24-08-2024, 04:09 PM
भाग - 25
पिता के ख्यालों में खोने की बात कहते ही राघव एक बार फ़िर ख्यालों में खो गया। इस बार कुछ ओर ही ख्याल उसके मस्तिस्क में चला रहा था। वो सोच रहा था पापा को सच बताए या नहीं अगर सच नहीं बताना है है तो कुछ ऐसा बताना होगा जिससे पापा को लगे की राघव की परेशानी की यहीं वजह है। सहसा राघव मुस्कुराते हुए बोला... पापा वो दफ्तर से आते वक्त कुछ वक्त के लिए नजदीक के एक पार्क में गया था। वहा देखा एक बच्चे को उसकी मां खुद से खिला रहीं थीं ये देखकर मुझे मां की याद आ गई थी इसलिए थोड़ा परेशान हों गया था फ़िर भोजन के वक्त आप अपने हाथो से खिला रहें थे तो उस वक्त भी मां की याद आ गई कि मां होती तो वो भी मुझे ऐसे ही खिलाते बस इसलिए उठकर आ गया।
तिवारी... अच्छा कोई बात नहीं अब जब भी तेरा मन करें मुझे बता देना मैं तुझे अपने हाथों से खिला दिया करुंगा।
और हां ऐसा जूठ हम उमर वालो से बोला जता है !!!! हा हा हा
कुछ और इधर उधर की बाते होने लगा। धीरे धीरे बाते राघव की शादी की ओर चल पड़ा शादी की बात आते ही राघव के मन में श्रृष्टि का ख्याल आ गया। सीधा सीधा वो बाप से कह नहीं पा रहा था। इसलिए राघव बोला...पापा मान लिजिए मैं किसी ऐसी लड़की को पसंद करता हूं जो हमारी हैसियत की बराबरी नहीं करती है तो क्या आप...।
"हम्म तो मामला ये है मेरे बेटे को किसी से प्यार हों गया जो रूतवे में हमसे कम है। है ना मैं सही कह रहा हूं ना।" राघव की कहने का मतलब समझते हुए तिवारी बोला
राघव... जी पापा
जूठ बोलता हु तो पकड़ा जाता हु
तिवारी... बेटा कभी कभी जूठ बोलना भी सीखना पड़ता है कभी कभी जूठ ही काम में आ जाता है खेर चल अब ये भी बता दे तेरी प्रेम कहानी कहा तक पहुंची फ़िर मैं बताऊंगा की तेरे सवाल का क्या जवाब हैं।
सूक्ष्म रूप में श्रृष्टि के साक्षत्कार देने आने वाले दिन से लेकर अब तक की पुरी कथनी सूना दिया। जिससे सुनकर तिवारी बोला... हम्म तो तूने अभी अभी जो अपने परेशानी का कारण बताया था कारण वो नही बल्कि श्रृष्टि है जो आज तेरी शादी की झूठी खबर सुनकर परेशान हो गई।
राघव... जी पापा।
तिवारी... तो बेटा ये बताओ प्रपोज खुद से करोगे कि मैं शागुन की थैली लेकर उसके घर पहुंच जाऊं।
राघव... क्या पापा आप तो मेरे फेरे फेरवाने के पीछे पड़ गए। थोड़ा रूकिए पहले मुझे बात तो कर लेने दिजिए। आज जो बखेड़ा हुआ है उसके बाद पता नहीं वो क्या कहेंगी।
तिवारी... क्या कहेंगी ये मैं नहीं जानता मैं बस इतना जानता हूं कि उस जैसी उच्च सोच वाली कोई ओर लड़की शायद ही मुझे मेरी पुत्र बधू के रूप में मिले। इसलिए जल्दी से तुझे जो करना है कर नहीं हुआ तो मुझे बताना मैं उसके घर रिश्ता लेकर पहुंच जाऊंगा।
राघव... इसका मतलब आपको इस बात से कोई दिक्कत नहीं है कि उसकी हैसियत हमारे बराबर नहीं है और हमारे कम्पनी में काम करने वाली एक नौकरियात (मुलाजिम) हैं।
तिवारी…जब लड़की इतनी होनहार और दूजे ख्यालों वाली है तो उसके सामने हमारी हैसियत मायने ही नहीं रखता बेटे । उस जैसी लड़की को मुझे अपनी पुत्रवधू बनाने में भला क्या दिक्कत आयेगा।
राघव... ठीक है।
इसके बाद तिवारी जी राघव को सोने को कहकर चले गए और राघव आने वाले सुखद भविष्य के सुनहरी सपने बुनते हुए सो गया।
उधर तिवारी जी भी अपनी पुत्रवधू की कल्पना को लिए सोने के लिए चले गए
