24-08-2024, 04:52 PM
भाग - 26
श्रृष्टि का यूं अचानक बिना कोई कारण बताए चिंतित मुद्रा में घर चले जाना साक्षी सहित बाकि साथियों के लिया चिंता का विषय बन गया।
दूसरे साथी साक्षी से श्रृष्टि के जानें का कारण पूछने लग गए मगर साक्षी भी तो अनजान थी तो बस इतना ही बोलीं...मुझे नहीं पता लेकिन उसे देखकर इतना तो जान ही गईं हूं। कुछ तो हुआ हैं वरना वो ऐसे अचानक घर न चली जाती। तुम सभी काम पे ध्यान दो मैं सर को बताकर आती हूं।
साक्षी राघव के पास पहुंच गई। भीतर जानें की अनुमति लेकर भीतर जाते ही राघव बोला... बोलों साक्षी कुछ काम था।?
साक्षी... सर मै बस इतना बताने आई थी कि श्रृष्टि अभी अभी घर चली गई हैं।
"क्या (चौक कर राघव आगे बोला) श्रृष्टि का एसा व्यवहार मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा हैं वो चाहती किया हैं। आज फिर कोई बहाना बनाकर चली गई हैं।
साक्षी... सर मै इतना तो दावे से कह सकती हूं आज वो किसी तरह का कोई बहाना बनाकर नहीं गई हैं। पर जब वो गई थी तब बहुत ही विचलित और चिंतित थी। जैसे ही उसका फोन आया उसी टाइम से|
"क्या, क्या हुआ कुछ बताकर गई हैं?" राघव चिंतित होते हुए बोला
साक्षी... नहीं सर..।
इतना सुनते ही राघव तुंरत फोन निकाला और किसी को कॉल लगा दिया। एक के बाद एक कई कॉल किया पर दुसरी और से कोई रेस्पॉन्स ही नहीं मिला तो खीजते हुए राघव बोला... श्रृष्टि फोन क्यों रिसीव नहीं कर रहीं हैं?
साक्षी... अरे सर अभी अभी तो गई हैं स्कूटी चला रहीं होगी। आप चिंता न करें मैं थोड़ी देर में उससे बात करके आपको बता देती हु । अच्छा अब मैं जाती हूं और सभी को बता देती हूं आज का लंच कैंसिल हों गया हैं।
राघव... क्यों, लंच कैंसिल क्यों करना?
साक्षी... अरे सर जिसके लिए लंच प्लान किया गया था वो ही चली गई हैं। तो फिर लंच पर जाकर क्या फायदा?
राघव... नहीं साक्षी लंच कैंसिल नहीं कर सकते हैं। ऐसा किया तो उन सभी के अरमानों पर पानी फ़िर जायेगा। और मेरी क्या वेल्यु रहेगी
साक्षी... आप के अरमानों पर पानी फिर गया उसका क्या?
राघव... मेरे अरमानों पर पानी फिरता रहता हैं। अब तो इसकी आदत सी हो गई हैं। मैं तुम्हें वहा का एड्रेस दे देता हूं तुम सभी को साथ लेकर चली जाना
साक्षी... जाहिर सी बात है श्रृष्टि नहीं जा रही है मतलब आप भी नहीं जाओगे। आगर आप जा रहे है तो मैं खुद के जाने में बारे में सोच सकती हूं। बोलिए आप चल रहे हों।
राघव…सॉरी साक्षी मैं….।
साक्षी... बस सर मै समझ गयी। अब ये लंच का प्रोग्राम कैंसिल मतलब कैंसिल।
राघव…साक्षी समझा कारों यार।
साक्षी... समझ ही तो गई हूं तभी तो बोल रहीं हूं। दो आशिक एक दूसरे से प्यार का इजहार कर पाए इसलिए लंच पे जाने का प्लान किया गया था जब दोनों ही नहीं जा रहे है तो हमारे जानें का मतलब पैदा ही नहीं होता हैं। और अगर इस बहाने काम हो जाता तो हम सब ख़ुशी के मारे और एक पार्टी मांग लेते ही ह ही ही
इतना बोलकर साक्षी चल दि। जाते जाते पलट कर बोलीं... सर आप चिंता न करे उनके सामने आप की नाक नहीं कटने दूंगी।
राघव ने रूकने को बोला पर साक्षी नही रूकी वो चली गई। जब सहयोगियों के पास पहुंची तो साक्षी बोलीं...सुनो मुझे तुम सब से एक सवाल पूछना हैं। क्या तुम सब राघव सर के साथ लंच पर जाना चाहते हों?
