24-08-2024, 04:24 PM
.......
अगले दिन सुबह श्रृष्टि जब दफ्तर आई तब वो बिल्कुल सामान्य थीं। देखकर कोई ये नहीं कह सकता कि यहीं लड़की कल इतना परेशान थी की किसी से बात नहीं कर रहीं थीं और जब दफ्तर से गई थी तब तो एक अलग ही मरू या मारू के रूप में थी। मगर आज वो सभी से हस बोल रहीं थीं ठिठौली कर रहीं थीं।
राघव दफ्तर आते ही पहले श्रृष्टि को देखने गया कि वो कैसी हैं। श्रृष्टि को हसता मुस्कुराता देखकर राघव को बहुत ही ज्यादा सकून मिला लेकिन उसका यह सकून ज्यादा देर नहीं टिका क्योंकि श्रृष्टि ने सरसरी निगाह फेरकर ऐसे पलट गई। जैसे राघव श्रृष्टि के लिए अनजान हों।
राघव काफी देर खड़ा रहा इस उम्मीद में कि श्रृष्टि एक बार उसकी ओर देखे और थोडा मुस्कुराये मगर श्रृष्टि एक बार जो नज़रे झुकाया तो बस झुका ही रही। अंतः राघव वापस जाते वक्त बोला... श्रृष्टि कुछ काम की बात करना हैं मेरे साथ आना जरा।
बिना नज़रे उठाए बस इतना बोला "आप चलिए मैं आती हूं" ये सुन और श्रृष्टि का बरताव देखकर राघव कुछ विचलित सा होकर चला गया।
राघव के जाते ही श्रृष्टि कुछ देर बिल्कुल चुप बैठी रहीं फ़िर अपने रुमाल से आंखो को फोंछने लग गई ये देख साक्षी बोलीं... क्या हुआ श्रृष्टि?
श्रृष्टि... साक्षी लगता है आंखों में धूल का कोई कण घुस गया हैं।
साक्षी...अच्छा ला दिखा मैं निकाल देती हूं।
श्रृष्टि... मैं निकाल लूंगी तू सर से मिलकर आ।
साक्षी... मैं क्यों जाऊं? बुलाकर तुझे गया हैं तो तू ही जा।
श्रृष्टि... मैं जाऊं या तू बात तो उन्हें काम की करनी हैं। हम दोनों प्रोजेक्ट हेड हैं तो काम की बात तुझसे भी किया जा सकता हैं। इसलिए तू होकर आ तब तक मैं कुछ जरुरी काम निपटा लेती हूं।
साक्षी...श्रृष्टि आज तेरा वर्ताव मेरे समझ में नहीं आ रहीं हैं। तुझे हुआ किया हैं। पहले तो तू सर के न बुलाने पर कोई न कोई काम का बहाना करके बात करने चली जाती थीं फिर आज क्या हुआ जो बुलाने पर भी नहीं जा रही हैं।?
"आ हा साक्षी मैंने जो कहा है वो कर न मुझे क्या हुआ क्या नहीं ये जानना जरूरी नहीं हैं।" चिड़ते हुए श्रृष्टि बोलीं
साक्षी... अरे इतनी सी बात के लिए चीड़ क्यों रहीं हैं। अच्छा ठीक है मैं ही चली जाती हूं।
इसके बाद साक्षी चली गई। भीतर जानें की अनुमति लेकर भीतर जाते ही राघव बोला... साक्षी तुम क्यों आईं हों। आने को श्रृष्टि को बोला था।
साक्षी... उसी ने ही भेजा हैं।
"क्या (चौकते हुए राघव आगे बोला) श्रृष्टि आज कुछ अजीब सा व्यवहार कर रही हैं समझ नहीं आ रहा कि वो ऐसा क्यों कर रहीं हैं।"
साक्षी... लगता है कल की बातों को कुछ ज्यादा ही दिल पे ले लिया हैं आप एक काम करिए अभी थोड़े देर बाद पुरी टीम को लंच पर ले जानें की बात कह दिजिए शायद इस बात से उसमे कुछ बदलाब आ जाए।
राघव... ठीक हैं तुम अभी जाओ।
साक्षी वापस चली गई और राघव ने तूरंत ही किसी को फ़ोन किया फिर काम में लग गया। कुछ वक्त काम करने के बाद वो वहां गया और बोला... आज मैं आप सभी को लंच पे ले जाना चाहता हूं तो आप सभी तैयार रहना।
राघव की इस बात पे श्रृष्टि ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिया न ख़ुशी जाहिर किया न गम बस सामान्य ही बनी रही और साक्षी बोलीं... अरे वाह सर आज किस ख़ुशी में हम पर ये मेहरबानी किया जा रहा हैं (फ़िर श्रृष्टि की ओर देखकर बोलीं) सर कही आप किसी की नाराजगी दूर करने के लिए सभी को लंच पर तो नही ले जा रहें हों।
"सर जब लंच पर ले ही जा रहे हो तो किसी अच्छे से रेस्टोरेंट में लेकर चलना।"एक सहयोगी बोला
साक्षी... अरे डाफेर जब सर लेकर जा रहे हैं तो अच्छे रेस्टोरेंट में लेकर ही जायेगे आखिर उन्हे किसी रूठे हुए को मनाना जो हैं। क्यों सर मैंने सही कहा न?
