची और मां के सेहत की जानकारी लिया तब डॉक्टर बोला... ज्यादा मेजर प्रॉब्लम नहीं है हल्की सी फैक्चर है। उनके उम्र को देखते हुए हमने ऐतिहातन (प्रिकोशनरी) प्लास्टर चढ़ा दिया है ।
श्रृष्टि... डॉक्टर, मां को घर कब ले जा सकती हूं।
डॉक्टर... बस कुछ ही देर ओर रूकना है ड्रिप खत्म होते ही आप उन्हें ले जा सकती हों।
इसके बाद श्रृष्टि मां के पास आकर बैठ गई और उनसे बाते करके समय काटने लग गई। ड्रिप खत्म होने के बाद माताश्री को छुट्टी दे दिया गया।
घर आकर माताश्री को उनके रूम में लिटाकर श्रृष्टि घर के कामों में लग गई ऐसे ही शाम हो गया। श्रृष्टि मां के साथ शाम के चाय का लुप्त ले रहीं थी उसी वक्त द्वार घंटी ने बजकर किसी के आने का आवाहन दिया।
जारी रहेगा...
अब शायद कहानी जोर पकड़ रही है ........... अब आपका इस कहानी में बने रहने का बनता ही है !!!!!!!!!!!!