"ये भी कोई पूछने की बात हैं। सर ने खुद ही कहा हैं तो जाना तो बनता हैं भला ऐसा मौका रोज रोज कहा मिलता हैं।" सर को लुटने का हा हा हा हा एक सहयोगी बोला
एक साथ सभी ने अपनी अपनी मनसा जहीर कर दिया जिसे सुनकर साक्षी बोलीं...कह तो सही रहे हों ऐसा मौका रोज रोज नहीं मिलता हैं पर श्रृष्टि चली गई है इसलिए मेरा भी मन नहीं हैं। मैं तो भाई सर को मना कर आई हूं। तुम सभी को जाना है तो चले जाना सर जानें को तैयार हैं।
साक्षी के लंच पे जाने से मना कर देने पर सभी पहले तो एक दूसरे का चेहरा ताकने लगे फिर आपस में विचार विमर्श करने लग गए। कुछ देर बाद उनमें से एक बोला... क्या साक्षी मैम कम से कम आप तो चलती बड़े दिनों से सोच रहा था। आपको लंच पर चलने को कहू पर हिम्मत नहीं जुटा पाया आज राघव सर के बहाने मेरी इच्छा पूरी हों रही थी मगर लगता है मेरी किस्मत एक टांग की घोड़ी पर सवार होकर धीरे धीरे आ रहा हैं जो बात बनते बनते बिगड़ गया।
"मतलब " चौकते हुए साक्षी बोलीं
"अरे बोल दे शिवम ( ये वही कर्मचारी है जो हमेशा साक्षी के पक्ष में होता था याद है ना) आज मौका है इतनी हिम्मत करके ये बोल दिया है तो आगे का भी बोल दे जो बोलने के लिए लंच पर ले जाना चाहता था।" एक सहयोगी धीरे से शिवम के कान में बोला
शिवम... वो साक्षी मैम, वो क्या हैं न मैं आपको बहुत दिनों से पसंद करता हूं और प्यार भी पर कभी कहने का साहस ही नहीं जुटा पाया।
"तो फिर आज कैसे साहस जुटा लिया।" मुस्कुराते हुए साक्षी बोलीं
शिवम... वो आज आपके साथ लंच पर न जा पाने की हताशा के कारण कुछ बातें निकल गया फिर…
"फ़िर इसने मेरे कान भरने से पुरी बात उसके मुंह से निकल गया। क्यों शिवम सही कहा न।" शिवम की बाते पूरा करते हुए उसके कान में बोलने वाले ने बोला
साक्षी... चलो अच्छा हुआ जो आज बोल दिया। मैं भी कई दिनों से गौर कर रहीं थी तुम कुछ कहना चाहते हों मगर बात जुबां तक आते आते कही अटक जा रहा था। अच्छा मुझे थोड़ा वक्त मिल सकता है या फिर आज ही जवाब देना हैं।?
शिवम... नहीं आपको वक्त चहिए तो ले लो मगर थोड़ा जल्दी बोल देना।
हां मेम जरा जल्दी ही बोल देना शिवम् से रहा नहीं जाएगा उसी कर्मचारी ने उसकी टांग खीचते हुए बोला
साक्षी... ठीक है अब बोलों किसी को सर के साथ लंच पर जाना हैं।
"अब भला लंच पर कौन जायेगा। लंच तो यहीं करेंगे और लंच पार्टी शिवम देगा।" एक सहयोगी बोला
शिवम... वो क्यों भाला अभी सिर्फ मैने बोला है उधर से कोई जबाव नहीं आया जिस दिन जवाब आयेगा अगर हां हुआ तो भरपुर पार्टी दूंगा।
"चल ठीक है तेरी बात मान लेते है। साक्षी मैम आप सर को बोल दिजिए लंच पार्टी कैंसिल कोई नहीं जा रहा हैं।"
लंच कैंसिल करने की बात जब साक्षी राघव को बोलने गई तो सुनने के बाद राघव बोला... तो साक्षी तुम्हें भी तुम्हारा चाहने वाला मिल गया।
साक्षी...मतलब की आज फ़िर आप छुप छुप कर हमे देख और हमारी बाते सुन रहे थे।
राघव…हा साक्षी...।
साक्षी... आप अपनी ये आदत कब छोड़ेंगे।
राघव... कभी नहीं! साक्षी शिवम को लेकर जो भी फैंसला लेना सोच समझकर कर लेना क्योंकि मुझे लगता हैं शिवम तुम्हारे लिए बिल्कुल परफेक्ट लड़का हैं। मैं बस अपनी राय बता रहा हूं।
साक्षी...वो मैं देख लूंगी कुछ भी जवाब देने से पहले शिवम को अच्छे से परख लूंगी अच्छा अब मैं चलती हूं कुछ काम भी कर लेती हूं।
श्रृष्टि का यूं अचानक बिना कोई कारण बताए चिंतित मुद्रा में घर चले जाना साक्षी सहित बाकि साथियों के लिया चिंता का विषय बन गया।
दूसरे साथी साक्षी से श्रृष्टि के जानें का कारण पूछने लग गए मगर साक्षी भी तो अनजान थी तो बस इतना ही बोलीं...मुझे नहीं पता लेकिन उसे देखकर इतना तो जान ही गईं हूं। कुछ तो हुआ हैं वरना वो ऐसे अचानक घर न चली जाती। तुम सभी काम पे ध्यान दो मैं सर को बताकर आती हूं।
साक्षी राघव के पास पहुंच गई। भीतर जानें की अनुमति लेकर भीतर जाते ही राघव बोला... बोलों साक्षी कुछ काम था।?