डाफेर सुनते ही श्रृष्टि की आंखें फैल गई और चौकने वाले अंदाज में साक्षी को देखने लग गईं। जब उसे अहसास हुआ की डाफेर उसे नहीं किसी ओर को बोला गया हैं। तो मंद मंद मुस्कान बिखेर कर नज़रे झुका लिया और राघव बोला...रेस्टोरेंट कैसा है ये तो तुम सभी को वहा पहुंचकर पता चल जायेगा। वैसे मेरा आधा काम हों चुका हैं बाकि का लंच के वक्त हों जायेगा। अच्छा तुम सभी काम करो मैं समय से आ जाऊंगा।
एक गलतफैमी जीवन में कौन कौन सा मोड़ ला सकता हैं। यह कहा नहीं जा सकता लेकिन अभी अभी राघव एक गलत फैमी के चलते जो समझा और जो कहा वो कितना सिद्ध होगा ये वक्त ही बता सकता हैं। बहरहाल श्रृष्टि के मंद मंद मुस्कान को हां समझकर राघव चला गया और साक्षी श्रृष्टि के पास जाकर श्रृष्टि के कंधे से कंधा टकराते हुए बोलीं…श्रृष्टि अब तो खुश हों जा। यह लंच खास तेरे लिए प्लान किया गया हैं।
श्रृष्टि... मैं भला क्यों खुश होने लगीं और मेरे ही लिए क्यों स्पेशियली लंच प्लान क्या जानें लगा?
साक्षी... तू जानती सब हैं फ़िर भी अनजान बन रहीं हैं चल कोई बात नहीं थोड़ी ही देर की बात हैं सब जान जायेगी।
श्रृष्टि... मुझे कुछ नहीं जानना और तेरा बाते बनना हों गया हो तो कुछ काम कर ले।
साक्षी... मैं बाते बना रहीं हूं कि सच कह रहीं हूं ये थोड़ी ही देर में पता चल जायेगा। चल अपना अपना काम करते है आज तो लंच पे मैं छक के खाऊंगी ही ही ही।
अभी इन्हें काम करते हुए कुछ ही वक्त हुआ था कि श्रृष्टि का फ़ोन घनघाना उठा। बात करते हुए श्रृष्टि कुछ विचलित सी हों गईं और परेशानी की लकीरें उसके चेहरे पर उभर आईं। फ़ोन कटते ही अपना हैंड बैग उठाया और साक्षी से बोलीं…साक्षी मुझे अभी घर जाना होगा सर को बता देना।
साक्षी... क्या हुआ?
श्रृष्टि... अभी बताने का समय नहीं है बाद में बता दूंगी।
इतना बोलकर श्रृष्टि चली गई। श्रृष्टि के चेहरे पे उभरी चिंता की लकीरें देखकर साक्षी भापने की जतन करने लगी की सहसा क्या हों गया जो श्रृष्टि इतनी जल्दबाजी में और इतनी चिंतित मुद्रा में घर चली गई।
जारी रहेगा….