पिता के ख्यालों में खोने की बात कहते ही राघव एक बार फ़िर ख्यालों में खो गया। इस बार कुछ ओर ही ख्याल उसके मस्तिस्क में चला रहा था। वो सोच रहा था पापा को सच बताए या नहीं अगर सच नहीं बताना है है तो कुछ ऐसा बताना होगा जिससे पापा को लगे की राघव की परेशानी की यहीं वजह है। सहसा राघव मुस्कुराते हुए बोला... पापा वो दफ्तर से आते वक्त कुछ वक्त के लिए नजदीक के एक पार्क में गया था। वहा देखा एक बच्चे को उसकी मां खुद से खिला रहीं थीं ये देखकर मुझे मां की याद आ गई थी इसलिए थोड़ा परेशान हों गया था फ़िर भोजन के वक्त आप अपने हाथो से खिला रहें थे तो उस वक्त भी मां की याद आ गई कि मां होती तो वो भी मुझे ऐसे ही खिलाते बस इसलिए उठकर आ गया।
तिवारी... अच्छा कोई बात नहीं अब जब भी तेरा मन करें मुझे बता देना मैं तुझे अपने हाथों से खिला दिया करुंगा।
और हां ऐसा जूठ हम उमर वालो से बोला जता है !!!! हा हा हा
कुछ और इधर उधर की बाते होने लगा। धीरे धीरे बाते राघव की शादी की ओर चल पड़ा शादी की बात आते ही राघव के मन में श्रृष्टि का ख्याल आ गया। सीधा सीधा वो बाप से कह नहीं पा रहा था। इसलिए राघव बोला...पापा मान लिजिए मैं किसी ऐसी लड़की को पसंद करता हूं जो हमारी हैसियत की बराबरी नहीं करती है तो क्या आप...।
"हम्म तो मामला ये है मेरे बेटे को किसी से प्यार हों गया जो रूतवे में हमसे कम है। है ना मैं सही कह रहा हूं ना।" राघव की कहने का मतलब समझते हुए तिवारी बोला
राघव... जी पापा
जूठ बोलता हु तो पकड़ा जाता हु
तिवारी... बेटा कभी कभी जूठ बोलना भी सीखना पड़ता है कभी कभी जूठ ही काम में आ जाता है खेर चल अब ये भी बता दे तेरी प्रेम कहानी कहा तक पहुंची फ़िर मैं बताऊंगा की तेरे सवाल का क्या जवाब हैं।
सूक्ष्म रूप में श्रृष्टि के साक्षत्कार देने आने वाले दिन से लेकर अब तक की पुरी कथनी सूना दिया। जिससे सुनकर तिवारी बोला... हम्म तो तूने अभी अभी जो अपने परेशानी का कारण बताया था कारण वो नही बल्कि श्रृष्टि है जो आज तेरी शादी की झूठी खबर सुनकर परेशान हो गई।
राघव... जी पापा।
तिवारी... तो बेटा ये बताओ प्रपोज खुद से करोगे कि मैं शागुन की थैली लेकर उसके घर पहुंच जाऊं।
राघव... क्या पापा आप तो मेरे फेरे फेरवाने के पीछे पड़ गए। थोड़ा रूकिए पहले मुझे बात तो कर लेने दिजिए। आज जो बखेड़ा हुआ है उसके बाद पता नहीं वो क्या कहेंगी।
तिवारी... क्या कहेंगी ये मैं नहीं जानता मैं बस इतना जानता हूं कि उस जैसी उच्च सोच वाली कोई ओर लड़की शायद ही मुझे मेरी पुत्र बधू के रूप में मिले। इसलिए जल्दी से तुझे जो करना है कर नहीं हुआ तो मुझे बताना मैं उसके घर रिश्ता लेकर पहुंच जाऊंगा।
राघव... इसका मतलब आपको इस बात से कोई दिक्कत नहीं है कि उसकी हैसियत हमारे बराबर नहीं है और हमारे कम्पनी में काम करने वाली एक नौकरियात (मुलाजिम) हैं।
तिवारी…जब लड़की इतनी होनहार और दूजे ख्यालों वाली है तो उसके सामने हमारी हैसियत मायने ही नहीं रखता बेटे । उस जैसी लड़की को मुझे अपनी पुत्रवधू बनाने में भला क्या दिक्कत आयेगा।
राघव... ठीक है।
इसके बाद तिवारी जी राघव को सोने को कहकर चले गए और राघव आने वाले सुखद भविष्य के सुनहरी सपने बुनते हुए सो गया।
उधर तिवारी जी भी अपनी पुत्रवधू की कल्पना को लिए सोने के लिए चले गए