साक्षी... सर मै बस इतना बताने आई थी कि श्रृष्टि अभी अभी घर चली गई हैं।
"क्या (चौक कर राघव आगे बोला) श्रृष्टि का एसा व्यवहार मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा हैं वो चाहती किया हैं। आज फिर कोई बहाना बनाकर चली गई हैं।
साक्षी... सर मै इतना तो दावे से कह सकती हूं आज वो किसी तरह का कोई बहाना बनाकर नहीं गई हैं। पर जब वो गई थी तब बहुत ही विचलित और चिंतित थी। जैसे ही उसका फोन आया उसी टाइम से|
"क्या, क्या हुआ कुछ बताकर गई हैं?" राघव चिंतित होते हुए बोला
साक्षी... नहीं सर..।
इतना सुनते ही राघव तुंरत फोन निकाला और किसी को कॉल लगा दिया। एक के बाद एक कई कॉल किया पर दुसरी और से कोई रेस्पॉन्स ही नहीं मिला तो खीजते हुए राघव बोला... श्रृष्टि फोन क्यों रिसीव नहीं कर रहीं हैं?
साक्षी... अरे सर अभी अभी तो गई हैं स्कूटी चला रहीं होगी। आप चिंता न करें मैं थोड़ी देर में उससे बात करके आपको बता देती हु । अच्छा अब मैं जाती हूं और सभी को बता देती हूं आज का लंच कैंसिल हों गया हैं।
राघव... क्यों, लंच कैंसिल क्यों करना?
साक्षी... अरे सर जिसके लिए लंच प्लान किया गया था वो ही चली गई हैं। तो फिर लंच पर जाकर क्या फायदा?
राघव... नहीं साक्षी लंच कैंसिल नहीं कर सकते हैं। ऐसा किया तो उन सभी के अरमानों पर पानी फ़िर जायेगा। और मेरी क्या वेल्यु रहेगी
साक्षी... आप के अरमानों पर पानी फिर गया उसका क्या?
राघव... मेरे अरमानों पर पानी फिरता रहता हैं। अब तो इसकी आदत सी हो गई हैं। मैं तुम्हें वहा का एड्रेस दे देता हूं तुम सभी को साथ लेकर चली जाना
साक्षी... जाहिर सी बात है श्रृष्टि नहीं जा रही है मतलब आप भी नहीं जाओगे। आगर आप जा रहे है तो मैं खुद के जाने में बारे में सोच सकती हूं। बोलिए आप चल रहे हों।
राघव…सॉरी साक्षी मैं….।
साक्षी... बस सर मै समझ गयी। अब ये लंच का प्रोग्राम कैंसिल मतलब कैंसिल।
राघव…साक्षी समझा कारों यार।
साक्षी... समझ ही तो गई हूं तभी तो बोल रहीं हूं। दो आशिक एक दूसरे से प्यार का इजहार कर पाए इसलिए लंच पे जाने का प्लान किया गया था जब दोनों ही नहीं जा रहे है तो हमारे जानें का मतलब पैदा ही नहीं होता हैं। और अगर इस बहाने काम हो जाता तो हम सब ख़ुशी के मारे और एक पार्टी मांग लेते ही ह ही ही
इतना बोलकर साक्षी चल दि। जाते जाते पलट कर बोलीं... सर आप चिंता न करे उनके सामने आप की नाक नहीं कटने दूंगी।
राघव ने रूकने को बोला पर साक्षी नही रूकी वो चली गई। जब सहयोगियों के पास पहुंची तो साक्षी बोलीं...सुनो मुझे तुम सब से एक सवाल पूछना हैं। क्या तुम सब राघव सर के साथ लंच पर जाना चाहते हों?