अगले दिन सुबह श्रृष्टि जब दफ्तर आई तब वो बिल्कुल सामान्य थीं। देखकर कोई ये नहीं कह सकता कि यहीं लड़की कल इतना परेशान थी की किसी से बात नहीं कर रहीं थीं और जब दफ्तर से गई थी तब तो एक अलग ही मरू या मारू के रूप में थी। मगर आज वो सभी से हस बोल रहीं थीं ठिठौली कर रहीं थीं।
राघव दफ्तर आते ही पहले श्रृष्टि को देखने गया कि वो कैसी हैं। श्रृष्टि को हसता मुस्कुराता देखकर राघव को बहुत ही ज्यादा सकून मिला लेकिन उसका यह सकून ज्यादा देर नहीं टिका क्योंकि श्रृष्टि ने सरसरी निगाह फेरकर ऐसे पलट गई। जैसे राघव श्रृष्टि के लिए अनजान हों।
राघव काफी देर खड़ा रहा इस उम्मीद में कि श्रृष्टि एक बार उसकी ओर देखे और थोडा मुस्कुराये मगर श्रृष्टि एक बार जो नज़रे झुकाया तो बस झुका ही रही। अंतः राघव वापस जाते वक्त बोला... श्रृष्टि कुछ काम की बात करना हैं मेरे साथ आना जरा।
बिना नज़रे उठाए बस इतना बोला "आप चलिए मैं आती हूं" ये सुन और श्रृष्टि का बरताव देखकर राघव कुछ विचलित सा होकर चला गया।
राघव के जाते ही श्रृष्टि कुछ देर बिल्कुल चुप बैठी रहीं फ़िर अपने रुमाल से आंखो को फोंछने लग गई ये देख साक्षी बोलीं... क्या हुआ श्रृष्टि?
श्रृष्टि... साक्षी लगता है आंखों में धूल का कोई कण घुस गया हैं।
साक्षी...अच्छा ला दिखा मैं निकाल देती हूं।
श्रृष्टि... मैं निकाल लूंगी तू सर से मिलकर आ।
साक्षी... मैं क्यों जाऊं? बुलाकर तुझे गया हैं तो तू ही जा।
श्रृष्टि... मैं जाऊं या तू बात तो उन्हें काम की करनी हैं। हम दोनों प्रोजेक्ट हेड हैं तो काम की बात तुझसे भी किया जा सकता हैं। इसलिए तू होकर आ तब तक मैं कुछ जरुरी काम निपटा लेती हूं।
साक्षी...श्रृष्टि आज तेरा वर्ताव मेरे समझ में नहीं आ रहीं हैं। तुझे हुआ किया हैं। पहले तो तू सर के न बुलाने पर कोई न कोई काम का बहाना करके बात करने चली जाती थीं फिर आज क्या हुआ जो बुलाने पर भी नहीं जा रही हैं।?
"आ हा साक्षी मैंने जो कहा है वो कर न मुझे क्या हुआ क्या नहीं ये जानना जरूरी नहीं हैं।" चिड़ते हुए श्रृष्टि बोलीं
साक्षी... अरे इतनी सी बात के लिए चीड़ क्यों रहीं हैं। अच्छा ठीक है मैं ही चली जाती हूं।
इसके बाद साक्षी चली गई। भीतर जानें की अनुमति लेकर भीतर जाते ही राघव बोला... साक्षी तुम क्यों आईं हों। आने को श्रृष्टि को बोला था।
साक्षी... उसी ने ही भेजा हैं।
"क्या (चौकते हुए राघव आगे बोला) श्रृष्टि आज कुछ अजीब सा व्यवहार कर रही हैं समझ नहीं आ रहा कि वो ऐसा क्यों कर रहीं हैं।"
साक्षी... लगता है कल की बातों को कुछ ज्यादा ही दिल पे ले लिया हैं आप एक काम करिए अभी थोड़े देर बाद पुरी टीम को लंच पर ले जानें की बात कह दिजिए शायद इस बात से उसमे कुछ बदलाब आ जाए।
राघव... ठीक हैं तुम अभी जाओ।
साक्षी वापस चली गई और राघव ने तूरंत ही किसी को फ़ोन किया फिर काम में लग गया। कुछ वक्त काम करने के बाद वो वहां गया और बोला... आज मैं आप सभी को लंच पे ले जाना चाहता हूं तो आप सभी तैयार रहना।
राघव की इस बात पे श्रृष्टि ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिया न ख़ुशी जाहिर किया न गम बस सामान्य ही बनी रही और साक्षी बोलीं... अरे वाह सर आज किस ख़ुशी में हम पर ये मेहरबानी किया जा रहा हैं (फ़िर श्रृष्टि की ओर देखकर बोलीं) सर कही आप किसी की नाराजगी दूर करने के लिए सभी को लंच पर तो नही ले जा रहें हों।
"सर जब लंच पर ले ही जा रहे हो तो किसी अच्छे से रेस्टोरेंट में लेकर चलना।"एक सहयोगी बोला
साक्षी... अरे डाफेर जब सर लेकर जा रहे हैं तो अच्छे रेस्टोरेंट में लेकर ही जायेगे आखिर उन्हे किसी रूठे हुए को मनाना जो हैं। क्यों सर मैंने सही कहा न?