"ये भी कोई पूछने की बात हैं। सर ने खुद ही कहा हैं तो जाना तो बनता हैं भला ऐसा मौका रोज रोज कहा मिलता हैं।" सर को लुटने का हा हा हा हा एक सहयोगी बोला
एक साथ सभी ने अपनी अपनी मनसा जहीर कर दिया जिसे सुनकर साक्षी बोलीं...कह तो सही रहे हों ऐसा मौका रोज रोज नहीं मिलता हैं पर श्रृष्टि चली गई है इसलिए मेरा भी मन नहीं हैं। मैं तो भाई सर को मना कर आई हूं। तुम सभी को जाना है तो चले जाना सर जानें को तैयार हैं।
साक्षी के लंच पे जाने से मना कर देने पर सभी पहले तो एक दूसरे का चेहरा ताकने लगे फिर आपस में विचार विमर्श करने लग गए। कुछ देर बाद उनमें से एक बोला... क्या साक्षी मैम कम से कम आप तो चलती बड़े दिनों से सोच रहा था। आपको लंच पर चलने को कहू पर हिम्मत नहीं जुटा पाया आज राघव सर के बहाने मेरी इच्छा पूरी हों रही थी मगर लगता है मेरी किस्मत एक टांग की घोड़ी पर सवार होकर धीरे धीरे आ रहा हैं जो बात बनते बनते बिगड़ गया।
"मतलब " चौकते हुए साक्षी बोलीं
"अरे बोल दे शिवम ( ये वही कर्मचारी है जो हमेशा साक्षी के पक्ष में होता था याद है ना) आज मौका है इतनी हिम्मत करके ये बोल दिया है तो आगे का भी बोल दे जो बोलने के लिए लंच पर ले जाना चाहता था।" एक सहयोगी धीरे से शिवम के कान में बोला
शिवम... वो साक्षी मैम, वो क्या हैं न मैं आपको बहुत दिनों से पसंद करता हूं और प्यार भी पर कभी कहने का साहस ही नहीं जुटा पाया।
"तो फिर आज कैसे साहस जुटा लिया।" मुस्कुराते हुए साक्षी बोलीं
शिवम... वो आज आपके साथ लंच पर न जा पाने की हताशा के कारण कुछ बातें निकल गया फिर…
"फ़िर इसने मेरे कान भरने से पुरी बात उसके मुंह से निकल गया। क्यों शिवम सही कहा न।" शिवम की बाते पूरा करते हुए उसके कान में बोलने वाले ने बोला
साक्षी... चलो अच्छा हुआ जो आज बोल दिया। मैं भी कई दिनों से गौर कर रहीं थी तुम कुछ कहना चाहते हों मगर बात जुबां तक आते आते कही अटक जा रहा था। अच्छा मुझे थोड़ा वक्त मिल सकता है या फिर आज ही जवाब देना हैं।?
शिवम... नहीं आपको वक्त चहिए तो ले लो मगर थोड़ा जल्दी बोल देना।
हां मेम जरा जल्दी ही बोल देना शिवम् से रहा नहीं जाएगा उसी कर्मचारी ने उसकी टांग खीचते हुए बोला
साक्षी... ठीक है अब बोलों किसी को सर के साथ लंच पर जाना हैं।
"अब भला लंच पर कौन जायेगा। लंच तो यहीं करेंगे और लंच पार्टी शिवम देगा।" एक सहयोगी बोला
शिवम... वो क्यों भाला अभी सिर्फ मैने बोला है उधर से कोई जबाव नहीं आया जिस दिन जवाब आयेगा अगर हां हुआ तो भरपुर पार्टी दूंगा।
"चल ठीक है तेरी बात मान लेते है। साक्षी मैम आप सर को बोल दिजिए लंच पार्टी कैंसिल कोई नहीं जा रहा हैं।"
लंच कैंसिल करने की बात जब साक्षी राघव को बोलने गई तो सुनने के बाद राघव बोला... तो साक्षी तुम्हें भी तुम्हारा चाहने वाला मिल गया।
साक्षी...मतलब की आज फ़िर आप छुप छुप कर हमे देख और हमारी बाते सुन रहे थे।
राघव…हा साक्षी...।
साक्षी... आप अपनी ये आदत कब छोड़ेंगे।
राघव... कभी नहीं! साक्षी शिवम को लेकर जो भी फैंसला लेना सोच समझकर कर लेना क्योंकि मुझे लगता हैं शिवम तुम्हारे लिए बिल्कुल परफेक्ट लड़का हैं। मैं बस अपनी राय बता रहा हूं।
साक्षी...वो मैं देख लूंगी कुछ भी जवाब देने से पहले शिवम को अच्छे से परख लूंगी अच्छा अब मैं चलती हूं कुछ काम भी कर लेती हूं।