डाफेर सुनते ही श्रृष्टि की आंखें फैल गई और चौकने वाले अंदाज में साक्षी को देखने लग गईं। जब उसे अहसास हुआ की डाफेर उसे नहीं किसी ओर को बोला गया हैं। तो मंद मंद मुस्कान बिखेर कर नज़रे झुका लिया और राघव बोला...रेस्टोरेंट कैसा है ये तो तुम सभी को वहा पहुंचकर पता चल जायेगा। वैसे मेरा आधा काम हों चुका हैं बाकि का लंच के वक्त हों जायेगा। अच्छा तुम सभी काम करो मैं समय से आ जाऊंगा।
एक गलतफैमी जीवन में कौन कौन सा मोड़ ला सकता हैं। यह कहा नहीं जा सकता लेकिन अभी अभी राघव एक गलत फैमी के चलते जो समझा और जो कहा वो कितना सिद्ध होगा ये वक्त ही बता सकता हैं। बहरहाल श्रृष्टि के मंद मंद मुस्कान को हां समझकर राघव चला गया और साक्षी श्रृष्टि के पास जाकर श्रृष्टि के कंधे से कंधा टकराते हुए बोलीं…श्रृष्टि अब तो खुश हों जा। यह लंच खास तेरे लिए प्लान किया गया हैं।
श्रृष्टि... मैं भला क्यों खुश होने लगीं और मेरे ही लिए क्यों स्पेशियली लंच प्लान क्या जानें लगा?
साक्षी... तू जानती सब हैं फ़िर भी अनजान बन रहीं हैं चल कोई बात नहीं थोड़ी ही देर की बात हैं सब जान जायेगी।
श्रृष्टि... मुझे कुछ नहीं जानना और तेरा बाते बनना हों गया हो तो कुछ काम कर ले।
साक्षी... मैं बाते बना रहीं हूं कि सच कह रहीं हूं ये थोड़ी ही देर में पता चल जायेगा। चल अपना अपना काम करते है आज तो लंच पे मैं छक के खाऊंगी ही ही ही।
अभी इन्हें काम करते हुए कुछ ही वक्त हुआ था कि श्रृष्टि का फ़ोन घनघाना उठा। बात करते हुए श्रृष्टि कुछ विचलित सी हों गईं और परेशानी की लकीरें उसके चेहरे पर उभर आईं। फ़ोन कटते ही अपना हैंड बैग उठाया और साक्षी से बोलीं…साक्षी मुझे अभी घर जाना होगा सर को बता देना।
साक्षी... क्या हुआ?
श्रृष्टि... अभी बताने का समय नहीं है बाद में बता दूंगी।
इतना बोलकर श्रृष्टि चली गई। श्रृष्टि के चेहरे पे उभरी चिंता की लकीरें देखकर साक्षी भापने की जतन करने लगी की सहसा क्या हों गया जो श्रृष्टि इतनी जल्दबाजी में और इतनी चिंतित मुद्रा में घर चली गई।
जारी रहेगा….